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Wednesday, July 4, 2018

चौपाई छंद - श्री बोधन राम निषाद राज

        श्री राम महिमा
       -- दोहा--
आजा माता शारदा, गर मा बस जा मोर ।
 गणपति मोला ज्ञान दे,बिनती हावै तोर ।।

चौपाई--
राम नाम सुमिरन कर प्रानी । तर  जाही तोरे   जिनगानी।।
हो जही सुफल जीवन नइया । रामसिया ला सुमरव भइया।।

काम सबो बिगड़े बन जाही । हनुमत जी के जे गुन गाही।।
डुबती  नैया पार  करइया। जन-जन के वो कष्ट हरैया।।

बिपदा बेरा देख बुलाके। करथे सेवा सूध भुलाके ।।
कतको  धरमी-पापी तारे। अपन चरन मा राम   उबारे ।।

तर जाही सब जन के चोला। राम सिया के मन हे भोला।।
राम के हावै  एक   कहानी। रामायन तुलसी  के  बानी ।।

जनम अवध मा चारों  भैया । देवय जम्मो देव बधैया।।
राजा दशरथ हे बड़भागी । माता कौशिल्या अनुरागी।।

दोहा-
किलकारी अब होत हे,राम लखन अवतार।
भरत-शत्रुहन   संग  मा, उतरे  पालनहार।।

चौपाई-
भर  ममता   कैकेई   माता । भाग सुमित्रा के सुख दाता ।।
ऋषिमुनि के वो काज  सँवारे । दानव दल ला छिन मा मारे ।।

पथरा होय अहिल्या नारी । जग के वो हा पालनहारी।।
रहे    गुरु  के   आज्ञाकारी । सीता मइया बन सँगवारी ।।

चउदह बछर राम बन जावै । दानव मन ला मार भगावै।।
पापी रावन छल  के आये। सीता मइया हर  ले जाये।।

बन अशोक मा  पहरादारी । सीता संग पिसाचिन नारी ।।
धरे रूप बहु भिन्न बनाइस। रावन सीता बहुत डराइस।।

थर-थर काँपे  रावन   भइया। तिनका हाथ उठाइस  मइया ।।
बानर कहिके रावन बोलिस । फरिया पूँछ तेल मा बोरिस ।।

दोहा-
आग लगावव पूँछ मा,रावण कहे बुलाय।
जर-बर देखै राम हा,सीता सोच भुलाय।।

चौपाई-
भर-भर-भर-भर लंका जरगे।छोड़ विभीषण सब घर बरगे ।।
उड़त-उड़त वो झटकुन आवै। सागर कूदय आग  बुझावै।।

आके सीता ला समझावै। राम काज ला सबो बतावै।।
हनुमत महिमा रघुबर गाए। लंका   रावन  मार गिराए ।।

राज विभीषण लंका देके। आय अयोध्या  सीता लेके।।
हाँसत कुलकत हे नर-नारी। घर-घर  दियना अउ देवारी।।

सिंहासन में राम बिराजे । तीन लोक में डंका बाजे।।
उही समय जी बिजली गिरगे। सीता   ऊपर   बिपदा  परगे।।

फिर बन के   होगे   बैदेही । राम-लखन के परम सनेही।।
मुनि बाल्मिक देखौ कइसे। पोसिस-पालिस   बेटी जइसे।।

दोहा-
बेटी  जस  परिवार  में, सीता  के  रहवास।
कुटिया एक बनाय के,राम भजन के आस।

चौपाई-
लव-कुश दू झन बेटा आये। ननपन  ले   गुरुदेव  पढ़ाये।।
शिक्छा गुरु ले बढ़िया पाइस। राम कथा के सार सुनाइस।।

इक दुखिया नारी के पीरा। काबर छोड़ दिये रघुबीरा।।
सुकुमारी के महिमा  भारी। जनकसुता हे राज दुलारी।।

बन में भटकत समय पहाथे। ओखर भाग कहाँ सुख आथे।।
राम अवध के   राजा   भइया। ले गिस सीता  धरती   मइया।।

लव-कुश दूँनों   राम पियारे। माता अब तो लोक सिधारे।।
इक-इक करके सरयू मइया। पाँव  पखारे पार  लगइया।।

चलदिस अपन लोक हे रामा। संग देव जम्मो बलधामा ।।
अतके मरम  निषाद बतावै। मोरो   पुरखा  पार   लगावै।।

                  -- दोहा--

राम लखन ला मानले,तन अउ जीव समान।
जप ले माला राम के, मनुवा साँझ-बिहान।।
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रचनाकार--
बोधन राम निषाद राज
व्याख्याता (वाणिज्य विभाग)
सहसपुर लोहारा,कबीरधाम(छ.ग.)

14 comments:

  1. सुग्घर चौपाई छन्द।

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  2. वाहहह शानदार चौपाई छंद निषाद राज जी।

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  3. निषाद राज जी,चौपाई सुग्घर सिरजाये हव।
    कुछ जगा सुधारे परही।
    चौपाई के अंत 22,211,112 ले होथे।
    बेर ,देर,काम नाम,यार सार।
    बाँकी सुग्घर।

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    1. सही कहना हे भैया जी।।

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    2. सही कहना हे भैया जी।।

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  4. बहुत सुंदर रचना सर

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  5. वाहःहः निषाद भैया जी
    बहुत सुघ्घर सृजन

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  6. वाह वाह बोधन भैया बढ़िया।।
    332 माने अटकल अनिवार्य हे, कुछ जगह देखहू

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  7. वाह्ह्ह् सुग्घर चौपाई छंद सिरधाय हव सर जी

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  8. बहुत सुंदर रामायण के चित्रण भइया जी

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  9. बहुत सुंदर रामायण के चित्रण भइया जी

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  10. बढ़िया महिमा राम के।
    फल पा चारों धाम के।।
    कलजुग मा तो जोर हे
    लोभ मोह मद काम के।।
    भाई ल गंज अकन बधाई जी...

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