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Monday, September 30, 2019

अमृत ध्वनि छंद-दुर्गा शंकर इजारदार



अमृत ध्वनि छंद-दुर्गा शंकर इजारदार

(1) सत काम

करले तँय सत काम गा,जग मा होही नाम ,
संग करम हा जात हे ,करनी के जी काम ,
करनी के जी ,काम अमर हे ,जग मा सुनले ,
काम करे के ,पहली तँय हर ,थोकन गुनले ,
सत माटी में ,अपन करम के ,झोली भरले ,
नाम रखे बर ,अपन जगत मा,अतके करले ।।

(2)मनखे मनखे एक हे

मनखे मनखे एक हे ,एक खून के रंग ,
जात पाँत के भेद मा ,काबर करथव जंग ,
काबर करथव ,जंग सबो झन, मिलके सोंचव ,
सबो बरोबर ,सार बात हे ,कनिहा खोंचव ,
सब मनखे मा, एक जीव हे ,समझव झन खे ,
हाड़ माँस हा,घलो एक हे ,मनखे मनखे ।।

(3)मन के मैला

तन के मैला धोय तँय ,साबुन मल के जोर ,
मन के मैला देख ले ,रबड़ी माड़े तोर ,
रबड़ी माड़े ,तोर मोर के ,कपट भरे हे ,
जलन भाव मा ,करिया होके ,जरे परे हे ,
गरब भरे हे ,मन मा भारी ,करिया धन के ,
मैला धोले ,आगू मन के ,फिर धो तन के ।

छंदकार -दुर्गा शंकर इजारदार
सारंगढ़ (मौहापाली)

Saturday, September 28, 2019

अमृत ध्वनि छंद-श्री सुखदेव सिंह अहिलेश्वर

अमृत ध्वनि छंद-श्री सुखदेव सिंह अहिलेश्वर

(1)

रोवत हे माँ भारती,देख गाँव घर लोग।
लगे मनुज के माथ मा,जात-पात के रोग।
जात-पात के,रोग पछेड़े,घर अउ बन ला।
खास बड़न ला,उज्जर तन ला,अघुवा मन ला।
लोभनीति हा,जातिवाद ला,उलहोवत हे।
ये सब देखत,समय सरेखत,माँ रोवत हे।

(2)

पतरा-पोथी हा कथे,एकम लगत कुँवार।
मान-गउन ला पाय बर,पितर पधारे द्वार।
पितर पधारे,द्वार ओरिया,मा निज घर के।
भर भर थारी,बरा सुँहारी,रोज पितर के।
बने पाख भर,होम नमन कर,आरुग सथरा।
ते पाछू घर,शुद्ध उजिर कर,कहिथे पतरा।

(3)

ले पावत हँव पाव भर,मोर मयारू प्याज।
अस्सी रुपिया पर किलो,तोर भाव हे आज।
तोर भाव हे,आज बने अस,पर के घर मा।
पर बेचे हँव,चार किलो मँय,कोरी भर मा।
चार महीना,गार पसीना,उपजावत हँव।
झन आँसू धर,प्याज पाव भर,ले पावत हँव।

रचना-सुखदेव सिंह अहिलेश्वर
गोरखपुर कबीरधाम छत्तीसगढ़

Friday, September 27, 2019

अमृतध्वनि छंद-मोहन लाल वर्मा

अमृतध्वनि छंद-मोहन लाल वर्मा
     
     (1) जय हो भारत माता

भारत माता तोर बर, देहूँ  अपन परान ।
बइरी ला धुर्रा चटा, तोर बढ़ाहूँ  शान ।।
तोर बढ़ाहूँ ,शान-मान ला , सीमा  जाके ।
बइरी रण ले, भाग जही तब,आरो पाके ।।
तोर संग मा,जनम-जनम के, हावय नाता ।
करँव वंदना, जय हो जय हो,भारत माता ।।

    (2)हनुमान सुमरनी

वन्दन हावय आज गा,राम भक्त हनुमान ।
आके लउहा तँय हटा,दुख-पीरा के खान ।।
दुख-पीरा के, खान हवय गा,जिनगी मोरे ।
सजा आरती, रोज करँव मँय,सुमिरन तोरे । ।
महावीर बजरंग बली हे,अँजनी- नंदन ।
घेरी-बेरी, नाँव जपव मँय, करथँव वंदन ।।

    (3)तिरंगा अउ जवान

धरे तिरंगा हाथ मा, रेंगत हवय जवान ।
सेवा खातिर देश के, लुटा दिहीं गा जान  ।।
लुटा दिहीं गा ,जान -शान बर,करतब करहीं ।
आही संकट ,जूझ जहीं अउ,सब झन लड़हीं।।
थरथर काँपत, रइहीं बइरी, बिन ले पंगा ।
लाज बचइया, हावय आगू ,  धरे तिरंगा ।।

छंदकार- मोहन लाल वर्मा
पता- ग्राम-अल्दा,वि.खं.-तिल्दा, जिला-रायपुर (छत्तीसगढ़)

