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Sunday, July 29, 2018

दुर्मिल सवैया:- जगदीश "हीरा" साहू

*1. पढ़व जी*
पढ़ना लिखना झन छोड़व जी, अब बात सबो झन मानव जी।
अपनावत जावव अक्षर ला, भगवान बरोबर जानव जी।।
बिरथा झन जावय ये तन हा, मन मा अतका सब ठानव जी।
बिन ज्ञान चलै न इँहा जिनगी,  मिल आज नवा दिन लानव जी।।

*2. बरसे बदरा*
बरसे बदरा बिजली चमके, सुन झींगुर गीत सुनावत हे।
छइँहा खुसरे बइला गरुवा, सब जा परछी सकलावत हे।।
दबके बइठे मनखे घर मा, घबरावय जीव लुकावत हे।
नइ रेंगत हे रसता मनखे,  मन मा डर आज सतावत हे।।

*3. बिटिया ला पढ़ावत हौं*
सपना सजथे सबके अँखिया, सपना सिरतोन सजावत हौं।
बड़की बिटिया बढ़के बनही, अब डॉक्टर सोंच पढ़ावत हौं।
करजा कतको करहूँ कहिथौं,  किरिया कलसा धर खावत हौं।।
मन हे मनखे मन के मन मा, महिमा मन ले बगरावत हौं।

जगदीश "हीरा"  साहू
कडार (भाटापारा)
छत्तीसगढ़

13 comments:

  1. वाहःहः बहुते सुघ्घर भाव
    वतके सुघ्घर सृजन हे भाई

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  2. बहुत सुन्दर सुन्दर सवैया आदरणीय

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  3. वाह्ह वाह वाह्ह हीरा भइया बहुते सुग्घर सवैया छंद भइया बधाई हो

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  4. बहुत बढ़िया सृजन भइया जी बधाई हो

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  5. बधाई हो सर जी,सुग्घर ज्ञान देवतहे आपमन के रचना💐

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  6. बधाई हो सर जी,सुग्घर ज्ञान देवतहे आपमन के रचना💐

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