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Friday, March 5, 2021

दोहा म जनउला - छंद के छ परिवार की प्रस्तुति


 दोहा जनउला - छंद के छ परिवार की प्रस्तुति

दोहा म जनउला


दू काफी हें लाख बर, तन मा शोभा पाय।

येखर बिन दुनिया सरी, अंधकार हो जाय।।(नयन)


मनखे सागर बन नदी, शहर डहर घर गाँव।

सबला बोहे नित रथे, बता काय हे नाँव।।(धरती)


जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा

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जेखर ले होथे सदा, गाँव गली उजियार।

बिहना बिहना देख के, दूर होय अँधियार।।

(सुरुज)


जेखर ले जिनगी चलै,हवय जगत मा सार।

एक बूँद के आस मा,मर जाथे संसार।।

(पानी)


बोधन राम निषादराज

सहसपुर लोहारा,कबीरधाम

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दू घर ला तोपे रहें, बइठे अइठे कान।

साफ दिखें दुनिया सरी,संग सियानी जान।।

(चश्मा)


पानी ठंडा हो जमे,कल पुरजा घर साज।

गीला सूक्खा के जतन, घर-घर घुसरे  आज।।

(फ्रीज)


मीता अग्रवाल मधुर 

रायपुर छत्तीसगढ़

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सब ला देथँव फूल फल, लकड़ी अउ जुड़ छाँव।

भुइँया के गहना हरँव, बता मोर का नाँव।।

( पेड़ )


 घटँव बढ़ँव पूरा कभू, होवँव पुन्नी गोल।

चमकँव चमचम रात भर, नाम काय हे बोल।।

( चंदा )

कौशल कुमार साहू

फरहदा (सुहेला),बलौदाबाजार

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 टूरी में हा नानकुन , करथँव बड़का काम ।

पार बाँधथँव कूद के , मोर हवय का नाम ।।

(*सूजी*)


जतका एला बाँटबे , उतके बाढ़त जाय ।

चोर न चोरी कर सकय ,ज्ञानी इही बनाय ।।

(*ज्ञान*)


*इन्द्राणी साहू"साँची"

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भारत मा बड़ मान हे, करथे लोग प्रणाम।

बिना फूल के जे फरे, का हे ओकर नाम।।(बर,पीपर)


बालक बिन मुँह कान के, सबला ज्ञान बताय।

मनखे जे संगत करय, ज्ञानी वो बन जाय।।(पुस्तक)


राम कुमार चन्द्रवंशी

बेलरगोंदी, राजनांदगाँव

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नौ महिना के कुंदरा  , रहिके पाँव पसार।

पीरा नदिया ला तँउर , देखे सब संसार ।।


गर्भ  


भात कभू खावय नहीं  ,कच्चा खाय पिसान।

तीन गोड़ दू हाथ के ,करे रोज अस्नान।।


बेलना पीड़हा 


सुधा शर्मा 

राजिम छत्तीसगढ

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टिकटिक करथे रोज के, छोट मंझला छोड़।

बारह मा तीनों खड़े, हाथ संग मा जोड़।।    ( घड़ी)


करिया दिखथे भीतरी, बहिरी हरियर जान।

करिया खा हरियर सबो, फेंके गा इंसान।।

(इलायची)


पद्मा साहू "पर्वणी"

खैरागढ़ राजनांदगांव 

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रच रिच रच रिच बाजथे, जब-जब पाँव उठाव। 

चढ़े ऊंट कस रेंग लव, चिखला ले बच जाव।1। 

(गेंड़ी)

पुछी दबावत छत करे, छोड़त दाँत गड़ाय।

कतको के बकली निछय, काम बहुत ये आय।

(ढेंकी)

दिलीप वर्मा

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रंग बिरंगी रूप हे, काम पोठ वो आय।

गरमी बरसा मा दिखे, ठण्डी देख लुकाय।

(छता)


बिन बिल के येहर चलै, होय कभू ना गोल।

जिनगी के आधार हे, हावै जी अनमोल।

(आॅंखी)


मनोज कुमार वर्मा

बरदा लवन बलौदा बाजार

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

डील डौल ला देख के, सुधबुध जाय भुलाय।

भाला के जी नोंक मा, मनके हाॅकत जाय।।    

(हाथी)

पेट भरै पुरखा तरै, गोल गोल आकार।

राजा चाहे रंक हो, सबके हे आहार।। 

(रोटी)