Thursday, September 26, 2019

अमृत ध्वनि छंद - मथुरा प्रसाद वर्मा



अमृत ध्वनि छंद - मथुरा प्रसाद वर्मा

नारी ममता रूप ये,  मया पिरित के खान ।
घर के सुख बर रात दिन,देथे तन मन प्रान।
देखे तन मन , प्रान लगा के, सेवा करथे।
खुद दुख सहिथे, अउ घर भर के, पीरा हरथे।
दाई-बेटी, बहिन सुवारी, अउ सँगवारी ।
अलग अलग हे, नॉव फेर हे , देवी नारी।1।

काँटा बोलय गोड़ ला, बन जा मोर मितान।
जनसेवक ला आज के, जोंक बरोबर जान।
जोंक बरोबर, जान मान ये, चुहकय सब ला।
बन के दाता, भाग्य विधाता, लूटय हम ला।
अपन स्वार्थ मा , धरम जात मा, बाँटय बाँटा।
हमर राह मा, बोंवत हे जी, सब दिन काँटा ।2।

फुलवारी मा मोंगरा , महर महर ममहाय।
परमारथ के काम हा, कभू न बिरथा जाय।
कभू न बिरथा, जाय हाय रे, बन  उपकारी।
प्यास बुझाथे, सब ला भाथे, बादर कारी।
सैनिक मरथे , तबले करथे , पहरेदारी।
तभे देश  हा, ममहावत हे, बन फुलवारी।3।

बोली बतरस घोर के, मुचुर-मुचुर मुस्काय।
मुखड़ा हे मनमोहिनी, हाँसत आवय जाय।
हाँसत आवय, जाय हाय रे, पास बलाथे।
तीर म आके,खनखन खनखन,चुरी बजाथे।
नैन मटक्का , मतवाली के, हँसी ठिठोली।
जी ललचाथे, अब गोरी के, गुरतुर बोली।4।

फागुन आगे ले सगा, गा ले तहुँ हा फाग।
बजा नँगाड़ा  खोर मा, गा ले सातो राग।
गा ले सातो , राग मचा दे, हल्ला गुल्ला ।
आज बिरज मा,राधा सँग मा,नाचय लल्ला।
अब गोरी के, कारी नैना, आरी लागे।
मया बढ़ा ले , नैन मिला ले, फागुन आगे।5।


रचनाकार - मथुरा प्रसाद वर्मा
ग्राम कोलिहा, बलौदाबाजार (छत्तीसगढ़)
8889710210

Wednesday, September 25, 2019

अमृत ध्वनि छंद - श्री कौशल कुमार साहू



अमृत ध्वनि छंद - श्री कौशल कुमार साहू

(1 ) नेता
नेता मन के हे मजा, जेकर हे सरकार।
गोल्लर कस ढिल्ला चरैं, चौपट खेती खार।।
चौपट खेती, खार देश के, कोठी उन्ना।
जनता रोवय, भूख मरे घर, कुरिया सुन्ना।
पइसा चंदा, खूब सकेले, सब गररेता।
काजू किसमिस, रोज झड़कथें, बनके नेता।।

(2) नारी
नारी घर परिवार के, करथे जम्मो काम ।
चिक्कन चाँदन घर लगे, सरग बरोबर धाम ।।
सरग बरोबर, धाम बनाथे, घर सिरजाथे ।
बन महतारी, पालन हारी, भाग जगाथे ।
फूल खिलाथे, बड़ ममहाथे, अँगना बारी ।
खूब निभाथे, जिम्मेदारी, घर मा नारी ।

(3) महतारी
महतारी के हे मया, दुनिया मा अनमोल ।
मिलै नहीं खोजे कहूँ, मीठा मीठा बोल ।।
मीठा मीठा, बोल लगे जस, गुरतुर केरा ।
खेत खार घर, बूता करथे, जम्मो बेरा ।
रोवत लइका, मुसकी मारे, अउ किलकारी।
अपने मुँह के, कौंरा बाँटय, जब महतारी ।

(4) हरि भजन
जाना हे सब छोड़ के, दुनिया ले सिरतोन।
धन दौलत जावय नहीं, ना चाँदी ना सोन।।
ना चाँदी ना, सोन खजाना, एको आना।
सबो बिराना, करम ठठाना, रोना गाना।
सुक्खा पाना, झर जर जाना, राख समाना।
हरि ला गाना, का पछताना, सब ला जाना।

छंदकार - श्री कौशल कुमार साहू
गांव :- सुहेला (फरहदा )
जिला - बलौदाबाजार - भाटापारा (छत्तीसगढ़)

