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Wednesday, November 29, 2017

छत्तीसगढ़ी राजभाषा दिवस

छत्तीसगढ़ी राजभाषा दिवस के अवसर मा छन्द के छ परिवार के साधक मन के विशेष कविगोष्ठी सम्पन्न होइस। ये गोष्ठी मा अरुण कुमार निगम(दुर्ग), चोवाराम "बादल" जी(हथबन्द), आशा देशमुख(एन टी पी सी कोरबा), दिलीप कुमार वर्मा(बलौदाबाजार), जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"(बाल्को), सुखदेव सिंह अहिलेश्वर (गोरखपुर,कवर्धा), इंजी. गजानन्द पात्रे (बिलासपुर), मनीराम साहू "मितान"(कचलोन), हेमलाल साहू(गिधवा), दुर्गाशंकर इजारदार(सारंगढ़), बलराम चंद्राकर(भिलाई), ज्ञानुसिंह मानिकपुरी(चंदैनी, कवर्धा), पोखन जायसवाल(पलारी), मोहन लाल वर्मा(अल्दा), अउ मोहन कुमार निषाद(भाटापारा) अपन छत्तीसगढ़ी गीत मा छत्तीसगढ़ी भाखा के महत्ता ला गुरतुर स्वर मा सुनाइन। कुछ कवि मन के गीत इहाँ प्रस्तुत हे-

1. अरुण कुमार निगम के गीत" -

 "नइ भूलय मिट्ठू तपत कुरु"….

आई लव यू………आई लव यू….
तयं बोल रे मिट्ठू , आई लव यू….
तपत कुरु के गये जमाना
बोल रे मिट्ठू – आई लव यू…..

राम-राम के बेरा -मा, भेंट होही तो गुड मार्निंग कहिबे
ए जी,ओ जी झन कहिबे,कहिबे तो हाय डार्लिंग कहिबे
सबो पढ़त हे इंग्लिश मीडियम
तयं काबर रहिबे पाछू …..
आई लव यू………आई लव यू….
तयं बोल रे मिट्ठू , आई लव यू….

हाट – बजार के नाम न ले , तयं मार्केटिंग बर जाये कर
कोन्हों क्लब के मेंबर बन के ,रोज स्वीमिंग बर जाये कर
समझ न आये इंग्लिश पेपर
तभो मंगाए कर बाबू…..
आई लव यू………आई लव यू….
तयं बोल रे मिट्ठू , आई लव यू….

बड़े बिहाने ब्रेक-फास्ट , मंझनिया लंच उड़ाए कर
चटनी-बासी छोड़ के अब तयं रतिहा डिनर खाए कर
नवा जमाना ,शहर-नगर -मा
छागे इंग्लिश के जादू ………
आई लव यू………आई लव यू….
तयं बोल रे मिट्ठू , आई लव यू….

(अतका सुन के मिट्ठू बोलिस…………)

तपत कुरु………तपत कुरु……..
नइ भूलय मिट्ठू तपत कुरु
छत्तीसगढ़ी बड़ गुरतुर लागे
इंग्लिश लागे करू -करू………..

अपन देस के रहन-सहन,अउ भासा के तुम मान करव
चमक-दमक मा झन मोहावौ, हीरा के पहिचान करव
“सबूत-बीजा ” हमर धरोहर
बाकी जम्मो ढुरु – ढुरु……….
तपत कुरु………तपत कुरु……..
नइ भूलय मिट्ठू तपत कुरु ……नइ भूलय मिट्ठू तपत कुरु ……
नइ भूलय मिट्ठू तपत कुरु ……नइ भूलय मिट्ठू तपत कुरु ……

 2. चोवा राम "बादल " -छत्तीसगढ़ी भाखा (गीत)

मोर छत्तीसगढ़ी भाखा मा , अइसन भरे मिठास जी।
सुनत पढ़त उठ पराथे  भूँखन अउ पियास जी।मोर-------

एमा गीता ज्ञान के मंतर ,बेद पुरान के सार हे।
इबादत जी हे कुरान के, बाइबिल के बैवहार हे ।
तुलसी के रमायेन एमा गुरु ग्रन्थ प्रकास जी।मोर--------

सुन के ददरिया दरद मेंट ले,करमा ह रस घोरे कान ।
सुवा हा जी अबड़ सुहाथे, दोहा देवारी के सान ।
बालमीकि कस बोलिस एला गुरु घासीदास जी।मोर------

