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Tuesday, July 10, 2018

रोला छंद - श्री राजेश कुमार निषाद

(1) काम धाम ला छोड़,जुवा मा हारे सब ला।
चोरी उदिम मढ़ाय,नीच करथे करतब ला।।
सुनय नही जी बात,अपन ओ करथे मन के।
बनगे हावय चोर,देख ले हन बचपन के।।

(2) बचपन ले हे चोर,करत हे ये हा चोरी।
सुने हवन जी गोठ, करय बड़ ओ मुँहजोरी।।
लगगे हावय थाप, हवय जी बनके लबरा।
चोरी करथे पोठ, रखे हे भरके डबरा।।

(3) चोरी ये हा जान,रोज छुप छुप के करथे।
दिखथे कोनो आत, छोड़ के सबला भगथे।।
हावय बड़ बदनाम,सबो ले गारी खाथे।
नइये थोरुक लाज,चुराये बर अगुवाथे।।

(4) चोरी हावय पाप , तभो ले चोरी करथे ।
जानत हावय बात , कहाँ ये मन मा धरथे ।
लोटा थारी बेच , मान का ओ हर पाही।
छुट जाही परिवार , संग का लेके जाही।।

रचनाकार-  श्री राजेश कुमार निषाद ग्राम चपरीद (समोदा) तह. आरंग जिला रायपुर छत्तीसगढ़

15 comments:

  1. बेहतरीन रचना भाईजी

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  2. बेहतरीन रचना भाईजी

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  3. बहुत बढ़िया बधाई हो

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  4. बहुत बढ़िया बधाई हो

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  5. बहुतेच सुग्घर रोला छंद भाई

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  6. बहुत सुन्दर रोला छंद।

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  7. बहुतेच सुग्घर रोला छंद भाई

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  8. शानदार रोल छन्द बर हार्दिक बधाई।

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  9. बहुत सुघ्घर रोला छंद हे भाई

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  10. बहुत सुघ्घर रोला छंद हे भाई

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  11. अब्बड़ सुग्घर रोला छंद भइया बधाई हो

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  12. अनंत बधाई आपमन ला👌👍💐

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  13. बहुँत सुग्घर रचना। बधाई

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  14. बहुत सुघ्घर रोला छंद भाई जी बधाई हो

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