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Sunday, February 18, 2018

सरसी छंद - श्री जगदीश "हीरा" साहू

मन के पीरा  

नाँव हवय जगदीश मोर जी, खोलत हावँव राज।
देख जगत के पीरा ला मँय, बोलत हावँव आज।।1।।

घर के भीतर कुकुर बँधाये, बाहिर घूमे गाय।
का होही ये देश-राज के, कुछु समझ नहीं आय।।2।।

रोवत बइठे दाई बाबू, दुख ला कोन मिटाय।
धरके बाई होटल जावय, आनी-बानी खाय।।3।।

कठल-कठल के रोवय लइका, तभो तरस नइ आय।
भरके बोतल दूध पियाये, घर मा रोग बलाय।।4।।

भाई होगे बैरी देखव, मुँह देखन नइ भाय।
बनगे हितवा आज परोसी, मन के बात बताय।।5।।

मंदिर मा लगगे हे तारा, दूध गली बोहाय।
दारू खातिर भीड़ लगे हे, पीके बड़ इतराय।।6।।

संस्कृति हर गा कहाँ नँदागे, देख आज के काम।
कपड़ा-लत्ता छोटे होगे, नख होगे हे लाम।।7।।

राम-राम बोले मा काबर, लगथे अड़बड़ लाज।
हाय-हलो मा सबो भुलाये, बिगड़त हवय समाज।।8।।

रचनाकार - श्री जगदीश "हीरा" साहू
कड़ार (भाटापारा)
छत्तीसगढ़ 

26 comments:

  1. बहुत बढ़िया रचना बधाई हो साहू जी

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  2. बहुत बढ़िया सृजन हे भाई

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  3. सुग्घर सरसी छंद,जगदीश भाई।बधाई अउ शुभकामना।

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  4. सुग्घर भाई ....अइसने लिखत रहव

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  5. सुग्घर भाई ....अइसने लिखत रहव

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  6. छत्तीसगढिया सबले - बढिया, हीरा बाँधय गाय
    गोबर के खातू बन जाही, गोरस बिकट मिठाय।

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    1. दीदी के आशीष ले, मिलय गजब आनंद।
      कलम चलय सरलग सदा, लिखथँव सरसी छंद।।

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    2. दीदी के आशीष ले, मिलय गजब आनंद।
      कलम चलय सरलग सदा, लिखथँव सरसी छंद।।

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  7. बहुत बढ़िया सरसी सर जी

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  8. बहुत बढ़िया सरसी सर जी

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  9. वाह वाह सुग्घर सरसी छंद।

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  10. वाह्ह्ह् वाह्ह्ह् बहुत सुग्घर।सादर बधाई

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  11. वाह्ह्ह् वाह्ह्ह् बहुत सुग्घर।सादर बधाई

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  12. वाह वाह बहुत बढ़िया भैया

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  13. जुग के जान प्रभाव इहाँ जी, मति तो गय हेराय।
    गलत आचरण मा बूड़े हें, कोन बात समझाय।।
    बहुत बढ़िया भाईईईई... सादर बधाई

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  14. वाह! जगदीश भाई
    जतका तारीफ करे जाय कम हे।
    सुग्घर रचना संजोय बर गाड़ा गाड़ा बधाई

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