Tuesday, January 26, 2021

गणतंत्र दिवस के शुभ अवसर मा देशभक्ति पूर्ण छंदबद्ध रचना


 गणतंत्र दिवस के शुभ अवसर मा देशभक्ति पूर्ण छंदबद्ध रचना

घनाक्षरी-दिलीप वर्मा ( सोन चिरइया ) 


सोन के चिरइया मोर, पिंजरा म बंद रहे, 

तड़फत रहे सदा, होये ल अजाद रे। 

उड़ियाना चाह के भी, उड़ वो सके न कभू, 

काखर करा ले करे, भला फरियाद रे। 

सुत तो सपूत रहे, काम ले कपूत रहे, 

आपस म लड़ मरे, लालची औलाद रे। 

परदेशी कौवा आये, छीन-छीन सब खाये, 

डरा धमका के सबो, होवत अबाद रे। 


कौवा करे काँव-काँव, दिन रात हाँव- हाँव, 

सबो परेसान रहे, कइसे के भगाय रे। 

धात-धात माने नही, प्रेम भाषा जाने नही, 

चाबे बर दौड़ पड़े, तिर तार आय रे। 

सोन के चिरइया बर, फूल भेजे घर-घर, 

सबो एक साथ मिल, आवाज उठाय रे। 

धर के मशाल चले, आपस मा मिले गले, 

कौवा ला भगाये बर, उदिम बताय रे।


धीरे-धीरे एकता के, सूत म बँधाये सबो,  

कौवा ला भगाये बर, करे तइयार हे। 

कोनो शांति राह चल, करत आंदोलन हे, 

कतको लड़े लड़ाई, करे आर पार हे।  

मार काट मचे भारी, सालों साल युद्ध जारी, 

दूनो कोती मरे पर, कहाँ माने हार हे।

लाखों बलिदान दे के, हजारों के जान लेके,  

सोन के चिरइया बर,खोले संसार हे।  


रचनाकार- दिलीप कुमार वर्मा 

बलौदाबाजार

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बेरा नव निरमान के-बलराम चन्द्राकर

