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Wednesday, September 26, 2018

पितृपक्ष विशेषांक

 घनाक्षरी - श्री कन्हैया साहू "अमित"

पितर पाख -

बेटा-बहू बड़ तपे, आगी खा अँगरा खपे, रोज के मरना जपे, मोला तरसाय हें।
राखे रहैं पोरा नाँदी, रोज खाँय बफे माँदी, मोर बर सुक्खा काँदी, पसिया पियाय हें।
उछरँय करू करू, होगे रहँव मैं गरू, पानी कहाँ एक चरू, भारी मेछराय हें।
जीयत मा मारे डंडा, मरे के बाद म गंगा, राँधे हावै सतरंगा, पितर मिलाय हें।

छन्दकार -श्री कन्हैया साहू "अमित"
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पीतर(किरीट सवैया) - श्री जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
(1)
काखर पेट भरे नइ जानँव पीतर भात बने घर हावय।
पास परोस सगा अउ सोदर ऊसर पूसर के बड़ खावय।
रोज बने ग बरा भजिया सँग खीर पुड़ी बड़ गा मन भावय।
खेवन खेवन जेवन झेलय लोग सबे झन आवय जावय।
(2)
आय हवे घर मा पुरखा मन आदर खूब ग होवन लागय।
भूत घलो पुरखा मनके बड़ आदर देख ग रोवन लागय।
जीयत जीत सके नइ गा मन झूठ मया बस बोवन लागय।
पाप करे तड़फाय सियान ल देख उही ल ग धोवन लागय।
(3)
पीतर भोग ल तोर लिही जब हाँसत जावय वो परलोक म।
आँगन मा कइसे अउ आवय जेन जिये बस रोक ग टोक म।
पालिस पोंसिस बाप ह दाइ ह राखिस हे नव माह ग कोख म।
हाँसय गावय दाइ ददा नित राहय ओमन हा झन शोक म।
(4)
जीयत मा करले तँय आदर पीतर हा भटका नइ खावय।
छीच न फोकट दार बरा बनके कँउवा पुरखा नइ आवय।
दाइ ददा सँग मा रहिके करथे सतकार उही पद पावय।
वेद पुराण घलो मिलके बढ़िया सुत के बड़ जी गुण गावय।

 हरिगीतिका छंद - गोठ पुरखा के
(1)
मैं छोड़ दे हौं ये धरा,बस नाम हावै साख गा।
पुरखा हरौं सुरता ल कर,पीतर लगे हे पाख गा।
रहिथस बिधुन आने समय,अपने खुशी अउ शोक मा।
चलते रहै बस चाहथौं,नावे ह मोरे लोक मा।
(2)
माँगौं नहीं भजिया बरा,चाहौं पुड़ी ना खीर गा।
मैं चाहथौं सत काम कर धरके जिया मा धीर गा।
लाँघन ला नित दाना खवा कँउवा कुकुर जाये अघा।
तैं मोर बदला दीन के दे डेहरी दाना चघा।
(3)
कर दे मदद हपटे गिरे के मोर सेवा जान के।
सम्मान दे तैं सब बड़े ला मोर जइसे मान के।
मैं रथौं परलोक मा माया मया ले दूर गा।
पीतर बने आथौं इहाँ पाथौं मया भरपूर गा।

छन्दकार - श्री जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
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पितर तर्पण - आशा देशमुख

(1) त्रिभंगी छंद

लीपत हे ओरी ,दिया अँजोरी ,पितर पाख मा मान करे।
जीयत नइ भावय ,मरे मनावय ,देखा देखी दान करे।
पुरखा तर जाही ,सब सुख आही ,सरजुगिया ले रीत चले।
पूजत हे दुनियाँ ,साँझ बिहनियां,बिन बाजा के गीत चले।

(2) मदिरा सवैया

मान मरे पुरखा मन के अउ जीयत बाप इहाँ तरसे।
रीत कहाँ अब कोन बतावय ,नीर बिना मछरी हरसे।
देखत हे जग के करनी सब रोवत बादर हा बरसे।
फ़ोकट के मनखे अभिमान दिनों दिन पेड़ सहीं सरसे।

(3) शंकर छंद
जीयत ले नइ पूछय बेटा ,आज पितर मनाय।
दाई मरगे लांघन भूखन ,मरे बाद खवाय।
कोन जनी गा मरे बाद मा, जाथे कहाँ जीव।
हाड़ राख हा गंगा जावय ,कोन पीये घीव।

छन्दकार - आशा देशमुख
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"पितर के बरा" -
एक गीत - श्री बोधनराम निषादराज

देख तो दाई कउँवा,छानी मा सकलावत हे।
पितर के बरा अउ सुहारी,बर सोरियात हे।।

कुँवार पितर पाख,देख ओरिया लिपाये हे।
घरो घर मुहाटी म,सुघ्घर चउँक पुराये हे।।
सबो देवताधामी अउ,पुरखा मन आवत हे।
देख तो दाई कंउवा.......................

तोरई पाना फुलवा, संग मा उरिद  दार हे।
कोनो आथे नम्मी अउ,कोनो तिथिवार हे।।
मान गउन सबो करत हे,हुम गुँगवावत हे।
देख तो दाई कउँवा.......................

नाव होथे पुरखा के,रंग रंग चुरोवत हावै।
दार भात बरा बर, लइका ह रोवत हावै।।
जियत ले खवाये नही, मरे मा बलावत हे।
देख तो दाई कउँवा.......................

