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Saturday, February 10, 2018

सार छन्द - श्री मोहन कुमार निषाद

बेटी - बहू

देवव बेटी ला दुलार जी , बन्द करव ये हत्या ।
जीयन दव अब बेटी मन ला , राखव मनमा सत्या ।

बेटी होही आज तभे जी ,  बहू अपन बर पाहू ।
बेटा कस जी मान देय ले , जग मा नाम कमाहू ।

करव भेद झन इन दूनो मा , एक बरोबर जानव ।
बेटी जइसे लक्ष्मीरूपा , अपन बहू ला मानव ।

छोड़व अब लालच के रद्दा , झन दहेज ला लेवव ।
बन्द होय गा गलत रीति सब , शिक्षा अइसे देवव ।

मारव झन कोनो बेटी ला , जग मा  जब वो आही ।
हाँसत खेलत घर अँगना मा , जिनगी अपन बिताही ।

होवय बंद भ्रूण के हत्या , परन सबे जी ठानव ।
बेटी बिन जिनगी हे सुन्ना , बेटा इन ला मानव ।।

रचनाकार - श्री मोहन कुमार निषाद
ग्राम - लमती, भाटापारा, छत्तीसगढ़

11 comments:

  1. सार छंद मा बढ़िया संदेश देवत रचना

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  2. बहुत बढ़िया सार छंद भईया जी

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  3. बहुत बढ़िया सार छंद भईया जी

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  4. छत्तीसगढिया - सब ले बढिया, नोनी के मरना ए
    सज्जनता हर कमजोरी ए, शकुन भलुक गहना ए।

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  5. सुग्घर सार सिरजाय हव भाई।बधाई।

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  6. वाह्ह संदेश प्रधान सुन्दर सार।

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  7. बहुत बहुत सुघ्घऱ सर जी

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  8. बहुत बढ़िया सृजन हे भाई

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  9. बहुत सुग्घर सृजन सर।सादर बधाई

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  10. बहुत सुग्घर सृजन सर।सादर बधाई

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  11. बहुत शानदार सार छंद के सृजन करे हव भाई। बधाई अउ शुभकामना।

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