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Saturday, May 11, 2019

चौपाई छन्द - जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

चप्पल(दोहा चौपाई)

*बिन चप्पल के अब कहाँ,मनखे कहुँती जाय।*
*रंग रंग के आज तो,चप्पल पाँव सुहाय।*

खेत खार अउ बखरी बारी,चप्पल पहिर घुमै नर नारी।
कोनो मँहगा कोनो सस्ता,पहिरे लाँघय सरपट रस्ता।

चमड़ा प्लास्टिक फोम रबड़ के,पहिरै चप्पल सबे रगड़ के।
काँटा खूँटी काँच गड़े ना,बिन चप्पल के शान बढ़े ना।

फेरी  वाले  बेरी  वाले,जौनी  वाले  डेरी  वाले।
पहिरे चप्पल काम करें सब,रहै कोन बिन चप्पल के अब।

साहब बाबू चोर उचक्का,बिन चप्पल सब हक्का बक्का।
ठलहा हो या काम करैया,सबला चाही चप्पल भैया।

चप्पल पहुँचे घर के भीतर,देख दंग होवत हे पीतर।
चप्पल मंदिर मा नइ जाये,घर अब मंदिर कहाँ कहाये।

चले नहीं चिखला मा चप्पल,घाम घरी चाही जी सब पल।
चप्पल चाही सबे महीना,बिन चप्पल मुश्किल हे जीना।

पाँव छुये बर धरती तरसे,कखरो मूड़ म चप्पल बरसे।
चप्पल के डर गजब सताये,पड़े मार निंदिया नइ आये।

कखरो चप्पल कहूँ गँवाये,रात रात भर सो नइ पाये।
चप्पल वाले ताव दिखाये,बिन चप्पल मनखे का आये।

चप्पल मारे भूत भगाये, दूसर बिरथा एक गँवाये।
चप्पल बर रखवार रथे जी,चप्पल चप्पल सबे कथे जी।

चप्पल चोर मिले सब कोती,जइसे चप्पल हीरा मोती।
चप्पल बिना काम ना होवै,बिन चप्पल के नाम ना हौवै।

जनम लेत पग चप्पल चिपके,चोर ह ताके चप्पल छिपके।
घिंस चप्पल कोनो दुख पाथे,कोनो चप्पल ला चमकाथे।

सुन्ना लगथे देखव चल के,हाट बजार ह बिन चप्पल के।
चप्पल के होवै बड़ चरचा,करे लेय बर सब झन  खरचा।

*चप्पल पहिरे पाँव मा,चलव न आँखी मूँद।*
*रहिथे कतको जीव जी,हो मतंग झन खूँद।*

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को (कोरबा)

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