 उल्लाला छंद के पहला प्रकार

जुलमिल रेंगव साथ ये, बेरा नव निरमान के।

मनुस-मनुस सम्मान के, हिन्द देश जय गान के।।


मुकुट हिमालय देश के, सागर के पहरा हवै। 

युग-युग ले पावन करत, गंगा के लहरा हवै।। 


सत्य अहिंसा न्याय बर, पुरखा तजिन परान ला।

बर्बर दुनिया ले बचा, राखिन हिन्दुस्तान ला।।


ऊँच-नीच के रोग हा, डँसिस फेर ये देश ला।

अइसन अवगुण हा हमर, बाँट डरिस परिवेश ला।।


चलौ ज्ञान विज्ञान ले, लाबो नवा बिहान फिर।

भेदभाव पाखंड हर, करथे अउ खाई गहिर।। 


नारी शिक्षा ले हमर, जग मा बाढ़त मान हर। 

बराबरी अधिकार ले, पढ़त हवै संतान हर।। 


करम-धरम के हर सबक, मन मा धारव नेक रे।

नियम देश कानून ला, मानव हो के एक रे। 


भ्रष्ट तंत्र के नाश कर, गढ़ौ सुघर भारत नवा। 

खावौ किरिया देश बर, शुद्ध रहै पानी हवा।। 


जुन्ना होगे बात हा, राजा लाट नवाब के। 

लोकतंत्र मा तुम इहाँ, मालिक हव हर ख्वाब के।। 


भाग्यविधाता अब तिहीं, नेता अधिकारी तिहीं। 

तँय किसान मजदूर हर, जिम्मेदारी मा तिहीं।


सबो दोष गुण के हमर, हर हिसाब पीढ़ी लिहीं। 

छोड़न स्वारथ भाव ला, छिहीं-बिहीं ये कर दिहीं।। 


बिरथ बड़ाई ले कभू, ककरो झन अपमान हो। 

मनखे बनौ सुजान रे, छोटे बड़े समान हो।। 


तोर मोर के मोह मा, पिसत हवै इंसान रे। 

राजनीति के खेल मा, अउ गड्ढा झन खान रे।। 


धरम पंथ अउ जाति ले, झगरा झंझट दासता। 

राष्ट्र धर्म सब ले उपर, चलन सबो ये रासता ।। 


परन करन हिलमिल रहन, सब मा एक परान रे।

विश्व पटल मा फिर बनै, भारत देश महान रे।। 


रचना :

छंद साधक - 

बलराम चंद्राकर भिलाई

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कुलदीप सिन्हा-   गणतंत्र पर्व  ( आल्हा छंद )


हमर देश हा देथे हरदम,

    विश्व शांति के सब ला मंत्र।

आवव जुरमिल आज मनाबो,

    गाँव शहर में हम गणतंत्र।।1।।


फहर फहर फहराबो झण्डा,

    बाद मनाबो हम त्योहार।

जन गण मन के गाबो गाना,

    बाँट सबो ला मया दुलार।।2।।


सरकारी कार्यालय मन मा,

    आज तिरंगा सब फहराय।

पहिली संझा प्रथम नागरिक,

    जनता ला संदेश सुनाय।।3।।


गाँव गाँव अउ शहर शहर मा

    घर आँगन मा दीप जलाय।

लइका सियान आज सबो मिल,

     मन ही मन मा खुशी मनाय।।4।।


दिवस आज गणतंत्र पर्व हे,

     हँसी खुशी के दिन ये आय।

येखर सेती चारों कोती,

    ढोल नगाड़ा सबो बजाय।।5।।


फहरे हावे अमर तिरंगा,

      इही देश के हरय ग शान।

हम सब भारत वासी मन ला,

     येखर ले मिलथे पहिचान।।6।।


इनला पाये बर गा कतको,

     करे हवे तन के बलिदान।

जेखर करजा कभू नहीं जी,

     छूट सकय गा हिन्दुस्तान।।7।।


अब में जादा का बतलाओं,

      सिरिफ करत हवँ में परनाम।

जेखर जिनगी मा तुम जानो,

      होय समय के पहिली शाम।।8।।


छन्दकार

कुलदीप सिन्हा "दीप"

कुकरेल सलोनी ( धमतरी )

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     शक्ति छंद-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


पुजारी  बनौं मैं अपन देस के।
अहं जात भाँखा सबे लेस के।
करौं बंदना नित करौं आरती।
बसे मोर मन मा सदा भारती।

पसर मा धरे फूल अउ हार ला।
दरस बर खड़े मैं हवौं द्वार मा।
बँधाये  मया मीत डोरी  रहे।
सबे खूँट बगरे अँजोरी रहे।
बसे बस मया हा जिया भीतरी।
रहौं  तेल  बनके  दिया भीतरी।

इहाँ हे सबे झन अलग भेस के।
तभो हे घरो घर बिना बेंस के--।
पुजारी  बनौं मैं अपन देस के।
अहं जात भाँखा सबे लेस के।

चुनर ला करौं रंग धानी सहीं।
सजाके बनावौं ग रानी सहीं।
किसानी करौं अउ सियानी करौं।
अपन  देस  ला  मैं गियानी करौं।
वतन बर मरौं अउ वतन ला गढ़ौ।
करत  मात  सेवा  सदा  मैं  बढ़ौ।

फिकर नइ करौं अपन क्लेस के।
वतन बर बनौं घोड़वा रेस के---।
पुजारी  बनौं मैं अपन देस के।
अहं जात भाँखा सबे लेस के।

जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)
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बलिदानी (सार छंद)

