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Saturday, December 9, 2017

शक्ति छंद - श्री जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया

गँवई गाँव

बहारे  बटोरे   गली   खोर  ला।
रखे बड़ सजाके सबो छोर ला।
बरे   जोत  अँगना  दुवारी   सबे।
दिखे बस खुसी दुख रहे जी दबे।

गरू  गाय  घर  मा बढ़ाये मया।
उड़े लाल कुधरिल गढ़ाये मया।
मिठाये  नवा धान के भात जी।
कटे रात दिन गीत ला गात जी।

बियारी करे मिल सबे सँग चले।
रहे बाँस  के  बेंस   थेभा  भले।
ठिहा घर ठिकाना सरग कस लगे।
ददा  दाइ  के  पाँव  मा  जस जगे।

बरे  बूड़  बाती    दिया   भीतरी।
भरे जस मया बड़ जिया भीतरी।
बढ़ाले मया तैं बढ़ा मीत जी।
हरे गाँव  गँवई मया गीत जी।

रचनाकार - श्री जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)

11 comments:

  1. बहुत सुग्घर शक्ति छंद के रचना करे हव,भैया ।बहुत बहुत बधाई अउ शुभकामना।

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  2. सुग्घर शक्ति छंद वर्मा जी

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  3. जगाबो सबो झन अपन देश ला
    सजाबो सहज - सार संदेश ला।
    बनाबो - जनाबो अपन राग ला
    मना ले मगन मन नवा पाग ला।

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  4. बहुत सुग्हर जितेन्द्र भाई, बहुत बहुत बधाई ।

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  5. बहुत सुघ्घर शक्ति छंद सृजन हे भाई

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  6. बहुत सुघ्घर शक्ति छंद सृजन हे भाई

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  7. बहुत सुग्घर रचना सर।बधाई

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  8. बहुत सुग्घर रचना सर।बधाई

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  9. भुलाये हवौं मैं कथौं ख्याल मा।
    फँदाये हवौं काम के जाल मा।।
    भाई जितेंद्र के बढ़िया रचना....
    बधाई भाई.....

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