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Saturday, July 27, 2019

छत्तीसगढ़ी कुण्डलिया छन्द, श्रृंखला - 1

कुंडलियाँ छन्द - राम कुमार चन्द्रवंशी

(1)
काँटा ल कहे फूल हर,सुन निर्मोही बात।
हिरदे मा धर प्रेम तैं,तभे तोर अवकात।
तभे तोर अवकात, हृदय जब नरम बनाबे।
कर घमंड के त्याग, जगत मा आदर पाबे।
राख पिरित के संग,जोड़ ले तैंहर नाता।
गाँठ बाँध के राख, बात ला तैंहर काँटा।।

(2)
काँटा बोलय फूल ला,अपन गरब तैं छोड़।
देख नरमता तोर नित, देथे लोगन तोड़।
देथे लोगन तोड़,कदर छिन भर हो पाथे।
गरुवा मन दिन-रात,चबाके तोला खाथे।
सदा मोर तैं संग,जोड़ के रखबे नाता।
झूलत रहिबे डार,फूल ला बोलय काँटा।।

(3)
बेटी,तुलसी,पेड़,गउ,हावे जी अनमोल।
चारों के संसार मा,नइहे कोनों तोल।
नइहे कोनों तोल, सदा जी आदर देवौ।
राखव मया-दुलार,सदा हिरदे ले सेवौ।
चारों बिन बेकार,बिना पानी जस करसी।
रतन हरे अनमोल, पेड़,गउ,बेटी,तुलसी।।
                
छंदकार-राम कुमार चन्द्रवंशी
बेलरगोंदी (छुरिया)
जिला-राजनांदगाँव, छत्तीसगढ़
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कुण्डलिया छन्द - शोभामोहन श्रीवास्तव                     

(1)
टकटक देखत मोहना,पलक नही झपकात।
राधारानी लाज मा,मूँड़  नवा मुस्कात।।
मूँड़ नवा मुस्कात,कनेखी देख सिहरगे।
हिरदे गंध लुटात,उदुपहा हाँसी झरगे।।।            
बिँदिया दमकत माथ,बरत हे लकलक लकलक।
लाज म उपके रूप,किशन हर देखत टकटक।।

(2)
घर डेरउरी जब कभू,पहुना गोड़ मड़ाय।
बहू मूँड़ ला ढ़ाक के,पानी लोटा लाय।।
पानी लोटा लाय,सगा के पाँव पखारे।
गुरतुर बोली बोल,राँध के खाय बिठारे।।
हाँसत बूता काम,करे सब झरफर झरफर।
बहू ल हूँत कराय,सगा जब जब आवय घर ।।

(3)
बड़ेफजर ले राधिका,पानी ओखी जाय।
जमुना जी के घाट मा,कान्हा हवय बलाय।।
कान्हा हवय बलाय,चलत हे राधा रानी।
ठिठकत ठमकत खोर,डहर हे जात सयानी।।
मन मा हे डर्रात,लुकाके निकलत घर ले।
बाजत नइ हे गोड़,जात हे बड़ेफजर ले।।

छन्दकार - शोभामोहन श्रीवास्तव
छत्तीसगढ़
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कुण्डलिया छंद - विरेन्द्र कुमार साहू

(1)
आज नँदागे राज मा , खेल पताड़ी मार।
भँवरा बाँटी के घलो , कोन्हों नहीं चिन्हार।
कोन्हों नहीं चिन्हार , भुलागे आज जमाना।
आघू होही काय , नहीं अब हवय ठिकाना।
मोबाइल के रोग , लोग सब गजब छँदागे।
हमर राज के खेल , सबे हर आज नँदागे।१।

(2)
गोबर खातू डार के , माटी ला कर पोठ।
उपज बाड़ही दू गुना , सिरतो पतिया गोठ।
सिरतो पतिया गोठ , खेत मा चमके खेती।
फसल रही विषहीन , मान ले तेखर सेती।
कहे वीर कविराय , किसानी होही नोहर।
लहराही धन धान , डार ले खातू गोबर।२।

(3)
पानी हे ता प्रान हे , कइथे सब विद्वान।
जल जमीन जंगल बचा , जागौ चतुर सुजान।
जागौ चतुर सुजान , करौ झन फोकट दंगल।
बिन इनखर लौ मान , होय नइ कखरो मंगल।
सुनौ वीर के गोठ , छोड़ दौ सब मनमानी।
अपन भविष्य सँवार , बचाके निर्मल पानी।३।

छंदकार - विरेन्द्र कुमार साहू ,
ग्राम - बोड़राबाँधा (राजिम) , जिला - गरियाबंद (छत्तीसगढ़)
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कुण्डलिया छंद - रामकली कारे

(1) पर्यावरण बचाव
तुलसी पीपर नीम बर ,जुर मिल पेड़ लगाव ।
चलत सबो के साँस हा ,पर्यावरण बचाओ ।।
पर्यावरण बचाव ,हवा हम सुग्घर पाबो ।
पेड़ दिही फल फूल ,प्रेम ले मिल के खाबो ।।
आगी कस हे ताप ,घाम मा अब झन झुलसी ।
सब जन पेड़ लगाव ,नीम पीपर बर तुलसी ।।

(2) बरखा रानी
बरखा रानी आ हमर ,सबके के प्यास बुझाव ।
सबो मेचका नाचहीं ,अड़बड़ धूम मचाव ।।
अड़बड़ धूम मचाव ,बने हरियाली छावय ।
धरती चुनरी ओढ़ ,सबो के मन ला भावय ।।
नदिया नरवा शोर ,करँय जी कल कल पानी ।
दया मया के भाव ,भरव अब बरखा रानी ।।

(3) योग
योगी साधय योग ला ,काया रहय निरोग ।
भागय आलस रोग हा ,चलव करव जी योग ।।
चलव करव जी योग ,देह मा चुस्ती आही ।
दउड़व खेलव हाँस ,बने मन खुश हो जाही ।।
आनी बानी खाय ,अबड़ दुख पावय भोगी ।
सादा भोजन खाँव ,सदा तन साधव योगी ।।

छंदकार - रामकली कारे
बालको कोरबा ( छत्तीसगढ़ )
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कुण्डलिया छंद - नीलम जायसवाल