रचनाकार :-- श्री बोधनराम निषादराज
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Wednesday, September 19, 2018

हरिगीतिका छंद - इंजी.गजानन्द पात्रे "सत्यबोध"

अभियंता दिवस- 15 सितम्बर 

अभियांत्रिकी,जनतांत्रिकी,गढ़थे सदा,इतिहास ला।
सुख से परे,सिरजन करे,सबके धरे,कुछ आस ला।
निर्माण जन,बलिहार मन,रखथे सँजो,विसवास ला।
खुद भूल के,श्रम तूल के,सहिथे सबो,जग त्रास ला।1।

बस लोह पथ,गज गामिनी,जल दामिनी,पुलिया बड़े।
बनगे सड़क,चल बेधड़क,अब आसमाँ,मनखे उड़े।
बनगे भवन,छुवथे गगन,अब देख लौ,दुनिया खड़े।
मिल साथ सब,कर बात अब,धर फोन ला,घर मा पड़े।2।

कब रात हे,कब हे सुबह,नइ तो समय,परिवार ला
घर के खुशी,पर के दुखी,तरसे सदा,इतवार ला।
पर देख लौ,अब सोंच लौ,समझौ अपन,अधिकार ला।
अफसर रहै,कुछ ना कहै,डरथे सदा,ठगदार ला।3।

छंदकार- इंजी.गजानन्द पात्रे *सत्यबोध*

Friday, September 14, 2018

"छन्द खजाना के राजभाषा विशेषांक"

आल्हा छंद - हिंदी भाषा

अबड़ सरल हे सीखे मा जी, बोले मा गुरतुर अउ सोझ ।
बड़ सजोर हे हिंदी भाषा , सबो भाव के सहिथे बोझ ।।

नइये कमसल बियाकरन मा, वैज्ञानिकता हे पुरजोर ।
शब्द खजाना भरे ठसाठस , अलंकार रस छन्द चिभोर ।।

दर्जा हे कानून म भारी, हमर राजभाषा कहिलाय ।
सदा सुहागिन फुलवा एहा ,घाम परे मा नइ मुरझाय ।।

कतको भाषा आइन गेइन , अंग्रेजी उर्दू भरमार ।
धमकी चमकी तको लगाइन, फेर कहाँ जी पाइन पार ।।

हिंदी ककरो बैरी नोहय ,कोनो ला नइ दय दुत्कार ।
जेहा एकर शरण म आथे, ओकर होथे बेड़ापार ।।

जन जन के भाखा हे हिंदी ,पढ़ लव गुन लव वेद पुरान ।
हृदय तार एही मा जुड़थे , जानौ एला देव समान ।।

दुनिया भरके मन सीखत हें , हम काबर रहिबो पछुवाय ।
मातु मान के सेवा करबो , गली गली मा जस बगराय ।।

हिंदी के महिमा सब गाबो , कलमकार मन कलम चलाय ।
गीत लिखत अउ रचत कहानी , मन चिटिको जी झन सकुचाय ।।

छन्दकार - श्री  चोवाराम "बादल "
                 हथबंद

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,,,,,,,,,,घनाक्षरी(हिंदी ),,,,,,,,

कहानी कविता बसे,कृष्ण राम सीता बसे,
हिंदी भाषा जिया के जी,सबले निकट हे।
साकेत के सर्ग मा जी,छंद गीत तर्ज मा जी,
महाकाव्य खण्डकाय,हिंदी मा बिकट हे।
प्रेम पंत हे निराला,रश्मिरथी मधुशाला,
उपन्यास एकांकी मा,कथा बड़ विकट हे।
साहित्य समृद्ध हवै,भाषा खूब सिद्ध हवै,
भारत भ्रमण बर,हिंदी हा टिकट हे।

नस नस मा घुरे हे, दया मया हा बुड़े हे,
आन बान शान हरे,भाषा मोर देस के।
माटी के महक धरे,झर झर झर झरे,
सबे के जिया मा बसे,भेद नहीं भेस के।
भारतेंदु के ये भाषा,सबके बने हे आशा,
चमके सूरज कस,दुख पीरा लेस के।
सबो चीज मा आगर,गागर म हे सागर,
भारत के भाग हरे,हिंदी घोड़ा रेस के।

चर्च मा जी चले हिंदी,मंदिर मा पले हिंदी,
बानी गुरु नानक के,आरती अजान के।
सागर के पानी सहीं,बहे गंगा रानी सहीं,
पर्वत पठार सहीं,खड़े सीना तान के।
ज्ञान ध्यान मान धरे,दुख दुविधा ल हरे,
निकले आशीष बन,मुख ले सियान के।
नेकी धर्मी धीर के जी,भक्त देव बीर के जी,
बहे मंदरस बन,हिंदी हिंदुस्तान के।

छन्दकार - श्री जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)

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समान सवैया - हिंदी भाषा

हिन्दी भाषा परम-पावनी, जस संगम गंगा कालिंदी।
माथ सजे चम चमचम चमके,जस भारत माता के बिंदी ।1।

प्रेम चंद के अमर कथा ये, बच्चन के हावय मधुशाला ।
लिखे सुभद्रा लक्ष्मी बाई, मीरा के ये हरि गोपाला।2।

