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Wednesday, October 30, 2019

छप्पय छंद-श्रीसुखदेव सिंह'अहिलेश्वर'



छप्पय  छंद-श्रीसुखदेव सिंह'अहिलेश्वर'

प्रणम्य गुरुवर

अरुण निगम हे नाँव,मोर प्रणम्य गुरुवर के।
नस नस मा साहित्य,मिले पुरखा ले घर के।
पेंड़ बरोबर भाव,कृपाफल सब ला मिलथे।
पाथें जे सानिध्य,उँखर जिनगी मन खिलथे।
छत्तीसगढ़ी छंद बर,बनगे बरगद कस तना।
गुरु के कृपा प्रसाद ले,होत छंद के साधना।

जल संरक्षण

बोरिंग हो गय बंद,बूँद भर जल नइ आवय।
अब मनखे नलकूप,खना के प्यास बुतावय।
चार पाँच सौ फीट,धड़ाधड़ पम्प उतरगे।
संकट हर दू चार कदम दुरिहागे टरगे।
जल संरक्षण के पवित,कारज कोन सिधोय जी।
हिजगा-पारी देख के,कलम धरे कवि रोय जी।

ममता

माँ के मया दुलार,खाद माटी अउ पानी।
असतित पावय जीव,फरै फूलै जिनगानी।
ठुमुक उचावय पाँव,धरे अँगरी माई के।
बचपन फोरे कण्ठ,पाय ममता दाई के।
मातु असीस प्रभाव हे,बैतरणी के पार जी।
महतारी ममता बिना,सुना सुना संसार जी।

झन जा दाई

घाम छाँव बरसात,अभी मै जाने नइ हँव।
जिनगानी के रंग,कतिक पहिचाने नइ हँव।
अतका जल्दी हाँथ,छोड़ के झन जा दाई।
घर बन जिनगी मोर,मात जाही करलाई।
कहि देबे भगवान ला,तोर बने पहिचान हे।
नइ आवँव बैकुंठ मँय,पूत अभी नादान हे।

नव पीढ़ी के हाथ मा

मोला नइ तो भाय,काखरो गोठ उखेनी।
जेखर कारण देश राज मा झगरा ठेनी।
बुता काम ला छोड़,भटकथे माथा जाँगर।
दया मया विश्वास नाश कर दे थे पाँघर।
घर परिवार समाज ला,रद्दा नेक दिखाव जी।
नव पीढ़ी के हाथ मा,संविधान पकड़ाव जी।

रचना-सुखदेव सिंह'अहिलेश्वर'
गोरखपुर कबीरधाम छत्तीसगढ़

Tuesday, October 29, 2019

छप्पय छन्द - नीलम जायसवाल


छप्पय छन्द - नीलम जायसवाल

(1) बड़े के आदर

कर गुरु ला परनाम, चरन मा शीश ल धर ले।
दाई-ददा ल पूज, अपन तँय नाम ल कर ले।।
अपने ले बड़ जेन, सभे ला आदर देबे।
मन ले दीही रोज, सुघर तँय आशिष लेबे।।
बड़का के आशीष ले, जिनगी अपन सुधार ले।
जग मा तँय हा नाम कर, अउ परलोक सँवार ले।।

(2) कन्या भ्रूण हत्या

बेटी जग मा लान, जनम धर तँय दे आवन।
झन कर ओखर नाश,कोख ला करथे पावन।।
भ्रूण मार के पाप, कमाबे तँय का पाबे।
पछताबे दिन-रात, नरक मा तँय हा जाबे।।
बेटी नइ हे भार जी, तइहा के ये बात हे।
बेटी-बेटा एक हे आज अलग हालत हे।।

(3) शहरी जिनगी

शहरी जिनगी काय, नमक के कोनो टीला।
चढ़ के बइठे लोग, फेर झन होवय गीला।।
फैक्ट्री मन ले रोज, जहर घुर साँस म जावय।
परदूषन के बोझ, दबे जिनगी हा हावय।।
पानी त नइ साफ हे, कचरा के अम्बार हे।
आनी-बानी के खवइ, बीमारी भरमार हे।।

(4) गँवई जिनगी

सरलग जिनगी गाँव, लोग हें आरुग सिधवा।
गरुवा घूमय खार, देख लव घुघवा-गिधवा।।
हरियर-हरियर खेत, फरत हे पेड़ म अमरित।
कोनो हो त्योहार, बनाथे हिरदय पबरित।।
अउ चारो मूड़ा शान्ति हे, चिटिक नहीं हल्ला हवय।
हाँ सुग्घर निरमल साँस हे, बहत हवा खुल्ला हवय।।

(5) फागुन

फागुन महिना आय, बजत हे ढोल नगाड़ा।
सबला देवँव आज, बधाई गाड़ा-गाड़ा।।
मैत्री के संदेश, देत हे देखव होली।
बैर-कपट ला बार, होलिका मा हमजोली।।
अउ मस्तक टीका ला लगा, गला लगा के मान दे।
कर अब ले पक्का दोस्ती, जुन्ना गोठ ल जान दे।।

(6) होरी

होरी के त्योहार, नगाड़ा ढम-ढम बाजे।
अलकरहा सन भेस, सबे लइका मन साजे।।
कोनो पहिरय टोप, मुखौटा कोनो लावै।
कोनो नकली केश, लगा साधू बन जावै।।
घोरे हे रँग लाल ला, सब रँग धरे गुलाल जी।
सब ला रँग ले दे भिँजो, मच गे हवय बवाल जी।।

छन्दकार - श्रीमती नीलम जायसवाल
पता - भिलाई, दुर्ग,छत्तीसगढ़।

Monday, October 28, 2019

छप्पय छंद - विरेन्द्र कुमार साहू

छप्पय छंद - विरेन्द्र कुमार साहू

सौंहत के भगवान , ददा दाई ला जानौ।
सेवौ साँझ बिहान , बात अउ उनखर मानौ।
देथे जीवन दान , पियाके दूध ल दाई।
पालन करके बाप , हरे जम्मों करलाई।
मिलथे मनवा मान ले , सेवा के परिणाम हा।
मातु पिता आशीष ले , बनथे बिगड़े काम हा।१।

चलो लगाबो पेड़ , राज ला हरियर करबो।
सुग्घर सुखद भविष्य , चमाचम उज्जर करबो।
खेत खार के मेड़ , बाँध अउ ताल तलैया।
औषधि अउ फलदार , लगाबो पेड़ ल भैया।
बन जाही जब रूख तब,देही फल अउ छाँव गा।
रही राज खुशहाल अउ,हरियर दिखही गाँव गा।२।

पर्यावरण बँचाव , पेड़ पौधा ला रोपौ।
हरियर कलगी खास , धरा के मूड़ म खोपौ।
दुनिया के सब जीव , रहय जी सुख से घर मा।
छूटे झन आवास , बिनाशी ठौर शहर मा।
धरती के सिंगार अउ , करौ थोर उपकार जी।
सुख खातिर सब जीव के,हरियर रख संसार जी।३।

काँटा-खूँटी बीन , लेस सब झिटका कचरा।
खेत-खार चतवार , बना ले सुग्घर पसरा।
आगे बतर किसान , पोंछ आँखी के चिपरा।
मेड़  मुँही ला बाँध , जाँच ले डबरा डिपरा।
गोबर खातू डार के , माटी के उपचार कर।
जैविक खेती मा फसल ,उत्पादन भरमार कर।४।

झिल्ली हाबे श्राप , धरा ला करथे बंजर।
दानव एला जान , धरे जस धरहा खंजर।
खा डारे कहुँ गाय , रोग हो जावै भारी।
मरे बिना अपराध , छोड़ के पिला बिचारी।
घातक झिल्ली जीव बर , बैरी येहर प्रान के।
बंद करौ उपयोग ला,खतरनाक बड़ मान के।५।

अबड़ अकन हे धान  , सारथी साम्भा सरना।
निज पसंद अनुसार , खेत मा बोंवइ करना।
नंगत पैदावार , अगर लेना हे भाई।
करौ बीज उपचार , डार के उचित दवाई।
पोषण खातिर खातू दवा,समय-समय मा देव जी।
बों के उपचारित  बीजहा , उत्पादन  बड़ लेव जी।६।

रचना विरेन्द्र कुमार साहू ,
बोड़राबाँधा(राजिम)

रूपमाला छंद - श्री सुखदेव सिंह''अहिलेश्वर''


रूपमाला छंद - श्री सुखदेव सिंह''अहिलेश्वर''

एक दीया बार

नइ रहिस हे पाप कोनो नइ रहिस हे श्राप।
पर रहिस आजा बबा सिरतो अँगूठा छाप।
तोर गुरु-आशीष अक्षर-ज्ञान के उपहार।
पाठशाला म घलो तँय एक दीया बार।

आज सुख मा हे ग भैया तोर घर परिवार।
मान धन हे पद प्रतिष्ठा हे खुशी उजियार।
आज हे जनतंत्र अवसर एक सम अधिकार।
देश के कानून बर तँय एक दीया बार।

भेद भ्रम के जंक जाला छाय होही झार।
साल भर अच्छा बुरा का कर्म हे निरवार?
मन बचन हे कर्म आदत आचरण व्यवहार।
तोर मन अंतस घलो मा एक दीया बार।

मौसमी फल साग-भाजी दाल-रोटी भात।
खात हस तँय पेट भर के रोज ताते-तात।
पालथे सगरो जगत ला खेत पालनहार।
चल सखा खेती घलो बर एक दीया बार।

रोज जग के जीव नेमत देत हे परकाश।
एक दिन अड़चन घलो मा लै नही अवकाश।
भेद भ्रम "मँय" "मोर" नइहे देख ले संसार।
सीख देवइया सुरुज बर एक दीया बार।

मेहनत मा थक जथे जब मूड़ माथा पाँव।
देत हे आराम खातिर ठाँव छानी छाँव।
जे पता मा तोर वोटर कार्ड अउ आधार।
द्वार मा कुरिया घलो के एक दीया बार।

तोर भर बर घोर देइस जेन हा अँधियार।
दुख धराइस जेन तोला छीन के अधिकार।
ओ परानी के चतुर्री जान चिन्ह धिक्कार।
आखरी मा ओखरो बर एक दीया बार।

 छन्दकार - श्री सुखदेव सिंह'अहिलेश्वर'
               ग्राम - गोरखपुर, जिला - कबीरधाम, छत्तीसगढ़

Saturday, October 26, 2019

छप्पय छन्द- उमाकान्त टैगोर

छप्पय छन्द- उमाकान्त टैगोर

(1)
पइसा होगे आज, नता गोता ले भारी।
नइ पहिचानय रोग, सेठ अउ कोन भिखारी।।
जाथे जेकर हाथ, उड़ाथे बिन डेना के।
जों धधकत गुँगुवाय, गोरसी बिन छेना के।।
बेटा मारय बाप ला,पइसा लेवय जान जी।
बिन पइसा के आज तो, फाँसी होय किसान जी।।