Tuesday, September 24, 2019

अमृतध्वनि छंद-श्लेष चंद्राकर

अमृत ध्वनि छंद - श्री श्लेष चन्द्राकर

(1)
गावव तीज तिहार मा, छत्तीसगढ़ी गीत।
अपन राज के सब करव, परंपरा ले प्रीत।।
परंपरा ले, प्रीत करव गा, पोठ बनावव।
जम्मो मनखे, जुरमिल सुग्घर, परब मनावव।।
भूलत हावय, संस्कृति ला सब,याद दिलावव।
सुआ ददरिया, सोहर करमा, पंथी गावव।।
(2)
महँगाई हा बाढ़ गे, कमती हावय आय।
महँगा आटा दार हे, मनखे काला खाय।।
मनखे काला, खाय बिसाके, बोलो भाई।
इहाँ चलाना, जिनगी होगे, बड़ दुखदाई।।
रखव जोड़ के, कतको पइसा, पाई-पाई।
मुहुँ सुरसा कस,फार खड़े हे,अब महँगाई।।
(3)
मेला लगही आज गा, शहर-शहर अउ गाँव।
जगन्नाथ भगवान के, लेहीं सबझन नाँव।।
लेहीं सबझन, नाँव सुभदा, बलभद्दर के।
रथ देखे बर, लइका मन ला, जाहीं धर के।।
गजा मूँग के, परसादी अउ, खाहीं केला।
शहर-गाँव मा, रथयात्रा के, लगही मेला।।
(4)
रिमझिम-रिमझिम होत हे, जघा-जघा बरसात।
बादर हा गरजत हवय, का दिन अउ का रात।।
का दिन अउ का, रात गिरत हे, रझरझ पानी।
होवत हावय, राह चले मा, बड़ परसानी।।
कहाँ दिखत हे, रथिया तारा, चमकत टिमटिम।
साँझ बिहनिया, होवत हावय, बरसा रिमझिम।।
(5)
बादर हा बरसत हवय, संगी रोज अपार।
अब गा बाढ़त जात हे, नँदिया मन के धार।।
नँदिया मन के, धार अबड़ हे, बचके रइहू।
लइका मन ला, झन तउँरे बर, संगी कइहू।।
हरियर-हरियर, ओढ़त हावय, भुइँया चादर।
आसो संगी, बड़ बरसत हे, करिया बादर।।
(6)
उड़ियाथें कीरा अबड़, आथे जब बरसात।
रखहू संगी, तोप के, साग दार अउ भात।।
साग दार अउ, भात राँध के, ताजा खाहू।
बने रहू गा, साफ-सफाई, जब अपनाहू।
मच्छर माछी,किसम-किसम के,जर बगराथें।
बरसा रितु मा, कीरा मन हा, बड़ उड़ियाथें।।
(7)
भारत हा जीतत हवय, सबो खेल मा आज।
खेलकूद के क्षेत्र मा, करत हवय अब राज।।
करत हवय अब, राज खेल मा, सबो खिलाड़ी।
पकड़त हावय, आज जीत के, ओमन गाड़ी।।
हमर खिलाड़ी, सबो खेल मा, हवँय महारत।
हाकी खो-खो, असन खेल मा, आघू भारत।।

छंदकार - श्री श्लेष चन्द्राकर,
पता - खैरा बाड़ा, गुड़रु पारा, महासमुंद (छत्तीसगढ़)

Monday, September 23, 2019

अमृत ध्वनि छंद-आशा देशमुख



अमृत ध्वनि छंद-आशा देशमुख

1--जर जाये वो सोन हा, जेमा टूटे कान।
 सार बात ला जी सुनव,देके सबझन ध्यान।
देके सबझन,ध्यान बने जी,गोठ सुनव जी।
बाहिर का हे,भीतर का हे,बने गुनव जी।
राहर काड़ी,सुक्खा कचरा, बरथे भरभर।
गलत काम हा, सुघर चाम हा, सब जाथे जर।

2--पीरा हा बड़ काम के,पीरा रचथे गीत।
जे पीरा ला मान दे,वोला जानव मीत।
वोला जानव, मीत मया के,बात मान लव।
पीरा भीतर,आगी पानी ,यहू जान लव।
तन अउ मन ला ,धन अउ जन ला, चाबे कीरा।
गीत रचत हे,देह कसत हे,मन के पीरा।

3--काई का का गुण कहँव,येखर शक्ति अपार।
चिखला के का बात हे, पथरा जाथे हार।
पथरा जाथे,हार देख ले,कहँव कहानी।
गिरथे परथे ,जब पथरा मा, रोजे पानी।
मुड़ी फ़ुटत हे,गोड़ टुटत हे,बड़ दुखदाई।
गली खोर अउ ,तरिया डबरी ,जमथे काई।

4--आनी बानी हे परब ,आनी बानी गीत।
हमरो तीज तिहार के,अजब गजब हे रीत।
अजब गजब हे ,लोक परब हे,सुनव कहानी।
करू करेला,धरे मया के,मीठा बानी।
नँदिया बइला ,पोरा जाँता,दाना पानी।
करम धरम हे,नीति नियम हे, आनी बानी।