पढ़े लिखे मा बड़ सोझवा हे, हावय एहा दुलौरिन ।
सब भाखा ले सुंदर हे, सिरतोन जानव गउकिन ।
अब्बड़ जल्दी सब सीख जाथें, थोकुंन करे प्रयास जी।
मोर छत्तीसगढ़ी भाखा मा, अइसन भरे मिठास जी।

 
3. दिलीप कुमार वर्मा - गीत

सुन ले छत्तीसगढ़िया संगी
बोलत झन ग लजाबे रे।
ये दुनिया मा जिहाँ ग जाबे
छत्तीसगढ़ी गाबे रे।

जे हर जइसन भाखा समझय
तइसन तँय गोठियाले।
पर भाई छत्तीसगढ़िया ले
बोली मा बतियाले।
अइसन गुरतुर भाखा संगी
अउ कहाँ तँय पाबे रे।
ये दुनिया.........

छत्तीसगढ़िया कहिथे कोनो
झन गा तँय सरमाबे।
अउ छाती ला तान ग तँय हा
छत्तीसगढ़ी गोठियाबे।
नाम धराले छत्तीसगढ़िया
बने मान तँय पाबे रे  ।
ये दुनिया........

छत्तीसगढ़ी म मया भरे हे
सब ला तँय बतलाबे।
दया मया म बाँध ग रखबे
काम करे जब जाबे।
भोला समझ के चाल चले ता
अपनों रूप दिखाबे रे।
ये दुनिया मा.......

4. दिलीप कुमार वर्मा - गीत

मोर भाखा छत्तीसगढ़ी ये
तेखर हवय गुमान गा।
ये भाखा मोर छत्तीसगढ़ के
बने हवय पहिचान गा।

सुआ ददरिया करमा गाले
ठलहा बइठे मन बहलाले।
लइका हा जब रोवय संगी
लोरी गा ओला सहलाले।
अइसन भाखा छत्तीसगढ़ी
मन बर दवा समान गा।
मोर भाखा......

छत्तीसगढ़ी गोठियाथँव संगी
लाज कभू मोला नइ लागय।
अंतस ले अंतस जुड़ जाथे
सूते भाग घलो हर जागय।
ये भाखा के किरपा संगी
जानय सकल जहाँन गा।
मोर भाखा .......

पढ़े लिखे शिक्षक हँव संगी
अड़हा मोला झन मानव।
अंगरेजी हिंदी पड़हाथँव
भकला मोला झन जानव।
पर गोठियाथँव छत्तीसगढ़ी
जेमा बसे परान गा।
मोर भाखा .........

5. आशा देशमुख - गीत

मोर छतीसगढ़ के भाखा
मोर छतीसगढ़ के बोली बड़ गुत्तुर लागय बहिनी
बड़ गुत्तुर लागय दीदी
मँय का बतावँव वो ।

धरती हा सिंगार करे वो
हरियर मन ला भावय ।
झूम झूम के जिवरा मोरे
सुआ ददरिया गावय ।
मांदर थाप मँजीरा बाजय ,दाई के करे सुमरनी ।
मँय का बतावंव वो ।
मोर छतीसगढ़ के भाखा ,बड़ गुत्तुर लागय बहिनी ,मँय का बतावंव वो ।

किसम किसम के परब मनावय
सबो के गुत्तुर गाना ।
दोहा पारत राउत नाचय ,
बर बिहाव मा हाना ।
पंथी सत के अलख जगावय ,गुरु बाबा के कहिनी ।
मँय का बतावंव वो ।
मोर छतीसगढ़ के भाखा ,बड़ गुत्तुर लागय बहिनी ।
मँय का बतावंव वो ।

साहब सुभा बनके भैया हो,
तुमन झन गरियावव्।
ये भाखा गा शान हमर हे,
हर झन हा अपनावव ।
ये भाखा बोली के भीतर ,अमरित के हे रहिनी ।
मँय का बतावँव वो ।
मोर छतीसगढ़ के भाखा ,बड़ गुत्तुर लागय बहिनी ।
मँय का बतावँव वो ,
मँय का बतावँव वो ।

6.  जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"  महतारी भाँखा(गीत)

