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Tuesday, April 24, 2018

विधान - कज्जल छन्द

कज्जल छन्द   (14-14)

14/14 मात्रा के 4 चरण वाले समपाद मात्रिक छन्द आय.

हर चरण के आखिरी मा गुरु, लघु अनिवार्य

उदाहरण -

समय रहत ले अरे चेत (कज्जल छन्द)

रुखराई ला  काट काट
नदिया नरवा पाट पाट
नँगत बनाये नगर हाट
जंगल मन हो गिन सपाट।।

सहर लील गिन हमर खेत
लाँघन हन लइका समेत
सपना मन बन गिन परेत
समय रहत ले अरे चेत ।।

चेताइस केदार नाथ
भुइयाँ के झन छोड़ साथ
नइ तो हो जाबे अनाथ  
कुछू नहीं हे तोर हाथ ।।

जेला कहिथस तँय विकास
वो तो भाई हे बिनास
समझावय धरती अगास
भुइयाँ ला झन कर हतास ।।

हरियर कर दे खेत-खार
जंगल के कर दे सिंगार
रोवय झन नदिया पहार
पीढ़ी-पीढ़ी ला उबार ।।

प्रस्तुतकर्ता -  अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर, दुर्ग छत्तीसगढ़

Monday, April 23, 2018

बरवै छंद - श्री जगदीश "हीरा" साहू

बरवै छंद - श्री जगदीश "हीरा" साहू

*1. जय हनुमान*

जय  हो  बजरंगी  बल, बुद्धि  निधान।
सबझन मिलके बोलव, जय हनुमान।।1।।

संकट   बाधा    हरही,   प्रभु   बलवान।
राम-नाम    जप-जपके,   बने   महान।।2।।

हावय  उपकारी  जी,  आथे  काम।
महिमा गावय जेकर, प्रभु श्रीराम।।3।।

हवय भरोसा  देवव, प्रभु आशीष।
हाथ  जोड़के  बइठे, हे जगदीश।।4।।

*2. रामभक्त हनुमान*

जय  हो  बजरंगी  बल, बुद्धि  निधान।
राम काज  बर  जनमे,  श्रीे  हनुमान।।1।।

रावण   हरके  सीता,   लंका   जाय।
राम-लखन  बड़ रोये, दुःख सुनाय।।2।।

पार  गये  सागर  के,  तँय  बलवान।
खोजे सीता  ला  अउ,  पाये  मान।।3।।

शक्ति लगे  लछमन ला, सब थर्राय।
उड़ गेये  तुरते  तँय, परवत  लाय।।4।।

संजीवनी  लाय  अउ,  राखे  जान।
राम तोर गुन के बड़, करे बखान।।5।।

तोर सही नइहे प्रभु, कोनो बीर।
सिया राम देखाये, छाती  चीर।।6।।

राम  बसे  कण-कण  मा,  देये  ज्ञान।
कहे राम बिन जिनगी, बिरथा जान।।7।।

करबे  रक्षा   मोरो,   लइका   जान।
जय हो बजरंगी जय, श्री हनुमान।।8।।

रचनाकार - श्री जगदीश "हीरा" साहू
कड़ार (भाटापारा) छत्तीसगढ़

Saturday, April 21, 2018

चौपाई छंद - श्री कन्हैया साहू "अमित"

(1) गहना गुरिया -

दोहा -
जेवर ये छत्तीसगढ़ी, लिखथे अमित बखान।
दिखथे चुकचुक ले बने, गहना गरब गुमान।
नवा-नवा नौ दिन चलय, माढ़े गुठा खदान।
बनथे चाँदी  सोनहा, पुरखा  के पहिचान।।

चौपाई -

पहिरे सजनी सुग्घर गहना,
बइठे जोहत अपने सजना।
घर के अँगना द्वार मुँहाटी,
कोरे गाँथे पारे पाटी।~1

बेनी बाँधे लाली टोपा,
खोंचे कीलिप डारे खोपा।
फिता फूँदरा बक्कल फुँदरी,
कोरे गाँथे दिखे फूल सुँदरी।~2

कुमकुम बिन्दी सेन्दुर टिकली,
माथ माँग मोती हे असली।
रगरग दमदम दमकै माथा,
कहत अमित हे गहना गाथा।~3