तत्सम तद्भव देश विदेशी, सबो रंग ला ये अपनाथे ।
एक डोर मा सबला बाँधय, गीत एकता के ये गाथे ।3।

शब्द नाद अउ लिपि मा आघू, हम सबके ये एक सहारा।
सागर कस ये संगम लागे, गंगा कावेरी  के धारा ।4।

सत्तर साल बीत गे तब ले, मान नहीं पाइस हे भाषा।
हमर राष्टभाषा के पूरा, कोन भला करही अभिलाषा।5।

संविधान हा भारत के जी, दिये राज भाषा के दरजा।
मान राष्ट्रभाषा के खातिर,हम सबके ऊपर हे करजा।6।

छन्दकार - इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

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सरसी छंद

पढ़व लिखव अउ बोलव हिंदी,सुंदर गुरतुर बोल।
हमर मातृभाषा ये आवय,छोड़व मारे रोल।

थोकन पढ़ लिखके मनखेमन , करत हवय नादान।
नाश करे अपने संस्कृति के,मारत रहिथे शान।

देखावा के चक्कर छोड़व,हिरदै मारय होल।
दिन दिन बाढ़त हमर देश मा,अंग्रेजी के रोल।

रोवत हे महतारी भाखा ,अबतो आँखी खोल।
दया मया के रस ला घोरत,हिंदी भाषा बोल।

हमर सभ्यता हमर धरोहर,हिंदी हे पहिचान।
अनेकता मा हवय एकता,सुंदर हिन्दुस्तान।

संकल्प करी आवव सब झन,देना हे अब ध्यान।
नाम चलय दुनिया मा दू ठन,हिंदी हिन्दुस्तान।

छन्दकार - श्री ज्ञानुदास मानिकपुरी

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विष्णु छंद - हिंदी मातृभाखा

हिंदी महतारी भाखा हे,शान सबो कहिथे।
ए भाखा हा मान हमर जी,नीक अबड़ रहिथे।।

कतका सुग्घर लेखन शैली,अपन भाव लिखथे।
हिंदी के अक्षर मा जादू,देश भाव दिखथे ।।

जन-जन मा हिंदी पहुँचावौ,मान करव मन मा।
हिंदी के सब नाव बचावव,रंग लौ सब तन मा।।

कविता मा नव जोश आय सुन,खूब लिखौ मन ले।
देश प्रेम ला लिखदव अपने,सीख सबो झन ले।

देख इंगलिस छोड़े हिंदी ,दूर अबड़ रहिथे।
हिंदी मा सम्मान अबड़ हे,शान सबो कहिथे।।

हिंदी भाखा हिरदे राखव,रहय मान जग मा।
हिंदी हा सुन मान बढ़ाथे,नेक   भाव रग मा।।

छन्दकार - श्रीमति आशा आजाद
पता-मानिकपुर कोरबा छत्तीसगढ़

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दोहा छन्द - हिन्दी

छत्तीसगढ़ी हे मया, हिन्दी हे अभिमान।
दाई भाखा के सहीं,हिंदी ला तँय जान।।

हिन्दी भाषा राष्ट्र के, एला दव सम्मान।
हिन्दी के उत्थान ले,हमरो हय उत्थान।।

हिन्दी ला हीनव नहीं, अँगरेजी के नाम।
संसकार ले हय भरे,आही इही ह काम।।

हिन्दी ला सम्मान दव,कीमत एखर जान।
नइँ ता फिर से छिन जही,आजादी सच मान।।

छन्दकार - श्रीमती नीलम जायसवाल (भिलाई)-

Sunday, September 9, 2018

पोरा विशेषांक - छन्द के छ परिवार












चौपई छन्द - 

कइसे मानन हमू तिहार।
दँउड़ावन बइला ला यार।।
बइला चुलहा चकला जान।
बरतन भाँड़ा सबो मितान।।

माटी के बरतन सब लान।
नोनी बाबू खेलन जान।।
हर तिहार के महिमा ताय।
खेल खेल मा देत बताय।।

जीये बर सब लागै चीज।
खेलत खेलत सीख तमीज।।
आज ठेठरी डटके खाव।
सुग्घर पोरा  परब मनाव।।

सूर्यकांत गुप्ता..सिंधिया नगर दुर्ग(छ्त्तीसगढ़)

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शंकर छंद - बोधन राम निषाद राज
(1)
हमर राज के जाँता चुकिया,देख सुग्घर आय।
घर घुँदिया मा कइसे साजे,बइला ला सजाय।।
नन्दी  बइला  ला  दउड़ावय,खोर  चारो ओर।
जघा-जघा मा होवत हावय,खेल फुगड़ी सोर।।
(2)
रंग-रंग  के  बने  खजानी, ठेठरी  ला भाय।
लउहा-लउहा टूरी टूरा,आज खुरमी खाय।।
मन उछाह भर जाथे तन मा,अइसन जी तिहार।
मया बँधाथे जम्मो  घर मा,होय खुश परिवार।।
(3)
पटकत पोरा हाँसत कुलकत,नोनी घलो आय।
चीला  चौंसेला ला  राँधत, दाई ह मुस्काय।।
बइठ नँगरिहा बइला बाँधत,कोठा म सुरताय।
बच्छर भर के ये पोरा ला,देखौ सँग मनाय।।

छंदकार:- बोधन राम निषाद राज
सहसपुर लोहारा,कबीरधाम(छ.ग.)