मोर छत्तीसगढ़िया बेटा बदलगे,
बिसरात  हे भाँखा बोली......।
बड़ई नइ करे अपन भाँखा के,
करथे जी ठिठोली..............।

गिल्ली भँवरा बाँटी भुलाके,
खेले       क्रिकेट     हाँकी।
माटी   ले   दुरिहाके   संगी,
मारत       हावय    फाँकी।
चिरई पिला चींव चींव कइथे,
कँउवा   के     काँव    काँव।
गइया के बछरू हम्मा कइथे,
हुँड़ड़ा    के    हाँव      हाँव।
फेर मंदरस गुरतुर बोली मा,
मिंझरत हावय अब गोली..।

हटर हटर जिनगी भर करे।
छोड़े मीत मितानी।
देखावा  हा   आगी  लगे हे,
मारे  बड़   फुटानी।
पाके माया गरब करत हे,
बरोवत  हवे  पिरीत ला।
नइ  जाने  दया मया ला,
तोड़त  हावय  रीत  ला।
होटल ढाबा लॉज  भाये,
नइ भाये रँधनी खोली..।

सनहन पेज महिरी बासी,
अउ अँगाकर  नइ  खाये।
अपन मुख ले अपन भाँखा के,
गुण   कभू      नइ         गाये।
छत्तीसगढ़ महतारी के गा,
कोन    ह   नांव   जगाही।
हमर छोड़ अउ कोन भला,
छत्तीस गढ़िया    कहाही।
तीजा पोरा ल का जानही,
नइ जाने देवारी होली....

7. मनीराम साहू  "मितान" - गीत

मिसरी कस मीठ गोठियाथे दाई,
भले हवय वो अढ़ी जी।
बड़ गुरतुर लागे संगी ,
मोर भाखा छत्तीसगढ़ी  जी ।

हाँस के  करथे पहुनाई ,
एक लोटा पानी  मा।
बटकी भर बासी खवाथे,
नानुक अथान के  चानी।
कभू तसमई कभू महेरी,
भाटा खोइला मही मा कढ़ी जी ।
बड़....

बड़ सरसूदिहा छत्तीसगढ़िया,
मया हा भरे हे गोठ मा।
पिरित डोरी मा जम्मो  बँथाये ,
कोनो पातर कोनो रोठ मा।
गरती आमा कस रसा भरे हे,
नइये कोनो मेर हड़ही जी।
बड़....

कोनो भोजली गंगा जल,
महापरसाद जँवारा लागे हे।
बोली बोले दया धरम के,
परेम रस मा पागे हे।
बने बने हितवा मितवा ,
कोनो हा काबर लड़ही जी।
बड़...

छोटका बड़का सबो बरोबर
नइये भेद नैनू नैनी मा।
जुरमिल के  जम्मो  चढ़त हें,
सुनता सरग निसैनी मा।
आवव हमू अइसन कुछ करबो,
जेमा भाखा के  मान बढ़ी जी।
बड़...

8.  हेमलाल साहू -  कुकुभ छन्द

छत्तीसगढ़ी बोली भाखा, बड़ गुरतुर मोला लागे।
जन्म जन्म के रिश्ता हावे, जेला मोरे मन भागे।

मोर हवय जे दाई भाखा, मानव जेला भगवाने।
मीठ मीठ अउ गुरतुर बोली, बोलव जी सीना
 ताने।

नाचत पन्थी अऊ सुवा ला, करथन जेमा गुनगाने।
राग ददरिया करमा सुघ्घर, भाषा दे हे पहचाने।

दान दया ला राखे सुघ्घर, मया प्रीत ला हे बाँधे।
करम धरम के गुन ला गाथे, राम नाव ला हे साधे।।

फेर देख हालत भासा के, आँखी ले आँसू आथे।
हमर शहर ला हमरे भाखा, काबर अइसन नइ भाथे।

छोड़व मन के संका अबतो, राज काज देवव मोरो।
पढ़ लिख ले दाई भाखा मा, भाग जागही अब तोरो।

9. दुर्गाशंकर इजारदार - विष्णु पद छंद

महतारी के भाखा सुग्घर , बढ़िया चलो  पढ़े ,
ममता सुग्घर छलकत रहिथे , जिनगी जोन गढ़े ।
रोए खेले दाई भाखा , जेमा पेट भरे ,
गोठ करे बर काबर अब तँय , निच्चट लाज करे ।
गुरतुर सुग्घर बानी रहिथे ,अमरित कान भरे ,
सुनत मिठावत अइसन जइसन , मरहा जान डरे ।
***********************
  10. ज्ञानु'दास' मानिकपुरी -  

