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Saturday, September 1, 2018

सार छन्द - श्री जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

खमर्छठ

खनर खनर बड़ चूड़ी बाजे,फोरे दाई लाई।
चना गहूँ राहेर भुँजाये ,झड़के बहिनी भाई।

भादो मास खमर्छठ होवय,छठ तिथि अँधियारी।
लीपे  पोते  घर  अँगना  हे,चुक  ले दिखे दुवारी।

बड़े बिहनिया नाहय खोरय,दातुन मउहा डारा।
हलषष्ठी के  करे  सुमरनी,मिल  पारा  के पारा।

घर के बाहिर सगरी कोड़े,गिनगिन डारे पानी।
पड़ड़ी काँसी खोंच पार मा,बइठारे छठ रानी।

चुकिया डोंगा बाँटी भँवरा,हे छै जात खिलोना।
हूम धूप अउ फूल पान मा,महके सगरी कोना।

पसहर  चाँउर  भात  बने हे, बने हवे छै भाजी।
लाई नरियर के परसादी,लइका मनबर खाजी।

लइका  मन  के रक्षा खातिर,हे उपास महतारी।
छै ठन कहिनी बैठ सुने सब,करे नेंग बड़ भारी।

खेत  खार  मा नइ तो रेंगे, गाय  दूध  नइ पीये।
महतारी के मया गजब हे,लइका मन बर जीये।

भैंस दूध के भोग लगे हे,भरभर मउहा दोना।
करे  दया  हलषष्ठी  देवी,टारे  दुख अउ   टोना।

पीठ  म   पोती   दे  बर  दाई,पिंवरी  माटी  घोरे।
लइका मनखे पाँव ल थोरिक,सगरी मा धर बोरे।

चिरई बिलई कुकुर अघाये,सबला भोग चढ़ावै।
महतारी  के  दान  धरम ले,सुख  समृद्धि आवै।

द्वापर युग मा पहिली पूजा,करिन देवकी दाई।
रानी उतरा घलो सुमरके,लइका के सुख पाई।

टरे  घँसे  ले  महतारी के,झंझट दुख झमेला।
रक्षा कवच बने लइका के,पोती कइथे जेला।

छन्दकार - श्री जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)

6 comments:

  1. वाहःहः बहुते सुघ्घर खम्हर छठ पूजा के वर्णन है भाई

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  2. बहुत खूब कवि महोदय👌👌👌👍👍

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  3. वाह वाह। शानदार सार छंद के सृजन करे हव भैया। सादर बधाई।

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  4. बहुत सुघ्घर रचना

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