(1) शारदा वंदन
वीणापाणी शारदा, कर मोरो उद्धार।
मोला तँय हा ज्ञान दे, अतका कर उपकार।।
अतका कर उपकार, मोर तँय अवगुण हर ले।
दे विद्या के दान, अपन तँय सेवक कर ले।।
ओखर जग मा नाम, बसे तँय जेखर वाणी।
दाई आशा मोर, तहीं हस वीणापाणी।।

(2) गुरु वंदना
गुरु के चरण पखार लव, मन ले देवव मान।
गुरु के किरपा ले बनय, मूरख हा गुणवान।।
मूरख हा गुणवान, चतुर अउ निरमल बनथे।
जेखर पर गुरु हाथ, उही आकाश म तनथे।।
जइसे गरमी घाम, छाँव निक लागे तरु के।
वइसे शीतल होय, वचन हा हरदम गुरु के।।

(3) चन्द्र ग्रहण
गरहन लागिस चाँद ला, होगे ओ हा लाल।
थोरिक बेरा ले रहिस, ओखर ऊपर काल।
ओखर ऊपर काल, धरम हा अइसन कइथे।
सूतक जबले होय, सबो झन लाँघन रइथे।।
कइथे जी विज्ञान, नहीं मानव गा अलहन।
सब्बो करलव काम, रहय जब लागे गरहन।।

छंदकार - श्रीमती नीलम जायसवाल
पता - भिलाई, दुर्ग, छत्तीसगढ़
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कुण्डलियाँ छंद  - महेन्द्र देवांगन "माटी"

(1) घाम  
गरमी अब्बड़ बाढ़ गे , जरय चटा चट पाँव ।
भटकत हावय आदमी , खोजय सबझन छाँव ।।
खोजय सबझन छाँव, जीव हा तरसत हावय ।
सुखगे नदियाँ धार , कहाँ ले पानी पावय ।।
व्याकुल हावय देंह , होय कब मौसम नरमी ।
चुहय पसीना माथ , बाढ़ गे अब्बड़ गरमी ।।1।।

(2) घाम
बरसत आगी घाम मा , टोंटा अबड़ सुखाय ।
सुक्खा हावय बोर हा , कइसे प्यास बुझाय ।।
कइसे प्यास बुझाय , सबोझन खोजय पानी ।
काटे हे सब पेड़  , याद आवत हे नानी ।।
बूँद बूँद बर आज ,  आदमी रोजे तरसत ।
का होही भगवान , घाम आगी कस बरसत ।।2।।

(3) पेड़ लगाव
काटव झन अब पेड़ ला , जुर मिल सबे लगाव ।
मिलही सुघ्घर छाँव जी,  पर्यावरण बचाव ।।
पर्यावरण बचाव , तभे गा गिरही पानी  ,
का सोंचत हव आज,  करव झन आना कानी ।
सुन "माटी" के बात , आदमी ला झन बाँटव ,
मिलही रस फल फूल,  पेड़ कोनों झन काटव ।।
छन्दकार - महेन्द्र देवांगन "माटी "
पंडरिया  (कबीरधाम) छत्तीसगढ़
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कुण्डलिया छंद - डॉ. तुलेश्वरी धुरन्धर

(1) छत
बिन छत झन कोनो रहय,दुख कोनो झन पाय।
बरसा गरमी जूड़ ले,सबके जीव बचाय।।
सबके जीव बचाय,अबड़ सुख हर मिलही जी।
पक्का जब घर होय,नही कोनो भिंगही जी।
भटकय बिन छत लोग,सुतत हे रददा गिन जी।
सब ला मिलही ठौर, रहय कोनो छत बिन जी।

(2) बादर
भारी बादर छाय हे, बिजली कड़कय आज।
कलप कलप के मन कहे,करदे पूरा काज।।
करदे पूरा काज, कहत हे धरती दाई।
कबसे लगे पियास ,बुझा दे बादर भाई।।
नाच झूम ले आज,आय हे तोरो पारी।
होही पूरा आस,छाय हे बादर भारी।।

(3) पुरखा
चोला तारे बर करे,तप ला हथवा जोड़।
वोला गंगा देख के,आय सरग ला छोड़।।
आय सरग ला छोड़, बहत हे निर्मल धारा।
गावत हाबय तोर,सबो जस ला जग सारा।।
पुरखा तरगे तोर,बिसर नइ जावय तोला।
भागीरथ तँय आय,इहाँ तारे बर चोला।।

छन्दकार - डॉ. तुलेश्वरी धुरन्धर
ग्राम पोस्ट अर्जुनी (बलौदाबाजार) छत्तीसगढ़
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कुण्डलिया छंद - राजेश कुमार निषाद

(1)
पानी हे अनमोल जी, काबर करथव मोल।
बिरथा झन गा जान दव, देवव झन गा तोल।।
देवव झन गा तोल, जान हा बचथे येमा।
पानी राखव छान,भरे हे अमरित जेमा।।
फोकट झन बोहाव,करव झन गा नादानी।।
कहना मोरो मान,बचा के राखव पानी।।

(2)
घर मा आये हे सगा,पानी धरके लान।
का जानी गा आय हे ,धरे रूप भगवान।।
धरे रूप भगवान,आये हे ये हर ठउका।
करबो सेवा जान, कहाँ अउ मिलही मउका।।
आथे कभू कभार,मिले हन कई बछर मा।
मिलके करबो बात,बइठ के सब झन घर मा।।

छंदकार - राजेश कुमार निषाद
ग्राम चपरीद पोस्ट समोदा तहसील आरंग जिला रायपुर छत्तीसगढ़
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कुण्डलियां  छंद - डॉ. मीता अग्रवाल

(1)
अनुभव होथे जी गजब, गलती करके पाय।
कतको समझा ले मगर,उमर गवा के आय।
उमर गवा के आय, तभे तो गुण ला पाथे।
देखा सीखी  सीख,मनुख हर धोखा खाथे।
करके कतको काम,सफलता होथे  सम्भव।
हार जीत के साथ, मनुख हा पाथे अनुभव ।