लौंग नाक नग नथली मोती,
फुली खुँटी दीया सुरहोती।
कान खींनवा लटकन तुरकी,
बारी बाला झुमका लुरकी।~4

गर मा चैन संकरी पुतरी,
गठुला गजरा गूँथे सुतरी।
सिरतो सूँता सूर्रा सुतिया,
भुलका पइसा रेशम रुपिया।~5

बहुँटा पहुँची चूरी ककनी,
बाँहा मरुआ पहिरे सजनी।
कड़ा नागमोरी बड़ अँइठे,
सजधज सजनी सुखिया बइठे।~6

कुची टँगनी रेशम करधन,
ए सब होथे कनिहा लटकन।
लाल पोलखा लुगरा साया,
गहना गुरिया फभथे काया।~8

सोन मुंदरी चाँदी छल्ला,
पहिर अंगरी झनकर हल्ला।
छल्ला सोना तांबा पीतल,
सजथे तन, मन होथे शीतल।~9

पाँव पैरपट्टी अउ पैरी,
बिन जोंही लागे सब बैरी।
साँटी टोंड़ा बिछिया लच्छा,
गोड़ सवाँगा सबले अच्छा।~10

पाँव मूँड़ नख गहना भारी,
दिखथे बढ़हर उही सुवारी।
महुँर मेंहदी अउ मुँहरंगी,
सोहागिन के ये सब संगी।~11

बाँधय घुँघरु घंटी पायल,
अलहन ले झन होवय घायल।
ठुआ टोटका मानय सतरा,
पहिरे ताबिज कठवा पखरा।~12

तइहा मा पर रुचि सिंगारी,
अब तो हे फेशन चिन्हारी।
फभित गवाँ गे,आने-ताने,
नकल सवाँगा हे मनमाने।~13

आज चैन सुख बनगे सोना,
बहुते हवय तभो ले रोना।
काखर मन ला सोन अघाथे,
सोन-सोन जप जग बउराथे।~14

दोहा -

सुग्घर सच्चा सोनहा, सोहागिन सिंगार।
सरी अंग हा बोलथे, गहना मया अपार।

(2) रोटी पीठा -

दोहा -

आय अतिथि घर मा हमर, पहुना नाँव धराय।
किसिम कलेवा खा बना, आदर सगा सुहाय।।


चौपाई -

गुरतुर गुरहा गुलगुल गुजिया,
दूधफरा रसगुल्ला करिया।
मीठ कलेवा खुरमी खाजा,
राँध खवा तैं तुरते ताजा।~1

खीर सेवई कुसली पकुआ,
तिखुर रोंट रसकतरा हलुआ।
रोटी पीठा मिठहा मनभावन,
होथे सगा सोदर हा पावन।~2

पाके पपई पपची पिड़िया,
रखियापाग तसमई बिरिया।
कूटे पीसे चाँउर बेसन,
काबर पिज्जा बरगर फेशन।~3

पाग धरे गुड़ चाँउर अरसा,
मया प्रीत के बरसे बरसा।
मोवन मैदा कटुवा खुरमी,
खावँय नंगत तेली कुरमी।~4

सदा सगा सोदर तुम आहू,
पहुना भगवन तुमन कहाहू।
सेवा सिधवा करबो बढ़िया,
खा पी पोठ मोटरा गठिया।~5

राँध खवा के मिठहा गुरहा,
खावव थोकुन जीनिस नुनहा।
घी अंगाकर रोटी राजा,
चहा बुड़ो के मनभर खाजा।~6

ठेठ ठेठरी करी फरा जी,
सोंहारी के संग बरा जी।
मही महेरी मुरकू मुठिया,
बने बफौरी बिक्कट बढ़िया।~7

चाँउर चीला चक चौसेला,
मजा मया मा माँदी मेला।
चिवँरा पापड़ सेव सलोनी,
खावव हाँसव बबुआ नोनी।~8

तिली जोंधरा फल्ली लाड़ू,
मुर्रा लाड़ू खाय भकाड़ू।
आय सगा के करबो सेवा,
पाछू मिलही हमला मेवा।~9

बटकी बटकर बोरे बासी,
खाजा खोवा बारा मासी।
पहुना सेवा जाय उदासी,
अतिथि चरन हे मथुरा कासी।~10

