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Wednesday, August 30, 2017

श्री हेमलाल साहू के दोहे

श्री हेमलाल साहू के दोहे

श्री हेमलाल साहू के दोहे

गिधवा

सोनमती दाई हरै, राखे मया दुलार।
बैसाखू मोरे ददा, करथे मया अपार।।

दसरू के नाती हरव, बेटा आँव किसान।
पर सेवा उपकार मा, बसथे मोर परान।।

गिधवा हावे गाँव जी, हेमलाल हे नाव।
आय जिला बेमेतरा, कन्हार माटी गाँव।।

चिरई चुरगुन हा करै, जिहाँ बसेरा जान।
चना उन्हारी संग मा, बोथे सुघ्घर धान।।

पंथी

ढोलक तबला थाप मा, बाजे मांदर संग।
नाचे साधक साधके, देखव पन्थी रंग।।

बाबा  घासीदास के, करथे  सुघ्घर  गान।
गाए महिमा देखले, गुरु के करत बखान।।

चोला पहिर सफेद गा, नाचे पंथी नाँच।
बाँधे घुँघरू गोड़ मा, गोठ करै गा साँच।।

सादा हवै लिवाज गा, सादा झण्डा जान।
सबला देवत सोर गा, मानव एक समान।।

देव दास सिरजिस हवै, पन्थी  नाँच बिधान।
देश विदेश सबो जगा, करिस हवै गुरु गान।।

खेल

खेलत खेलत सीख ले, जिनगी के तै ज्ञान।
खेल कूद जिनगी हरै, रख अपने पहिचान।।

खेलव खोखो कब्बडी, सुघ्घर दौड़ लगाव।
गिल्ली डंडा खेल के , आँखी नजर बढ़ाव।।

खेलव पचरंगा अऊ, सुघ्घर खेल कुदाल।
राजा रानी खेल मा, दुश्मन खोलव चाल।।

रेस टीप खेले सबो, सबझन देख लुकाय।
टीप हेम पहला परिस, दाम देत रो आय।।

चल ठप्पा ला खेलबो, देखव सबो लुकाय।
पहली ठप्पा हेम के, सब मिलके चिड़हाय।।

संत घासीदास

बाबा घासीदास गा, आये हवव दुवार।
तैहा दीया ज्ञान के, मोरो मन मा बार।।

हव अज्ञानी निचट मे, बता ज्ञान के सार।
बाबा अड़हा हवव मे, मोला जग से तार।।

दुनिया मा हावे भरै, माया के भण्डार।
आके मोरो तै लगा, बाबा बेड़ा पार।।

सबो जीव बाबा हवै, जग मा तोर मितान।
सत्य बचन बाबा हवै, तोरे जग पहिचान।।

मानव मानव एक हे, जगत तोर संदेश।
भेद भाव ला ए मिटै, आपस के सब क्लेश।।

सादा जिनगी तोर हे, सादा हवै लिवाज।
सत रद्दा जिनगी चलै, रखै सत्य के लाज।।

सतनाम पन्त जगत मा, बाबा हा फैलाय।
सत के झंडा देख ले, बाबा जग फहराय।।

सत के पूजा ला करै, बाबा घासीदास।
सत के रद्दा मा चलै, रहिके सत के पास।।

धान

गली खोर ममहाय गा, महके जब दुबराज।
धान महंगा आय गा, रखथे सुघ्घर साज।।

पहली बिसनू भोग के, रहिस हवै गा राज।
अइस महामाया अभी, होवे नही अकाल।।

करिया करिया धान हे, कहिथे केसर नाग।
बढ़िया खेती होय गा, कचरा जाये भाग।।

सबले  मोटा होय गा, रानी  काजर धान।
बड़का बाली हा रहै, कुत आय घमासान।।

सब एक हन

मनखे मनखे एक हन, काबर हे मन खोट।
भाई ला भाई करै,  काबर अइसन चोट।।

जाति धरम हा एक हे, काबर करथे भेद।
मानवता ला छोड़के, अन्तस् करथे छेद।।

राम  रहिम  सब  एक हे, छोड़व मनके द्वेष।।
मिलके रहिबो हम सबो, होय नहीँ कुछ क्लेश।।

