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Friday, May 11, 2018

आल्हा छन्द - श्री सुखदेव सिंह अहिलेश्वर"अँजोर"

"पेंड़ लगाहौं करके चेत" -

सुरुज नरायण क्रोधित होगय,गुस्सा अपन दिखावै आज।
आगी बरसावै बादर ले,अब गा कोन बचाही लाज।

रुखराई ला काट डरे हन,बनके लोभी मुरुख गँवार।
अब काखर छँइहा सुसताबो,सुनही भैया कोन पुकार।

रुखराई बिन ये भुँइया के,पीरा हरही कोन सियान।
मनखे मुक्का बन बैठे हे,ठेठा डारे हावय कान।

करलाई होगे जिनगी के,घोर बिपत्ती टारय कोन।
अँतस पूछै सच्चाई ला,अब तयँ कहाँ लगाबे फोन।

काम बुता बर घर ले निकलव,भुँमरा चटचट जरथे पाँव।
घाम झकोरा परे उपर मा,लहकत जिनगी खोजय छाँव।

पानी खोजै घूम घूम के,खोजै ठउर ठिकाना जाय।
नदिया नरवा बोरिंग तरिया,पानी कहूँ नजर ना आय।

सोंचत हावय बइठे बइठे,ये सब करनी के फल आय।
बड़ इतराये हस तँय मानुष,गोठ गँवारी समझ म आय।

करनी अइसन अब मँय करिहौ,गाँव गली सँग हाँसय खेत।
धरती के सिंगार करे बर,पेंड लगाहौं करके चेत।

रचनाकार - श्री सुखदेव सिंह अहिलेश्वर"अँजोर"
              गोरखपुर,कवर्धा

16 comments:

  1. बहुत बढ़िया बधाई हो सर जी

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  2. बहुत बढ़िया बधाई हो सर जी

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    1. सादर धन्यवाद जोगी जी।

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  3. रुख - राई के भारी महिमा, बोवव आम नीम अउ बेल। सुग्हर छंद, सुखदेव!

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  4. वाहःहः भाई सुखदेव
    बहुत बढ़िया सृजन

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  5. bahut badhiya bandhu. badhai ho

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  6. वाह वाह बेहतरीन आल्हा छंद हे भैया जी। बधाई अउ शुभकामना हे।

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  7. बहुत सुग्घर आल्हा रचे हव अहिलेश्वर जी।बधाई।

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    1. सादर धन्यवाद वर्मा सर

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