कहाँ चिता के आग बुझा हे,हवै कहाँ आजादी।
भुलागेन बलिदानी मन ला,बनके अवसरवादी।

बैरी अँचरा खींचत हावै,सिसकै भारत माता।
देश धरम बर मया उरकगे,ठट्ठा होगे नाता।
महतारी के आन बान बर,कौने झेले गोली।
कोन लगाये माथ मातु के,बंदन चंदन रोली।
छाती कोन ठठाके गरजे,काँपे देख फसादी।
भुलागेन बलिदानी मन ला,बनके अवसरवादी।

अपन  देश मा भारत माता,होगे हवै अकेल्ला।
हे मतंग मनखे स्वारथ मा,घूमत हावय छेल्ला।
मुड़ी हिलामय के नवगेहे,सागर हा मइलागे।
हवा बिदेसी महुरा घोरे, दया मया अइलागे।
देश प्रेम ले दुरिहावत हे,भारत के आबादी।
भुलागेन बलिदानी मन ला,बनके अवसरवादी।

सोन चिरइयाँ अउ बेंड़ी मा,जकड़त जावत हावै।
अपने मन सब बैरी होगे,कोन भला छोड़ावै।
हाँस हाँस के करत हवै सब,ये भुँइया के चारी।
देख हाल बलिदानी मनके,बरसे नैना धारी।
पर के बुध मा काम करे के,होगे हें सब आदी।
भुलागेन बलिदानी मन ला,बनके अवसरवादी।

बार बार बम बारुद बरसे,दहले दाई कोरा।
लड़त  भिड़त हे भाई भाई,बैरी डारे डोरा।
डाह द्वेष के आगी भभके,माते मारी मारी।
अपन पूत ला घलो बरज नइ,पावत हे महतारी।
बाहिर बाबू भाई रोवै,घर मा दाई दादी।
भुलागेन बलिदानी मन ला,बनके अवसरवादी।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)

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    रोला छंद - बोधन राम निषादराज

(गणतन्त्र दिवस)

झंडा ऊँचा आज,अगासा फहरत हावै।
आजादी के गोठ,चिरइया आज सुनावै।।
जय जवान जय घोष,लगावौ जम्मो भाई।
सुग्घर  राहय  देश, मोर ये भारत  माई।।

संगी चलव  मनाव,आय  हे सुघ्घर  बेरा।
ए गणतंत्र तिहार,देख  ले  सोन  बसेरा।।
पावन मौका आय,झूम के  नाचौ   गावौ।
भूलौ झन उपकार,आज सब खुशी मनावौ।।

लोकतन्त्र  के  पर्व, मनावौ   भारतवासी।
समझौ रे अधिकार,बनौ झन कखरो हाँसी।।
जात-पात के संग,करौ झन आज लड़ाई।
झन हो लहू लुहान,रहौ सब भाई-भाई।।

छंदकार - बोधन राम निषादराज
सहसपुर लोहारा, जिला - कबीरधाम
(छत्तीसगढ़)
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 मनोज वर्मा: गणतंत्र दिवस
चौपई छंद--- तिरंगा


लहर लहर लहराय तिरंगा, भारत माता के हे शान।
जुरमिल करबो आवव हम सब, हिन्द देश के जय जय गान।।

तीन रंग ले सजे तिरंगा, देथे सुग्घर ये संदेश।
एकता अखंडता संस्कृति हे,  हमर देश के परिवेश।।

केसरिया सादा हरियर अउ, संग चक्र कहिथे ये बात।
ताकत साहस धरम शांति शुभ, बढ़त रहय नित भारत मात।।

हमर तिरंगा ऊॅंचा निश दिन, रहय सदा फहरे आगास।
बनय विश्व गुरु रहिके अगुवा, हावय सबझन के ये आस।।

होय हास अब तोर कभू झन, बढ़य जगत मा रोजे मान।
जुरमिल करबो आवव हम सब, हिन्द देश के जय जय गान।
लहर लहर लहराय तिरंगा, भारत माता के हे शान।