दोहा -
आवव छत्तीसगढ़िया,छत्तीसगढ़ी बोल।
भेदभाव ला छोड़ के,दया मया रस घोल।।

गीत -
नून बासी संगमा जइसे कढ़ी रे।
गुरतुर भाखा बोल छत्तीसगढ़ी रे।

-पड़की मैना सुआ के
             जइसे सुग्घर बोली हे।
  दया मया के रंगे रंग मा
              जइसे हँसी ठिठोली हे।
बोलव;तोलव:आँखी खोलव तभे मन बढ़ी रे।
गुरतुर भाखा बोल.....

-महतारी ये भाखा के
            मिलके लाज बचाना हे।
  होय पोठ हमर गोठ
            अपने काज बनाना हे।
हमर राज अउ काज बर नवाँ रद्दा गढ़ी रे।
गुरतुर भाखा बोल.....

-छत्तीसगढ़ी बोली मा
               मीठा मँदरस झरते रे।
  छत्तीसगढ़ के पावन भुइयाँ
                देवी देवता बसथे रे।
पढ़बो;लिखबो आगू बढ़बो तभे सीढ़ी चढ़ी रे।
गुरतुर भाखा बोल.....

11.     पोखन लाल जायसवाल - गीत
छत्तीसगढ़िया कहावव
भाखा के मान बढ़ावव।
     अपन भाखा अउ बोली मा ;
     खेत खार धनहा डोली मा ;;
     दुख पीरा के गोठ सुनावव ।
     भाखा के मान ----

     कहिनी संग गीत ला सिरजन ;
     लिख लिख के नवा छंद सबझन ;;
     बने बने साहित सिरजावव ।
     भाखा के मान ------

     गोठिया ले सुख दुख के गोठ ;
     करे बर अपने भाखा पोठ ;;
     लाज शरम के नांव बुतावव ।
भाखा के मान बढ़ावव
छत्तीसगढ़िया कहावव ।।

12. सुखदेव सिंह अहिलेश्वर - गीत

छत्तीसगढ़ी गीत

अब तो दिन दिन आघू बढ़ही मोर भाखा छत्तीसगढ़ी।
अब तो दिन दिन आघू बढ़ही मोर भाखा छत्तीसगढ़ी।

समरिध साहित के पन्ना मा
समरिध साहित के पन्ना मा,
नेक नगीना गढ़ही,
अब तो दिन दिन आघू बढ़ही
मोर भाखा छत्तीसगढ़ी।

(०१)
जे  भाखा मा घासी गुरु सत के संदेश बताइन हे।
जे धरती मा वाल्मीकि पहली रचना सिरजाइन हे।

दया माया भाईचारा के
दया मया भाईचारा के,
उत्तिम रद्दा गढ़ही,
अब तो दिन दिन आघू बढ़ही
मोर भाखा छत्तीसगढ़ी।

(०२)
भाखा के छंद बानी जइसे महानदी के पानी हे।
सुआ ददरिया करमा पंथी गायन आनी बानी हे।

रेंगत हाँसत बोलत ठोलत
रेंगत हाँसत बोलत ठोलत,
अंतस मा सुख भरही,
अब तो दिन दिन आघू बढ़ही
मोर भाखा छत्तीसगढ़ी।

(०३)
गुरतुर बोली लागे खुरमी चौंसेला अउ चीला कस।
हली भली खुशियाली लागे जुरे माई पिल्ला कस।

पढ़व लिखव बोलव बउरव
पढ़व लिखव बोलव बउरव,
भाखा रोज सँवरही,
अब तो दिन दिन आघू बढ़ही
मोर भाखा छत्तीसगढ़ी।

रचनाकार:-सुखदेव सिंह अहिलेश्वर
                 गोरखपुर,कवर्धा(छ.ग.)