(2)
मन मा राखय बात, खात कौंरा उगलावय ।
धर-धर रोवय बाप, हदर के रोवय गावय।।
थक गे जाँगर आज, कोन एकर सुध लेवय।
बेटा मारय लात, बहुरिया गारी देवय।।
अइसन बेटा बाप के, बैरी होथे जान के।
अउ कछु के ना काम के, थू हे अइसन ज्ञान के।।

(3)
जारे बेटा आज, पउल के गर्दन  लाबे।
कहलाबे तँय वीर, मारबे या मर जाबे।।
दाई आवँव तोर, कहत हँव हाँसत तोला।
रक्षा करबे देश , गरब होही बड़ मोला।।
बैरी के छाती चीर दे, अंतस मा हुंकार भर।
झंडा तँय धर ले हाथ मा, जोर लगा जयकार कर।।

(4)
भुगते परही पोठ, रही गा बड़ करलाई।
सुनलव मोरो गोठ, छोड़दव पेड़ कटाई।।
जोरत हाबँव हाथ, गोहरावत हँव संगी।
सुनव टेर के कान, बाद मा होही तंगी।।
पीढ़ी हमर बचाय बर, करलव अतका ध्यान जी।
पेड़ रही ता प्राण जी, कहिथे सबो सियान जी।।

(5)
मीठा बानी बोल, लगय ना पइसा कौड़ी।
जिनगी के दिन चार, हबय जी भागा दौड़ी।।
कर ले अइसे काम, नाम जग मा हो जावय।
सुग्घर लिख ले गीत, जेन हा मन ला भावय।।
जे दिन आँखी मूँदबे,ओ दिन सब झिन रोय जी।
सुरता करके रात दिन, ना जागय ना सोय जी ।।

(6)
पढ़बे लिखबे रोज, तभे तो अफसर बनबे।
नइतो मलबे हाथ, रात दिन ढ़ेला खनबे।।
लपर-झपर ला छोड़, समय हर निकलत जावय।
नइ आवय जी फेर, दिनों दिन रोज सिरावय।।
फेर कहत हँव मान जी, हो जा बने सुजान जी।
अमरिसियाही टार गा, भुर्री एकर बार गा।।

(7)
जादू  पोठ  चलाय,  तोर आँखी  के कजरा।
अइसे लागय देख, लजावय करिया बदरा।।
अउ नथनी हा तोर, मयारू अइसे चमकय।
जइसे होत बिहान, सुरुज रग रग ले दमकय।
अब ये हिरदे हा तोर वो, गाथे गाना रोज वो।
नइ दिखस थोरको तँय कभू, मन बइहाथे खोज ओ।।

(8)
तोर बिना हे कोन, आज मँय खोजव काला।
जपत हवँव मँय रोज, नाव के तोरे माला।।
बगरे जिनगी मोर, कोड़हा कनकी जइसे।
फँसे हवँव मझधार, पार मँय जावँव कइसे।।
कर दे बेड़ा पार आ, दुख ला मोरे टार दे।
हे प्रभु मँय विनती करँव,आ के  मोला तार दे।।


छन्दकार- उमाकान्त टैगोर
कन्हाईबन्द, जाँजगीर, छत्तीसगढ़

Friday, October 25, 2019

छप्पय छंद- इंजी.गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

छप्पय छंद- इंजी.गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

(1) फूल सुमत के-

कोंन ख़िलावय फूल,सुमत के अँगना महकय।
गाँव गली अउ खोर,मया के पंछी चहकय।।
समता के नव भोर,बढ़ावय भाईचारा।
पुन्नी कस हर रात,मिटावय जग अँधियारा।।
ढूँढ़ आदमी नेक जी,द्वेष भाव ला फेंक जी।
लोभ मोह के सामने,झन माथा ला टेक जी।।

(2) मीठा बानी बोल जी-

राजा हो या रंक,सबो ला जाना परही।
हाय हाय कर जोर,चीज के झन तँय खरही।।
आये खाली हाथ,चले जाना हे सुन्ना।
झाँक अपन मन द्वार,लगे हे भारी घुन्ना।।
जग माया बाजार हे,सोंच समझ कर मोल जी।
जी ले जग मा प्रेम से,मीठा बानी बोल जी।।

(3) अंधभक्ति-

अंधभक्ति के राग,सुनावत चारो कोती।
पथरा बने महान,ददा तरसत हे ओती।।
दाई परे बिरान,देख लौ भूखा प्यासा।
अंधभक्त औलाद,फिरे रख पथरा आशा।।
राग अलापे छोड़ दौ,आँख मूँद नादान रे।
घट भीतर मा खोज लौ,असली जग भगवान रे।।

(4) करँव मँय काकर बिनती-

माथ नवाँ कर जोर,करँव मँय काकर बिनती।
देव बसे हें लाख,करँव मँय कइसे गिनती।।
काकर थामव हाथ,छोड़ दँव मँय हा काला।
बड़ा हवय भ्रमजाल,कहाँ हे गड़बड़ झाला।।
एक सधे तो सब सधे,छोड़व पूजा लाख ला।
अंधभक्ति के फेर मा,झन खोवव सच साख ला।।

(5) धर्म हे बारुद गोला-

सुन कलजुग के बात,बतावत हँव मँय तोला।
थाम हाथ विज्ञान,धर्म हे बारुद गोला।।
धर्म लड़ावत आज,सुनव आपस मा भाई।
मुस्लिम सिख अउ हिन्द,लड़ावत हे ईसाई।।
मानवता ला मान लौ,सब ले बड़का धर्म जी।
सत्य अहिंसा अउ दया,हो मानुष के कर्म जी।।

इंजी.गजानंद पात्रे "सत्यबोध"
बिलासपुर,जिला- बिलासपुर (छ.ग.)

Thursday, October 24, 2019

छप्पय छंद- मीता अग्रवाल

छप्पय छंद- मीता अग्रवाल


(1)नशा

नशा करय दिन रात, देह के नास करावय ।
जेघर अइसन जान ,वंस के नाव डुबावय ।
नसा जीव के काल,जीव ला घुन कस खाथे।
करथे मति के नास,बात संसार  बताथे।
ध्यान देय के सुनव जी,नसा मौत के द्वार हे।
कतको पीरा होय जी, झन परबे बड काल हे  ।

(2)योग

योग करें  भिनसार, निरोगी रहिथे  काया।
पोठ बनय जी देह, रहव जी ऐकर    छाया।।
जिनगी के दिन चार, सोच के चलहू बढ़िया ।
खुडुवा खो खो खेल ,खेलथे छत्तीसगढ़िया।
खेल खेल मा सीखथे,मनखे कतको  काम जी।
योग भगाथे रोग ला,देह मिलय आराम  जी।

(3) खेती किसानी

हरियर हरियर साग,उलै खेत किसानी मा ।
रखिया तूमा नार, फरय फूलय छानी मा।
मेथी पालक लाल,चेच चौलाई भाजी।
भोग धरय भगवान, खाय हो जावय राजी।
किसम किसम के जी हवय,मोटा पतला  धान हा।
मिहनत मजदूरी करय,जाँगर टोर
किसान हा।।

(4)बानी

बानी हे अनमोल ,घोर मदरस कस बोलव।
सबके मन ला मोह,भेद अंतस के खोलव।
फेंकव इरखा द्वेष ,देह मा रोग घुनावय ।
दया मया के रीत, सबो के मान बढावय।
दया मया के गुण धरव, बढथे ऐमा मान जी।
सद्गुण अउ सद्भाव के,बगरावव  सब ज्ञान जी।।

(5)गुण

आदर अउ सम्मान, मिलय बिन मांगे  भैया ।
बादर बिन बरसात , होय नइ बदली छैया।
श्रद्धा देवय ग्यान, करम हा फल सिरजाथे।
जइसे बोए धान,फसल मिहनत ले पाथे।
जिनगी मा गुन ला धरव,करलव करम विचार जी।
धरम करम अइसन करव,कभू नहो लाचार जी।

(6)पर्यावरण

हवा होय बेकार ,कारखाना बड़ हावय।
काटव झन जी पेड़ ,इही मन प्राण बचावय।
पड़े प्रदूषण मार ,रोग काया मा बाढ़य।
साँसा बर बड़ भार ,हवा जिनगी ला तारय।
स्वच्छ रखव पर्यावरण ,स्वस्थ रहय संसार जी।
सुघर रहय वातावरण ,सुखी रहय परिवार  जी।।

(7)जस

अंतस राखे चाह ,सदा बड़ जस ला पावन।
काज करन जी खास,दुखी बर
हाथ बढ़ावन।
फोकट गाल बजाय,जनम हा बिरथा जाथे।
जग मा करय विशेष,तेन हा जस ला पाथे।
दीन दुखी सेवा करन,अंतस राखे ध्यान जी।
नेक करम करते करत, जग मा पावन मान जी।

(8) बेटी

बेटा बेटी भेद, देख लागे दुख भारी ।
अंतस करथे छेद, अतिक हावय लाचारी।
दो दो कुल के शान,बरय दीया कस जिनगी ।
लछमी के अवतार,हवव बेटी मन संगी।
अँगना किलकारी झरे, परगे  लछमी पाँव जी ।
जिनगी मा मुस्कान हे,जेघर बिटिया छाँव  जी।

छंदकार-डाॅ मीता अग्रवाल
पुरानी बस्ती लोहार चौंक रायपुर छत्तीसगढ़

Wednesday, October 23, 2019

गुमान साहू: छप्पय छन्द:- गुमान प्रसाद साहू

गुमान साहू: छप्पय छन्द:- गुमान प्रसाद साहू

।।हमर देश के हाल।।
हमर देश के हाल, देख तो होगे कइसन।
मनखे बदलै रंग, रोज गिरगिट के जइसन।
लड़त हवै जी रोज, खेत बर भाई भाई।
जात पात के आज, बाढ़गे हावय खाई।
रावण हा छेल्ला घुमै, आज जेल मा राम हे।
देखव उल्टा नाम के, मनखे मन के काम हे।।

।।छोड़व भेद।।
बनके रहव मितान,सबो ला अपने जानव।
करव कभू झन भेद, हरन सब एके मानव।
जात पात हा आय, नाम बस जिनगी भर के।
अमर बनालव नाम, दीन के सेवा करके।
रंग लहू के एक हे, रग मा सबके जान लव।
ऊँच नीच ला छोड़ दव,सबला एके मान लव।।