मनोज कुमार वर्मा
छंद साधक सत्र 11

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आल्हा छंद- विजेन्द्र वर्मा

आजादी के मोल समझ के,अपने मन ला खुदे टटोल।
लोकतंत्र के रक्षा खातिर,आवव अपने बुध ला खोल।।

जनम भूमि हा सब ले बड़का,होथे येला तुम सब मान।
येकर रक्षा खातिर संगी,चाहे जावय अब तो जान।।

लहू बहे हे पुरखा मन के,अमर रहय ओकर बलिदान।
भारत माँ के सेवा बर जी,जेन गँवाये अपने जान।।

जात पात सब छोड़ छाड़ के,मनखे बन जव एक समान।
देश तभे आगू बढ़ही जी,मनखे बनहू तभे महान।।

अपने बर तो सब जीथे सुन, देश धरम बर जीना सीख।
दया मया ले काम करव अब, कोनों माँगव झन अब भीख।।

राजनीति जे करथे बिक्कट,खाथे भक्कम रिश्वत रोज।
सेवा खाली झूठ लबारी,बन के गिधवा करथे भोज।।

पद पइसा के भूखे हाबय,जेन भरत अपने घर बार।
सरम करम सब बेच खात हे, अइसन मनखे ला धिक्कार।।

अगुवा बनके रेंगव संगी,लावव अब तो नवा बिहान।
तोर मोर के चक्कर छोड़व,तभे हमर बनही पहिचान।।

विजेन्द्र वर्मा
नगरगाँव(धरसीवाँ)
जिला-रायपुर

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घनाक्षरी-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

आज बिहना के होती, एती वोती चारो कोती।
तन मन मा सबे के, देश भक्ति जागे हवै।
खुश हे दाई भारती, होवय पूजा आरती।
तीन रंग के तिरंगा, गगन मा छागे हवै।
दिन तिथि खास धर, आशा विश्वास भर।
गणतंत्रता दिवस, के परब आगे हवै।
भेदभाव ला भुलाके, जय हिंद जय गाके।
झंडा फहराये बर, सब सँकलागे हवै।

खैरझिटिया

कुंडलियाँ छंद-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

जय जय भारत देश के, जय जय हिंदुस्तान।
जय जय जय माँ भारती, जय सैनिक बलवान।
जय सैनिक बलवान, तान के रेंगें सीना।
दै बैरी ला मात, तभे सम्भव हे जीना।
जेन दिखाये आँख, ओखरो कर देथे छय।
सीमा के रखवार, वीर सैनिक मनके जय।

जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को,कोरबा(छग)

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जम्मो झन ल गणतंत्र दिवस के हार्दिक 
बधाई जी

कहिथें    जेला   देस  के,    संविधान   इन्सान।
आजे  के दिन  ताय जी,  पारित करिन मितान।।
पारित  करिन  मितान,  नियम  कानून बनावत।
जात  पात  अउ  धरम  बीच  मतभेद  मिटावत।।
कोन   आज    कानून,  बने  अस  मानत रहिथें।
फेर   दिवस  गणतंत्र,  मनावत  हन सब कहिथें।।

आजादी    के    मायने,    हो   गे   हे  स्वच्छंद।
कहना     वंदे    मातरम्,    करवावत   हें   बंद।।
करवावत   हें    बंद,   तिरंगा   तक   फहराना।
चुका  धरम   निरपेक्ष   होय  के  तँय  हरजाना।।
बइहा   गे   हें   काय,   इहाँ   तबका   आबादी।
शायद  लोगन  मान,   इही   मतलब  आजादी।।

एके बिनती    मोर  हे,   अनुशासन   झन   टोर।
मनखे   मनखे  एक  एँ,  सब  सँग  नाता  जोर।।
सब  सँग  नाता  जोर,  समझ  भुँइया-महतारी।
राखन   एकर  लाज,  काज  करके  हितकारी।।
प्रभु तिर मँय कर-जोर ,  माँगथँव   माथा  टेके।
संविधान   के  मान  रखन,  बस  विनती  एके।।


सूर्यकान्त गुप्ता
सिंधिया नगर दुर्ग(छ.ग.)