(2)
पानी के अति अउ कमी,हाल करय बेहाल ।
दूनो बात बिचार लव ,होवय जी के काल।
होवय जी के काल,तभो हे जीवनदायी ।
बाढ़ करय बेहाल, खेत धन तन बोहाही।
सुरता राखव बात,दूनो दसा मा हानी।
जिनगी के आधार, हवे अमरित कस पानी।।

(3)
फहरे झंडा जी हमर,हवय देश के शान।
जान अपन बाजी लगा,राखव ऐकर आन ।
राखव ऐकर आन,करव झन जी गुटबाजी ।
सब बर देश समान,बँटे झन पंडित काजी।
मन मुटाव ला छोड़, भाव हा ऊपर लहरे।
देशप्रेम के भाव ,ऊँच झंडा  बन फहरे।।

छंदकार - डाॅ मीता अग्रवाल
पुरानी बस्ती ,लोहार चौंक ,रायपुर छत्तीसगढ़
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कुण्डलिया छंद - पुरूषोत्तम ठेठवार

( १ )
घर के देवी देवता, दुख पावत हे आज ।
बेटा मजा उड़ात हे, चिटको नइ हे लाज ।।
चिटको नइ हे लाज, बाप ला आँख दिखाये ।
रोवय दाई देख, दुःख मा तन दुबराये ।।
रे परबुधिया सोच, गोठ ला माने परके ।
मति सफ्फा छरियाय, उजारे सुनता घर के ।।

( २ )
पढ़ना लिखना सीख ले, बनबे तँय हुशियार ।
पढे लिखे के जुग हरे, कलम बना हथियार ।।
कलम बना हथियार, ज्ञान ला तँय गठियाले ।
करले जग मा नाम, भाग ला अपन बनाले ।।
तँय ठलहा झन बैठ, सीख ले जिनगी गढ़ना ।
ठेठवार के बात, मान ले बढ़िया पढ़ना ।।

(३ )
घर फोरे बैरी नशा, सुनता दिये उजार ।
दुख के पाहर टूटगे, जे घर मा मतवार ।।
जे घर मा मतवार, रोज के झगरा गारी ।
लइका होय अनाथ, विपत ला सहिथे नारी ।।
धन के होथे नाश, बिमारी नँगते जोरे ।
तन होथे खोहार, नशा कतको घर फोरे ।।

छंदकार - पुरूषोत्तम ठेठवार
ग्राम - भेलवाँटिकरा, जिला - रायगढ, छत्तीसगढ
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कुण्डलिया छंद - वसन्ती वर्मा

(1) लोटा
लोटा कलसा तँय सजा,जोत दिया के बार।
पूजा के सब काज मा,लोटा हे शुभ सार।।
लोटा हे शुभ सार,कहँय गुरु संतन ज्ञानी।
पहुना जब घर आय,देंय लोटा भर पानी।।
कइसे बाँधौं डोर,मोर अँचरा हे छोटा।
पछहर-दाइज देंव,टिकत हौं कलसा लोटा।।

(2) गमछा
गमछा धर कमिया चले,खेत-खार बाजार।
गरम शरद चउमास के,गमछा ए आधार।।
गमछा ए आधार,पसीना पोंछत जाये।
नाँगर ला थिरकाय,कि बासी रोटी खाये।।
रेंगे तरिया पार,चले अब बोंये बरछा।
सुख दुख सबो म साथ,धरे हे कमिया गमछा।।

(3) पूस के जाड़
भागै कब ए रात जी,जाबो तरिया पार।
चल ना भुर्री तापबो,आगी सुघ्घर बार।।
आगी सुघ्घर बार,सेंकावे काया आँचे।
जाबो जल्दी खार,लुए बर तिंवरा बाँचे।।
ले के जँउहर जाड़,संग मा पूस अमागै।
जाय कनकनी जाड़,महीना जब ए भागै ।।

छन्दकार - वसन्ती वर्मा
बिलासपुर, छत्तीसगढ़
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कुण्डलिया छंद - कौशल कुमार

(1) मोची
मोची पाँव कटार के, पनही खूब बनाय।
करिया पालिश पोत के, रगड़ रगड़ चमकाय।
रगड़ रगड़ चमकाय, पाँव के रक्षा करही।
बिन पनही के गोड़, भोंभरा बिक्कट जरही।
लेवय सब ले दाम, सकेलय खोंची खोंची।
पालय घर परिवार, हुनर मा निसदिन मोची।।

(2) पैखाना
पैखाना घर मा बना, मुखिया कहना मान।
शासन के हे योजना, कवच सुरक्षा जान।
कवच सुरक्षा जान, नही सँचरय बीमारी।
लोटा परथा छोड़, सोंच बदलौ सँगवारी।
घर के बाढ़य शान, देख ले नवा जमाना।
देवत हे अनुदान, बना घर मा पैखाना।।

(3) सावन
सावन सरकत जात हे, जेठ बरोबर घाम।
खेत खार पानी बिना, अटके जम्मो काम।
अटके जम्मो काम, बियासी रोपा नाँगर।
तरवा धरे किसान, खेत मा ठलहा जाँगर।
कृपा करौ भगवान, मनौती तोर मनावन।
पानी बिन जग सून, झमाझम बरसौ सावन।।

छन्दकार - कौशल कुमार साहू
गांव - सुहेला (फरहदा )
जिला - बलौदाबाजार - भाटापारा (छत्तीसगढ़ )
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कुण्डलिया छंद - ईश्वर लाल साहू 'आरुग'

(1)
बोलय माटी खार के, सुन ले मोर किसान ।
तँय वंशज बलराम के, बन जा मोर मितान
बन जा मोर मितान, रसायन खेती झन कर ।
मिलय अन्न के संग, जहर कस होथे तन बर ।
खातू सोखय ओल, राज ला माटी खोलय ।
बउरव गोबर खाद, खार के माटी बोलय ।

(2)
इरखा के गरदा भरे, अन्तस् हे अँधियार ।
बाहिर दीया बार के, खोजत हे उजियार ।
खोजत हे उजियार, बता दे कइसे पाही ।
मया बिना सिरतोन, कहाँ जिनगी उजराही ।
आँखी ऊपर तोर, परे हे काबर परदा ।
अंतस ले सिरतोन, हटा इरखा के गरदा ।