।।नशा पान।।
दारू गुटखा पान, हानिकारक बड़ हावय,
करय अपन नुकसान, जेन हा येला खावय।
आनी-बानी रोग, खाय ले येकर होथे,
परे नशा के जाल, जान कतको हे खोथे।।
किरिया खाके तुम सबो, नशा पान ला छोड़ दव।
आज नशा के जाल ला, जग ले सबझन तोड़ दव।।

।।किसान।।
माटी हमर मितान, करम हा हरय किसानी।
महिनत हे पहिचान, हवय जी गुरतुर बानी।
बंजर माटी चीर, धान ला हम उपजाथन।
भुइयाँ के भगवान, तभे जी हमन कहाथन।
भेद भाव जानन नही,सबो हमर बर एक हे।
काम हमन करथन उही, लगै जेन हा नेक हे।।

।।नारी।।
झन कर अतियाचार, मान के नारी अबला।
हरय शक्ति अवतार, दिखाये हावय सब ला।
नइहे अइसन काम, करय नइ जेला नारी।
नारी बिन हे जान, हमर जिनगी अँधियारी।
नर ले आघू आज हे, नारी जग मा
जान ले।
नारी ममता रूप अउ, बेटी लक्ष्मी मान ले।।

छन्दकार :- गुमान प्रसाद साहू , समोदा (महानदी),  जिला:- रायपुर छत्तीसगढ़

Tuesday, October 22, 2019

छप्पय छंद- मोहन लाल वर्मा

छप्पय छंद- मोहन लाल वर्मा

            (1)मेहनत के फल

मन मा रख विश्वास, मेहनत जे करथे जी।
जग मा वो इतिहास, अमरता के गढ़थे जी।।
पाथे बड़ सम्मान, करम के पाछू भइया ।
जस के गाथे गीत, गगन-धरती पुरवइया ।।
परमारथ के काज ला,करथे करतब जान के ।
पाथे जी आशीष ला,सउँहे वो भगवान के ।।

            ( 2)पानी के मोल

सुक्खा परगे फेर, देख तो तरिया - नदिया ।
कइसन हाहाकार, मचे हे सारी दुनिया ।।
बिन पानी संसार, फेर गा चलही कइसे ।
तड़पत रइहीं जीव,सबो गा मछरी जइसे ।।
होही पानी के बिना, सुन्ना ये संसार गा।
जानव एकर मोल ला,पानी जग आधार गा।।

              (3) नारी के रूप

जेन बढ़ाथे मान ,ददा के वो बेटी ये ।
पबरित मया खदान, ज्ञान धन के पेटी ये ।।
माता-बहिनी रूप, धरे ये जग मा आथे ।
अमरित गोरस पान,करा ममता छलकाथे ।।
दुर्गा-लक्ष्मी-शारदा, बेटी के अवतार हे ।
झन मारव जी कोंख मा,बेटी ले संसार हे ।।

               (4)रक्षाबंधन

सावन पुन्नी खास,मनाथें रक्षाबंधन ।
बहिनी राखी बाँध, लगाथे रोली चंदन।।
भाई दे उपहार, मया बहिनी के पाथे।
रक्षा के जब डोर, कलाई मा बँध जाथे।।
भाई-बहिनी के मया, हे अटूट संसार मा।
रक्षाबंधन के परब, दिखथे जे परिवार मा।।

             (5)मया के रंग-होली

चुपर मया के रंग ,मना लव सुग्घर होली ।
झन बिगड़य व्यवहार, बोल लव गुरतुर बोली।।
जिनगानी के काय,भरोसा हाबय भइया ।
ये तो हे जस बीच, धार मा डोलत नइया।।
लीला ला भगवान के, देखव तो संसार मा।
रंग मया के दे हवे,मनखे ला उपहार मा।।

             (6)करना हे मतदान

करना हे मतदान,सजग बनके मतदाता ।
लोकतंत्र के मान,बढ़ावव मिलके भ्राता ।।
सब ला हे अधिकार,जागरुकता ये लावव ।
जाके घर-परिवार, सबो ला ये समझावव ।।
संविधान ले हे मिले,जनता ला अधिकार गा।
चुनथें  भारत देश मा,अपने बर  सरकार गा।।

           (7)शीत लहर के मार

काँपत हाबय जीव, जाड़ मा अबड़े भइया ।
सर-सर सर-सर रोज,चलत हे जुड़ पुरवइया।।
कतको स्वेटर शाॅल, ओढ़ना कमती लागय ।
कहिथे मोहन लाल, जाड़ हा कब गा भागय ।।
कोन बुताही जाड़ ला,जुड़हा होगे घाम जी।
शीत लहर के मार मा,काँपय हाड़ा-चाम जी।।

            (8)आगे हे नवरात

आगे हे नवरात, बरत हे दियना बाती।
जगमग-जगमग जोत, करय उजियारी राती ।।
माता के दरबार, भगत मन आथें जाथें ।
करके पूजा-पाठ, शक्ति ला माथ नवाथें ।।
माता के नवरूप के,करलव दरशन आज गा।
श्रद्धा ले सब पूज लव,बनही बिगड़े काज गा।।

   छंदकार- मोहन लाल वर्मा
  पता- ग्राम- अल्दा,पो.आ.-तुलसी (मानपुर)
       व्हाया-हिरमी,वि.खं.-तिल्दा,जिला-रायपुर
      (छत्तीसगढ़), पिन 493195.

Monday, October 21, 2019

छप्पय छंद - अशोक धीवर "जलक्षत्री"

छप्पय छंद - अशोक धीवर "जलक्षत्री"

(१)
अपन बात ला काय, बतावँव संगी तोला।
दुख के गिरगे गाज, पँदोली देवव मोला।।
बइठे हँव दिन रात, अकेल्ला परगे हावँव।
होगे सब बीरान, कहाँ अउ कइसे जावँव।।
ए जग दुख के खान ये, कहिथे चतुर सियान मन।
नइ मानय तेखर इहाँ, मरहा असन सुखाय तन।।
(२)
दुख कोनो झन पाय, बने सब सुख मा रहितिन।
अँधियारी मिट जाय, बने हे जिनगी कहितिन।।
कइसे करँव बताव, पार नइ पावँव सुख के।
सब मिल करव सहाय, दबा दव टोंटा दुख के।।
ए जग दुख के खान ये, सुख के झन कर आस जी।
दया मया सब ले रखव,सब के बनहू खास जी।।
(३)
झन काटव गा पेड़, नहीं ते बड़ पछताहू।
आँक्सीजन नइ पाव,कहाँ ले जिनगी पाहू।।
बरसा नइ तो होय,मिले नइ खाना दाना।
धरही सब ला रोग,करँय का आना जाना।।
जिनगी सब ला देत हे,ये ला बिरथा जान झन।
गुण येकर सब जान लव, छइँहा अउ फल पात हन।।
(४)
नालायक हे पूत, बाप मुड़ धरके रोवय।
पत्नी बर लय फूल,मातु बर काँटा बोवय।
मातु पिता ला मार,कहाथे सरवन बेटा।
अपन सुवारथ साध,परे हे ससुर सपेटा।।
सेवा माँ अउ बाप के,करके फर्ज निभाव गा।
बिन सेवा के पूत हा,कब सुख पाय बताव गा।।
(५)
बेटी बिन संसार,सून हे मरघट जइसन।
काबर देथे मार,भ्रूण ला पापी कइसन।।
दरद दया नइ आय,बाप महतारी मन ला।
कइसन वोकर जीव,मारथे बेटी तन ला।।
बेटा बेटी भेद का,मन मा ज्ञान उतार जी।
माँ बहिनी बाई कहाँ,पाबे बेटी मार जी।।
(६)
दारू पी के आय,दरूहा घर वाला हे।
घर वाली बड़ रोय,टूटहा वरमाला हे।।
कइसे जिनगी होय,बतावँव काला मँय हा।
रोवत बोलय छोड़,पिये बर दारू तँय हा।।
नशा नाश के जड़ हरे,तज के सुख ला पाव जी।
नशा मुक्त जिनगी बिता, शाकाहारी खाव जी।।
(७)
भेद भाव अउ बैर,छोड़ के सबझन रइहव।
रख दूसर के मान,एक हन तब हे कइहव।।
छोट बड़े हे कोन,जगत मा एक्के सबझन।
अंतस सब के एक,भले हे अलग अलग तन।।
सतमारग मा रेंग के,करनी करलव नेक जी।
हंसा बइठे भीतरी,वोकर रूप ह एक जी।।
(८)
सोख्ता सबो बनाव,नीर संरक्षण करलव।
झन उलचव गा नीर,बूंद ला टोंटा भरलव।।
उलचत हावय कोन,मना वोला कर देवव।
मोरो हवय सुझाव,बचा पानी ला लेवव।।
जल ही जीवन सब कहय,जल राखत हे कोन हा।
जेन बचाही नीर ला,दिन पाही जी सोनहा।।

छंदकार - अशोक धीवर "जलक्षत्री"
तुलसी (तिल्दा -नेवरा), जिला -  रायपुर, (छत्तीसगढ़)

Sunday, October 20, 2019

हेमलाल साहू के छप्पय छंद

हेमलाल साहू के छप्पय छंद
लहू
करलव बढ़िया दान, लहू के तुम सँगवारी।
तन मन फरियर होय, नही आवय बीमारी।।
दया मया के संग, बचा कतको जिनगानी।
करलव बढ़िया दान, करव झन आना कानी।।
दान लहू के कर सँगी, करले नेकी काम ला।
दानी कहिथे जग सँगी, तोर सदा ले नाम ला।।

करवा चौथ
रहिथे करवा चौथ, मोर ओ सुघ्घर बाई।
करथे पूजा पाठ, सुमर के करवा दाई।।
निर्जल रहे उपास, सदा हे मात सहाई।
चंदा जल्दी आँव, आज करहूँ ग भलाई।।
करवा दाई भूल ला, माफी देहू आज ओ।
हमला दे आशीष ला, पूरन करहूँ काज ओ।

महँगाई
बड़गे हावय दाम, जिनिस मन के सब भाई।
रोवत हावय आम, देख आँखी महँगाई।।
तरसावत हे प्याज, टमाटर सँग मा गोभी।
करथे कोटा आज, जमाखोरी अउ लोभी।।
जनता  बैठे हाथ धर, लोभी लाभ कमाय ला।
चुप बैठे सरकार हा, भाव जिनिस मन खाय ला।।
-हेमलाल साहू
ग्राम गिधवा, पोस्ट नगधा
तहसील नवागढ़, जिला बेमेतरा