5--हरियर हरियर सब डहर, बादर वर्षा संग।
धरती अउ सब जीव के,भीगय सब्बो अंग।
भीगय सब्बो ,अंग अंग हा, जीव जगत के।
पीरा हरथे ,मन सुख भरथे, देव भगत के।
मन हे फरियर, मंदिर हे घर ,फूटे नरियर।
सबके खेती,रोटी बेटी,राहय हरियर।।


आशा देशमुख
एनटीपीसी रामगुंडम
तेलंगाना

Sunday, September 22, 2019

अमृतध्वनि छंद -- श्री दिलीप कुमार वर्मा


अमृतध्वनि छंद -- श्री दिलीप कुमार वर्मा

1
जग के पालन हार प्रभु,बिनती सुनलव आज।
बिगड़ी सबो बनाय के,पूरा करदव काज।
पूरा करदव,काज हमर ला, शरण परे हन।
फँसे हवन सब,मोह मया मा,पाप करे हन।
झूठ बोल के,लूटत हावन,सब ला ठग के।
राह बता के,सुग्घर करलव,पालन जग के।
2
ऊपर वाला जानथे, कोन करे का काम।
सब ला फल ओ देत हे,नइ देखय ओ नाम।
नइ देखय ओ,नाम काखरो, पद का हावय।
जइसे करथे,करम इहाँ ओ,फल ला पावय।  
राजा हो या,रहे भिखारी,गोरा काला।
करम मुताबिक,फल देवत हे, ऊपर वाला।  
3
रसता बने बनाय लव,दे भविष्य के ध्यान।
काली उँगली झन उठय,तभ्भे पाहू मान।
तभ्भे पाहू,मान जान लव,कहना मानव।  
रसता बिगड़े,गारी खाहू, सच ला जानव।
पुरखा मनके, गलती खातिर,होगे खसता।
भाई भाई, झगरा माते, बिगड़े रसता।
4
मर जाही ओ एक दिन,जे हर जग मा आय।
राजा चाहे रंक हो,माटी मा मिलजाय।
माटी मा मिल,जाय सबोझन,कतको करलय।
हीरा मोती,सोना चाँदी, कतको भरलय।
ये धन दौलत,महल अटारी,काय बचाही।  
काल आय ले,बाँच सके ना,सब मर जाही।
5
मन के पीरा का कहँव,नइ हे कछू उपाय।
अंतस हा रोवत रथे,काम धाम नइ भाय।
काम धाम नइ,भाय जगत के,अलकर लागे।
मन हे चंचल,रुके नही घर,अन्ते भागे।
जब ले बाई,दूर बसे हे, सुध नइ तन के।  
काय बतावँव,समझ सकत हव,पीरा मन के।
6
बचपन के संगी बता,कब तक रहिबे संग।
ऊँच नीच जब हो जही, का तँय करबे तंग।
का तँय करबे,तंग बता दे,या सँग रहिबे।
रूखा सूखा,घाम छाँव के,दुख ला सहिबे।
खेलत खावत,उमर बढ़त हे, होगे पचपन।  
समे जाय ले,सुरता आवय,दिन ओ बचपन।
7
जागत सुतबे जान ले,अड़बड़ हाबय चोर।
रतिहा चुपके आ जथे,करय नहीं ओ शोर।
करय नहीं ओ, शोर सराबा, सुनले संगी।
गली गली मा, पासत रहिथे,बड़ उतलंगी।
सुन्ना घर ला, देख खुसरथे,बनथे भागत।
चोर उच्चक्का,घूमत हाबय,रहिबे जागत।
8
करिया बादर देख के,सबके मन हरसाय।
गरज चमक पानी गिरे,झूमन नाचन भाय।
झूमन नाचन,भाय सबो ला, करके हल्ला।
येती ओती,गरुवा तक हर,भागय पल्ला।
खेत खार अउ,नदिया नरवा,भरगे तरिया।
उमड़ घुमड़ के,जब बरसावय, बादर करिया।
9
पढ़ना लिखना छोंड़ के,करत हवव का काम।
बचपन बीते हे नहीं,का पाहू तुम दाम।
का पाहू तुम,दाम बता दव,मिहनत करके।
टूट जही तन,रूठ जही मन,पीरा धरके।
अभी बहुत हे, लम्बा रसता,हाबय चढ़ना।
आके इसकुल,सीखव संगी,लिखना पढ़ना।   
10
सावन मा शिवनाथ के,दर्शन बर सब जाय।
फूल पान पानी चढ़ा,मन चाहा वर पाय।
मन चाहा वर,पाय सबोझन,झोली भरथे।
भोले बाबा,अवघट दानी,पीरा हरथे।
चले कँवरिया, बोले बमबम,बड़ मनभावन।
ठनठन घण्टा,बजे शिवाला,पूरा सावन।
11
बिन पानी मछरी मरे,तइसे होवय हाल।
दूषित होवत हे धरा,सब के आगे काल।  
सबके आगे,काल हलक मा,कुछ नइ बाँचय।
पेंड़ काट के,नदी पाट के,पाँव ल खाँचय।
खाना पानी,हवा बिना अब,का जिनगानी।
घोर प्रदूषण,सुख्खा धरती,हे बिन पानी।
12  
रोटी बर तरसत रथे,कतको इहँचे लोग।
कतको मन फेकत रथे,नइ कर पावय भोग।
नइ कर पावय,भोग अन्न के,अतका रहिथे।
कोठी कोठी,भरे खजाना,दुनिया कहिथे।
सब जनता के,हक ला लूटे,बोटी बोटी।
हीरा मोती,का ओ खाही,खावय रोटी।
13
भागय नइ ओ काम ले,तन से जे लाचार।  
मिहनत करथे रात दिन,नइ मानत हे हार।
नइ मानत हे, हार कभू ओ,सदा डटे हे।
कतको आवय, आंधी संगी, कहाँ हटे हे।   
ओ प्रहरी कस,सजग रहत हे, हरपल जागय।   
जाँगर पेरय, रोटी खातिर,ओ नइ भागय।
14
लकड़ी ले कुर्सी बने,गाड़ा तखत कपाट।
टेबल चौखट पीढ़वा,चौंकी बेलन खाट।
चौंकी बेलन,खाट बना ले,झट बन जाथे।
पुतरी पुतरा,खेल खिलौना,सब ला भाथे।  
मुड़का ढेंकी,बैट बना ले, खावत ककड़ी।
पेटी तबला,कैरम खूंटी,बनथे लकड़ी।
15
राधा रोवत हे सखी,बइठे जमुना तीर।
कान्हा आवत नइ दिखे, कतका धरही धीर।
कतका धरही,धीर धरे बर,जिगरा चाही।
कोन जानथे,नटखट बिलवा,कब तक आही।
देखत रसता,चमके लेगिस,चंदा आधा।
जमुना के तट,बइठे बइठे,रोवय राधा।
16
दारू अब तो छोंड़ दे,लावत हवय विनास।
कतको पी के मर जथे,कतको रहिथे लास।
कतको रहिथे,लास बरोबर,निच्चट मरहा।  
कतको झगरा,रहे मताये,जस बलकरहा।
घर कुरिया के,सोर कहाँ अब,करे बुधारू।  
बन के भकला,घूमत हावय,पी के दारू।
17
हरियर चारा देख के,गरुवा भागय खार।
कतको ठेला बांध लय, नइ पावत हे पार।।
नइ पावत हे, पार नदी के,चारा माढ़े।
गरुवा छेंके,लाठी धर के,राउत ठाढ़े।
गरुवा घूमे , खोर गली अउ,पारा पारा।
बीच सड़क मा,खाके बइठे,हरियर चारा।
18
चंदा मामा दूर हे,रहे चँदैनी संग।
रतिहा बेरा आय के,बने जमाथे रंग।
बने जमाथे,रंग रंग के,खेल दिखाथे।
आधा पूरा,चंदा मामा,सब ला भाथे।
लाख चँदैनी,चटके रहिथे,कामा कामा।
कभू कभू तो,तनिक दिखे ना,चंदा मामा।
19
धरती के रक्षा करे,सैनिक हे तैयार।
सीमा मा ठाढ़े हवय,कभू न मानय हार।
कभू न मानय,हार जही ओ,बैरी मन ले।
साहस भरके,सदा खड़े हे, तन मन धन ले।  
अपन देश बर, जान लुटाए,होथे भरती।  
बने बने तब,रहिथे भइया, सबके धरती।