मँय चाहत हँव

मँय चाहत हँव जी सबो, मिलके रहिबो ऐक।
करबो साहित बर बने, काम सबो मिल नेक।।

मँय चाहत हँव मन रहै, सुघ्घर काबू मोर।
करके चिंतन साधना, लाव नवा अँजोर।।

मँय चाहत हँव देश मा, आय  नवा  अँजोर।
सबके घर रहतिस खुसी, देत मया के सोर।।

मँय चाहत हँव  दी बने, आय  बहुरिया  तोर।
रखतिस सबके ख्याल ला, बाँध मया के डोर।।

मोला अइसे लागथे

मोला अइसे लागथे, देश बदलही मोर।
आही सुघ्घर देश मा, फेर नवा अंजोर।।

मोला अइसे लागथे, बढ़ी मया के डोर।
पर सेवा जिनगी रही, सबके लेवत सोर।।

मोला अइसे लागथे, गीता  जग  हे सार।
करै पाप के नाश ला, बिसनू ले अवतार।।

मोला  अइसे  लागथे, अब  खाहू में  मार।
ए शोभन काका हवै, गुस्सा करत अपार।।

पूस

आय महीना पूस के, जाड़ा लावय संग।
हाथ गोड़ होवय करा, लागे जी बेरंग।।

पूस मास करिया कहै, करै नहीँ शुभ काम।
बेरा लीलत पूस हा, झटकुन होवय शाम।।

आय महीना पूस के, लेवव आगी ताप।
तन पथरा होंगे हवै, मुँह ले फेकय भाप।।

जूनी दाई

जूनी दाई नाव हे, महिमा हवय अपार।
दाई तरिया पार मा, हवै बिराजे खार।।

ठगड़ी ठाठा मन फले, दरसन ला जब पाय।
मिटै रोग तनके सबो, जब तरिया म नहाय।।

कोरबा

उरजा के नगरी हरै, नाँव कोरबा जान।
सबला दे अंजोर गा, रखै अलग पहिचान।।

आवव देखव कोयला, करिया हीरा जान।
बड़े कारखाना चलै, देखव ओकर शान।।

बिलासपुर

न्याय राजधानी बसे, बिलासपुर हे नाँव।
मिलथे सबला न्याय हा, हरै बिलासा गाँव।।

केवटिन ओ नारी सती, आय बिलासा जान।
लाज बचाये बर अपन, ओ गवाइस परान।।

रइपुर
हमर राजधानी हरै, रइपुर ला पहिचान।
रंग भरै जग के हवै, देखव ओखर शान।।

आनी बानी बोल हे, किसम किसम के लोग।
मानव के माया नगर, अपन दिखायै योग।।

मारो

मान सिंह राजा रहय,  मारो गढ़ के शान।
हावे ओकर आज भी, देख किला के जान।।

भारी बड़का गढ़ रहै, रखै अलग पहिचान।
देख समे बलवान हे, खोइस ओकर शान।।

कांकेर

तपोभूमि रिषि कंक के, आय पहाड़ी धाम।
दाई   ए  कांकेश्वरी,  पूरन   करथे   काम।।

धरम देव राजा रहै, सिंह बनाय दुवार।
कंडरा रक्छा ला करै, दुश्मन पाये हार।।

हे सोनाई रूपई, एकठन तरिया जान।
राजा के बेटी रहै, दुनो  गवाय परान।।

ए सुक्खा होवय नहीँ, जेकर हे परमान।।
आधा पानी सोन गा, आधा चाँदी जान।

बस्तर

आवव बस्तर देखलव, जंगल झाड़ी आय।
हरियर हरियर देखलव, कुदरत रंग भराय।।

देख आदिवासी हवै, हमर इहाँ के शान।
भोला भाला सादगी, जेकर हे पहिचान।।

देखव बस्तर महल ला, सुघ्घरता के खान।
दलपत सागर देख ले, बस्तर के हे आन।।

आवव संगी देखलव, सुघ्घर जलप्रपात।
सबला तीरथगढ़ अऊ, चित्रकोट हे भात।।

खास हवै गा दशहरा, अबड़ ख्याति जग जान।
सबले  हावय  अलग गा, बढ़ाय  बस्तर मान।।

कैलास कुटुमसर गुफा, देखव बढ़िया ढंग।
एक बार  आके बने,     देखव बस्तर रंग।।

पानी कस निरमल हवै, निच्छल गुरु के प्रेम।
बाँटय ज्ञानी ज्ञान ला,  छोड़ आस हर  टेम।।