Saturday, October 19, 2019

छप्पय छंद-द्वारिका प्रसाद लहरे


छप्पय छंद-द्वारिका प्रसाद लहरे 

(1)
कोन डहर कब जान,छूट जाही रे पापीl
भज ले रे सतनाम ,छोड़ के आपा धापीl
कर ले सत के काम,सुखी रइही ये चोलाl
तज ले गरब गुमान,एक दिन जाना तोलाl
चल दया धरम ला बाँध ले,गठरी जइसन गाँठ गाl
तब यम राजा के लोक मा,खाबे रोटी आठ गाll
(2)
डारव पानी रोज,तभे पौधा बच पाही।
झन काटव गा पेंड़,काम जी अब्बड़ आही।
ताजा हवा बहाय,फूल फर लकड़ी देथे।
रोकय सुक्खा बाढ़,सबो के दुख हर लेथे।
कटय कभू झन पेंड़ हा, मिलथे सब ला छाँव जी।
राहय हरियर खार हा,शहर घलो अउ गाँव जी।।
(3)
धान हवय अनमोल,भूख ला हमर मिटाथे।
बासी पसिया पेज,राँध के सब झन खाथे।
झन छोड़व जी भात,आय महिनत के दाना।
मन हा रोवय मोर,देखथँव फेंकत खाना।
बड़ महिनत मा पाय हन,गाड़ा भर भर धान जी।
फोकट कभू उजार झन,येही सबके जान जी।।
(4)
होइस जी बलिदान,वीर नारायण राजा।
मारे कइ अंग्रेज,बजा दिस उँखरे बाजा।
तरसे सोनाखान,पेट बर दाना दाना।
लुट के जी गोदाम,लान दिन धान खजाना।
अइसन हमरे वीर ला,फाँसी होइस आज गा।
मातम छागे गाँव मा, कोन करय अब काज गा।।
(5)
होगे हवय बिहान,चलव अब जागव भइया।
पहिली कर लव काम,पार लग जाही नइयाँ।
दूनो कर ला जोड़,गुरू के वंदन गावव।
मात पिता के पाँव,परव आशीष ल पावव।
अइसन कर लव काम गा,कर लव पर उपकार जी।
येही मन भगवान हें,सकल जगत के सार जी।।
(6)
आगे महिना जाड़,काँपथे जिवरा भारी।
तिवरा भाजी भात,खवाथे थारी थारी।
आलू गोभी साग,चूरथे झारा झारा।
सेमी बरी पताल,बँटाथे आरा पारा।
अइसन हमरो गाँव हे,माँगे मिल जै साग जी।
एक दुसर घर खाय के,हावे हमरो भाग जी।।
(7)
होही लइका पास,जेन हा लिखही पढ़ही।
करही जब अभ्यास,तेन जी आगू बढ़ही।
पा के गुरु ले ज्ञान,भाग ला अपन जगाही।
अँधियारी ला दूर,भगा के नाम कमाही।
पढ़व लिखव जी रोज कन,बनहू नेक सुजान जी।
याद करव हर पाठ ला,बढ़ते जाही ज्ञान जी।।
(8)
बोली गुरतुर बोल,बहय मधुरस के धारा।
पाये बर जी मान, इही हावय जी चारा।
छत्तीसगढ़ी गोठ,सबो के मन ला भाथे।
सब भाखा ले पोठ,शान ला हमर बढ़ाथे।
जानय जम्मो देश हा,जस मधुरस कस घोल लव।
अब तो झन शरमाव जी,
छत्तीसगढ़ी बोल लव।।
(9)
झन कर गरब गुमान,एक दिन तँय मिट जाबे।
होबे बड़ धनवान,तभो ले नइ बँच पाबे।
जाबे जुच्छा हाथ,काय जी संगे जाही।
झन करबे जी लोभ,कोन दौलत ला खाही।
झूठ हवय सब शान हा,काया माटी जान ले।
दया धरम हा सार हे,कहना मोरो मान ले।।
(10)
पहिली  अपने   माथ, लगाबो  धुर्रा  माटी।
चलव  मया के खेल, खेलबो  भौंरा  बाँटी।
खो खो नदी पहाड़,टीप मा  सबो लुकाबो।
हरहा  देही  दाम,मजा ला सब झन  पाबो।
गिल्ली डंडा  खेलबो,अउ पुतरी के खेल जी।
दया मया ला जीत के,करबो सबसे मेल जी।।
(11)
रंग मया के डार,खेल लव गा पिचकारी।
एक बछर मा आय,मजा आथे बड़ भारी।
धर के हाथ गुलाल,मया के बोलव बोली।
टीका माथ लगाव,मना लव सब झन होली।
उड़थे गजब गुलाल जी,गाँव गली मा जोर हे।
मिलके गावँय फाग जी,सरा ररा के शोर हे।।

छंदकार-द्वारिका प्रसाद लहरे 
व्याख्याता शा.उ.मा.वि.इन्दौरी जिला-कबीरधाम छत्तीसगढ़/

Friday, October 18, 2019

छप्पय छन्द छंदकार-सुधा शर्मा


छप्पय  छन्द
छंदकार-सुधा शर्मा

(1) हमर बोली
छत्तीसगढ़ी जान ,हमर गा गुरतुर बोली।
महतारी के मान, मया हावे रंगोली।।
किसिम-किसिम के गोठ,मया के बोली-ठोली।
मया मयारू मीत,सजे हे सपना डोली।।
रंग रंग हाना हवय, गारी गीत ह संग के।
किस्सा कहिनी हा भरे,नाता सगा उमंग के।।

(2) जाड़
बरसत हावे जाड़ ,चलय जुड़ हवा खरेटा।
काँपत हावे हाड़,मूड़ मा बाँधव फेटा।।
लइका जुरे सियान,करय गा घाम अगोरा।
तापय आगी आँच,बइठ के ओरी ओरा।।
हावे धुँधरा  देख तो, चारो कोती छाय गा।
बगरे हावे ओस के, मोती  पान सजाय गा।।

(3) धान
पींयर पींयर धान, हवय गा झूमत बाली।
खेती करय किसान, होत हे तब हरियाली।।
जाँगर टोर कमाय,पाय तब सोना दाना।
माटी कहे सपूत,तोर बिन कहाँ ठिकाना।।
धरती राखय शान रे,भुइँया के भगवान रे।
काबर वो दुख पाय गा,करव ओखर सम्मान रे।।

(4) जुड़ हवा
चलत हवा जुड़ देख,छाय हे गजबे धुँधरा।
हाथ ठुठरथे गोड़,जीव अउ काँपय कुँदरा।।
ओढे ओन्हा तात, सबो झन तापय आगी।
रोज गरीब कमात,कहाँ वोहा बड़भागी।।
टपके पानी बूँदिया,मारे हवा किवाड़ गा।
सुरुज नरायन हे कहाँ,काँपत हावे हाड़ गा।।

(5) लोकतन्त्र
होगे हावे हार ,जीत हा ककरो हिस्सा।
राजनीति के खेल, इही हा हावय  किस्सा।।
रुपिया पइसा फेंक,करँय गा बड़ बरबादी।
लोकतंत्र के नाव,हरय जनता  आजादी।।
पाँच बरस बर आय गा,रंग ढंग देखाय गा।
जनता सबला भोगथे,एमन परब मनाय गा।।

(6) जाड़ा
काँपत हावे देह,सिहर गे हावे हाड़ा।
होवत भारी शीत,हाय रे  गाड़ा-गाड़ा।।
उसरत नइए काम,  घाम अउ आगी भाए।
पहिरे ओन्हा तात, साल अउ कमरा आए।।
रेजा कूली  हे धरे, सिरमिट गारा हाथ मा।
पेट बिकाली घूमथे,जड़काला के साथ मा।।

(7) जाड़ा
अगहन महिना जाड़,हवा हर मारे सोटा।
खीला गड़थे हाड़,जुड़ हे लहर सपोटा।।
झमझम पानी धार,बहे कस सावन धारा।
मउसम बदले रूप, हाय ये बज गे बारा।।
ओन्हा भाये तात गा,हाथ जुड़ागे गोड़ गा।
बइठे गोरसी ताप गा,काम बूता ला छोड़ गा।।

(8) पुन्नी रात
आये पुन्नी रात, होय जग
आज अँजोरी।
अमरित के बरसात,करत हे ओरी ओरी।।
धरती लुगरा साज,गात हे
चाँद चकोरी।
नाचय मनवा रास, मया के बाँधे डोरी।।
पुन्नी के आभास रे,मन मा भरत उजास रे।
संगी सुरता आत हे,वृंदावन के रास रे।।

(9) बाप महतारी
रोवत हावे आज,बाप देखव महतारी।
लइका सबो भुलात,मया सुग्घर  फुलवारी।।
काय बतावौं पीर,सुवारथ के सब मेला।
बुढ़त काल मा देख,छोड़ के जाँय अकेला।।
बोली करू सुनाय रे,रिबी रिबी तरसाय रे।
जादा लागय बोझ गा,वृद्धाश्रम पँहुचाय रे।।

(10) नवा जुग
देखव संगी आय, नवा जुग के ये बेरा।
मनखे अरझे जाय,सबो बेरा के फेरा।।
करें मया के गोठ,देख लव  आनी बानी।
नशा करें सब पोठ,गिरे बहकत जिनगानी।
हवस भरे भरमार गा,कहिथें इही ल प्यार गा।
बिछलत उमर जवान के,जिनगी करे उजार गा।।

छंदकारा - सुधा शर्मा,
राजिम (छत्तीसगढ़)

Thursday, October 17, 2019

छप्पय छंद---चोवा राम 'बादल'

छप्पय छंद---चोवा राम 'बादल'

       1  जिनगानी

करबे झन  अभिमान , चार दिन के जिनगानी।
 चारे दिन के आय , चकाचक रूप जवानी।
 धन दौलत पद मान, तोर ए कुटुम कबीला।
 माया बँधना आय , पाँव मा गड़थे खीला ।
 नइ उतरत लागय देर जी, नदिया के पूरा चढ़े।
 फट ले जाथे गा फूट ए,  माटी के काया गढ़े ।

         2 पुन्नी रात

   सुग्घर  पुन्नी रात, चँदैनी हावय छटके।
 चातक के मन आज, हवय चंदा मा अटके।
  टपकत अमरित बूंद, शीत मा  जगत नहाये।
   बरसा गे हे भाग ,शरद जब ले हे आये।
 सुरता आथे बात वो ,द्वापर युग के रास के।
 राधा मोहन के मिलन, जमुना निधिवन खास के।

     3   दसेरा

  मन के रावण मार, दसेरा चलौ मनाबो।
 दस ठन भरे विकार, सबो ला जोर जलाबो ।
  अहंकार अउ क्रोध ,हवय गा बड़का बैरी।
  इरखा माया मोह , मताथें रोज्जे गैरी।
  परब हमर ए दशहरा, होही तब फुरमान जी।
 परमपिता प्रभु राम हा, देही बड़ वरदान जी ।