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*सारछंद* 
*गणतंत्र तिरंगा प्यारा*  

भारत भुइयाँ पुण्य धरा हे,बोली आनी बानी।
मानव हित गणतंत्र बने हे,दिल हे हिन्दुस्तानी ।।

धरे तिरंगा अपन हाथ में,गीत देश के गाबो।
मान करें बर मर मिटबो सब,झंडा ला फहिराबो।।

शान देश के इही तिरंगा,सरी जगत मा न्यारा।
हमर भेष पहिचान इही हे,तीन रंग हे प्यारा।।

मान करव सम्मान करव सब, बाँटव भाई चारा।
न्याय ज्ञानअउ संविधान हे,जनता जिनगी धारा।।

झंडा ऊंचा रहे सदा जी,जब्बर छाती तानों।
हवे हमर पहिचान इही जी,सब ले ऊपर मानों ।।

पहरा देवत रक्षक मन जी,जंगल सकरी घाटी। 
वंदेमातरम जयहिन्द जी,चंदन  भारत माटी।।

परब बड़े गणतंत्र दिवस हे,झंडा ला फहिराबो।
सज-धज घर-घर दीप जलाबों,सेव बूंदी खाबों।।

जुर-मिल रहिबो जात धरम तज,मार भगाबो घाती।
केसरिया बाना धर घूमव,जरे मया के बाती।।

 *रचनाकार-डाॅ मीता अग्रवाल मधुर रायपुर छत्तीसगढ़*
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ज्ञानू: रूपमाला छंद 

देशहित बर काम करले, तोर होही नाम।
छोड़ मौका झन कभू तँय, हाथ सुग्घर काम। 
तोर हावय हाथ मा कर, नाम या बदनाम।
मान पाथे जेन करथे, देशहित बर काम।।

छंदकार- ज्ञानुदास मानिकपुरी 
चंदेनी- कबीरधाम
छ्त्तीसगढ़
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 डी पी लहरे: सार छंद गीत

हमर देश के शान तिरंगा,
झंड़ा ला फहराबो।
चलव चलव जुरमिल के संगी,
तन मन ला हरसाबो।।

हमर देश के संविधान हा,
हावय सबले पावन।
किसम किसम अधिकार मिले हे
हम सब पाये हावन।।

रहय एकता हमर बीच मा,
भाई चारा लाबो।
हमर देश के शान तिरंगा,
झंडा ला फहराबो।।

जान गँवाइन भारत माँ बर,
कतको वीर सिपाही।
आजादी तब पाये हावन,
हे संसार गवाही।।

अमर वीर बलिदानी मनके,
गाथा ला हम गाबो।
हमर देश के शान तिरंगा,
झंडा ला फहराबो।।

द्वारिका प्रसाद लहरे
कवर्धा छत्तीसगढ़

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 ज्ञानू: सोरठा छंद 

आज दिवस गणतंत्र, चलौ मनाबो मिल हमन।
सबले बड़का मंत्र, सत्य अहिंसा देशहित।।

करौ सदा उपकार, सबले बड़का मंत्र ये।
बाँटव मया दुलार, भाईचारा एकता।।

छोड़ राग अउ द्वेष, बाँटव मया दुलार सब।
सर्वोपरि हे देश, त्यागव निज के स्वार्थ ला।।

हम सब बर हरहाल, सर्वोपरि हे देश जी।
बइरीमन बर काल, हितवा बर मितवा बनौ।।

इही समय के माँग, बइरीमन बर काल बन। 
खींचै कोनों टाँग, ओखर खाल उखेड़ दे।।

ज्ञानुदास मानिकपुरी 
चंदेनी- कबीरधाम
छ्त्तीसगढ़
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हमर तिरंगा (लावणी छंद)
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हमर तिरंगा आसमान मा,
            लहर-लहर लहरावत हे।
सुख सुराज के सुग्घर सुर ला,
             सोन चिरइया गावत हे।।

कतका बलिदानी होये हे,
             अपन देश के माटी मा।
अमर तिरंगा सोझ गड़ा दिस,
              ऊँचा पर्वत घाटी मा।।
अइसन वीर जवान सबो के,
             गाथा बड़ मनभावत हे।
हमर तिरंगा आसमान मा..............

