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Saturday, October 12, 2019

छप्पय छंद- श्लेष चन्द्राकर


  छप्पय छंद- श्लेष चन्द्राकर
(1)
लोकगीत के हाल, बुरा हे अब्बड़ संगी।
इखँर गवैया आज, सहत हें धन के तंगी।।
बाँस गीत के मीत, घटत हे आज गवैया।
पँडवानी के राज, कोन हे फेर लनैया।।
कलाकार मन राज के, खोजत हाबयँ काम जी।
नाम भले मिल जात हे, मिलत कहाँ हे दाम जी।।
(2)
तासक दफडा नाल, दमउ खन्जेरी डफली।
हमर राज के शान, रहिस सब बाजा पहली।।
माँदर झांझ मृदंग, मोहरी रूंझु चिकारा।
दिखथे कमती आज, नँगाड़ा अउ इकतारा।।
करें गरब छत्तीसगढ़, वो सब आज नँदात हे।
तम्बूरा ताशा असन, बाजा कोन बजात हे।।
(3)
कहिथे सही सियान, गोठ ओकर गा मानो।
अनुभव के वो खान, मोल बड़खा के जानो।
देथे बने सलाह, बढ़े बर आघू सबला।
दो ओला सम्मान, अपन देथव जो रब ला।
सच्चा गोठ सियान के, ये जग मा बगराव जी।
उखँर बताये राह मा, चलके सबो दिखाव जी।।
(4)
योगासन ले देह, बने रहिथे गा जानव।
रोज बिहनिया योग, करे बर सबझन ठानव।।
योग करे ले रोज, धरे सब रोग मिटाही।
येला लाँघन पेट, बिहनिया करना चाही।।
उमर बाढ़थे योग ले, करव लगाके ध्यान जी।
रहिथे बने दिमाग हा, स्वस्थ रथे इंसान जी।।
(5)
हमर देश के योग, खोज हे ऋषि मुनि मन के।
अंतस मा ये राज, करत हावय सबझन के।।
रोग करत हे दूर, योग हा ममहावत हे।
योगा के संसार, आज बड़ गुण गावत हे।।
भारत के परदेस मा, देखव मान बढ़ात हे।
इँहे जनम ले योग हा, जग मा सबला भात हे।।
(6)
केंसर अउ मधुमेह, बिमारी मा हितकारी।
सबो रोग मा योग, पड़त हावय गा भारी।
मनखे मन ला आज, बने रखथे योगासन।
तभे देत हे जान, बढ़ावा येला शासन।।
योगा सबके बीच मा, होगे हे मशहूर जी।
करथे कतको रोग ला, येहा जड़ ले दूर जी।
(7)
खचवा-डबरा पाट, डहर ला बना बरोबर।
जिहाँ जरूरी होय, उहाँ चलवा बुलडोजर।।
काँटा-खूँटी फेंक, बना रद्दा ला सुग्घर।
गाँव-गली अउ खोर, दिखे सब उज्जर उज्जर।।
बने सबो ला लागथे, साफ-सफाई जान जी।
येला अपनाना हवय, मन मा तँय हा ठान जी।।
(8)
झिल्ली होथे खीक, सबो ला आप बतावव।
बउरे बर दे छोड़, गोठ अइसे समझावव।।
होवय गा नइ नष्ट, जलाये ले बस्साथे।
खाके गरुवा गाय, प्रान ला अपन गँवाथे।।
सब मनखे मन ला अब कहो, पर्यावरण बचाव जी।
बड़ पहुचाथे नुकसान ये, झिल्ली झन अपनाव जी।।
(9)
झिल्ली हरय खराब, जान के बनथव भोला।
जावव नइ बाजार, हाथ मा धरके झोला।।
देथव झिल्ली फेंक, खीक दिखथे हर कोना।
करथे ये नुकसान, बाद मा पड़ही रोना।।
सुग्घर धरती मा अपन, झिल्ली झन बगराव जी।
छोडव येकर मोह ला, पर्यावरण बचाव जी।।
(10)
पानी पीके प्यास, सबोझन अपन बुझाथन।
येला राखव साफ, इही मा सबो नहाथन।।
पानी मा ही रोज, खीक कपड़ा ला धोथन।
बोथन बखरी खेत, उहू मा घला पलोथन।।
करथन जल उपयोग सब, रोज बिहनिया शाम जी।
बिरथा झन बोहान दो, ये बड़ आथे काम जी।।

छंदकार - श्लेष चन्द्राकर,
पता - खैरा बाड़ा, गुड़रु पारा, महासमुंद (छत्तीसगढ़)

29 comments:

  1. छंद खजाना मा स्थान दे बर हार्दिक आभार

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  2. बहुत सुग्घर उदिम हे गुरुदेव जी के।।
    सादर प्रणाम हे गुरुदेव जी ल।।

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  3. सुग्घर छप्पय छंद रचना के हार्दिक बधाई सर जी

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  4. सुग्घर छप्पय छंद रचना के हार्दिक बधाई सर जी

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  5. बहुत सुन्दर संग्रह । सादर नमन गुरुदेव जी

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  6. वाह्ह!!सुघ्घर छप्पय छंद।

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  7. बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति आदरणीय

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  8. बहुत सुग्घर संग्रह! रचना मा मिहनत दीखत हवय! प्रकाशन बर बधाई!💐

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  9. बहुत सुघ्घर छप्पय छंद के सृजन हे भैया जी

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  10. बहुत सुग्घर रचना चन्द्राकर भाई बधाई हो

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  11. बहुत सुंदर रचना बधाई हो भइया जी

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  12. बहुत बढ़िया चंद्राकर जी वाह

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  13. वाह वाह ।बहुत ही शानदार छप्पय छंद के सृजन करे हव चंद्राकर जी ।हार्दिक बधाई अउ शुभकामना हे ।

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  14. सुग्घर छप्पय छंद रचना के हार्दिक बधाई सर जी

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  15. सुग्घर रचना बधाई

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  16. बहुत ही सुन्दर रचना सर

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  17. उत्साह वर्धन करे बर आप सबके हार्दिक आभार।

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  18. बहुतेच सुग्घर-सुग्घर विषय मा लिखे हव भैया जी।

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  19. वाह वाह बहुतेच सुग्घर।

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