    4  प्लास्टिक छोड़

 घातक प्लास्टिक छोड़, धरौ कपड़ा के झोला ।
 झिल्ली भरे समान, रोग ले आथे चोला।
 पशु जब एला खाय ,पेट फूले मर जाथे ।
बंजर होथे  खेत, जाम नाली बस्साथे।
  बउरे मा नुकसान हे,  झिल्ली बड़ शैतान हे ।
 अबड़ कीमती जान हे , धोखा  मा इंसान हे ।


      5   सीमेंट बन जा

 बन जा तैं सीमेंट ,जोड़ दे ईंटा पखरा।
 बन के भारी बीर, चाल झन फोकट अखरा ।
 सब ले नाता टोर, परे अलगे रइ जाबे ।
 देख मया ला बाँट, मया उपराहा पाबे।
 नव के रुखुवा केंवची, सहि जाथे तूफान ला।
 होना चाही गा नरम , ओइसने इंसान ला ।

      6  उपदेश

 झाड़े बर उपदेश, काम काला नइ आही।
खुद अपना के देख ,फायदा तभे बताही ।
 दिखही सूरत आन, मुखौटा कहूँ लगाये।
 ढोंगी बन के संत,अबड देथे भरमाये।
 धरम करम के बात जे, करत रथे दिन रात जी।
 पढ़ के वेद पुरान ला, हवय सिरिफ समझात जी।


चोवा राम 'बादल '
हथबन्द, छत्तीसगढ़

Wednesday, October 16, 2019

छप्पय छन्द-आशा देशमुख

*छप्पय छंद----आशा देशमुख*

         *आज*
हे पथरा के राज,बिकत हे खेती डोली।
करके मिहनत रोज,बनावत हे दू खोली।
जुच्छा लागे गाँव, रीत मन तको नँदावत।
फैशन होगे पोठ,मान हा तको भगावत।
अब तो मनखे जाग रे,सुन माटी के गोठ ला।
बदरा बदरा फेक दे,रख ले दाना पोठ ला।1।

*करम भाग*

करव भाग्य निर्माण,करम के धरव कुदारी।
मन बीजा पिकियाय ,परे जब पानी धारी।
जिनगी गदगद होय,दिखे जब हरियर हरियर।
साँच करम के संग,रहय अंतस हा फरियर।
करम धरम हा सार हे, जिनगी के आधार हे।
रोज पसीना गार लव,जिनगी अपन सँवार लव।2।

     *ज्ञान दान*
करँय ज्ञान के दान ,गुरू के महिमा भारी।
सुनव गुरू के बात, अबड़ होवय हितकारी।
मन के कंकड़ फेक, गुरू हा रतन बनावँय।
नीर क्षीर मा भेद,हंस मति ज्ञान  बतावँय ।
गुरू ज्ञान अनमोल हे,अतका सब तो जान लव।
गुरू बिना अँधियार हे,यहू बात ला मान लव।3।

     *छंद*
किसम किसम के छंद,सुघर सबके लय हावै।
गावँय छंद सुजान,सबो के मन ला भावै।
दया मया के गीत,लगे जस निर्मल धारा।
अंतस ख़ुशी समाय, फूटथे ये फव्हारा।
लिखव गीत अब छंद मा, मन झूमे आनन्द मा।
सुघ्घर कविता गाव जी,सुम्मत ज्योत जलाव जी।4।

    *पाखंड*
धरम बने व्यापार, अतिक बाढ़त पाखंडी।
फैलाये भ्रमजाल, भरत हें लालच मंडी।
मनखे मन नादान,सोच तो कछु नइ पावँय।
सच हावै चुपचाप,झूठ छल मन भरमावँय।
गावव सच के राग ला,लिखव अपन खुद भाग ला।
झन मानँव पाखण्ड ला, फेंकव दूर घमण्ड ला।5।

        *मशाल*
बनके रहव मशाल,हवय जग मा अँधियारी।
भूले भटके लोग,गरीबी अउ लाचारी।
फइले अँधविश्वास,जागरण हवय जरूरी।
ठग जग के भरमार,ठगावत हे मजबूरी।
बारव दीया ज्ञान के,दूर करव अँधियार ला।
देश गाँव उन्नत रहय,शिक्षा दव परिवार ला। 6।

     *समय*
समय रहत ले काम,करे मा हवय भलाई।
बखत जाय जब बीत, होय नइ तो भरपाई।
आये जब बरसात,बीज ला बोना होथे।
बइठे समय बिताय, कोढ़िया मन हा रोथे।

समय अबड़ अनमोल हे,बीते हा नइ आय जी।
शीत घाम बरसात हा, अपन समय मा भाय जी। 7।

आशा देशमुख
एनटीपीसी रामगुंडम
तेलंगाना

Tuesday, October 15, 2019

छप्पय छंद-बोधन राम निषाद

छप्पय छंद - बोधन राम निषादराज

(1) माटी  के महिमा:-
धरती दाई मोर, जनम  ला मँय हा  पावँव।
तोला  माथ  नवाँव,बंदना   रोजे   गावँव।।
अन पानी सिरजाय,चलौ जी महिमा गाबो।
दया मया हे  साथ,मया  के  फूल चढ़ाबो।।
माटी  मोर  परान हे, जिनगी  के आधार हे।
कोरा सुख के खान हे,बहुते मया दुलार हे।।

(2) गुरु के किरपा:-
गुरु किरपा ले तोर,मिले हे  जिनगी  मोला।
सत् के रद्दा जाँव,बिनय मँय करथौं तोला।।
करबे तँय उद्धार, मोर  ए  जिनगी  नइया।
तँय हा  तारनहार,परँव  मँय  तोरे  पइँया।।
नइ हे मोला आसरा,धन दौलत संसार के।
तोर सदा आशीष ला,पा जावँव मँय प्यार के।।

(3)बेटी करही नाम:-
बेटी ला पढ़हाव,चलव जी जम्मों मिलके।
सिक्छा पाही देख,हाँसही वोहा  खिलके।।
अपन पाँव मा फेर,खड़े हो जाही बिटिया।
होही ओखर नाम,बाचही सुघ्घर चिठिया।।
बेटी जम्मो देश के,रखही जग में नाम ला।
अच्छा दव संस्कार ला,दुनिया देखय काम ला।।

(4) होरी खेलय श्याम:-
होरी  खेलय  श्याम, धूम  हा  मचगे  भारी।
कुँज गलीन मा आज,मातगे नर अउ नारी।।
राधा बिसरे लाज,मया हे मोहन सँग मा।
मारय छर-छर रंग,परत हे जम्मो अँग मा।।
गली खोर मा  झूम के, लोक लाज ला भूल के।
हाँसय खुल खुल प्रेम मा,राधा गोरी झूल
के।।

(5) भँवरा बइमान:-
ए भँवरा  बइमान, फूल मा  बइठे   रहिथे।
आके डार नवाय,कान मा मोला कहिथे।।
गुनगुन गावय राग,कान मा अमरित घोलय।
आसा मया लगाय,घूमके मीठा बोलय।।
कच्चा  काया जान के,पाछू परगे फूल के।
फूल बिचारी का करै,माथा धरथे झूल के।।

(6) पानी:-
पानी पीयव छान,छान लव  बढ़िया दाई।
सुघ्घर घइला धोय,होय झन ओ करलाई।।
इही बात ला सोच,करौ झन नादानी ला।
जिनगी के आधार,देख लौ जिनगानी ला।।
पानी सबके जान हे,अउ पानी मा मान हे।
बिरथा झन बोहाव जी,बूँद-बूँद मा प्रान हे।।

(7) जिनगी के मेला:-
जग मा तँय हा आय,हाथ ला दूनों  बाँधे।
संगी अपन बनाय,मोह अउ माया साधे।।
तोर मोर के फेर,जाल मा  फँसगे  चोला।
राजा परजा देख, कोन हा  पूछय  तोला।।
आए हस तँय एकझन,तहीं अकेला रेंगबे। 
जिनगी के मेला हवे,जीयत तँय हा देखबे।।

(8) काया माटी हो जही:-
चोला माटी  जान,बने तँय सँग  ला धर ले।
राम राम तँय  जाप,पुन्य के  कोठी  भरले।।
झूठ कपट ला छोड़,मानले तँय जी  कहना।
रखबे उच्च बिचार,सँग मा  सुघ्घर  रहना।।
काया माटी हो जही,जिनगी के दिन चार हे।
करले पर उपकार तँय,भाव भजन हा सार हे।।

(9) फागुन आत हे:-
झूमय पुरवा देख,डार हा लहसत जावय।
महकय खेती खार,झूमके नाचत हावय।।
मन मा छाय हुलास, रंग मा  डूबत   जाए।
कोयल कुहकत जाय,फूल भँवरा मँडराए।।
देखव संगी देख लव,रंग उड़ावत जात हे।
अइसे लागै अब इहाँ,फागुन राजा आत हे।।

(10)आमा मउरे:-
देखौ  आमा  डार, लोर  गे  हरियर  पाना।
झूम-झूम के देख, कोयली  गावय  गाना।।
आमा मउरे भाय, सबो के  मन  ललचावै।
देखव जिवरा मोर,खुशी मा  नाचय  गावै।।
लदलद ले हे मउर हा,भँवरा झूलय डार मा।
आय बसंती देख तो,नाचत हावय खार मा।

छंदकार - बोधन राम निषादराज
सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम (छत्तीसगढ़)

Monday, October 14, 2019

छप्पय छंद-महेंद्र कुमार बघेल

छप्पय छन्द :- महेंद्र कुमार बघेल
*स्वच्छ भारत अभियान*
1.
सँउहत आगे काल, जहर बगरावत झिल्ली|
कुहरत धरती हाय,उड़ा झन येकर खिल्ली|
गरम दार अउ चाय,सनपना में मत झोंकव|
होथे रोग असाध, यहू अलहन ला रोकव|
धरती बंजर होय झन, कुछ तो करव उपाय जी|
साफ हवा पानी सबो, जीव जन्तु मन पाय जी|
2.
झिल्ली कचरा संग, सबो ला झोंकय घुरवा|
अनमनहा हे खेत,उपज हा होवय ढुरवा|
पतरी पाउच प्लेट,जउन भक्कम बेचाथे|
धरती जल आकाश, सबो के ताव बढ़ाथे|
छोड़व झिल्ली मोह ला,शरण पेंड़ के जाव जी|
आदत अपन सुधार के, खेती खार बचाव जी।
3.
फइसन बीच बजार, बढ़े पन्नी के  नखरा|
अलहन तीर बलाय, सरे नइ येकर कचरा|
इहाँ उहाँ फटकाय, सड़क मा बगरे रहिथे|
नाली हा बोजाय, बास ला तन हा सहिथे|
हद ले जादा बउर झन, होथे जी के काल जी|
चुप ले आके रोग हा,करथे बारा हाल जी|