(3)
धरती के सिंगार बर, लगय घरोघर पेंड़ ।
देथे लकड़ी अउ हवा, रखय बाँधके मेंड़ ।
रखय बाँध के मेंड़, रखे धरती ला हरियर ।
डारा पाना फूल, संग मा देथे जी फर ।
सुनले आरुग गोठ, परय झन भुइँया परती ।
लगाके तुमन पेंड़, बनावव हरियर धरती ।

छन्दकार - ईश्वर लाल साहू 'आरुग'
ठेलका-साजा-थानखमरिया, छत्तीसगढ़
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कुंडलिया- मनीराम साहू 'मितान'

(1)
काँटा बोबे तैं कहूँ,  मिलही काँटा जान।
लूथें अपने बोय सब,कइथें सबो सियान।
कइथें सबो सियान, बुता तैं अइसन करले।
जेमा बाढ़य मान, बाट सत सुग्घर धरले।
परहित करबे काम,स्वतः मिलही सुख बाँटा।
गड़ही अपने पाँव, कभू झन बोबे काँटा।

(2)
लोटा धर झन जाव जी, तुम बाहिर मैदान ।
जुड़ जव सब अभियान मा, रखव स्वच्छता ध्यान।
रखव स्वच्छता ध्यान, बाट झन फेंकव कचरा।
राहय झन मइलाय, मात धरती के अँचरा।
बिनती करय मितान, सोच झन राखव खोटा।
शौचालय बनवाव, जाव झन धरके लोटा।

(3)
हँउला हँड़िया टाप जी, राखव सब ला तोप।
आथे जब चउमास हा, बढ़थे रोग प्रकोप।
बढ़थे रोग प्रकोप, सताथे माछी कीरा।
कर देथे बीमार, सहे बर परथे पीरा।
खाना ताजा खाव, पियव पानी ला खउला।
राखव बरतन साफ,तोप सब हँड़िया हँउला।

छंदकार- मनीराम साहू मितान
कचलोन (सिमगा)
जिला-बलौदाबाजार-भाटापारा, छत्तीसगढ़
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कुण्डलिया छंद - श्रीमती आशा आजाद

(1)
जिनगी के दिन चार हे,हाँसत खेल गुजार।
ठेनी झगरा छोड़ दे,जिनगी अपन सुधार।।
जिनगी अपन सुधार,नेक तँय मारग चुनले।
भेदभाव ला छोड़,मया ला हिरदे रखले।।
दुख-सुख संगे बाँट,रहय झन बैरी संगी।
मिलके रहिबो साथ,होय जी सुग्घर जिनगी।।

(2)
मँय नारी अवतार हो,जग मा हे पहिचान।
सरी जगत मा मान हे,देत हवय सम्मान।।
देत हवय सम्मान,कहय जम्मो महतारी।
बेटी दाई जान,इही ले हवय चिन्हारी।।
सुख-दुख रहिथों थाम,करौ मँय सेवा भारी।
धरथों नावा जीव,दरद सहिंथों मँय नारी।।

(3)
झन काटव जी रूख रई,एहा हावय शान।
जीवन हमला देत हे,इही बचावय प्रान।।
इही बचावय प्रान,एकठन पेड़ लगावव।
जीवन एमा जान,काट झन मान घटावव।।
पउधा रोज लगाव,जरी मा पानी डालौ।
देही बढ़िया छाँव,जान के रूख झन काटव।।

छंदकार-श्रीमती आशा आजाद
पता-मानिकपुर,कोरबा,छत्तीसगढ़
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कुण्डलिया छंद - बलराम चंद्राकर

(१)
मँहगाई के मार मा, सिहरत जनता आज।
पढ़ लिख बइठे आदमी, कोनो काम न काज।।
कोनो काम न काज, बढ़त हे आबादी हा।
शासन सुनैं न बात, बिरथ हे आजादी हा?
होय कहूँ जी रोग, रोय सब बहिनी भाई।
कइसे होय इलाज, गजब अड़चन मँहगाई।।

(२)
भाई भाई फूट मा, कइसे होय निबाह।
अपन पराया भेद अउ, मन मा राहय डाह।।
मन मा राहय डाह, कहाँ तब भाईचारा।
आपस के ये बैर, दिखै जी पारा पारा ।
रिश्ता बड़ अनमोल, सम्भालौ पाटौ खाई।
रइहौ जुरमिल साथ, सरग होही जग भाई ।।

(३)
नोनी बाबू बीच मा, कोनो करौ न भेद।
अपने डोंगा मा कभू, करहू झन जी छेद ।।
करहू झन जी छेद, सबो नर नारी एके।
छोड़ौ जुन्ना बात, कतिक हम रहिबो टेके।
जतन करौ जस खेत, बरोबर होवै बोनी।
रहिहौ सदा सचेत, पढ़ै जी सुग्घर नोनी ।।

छंदकार - बलराम चंद्राकर
पता - सेक्टर - 5 भिलाई छत्तीसगढ़
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कुण्डलिया छन्द - राजकिशोर धिरही

(1)
खावय गुटका जेन हा, परथे ओ बीमार।
लटपट खावय साग ला, लागय ओला झार।।
लागय ओला झार, होय मुँह मा जी छाला।
कैंसर होवय देह, मउत के होवय पाला।
माखुर गुटका खीख, नशा जेला तो हावय।
जावय डॉक्टर मेर, खूब गुटका ला खावय।।

(2)
पढ़ लिख के मनखे सबो, कइसन नियम भाय।
बाँधय नरियर निमउ, खप्पर उपर टँगाय।।
खप्पर उपर टँगाय, माथ पथरा मा धरथे।
मनखे बर नइ मान, साँप के पूजा करथे।
कतका बगरत ज्ञान, तभो अंध भक्ति के गढ़।
मानव जानव देख, बढ़व सब कुछु ला पढ़ पढ़।।

(3)
मारय पथरा जेन हा, आतंकी के संग।
रहिथे भारत देश मा, पाकिस्तानी रंग।।
पाकिस्तानी रंग, जेन देखाथे दम ला।
दुश्मन ओही आय, धरे रहिथे जी बम ला।।
दे के खर्चा आन, हमन ला नइ तो तारय।
बैरी हावय जेन,हमर सैनिक ला मारय।।