बार दिया मन प्रेम के, सुघ्घर करले दान।
हवै महीना धरम के, आही घर भगवान।।

दाई लछमी के मया, घर बरसय गा तोर।
भैया ला बधई हवै, बहुत अकन ले मोर।।

आत्मा बिन काया नहीँ, इही जगत के सार।
दीया बाती तेल मिल, करै जगत उजियार।।

माटी के दियना जले, जगत होय अंजोर।
जिनगी के बाती जले, तेल रहत ले मोर।।

आगे धनतेरस हवै, दिया अपन घर बार।
लछमी दाई संग मा, लाय नवा उजियार।।

सुरता आवय रोज गा, गोठ मया के तोर।
निक लागे हमला सँगी, करथौ सबके सोर।।

अंधियार मन मोर हे, कइसे लाव अँजोर।
खुद के दीया भुझत हे, कइसे देहू खोर।l

नोनी मन खातिर लिखे, सुघ्घर हवय किताब।
आव बचाबो मिल सबो, जिनगी हमर जनाब।।

सही बात बोले हवस, दी दी हम रे आस।
सब्द लान के तै बुझा, हमर छंद के प्यास।।

मानव मानव एक हन, मया प्रेम ला जोड़।
राहय नाता प्रेम के, अपन गरब ला छोड़।।

जुआ

गोसइया खेलय जुआ, घर बार होय नास।
पावय पार न कोउनो, कहिथे जेला तास।।

जबले खेले  तै जुआ, लछमी रहै न साथ।
बात मान ले मोर गा, धन न आवय हाथ।।

मंद

दारू पीके झन करव, अपन बुद्धि ला मंद।
करथे बढ़ नुकसान गा, करै साँस ला बंद।।

बइला

पुरखा के चीन्हा हमर, बइला गाड़ी आय।
आज देखले समय ला, सबहा गये नदाय।।

दुनिया मा सबले हवे, बइला हा अनमोल।
जिनगी जाँगर पेर थे, मरके बनथे ढोल।।

छेरी

छेरी पालन ला करव, बढ़ी बने जी आय।
माँस मंदिरा के चलन, कलयुग ला हे भाय।।

सबके घर छेरी रहय, मेर मेर नरियाय।
बढ़िया साधन आय के, अइसने कहाँ पाय।।

जाता

गोल गोल चक्का चले, तरी उपर लौ जान।
कनकी ठोम्हा ओइरे, बनके गिरे पिसान।।

घड़र घड़र जाँता बजे, लागे निक ले तान।
दार दरय घर मा बने, देख बना के घान।।

साधक

साधक ला विनती हवे, बढ़िया लगन लगाव।
अपन मेहनत मा बने, सुघ्घर फसल उगाव।।

खेत लहलहाही तुहर, हाँसय मन हा मोर।
हवे अगोरा फसल के, सुरता करते सोर।।

सुन्ना काबर आज हे, मोला समझ न आय।
ज्ञानी ध्यानी आप सब, काबर फेर रिसाय।।

सूरुज ऊगय देख ले, उठ जा भइया मोर।
ज्यादा झन सो देख ले, होंगे हावय भोर।।

छत्तीसगढ़ मिष्ठान

देसी रोटी चौसला, सबके मन ला भाय।
चटनी बने पताल के, ससने भरले खाय।।

लाड़ू मिलै बिहाव मा, जाबो सगा बरात।
देख कलेवा मा बने, लाड़ू भात खवात।।

बूढ़ी दाई हा हमर, रोटी गजब बनाय।
संगी साथी रोजके, चुरा चुरा के खाय।।

टपकत हावे लार हा, सुनके सबके बात।
जागेव अभी नींद ले, आय बिजौरी भात।।

अरसा खुरमी ठेठरी, सुघ्घर सबला भाय।
तीजा पोरा परब मा, सब घर खूब बनाय।।

कपड़ा हावय काचना, होंगय अबतो टेम।
उठके चल तै काचले, जल्दी जल्दी हेम।।

भजिया सोंहारी बरा, चीला मुठिया खाय।
सुरता मोला आत हे, घर मा हमर बनाय।।

फूल

फूले फूल गुलाब के, भँवरा हा मँडराय।
सुघ्घर के चक्कर पड़े, काँटा मा छेदाय।।

सबके पातेव दुलार ला, बनके सुघ्घर फूल।
सबके मन ला मोह के, रखले सबला कूल।।

चम्पा मन मुस्कात हे, गीत चमेली गात।
गोंदा ठोकथ ताल ला, देख चंदैनी रात।।

सुघ्घर कहत गुलाब हा, मोंगरा सुने बात।
जाबो दाई दुवरिया, गीत बने हम गात।।

टूटी फूटी मोर हे, करहूँ गलती माफ़
मोला कुछ आये नहीँ, मनके हव में साफ।

गुरु

सुन के गुरु बानी मिटै, मन के माया हेम।
धुलथे मनके पाप हा, बाँच जथे बस प्रेम।।

