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Monday, November 13, 2017

बरवै छन्द - श्री हेमलाल साहू

(1)
हेमलाल जी नावे, गिधवा गाँव।
चिरई करै बसेरा, पीपर छाँव।।

माँ शीतला बिराजे, तरिया पार।
मया दया ला दाई, रखे अपार।।

माटी सेवा भैया, करँय किसान।
नागर अऊ तुतारी, हे पहचान।।

ऊवत सूरुज करथे, सब परनाम।
होत बिहनिया जाथे, संगी काम।।

जियत मरत ले संगी, गुन ला गाव।
माटी सेवा करके, समय बिताव।।

राखव छोटे के जी, बढ़िया ध्यान।
करव अपन ले बड़का, के सम्मान।।

आपस में राखव जी, सबसे प्रेम।
लगा काम में मनला, तै हर टेम।।

जिनगी मा झन बनहू, कभू अलाल।
समय कीमती हावे, राखव  ख्याल।।

एक बरोबर मानुस , सबला जान।
दुनियाँ मा पूजय सच, अउ ईमान।।

संगी सबले  हावे,   बड़का   ज्ञान।
साधव अंतस मा रख, प्रभु के ध्यान।।

2) महँगाई -

बाढ़े भावे कसके, हर दिन साल।
बइरी महँगाई हा,  बनके काल।।

झार गोंदली मारत, बइठे हाट।
होवय चर्चा जेकर, रस्ता बाट।।

लाल लाल होवत हे, सबके आँख।
मिरचा बइरी देवत, कसके काँख।।

रोवात हवय सबला, देख पताल।
संग कोचिया रहिके, करें बवाल।।

जनता  के मरना हे, बाढ़त दाम।
काम धँधा तो नइहे, फोकट राम।।

नेता  मन सब बइठे  देखत हाल।
अपन भरे बर कोठी, चलथे चाल।।

शासन ला का चिंता, भष्टाचार।
परगे महँगाई के, सबला मार।।

3) मोर मया के पाती -

मोर मया  के पाती,  ले  संदेश।
सबला बढ़िया राखे, मोर गनेश।

बबा डोकरी दाई, जय सतनाम।
बाबू दाई दीदी, करवँ प्रणाम।।

भैया भाभी संगी, कर स्वीकार।
भेजत हव संदेशा, जय जोहार।।

घर अउ अँगना बढ़िया, होही मोर।
सपना देखत रहिथव, रतिहा जोर।।

बने मनाबो मिलके, हमन तिहार।
आहू  देवारी  मा, दिन  गुरुवार।।

दीया हमन जलाबो, घर अउ द्वार।
लाबो बढ़िया जग मा, नव उजियार।।

जगमग जगमग होवय, घर अउ खोर।
पढ़य लिखय नोनी अउ, बाबू मोर।।

राखय सबला बढ़िया, खुश भगवान।
आगू जावय बढ़िया,  मोर  किसान।।

सबझन ला पायलगी, अउ जय राम।
मोर कलम ला  देवत,  हव विश्राम।।

4)

रहिथे गोल गोल जी, दिखथे लाल।
बारी मा फरथे जी, करय कमाल।।

जेकर हे पताल गा, सुनलव नाव।
घर बारी मा पाबे, सबके गाँव।।

बारो महिना रहिथे, जेकर माँग।
बना डारके संगी, बढ़िया साग।।

बने पीसके खाले, चटनी भात।
फेर बोलबे बढ़िया, तैहर बात।।

रहिथे जेमा अड़बड़, संगी स्वाद।
आथे सुघ्घर जेहा, बारिस बाद।।

5) आवव रे संगी -

आवव रे संगी मिल, करबो काम।
भुइँया सरग बनाबो, परभू धाम।।

करम धरम ला बढ़िया, करँन प्रकास।
सच के पूजा होवय, छुवय अगास।।

सुख अउ शांति रहै जी, मन संतोष।
दाई रमा बिराजे, भरही कोष।।

पाप होय झन संगी, रखबो ख्याल।
परभू के गुन गाबो, टर ही काल।।

जात पात ला छोड़व, सबो समान।
मनखे मनखे भाई, इहि पहचान।।

बोलव प्रेम मया के, सुघ्घर बोल।
सबो कटै जग माया, मन ला खोल।।

नारी, लछमी, दुरगा, देबी जान।।
होय कभू झन संगी, जग अपमान।।

सुघ्घर सरग बनाबो, देवव साथ।
करबो सब मिल बूता, बाँटव हाथ।।

रचनाकार - श्री हेमलाल साहू
ग्राम गिधवा, पोस्ट नगधा,
तहसील नवागढ़, बेमेतरा

21 comments:

  1. Replies
    1. सादर धन्यवाद वर्मा भैया जी

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  2. koi bataye ga... badhai ko chhattisgarhi me ky kahte hai

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  3. बढ़िया लिखे हस हेम, छंद रोज लिखबे,नाँगा झन करबे, नहीं तो मैं शोभन कका ल बता देहँव ! समझें न ?

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    1. आशीष मिलै दीदी, हर दिन तोर।
      चलय लेखनी बढ़िया, दीदी मोर।।

      दीदी सादर प्रणाम। ...….………
      दीदी शोभन कका ला मत बताबे मयँ तोर बात ला मानहूँ।

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  4. बहुत सुग्घर बरवै छंद,भैया ।बधाई अउ शुभकामना।

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  5. बहुतेच सुन्दर बरवै सृजन हेम सर।

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    1. सादर धन्यवाद अहिलेश्वर भैया

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    2. वाह्ह्ह् वाह्ह्ह् शानदार रचना सर।सादर बधाई

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    3. वाह्ह्ह् वाह्ह्ह् शानदार रचना सर।सादर बधाई

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  6. सादर धन्यवाद ज्ञानु भैया

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  7. वाहःहः भाई अति सुघ्घर बरवै छंद के सृजन

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    1. सादर धन्यवाद दीदी अउ प्रणाम घलो

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  8. बहुत सुन्दर हेमलाल जी

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