रचना कार--दिलीप कुमार वर्मा
बलौदाबाजार छत्तीसगढ़

Tuesday, September 17, 2019

सरसी छन्द - श्री जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

जय बाबा विश्वकर्मा (सरसी छंद)

देव दनुज मानव सब पूजै,बन्दै तीनों लोक।
बबा विश्वकर्मा के गुण ला,गावै ताली ठोक।

सतयुग मा जे सरग बनाये,त्रेता लंका सोन।
पुरी द्वारिका हस्तिनापुर के,पार ग पावै कोन।

चक्र बनाये विष्णु देव के,शिव के डमरु त्रिशूल।
यमराजा के काल दंड अउ,करण कान के झूल।

इंद्र देव के बज्र बनाये,पुष्पक दिव्य विमान।
सोना चाँदी मूँगा मोती,देव लोक धन धान।

बादर पानी पवन गढ़े हे,सागर बन पाताल।
रँगे हवे रुख राई फुलवा,डारा पाना छाल।

घाम जाड़ आसाढ़ गढ़े हे,पर्वत नदी पठार।
बीज भात अउ पथरा ढेला,दिये बने आकार।

दिन के गढ़े अँजोरी ला वो,अउ रतिहा अँधियार।
बबा विश्वकर्मा जी सबके,पहिली सिरजनकार।

सबले बड़का कारीगर के,हवै जंयती आज।
अंतस मा बइठार लेव जी,होय सुफल सब काज।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)
भगवान विश्वकर्मा सबके आस पुरावै

