बेटी के कतको अवतार ,
झन कर जी तँय अत्याचार ,
बेटी बहनी दाई जान ,
अउ जीवन के साथी मान ।
नारी बिन तो जग अँधियार
रुक जाही जीवन संचार ,
कहना ला तँय मोरे मान ,
नारी हे जीवन के खान ।
आग दहिज मा झन तँय झोंक ,
बेटी नइये माथा ठोंक ,
भाग धइन घर बेटी आय ,
सात जनम ओकर बन जाय ।
रचनाकार - श्री दुर्गाशंकर इजारदार
सारंगढ़, छत्तीसगढ़
झन कर जी तँय अत्याचार ,
बेटी बहनी दाई जान ,
अउ जीवन के साथी मान ।
नारी बिन तो जग अँधियार
रुक जाही जीवन संचार ,
कहना ला तँय मोरे मान ,
नारी हे जीवन के खान ।
आग दहिज मा झन तँय झोंक ,
बेटी नइये माथा ठोंक ,
भाग धइन घर बेटी आय ,
सात जनम ओकर बन जाय ।
रचनाकार - श्री दुर्गाशंकर इजारदार
सारंगढ़, छत्तीसगढ़
वाह्ह्ह्ह सुन्दर चौपई सर जी।
ReplyDeleteसादर जय जोहार भइया , धन्यवाद
Deleteबहुत सुंदर भैया आपला बधाई
ReplyDeleteधन्यवाद ,हेम भाई
Deleteबहुत सुग्घर रचना सर।सादर बधाई
ReplyDeleteधन्यवाद भइया
Deleteबहुत सुग्घर रचना सर।सादर बधाई
ReplyDeleteबहुत सुघ्घर भैया
ReplyDeleteधन्यवाद भइया
Deleteबढ़िया उन्नति की ओर छंद सृजन हे भाई दुर्गा
ReplyDeleteबधाई हो
बहुत सुग्घर चौपई छंद के रचना करे हव भैया जी।बधाई अउ शुभकामना।
ReplyDeleteसुग्घर चौपई छंद।
ReplyDeleteबढ़ियाँ चौपई छंद लिखे हव दुर्गाशंकर भाई बधाई
ReplyDeleteसुग्हर - चौपाई रचय, दुर्गा भाई मोर
ReplyDeleteधीरे बानी चल बने,बाडै जस हर तोर।
वाह! दुर्गा भाई बढिया चौपाई छंद
ReplyDeleteबहुँत सुघ्घर सर जी
ReplyDeleteबहुँत सुघ्घर सर जी
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