नून गोंदली चिखना चटनी,
जइसे कथनी वइसे करनी।
आमा अमली मिरचा धनिया,
खावँय रजमत रजवा रनिया।~11

छत्तीसगढ़ी खाव कलेवा,
भाजी भाँटा सिरतो मेवा।
जिनगी जीथन बनके सिधवा,
बैरी ला देथन ऊँच पिढ़वा।~12

दोहा -

देव मान पहुना अमित, कर सेवा सतकार।
सबले बढ़के भावना, पसिया पेज पियार।।

रचनाकार - श्री कन्हैया साहू "अमित"
शिक्षक~भाटापारा, छत्तीसगढ़
संपर्क~9200252055

Friday, April 20, 2018

भुजंग प्रयात छंद - श्री जीतेंद्र वर्मा "खैरझिटिया"

मदारी -

मदारी  धरे बाँसुरी ला बजावै।
सुनै गाँव वाले सबो दौड़ आवै।
खड़े आदमी हे बना गोल घेरा।
जमूरा  मदारी  लगाये ग फेरा।

हवै बेंदरा  नेवला  साँप  भालू।
करे काम दौड़े जमूरा ग चालू।
बने  नाच  के बेंदरा हा दिखावै।
बजे ताल भालू नरी ला झुलावै।

कहाँ गा पटे नेवला साँप तारी।
लड़ाई  करावै  ग देखौ मदारी।
बजै  ढोल  बाजा लड़े खूब दोनो।
कहाँ साँस ले आदमी देख कोनो।

जमूरा ह हाँसी ठिठोली करे गा।
सबे हाथ ले खूब ताली झरे गा।
जियाँ हा अघाये सबे आदमी के।
उना पेट  ताये  ग  जंजाल जी के।

करे  खेल गाँवे गली मा मदारी।
कभू मान पाये कभू खाय गारी।
चले खेल ले रोज दाना ग पानी।
हरे  खेल  देखौ ग ये जिंदगानी।

जमाना नवा हे नवा खेल छाये।
कहाँ  गा  मदारी जमूरा सुहाये।
गँवागे  मदारी  गँवागे जमूरा।
धरे हाथ मा फोन घूमे ग टूरा।

रचनाकार - श्री जीतेंद्र वर्मा "खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)
9981441795

Wednesday, April 18, 2018

दोहा - छंद कन्हैया साहू "अमित"

दामाखेड़ा धाम

1-माघी पुन्नी मा चलव, दामाखेड़ा धाम।
   दरशन ले साहेब के, बनथे बिगड़े काम।

2-धर्मदास सतगुरु धनी,धरम नगर दरबार।
    दामाखेड़ा धाम के, चारों खुँट जयकार।

3-उग्रनाम साहेब जी, लीन इहाँ अवतार।
   हाथ जोड़ हे बंदगी, सतगुरु बारम्बार।

4-उग्रनाम साहेब जी, होइन संत फकीर।
 धरम नगर मा आ बसे, ब्यालिस अंश कबीर।

5-प्रगटे हें तिथि दसरहा, श्री प्रकाशमुनि नाम।
    दरस चरन गुरु के मिलय, दामाखेड़ा धाम।

6-माघ पंचमी शुभ घड़ी,सादर चढ़य गुलाल।
   दसमी ले पुन्नी जिहाँ, लगय संत चौपाल।

7-माँस सबो हा एक हे, का छेरी का गाय।
   मार काट जे खात हे, मरत नरक मा जाय।

8- एक बरोबर जात हे, मनखे एक समान।
    सबले सुग्घर धर्म तैं, मानवता ला जान।

9-खइता माया मोह हा, नाम भजन हे सार।
   जनम मरन के फेर ले, सतगुरु करही पार।

10-सादर बिनती मैं करँव, सतगुरु नाम प्रकाश।
      बंदी छोंड़व मोर जी, उड़ँव उदित आकाश।

11-मिलथे मनखे अब कहाँ, कहाँ संत हे आज।
      दामाखेड़ा धाम मा, संगम सकल समाज।

रचनाकार -
श्री कन्हैया साहू"अमित"(शिक्षक)भाटापारा, छत्तीसगढ़

Monday, April 16, 2018

लवंगलता सवैया--दिलीप कुमार वर्मा

1
बनारस के सब पान कहे,जिन खावत हे मुँह लाल करावय।
लगे चुनिया जब पान सखा,तब स्वाद तको अबड़े मन भावय।
बने जब ख़ैर ल डारत हे,ललियावत हे मुँह देखत हावय।
मिठावत हे मन भावत हे,सब लोगन पान बने तब खावय।1।