Saturday, September 14, 2019

विश्व हिंदी दिवस विशेषांक


देवनागरी लिपि ला दीमक, बनके ठोलत हे।

अंग्रेजी हा आज इहाँ बड़, सर चढ़ बोलत हे।।


अलंकार रस हे समास अउ, छंद अलंकृत हे।

हिंदी भाषा सबले सुग्घर, जननी संस्कृत हे।।


अपन देश अउ गाँव शहर मा, होगे आज सगा।

दूसर ला का कहि जब अपने, देवत आज दगा।।


सुरुज किरण कस चम चम चमकय, अब पहिचान मिले।

जस बगरै दुनिया मा अड़बड़, अउ सम्मान मिले।।


पढ़व लिखव हिंदी सँगवारी, आगू तब बढ़ही।

काम काज के भाषा होही, रद्दा नव गढ़ही।।


ज्ञानुदास मानिकपुरी

चंदेनी- कवर्धा

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐


घनाक्षरी-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

             1

कहिनी कविता बसे,कृष्ण राम सीता बसे,

हिंदी भाषा जिया के जी,सबले निकट हे।

साकेत के सर्ग म जी,छंद गीत तर्ज म जी,

महाकाव्य खण्डकाय,हिंदी मा बिकट हे।

प्रेम पंत अउ निराला,रश्मिरथी मधुशाला,

उपन्यास एकांकी के,कथा अविकट हे।

साहित्य समृद्ध हवै,भाषा खूब सिद्ध हवै,

भारत भ्रमण बर,हिंदी हा टिकट हे।1।।।

               2

नस नस मा घुरे हे, दया मया हा बुड़े हे,

आन बान शान हरे,भाषा मोर देस के।

माटी के महक धरे,झर झर झर झरे,

सबे के जिया मा बसे,भेद नहीं भेस के।

भारतेंदु के ये भाषा,सबके बने हे आशा,

चमके सूरज कस,दुख पीरा लेस के।

सबो चीज मा आगर,गागर म ये सागर,

भारत के भाग हरे,हिंदी घोड़ा रेस के।2।

                3

सबे कोती चले हिंदी,घरो घर पले हिंदी।

गीत अउ कहानी हरे, थेभा ये जुबान के।।

समुंद के पानी सहीं, बहे गंगा रानी सहीं।

पर्वत पठार सहीं, ठाढ़े सीना तान के।।

ज्ञान ध्यान मान भरे,दुख दुखिया के हरे।

निकले आशीष बन,मुख ले सियान के।।

नेकी धर्मी गुणी धीर,भक्त देव सुर वीर।

बहे मुख ले सबे के,हिंदी हिन्दुस्तान के।3।


छंदकार-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को(कोरबा)छत्तीसगढ़


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ताटंक छंद - रामकली कारे

हमर राष्ट्र के हिन्दी भाखा , अड़बड़ ज्ञान माता हा माटी मा , सुग्घर रतन धरे हे जी ।।

बावन अक्षर तेरह स्वर हा ,राग ताल बन जाथे जी ।
सुर लय साज जभे मिलथे तब ,सरगम बने कहाथे जी।।

शब्द शब्द मा भरे हवय जी , गुरतुर रस हिन्दी बोली ।
सखी सहेली लागे जइसन ,प्यारी प्यारी ले भोली ।।

छंद सोरठा कविता दोहा ,गीत गजल अउ चौपाई ।
हमर राष्ट्र के निज गौरव हे ,सुग्घर कहिनी गा भाई ।।

उगती बुड़ती बगरे हाबय ,भारत भर हिन्दी भाखा ।
सबले बढ़िया लागत हाबय , बोले बर नइ हे लाखा ।।

पूरब पश्चिम उत्तर दक्षिण ,हिन्दी जा मिल जाथे जी ।
गाँव शहर के लोगन मन , हिन्दी ला पतियाथे जी ।।

एक रूप हे एकमई हे ,सरल सहज हे बोली हा।
सबो राज के घर अँगना मा , सुघर दिखे रंगोली हा।।

मलयाली गुजराती गोड़ी , छत्तीसगढ़ी भासा हे ।
हलबी भतरी सरगुजिया ला,जोड़त हिन्दी आसा हे ।

छंदकार -
रामकली कारे बालको नगर
कोरबा छत्तीसगढ़
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आशा देशमुख: बरवै छंद

सब भाषा के रानी ,हिंदी आय।
जिंखर माथा सुघ्घर ,बिंदी भाय।1

संस्कृत कन्या हिंदी,जेखर मान।
करत हवय सब दुनिया,बड़ गुणगान।2

गद्य पद्य कहिनी अउ,कविता छंद।
पढ़के सुनके आथे ,बड़ आनन्द।3

निशदिन ज्ञानी पंडित,माथ नवाँय।
किसम किसम के रचना,सब सिरजॉय।4

जब हिंदी के बोहत,हे रसधार।
शब्द शब्द मा सागर ,भरे अपार।5

हिंदी रानी बइठे ,जब दरबार।
अलंकार यति गति के ,हे सिंगार।6

कतका तोरे महिमा ,करँव बखान।
सबो डहर हे हिंदी,तोरे शान।7।


आशा देशमुख
एनटीपीसी रामगुंडम
तेलंगाना
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चौपाई छंद - बोधन राम निषादराज