रामकली कारे 

बालको नगर कोरबा

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हा हा हू हू वो करे ,जे मनखे हर खाय।

लागय भभकत जोर से,नाक कान फट जाय ।।( मिर्चा )


पन्द्रह दिन वो बाढ़थे,दिन पन्द्रह घट जाय,

रूप धरे जस प्रेयसी,लइका ममा बुलाय।।(चंदा )

दुर्गा शंकर ईजारदार

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

पानी ला ठंडा करे , राहय गोल मटोल ।

गरमी मा भावै गजब , बिकथे माटी मोल।।

(मटकी)


तात तात लागे बिकट, चट चट जरथे पाँव।

हरे कोन ओ दिन भला, चलो बतावव नाँव ।।

(गरमी)


बृजलाल दावना

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विधि विधान मात्रा चरण, यति गति पद अउ चाल। 

इनकर मेल मिलाप ले,सजे भाव सुर ताल।।

(छंद)

कोरा कागज मा चले,छोड़त छाप निशान।

सूत्रधार लेखन इही, जेन बढ़ावय मान।।

(सम्पादक)

महेंद्र कुमार बघेल डोंगरगांव

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1-

बिन आँखी बिन पाँव के, पहुँचे घर घर रोज।

घटना देश विदेश के, देवय पल पल खोज।।

(अखबार)

सत्य अहिंसा के सदा, रहिस पुजारी जौन।

थामे बिन हथियार के, दिस आजादी कौन।।

(महात्मा गाँधी)

इंजी.गजानन्द पात्रे सत्यबोध

बिलासपुर

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1/  झिथरी कस टूरी खडे़,चूँदी ला छरियाय। 

सफ्फा जेखर गोड़ हे,धोये काँदा ताय। 


2/  अकर चकर चकरी हवे,रसा हमाये पेट। 

येला तँय नइ जानबे, तब सौ रुपया रेट। 

1/मुरई

2/ जलेबी

शशि साहू

कोरबा

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जेकर बिन नइ जी सकै, ये सारा संसार।

धुकनी होथे बंद अउ, पिंजरा हे बेकार।।


(हवा)


गरमी ला शीतल करे, सबके मन ला भाय।

काँच लगे घर मा टिकै, नाँव बता हे काय।।


(ए सी)


छंदकार- अशोक धीवर "जलक्षत्री"

(साधक सत्र -७)

ग्राम -तुलसी (तिल्दा-नेवरा)

जिला-रायपुर (छत्तीसगढ़)

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माटी के चोला हवय,आँच परे पक जाय।

गरमी के मौसम रहे,सबके प्यास बुझाय।।

(करसी)


लाली हरियर रंग मा,सबके मन ला भाय।

खावय जुच्छा जेन हा,तेन अबड़ सुसुवाय।।

(मिर्चा)


अजय "अमृतांशु"

भाटापारा(छत्तीसगढ़)

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खाथे कतको पीस के, सब झन येला भाय।

बिन डारे येकर बिना, सब्जी कहाँ मिठाय।।

(पताल)


चार खड़े हे सूरमा, हाथ सबो के जाम। 

रस्सी बाँधे हाथ मा,गजब देत आराम।।

(खटिया)


अजय "अमृतांशु"

भाटापारा(छत्तीसगढ़)

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सरसों -परसा फूल हा, मन ला सुग्घर भाय ।

अब्बड़ मउरे आम हा, माह ल कोन बताय ।।

( फागुन माह)

फागुन माह म आय गा, होय रंग बौछार ।

गावय -झूमय गाँव भर, अइसन हरय तिहार ।।

(होली)    


          ओमप्रकाश साहू "अँकुर "

          साधक, सत्र - 12

          सुरगी, राजनांदगाँव

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1. में हा करिया हवँ भले,करथँव जग उजियार।

जेहा मोला साधथे,मिटथे सब अँधियार।।


अक्षर


2.बिना गोड़ के रेंगथे,नइतो पहुँचे देश।

देथे बेरा ला बता, कतको येखर वेश।(समय)

चित्रा श्रीवास

बिलासपुर छत्तीसगढ़

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देख नानकुन ओ टुरी, कूद कूद करथे  नाँच।

प्यास बुझय सबके कहय,मारय झापड पाँच।


उत्तर....... बोरिंग


नीला  लुगरा हा बिछे, देखत सुघर लुभाय।

पर्रा भर लाई भरे,चमक गगन मा छाय। 

उत्तर ........(तारा)


धनेश्वरी सोनी गुल

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पीतल लोटा मा लगे, लोहा ढकना ताय।

भीतर पथरा तीन हे, नाँव बतावव काय।।


2.