4.
फेंके पतरी प्लेट, उड़त रहिथे परिया मा|
धरसा रद्दा तीर,अउर डबरी तरिया मा|
बउरल रद्दी ताय, समझ के आगी ढिलथे|
होथे हवा खराब, साँस मा धुँगिया मिलथे|
सबो सुवारथ छोड़ के, करले चिटिक नियाव जी|
अंतस ला तँय पूछ ले, करही कोन हियाव जी|

5.
कातिक अगहन पूस, ठंड ला धरके आवय|
बिहना धुँधरा छाय,घाम हा गजब सुहावय|
जंगल होगे साफ, कटा गे परसा मउहा|
गिरे नहीं अब शीत, जाड़ के नइहे दउहा|
बढ़त उमस अउ ताव हा, जमे बरफ टघलाय झन|
तीर तार के जम्मो शहर ,सागर मा बुड़ जाय झन|

6.
जंगल नदी पहाड़ ,सबो मा आँखी गड़गे|
चूस डरिन भरमार, तभो नोचे बर अड़गे|
खोदत अंधाधुंध, नदी के रेत चटागे|
रोपल सफ्फो पेड़,बिना पानी सठरागे|
अब कुदरत ला छेड़ के, जादा लाहव लेव झन|
जिनगी के मझधार मा,डोंगा उल्टा खेव झन|

7.
मोटर गाड़ी ताय,जउन हा सरपट चलथे|
जले तेल पेट्रोल,हवा ला दूषित करथे|
गजब माहँगी आय,तभो ले सँउक बुताथे|
गाड़ी नवा खरीद,सड़क मा अबड़ कुदाथे|
घर मा राखव सायकिल,तीर तार मा जाय बर|
बढ़त प्रदूषण थाम लव,अच्छा सेहत पाय बर|

8.
जैविक कचरा छाँट, अपन घुरवा मा डारव|
झिल्ली अलग सकेल,कभू आगी मत बारव|
बनथे कई समान, फेर ये बउरल झिल्ली|
होय उचित निपटान, उड़य झन ककरो खिल्ली|
हमर बदलही सोच हा, होही नवा बिहान जी|
स्वच्छ भारत के सबो, सच होही अभियान जी|

छन्दकार:- महेंद्र कुमार बघेल डोंगरगांव,राजनांदगांव, छत्तीसगढ़

Sunday, October 13, 2019

छप्पय छंद-गुमान प्रसाद साहू

छप्पय छन्द:- गुमान प्रसाद साहू

।।हमर देश के हाल।।
हमर देश के हाल, देख तो होगे कइसन।
मनखे बदलै रंग, रोज गिरगिट के जइसन।
लड़त हवै जी रोज, खेत बर भाई भाई।
जात पात के आज, बाढ़गे हावय खाई।
रावण हा छेल्ला घुमै, आज जेल मा राम हे।
देखव उल्टा नाम के, मनखे मन के काम हे।।

।।छोड़व भेद।।
बनके रहव मितान,सबो ला अपने जानव।
करव कभू झन भेद, सबे ला एके मानव।
जात पात हा आय,नाम बस जिनगी भर के।
अमर बनालव नाम, दीन के सेवा करके।
रंग लहू के एक हे, रग मा सबके जान लव।
ऊँच नीच ला छोड़ दव,सबला एके मान लव।।

।।नशा पान।।
दारू गुटखा पान, हानिकारक बड़ हावय,
करय अपन नुकसान, जेन हा येला खावय।
आनी-बानी रोग, खाय ले येकर होथे,
परे नशा के जाल, जान कतको हे खोथे।।
किरिया खाके तुम सबो, नशा पान ला छोड़ दव।
आज नशा के जाल ला,जग ले सबझन तोड़ दव।

।।किसान।।
माटी हमर मितान, करम हा हरय किसानी।
महिनत हे पहिचान, हवय जी गुरतुर बानी।
बंजर माटी चीर, धान ला हम उपजाथन।
भुइयाँ के भगवान,तभे जी हमन कहाथन।
भेद भाव जानन नही,सबो हमर बर एक हे।
काम हमन करथन उही,लगै जेन हा नेक हे।।

।।नारी।।
झन कर अतियाचार, मान के नारी अबला।
हरय शक्ति अवतार, दिखाये हावय सब ला।
नइहे अइसन काम, करय नइ जेला नारी।
नारी बिन हे जान, हमर जिनगी अँधियारी।
नर ले आघू आज हे,नारी जग मा
जान ले।
नारी ममता रूप अउ, बेटी लक्ष्मी मान ले।।

छन्दकार :- गुमान प्रसाद साहू ,
समोदा (महानदी),
 जिला:- रायपुर छत्तीसगढ़

Saturday, October 12, 2019

छप्पय छंद- श्लेष चन्द्राकर


  छप्पय छंद- श्लेष चन्द्राकर
(1)
लोकगीत के हाल, बुरा हे अब्बड़ संगी।
इखँर गवैया आज, सहत हें धन के तंगी।।
बाँस गीत के मीत, घटत हे आज गवैया।
पँडवानी के राज, कोन हे फेर लनैया।।
कलाकार मन राज के, खोजत हाबयँ काम जी।
नाम भले मिल जात हे, मिलत कहाँ हे दाम जी।।
(2)
तासक दफडा नाल, दमउ खन्जेरी डफली।
हमर राज के शान, रहिस सब बाजा पहली।।
माँदर झांझ मृदंग, मोहरी रूंझु चिकारा।
दिखथे कमती आज, नँगाड़ा अउ इकतारा।।
करें गरब छत्तीसगढ़, वो सब आज नँदात हे।
तम्बूरा ताशा असन, बाजा कोन बजात हे।।
(3)
कहिथे सही सियान, गोठ ओकर गा मानो।
अनुभव के वो खान, मोल बड़खा के जानो।
देथे बने सलाह, बढ़े बर आघू सबला।
दो ओला सम्मान, अपन देथव जो रब ला।
सच्चा गोठ सियान के, ये जग मा बगराव जी।
उखँर बताये राह मा, चलके सबो दिखाव जी।।
(4)
योगासन ले देह, बने रहिथे गा जानव।
रोज बिहनिया योग, करे बर सबझन ठानव।।
योग करे ले रोज, धरे सब रोग मिटाही।
येला लाँघन पेट, बिहनिया करना चाही।।
उमर बाढ़थे योग ले, करव लगाके ध्यान जी।
रहिथे बने दिमाग हा, स्वस्थ रथे इंसान जी।।
(5)
हमर देश के योग, खोज हे ऋषि मुनि मन के।
अंतस मा ये राज, करत हावय सबझन के।।
रोग करत हे दूर, योग हा ममहावत हे।
योगा के संसार, आज बड़ गुण गावत हे।।
भारत के परदेस मा, देखव मान बढ़ात हे।
इँहे जनम ले योग हा, जग मा सबला भात हे।।
(6)
केंसर अउ मधुमेह, बिमारी मा हितकारी।
सबो रोग मा योग, पड़त हावय गा भारी।
मनखे मन ला आज, बने रखथे योगासन।
तभे देत हे जान, बढ़ावा येला शासन।।
योगा सबके बीच मा, होगे हे मशहूर जी।
करथे कतको रोग ला, येहा जड़ ले दूर जी।
(7)
खचवा-डबरा पाट, डहर ला बना बरोबर।
जिहाँ जरूरी होय, उहाँ चलवा बुलडोजर।।
काँटा-खूँटी फेंक, बना रद्दा ला सुग्घर।
गाँव-गली अउ खोर, दिखे सब उज्जर उज्जर।।
बने सबो ला लागथे, साफ-सफाई जान जी।
येला अपनाना हवय, मन मा तँय हा ठान जी।।
(8)
झिल्ली होथे खीक, सबो ला आप बतावव।
बउरे बर दे छोड़, गोठ अइसे समझावव।।
होवय गा नइ नष्ट, जलाये ले बस्साथे।
खाके गरुवा गाय, प्रान ला अपन गँवाथे।।
सब मनखे मन ला अब कहो, पर्यावरण बचाव जी।
बड़ पहुचाथे नुकसान ये, झिल्ली झन अपनाव जी।।
(9)
झिल्ली हरय खराब, जान के बनथव भोला।
जावव नइ बाजार, हाथ मा धरके झोला।।
देथव झिल्ली फेंक, खीक दिखथे हर कोना।
करथे ये नुकसान, बाद मा पड़ही रोना।।
सुग्घर धरती मा अपन, झिल्ली झन बगराव जी।
छोडव येकर मोह ला, पर्यावरण बचाव जी।।
(10)
पानी पीके प्यास, सबोझन अपन बुझाथन।
येला राखव साफ, इही मा सबो नहाथन।।
पानी मा ही रोज, खीक कपड़ा ला धोथन।
बोथन बखरी खेत, उहू मा घला पलोथन।।
करथन जल उपयोग सब, रोज बिहनिया शाम जी।
बिरथा झन बोहान दो, ये बड़ आथे काम जी।।

छंदकार - श्लेष चन्द्राकर,
पता - खैरा बाड़ा, गुड़रु पारा, महासमुंद (छत्तीसगढ़)

Friday, October 11, 2019

छप्पय छंद -शोभामोहन श्रीवास्तव


छप्पय छंद -शोभामोहन श्रीवास्तव

1/
पानी हे अनमोल,जान सब ला चेताना।
बूँद बूँद के मोल,समझ के बउरत जाना।।
अपन भरोसा भार, जगत ला उही जियाथे ।
पेड़ फूल अउ जीव,सरस रसधार पियाथे।।
पीके अमृत धार ला, दिखथे सब सुघ्घर खिले।
फोकट के बोहाव झन,पानी जब सिद्धो मिले।।
2/
पानी के का मोल,बतावत तड़पत मछरी।
पानी बाहिर होत,जेन मर जावत पचरी।।
प्यास बताथे मोल,काय पानी के हावय ।
कतको दिन बिन खाय,भले मनखे रहि जावय।
दू दिन मा पानी बिगन,सबके सब अइला जथे।
कतको सुघ्घर रूप हो,पानी बिन मइला जथे।।
3/
मनखे पानीदार,सबो ला गजब सुहावय।
पानी मरे जनाय,कहूँ ओला नइ भावय।।
पानी-पानी होय,लजाके कोई-कोई।
पानी के गुनगान,करे आखर कम गोई।।
पानी पी पी के कहूँ,हाथ लमाय बखानथे।
कोनो पानी काकरो,अउ उतार के मानथे ।।

