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Thursday, September 21, 2017

रोला छन्द - श्री दिलीप कुमार वर्मा


रोला छन्द - श्री दिलीप कुमार वर्मा

 दारू

राजा होथे रंक,नसा के ये चक्कर मा।
पूँजी सबो सिराय,लगे आगी घर-घर मा।
करथे तन ला ख़ाक,सचरथे सबो बिमारी।
जल्दी आवय काल,बिखरथे लइका नारी।।1।।

दारू तन मा जाय,असर करथे बड़ भारी।
पीने वाला मान,छोड़थे दुनिया दारी।
मनखे होय अचेत,कहे ओ आनी बानी।
थोरिक नही लिहाज,करय अपने मन मानी।।2।।

दारू के ये रंग,चढे जब मनखे ऊपर।
उड़य हवा के संग,समझ हीरो गा सूपर।
सुनय नहीं ओ बात,जात अपने दिखलाथे।
उतरय दारू रंग,लहुट घर रोवत आथे।।3।।

पी ये नइ हच तँय,नसा तोला पी यत हे।
तोरे तन ला खाय,मजा मा ओ जीयत हे।
दारू छोड़व आज,काल जिनगी मिल जाही।
हरियाही तन काल,ख़ुशी हो सुख ला पाही।।4।।

रचनाकार श्री दिलीप कुमार वर्मा
बलौदाबाजार, छत्तीसगढ़

25 comments:

  1. नशा नाश के जड़ हवे।बड़ सुघ्घर रोला छंद दिलीप भैया ।बधाई!!

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  2. नशा नाश के जड़ हवे।बड़ सुघ्घर रोला छंद दिलीप भैया ।बधाई!!

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  3. दारू के नुकसान ला बतावत ,सुग्घर रोला छंद,गुरुदेव दिलीप वर्मा जी।बधाई।

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  4. सिरतोन दारु हमर बर नसकान करइया जिनिस आय,बहुतेच सुग्घर रोला छंद वर्मा जी।

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  5. सिरतोन दारु हमर बर नसकान करइया जिनिस आय,बहुतेच सुग्घर रोला छंद वर्मा जी।

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  6. बहुत सुग्घर रोला छंद में रचना सर।सादर बधाई

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  7. बहुत सुग्घर रोला छंद में रचना सर।सादर बधाई

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  8. सुग्घर सीख देवत रोला छन्द सर जी वाह्ह्ह्ह्ह्

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  9. वाह वाह दिलीप वर्मा जी। दारु जइसे सामाजिक बुराई ला विषय बना के सुग्घर शिक्षाप्रद रोला के सिरजन करे हव। हार्दिक बधाई ।

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  10. अब्बड़ सुघ्घर रोला सृजन हे दिलीप भाई जी
    बधाई हो

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  11. बड़ सुग्घर रोला छंद वर्मा सर जी।

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  12. सुघ्घर रोला छंद लिखे हव दिलीप भाई बधाई हो

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  13. सुघ्घर रोला भईया जी

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  14. सुघ्घर रोला भईया जी

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