अहंकार जबले बढ़ै, जग मा होय विनास।
ककरो नइहे फायदा, छोड़ अहम के दास।।

चलबो गुरु के नाँव मा, हमतो होय सवार।
डुपती नइया ला करै, भव सागर से पार।।

साग

भाटा आलू देख ले, सबले चालू साग।
ज्यादा खाबे पेट ले, देथे बिगाड़ पाग।।

हवै नेवता गुरुददा, आँव चीख ले साग।
हावय मोरो घर बने, एक तुमा के भाग।

आलू भाटा साग अउ, हावे भाजी प्याज।
बढ़िया खाले पेट भर, झन करबे तै लाज।

गहना

माथे मा बिंदिया सजे, गला गजमुखन हार।
करधन राजे कमर मा, सोला कर सिंगार।।

लाली हे बिंदिया पटा, हावय चूरी लाल।
लाली हावे होठ हा, लाली लाली गाल।।

रुपया टोड़ा ला पहिर, देख जाय बाजार।
ऐंठी लच्छा संग मा, लेवव नथली हार।।

जनभासा

सुघ्घर बिचार आपके, मोरो मन ला भाय।
लिखबो जन भाषा बने, सबला बने मिठाय।।

शब्द सहज दोहा सरल, जगा छंद के भाग।
सूर ताल बढ़िया रहय,  धरके गावव फ़ाग।।

भासा छत्तीसगढ़ के, होवय हमार पोठ।
बोल मया के बात ला, गुरतुर लागे गोठ।।

पहनावा

लुगरा छाया पोलखा, पहनावा तँय जान।
धोती कुरता रहिस हे, पुरखा के पहचान।।

नंदा वत हावे सबो, तइहा के पहचान।
खुमरी टोपी कोट हा, नन्दा गए सियान।।

सूट पीस अउ जीन्स हा, आये अब पहनाव।
तइहा लुगरी पहिर के, टूरी निकलय गाँव।।

धोती कुरता पहिन के, बबा जाय बाजार।
झुमके नाचय देखले, पहिर करेला नार।।

नोनी  पहिरे  फ्रॉक  ला, बाबू हाफे पेन्ट।
जाथे रद्दा बाँट मा, पहिर जीन्स के सेट।।

धोती  कुरता  छोड़ के, पहिरे  जींसे  टाप।
लाल सरम ला बेच के, बनै ब्रिटिश के बाप।।

मातर मड़ई

राउत निकले देखले, लउठी धरके हाथ।
दोहा पारत जात हे, हावय मड़ई साथ।।

लउठी चाले हाथ मा, चलै अखाड़ा खेल।
देखइया आये हवय, कतका ठेलम ठेल।।

जाँच जाँच के देख ले, दोहा सुघ्घर आज।
बता हमर गलती बने, तभे निखरही काज।।

मड़ई मातर के हवै, ननपन सुरता मोर।
संगी मन देखे गये, आन गाँव के खोर।।

@चीला रोटी@

हावे छत्तीसगढ़ के, चीला रोटी शान।
खाके तैहा देखबे, तब पाबे पहिचान।।

चक्का जइसे गोल हे, रहिथे छेद मितान।
सोंहारी तो नइ हरे, एकर कर पहिचान।।

आय नहीँ गेंहू बता, चाँउर आय पिसान।
चाँउर ला पिसके हवै, एला बनाय जान।।

बनही चीला आज गा, आये घर के आन।
नोनी अउ बाबू सबो, एला खावय जान।।

भउजी चूल्हा बारके, पिसान देवय घोर।
जइसे तावा हा तिपय, डाले चारो ओर।।

ढकनी देवय तोप गा, बने फेर सेकाय।
सुघ्घर चीला हा बने, मुँह मा पानी आय।।

अड़बड़ रहिथे स्वाद हा, एला सबो बनाय।
चटनी संग पताल के, माँग माँग सब खाय।।

@भाजी@

भाजी तिवरा अउ चना, देख सबो ललचाय।
फेव-रेट सब के हवे, सिरतो गजब मिठाय।।

खाले भाजी साग ला, सेहत के संसार।
रोग दूर तन के करै, देवत मया अपार।।

टोर खेड़हा खोटनी, भाजी राँध बघार।
सबला हवे पसंद गा, सेहत के भरमार।।

भाजी तिंपनिया रहै, हर पानी के छोर।
दार डाल के राँध ले, देत मया के सोर।।

नाव सोल भाजी हवय, छू के देख लजाय।
अबड़ मिठाथे साग हा, खाये जीभ लमाय।।

मुसकेनी भाजी रहै, गाँव गाँव अउ खार।
लान मुफत मा टोरके, रुपया लगे न चार।।

@जाड़ा@

हेमन्त अपन रंग ला, सबो मुड़ा देखाय।
बनके जाड़ा देखले, अँगमा सरी समाय।।

होत बिहनिया सीत के, छोड़य तीर कमान।
अड़बड़ बड़गे जाड़ हा, सबके लेत परान।।

कड़कत हावे जाड़ हा, माँगत चादर साल।
