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Thursday, March 15, 2018

आल्हा छन्द - शकुन्तला शर्मा

जीव जगत कतका अचरज हे, कतका सुग्हर हे दिन रात
कतका सुग्हर केशर रज हे, मनभावन रिमझिम बरसात।

मनखे मन बर हे सुख साधन, कर्म नाव के हे तलवार
नीति नेम के हावै बंधन,भगवत महिमा अपरंपार।

कर्म बनै सुख दुख के कारण, काला देबे तयँ हर दोष
झन कर अधम कर्म कर बारन, तोला मिल जाही संतोष।

भाव घला सुख दुख ला देथे, कर्म भाव के बनय मितान
भाव कर्म ला बहुत बिटोथे, भावे मा बसथे भगवान।

भाव भावना उज्जर राखव, एही करही बेडा पार
पलपल अंतर्मन मा झाँकव,जानौ ए जीवन के सार।

बडे भाग ले तैंहर पाए, मनखे के चोला अनमोल
कर्म धर्म के महिमा गाए, आज कर्म के गठरी खोल।

सबके हित के बात करौ अब, खुद जानौ जस के दस द्वार
एक संग मिलके रेंगव सब, हर मुश्किल के पाहव पार।

जिहाँ समस्या समाधान हे, सूझ बूझ मा हे कल्यान
जिहाँ धरा हे आसमान हे, खोज खोज के तैंहर जान।

रचनाकार - शकुन्तला शर्मा, भिलाई, छत्तीसगढ़

11 comments:

  1. बहुत बढ़िया आल्हा दीदी ....बधाई हो आपमन ल

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  2. वाहःहः दीदी
    कलम के जवाब नइहे
    सादर नमन दी

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  3. बहुत ही सारगर्भित,,अद्भुत आल्हा दीदी,,सादर चरण स्पर्श

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  4. लाजवाब रचना दीदी।सादर बधाई

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  5. लाजवाब रचना दीदी।सादर बधाई

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  6. बहुत बढ़िया आल्हा छंद दीदी।लाजवाब रचना।।

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  7. प्रजा जागही तब तो होही, आही भाई नवा - बिहान
    कर्म धर्म सब झन अपनाहीं,सबला सुख देही भगवान।

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  8. धरम करम के ज्ञान अउ, जग बर हे सन्देश।
    अइसन रस्ता मा चलय, मेटय सबके क्लेश।।

    प्रणाम दीदी

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  9. सोना आना सच हे दीदी, तोर बात हा जग बर आज।
    दया धरम ला राख करन हम,जग बर सुघ्घर आवव काज।।


    दीदी प्रणाम बढ़ सुघ्घर आल्हा छंद।

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  10. सादर प्रणाम दीदी। बहुत ही सारगर्भित आल्हा छंद हे।

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  11. लाजवाब रचना दीदी।

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