सुग्घर भाखा हावय हिंदी।
भारत माता के ये बिंदी।।
गुरतुर एखर हावय बानी।
ऋषि मुनि बोलत हे बड़ ज्ञानी।।

एखर गुन महिमा सब गावव।
अपन अपन सन्देश सुनावव।।
आवव भइया जुरमिल बोलव।
भाखा मा अमरित ला घोलव।।

मनुहारी भाखा ये आवय।
बोली मा गदगद हो जावय।।
हिंदी तो सबके महतारी।
जिनगी के हावय सँगवारी।।

जम्मों राज देश मा बोलय।
जगह-जगह मधुरस कस घोलय।।
आवव सब सम्मान करौ गा।
हिंदी माता गान करौ गा।।

छंदकार - बोधन राम निषादराज
सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम
(छत्तीसगढ़)
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 मीता अग्रवाल: कज्जल छंद

हिन्दी भाखा करो मान,
भारत माँ  के आन बान।
सात समुन्दर पार जान,
भाखा हिन्दी हे महान।।

बोली बाईस हे जान,
ईखर ले हवय पहिचान,
उप बोली ले मान दान,
हिन्दी  फूले फरय मान।।

 भाखा माआगू ग आज,
पहिरे जी हवय सरताज ,
कार्यालय के होय काज,
विश्व पटल मा करें राज।।

डाॅ मीता अग्रवाल
रायपुर छत्तीसगढ़
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कुंडलियाँ छंद - श्लेष चन्द्राकर

हिन्दी भारत देश के, भाखा हरय महान।
गोठ-बात येमा करवँ, देवव गा सम्मान।।
देवव गा सम्मान, बढ़ावव आघू येला।
ओला बने सिखाव, जेन नइ जानय तेला।।
भारत माँ के मान, हरय माथा के बिन्दी।
येला सब अपनाव, बने भाखा हे हिन्दी।।

छंदकार - श्लेष चन्द्राकर,
पता - खैरा बाड़ा, गुड़रु पारा, वार्ड नं. 27,
महासमुन्द (छत्तीसगढ़)
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दोहा छंद-संतोष कुमार साहू

हिन्दी भाषा ये हरे,हमर सबो के खास।
लिखे पढ़े बर पूर्ण ये,सबके करथे आस।।

हरे राष्ट्र भाषा हमर,सबके इही जबान।
सहज सरल सुग्घर हवय,हमर इही हे शान।।

हिन्दी भाषा मान तँय,अड़बड़ देवय ज्ञान।
सबो ग्रंथ ला पा जबे,सुग्घर वेद पुरान।।

हिन्दी हिन्दूस्तान के,जब्बर भाषा मान।
अउ भाषा पिल्ला हरे,मई इही ला जान।।

सुन्दर गा ले गीत ला,हिन्दी बने सुहाय।
कतको भाषा बीच मा,सबके मन ला भाय।।

हिन्दी बोलव अउ सुनव,एला दव सम्मान।
माता भाषा ये हरे,इही हमर पहचान।।

हिन्दी के वक्ता बनव,बोलव अपने बात।
सुग्घर लेखक कवि बनव,अपन विचार बतात।।

हिन्दू मुस्लिम सिक्ख अउ,ईसाई के बोल।
सबो जाति अउ धर्म बर,हिन्दी हे अनमोल।।

छंदकार-संतोष कुमार साहू
ग्राम-रसेला(छुरा)
जिला-गरियाबंद, छत्तीसगढ़
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 कुंडलियां छंद -द्वारिका प्रसाद लहरे

हिंदी भाषा देश के,जानैं सकल जहान।
रग रग मा हिंदी बसै,हिंदी ले पहिचान।
हिंदी ले पहिचान,हमर भारत माता के।
देवनागरी मान,व्याकरण उद्गाता के।
भारत के ये मान,माथ मा जइसे बिंदी।
हमर देश के शान,हमर ये भाषा हिंदी।।

छंदकार-द्वारिका प्रसाद लहरे
बायपास रोड़ कवर्धा
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दोहा -छंद -सुधा शर्मा

