Tuesday, February 4, 2020

सार छंद--सुधा शर्मा

सार छंद--सुधा शर्मा

1-
जघा जघा मा मिलथे संगी,
देखव अब तो दारू।
भठ्ठी खुलगे पीयत बइहा,
माते नशा म कारू।
2-
गारी देवत फोर फोर के,
लाज शरम ला छोड़े।
मारा पीटी संग सुवारी,
मूड़ी कान ल फोड़े।
3-
लइका इस्कुल जावत हावें
लादे पीठ म बोझा।
कोंवर लइका उमर बँधाये,
किसिम किसिम के जोझा।
4-
मूड़ी बड़का पागा होगे
बेरा कइसन आगे।
धरे नवा रद्दा ला देखव,
सपना पीछू भागे।
5-
धरती मात गुहार लगावै,
बाढ़त हावे पीरा।
मनखे करनी बिगरत हावे,
गुण मा परगे कीरा।
6-
धुंआ अगास पीयत आकुल
बिगड़े धरती काया।
देखत मनखे अपन सुवारथ,
काटे रुखवा छाया।
7-
जंगल झाड़ी उजरत हावें,
नँदिया तरिया रोवत।
पथरा परगे बुद्धि म सबके,
अपने सुख ला खोवत।
8-
रंग रंग के होत बिमारी,
होय जहर कस पानी।
भरत अन्न पानी मा दवई,
बिपदा मा जिनगानी।
9-
झिल्ली गा झन बउरव कोनो,
गइया मन सब खाथें।
मूक होय गउ माता संगी,
अपने मौत बलाथें।
10-
धरती दाई के कोरा मा,
झिल्ली गल नइ पावय।
करे अन्न धन के नुकसानी,
परिया खेत बनावय।

छंद कारा--
सुधा शर्मा
राजिम छत्तीसगढ़

8 comments:

  1. वाह वाह बहुत खूब, ज्वलंत मुद्दा मन ला विषय बनाके सुग्घर सार छंद तैयार करे बर बहुत बधाई दीदी

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  2. बहुत बढ़िया रचना
    बधाई हो

    महेन्द्र देवांगन माटी

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  3. बहुत बहुत धन्यवाद भाई

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  4. बहुत बढ़िया सार छंद दीदी बहुत बहुत बधाई ।

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  5. बहुत सुग्घर नशा के विरुद्ध आवाज उठावत रचना दीदी जी

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  6. सुग्घर लिखे हव ,3रा ह नशा ले अलग हे। ये जमत नइ हे।

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  7. बड़ सुग्घर।हार्दिक बधाई

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