लकड़ी जइसे तन लगे, पाये पता न खाल।।

उठके भइया बिहनिया, भूरी तापे जाय।
तन के जाड़ा दूर हो, फेर काम हा भाय।।

घामे लागे निक अबड़, जबले जाड़ा आय।
बइठ रवनिया मा बने, तन ला सेके जाय।।

स्वस्थ रखै तन मन बने, सबला जाड़ा भाय।
कसरत करले तँय बने, रोग कभू नइ आय।।

काँपत तन सबके हवे, जाड़ा अबड़ जड़ाय।
बाँधव पागा कान मा, जाड़ फेर न जनाय।।

तुलसी

बिन्दा के सुरता रहै, महिमा हवे अपार।
हरथे सबके रोग ला, तुलसी पूजा सार।।

तुलसी बिरवा तँय लगा, परभू के रख मान।
लछमी घर आही सदा, बिसनू के वरदान।।

1) सावन

सावन महिना मा गिरे, पानी बरस फुहार।
ओम नमः शिववाय के, चारो मुड़ा पुकार।।

2) हरियर

धरती सँवरे हे इहाँ, लुगरा हरियर रंग।
परब हरेली आत हे, लेके नवा उमंग।।

3) चिखला

माते चिखला देखले, गिरबे झन तै हेम।
चार महीना काट ले, रहै नहीं हर टेम।।

4) झिपार

पानी आय झिपार के, घर भीतर गे माढ़।
परगे मोर गरीब बर, महिना दुठिन असाढ़।।

5) असाढ़

नागर धरै असाढ़ मा, जोतै खेत किसान।
रोपाई होवै कहूँ, कहूँ बोय गा धान।।

योग

आवव संगी सीखबो, जिनगी मा गा योग।
होये तन मन पुष्ठ गा, नई लगय जी रोग।।

काल

कलजुग माया जान के, फूँक फूँक रख पाँव।
आही हमरो काल तौ, नइ मिलही जी ठाँव।।

सबले बड़का काल हे, हवे समय के मान।
कतको छुपाय जीव ला, बाँचय नही परान।।

जिनगी के ए रहत लेेे, हाय हाय म कमाय।
मोर तोर कहते रहेे, चैंन कहा ते पाय।।

परदेसिया करे राज

देखव गा परदेसिया, इहा करत हे राज।
बने कोकड़ा साधु गा, सादा फहिर लिबाज।।

एक रुपया चउर दे, अपन बनावै काज।
दारू अड्डा खोलके, देख करत हे राज।।

बनगे छत्तीसगढ़िया, मनखे आज अलाल।
चलत हवे परदेसिया, देखव बिघवा चाल।।

देखव लइका ला करय, भात दैय बीमार।
झन पढ़ छत्तीसगढ़िया, बने रहय गंवार।।

देख मोर छत्तीसगढ़, रोवत हावे आज।
टपटप आँसू हा गिरे, बचाव मोरे लाज।।

माटी दाई मोर गा, हावे करत पुकार।
बेटा मोरे जाग रे, झन सो मुँह ला फार।।

ऊवत सूरुज के जिहाँ, परथे सबझन पाव।
बढ़ निक लागे गाँव हा, हवे मया के छाँव।।

सुघ्घर दाई के मया, महिमा हवय अपार।
अपन पीर अंतस रखै, हमला देथे प्यार।।

बनके दीया मेटलव, जग के सब अँधियार।
बनव रौशनी जगत के, लाव नवा उजियार।।

बइला कस जाँगर हवै, ओला कसके पेर।
दूर करीबी ला करै, मिलै छाँव सुख फेर।।

साबासी टॉनिक हमर, लागे अड़बड़ मीठ।
मन करथे चंगा भला, देख बजा के पीठ।।

दोष दूर करथे सबो, गोठ करव करु भोग।
कड़ू करेला हा रखै,   देख शरीर निरोग।।

मिलै धीर में खीर जी,  करव रोज अभयास।
जाँगर के फल मीठ हे, करत रहव परयास।।

आँखी रहिके अंधरा, हावे मोर समाज।
पइसा मा मनखे बिकै, करै दोगला राज।।

धरम करम नाव रहिगे, नई हे सतइमान।
कटै इमानदार के गला, हाँसत हे शैतान।।

गूँगा, बहरा न्याय हे, नई सुनै फरियाद।
मोर मोर के शोर हे, पइसा बने दमाद।।

रचनाकार - श्री हेमलाल साहू
ग्राम - गिधवा (बेमेतरा)
छत्तीसगढ़

33 comments:

  1. विविध विषय म शानदार दोहा हेम भाई शुभकामनाएं।

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  2. विविध विषय म शानदार दोहा हेम भाई शुभकामनाएं।

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  3. हेम भाई बधाई हो।दोहा बने सिरजाय हव।

