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Monday, August 28, 2017

रोला छन्द - श्रीमती वसंती वर्मा

रोला छन्द - श्रीमती वसंती वर्मा

(1)

छिन हो जाथे सांझ,नानकुन बेरा भइगे ।
लागय कुड़कुड़ जाड़,पूस के महिना अइगे ।।
बासी रोटी बनय,गोरसी आगी बारे ।
बीड़ी देहूॅ छोड़,नॅगरहा किरिया पारे  ।।

(2)

जाड़ा अड़बड़ लाय, पूस के महिना आवे ।
पानी ठरत नहाय, बहुरिया तरिया जावे ।।
भुर्री बबा जलाय,सबों तापें गा लइका ।
बड़का दाई कहय, बारिहा आगी कतका ।।

रचनाकार - श्रीमती वसंती वर्मा
                   बिलासपुर (छत्तीसगढ़)

32 comments:

  1. वाह्ह्ह्ह्ह् दीदी सुग्घर रचना ,जाड़ महिना के सुग्घर बासी चटनी के वरणन करे हव

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  2. सुघ्घर रोला छंद।

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  3. सुघ्घर रोला छंद।

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  4. बड़ सुग्घर रोला छंद दीदी जी।

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  5. बहुँत सुघ्घर रोला दीदी... 👑🎓🎩
    😁
    👕👍Great!
    👖

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  6. वाह दीदी सुघ्घर रोला

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  7. बढ़िया रोला छंद दीदी

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    1. धन्यवाद बहिनी।

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    2. धन्यवाद बहिनी।

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  8. बहुत सुग्घर रोला छंद लिखे हव ,दीदी। बहुत बहुत बधाई अउ शुभकामना।

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  9. सुग्घर रोला ।बसंती वर्मा जी ला हार्दिक बधाई।

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  10. बहुत सुग्घर दीदी।सादर बधाई

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  11. बहुत सुग्घर दीदी।सादर बधाई

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  12. सुग्घर रोला दीदी। आप ल बहुँत बहुँत बधाई।

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  13. वाह्ह दीदी बड़ सुग्घर रोला छंद

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  14. रोला बढिया छंद, लिखे हावस - वासन्ती
    आइस हे आनन्द, मोर बहिनी - गुणवन्ती।
    बन गे सुघ्घर ब्लॉग, देखही एला सब झन
    जाग बही तँय जाग,मगन हो जाते मनमन।

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