दू अक्षर के नाँव हे, उल्टा सीधा एक।

भइया के आघू लगे, नत्ता सबले नेक।।


1 तेंदू

2 दीदी

वीरेंद्र साहू

राजिम

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लाठी कस लम्बा दिखय,भीतर हा रसदार।

खाये मा अंतस लगय, मीठ मीठ भरमार।(१)


ऊपर मा बइठे रथे,साँप सहीं लपटाय।

रक्षा करथे घाम ले,काय चीज कहलाय।।(२)


खुशियार

पगड़ी

डी पी लहरे

कबीरधाम

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कटय नहीं तलवार ले, जरय न आगी जान।

ऊपर जेखर चढ़ गइस, उतरै कभू न मान।।

( नाम)

कभू ठोस अउ द्रव कभू, धरथे तीनों रूप।

बनै हवा उड़ियाय जे, मिलै कहूँ बड़ धूप।।

(पानी.)

कुलदीप सिन्हा

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1,धार हवे तलवार ले, गोली ले भी तेज।

वार जबर करथे सहज, शान बढ़ाथे जेब।


2,सादा सादा खेत मा, करिया फसल लगाय।

काट काट ये धान ला, कतको पीढ़ी खाय।


1 कलम

2 पुस्तक

मथुरा प्रसाद वर्मा

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जनऊला / दोहा पहेली

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बइठे हावै नाक मा, गोड़ पसारे कान।

घाम देख छइऺहाॅऺ लगे, का हे एहा जान।।

(चश्मा)

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छोटे हे चौकोन हे, सबो फोन ला भाय।

एला हेरे फोन ले, तुरते वो मर जाय।।

(बैटरी)

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नोनी बाबू  हा दुनो, पहिरे ओला जान।

फूल पैंट कस लागथे, बिकट चलत ईमान।।

(जिंस पैंट)

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छन्द लिखव या गीत जी, बिना धरे नइ आय।

दोहा रोला सोरठा, सबके अलग सुनाय ।।

(लय)

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आत्मा हे ये फोन के, छोटे हे चौकोन।

एकर ले बंधे रथे, डोर मया हर फोन।।

(सीम कार्ड)

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मिलन मलरिहा 

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सज संवर के देख थस, संझा अऊ बिहान।

देख लजाथस रूप ला, कोन हरंव मैं जान।।


दर्पण 


लाली पिंयर रंग  हे,सबके मन ला भाय।

दुलहिन के श्रृंगार में  ,खनक खनक मुसकाय।।

चूरी 


छिटही बुँदही हे मिले, नारी करे सिँगार।

बने मुड़ी ला ढ़ाँक के, हाँसत चले बजार।।

लुगरा 


चूरी सँग पहिरे बने गहना काँटे दार ।

चाँदी के बनथे सुनौ, भैया गढ़े सुनार।।


ककनी


केवरा यदु "मीरा "

राजिम

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उज्जर ला करिया करय, बिन बोले बतियाय।

पाठ सिखोवय हाथ धर, शस्त्र तको डर्राय।।(कलम)


पहिली हरियर खेत मा, सोन तहाँ लहराय।

उज्जर पानी मा चुरै, सबके भूख मिटाय।।(धान-चाउर)


नीलम जायसवाल

भिलाई, दुर्ग (छत्तीसगढ़)

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13 comments:

  1. छंद के छ परिवार के सब बर मनोरंजक प्रस्तुति बर सब ल बधाई।

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  2. वाह्ह वाह शानदार संग्रह हे दोहा जनऊला के बहुते सुग्घर अउ सराहनीय प्रयोग हवै ये हमर छत्तीसगढ़ी साहित्य बर हमर छंद परिवार ल बहुत बहुत बधाई 🙏🙏

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  3. वाह वाह वाह वाह वाह बहुत ही सुन्दर 🙏

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  4. बहुत सुग्घर संकलन

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  5. मथुरा प्रसाद के सादा सादा........कलम वाले जनऊला के का कहना जी👌👌👌👌👌👌 बधाई भइया जी

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  6. दोहा मा सुग्घर जनउला।बढ़िया उदीम

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  7. बहुत सुंदर संकलन तैयार होगे। एडमिन ल बहुत बहुत धन्यवाद।

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  8. This comment has been removed by the author.

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  9. सुघ्घर संकलन, बधाई छंद परिवार

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