देख मनावत हे सबो,हिंदी दिवस आज।
रहिथे उछाह एक दिन  ,भूले सब देश राज।।

भाव भाव के लहरिया,हिंदी हे पतवार।
भूलव झन ये गोठ ला,भाखा तारन हार।।

अंतस उमड़े भाव जब,बने इही आधार।
आखर आखर बाँधके,फूटे सब उदगार।।

जम्मो भाखा मा हवे,हिंदी ह मूड़ ताज।
सीखत बिदेस मा घलो,हिंदी के सब राज़।।

अ से सीखव अनार गा,वर्ण वर्ण समझाय।
भाखा के सब ककहरा,हिंदी हमला सिखाय।।

सिरजन करता के हवे,हिंदी भावाधार।
कलम रथी बनके चले,रचना के संसार।।

हमर देस के सान हे,लगे माथा चंदन।
वाणी के वरदान हे,करव एकर वंदन।।

हिंदी भाखा कोठरी,हवे  शब्द भंडार।
छंद रस अलंकार के,नवा नवा सिंगार।।

बाठ हवे ग बियाकरण,रीत नीत ल बताय।
एकर रद्दा रेंग के,भाखा हर भोगाय।।

परदेशी भाखा पढ़ें,मनखे बड़ इतराय।
देवता हावे घर मा,तीरथ घूमें जाय।।


हमर हरय गा अस्मिता,हावे संस्कृति धार।
झन ग बिगाड़ौ  रूप ला,बनव सबो रखवार।।

सुधा शर्मा
राजिम छत्तीसगढ़

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कज्जल छंद -सुधा शर्मा

हिंदी भाखा मीठ आय
कोनो दूसर  नई   भाय
अंतस के गा हवे राग
सतरंगी जस हवे फाग

हिंदी भाखा बड़ अमोल
बावन आखर हवे तोल
शब्द शब्द ग वाणी बोल
हिरदे के सब भाव खोल

हिन्दी ध्वजा फहरे रोज
कोन्हा कोन्हा खोज खोज
भारत के हवे पहिचान
हमर आन बान अउ शान

आखर आखर ग विज्ञान
शब्द शब्द में भरे ज्ञान
रमायन उपनिषद बखान
सिरजे सब साहित महान                   

गद्य पद्य सजे  रंगीन
राग हावे  गुरतुर बीन
जनउला हाना अउ गीत
जोरे देश बिदेस मीत

सुधा शर्मा
 राजिम छत्तीसगढ़
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 दोहा छंद - श्लेष चन्द्राकर

हिन्दी भाखा मा करवँ, गुरतुर-गुरतुर गोठ।
हमर राष्ट्रभाखा बने, जग मा सबले पोठ।।

हिन्दी मा सबके बनयँ, पकड़ इहाँ मजबूत।
चढ़गे हवय उतार दौ, अँगरेजी के भूत।।

वैज्ञानिक भाखा हरय, हिन्दी जानव एक।
आखर आखर मा इखँर, गुण हे भरे कतेक।।

हमर आन अउ बान हे, हिन्दी भाखा श्लेष।
मनखे मन हा देश के, रकथें मया विशेष।।

रोवत हे पहिचान बर, हिन्दी भाखा आज।
हरे चिन्हारी देश के, रखव इखँर गा लाज।।

छंदकार - श्लेष चन्द्राकर,
पता - खैरा बाड़ा, गुड़रु पारा, वार्ड नं. 27,
महासमुन्द (छत्तीसगढ़)

Tuesday, September 10, 2019

आल्हा छंद-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"



आल्हा छंद-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

जय गजानन महाराज(गीत)

मुस्कावै गजराज गजानन,मुचुर मुचुर मुसवा के संग।
गली गली घर खोर म बइठे,घोरय दया मया के रंग।

तोरन ताव तने सब तीरन,चारो कोती होवै शोर।
हूम धूप के धुँवा उड़ावै,बगरै सब्बो खूँट अँजोर।
लइका लोग सियान जमे के,मन मा छाये हवै उमंग।
मुस्कावै गजराज गजानन, मचुर मुचुर मुसवा के संग।

संझा बिहना होय आरती,चढ़े रोज लड्डू के भोग।
करै कृपा देवाधी देवा,भागे दुख विपदा जर रोग।
चार हाथ मा शोभा पावै,बड़े पेट मुख हाथी अंग।
मुस्कावै गजराज गजानन,मुचुर मुचुर मुसवा के संग।

होवै जग मा पहिली पूजा,सबले बड़े कहावै देव।
ज्ञान बुद्धि बल धन के दाता,सिरजावै जिनगी के नेव।
भगतन मन ला पार लगावै,दुष्टन मन करे ग तंग।
मुस्कावै गजराज गजानन,मुचुर मुचुर मुसवा के संग।

छंदकार-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को,कोरबा(छत्तीसगढ़)

Saturday, September 7, 2019

जलहरण घनाक्षरी - अरुण कुमार निगम







"चंद्रयान - 2 अभियान"

"चंद्रयान - दू" मितान ! फेल नइ अभियान
मामी तिजहारिन ला, ममा गिस लाने बर।
जा के ससुरार पारा, ममा बपुरा बिचारा
सारा-सारी के अरज, पड़ गिस माने बर।
सास बनाए सोंहारी, तसमई राँधे सारी
ठेठरी-खुरमी मामी, भिड़ गिन छाने बर।
इही पाय के विक्रम, भाँचा ह भटक गिस
फेर जाही ममा घर, तिरंगा ला ताने बर।।

- अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर, दुर्ग, छत्तीसगढ़