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कइसे के मानँव पोरा (लावणी छंद-गीत)

अब दुकाल के संसो सँचरे, मन मा परगे बड़ फोरा।
खेत किसानी करजा बूड़े, कइसे के मानँव पोरा।....
बहिनी बेटी बछर बखत मा, मइके के करथें सुरता।
का होही अब थोर-थार मा, कइसे लँव लुगरा कुरता।
जिवरा हा लेसावत हावय, मन होवत हे मनटोरा।-१
कइसे के मानँव पोरा......
चढ़ही कामा तीन तेलई, कइसे के करू करेला।
सावन भादो सुक्खा बीतय, बाढ़त हे सरी झमेला।
बादर बैरी का ठिकना हे, करते हँव तभो अगोरा।-२
कइसे के मानँव पोरा..........
बने-बने के तीज तिहार सब, सम्मत मा सबो सुहाथे,
रिंगी चिंगी रहना बसना, सबके मन 'अमित' लुहाथे।
चिरहा चड्डी फटहा बण्डी, गुनँव फिकर मा भिड़े कछोरा।-3
कइसे के मानँव पोरा.........

✍ *कन्हैया साहू "अमित"*✍
शिक्षक~भाटापारा,
जिला-बलौदाबाजार छत्तीसगढ़
©संपर्क~9200252055®
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सार छंद - 

दीदी बहिनी जम्मो झन ला, नँगते रहिस अगोरा।
धरके जी खुशहाली सब बर, आये हाबय पोरा।1।
घर घर आये हाबय संगी,पहुना बेटी-माई।
मनवाये बर पोरा तीजा, लाये हाबयँ भाई।2।
नँदिया बइला सजगे हाबय, सजगे चुलहा चुकिया।
जाँता धरके बइठे हाबय, देखव भाँची सुखिया।3।
करत हवयँ जी पूजा मिलके, घर भर माई पीला।
जेंवाये बर राँधे हाबयँ, गुरहा भजिया चीला।4।
नँदिया बइला ला भाँचा मन, झींकयँ धरके डोरी।
हवयँ चलावत गुड़गुड़ गुड़गुड़, देखव ओरी ओरी।5।
जुरियाये सब दीदी बहिनी, बइठे हवयँ दुवारी।
नवा नवा गा लुगरा पहिरे, खुश हाबयँ जी भारी।6।

रचना- मनीराम साहू 'मितान'
कचलोन(सिमगा) , जिला - बलौदाबाजार, छत्तीसगढ़

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पोरा(ताटंक छंद)

बने हवै माटी के बइला,माटी के पोरा जाँता।
जुड़े हवै माटी के सँग मा,सब मनखे मनके नाँता।
बने ठेठरी खुरमी भजिया,बरा फरा अउ सोंहारी।
नदिया बइला पोरा पूजै, सजा आरती के थारी।
दूध धान मा भरे इही दिन,कोई ना जावै डोली।
पूजा पाठ करै मिल मनखे,महकै घर अँगना खोली।
कथे इही दिन द्वापर युग मा,कान्हा पोलासुर मारे।
धूम मचे पोला के तब ले,मनमोहन सबला तारे।
भादो मास अमावस पोरा,गाँव शहर मिलके मानै।
हूम धूप के धुँवा उड़ावै,बेटी माई ला लानै।
चंदन हरदी तेल मिलाके,घर भर मा हाँथा देवै।
धरती दाई अउ गोधन के,आरो सब मिलके लेवै।
पोरा पटके परिया मा सब,खो खो अउ खुडुवा खेलै।
संगी साथी सबो जुरै अउ,दया मया मिलके मेलै।
बइला दौड़ घलो बड़ होवै,गाँव शहर मेला लागै।
पोरा रोटी सबघर पहुँचै,भाग किसानी के जागै।
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया", बाल्को(कोरबा)

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घनाक्षरी (पोरा तिहार )

बैला माटी के बना ले,रंग रंग के सजा ले,
चार पाँव चक्का डार, बने पहिराव जी।
माथा मा टीका लगा दे,फूल माला पहिरादे,
पूजा पाठ करेबर, सुग्घर सजाव जी।
पोरा के तिहार आये,रोटी पीठा ला बनाये,
दाई माई दीदी संग, पोरा फोर आव जी।
आनी बानी खेल खेलौ,बोछडे सखी ले मिलौ,
सुख दुख बाँट सबो,तिहार मनाव जी।
दिलीप कुमार वर्मा , बलौदा बाज़ार

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।। छन्न पकैया छंद ।।
छन्न पकैया छन्न पकैया,आगे तीजा पोरा।
झटकुन आबे तैंहर बहिनी,सुनले ओ मनटोरा।।
छन्न पकैया छन्न पकैया,रखले जोरन जोरे।
लाने हांवव तीजा लुगरा,सुनले बहिनी मोरे।।
छन्न पकैया छन्न पकैया,मया पिरित ला बाँधे।
किसम किसम के रोटी तैंहर,राखे रहिबे राँधे।।
छन्न पकैया छन्न पकैया,नाँदा बइला लाहूँ।
भाँचा भाँची संगे लाबे, बइठे मैं खेलाहूँ।।
छन्न पकैया छन्न पकैया,कपड़ा नावा लेंहा।
भाँचा भाँची बर हे सब हा, सुनले बहिनी तेंहा।।
छन्न पकैया छन्न पकैया,सबके सुरता आथे।
पोरा धर के सबो सखी मन,पटके बर गा जाथे।।
छन्न पकैया छन्न पकैया,बहिनी मन के पोरा।
आथे भइया हमरों कहिके,वोमन करय अगोरा।
राजेश कुमार निषाद , ग्राम चपरीद पोस्ट समोदा तहसील आरंग जिला रायपुर (छ. ग.)