छन्दकार -राजकिशोर धिरही
पता-तिलई, जांजगीर पूरा छत्तीसगढ़
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कुण्डलिया छंद- इंजी.गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

(1) ढेंकी,जाता,सूपा,तावा
ढेंकी कूटे धान ला,जाता दरथे दार।
सूपा हा चाउँर फुने,सुग्घर छाँट निमार।।
सुग्घर छाँट निमार,करे चाउँर ला बढ़िया।
तहाँ बनाथे भात,इहाँ जी छत्तीसगढ़िया।।
रोटी खा ले तात,इहाँ तावा मा सेंकी।
सूपा तावा शान,संग मा जाता ढेंकी।।

(2) बइला गाड़ी
गाड़ी बइला फाँद के,चलव सबो जी खेत।
करपा बाँधव धान के,बने लगा के चेत।।
बने लगा के चेत,रखव गाड़ी मा ओला।
कसके बढ़िया डोर,धान ला लावव कोला।।
रहय सदा मजबूत,सुमा के संग जुँवाड़ी।
बड़े काम के चीज,हमर जी बइला गाड़ी।।

(3) तिँवरा भाजी
तिँवरा भाजी खा बने,साफ करे जी पेट।
खाये बर येला तहूँ,झन करबे जी लेट।।
झन करबे जी लेट,टोर के ओंटी ला जी।
मिरचा चटनी संग,खूब खा ले ना भाजी।।
मिलथे कभू कभार,जुड़ाले बढ़िया जिँवरा।
शहरी भाजी छोड़,याद रइही जी तिँवरा।।

इंजी.गजानंद पात्रे "सत्यबोध"
बिलासपुर (छत्तीसगढ़)
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कुण्डलिया छंद - महेंद्र कुमार बघेल

(1)
सुम्मत समता लानथे, दियना बाती तेल।
तीनो के करनी अलग, तब ले होथे मेल।।
तब ले होथे मेल, भाव ला हम पहिचानन।
कोरा मा खेलात, दिया के तप ला जानन।।
इही त्याग ला सीख, अपन मा लानव क्षमता।
होही तभे अँजोर, रही जी सुम्मत समता।।

(2)
पानी हावय कीमती, जादा झन उरकाव।
बूँद बूँद के मोल ला, समझव अउ समझाव।।
समझव अउ समझाव, चलव सब पेड़ लगाबो।
साफ हवा अउ साँस, तभे तो सब झन पाबो।।
धरती हरियर होय, गिरे जी बरखा रानी।
देथे जीवन दान, बचा के राखव पानी।।

(3)
आहे पारी आज जी, करलव ठोस चुनाव।
पाँच साल बर फेर जी, बने असन ला लाव।।
बने असन ला लाव ,जउन सुख दुख ला जाने।
सबो हाथ बर काम,खोज के सरलग लाने।।
मन मा करव विचार, देश के सब नर नारी।
लोभ बिना मतदान, करव जी आहे पारी।।

छन्दकार- महेंद्र कुमार बघेल
डोंगरगांव ,राजनांदगांव, छत्तीसगढ़
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कुण्डलियाँ :- जगदीश "हीरा" साहू

1. देवारी
सुनता  के लेके  दिया, घर-घर  रखबो आज।
मिलजुल के सब संग मा, घर कुरिया ला साज।।
घर  कुरिया  ला साज, आज लीपव सब कोती।
लेलव   कुरता पैंट,   बबा बर सादा  धोती।।
सब  ला रख  तँय जोड़,  इही रस्ता ला चुन ता।
देवारी     उपहार , लगा   के राहव सुनता।।

2. पूजव मनखे जिन्दा
जिन्दा मा पूछय नहीँ, मरे नवावय शीश।
मंदिर मा हो आरती, बाहर हे जगदीश।।
बाहर हे जगदीश, खड़े कोनो नइ जानय।
खोजय सब भगवान,बात काबर नइ मानय।।
मनखे   सेवा सार,  मान ना हो शर्मिंदा।
जिनगी अपन सँवार, पूजले मनखे जिन्दा।।

3. शौचालय
घर  मा शौचालय बना, बढ़ही  घर के मान।
खुश  रइही बेटी  बहू, जे हे घर के  शान।।
जे हे घर के शान,  राख ले खुश तँय ओला।
सँवर जही  घर-बार, पड़य ना रोना तोला।।
कहय आज जगदीश, बना ले तँय पल भर मा।
साथ दिही सरकार, बात  रखना तँय घर मा।।

जगदीश "हीरा" साहू
कड़ार (भाटापारा) छत्तीसगढ़
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कुण्डलिया छन्द - पोखन लाल जायसवाल

(1)
खेती करथे मन लगा,खातू डार किसान।
आगू आगू काम ले,बढ़िया उपजे धान।
बढ़िया उपजे धान,छाय घर मा खुशहाली।
जतन माँगथे खेत,कहत करथे रखवाली।
दवई पानी डार,हार नइ मानै एती।
लगे रहय दिन रात,करे बर घर के खेती।

(2)
खातू पानी छीत के,खेती करै किसान।
नाँगर बइला फाँदके,उपजावय जी धान।
उपजावय जी धान,भरे बर धान कटोरा।
दुखिया देथे संग,भीड़ के अपन कछोरा।
अपन भरोसा जान,करै सब काम बरातू।
डारा पाना डार,बनावय गोबर खातू।

(3)
चोला माटी हो जही,बिरथा एला जान।
बइरी झन बन काकरो,करके गरब गुमान।
करके गरब गुमान,इहाँ कोनो का पाही।
अम्मर हावय कोन,ओसरी पारी जाही।
करले कोनो काम,जानही जग हा तोला।
अम्मर नइहे जान,एक दिन जाही चोला।

छंदकार-पोखन लाल जायसवाल
पठारीडीह( पलारी )
जिला बलौदाबाजार भाटापारा छत्तीसगढ़
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कुण्डलिया छंद - श्लेष चन्द्राकर