13. बलराम चंद्राकर - गीत

भाखा ये छत्तीसगढ़ी

भाखा ये छत्तीसगढ़ी, गुरतुर अब्बड़ मोर ।
गा ले संगी ददरिया, होही जग मा सोर ।।
1)
होही जग मा सोर गा, नीक हे हमरो बोली।
दाई भाखा मा हमर, गुंजही धनहा डोली।।
सरगुजिया लरिया कथन, हरे गा इॅकरे साखा ।
बिलासपुर रायपुर अउ, दुरुग मा इही भाखा।।
पंथी करमा अउ सुआ, गा ले गा रस घोर।
भाखा ये छत्तीसगढ़ी, गुरतुर अब्बड़ मोर।।
2)
हाना के भंडार हे, जनउला कोठी कोठी।
भइया दोहा पार ले, बाॅच ले कतको पोथी।
गजब कहानी गीत के, हवै जी बढ़िया थाती।
साहित् के निस दिन इहाँ, बरत हे दीया बाती।।
मया पिरा के गोठ ला, लिख ले गा बेजोड़।
भाखा ये छत्तीसगढ़ी, गुरतुर अब्बड़ मोर।।
3)
तसमई सोहारी फरा, इहाँ के डुबकी कढ़ी।
राज हमर छत्तीसगढ़, कहाबो छत्तीसगढ़ी।।
हलबी सुग्घर बोल हे, नीक हे गोंडी भतरी।
पोठ हमर भाखा बनै, मिलो के जम्मो बखरी।।
पढ़बो लिखबो बोलबो, होही नवा अॅजोर ।
भाखा ये छत्तीसगढ़ी, गुरतुर अब्बड़ मोर ।।

रचना :बलराम चंद्राकर
     

12 comments:

  1. सबो साधक भाई मन के रचना अब्बड़ सुघ्घर लागत हे
    ये तो छतीसगढ़ी भाखा के एक झलक हे ।
    हमर भाखा के बखान ला शेष शारद भी करही तभो कम लागही ।
    जय छतीसगढ़

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  2. ये छत्तीसगढ़िया के अंतस के आवाज ये
    जे शब्द म उकर आये हे।
    छत्तीसगढ़ी सचमुच संगी
    चारो डहर छाये हे।
    सब संगी मन ला बधाई।

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  3. वाह वाह गजब सुघ्घर

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  4. छात्तीसगढ़ी राज भाषा दिवस के शुभ अवसर मा छंद के छ परिवार द्वारा छत्तीसगढ़ी भाखा ला समर्पित विशेष काव्य गोष्ठी ला सुनके अउ भाग लेके आनन्द आगे।

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  5. वाह्ह्ह् वाह्ह्ह् बहुत सुग्घर

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  6. वाह्ह्ह् वाह्ह्ह् बहुत सुग्घर

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  7. मोरो मन हर गदगद होगे, सबके सुग्हर पढ के छंद
    अब तो सब झन पढते रहिबो,पढे सुने मा हे आनंद।

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  8. फुलही फरही बाढ़ही, सुघ्घर भाखा मोर।
    सबके सँगवारी बने, लाही नव अंजोर।।

    जय छत्तीसगढ़ जय छत्तीसगढ़ी भाखा

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  9. गजब सुग्घर। छत्तीसगढ़ी राजभाषा दिवस मा काव्य गोष्ठी के आयोजन होना अपन महतारी भाखा के प्रति समर्पण अउ सम्मान के चिन्हारी आय।

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  10. अपन मयारुक बोली भाखा, काबर नइ गोठियाबो।
    एकर हिंछइया ला भाई, कसके हम लतियाबो।।
    इँहचे ए भाखा अपनाके, करथें जउन कमाई।
    नइ सोचैं काबर उनमन जी, आय हमर ए दाई।।
    शासन हर तुरते अपनावै, एकर बर गरियाबो।
    एकर हिंछइया ला भाई, कसके हम लतियाबो।।

    गुरुदेव अउ दीदी शकुंतला सहित जम्मो के बड़ सुग्घर गीत ल पढ़ के आनंद आगे..जम्मो झन ल हिरदे ले प्रणाम अउ बधाई..... जय जोहार....

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  11. एक ले बढ़ के एक रचना
    गुरुदेव के संगेसंग जम्मो
    गुरुजीमन के हवय

    जम्मो रचनाकारमन ल हार्दिक बधाई

    सुरेश पैगवार
    जाँजगीर


    अब तो दिन दिन आघू बढ़ही मोर भाखा छत्तीसगढ़ी।
    अब तो दिन दिन आघू बढ़ही मोर भाखा छत्तीसगढ़ी।

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  12. वाह वाह वाह वाह

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