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Monday, November 27, 2017

आल्हा छन्द - श्री कन्हैया साहू "अमित"

महतारी भाखा 

आखर आखर भाखा बनथे,
भाखा प्रगटे भाव बिचार।
महतारी बोली ला बोलव,
निज भाखा बिन सब बेकार।1

सिखव सबो भाखा ला सब झन,
होथे एमा गुन के खान।
फेर अपन महतारी भाखा ,
इही हमर हे गरब गुमान।2

बाढ़ँय फूलँय जम्मो भाखा,
ना हिजगा हे नही बिरोध।
भाखा हमरो आगू बढ़ही,
राखव अपने अंतस बोध।3

जनमे जेखर कोरा मा मैं,
वो भुँइयाँ हे सरग समान।
नान्हेंपन के गुरतुर लोरी,
वो भाखा हे ब्रम्ह गियान।4

लोककला महतारी संस्कृति,
निज भाखा के आय अधार।
जतका जादा करबो सेवा,
मया बाढ़ही अमित अपार।


रचनाकार - श्री कन्हैया साहू "अमित"*
भाटापारा, छत्तीसगढ़ 

16 comments:

  1. बहुत सुघ्घर आल्हा छंद हे भाई अमित

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  2. बहुँत सुघ्घर भईया जी

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  3. बहुत सुघ्घर आल्हा छंद केके सृजन करे हव आदरणीय अमित भैया जी।।

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  4. बहुँत सुघ्घर भईया जी

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  5. आल्हा सुग्हर लिखे कन्हैया, सब झन गाबो आल्हा आज
    जय जयकारा करबो भैया, देश - धर्म के सबो समाज।

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  6. मातृभाषा के महिमा गान करत सुग्घर आल्हा।

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  7. बहुत सुंदर बखान करे हव भईया जी
    बधाई आप ला

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  8. बहुत सुग्घघर रचना सर।सादर बधाई

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  9. बहुत सुग्घघर रचना सर।सादर बधाई

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  10. बड़ सुग्घर आल्हा छंद के सृजन करे हव अमित सर।

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  11. महतारी भाखा ला समर्पित लाजवाब आल्हा छंद ,अमित भैया।बहुत बहुत बधाई अउ शुभकामना।

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  12. गजब के आल्हा छंद सिरजाय हव अमित भाई।बधाई।

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  13. बहुत बढ़िया भाई कन्हैया....
    सादर बधाई..

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  14. बहुत बढ़िया भाई कन्हैया....
    सादर बधाई..

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