(1)
सुरता आथे गाँव के, बचपन जिंहाँ बिताय।
किसम-किसम के खेल मा, दिन हा उहाँ पहाय।।
दिन हा उहाँ पहाय, रेसटिप बाँटी खेलत।
अउ संझा हो जाय, दाम ला झेलत-झेलत।।
खेल कबड्डी श्लेष, खीक हो जावय कुरता।
हमर गाँव के खेल, आज भी हावय सुरता।।

(2)
आथे बचपन के अबड़, गरमी छुट्टी याद।
दिन-भर खेलन गाँव मा, घूमन गा आजाद।।
घूमन गा आजाद, करन अब्बड़ हंगामा।
संगी मन सन जान, खाय बर गरती आमा।।
गरमी के दिन श्लेष, कहाँ पहिली कस भाथे।
बचपन के बहुतेच, आज गा सुरता आथे।।

(3)
चंगा राहन गाँव मा, खेलन दिन-भर खेल।
टोरन आमा जाम ला, संगी मार गुलेल।।
संगी मार गुलेल, निशाना अबड़ लगावन।
अउ जब बखरी जान, बेंदरा घला भगावन।।
सबले जादा भाय, खेल डंडा पचरंगा।
गाँव गँवइ के खेल, रखय सबझन ला चंगा।।

छंदकार - श्लेष चन्द्राकर
पता - खैरा बाड़ा, गुड़रु पारा, महासमुन्द (छत्तीसगढ़)
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कुण्डलिया छंद-संतोष कुमार साहू

(1)
आलस बड़का रोग हे, जब्बर केंसर मान।
ये गलाय सब चीज ला, छूत बिकट हे जान।।
छूत बिकट हे जान, बहुत दुख दाता भारी।
रहना चाही दूर, जउन ला जिनगी प्यारी।
अइसन जब्बर रोग, अगर तँय कनहो पालस।
हरदम रबे गरीब, अबड़ खतरा हे आलस।।

(2)
अतका निश्चित जान तँय, अगर नशा हे संग।
बिना मौत के मान, हरे मरे के ढंग।
हरे मरे के ढंग, देह बनवाही पोला।
पावस नइ तँय पार, अचानक खाही तोला।
नशा सबो ला छोड़, हवय ये जग मा जतका।
केंसर के ये बीज, बात हावय सच अतका।।

(3)
अनपढ़ रहना ठीक नइ, पा लव पढ़ के ज्ञान।
जिनगी बने बनाय बर, एला समझव प्रान।।
एला समझव प्रान, सही गलती ला जानौ।
बिना पढ़े इंसान, हवय अधमरहा मानौ।
अनपढ़ जिनगी एक, मान लव कचरा के गढ़।
होना चाही साफ, कहूँ राहव झन अनपढ़।।

छंदकार-संतोष कुमार साहू
ग्राम-रसेला(छुरा) जिला-गरियाबंद, छत्तीसगढ़
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कुंडलियाँ छंद- दिलीप कुमार वर्मा

(1)
सागर के लहरा असन, लहरावव दिनरात।
कल-कल नदिया कस बहव, कोयल जइसन बात।
कोयल जइसन बात, गाव झरना कस गाना।  
चलव हवा के संग, करव जी आना जाना।
जिनगी हे दिन चार, जियव सब दू मन आगर।
अंतस लाव उफान,लाय जस लहरा सागर।

(2)
सुरता आवत हे बहुत, दिन गुजरे कुछ साल।
टुटहा घर कुरिया रहय, बत्तर राहय हाल।
बत्तर राहय हाल, गरीबी रहना बसना।
कोदो कुटकी खान, रहय नइ खटिया दसना।  
कपहा राहय पेंठ, चिराये राहय कुरता।  
चड्डी ना बनियान, आज सब आवय सुरता।

(3)
मानत नइ हे बात ला, बड़का भइया मोर।
दारू पीथे रोज के, अब्बड़ करथे शोर।
अब्बड़ करथे शोर, करत हे झगरा भारी।
लइका मन चिथियाय, रोत हे घर के नारी।
पढ़े लिखे हुसियार, होय नुकसानी जानत।
पर होगे लाचार, कहे ला ओ नइ मानत।

छन्दकार - दिलीप कुमार वर्मा
बलौदाबाजार, छत्तीसगढ़
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कुंडलियाँ छंद - जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"

(1)
काली के सब काम ला,आजे देवव टार।
काली काली झन रटव,आजे हावय सार।
आजे हावय सार,आज मा जीना चाही।
बीते बेर बिसार,तभे सुख के दिन  आही।
करव बने नित काम,रहव झन कभ्भू खाली।
रखव मया सत साथ ,पता का होही काली।1।

(2)
बारव जोती ज्ञान के,अन्तस् मन उजराव।
सोच सदा बढ़िया रखव,मान गउन नित पाव।
मान गउन नित पाव,करौ झन कारज गिनहा।
ये काया अनमोल,छोड़ लव एखर  चिनहा।
भरम भूत दुरिहाव,जिया के जाला झारव।
मन राखव नित साफ,द्वेष इरसा ला बारव।2।

(3)
जामे नान्हे पेड़ हे,एती वोती देख।
समय हवै बरसात के,लेवौ बने सरेख।
लेवौ बने सरेख,बगीचा बाग बनालौ।
अमली आमा जाम,लगाके मनभर खालौ।
हवा दवा फर देय,पेंड जिनगी ला थामे।
बढ़िया जघा लगाव,मरे झन पौधा जामे।3।

छन्दकार - जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा) छत्तीसगढ़
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कुण्डलिया छंद - चित्रा श्रीवास

(1)
झूमत हावय पेड़ हा, हवा संग लहराय।
करिया बादर देख के, भुइँया खुशी मनाय।।
भुइँया खुशी मनाय, आय जब बरखा रानी।
अबड़ परे हे घाम, जेठ मा तरसे प्रानी।।
बरखा पानी लाय, सबो के मन ला भावय।
अबड़ खुशी मा देख, पेड़ हा झूमत हावय।।