2
कटाकट चाबत मच्छर हा,जब मारत हौं झट ले उड़ियावय।
बड़ा बनथे उन सायर जी,नज़दीक म आवत गीत सुनावय।
रहे दिन रात सतावत हे,इखरो रहना हमला नइ भावय।
दया भगवान करौ अइसे,सब मच्छर हा पट ले मर जावय।2।

3
रहे सब के घर मच्छर हा,त गरीब अमीर तको नइ जानय।
मिले जस खून ल पीयत हे,उन जात बिजात कहाँ पहिचानय।
कहाँ उन देखत हे कुछ जी,गरवा तक ला अपने सब मानय।
इहाँ मनखे गदहा बन के,बस छूत अछूत रटे मुँह तानय।3।

4
अरे मनखे अब तो समझौ,मनखे बनके अपने पहिचानव।
जनावर जानत हे तब जी,मनखे अब तो मनखे सब मानव।
कहाँ तुम जात बिजात लड़े,मनखे सब एक हरे सब जानव।
करे जिन लोगन के करनी,उन लोगन के मुँड़ ला अब खानव।4।

5
लड़ावत हे हमला उन जी,अपने सब स्वारथ साधत हावय।
रहे हम हा जिन हालत मा,अउ हालत बत्तर गा कर जावय।
बटावत हे पइसा कवड़ी,हम हारत है उन राज ल पावय।
कहे अब मानव बात अरे,कतको करलौ उन हा नइ भावय।5।

6
दिवार बनावत हे मनखे,मनखे मनखे ल लड़ावत हावय।
बने सिधवा सब देखत हे,मरथे तब देख बड़ा सुख पावय।
लगे जब आग त डारत घीव नचावत लोग बड़ा हरसावय।
बतावत जात बिजात सबो,मनखे लड़ आपस मा मर जावय।6।

रचनाकार--दिलीप कुमार वर्मा
   बलौदा बाज़ार, छत्तीसगढ़

Sunday, April 15, 2018

सरसी छन्द - श्री कन्हैया साहू "अमित"

   शिव विवाह के बरतिया वर्णन -

   बिकट बरतिया बिदबिद बाजँय, चाल चलय बेढ़ंग।
   बिरबिट करिया भुरुवा सादा, कोनो हे छतरंग।।1

   कोनो उघरा उखरा उज्जट, उदबिदहा उतलंग।
   उहँदा उरभट कुछु नइ घेपँय, उछला उपर उमंग।2

   रोंठ पोठ सनपटवा पातर, कोनो चाकर लाम।
   नकटा बुचुवा रटहा पकला, नेंग नेंगहा नाम।।3

   खरभुसरा खसुआहा खरतर, खसर-खसर खजुवाय।
   चिटहा चिथरा चिपरा छेछन, चुन्दी हा छरियाय।।4

   जबर जोजवा जकला जकहा, जघा-जघा जुरियाय।
   जोग जोगनी जोगी जोंही,  बने बराती जाय।।5

   भुतहा भकला भँगी भँगेड़ी, भक्कम भइ भकवाय।
   भसरभोंग भलभलहा भइगे, भदभिदहा भदराय।।6

   भकर भोकवा भिरहा भदहा, भूत भसड़हा भरमार।
   भीम भकुर्रा भैरव भोला, भंडारी भरतार।।7

   मौज मगन मनमाने मानय, जौंहर उधम मचाय।
   चिथँय कोकमँय हुदरँय हुरमत, तनातनी तनियाय।।8

   आसुतोस तैं औघड़दानी, अद्भूत तोर बिहाव।
   अजर अमर अविनासी औघड़, अड़हा अमित हियाव।।9