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शंकर छन्द--पोरा-

हमर गाँव मा पोरा के दिन, गाँव भर सकलाँय।
ढंग-ढंग के खेल करावँय,बइला ल दँउड़ाँय।
फुगड़ी खोखो दौंड़ कबड्डी, होय सइकिल रेस।
माई-पिल्ला सब झन आवँय,साज सुघ्घर भेस।।१।।
बहिनी मन मइके आयें हें,पोरा के तिहार।
सजे हवय दाई घर अँगना, हाँसय मुख निहार।
बइला मन के छुट्टी हावय, होत हावय साज।
सुघ्घर सज-धज दँउड़ लगाहीं,खाँय जेवन आज।।२।।
किसिम-किसिम के बने कलेवा,सबो जुर-मिल खाव।
ठेठरी-खुरमी बरा सुहारी,मजा गुझिया पाव।
बाबू नाँगर नोनी जाँता,मगन खेलँय खेल।
पोरा के दिन खुशी मनावव,होवय हेल मेल।।३।।

--नीलम जायसवाल(भिलाई)--

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पोरा  (लावणी छंद )

भारत माँ के अबड़ दुलौरिन , माटी हे छत्तीसगढ़ के ।
लोग इहाँ के सिधवा हितवा , धरम करम मा बढ़ चढ़ के ।।
नाँगर बइला संग मितानी , जतन करइया धरती के ।
उवत सुरुज ला जल देवइया, पाँव परइया बूड़ती के ।।
रंग रंग के परब मनइया, होली अउ देवारी जी ।
रक्षाबंधन आठे पोरा , तीजा रहिथे नारी जी ।।
पोरा के महिमा हे भारी , बइला के पूजा करथें
बेटी बहिनी पटके पोरा , मइके के बिपदा हरथें।।
पोरा मा भरके रोटी ला, आथें पटक दुबट्टा जी ।
लइका मन रोटी ला खाथें , करथें लूट झपट्टा जी ।।
गाँव गाँव मा बैल दउँड़ अउ , खुडुवा खो खो  होथे जी ।
नोनी मन जब सुवा नाँचथें , देखत खुशी उनोथे जी ।।
शिव के हवय सवारी नंदी , बैल रूप मा सँगवारी ।
पोरा के दिन ओकर भाई , मान गउन होथे भारी ।।
बइला ला जी नँहवा धोके , सब किसान पूजा करथें ।
तिलक सार के करैं आरती , माथ नवाँ पइयाँ परथें ।।
भाँचा भाँची लइका मन बर , खेलौना लेथें भारी ।
माटी के चुकिया सँग जाँता , माटी के चूल्हा थारी ।।
मिहनत के जी शिक्षा देथे ,  बइला चूल्हा बचपन ले ।
छत्तीसगढ़िया मन के हिरदे , रहिथे भरे समरपन ले ।।

छन्दकार - श्री चोवाराम "बादल"

Wednesday, September 5, 2018

शिक्षक दिवस विशेषांक









दोहावली - शिक्षक दिवस  

आज हवय पावन दिवस , गुरु पूजा त्योहार ।
वंदत हँव गुरु के चरण , शीश नवाँ सौ बार ।।

राधा कृष्णन ला नमन,  जन्म दिवस हे आज ।
शिक्षक जन जेकर उपर , करथें अबड़े नाज ।।

जेन रहिंन चिंतक बड़े , राजनीति के संत ।
बनिन राष्ट्रपति दूसरा , भारत के श्रीमंत ।।

शिक्षा सँग संस्कार के , जेहा अलख जगाय ।
सुग्घर जी सद ज्ञान दय ,वो हर शिक्षक आय ।।

करिया पट्टी  शिष्य के , आखर भरय अँजोर ।
 रटवा दै जी  पाहड़ा  , भाषा भाव चिभोर ।।

ब्रह्मा विष्णु महेश कस ,गुरुजी तभे कहाय ।
मातु पिता कस मानके , सब झन शीश नँवाय।।

छन्दकार - श्री चोवाराम वर्मा

दुर्मिळ सवैया - हे गुरुदेव

घपटे अँधियार हवे मन द्वार बिचार बिमार लचार हवै ।
जग मोंह के जाल बवाल करे बन काल कुचाल सवार हवै ।
मन के सब भोग बने बड़ रोग बढ़ाय कुजोग अपार हवै ।
गुरुदेव उबारव दुःख निवारव आवव मोर पुकार हवै ।1 ।

लकठा म बला निक राह चला सब होय भला बिपदा ल हरो ।
मन ला गुरु मोर जगा झकझोर भगा सब चोर अँजोर भरो ।
हिरदे पथरा परिया कस हे हरिया दव प्रेम के धार बरो ।
अरजी करजोर सुनौ गुरु मोर हवौं कमजोर सजोर करो ।2।