(2)
छानी खपरा के हवे, भिथिया माटी आय।
छितकी कुरिया मोर हे, पानी बड़ चुचवाय।।
पानी बड़ चुचवाय, रोज तो खटिया भींजय।
कटय नही अब रात, घड़ी ना आँखी मींजय।।
टप टप टपके बूँद, रात भर चूहय पानी।
आगे अब बरसात, छवाहूँ खपरा छानी।।

(3)
पानी बादर देख के,भुइँया खुशी मनाय।
टप टप टपके बूँद, सबो जीव ला भाय।।
सबो जीव ला भाय, झमाझम बरसे पानी।
जिनगी गाये गीत,आय जब बरखा रानी।।
गाँव गली मा शोर, खेत मा चलही नाँगर।
होही बाउग रोज,गिरत हे पानी बादर।।

छंदकार - चित्रा श्रीवास
एम.पी. नगर कोरबा, छत्तीसगढ़
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कुण्डलिया छन्द - चोवा राम 'बादल '

(1)
जरके मरगे होलिका, बाँचिस गा प्रहलाद।
सत्य हमेशा जीतथे ,झूठ होय बर्बाद।
झूठ होय बर्बाद ,भक्त के रक्षा होथे।
खुद काँटा गड़ जाय, जेन दूसर बर बोथे।
होली के संदेश, चलव निक रद्दा धरके ।
हिरदे भरे कुभाव, राख हो जावय जरके।।

(2)
धनहा भर्री बेंच के, लेवय मोटर कार।
कोठी हा उन्ना परे, उपराहा घर द्वार।
उपराहा घर द्वार, नशा के पालो परके ।
कतको झन मर जाय, रोज दुर्घटना करके।
देखावय बड़ शान ,अकल के अँधवा मन हा।
जिनगी अपन नसाय, बेंच के भर्री धनहा।।

(3)
गुनकारी हे खेंड़हा ,रेशा के भरमार।
दूर भगावय कब्ज ला, करै रोग उपचार।
करै रोग उपचार ,विटामिन तन हा पाथे।
खनिज तत्व प्रोटीन, सबो एमा मिल जाथे।
बारों  महीना होय , लगा लव घुरवा बारी।
सस्तीहा हे साग, फेर अब्बड़ गुनकारी।।

छंदकार--चोवा राम 'बादल '
ग्राम-उड़ेला, पोस्ट--हथबन्द, वि ख--सिमगा
जिला - बलौदा बाजार, छत्तीसगढ़ 493113
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कुण्डलिया छंद - मोहन लाल वर्मा
       
(1) जाग कमइया
जाग कमइया जाग तँय, होगे हवय बिहान ।
रात थकासी ला मिटा, कर बूता दिनमान ।।
कर बूता दिनमान, फाँद चल बइला गाड़ी ।
सुग्घर हवय मितान, तोर गा खेती बाड़ी ।।
पागा बाँधे मूँड़ ,पेरथस जाँगर भइया ।
मोहन मोर किसान, देश के जाग कमइया ।।

(2) मँहगाई-सुरसा
सुरसा कस लीलत हवय, मँहगाई मुँह फार ।
मनखें बिन मारे मरँय, देखव बीच बजार ।।
देखव बीच बजार ,भूख मा मनखें मरथें।
बाढ़त हावय लूट, छूट दे सौदा करथें ।।
कर देथे बरबाद, धान ला जइसे धुरसा ।
मोहन मोर मितान, बने महँगाई-सुरसा ।।

(3) बाँटा
बाँटा-बाँटा मा बटय, देख सबो संसार ।
छरियावत हावय घलो, बड़े-बड़े परिवार ।।
बड़े- बड़े परिवार, मगन रहि जिनगी जीयँय ।
होवय कभू तिहार, सबो रस सुनता पीयँय।।
मनखे मन जी आज, बोत हें स्वारथ काँटा ।
जिनगी जीथें फेर, अपन बर होके बाँटा ।।

छंदकार- मोहन लाल वर्मा
पता - ग्राम-अल्दा, वि.खं.-तिल्दा, जिला- रायपुर (छत्तीसगढ़)
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कुण्डलिया छंद -सरस्वती चौहान

(1)
चांदी सेना हे चढ़त, मंदिर मा भगवान।
भात भात कहि के मरे, दुनिया मा इंसान।।
दुनिया मा इंसान, कमावयँ पैसा भारी।
मंदिर मस्जिद दान, करत हें थारी थारी।।
मन हा कलपय देख, दशा ला आवय रोना।
देवव भोजन दान, छोड़ के चांदी सोना।।

(2)
मानुस तन ला पाय के, करलव अइसे काज।
करनी अपने देख के, आय कभू ना लाज।।
आय कभू ना लाज, काम जी अइसे करलव।
स्वारथ देवव त्याग, आन के खातिर मरलव।।
कह गिन राम रहीम, सुधारव जी तन मन ला।
होवव झन बदनाम, पाय के मानुष तन ला।।

(3)
दाई  मोला मार दे,तोर कोंख तयँ आप।
जीये बर डर लागथे, धरती मा हे पाप।।
धरती मा हे पाप, आज नइ बाँचय नारी।
नोनी लइका रोय,कहय अब काखर पारी।।
नइ हे कोनो राम, आय अब कहाँ कन्हाई।
होवत हे अन्याय, मार दे मोला दाई।।

छंदकार - सरस्वती चौहान
ग्राम-बरडा़ँड़, पोस्ट-नारायणपुर, तहसील-कुनकुरी
जिला-जशपुर नगर,  छत्तीसगढ़
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कुंडलिया छंद - दुर्गाशंकर इजारदार

(1)
पानी बिन जग सुन्न हे,पानी जग आधार ,
पानी बिन तो हो जही ,जग के बंटाधार ,
जग के बंटाधार , सकल प्रानी मर जाही ,
आगी बरही खार ,घटा आगी बरसाही ,
काटत हावव पेड़ ,करत हावव नादानी ,
पेड़ लगावव मेड़ ,तभे गिरही जी पानी ।।

(2)
डसगे आज समाज ला ,छुआछूत के साँप ,
हालत देख समाज के , रूँवा जाथे काँप,
रूँवा जाथे काँप ,रोग ये केंसर जानौ,
राखौ येला दूर ,बात कहना ला मानौ ,
जात पाँत के फाँस ,गला के नारा फँसगे,
करिया नागिन जान ,जेन भारत ला डसगे ।।