रचनाकार - श्री कन्हैया साहू "अमित"
(शिक्षक)भाटापारा

Friday, April 13, 2018

दोहा छन्द - श्री सुखदेव सिंह अहिलेश्वर

बासी -

भइया नांगर जोत के,बइठे जउने छाँव।
भउजी बासी ला धरे,पहुँचे तउने ठाँव।

भइया भउजी ला कहय,लउहा गठरी छोर।
लाल गोंदली हेर के,लेय हथेरी फोर।

बासी नून अथान ला,देय गहिरही ढार।
उँखरु बइठ के खात हे,मार मार चटकार।

भइया भउजी के मया,पुरवाही फइलाय।
चटनी बासी नून कस,सबके मन ला भाय।

रचनाकार - श्री सुखदेव सिंह अहिलेश्वर
ग्राम - गोरखपुर (कवर्धा) छत्तीसगढ़ 

Tuesday, April 10, 2018

आभार सवैया - श्रीमती आशा देशमुख

(1) विनत भाव - गुरु पौंरी मा

आभार मानौं गुरू आपके मैं दिये ज्ञान जोती अँधेरा मिटायेव ।
संसार के सार निस्सार जम्मो कते फूल काँटा सबो ला बतायेव।
रद्दा ल रोके जमाना तभो ले हवा शीत आँधी म दीया जलायेव।
माथा नवावौं गुरू पाँव मा मैं छुपे जोगनी ला चँदैनी बनायेव ।

(2) काली कमाई -

कारी कमाई करे जेन भारी करे हाँथ काला डुबावै घलो नाम।
चुप्पे हवे नाम हल्ला मचावै इहाँ लोभ के भीतरी मा करे काम।
कर्जा छुटावै नही ये कभू तोर चाहे लहू खून चाहे बिके चाम।
रोटी मिले दू चले जिंदगानी करो आसरा जी सबो के हवे राम।

(3) ममा भांचा

भाँचा ममा हा चढ़े एक डोंगा तभे बीच धारे ग डोंगा गये डूब।
तैहा कहानी बने आज सित्तो सियानी गियानी करे गोठ हे खूब।
पानी चढ़े मूड़ के ऊपरे मार धारी उलाचा तभो बाँचगे दूब।
किस्सा इही रोज होवै अभी तो कहे मा सुने मा ग भारी लगै ऊब ।

(4) होरी -

होरी घलो आ गए तीर संगी बजावौ नगाड़ा रचौ गीत गा फाग ।
गावौ सुनावौ मया मीठ बोली सनाये रहे जी बने छंद के राग ।
मेटौ मिटावौ सबो बैर के भाव हाँसी ख़ुशी चाशनी के रहे पाग।
खेलौ सबो संग रंगे गुलाले मया मान राखौ ग रिश्ता नता लाग।

(5) होली के आनन्द -

होली मनाये सबो आज ऐसे कभू ये ल कोनो भुलाये नही जाय।
पीये रहे छंद के भंग जम्मो मजा ला मया के बताये नही जाय।
छाये सनाये रँगे प्रेम जम्मो अऊ दूसरा रंग लगाये नही जाय।
हाँसी खुसी मान आनन्द ऐसे भरे आज झोली समाये नही जाय।

रचनाकार - श्रीमती आशा देशमुख
एन टी पी सी, कोरबा, छत्तीसगढ़

Monday, April 9, 2018

रोला छन्द - शकुन्तला शर्मा

(1)
भूख मरत हँव श्याम, कहाँ ले माखन खाबे
रोवत हावय गाय, शकुन कब गाय चराबे ?
ललचाए के बात, कहाँ अब माखन भइया
बछरू मर गे मोर, बचय कइसे अब गइया ?

(2)
बन के आ जा गोप, गाय ला बने चराबे
मुश्किल मा हे जान, प्राण ला तहीं बचाबे।
बछरू मन ला देख, पेट भर पसिया देबे
मन मा तैंहर ठान, मोर अरज़ी सुन लेबे।

(3)
नाचत हावय बंद, सबो देखय गिरधारी।
नावा लुगरा मोर, मारबे झन पिचकारी
हो झन जावय सोर, देख ले बिरज बिहारी।
होरी - गावय - छंद, तहूँ - सुन ले बनवारी।

(4)
होरी के हुड़दंग, नगाड़ा अड़बड़ बाजै
साँवर मोहन संग, राधिका गोरी साजै।
मन भर उडय पतंग,पवन धर उड़ै उड़ावै
हवा पिए हे भंग, गगन मा नाचय  गावै।

रचनाकार - शकुन्तला शर्मा
भिलाई, छत्तीसगढ़

Sunday, April 8, 2018

अरविंद सवैया - श्री मनीराम साहू "मितान"

