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Sunday, November 19, 2017

दोहा छंद - ईंजी.गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

मँय

मँय के उपजे फाँस मा,अरझे साँसा रोज।
मँय के ये बुनियाद ला,अपन भीतरी खोज।।१

छांव परे मँय के कहूँ,जर जर मानुष जाय।
करे बुद्धि ला खोखला,अंत घड़ी पछताय।।२

मँय के जानव भेद ला,छोड़व जी अभिमान।
हँसी जगत संसार मा,देवत जी अपमान।।३

रावन मरगे काल मँय,करके कुल के नाश।
मँय मा मरगे कंस हा,मँय के बनके दास।।४

मँय के सही इलाज हे,समानता के सोच।
छोड़ अहं के भाव ला,मँय ला खूँटी खोंच।।५

रचनाकार - ईंजी.गजानंद पात्रे "सत्यबोध"
छत्तीसगढ़

11 comments:

  1. सुग्घर दोहावली बर पात्रे जी ला हार्दिक शुभकामना ।

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  2. बढिया दोहावली पात्रे जी बधाई

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  3. बढ़िया दोहा हे अनुज, आइस हे आनंद
    गणपति के पर्याय अस, नाव हे गजानंद।

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  4. बहुँत बढ़िया सर जी

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  5. बहुँत बढ़िया सर जी

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  6. बहुत सुग्घर दोहावली,पात्रे भैया।बहुत बहुत बधाई अउ शुभकामना।

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  7. शानदार दोहावली सर जी।

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  8. वाह्ह वाह्ह्ह् शानदार रचना सर।सादर बधाई

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  9. वाह्ह वाह्ह्ह् शानदार रचना सर।सादर बधाई

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  10. बहुत बढ़िया दोहा छंद सिरजाय हव पात्रे भाई

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  11. मँय दानव ए जान लौ, बनौ न एकर दास।
    जतका मँय मिमियाय हें, होगे उंखर नास।।
    बहुत सुंदर भाई गजानंद....

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