नइ जानँव आखर अर्थ पढ़े अउ भाग गढ़े मति मंद हवै ।
ममता जकड़े अबड़े अँकड़े कस के पकड़े जग फंद हवै ।
अगिनी कस क्रोध जरे मन मा तन मा धन मा छल छंद हवै ।
किरपा करके दव खोल अमोल बिबेक कपाट ह बंद हवै ।3।

छन्दकार - श्री चोवाराम वर्मा

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दोहा छंद - 
गुरु को सादर है नमन, जो साक्षात् भगवान
उसके चरणों से बहे, ज्ञान ध्यान वरदान।

छन्दकार - शकुन्तला शर्मा

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गीतिका छंद - 

देवता मन ले बड़े हे ,गुरु जगत मा जान ले।
राम कृष्णा मन तको जी ,गुरु शरण मा ज्ञान ले।
रोज कतको बार दीया ,मन तभो अँधियार हे।
भाग्य से मिल जाय गुरु तब ,जान जिनगी सार है।

एक दिन जाना हवे जी ,मोह के संसार से।
मँय उऋण नइ हो सकँव गुरु ,आपके उपकार से।
पुण्य से जिनगी मिले हे ,गुरु मिले सौभाग्य से।
गुरु कृपा ला का बखानौं ,छंद रचना काव्य से।

आभार सवैया - विनत भाव 

आभार मानौं गुरु आपके मैं दिये ज्ञान जोती अँधेरा मिटायेव।
संसार के सार निस्सार जम्मो कते फूल काँटा सबो ला बतायेव।
रद्दा ला रोके जमाना तभो ले हवा शीत आँधी म दीया जलायेव।
माथा नवावौं गुरू पाँव मा मैं छुपे जोगनी ला चँदैनी बनायेव।

भुजंग प्रयात छंद -

गुरू मोर रोजे लुटावै खजाना।
सिखाये विधा छंद गाये तराना।
जिहाँ ज्ञान के रोज जोती जले हे।
तिहाँ  एकता प्रेम मोती पले हे।

मया हे दया हे कहे एक नारा।
सबो ला गुरू छाँव लागै पियारा।
बड़े हे न छोटे सबो एक जैसे।
मिले मातु गोदी गुरू प्रेम वैसे।

छन्दकार - आशा देशमुख 

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गुरू(सरसी छंद)

गुरू शरण मा माथ नवाले,गुरू लगाही पार।
भव सागर ले सहज तरे बर,बना गुरू पतवार।

छाँट छाँट के बने चीज ला,अंतस भीतर भेज।
उजियारा करही जिनगी ला,बन सूरज के तेज।
जल जाही जर जहर जिया के,लोभ मोह संताप।
भटक जानवर कस झन बइहा,नता गुरू सँग खाप।
ज्ञान आचमन कर रोजे के,पावन गंगा धार।
भव सागर ले सहज तरे बर,बना गुरू पतवार।

धीर वीर ज्ञानी अउ ध्यानी,सबो गुरू के देन।
मानै बात गुरू के हरदम,पावै यस जश तेन।
गुरू बिना ये जग मा काखर,बगरे हावै नाम।
महिनत करले कतको चाहे,बिना गुरू ना दाम।
ठाहिल हीरा असन गुरू हे,गुरू कमल कचनार।
भव सागर ले सहज तरे बर,बना गुरू पतवार।

गुरू बना जीवन मा बढ़िहा,कर कारज नित हाँस।
गुरू सहारा जब तक रइही,पाँव गड़े ना फाँस।
यस जश बाढ़े जब चेला के,गुरू मान तब पाय।
नेंव तरी के पथरा बनके,गुरू देव दब जाय।
गावै गुण तीनों लोक गुरू के,गुरू करै उपकार।
भव सागर ले सहज तरे बर,बना गुरू पतवार।

छन्दकार - श्री जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

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सरसी छंद - शिक्षक

शिक्षक हे अभिमान देश के ,याद रखव ये बात।
गुरु के तन मन निर्मल होथे,नइहे कोनो जात।।

शिक्षक हे आवाज हृदय के,सृजन भाव आधार।
शिक्षा देके जीवन गढ़थे ,करथे गा उद्धार।।

शिक्षक देखावय नित रद्दा,विद्या के आधार।
देवय शिक्षा देखव हर युग ,करिन सदा उपकार।।

शिक्षा ले शिक्षक बन जाथे,सबके करें विकास।
नेक भाव ले विद्या बाँटय,गुरु ले सबके आस।।

शिक्षक के सम्मान करव जी,करौं साधना रोज।
गुरु के मुख ले सत ही निकलय,राखँय सत के ओज।।

भेद भाव नइ राखँय कोनो,एके हे आगाज।
हर जन के उद्धार करे ये,दय समता आवाज।।

छंदकार - श्रीमति आशा आजाद

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शंकर छंद - गुरु महिमा
(1)
गुरु के महिमा गुरु ही जाने,मोर तारनहार।
चरन परव जी एखर भाई, जीव होही पार।।
ज्ञानवान सागर जइसे हे,आव डुबकी मार।
गंगा जल कस पी लव संगी,आज जिनगी तार।।
(2)
गुरु बिन जिनगी सुन्ना होथे,होय जग अँधियार।
दिया ज्ञान के आज जलाले,तोर मन के द्वार।।
चरन पखारव ए गुरुवर के,देव किरपा जान।
माथ नवावव करलव सेवा,मिल जही भगवान।।

