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Tuesday, November 14, 2017

चौपई छन्द - श्री दुर्गाशंकर इजारदार

बेटी के कतको अवतार ,
झन कर जी तँय अत्याचार ,
बेटी बहनी दाई जान ,
अउ जीवन के साथी मान ।

नारी बिन तो  जग अँधियार
रुक जाही जीवन संचार ,
कहना ला तँय मोरे मान ,
नारी हे जीवन के खान ।

आग दहिज मा झन तँय झोंक ,
बेटी नइये माथा  ठोंक ,
भाग धइन घर बेटी आय ,
सात जनम ओकर बन जाय ।

रचनाकार -  श्री दुर्गाशंकर इजारदार
सारंगढ़, छत्तीसगढ़ 

17 comments:

  1. वाह्ह्ह्ह सुन्दर चौपई सर जी।

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  2. बहुत सुंदर भैया आपला बधाई

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  3. बहुत सुग्घर रचना सर।सादर बधाई

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  4. बहुत सुग्घर रचना सर।सादर बधाई

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  5. बढ़िया उन्नति की ओर छंद सृजन हे भाई दुर्गा
    बधाई हो

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  6. बहुत सुग्घर चौपई छंद के रचना करे हव भैया जी।बधाई अउ शुभकामना।

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  7. बढ़ियाँ चौपई छंद लिखे हव दुर्गाशंकर भाई बधाई

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  8. सुग्हर - चौपाई रचय, दुर्गा भाई मोर
    धीरे बानी चल बने,बाडै जस हर तोर।

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  9. वाह! दुर्गा भाई बढिया चौपाई छंद

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  10. बहुँत सुघ्घर सर जी

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  11. बहुँत सुघ्घर सर जी

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