(3)
हावन घर मा ठाठ से , काकर सेती जान ।
सरहद मा ठाढ़े हवय , छोटे भाई मान ।
छोटे भाई मान , सहत हे गोली बारी ।
छाती गोली खाय ,करत हमरो रखवारी ।
कहना दुर्गा मान , चलव जी गुन ला गावन ।
जेकर खातिर आज , मगन जी घर मा हावन ।3।

छन्दकार - दुर्गा शंकर इजारदार
सारंगढ़ (छत्तीसगढ़)
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कुंडलिया छंद - अशोक धीवर "जलक्षत्री"

(१)
छत्तीसगढ़ी मा सबो, लिखव पढ़व भरमार।
काबर करथव लाज गा, सबझन हव हुशियार।।
सबझन हव हुशियार, छोड़ दव दूसर भाषा।
छत्तीसगढ़ी बोल, जगा दव सबके आशा।।
बनव सबो गुणवान, रहव झन अड़हा अड़ही।
राजा भाषा आय, हमर ये छत्तीसगढ़ी।।

(२)
गुरु बिन शंका नइ मिटय, गुरु बिन मिटय न भेद।
ज्ञान दीप ला बार के, अँधियारी ला खेद।।
अँधियारी ला खेद, उजाला जग मा लावव।
करम करव सब नेक, नाम पुन सबो कमावव।।
होही गुरु परताप, जगत मा बाजय डंका।
मन ले ओला मान, मिटय नइ गुरु बिन शंका।।

छंदकार - अशोक धीवर "जलक्षत्री"
छत्तीसगढ़
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कुंडलिया छंद - सुधा शर्मा

(1)
झरर झरर पानी गिरत,देखव सावन आय।
नदिया नरवा गय छलक,माटी घलव सिताय।।
माटी घलव सिताय,बीजा मन जरइ आगे।
पुरवाही  जुड़ चलत,रुखवा सबो हरियागे।।
हाँसत हवें  किसान,करहीं किसानी सुग्घर।
बरखा के बौछार, पानी गिरत झरर झरर ।।

(2)
गुरू बिन ज्ञान कहाँ मिले,भटकन सब संसार।
उमर बीत जाथे फकत,जीव परे अँधियार।।
जीव परे अँधियार,रद्दा कोन देखावय।
गुरु किरपा ह अपार, अँगरी धरे रेंगावय।
धन्य धन्य गुरु आप, संग संग रहे पल छिन।
जिनगी भरे उजास, ज्ञान कहाँ अब गुरू बिन।।

(3)
भोले के पूजा करें ,पाना बेल चढ़ाय।
होवत हे सिंगार हा,सावन महिना आय।।
सावन महिना आय,काँवरिया चले पारा।
हवें बोल बम जपत,करत हें जय जय कारा।।
भाँग धतूर चढ़ाय,भक्ति के रस है घोले।।
भज ओम नम शिवाय,रक्षा करे शिव भोले।।

छंदकार - सुधा शर्मा
ब्राह्मण पारा -राजिम, जिला-गरियाबंद, छत्तीसगढ़
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कुण्डलिया छंद - सुखदेव सिंह'अहिलेश्वर'

(1)
लइकन आधा बीच मा,देंय पढ़ाई छोड़।
ए संख्या दू चार का?होथे लाख करोड़।
होथे लाख करोड़,आँकड़ा एक बछर के।
चिंतन करव सियान,समस्या हे घर घर के।
गुरु पालक सरकार,करँय मिलके कुछ अइसन।
पढ़ लिख के पा जाँय,लक्ष्य मंजिल सब लइकन।

(2)
मनखे के गुण दोस ला,देखस नही निपोर।
रंग रूप धन जात ला,देखत रथस निटोर।
देखत रथस निटोर,पहिर पूर्वाग्रह चश्मा।
भेद भरम के भाव,समाये हे नस नस मा।
लेथस भाव बनाय,बिना गुण जाँचे परखे।
मनखेपन सद्भाव,बिसर डारे तँय मनखे।

(3)
मनखे अस ता दे सगा,मनखे के परमान।
साँचा गुरु ले सीख जा,तर्क ज्ञान विज्ञान।
तर्क ज्ञान विज्ञान,समझ ला पोठ बनाथे।
झूठ ढोंग पाखण्ड,दुवारी ले दुरिहाथे।
नारी ला दे मान,धरा बचपन ला बस्ता।
सत्य धरम पहिचान,मनुज तँय मनखे अस ता।

रचना - सुखदेव सिंह'अहिलेश्वर'
गोरखपुर कबीरधाम छत्तीसगढ़
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कुण्डलिया छंद - मिलन मलरिहा

(1)
नोनी बाबू एक हे, झिन कर संगी भेद !
मनके गलत बिचार ला, लउहा तैहा खेद !!
लउहा तैहा खेद, नवा उजियारा आही!
पढ़ही बेटी एक, दुई घर शिक्षा लाही !!
मान मिलन के गोठ, भ्रूण-हत्या कर काबू !
जावँय इसकुल संग, दुनो झिन नोनी बाबू!!
(2)
बेटी पढ़के बाँटही, गाँव गाँव मा ग्यान !
पर के धन झिन मान रे, इही देस के जान !!
इही देस के जान, बने ये पढ़ लिख जाही !
रुकही अतियाचार, कुकरमी दूर हटाही !!
कहे मलरिहा रोज, लान दे बक्सा पेटी !
अबतो जाग समाज, बनादे शिक्षित बेटी !!

(3)
बहू कहाँले लानबो, परगे  हवय अकाल ।
बेटा बेटा सब गुनय,  इही जगत के हाल ।।
इही  जगत के हाल,  कोख भितरी मरवाथे  ।
गुनले  अपन बिचार,  बेटी रोटी खवाथे  ।।
कहत मलरिहा गोठ , मति मा तोरे  बसाले ।
छोड़  दिही संसार, लानबो बहू कहाँले  ।।

छन्दकार - मिलन मलरिहा
छत्तीसगढ़