"बेटी"

(1)
झन मारव कोंख रखौ बिटिया जग लेवन देवव गा अँवतार।
अँगना तुँहरे जब आहयँ जी उँन देहयँ गा सब संकट टार।
कमती नइ होवयँ जी बिटिया अटके नइया करहीं  छिन पार।
लव खा किरिया ग करौ पिरिया मिलही तुँहला सुख हा भरमार ।

(2)
बनके  लछमी भरही घर जी बन शारद देहयँ गा सब ज्ञान।
इँदिरा प्रतिभा सुषमा जइसे करही उँन कारज पाहयँ मान।
डँटके  लड़हीं बइरी मन ले उँन भारत के अगराहयँ शान।
रहि जाहयँ जी सब नैन फटे बिटवा बनके उड़हीं धर यान।

(3)
ककरो जब राहय भाग बड़े जनमे बिटिया घर ओकर आय।
सब बेद पुरान म देव घलो महिमा इँकरे सब हें बड़ गाय।
महकावयँ जीवन के बगिया इँकरे चलते जग हे सुघराय।
कर केलवली ग मितान कहै करके  हइता झन लेवव हाय।

रचनाकार - श्री मनीराम साहू "मितान"
ग्राम - कचलोन (सिमगा) छत्तीसगढ़

Saturday, April 7, 2018

वाम सवैया - श्री दिलीप कुमार वर्मा

(1)
जरे अब देश न बाँचय जी,उमड़े सब लोगन हा बड़ भारी।
धरे बरछा अगनी तक ला,नइ मांढ़त हे कखरो सँग तारी।
लगा अगनी कब कोन कहे,नइ जानत हे पर जंग ह जारी।
करे नुकसान सबो झन के,अपनों तक हा झुलसे सँगवारी।।

(2)
विरोध करौ जब जायज हे,पर आग कभू झन खेलव भाई।
सबो बर माँगत हौ कुछ ता,फिर काबर होवत हे ग लड़ाई।
समान जरे जतका मन के,उन लोगन के रहिथे करलाई।
मरे कतको जब मार परे,बड़ रोवत हे उँखरो अब दाई।2।

(3) झगरा
करे झगरा बिन फोकट के,मुड़ गोड़ तको हर टूट जथे जी।
धरे लकड़ी बड़ मारत हे,तब जीव तको हर छूट जथे जी।
कहाँ बरजे अब मानत हे,कहिबे तब ता उन रूठ जथे जी।
रहे बदमास करे झगरा,रहिथे सिधवा उन लूट जथे जी।3।

(4) जल
भरे नदिया अब सूख गये,तरिया तक सूख गये अब भाई।
सबो तरसे जल बूँद बिना,जल खातिर होवत आज लड़ाई।
धरे गगरी जल लानत हे,अब रेंगत होवत हे करलाई।
करे बरबाद रहे जल ता,अब का मिलहै जल गै गहराई।4।

(5) ज्ञान
रहे जब ज्ञान तभे मनखे,जनमानस मा हुसियार कहावै।
विचारत हे जब काम करै,तब ही मनखे अबड़े सुख पावै।
कभू गलती नइ होवत हे ,हर लोगन हा उन ला बड़ भावै।
रखौ सब ज्ञान बटोर सखा,जब आय समे तब काम ग आवै।5।

(6) पेड़
लगावय पेंड़ बँचाय धरा,तब ही मनखे हुसियार कहाही।
रहे जल हा धरती म बने,तब ही मनखे हर गा सुख पाही।
कटे जब पेंड़ सुखाय धरा,सब जीव तको तड़फे मर जाही।
मिले जल ना धरती जब जी,तब अंत समे मनखे पछताही।6।

(7) गरमी
गये अब जाड़ न आवय जी,अब तो गरमी हर आग लगाही।
जरे पँउरी ललियाय जही,त हवा तक हा अब रार मचाही।
लगे झन लू बँचके रइहौ,अब सूरज हा अगनी बरसाही।
रखौ गमछा मुँड़ बाँध सबो,जिन बाँधत हे उन हा सुख पाही।7।

(8) पियास
पियास मरे मनखे तब जी,तरिया नदिया झिरिया खनवाथे।
लड़े अबड़े मनखे मन ले,जल खातिर गा कतको मर जाथे।
बहे जब बारिस मा नदिया,बरबाद करे अबड़े अटियाथे।
परे परिया धरती हर जी,अब देखत गा मनखे पछताथे।8।

