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Thursday, November 9, 2017

चौपई छन्द - श्री सुखदेव सिंह अहिलेश्वर

चौपई छन्द - श्री सुखदेव सिंह अहिलेश्वर

बसदेवा गीत

जय गंगान.....

बेटा ताश जुआ झन खेल।
घर मा बैठव गोड़ सकेल।
धन दौलत होथे बरबाद।
हो जाथे बेघर औलाद।

जय गंगान....

झन करिहौ गा मदिरा पान।
नाहक के झन घेपव प्रान।
कोठी के नइ बाँचय धान।
कचरा होथे घर के मान।

जय गंगान.....

फोकट घर मा आथे रार।
बिन कारन पर जाथे मार।
मदिरा ला तँय महुरा जान।
दूर रहे बर मन मा ठान।

जय गंगान.....

तंबाखू बीड़ी सिगरेट।
देथे गा घरघुँदिया मेट।
पटरी ले जिनगी के रेल।
झन तँय अपने हाँथ ढकेल।

जय गंगान....

चुगली के झन झाँकौ द्वार।
कखरो मन आगी झन बार।
ये तो दू धारी तलवार।
दूनो डहर खवाही मार।

जय गंगान.....

बेटा बन तँय मनखे नेक।
धरम करम कर धरे विवेक।
सत रद्दा धर करके चेत।
हरियाही जिनगी के खेत।

रचनाकार - श्री सुखदेव सिंह अहिलेश्वर
गोरखपुर(कवर्धा), कबीरधाम, छत्तीसगढ़

17 comments:

  1. सुग्घर संदेश देवत लाजवाब चौपई छंद,अहिलेश्वर भैया।बहुत बहुत बधाई अउ शुभकामना।

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  2. सादर आभार आदरणीय मोहन भैया।

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  3. अति सुघ्घर सृजन हे भाई

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  4. अनुपम सृजन सर।सादर बधाई

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  5. अनुपम सृजन सर।सादर बधाई

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  6. बहुतेच बढ़िया भैया जी

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    1. सादर आभार "खैरझिटिया" सर जी।

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  7. सुग्घर सिरजाय हस भाई

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  8. सुग्घर सिरजाय हस भाई

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    1. सादर आभार आदरणीय "मितान"भैया।

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  9. सुग्घर सिरजन करे हव सर।बधाई।

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    1. सादर आभार आदरणीय वर्मा सर जी।

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