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Friday, December 13, 2019

सार छन्द:- गुमान प्रसाद साहू

सार छन्द:- गुमान प्रसाद साहू

   ।।हवस मयावाली ओ।।
कोनो तोला दुर्गा कहिथे, अउ कोनो काली ओ।
तँही जगत के जननी दाई, हवस मयावाली ओ।।

बढ़िस हवय भुइयाँ मा दाई, जब जब अतियाचारी।
आये तैंहा रक्षा खातिर, ले के वो अवतारी।।
पापी ला तँय मार गिराये,रुप धर बिकराली ओ।
तँही जगत के जननी दाई, अबड़ मयावाली ओ।।

कभू धरे तै रूप शीतला, कभू बने बम्लाई।
कभू बने जगदम्बा दाई, कभू बने सम्लाई।।
तीन लोक मा तँही समाये, माँ शेरावाली ओ।
तँही जगत के जननी दाई, अबड़ मयावाली ओ।।

आये जे हा तोर शरण मा, झोली अपन पसारे।
मन के आशा पूरा करके, जग ले तँही उबारे।।
सबके बिगड़ी तँही बनाये, दर आय सवाली ओ।
तँही जगत के जननी दाई, अबड़ मयावाली ओ।।

                 ।।छोड़व भेद।।
सुख दुख के जिनगी मा संगी, रहिथे आना जाना।
दुख मा सुख ला जेन खोज ले, मनखे उही सयाना।

मनखे सब झन एके हावय, भेद कभू झन जानव।
जात पात के खन के डबरा, हिरदे ला झन चानव।

ऊँच नीच हा गुण ले होथे, धन ले जी नइ होवय।
मनखे धनवर होवय कतको, पइसा मा नइ सोवय।

छंदकार:- गुमान प्रसाद साहू, समोदा (महानदी)
जिला:- रायपुर, छत्तीसगढ़

8 comments:

  1. शानदार रचना सर

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  2. बढ़िया रचना भाई।

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  3. वाह भाई,सुग्घर गीत अउ सुग्घर संदेश👏👏👌💐💐

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  4. बहुत बढ़िया रचना है भाई

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  5. अब्बड़ सुग्घर भयपूर्ण सार छंद भइया बधाई 🙏🙏

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  6. प्रणम्य गुरुदेव ला सादर चरण वंदन संगें संग मोर रचना पढ़ मया बरसइया आप जम्मो साधक दीदी भइया मन ल मोर सादर आभार 🙏🙏🙏

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  7. वाह वाह गुमान जी।बेहतरीन रचना के लिए हार्दिक बधाई

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