छंदकार - श्री बोधन राम निषाद राज

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दोहा --गुरु महिमा

बिन गुरु भगती नइ मिलै,मिलै नहीं रे ज्ञान।
चलबे गुरु के संग तँय,पाबे तँय भगवान।।

सत् के डोंगा बइठ के,गुरु ला कर परनाम।
गुरु के रद्दा में चलव,मिलही प्रभु के धाम।।

गुरु के भगती पाय के,बन जाबे तँय धीर।
गुरु  के  छाया  में रबे, झन  होबे  गंभीर।।

सुघ्घर पाबे ग्यान ला,मिटही सब अग्यान।
किरपा गुरु के होय ले,बढ़ जाही जी मान।।

हाथ जोर बिनती करँव,चरन परँव मँय तोर।
हे गुरुवर तँय ग्यान दे,जिनगी बनही मोर।।

गुरु के बानी सार हे,गुरु के ग्यान अपार।
जे मनखे ला गुरु मिलय,ओखर हे उद्धार।।

भक्ति शक्ति दूनों मिलय,मिलय ग्यान भंडार।
गुरु पद में तँय ध्यान धर,गुरु हे तारनहार।।

गुरु चरनन मा ध्यान हो,करौ सदा परनाम।
सत् के रसता मा चलव,बनथे बिगड़े काम।।

गुरु बिन जग अँधियार हे,ज्ञान कहाँ ले आय।
हरि दरशन हा नइ मिलय,मुक्ति कहाँ ले पाय।।

छंदकार - श्री बोधन राम निषाद राज

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दोहा छन्द - गुरु 

गुरू बिना मिलथे कहाँ,  कोनों ला जी ज्ञान ।
कर ले कतको जाप तैं , चाहे देदव जान ।।1।।

नाम गुरू के जाप कर , तैंहा बारम्बार ।
मिलही रस्ता ज्ञान के  , होही बेड़ापार ।।2।।

झोड़व झन अब हाथ ला , रस्ता गुरु देखाय ।
दूर करय अँधियार ला , अंतस दिया जलाय ।।3।।

सेवा करले प्रेम से  , एहर जस के काम ।
गुरु देही आशीष तब , होही जग मा नाम ।।4।।

पारस जइसे होत हे , सदगुरु के सब ज्ञान ।
लोहा सोना बन जथे , देथे जेहा ध्यान ।।5।।

देथे शिक्षा एक सँग,  गुरुजी बाँटय ज्ञान ।
कोनों कंचन होत हे , कोनों काँच समान ।।6।।

सत मारग मा रेंग के  , बाँटव सब ला ज्ञान ।
गुरू कृपा ले हो जथे  , मूरख भी विद्वान ।।7।।

शिक्षक के आदर करव , पूजव सबो समाज ।
राह बताथे ज्ञान के  , तब होथे सब काज ।।8।।

शिक्षा जेहा देत हे , वोहर गुरू समान ।
माथ नवावँव पाँव मा , असली गुरु तैं जान ।।9।।

आखर आखर जोड़ के  , बाँटय सब ला ज्ञान ।
मूरख बनय सुजान जी  , अइसन गुरू महान ।।10।।

छन्दकार - श्री महेन्द्र देवांगन माटी 

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कविता - 

हाँ मै शिक्षक आँव

ज्ञान के अलख जगईया। 
कर्म धर्म के पाठ पढ़्ईया। 
अज्ञानता के अन्धकार ला
ये जग ले दूर मिटईया। 

हाँ मै शिक्षक आँव

एक छोटकन बीज ला
बड़े जान पेड़ बनईया। 
रीति नीति सत प्रेम के
खाद पानी डार सिरजईया। 

हाँ मै शिक्षक आँव

अपन दुख पीरा भुलाके
परके दुख मा साथ निभईया। 
गिरे परे रस्ता मा कोनो मिले
धरके हाथ उठईया। 

हाँ मै शिक्षक आँव

जग मा उजियार करे बर
दीया बनके जलईया। 
भूख पियास दुख दर्द सहिके
अपन कर्तव्य निभईया। 

हाँ मै शिक्षक आँव।

रचनाकार - श्री ज्ञानुदास मानिकपुरी

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दोहा छंद - 

बंदन गुरु के मैं करँव,दुनो हाथ ला जोर।
मोर हृदय अँधियार ला,दूर करव बन भोर।1।

माटी तन कच्चा घड़ा,गुरुवर रूप कुम्हार।
ज्ञान रूप के चाक मा,जिनगी गढ़त हमार।2।

जननी जग माता पिता,गुरु सउँहत भगवान।
जनम सुफल सबके करै,अउ जग के कल्यान।3।

जिनगी के गुरु पाहड़ा,गुणा भाग अउ जोड़।
पाठ सिखावय ज्ञान भर,भेदभाव ला छोड़।4।

देव रूप मा गुरु मिलय,जस माही पतवार।
अंधकार मन दूर करय,ज्ञान जोत ला बार।5।

छन्दकार - इंजी.गजानंद पात्रे "सत्यबोध" 
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मनहरण घनाक्षरी छंद - 

जीवन अंजोर करे,जीवन संजोर करे ,
गुरु बिना रहिथे जीवन अंधियार गा ।
ज्ञान के दिया ला बार, करथे गा उजियार ,
भरे नदिया मा गुरु ,बने पतवार गा ।
कच्चा माटी थाप थाप,देवय मूरत छाप,
सुग्घर स्वरूप देथे, बनय कुम्हार गा।
चरण शरण ले के ,ज्ञान के भंडार देथे ,
गुरु ला तो देव रूप, मानय संसार गा ।