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    1. सादर धन्यवाद दिलीप भैया

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  4. बहुँत बहुँत बधाई हेम भईया जी... बहुँत सुघ्घर दोहा 🚀

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  5. बहुँत बहुँत बधाई हेम भईया जी... बहुँत सुघ्घर दोहा 🚀

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  6. बहुँत बहुँत बधाई हेम भईया जी,, बहुँत सुघ्घर दोहा 🚀🌈

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    1. सादर धन्यवाद जोगी भैया

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  7. बहुँत बहुँत बधाई हेम भईया जी,, बहुँत सुघ्घर दोहा 🚀🌈

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  8. वाह्ह्ह्ह्ह् हेम भइया बहुत सुग्घर अरन बरन विषय के छन्द रचना पढ़ के आनंद आगे

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    1. सादर धन्यवाद दुर्गा भैया

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  9. Replies
    1. सादर प्रणाम गुरुदेव आपके आशीष अउ कृपा के परिणाम ये

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  10. बहुत सुग्घर दोहावली हेम सर।सादर बधाई

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  11. बहुत सुग्घर दोहावली हेम सर।सादर बधाई

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    1. सादर धन्यवाद ज्ञानु भाई

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  12. सुग्घर दोहावली बर हेम जी ला हार्दिक शुभकामना।

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  13. बहुत सुग्घर दोहावली हे,हेमलाल साहू भैया। बहुत बहुत बधाई अउ शुभकामना।

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    1. सादर धन्यवाद मोहन भैया

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  14. बहुतेच सुग्घर दोहालरी हेम भाई। नंगत बधाई।

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    1. सादर धन्यवाद अमित भैया

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  15. बहुतेच सुघ्घर दोहावली

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  16. बहुतेच सुग्घर दोहावली हेम सर

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    1. सादर धन्यवाद अहिलेश्वर भैया

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  17. वाहःहः भाई आगे वाने समय के अनमोल हीरा

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    1. हीरा ना मोती हम बने, साधक हमकों मान।
      सदा करेंगे हम साधना,जब तक हो ये जान।।


      सादर अंतस ले आभार दीदी

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  18. विविध विषय म सुंदर दोहा छंद।बधाई हो हेम भाई।।

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  19. विविध विषय म सुंदर दोहा छंद।बधाई हो हेम भाई।।

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  20. bahut sundar doha he bhaiya .

    atyant sundar

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