(9) समे
समे जब हे तब काम करौ,तरिया झिरिया बढ़िया खनवावौ।
बनावव बाँध थमे नदिया,बरबाद बहे नल बंद करावौ।
भरे तरिया नदिया तब जी,सब साफ़ रखौ जल ना मइलावौ।
रहे जल हा तब जीवन हे,नइ जानय ओ मन ला समझावौ।9।

रचनाकार - श्री दिलीप कुमार वर्मा
बलौदा बाज़ार, छत्तीसगढ़

Friday, April 6, 2018

सुमुखी सवैया - श्री जीतेन्द्र वर्मा",खैरझिटिया"

1,,उल्टा बुद्धि

धरा म खड़े मनखे मन देखव हाथ लमाय अगास हवै।
करै मन के धन मा तन के बल बुद्धि घलो सब नास हवै।
रुतोवय नीर जरा ग जिया बगरा अँधियार गियास हवै।
कहाँ करथे सत काम कभू रुपिया पइसा बस खास हवै।

2,,करजा म किसान

किसान के भाग पिसान नही अँटियावत हे ठलहा मन हा।
लदे  करजा  पथना  ग सहीं सिर मा बरसे दुख के घन हा।
अँकाल दुकाल करे बदहाल टुटे कठवा कस गा तन हा।
बियापत हे घर हा बन हा ग अतेक कहाँ दुख दे रन हा।

3,,कड़ही

चना के पिसान लगार रहे कड़ही तब तो ग मिठाय बने।
सियान घलो लइका मन संग ग खेवन खेवन खाय बने।
दहीं ग महीं अमचूर कहीं चिट राँध जिया ललचाय बने।
चुरे जब अम्मट मा मखना  तब  आगर पेट खवाय बने।

4,,कुकरी पूजै साग बर

लगे नित देख तिहार बरोबर राँध ग खावत हे कुकरी।
सगा अउ सोदर हा घर आय त मान बढ़ावत हे कुकरी।
सुवाद कहाँ अब साग ग दार म रोज ग दावत हे कुकरी।
अहार  बने  मनखे  मनके  दिन रात पुजावत हे कुकरी।

5,,वाह रे मनखे

बुता अउ काम के कारण देख मसीन बने मनखे मनहा।
बिता  भर पेट के खातिर बाजय बीन बने मनखे मनहा।
रहे नित मीत मया जल के बिन मीन  बने मनखे मनहा।
तभो  गुणवान कहावत  हे  गुणहीन बने  मनखे मनहा।

6,,उल्टा जमाना
हवे पहरा घर चोर के देखव माल गुजार ग जागत हे।
बने  मनखे मन हे बइठे लुलवा लँगड़ा मन भागत हे।
चले  नइ  जाँगर तेखर गा करजा कमिया मन लागत हे।
सबे जग देख उड़े ग हँसी सिधवा मनके अब का गत हे।

रचनाकार - श्री जीतेन्द्र वर्मा",खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)
9981441795

Wednesday, April 4, 2018

हरिगीतिका छंद - श्री मनीराम साहू "मितान"

(1)
तैं हरि चरन मा मन लगा,ये पाप रद्दा छोंड़ के।
मिलही खुशी बड़ देख ले,प्रभु ले नता ला जोड़ के।
झन बूड़ संगी झूठ मा,तैं फँस जबे मँझधार मा।
ये फोकला मा झन भुला,रम जा बने गा सार मा।

(2)
ऊँचा महल दौलत नँगत,नइ थोरको ये काम के।
भागे गजब धन पाय बर,पीछू दँउड़ तैं राम के।
चक्कर परे मा मोह के,नइ होय बेंड़ा पार गा।
बेरा रहत करले जतन,झन कर समे बेकार गा।

(3)
अंतस भरे इरखा कपट,दुरगुन सबो ला त्याग गा।
करले करम सच हा फलै,काबर सुते हच जाग गा।
जी झन अपन बर तैं कभू,करले बुता उपकार के।
पाबे मया अइसन करे,अासीस मिलही चार के।

रचनाकार - श्री मनीराम साहू "मितान"
ग्राम कचलोन (सिमगा) छत्तीसगढ़