4/
खा पी सबो सुजान,रात-दिन झिल्ली फेंके।
हे उछींद के राज,नहीं कोनो हर छेंके।।
अलहन होही ठाढ़, तेन दिन देखे जाही।
करहीं मनखे आज,जेन हर मन ला भाही।।
भुँइया बंजर होन दे, रोवत तेला रोन दे ।
जेन सुते सपनान दे,जागत ला चिचियान दे।।
5/
झिल्ली जहर समान,हवय सब ला जनवाबो।
झोला धरे बजार,आज ले जम्मो जाबो।।   
झिल्ली बरथे तेन,घोरथे जहर बयारी ।
चारो खुंँट नइ फेंक,बतावत हँव संगवारी।।
अपन जान समझात हँव,सावचेत करवात हँव।
माने बर हे मान लो,नहीं तो खतरा जान लो ।।
6/
बेचइया के दोस,कभू नइ झोला माँगय ।
लेवइया के दोस,खाँध ओला नइ टाँगय।।
अंँधरा हे सरकार,देख नइ रोक लगावय।
भैरा हवय समाज,जगइया कतिक जगावय।।
लेवत तेला लेन दे,देवत तेला देन दे ।
समझाना बेकार हे, सब्बो झन हुसियार हें ।।
7/
सास बहू बिसराय,सबो  झगरा अब घर के।
अपने मा बइहाय,हवँय मोबाइल धरके।।
सास न रँधनी जाय,कभू अब झाँके ताके।
चारी करे भुलाय,हवय एन्ड्राइड पाके।।
मगन बाप बेटा हवँय,डाटा खँगन न देत हे।
बने फेसबुक फ्रेन्ड अब,दूनो लाहो लेत हे।।
8/
ऊर्जा के उपयोग, करे बर सब झन जानो।
सबमें हवय समाय,तेन ऊर्जा पहिचानो।।
आगी पानी सूर्य,हवा मा ऊर्जा हावय।
जानय जे उपयोग,उही हर जान जनावय।।
ऊर्जा बउरे जानथे,ते सब बर सुख लानथे।।
ओकर गुन पहिचान ले,अउ बउरे बर ठान ले।।

शोभामोहन श्रीवास्तव
रायपुर अमलेश्वर छत्तीसगढ़

Thursday, October 10, 2019

अमृत ध्वनि छंद- इंजी.गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

अमृत ध्वनि छंद- इंजी.गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

(1) गुरु-

बानी गुरु के जान लौ,जस अमरित के धार।
जिनगी ला उजला करे,ज्ञान जोत ला बार।
ज्ञान जोत ला,बार भगाये,मन अँधियारी।
कहे घलो हें,सबो देव ले,गुरु बलिहारी।।
राह दिखाथे,नेक करम के,गुरु जिनगानी।
सीख दिये गुरु,बोल सदा ही,मीठा बानी।।

(2) मतलब-

होगे दुनिया मतलबी,मतलब के सब यार।
मतलब मा तो देख ले,बँटगे घर जग द्वार।।
बँटगे घर जग,द्वार गली अब,भाई भाई।
ददा घलो ला,बाँट डरिस जी,बँटगे दाई।।
लोभ मोह मा,परे सबो हें,नीयत खोगे।
मतलब साधे,लोग खड़े जग,अँधरा होगे।।

(3) ढोंगी-

ढोंगी थामे देख लौ,बड़े बड़े जी ढोंग।
जाप करे भगवान के,माथा बंदन ओंग।।
माथा बंदन,ओंग बने हें,खुद व्यापारी।
पाप पुण्य के,लोभ बता के,लूटे भारी।।
नशा पान मा,मते रहय पी,बीड़ी चोंगी।
तभो परे हें,लोगन कइसन,चक्कर ढोंगी।।

इंजी.गजानंद पात्रे "सत्यबोध"
बिलासपुर,जिला बिलासपुर (छत्तीसगढ़)

अमृत ध्वनि छंद



अमृत ध्वनि छंद- अशोक धीवर "जलक्षत्री"

१. - बड़के माता ले कहाँ, दुनिया मा भगवान।
ओकर करजा छूट दै, कोन हवय धनवान।।
कोन धनी हे, सोच बतादँय, कोनो मोला।
सेवा कर लँय, पुन ला भर लँय, तरही चोला।।
दुख झन देवँय, दुआ ल लेवँय, पाँव ल पड़के।
मातु पिता ले, कोनो नइये, जग मा बड़के।।

२. - जाये बर तँय चल दिये, माता जग ला छोड़।
अंतस बइठे तँय सदा, तोर धरे हँव गोड़।।
तोर धरे हँव, गोड़ छोड़ झन, जाबे मोला।
जिनगी मोरे, तोर दया मा, माँगँव वोला।।
बड़ दुख पाके, मोला कइसे, पाले तँयहर।
दे अशीष ला,तँय जल्दी झन, कर जाये बर।।

छंदकार - अशोक धीवर "जलक्षत्री"
ग्राम - तुलसी (तिल्दा - नेवरा)
जिला - रायपुर ( छत्तीसगढ़)

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अमृतध्वनि छन्द-   रक्तदान
छंदकार- अजय "अमृतांशु"

रक्तदान कर लव सबो,आय पुण्य के काम।
जीवन ककरो बाँचही,मिल जाही जी राम।
मिल जाही जी,राम इहू हा,प्रभु के सेवा।
रक्तदान हा,काम धरम के,पाहू देवा।
दान लहू के,करके ककरो,दुख ला तँय हर।
बन जाथे जी,फेर खून हा,रक्तदान कर।

छंदकार- अजय "अमृतांशु"
भाटापारा,जिला-भाटापारा (छ. ग.)

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अमृतध्वनि छन्द-राम कुमार चन्द्रवंशी

राखव सुम्मत बाँध

द्वेष-कपट छल छोड़ के,राखव सुम्मत बाँध।
बनही जम्मो काम हर,चलव जोड़ के खाँध।
चलव जोड़ के,खाँध जगत मा,प्रेम बढ़ावौ।
जस तुम पाहू,नाँव कमाहू,जग ल सिखावौ।
एक बनव जी,नेक करव जी,मया जोड़ के।
देश बचावौ, धरम निभावौ,कपट छोड़ के।।

राखव सुम्मत बाँध के,जस डोंगा पतवार।
सुम्मत आघू हारथे,नदिया के जलधार।।
नदिया के जल,धार हारथे,सन्तन कहिथे।
सुनता मा बल,मुश्किल के हल,हरदम रहिथे।
सुख नित मिलथे,हिरदे खिलथे,त्यागव बिम्मत।
घर हर बनथे,देश सँवरथे,राखव सुम्मत।।

छंदकार-राम कुमार चन्द्रवंशी
ग्राम+पोष्ट-बेलरगोंदी
जिला-राजनांदगाँव
छत्तीसगढ़

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 अमृतध्वनि छंद : पोखन लाल जायसवाल

1
घर सब सुनता ले चलै,गीत मया के गाव।
मया बरोबर सब मिलौ, राखव मन के भाव।
राखव मन के,भाव एक अउ,मिलजुल राहव।
गोठ गोठिया,दया मया के,सबझन हाँसव।
बाँट बाँट के,रोटी खावव,देवव आदर।
पेड़ लगै अउ,सुनता के फर,होवय सब घर।।

2

करथे जउन घमंड सब,चिटिक समझ नइ आय।
रहिके दूर घमंड ले,जिनगी सब सुख पाय।
जिनगी सब सुख,पाय कहाँ जब,खोय मितानी।
बात बात मा,मिलै जान तैं,तोर निशानी।
सुनके गुरतुर,बोली सबके,मन हा भरथे।
का घमंड हे,इहाँ जउन ला,मनखे करथे।।

रचना-पोखन लाल जायसवाल
पठारीडीह पलारी
जिला बलौदाबाजार भाटापारा छग
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Wednesday, October 9, 2019

अमृत ध्वनि छंद - राजेश कुमार निषाद



अमृत ध्वनि छंद - राजेश कुमार निषाद

सेवा दाई के करव, मिलही अँचरा छाँव।
करथे सबले जे मया, जेकर कोरा ठाँव।।
जेकर कोरा,ठाँव बनाबे,मया ल पाबे।
भाग जगाबे,नाम कमाबे,मान बढ़ाबे।
संगे जाबे, हरिगुण गाबे,मानव माई।
सरग ल पाबे,करबे जब बड़,सेवा दाई।। (1)

लागय भारी जाड़ जी,महिना अगहन आय।
खोजत आगी आँच ला,तापे बर सब जाय।।                  तापे बर सब, जाय दौड़ के,,लकड़ी लावत।
आग जलावत,जाड़ भगावत,बइठे तापत।
रात म जागत,मजा उड़ावत, सबझन भागय।
घर सब जावत, मिलके काहत,जाड़ ह लागय।।(2)

मटका फोड़न गाँव मा,करके अड़बड़ शोर।
चढ़के संगी कांध मा,बाँधन मटका डोर।।
बाँधन मटका,डोर धरे सब, रंग बिरंगी।
आमा पाना,नरियर केरा, बाँधन संगी।
खाके माखन,मारन सबझन,भारी चटका।
हँसी खुशी ले ,फोड़न संगी,सबझन मटका।। (3)

रचनाकार - राजेश कुमार निषाद ग्राम चपरीद पोस्ट समोदा तहसील आरंग जिला रायपुर ( छ.ग. )

Monday, October 7, 2019

अमृतध्वनि छंद-शोभामोहन श्रीवास्तव



अमृतध्वनि छंद-शोभामोहन श्रीवास्तव

1/
कंकर कंकर मा बसे, भूतनाथ भगवान ।
शंकर शंकर जे कहे, तरे जगत ले जान ।।
तरे जगत ले, जान उही नर, जपले हर हर ।
जटा गंगधर ,लपटाये गर, डोमी बिखहर ।
चंदा सिर पर,राख देंह भर,चुपरे शंकर।
हर दुःख जर, शिवमय सुंदर,कंकर कंकर।।

2/
भोले शंकर के नरी ,सोहत सर्पन माल ।
कनिहा छाला बाघ के,दिखत गजब बिकराल।।
दिखत गजब बिक-राल रूप हर ,लागत हे डर।
काँपत थरथर,तीन लोक भर , राज करे हर ।
सरसर सरसर, साँप देंह पर, चलत भयंकर।
 झरथे झरझर,गंग जटा हर, भोले शंकर ।।