दोहा - 

अक्षर अक्षर जोड़ के ,गुरु देवय गा ज्ञान ।
यति गति लय अउ छंद के , करवावय जी भान।(1)

गुरु बिन ज्ञान कहाँ मिलय,मिलय कहाँ सम्मान ।
गुरु आषीश ल पाय बर,तरसय खुद भगवान ।(2)

छन्दकार - श्री दुर्गाशंकर इजारदार

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हरिगीतिका छन्द  - गुरु बड़े भगवान ले

भगवान ले बड़का गुरु,कहिथे सबोझन मान ले। 
काबर कहे अइसन सखा,बतलात हँव मँय जान ले। 
भगवान हा सब जीव ला,भेजे हवय बस जान जी। 
आ के सबो कीरा बरोबर,रहत राहय मान जी।1। 

जब ज्ञान पाइस हे मनुज तब,रूप अइसन पाय हे। 
सब ला बताइन हे सखा,तब तो मनुज कहलाय हे। 
जिन ज्ञान बाँटत हे जगत ला,ओ गुरु कहलाय जी। 
भटके मनुज तक संग आवय, राह सुग्घर पाय जी।2। 

भगवान के संसार मा, रहना कहाँ आसान हे। 
बपुरा रहे तिन मार खावय,सब डहर सइतान हे। 
जिन संग गुरु के पाय हावय, बाँचथे हैवान ले। 
बड़का तभे गुरु हा कहाये, जान लव भगवान ले।3। 

जिन सीख के सब ला बतावय, ओ गुरू कहलाय जी। 
जिन मानथे सच बात ला,उन राह सुग्घर पाय जी। 
सुख दुख सबो हिस्सा रहे,सब जीव बर संसार मा। 
गुरु ज्ञान के पाये सखा,दुख आय ना परिवार मा।4। 

भगवान ला हम जान पाइन,ओ गुरू के ज्ञान ले। 
नइ ते कहाँ हम जान पाबो,बात सिरतो मान ले। 
गुरु के चरण माथा नवावत,भाग ला सहरात हँव। 
भगवान के आशीष तक ला,गुरु चरण मा पात हँव।5। 

छन्दकार - श्री दिलीप कुमार वर्मा

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छंंद दोहा - 

गुरु भगाय अँधियार ला , अउ देवय बड़ ज्ञान ।
ठोंक पीट आशीष दय , आव करन सम्मान ।।

छंद ज्ञान दे गुरु *अरुण*, करिन बहुत उपकार ।
पावन पबरित गुरु चरण , बंदँव बारम्बार ।।

गुरु वाणी अनमोल हे , हर आखर मा सीख ।
गुरु गियान तो नइ मिलय, माँगे कोनो भीख ।। 

सदा राखहू ध्यान ए , गुरु के झन हो अपमान ।
छोड़ अपन अभिमान ला , राखव गुरु के शान ।।

छंदकार - श्री पोखन लाल जायसवाल 

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Saturday, September 1, 2018

सार छन्द - श्री जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

खमर्छठ

खनर खनर बड़ चूड़ी बाजे,फोरे दाई लाई।
चना गहूँ राहेर भुँजाये ,झड़के बहिनी भाई।

भादो मास खमर्छठ होवय,छठ तिथि अँधियारी।
लीपे  पोते  घर  अँगना  हे,चुक  ले दिखे दुवारी।

बड़े बिहनिया नाहय खोरय,दातुन मउहा डारा।
हलषष्ठी के  करे  सुमरनी,मिल  पारा  के पारा।

घर के बाहिर सगरी कोड़े,गिनगिन डारे पानी।
पड़ड़ी काँसी खोंच पार मा,बइठारे छठ रानी।

चुकिया डोंगा बाँटी भँवरा,हे छै जात खिलोना।
हूम धूप अउ फूल पान मा,महके सगरी कोना।

पसहर  चाँउर  भात  बने हे, बने हवे छै भाजी।
लाई नरियर के परसादी,लइका मनबर खाजी।

लइका  मन  के रक्षा खातिर,हे उपास महतारी।
छै ठन कहिनी बैठ सुने सब,करे नेंग बड़ भारी।

खेत  खार  मा नइ तो रेंगे, गाय  दूध  नइ पीये।
महतारी के मया गजब हे,लइका मन बर जीये।

भैंस दूध के भोग लगे हे,भरभर मउहा दोना।
करे  दया  हलषष्ठी  देवी,टारे  दुख अउ   टोना।

पीठ  म   पोती   दे  बर  दाई,पिंवरी  माटी  घोरे।
लइका मनखे पाँव ल थोरिक,सगरी मा धर बोरे।

चिरई बिलई कुकुर अघाये,सबला भोग चढ़ावै।
महतारी  के  दान  धरम ले,सुख  समृद्धि आवै।

द्वापर युग मा पहिली पूजा,करिन देवकी दाई।
रानी उतरा घलो सुमरके,लइका के सुख पाई।

टरे  घँसे  ले  महतारी के,झंझट दुख झमेला।
रक्षा कवच बने लइका के,पोती कइथे जेला।

छन्दकार - श्री जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)