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Sunday, September 3, 2017

श्री ज्ञानु दास मानिकपुरी के दोहा

श्री ज्ञानु दास मानिकपुरी के दोहा

सुआ गीत गावत हवे,सखी सहेली मोर।
पिया बसे परदेश मा,मन ला दे झंझोर।।

सुनके करमा गीत ला,जिनगी मा रस घोल।
धिक धिक मांदर थाप मा,हिरदे जावय डोल।।

गावय सोहर गीत ला,छट्टी बरही ताय।
जनमे नाती बहुरिया,बबा सुनें मुसकाय।।

सोहर मंगल गीत ला,जुरे सहेली गात।
थारी हा बाजा बने,जनमे हे नवजात।।

गाले मन भर ददरिया,निंदत निंदत धान।
गाँठ मया के झन छूटय,रखे रहिबे धियान।।

चरवाहा हे शानियाँ,खुमरी हवे लगाय।
पारे दोहा नाच के,कनिहा ला मटकाय।।

लेवत हे बंडी टुरा,संग जींस के पेन्ट।
करिया चश्मा संगमा,आनी बानी सेन्ट।।

चिरहा बंडी ला पहिर,पागा मूड़ी बाँध।
खेत डहर जावय ददा,बोहे नांगर खाँध।।

का बरषा जाड़ा कभू,का गरमी का धूप।
तन पंछा फेटा गला,हमर इही हे रूप।।

धरती के बेटा हरन,हमला कथे किसान।
खुमरी फेटा साथ हे,हावय हमर मितान।।

रचनाकार - ज्ञानुदास मानिकपुरी
ग्राम-चंदेनी कवर्धा जिला-कबीरधाम
छत्तीसगढ़

23 comments:

  1. वाह्ह् ज्ञानू सर बड़ सुग्घर दोहावली बधाई हो

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  2. छत्तीसगढ़ के पारम्परिक गीत वेशभूषा अउ रहन सहन ला रेखांकित करत शानदार दोहा बर ज्ञानु जी ला बहुत बहुत शुभकामना ।,

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  3. बहुत सुघ्घर सृजन हे भाई ज्ञानु

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  4. बहुत सुग्घर दोहावली ज्ञानु भैया। बधाई।

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  5. बड़ सुग्घर दोहालरी ज्ञानु जी।
    बधाई हे।

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  6. बहुत सुग्घर दोहावली,ज्ञानु भैया। बधाई।

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  7. वाह्ह्ह्ह्ह् भइया सुग्घर दोहावली

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  8. बहुत सुंदर भाई आपला बधाई

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  9. सादर आभार गुरुदेव।प्रणाम

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  10. सादर आभार गुरुदेव।प्रणाम

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  11. सुंदर दोहा भईया जी

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