3/
डमडम डम कर  नाचथे,डमरूधर कैलाश।
झनके ततका दूर के, होथे दुख के नाश।।
होथे दुख के, नाश भूत धर, परबत ऊपर।
बइठे शंकर,पदवी अम्मर, देवय किंकर।।
जोगनिया हर,लठर झुमर कर,नाचे मन भर।
चिहुर भयंकर,हरहर हरहर,डमडम डमकर ।

4/
जय जय काली मातु कहि, सुमिरँव बारम्बार।
पाँव परँव डंडासरन, ड़ोगा कर दे पार ।।
ड़ोगा कर दे ,पार निराली, तँय बलशाली।
ओली रीता,भर दे मैया, तँही उदाली।। 
जय कंकाली,आँखी लाली,काल कराली।
जग उजियाली,मनगति चाली,जय जय काली।।

छंदकार-शोभामोहन श्रीवास्तव
पता-रायपुर अमलेश्वर छत्तीसगढ़

Sunday, October 6, 2019

अमृत ध्वनि छंद-मीता अग्रवाल



अमृत ध्वनि छंद-मीता अग्रवाल

(1)मात शारदे

मन मा मोर बिराजबे,ज्ञान दान   के खान।
बाढ़य मति अउ लालसा ,बाढ़य बानी मान।।
बाढ़य बानी, मान दान तैं,देदे दाई।
किरपा करदे ,मात शारदे,माँ महमाई।
देबे दाई,विद्या मोला,करथँव बंदन।
रोजे तोरे,पूजा करथौं,अर्पित कर मन।।

 (2)होली

होली परब तिहार ला ,मिलजुल के लौ मान।
माघ महीना खोंच लव,अंडा डारा पान।।
अंडा  डारा,पान गाड़ के,झूमव नाचव।
पेड़ कटे झन, ये होली मा ,सुरता राखव।
दया मया के,मँदरस घोलय,गुरतुर बोली ।
भेद भाव अउ,द्वेष दंश के, बारव होली ।।

(3)बने करम

भाग जागही जी  बने,करव नवा नित काम।
मनुख जनम होवय सफल, होथे जग मा नाम ।
होथे जग मा, नाम बड़े नइ,काम करव गा।
काम दाम के, मिलथे बढ़िया,बात धरव गा।
चिन्तन करके,काम करे ले,बिघन भागथें।
बने सोच अउ,बने करम ले,भाग जागथें।

छंदकार -डाॅ मीता अग्रवाल
पुरानी बस्ती लोहार चौंक
 रायपुर छत्तीसगढ़ 492001

Saturday, October 5, 2019

अमृत ध्वनि छंद-संतोष कुमार साहू



अमृत ध्वनि छंद-संतोष कुमार साहू

(1)
मानव के ये हो करम,पर के हित के काम।
जनम सफल तब हो जथे,चलथे बढ़िया नाम।
चलथे बढ़िया,नाम सदा ही,इही सार हे।
अइसन जिनगी,जिये जेन हा,समझदार हे।
गजब ज्ञान ये,साधु संत के,एला जानव।
तभे कहाहू,ये धरती मा,सुग्घर मानव।।

(2)
घर के सुख अउ शाँति बर,सदा रहे संतोष।
इही हरे सुख के सबो,सबले बड़का कोष।।
सबले बड़का,कोष हरे ये,सदा मान लव।
उन्नति के सब,शिखर इही ये,उदिम जान लव।
जीना चाही,इही ज्ञान ला,हरदम धर के।
खास मंत्र ये,सब भगाय दुख,दारिद घर के।।

(3)
पहला ईश्वर तँय सदा,मात पिता ला मान।
देहे तोला ये जनम,होना चाही ज्ञान।।
होना चाही,ज्ञान सही हे,गाँठ बाँध धर।
नइते पानी,चुल्लू भर मे,बुड़ जा अउ मर।
नेक काम कर,अउ तँय हा झन,पापी कहला।
सबो काम मे,गजब काम ये,कर तँय पहला।।

छंदकार-संतोष कुमार साहू
ग्राम-रसेला,ब्लाक-छुरा
जिला-गरियाबंद, (छत्तीसगढ़)

अमृत ध्वनि छंद -- महेन्द्र देवांगन माटी



अमृत ध्वनि छंद  -- महेन्द्र देवांगन माटी

1 सावन

आइस सावन झूम के, दिखय घटा घनघोर ।
बिजुरी चमके जोर से, नाचय वन मा मोर ।।
नाचय वन मा, मोर पंख ला, अपन उठाके ।
देखय सबझन, आँखी फारे, हँसय लुकाके ।।
चिरई चिरगुन, ताली पीटे, दादुर गाइस ।
सबके मन मा, खुशी समागे, सावन आइस ।।

2  किसान

नाँगर बइला फाँद के,  जोंतत खेत किसान ।
खातू कचरा डार के,  बोंवत हावय धान ।।
बोंवत हावय, धान पान ला, एसो होही ।
पउर साल के, रोना अब तो, नइ तो रोही ।।
करथे सबझन,  काम बरोबर,  चलथे जाँगर ।
कोड़ा देवय, दवई डारय, फाँदय नाँगर ।।

3  बरसा

बरसत बादर जोर से,  भीगत लइका लोग ।
सबझन ला अब होत हे, आनी बानी रोग ।।
आनी बानी, रोग रोज के, होवत हावय ।
डाक्टर आवय, दवई देवय, सुजी लगावय ।।
खपरा फूटय, छानही चुहय, भीगत चादर ।
बच के राहव, झन भीगव जी,  बरसत बादर ।।

छंदकार
महेन्द्र देवांगन माटी
पंडरिया  (कबीरधाम)
छत्तीसगढ़
8602407353

Thursday, October 3, 2019

अमृतध्वनि छंद - गुमान प्रसाद साहू

अमृतध्वनि छंद - गुमान प्रसाद साहू

1।।सावन।।
सावन आये झूम के,बरसा करै अपार।
भरगे डबरा खोंचका, भरगे खेती खार।।
भरगे खेती, खार घलो हा, चलै बियासी,
मेड़ पार मा, खेत खार मा, फूलै काँसी।
झूला बाँधय, मन हा नाचय, लगे सुहावन।
शिव भोला हा,आस पुराथे,महिना सावन।।1

2।।ईद।।
ईद मनाबो मिल सबो, आये हे रमजान।
भले धरम हावय अलग, मनखे एके तान।।
मनखे एके, तान सबो झन, मिलके रहिबो,
कतको आवय, बिपत सबो ला, मिलके सहिबो।
पढ़ नमाज अउ, सँग मा गीता, सार सुनाबो,
जम्मो मिलके, चाँद देखबो, ईद मनाबो।।2

4।।बाँटा।।
भाई भाई ले लड़य, बाँटे खेती खार।
बाँट डरिन माँ बाप ला, टूटत हे घर बार।।
टूटत हे घर, बार सबो हर, बाँटा होगे,
अलग अलग कर, दाई-ददा ल, दुख ला भोगे।
संगे राखव, बँटवारा के, खनव न खाई,
अलग करव झन, दाई-ददा ल, कोनो भाई।।3

।।आषाढ़ महिना।।
महिना लगे असाढ़ के, करिया बदरी छाय।
चमकय बिजरी हा घलो, संगे पानी लाय।।
संगे पानी, लाय भिगोवय, खेती बारी,
काँटा खूंटी, बिन खेती के,कर तैयारी।
झिँगुरा गावय,राग सुनावय, अउ का कहिना,
डबरा भरथे, मन ला हरथे, बरसा महिना ।। 4

।।भेद छोड़व।।
झन कर कोनो बर कपट, भेद सबो तँय छोड़।
सब ला लेके साथ चल, मन ले मन ला जोड़।।
मन ले मन ला, जोड़ तभे तँय, आघू बढ़बे,
साथ कमाबे, हाथ बटाबे, रसता गढ़बे।
जस बगराले, नाम कमाले, आज परन कर,
दीन दुखी बर, दया मया कर, इरखा झन कर।।5

छन्दकार:- गुमान प्रसाद साहू, ग्राम- समोदा (महानदी),जिला- रायपुर छत्तीसगढ़

Wednesday, October 2, 2019

अमृत ध्वनि छंद-द्वारिका प्रसाद लहरे

अमृत ध्वनि छंद-द्वारिका प्रसाद लहरे

सादर जय जोहार हे,गुरू चरण मा मोर।
देवव नित आशीष ला,बिनती हे कर जोर।
बिनती हे कर,जोर गुरू जी,माथ नवावँव।
चरण कमल के,दास बनालौ,गुन ला गावँव।
सेवा करहूँ, रोज गुरू के,करहूँ  आदर।
चरण कमल मा,फूल चढ़ावत,
वंदन सादर।।1

आवँव बेटा वीर जी,महिनत हे बल मोर।
दया मया ला बाँट के,लेथँव सबके सोर।
लेथँव सबके,सोर देश के,गुन ला गावँव।
मया बाँध के,सुमता सब मा,मैं हाँ लावँव।
भारत भुँइयाँ,सोन चिरइया,हरदम पावँव।
जनम जनम बर,बेटा बनके,मैं हाँ आवँव।।2

धरती दाई मोर तैं,बेटा मैंहा तोर।
भरय कटोरा धान के,विनती हे करजोर।
बिनती हे करजोर माथ ला,मोर नवावँव।
निस दिन सब बर,जाँगर टोरत, अन उपजावँव।
खेत खार मा,धान उगाहूँ,रहय न परती।
तिहीं जीव के,पालनहारी,दाई धरती।।3

बोंवय धान किसान जी,निस दिन करके काम।
अन उपजावँय पेट बर,खेत खार हा धाम।
खेत खार हा,धाम आय जी,गुन ला गावँय।
गिरे पछीना,करँय मेहनत,अन उपजावँय।
माटी भुँइयाँ,अन उपजइया,नइ तो सोवय।
चना गहूँ अउ,धान खेत मा,सब बर बोंवय।।4

छंदकार-द्वारिका प्रसाद लहरे बायपास रोड़ कवर्धा (कबीरधाम) छत्तीसगढ़

Tuesday, October 1, 2019

कुण्डलिया छन्द - श्री हेमलाल साहू


कुण्डलिया छन्द - श्री हेमलाल साहू

जनमन के जे कवि रहिस, जनकवि कोदूराम।
पीर लिखय जन के सदा, नेक करय जे काम।
नेक करय जे काम, रहय जी गाँधी वादी।
पहिरय धोती संग, जेन हा कुरता खादी।।
सिरजाइस हे छंद, लगाके बढ़िया तन मन।
भाखा बाढ़िस मान, पढ़िस हावे जब जनमन।।

छन्दकार - श्री हेमलाल साहू
ग्राम गिधवा, पोस्ट नगधा
तहसील नवागढ़, जिला बेमेतरा
छत्तीसगढ़