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Thursday, March 22, 2018

गीतिका छन्द - श्री दिलीप कुमार वर्मा

गीतिका मा गीत -

गीत गाले मीत मोरे,प्रीत के तँय राग मा।
झन जला अंतस अपन तँय,बैर रख मन आग मा।

खुश रहे ले सुख ह मिलथे,दुख़ म बाढ़य ताप जी।
जेन मन सब ला भुलाइन,ते मगन हे आप जी।
जेन रखथे बैर मन मा,खुद जले ओ आग मा।
गीत गाले मीत मोरे,प्रीत के तँय राग मा।

प्यार बाँटे प्यार पाबे,प्यार हर संसार हे।
प्यार बिन जीवन अधूरा,प्यार ही घर द्वार हे।
प्यार तो अहसास होथे,जान अंतस भाग मा।
झन जला अंतस अपन तँय,बैर रख मन आग मा।

देख दुनिया नइ रुकय गा,एक मनखे वासते।
चल चलाचल संग साथी,गम भुला चल हाँसते।
ओ सफल हे जेन चलथे,रुख हवा के साँथ मा।
 जेन उल्टा राह चलथे, कुछ न आवय हाँथ मा।

मान कहना मोर संगी,तोर तब उद्धार हे।
साँथ चल सब संग लेके,देख तब संसार हे।
सुख इहाँ हे दुख़ इहाँ हे,भोग जे हे भाग मा।
सोच के अब तन अपन गा,झन जला अब आग मा।

रचनाकार - श्री दिलीप कुमार वर्मा
बलौदाबाजार, छत्तीसगढ़

20 comments:

  1. बहुत सुघ्घर गीतिका छंद भईया जी

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  2. बहुत सुघ्घर गीतिका छंद भईया जी

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  3. वाहःहः दिलीप भाई जी

    शानदार गीत

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  4. वाह्ह वाह्ह सर जी बहुते सुन्दर गीतिका गीत।

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  5. गीतिका के तूलिका ले, आज रच दे छंद रे
    मान मंदिर मा मढा दे, मोहिनी मन - बंद रे।
    भाव के भुइयाँ बडे हे, ला चढाबो - फूल रे
    देख तो नटवर खडे हे, मान मीठा बोल रै।

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    1. धन्यवाद दीदी।
      बड़ सुग्घर गीतिका रचे हव।
      मान मन्दिर मा मढ़ादे,मोहिनी मन बंद रे।
      वाह्ह्ह्ह्

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  6. गीतिका छंद मा बेहतरीन रचना करे हव भैया जी,बधाई हो आदरणीय ।

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  7. गीतिका छंद म भाव भरे शानदार जीत बर दिलीप वर्मा जी ला हार्दिक शुभकामना।

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  8. वाह्ह्ह् वाह्ह्ह् अनुपम रचना सरजी।सादर बधाई

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  9. वाह्ह्ह् वाह्ह्ह् अनुपम रचना सरजी।सादर बधाई

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