तीन रंग के धजा-पताका,
              केशरिया  साजे ऊपर।
सादा  रंग  शांति  संदेशा,
           खुशहाली लाथे हरियर।।
आन बान सम्मान सबो बर,
             दुनिया मा बगरावत हे।
हमर तिरंगा आसमान मा...............

हमर देश के शान तिरंगा,
               निसदिन गुन एखर गाबो।
मान रखेबर ये भुइयाँ के,
               चलौ सँगी मर मिट जाबो।।
रक्षा खातिर भारत माता,
               आवव आज बुलावत हे।।
हमर तिरंगा आसमान मा...............
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छंदकार:-
बोधन राम निषादराज"विनायक"
सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)

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7 comments:

  1. आप सबो छन्दकार मन ला सुघ्घर लेख अउ गणतंत्र पर्व के बहुत बहुत बधाई।

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  2. आप जम्मो साहित्कार मन ला गाड़ा गाड़ा बधाई👍💐💐
    रोला छंद -आशा आजाद"कृति"

    महापर्व गणतंत्र दिवस

    महापर्व गणतंत्र, चलौ जी सबो मनाबो ।
    जनमन सुग्घर गान, सुघर मिलजुल के गाबो ।।
    भारत के अभिमान, मान अउ सान तिरंगा ।
    ए भुइयाँ के जान, बहत हे नदियाँ गंगा ।।

    तीन रंग हे शान, आज झण्डा फहराबो ।
    आजादी के नाव, अपन सब माथ झुकाबो ।।
    हावै अमर शहीद, सबो ला शीश नवावौ ।
    ए भुइयाँ के शान, गीत वंदे ला गावौ ।।

    जय जय हमर जवान, इही गूँजय शुभ नारा ।
    जय जय हमर किसान, देश के इही अधारा ।।
    भारत सुघ्घर देश, जिहाँ शुभ रक्त बहे हे ।
    ए भुइयाँ हा खूब, दरद अउ कष्ट सहे हे ।।

    करलौ नित परनाम, इही हे पावन माटी ।
    अब्बड़ लड़िन शहीद, युद्ध ला जंगल घाटी ।।
    करिन नेक बलिदान, धन्य हे जिनगी जानौ ।
    भूख प्यास ला त्याग, देह त्यागिन ये मानौ ।।

    छंदकार - आशा आजाद"कृति"
    पता - मानिकपुर कोरबा छत्तीसगढ़



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  3. आप जम्मो साहित्कार मन ला गाड़ा गाड़ा बधाई👍💐💐
    रोला छंद -आशा आजाद"कृति"

    महापर्व गणतंत्र दिवस

    महापर्व गणतंत्र, चलौ जी सबो मनाबो ।
    जनमन सुग्घर गान, सुघर मिलजुल के गाबो ।।
    भारत के अभिमान, मान अउ सान तिरंगा ।
    ए भुइयाँ के जान, बहत हे नदियाँ गंगा ।।

    तीन रंग हे शान, आज झण्डा फहराबो ।
    आजादी के नाव, अपन सब माथ झुकाबो ।।
    हावै अमर शहीद, सबो ला शीश नवावौ ।
    ए भुइयाँ के शान, गीत वंदे ला गावौ ।।

    जय जय हमर जवान, इही गूँजय शुभ नारा ।
    जय जय हमर किसान, देश के इही अधारा ।।
    भारत सुघ्घर देश, जिहाँ शुभ रक्त बहे हे ।
    ए भुइयाँ हा खूब, दरद अउ कष्ट सहे हे ।।

    करलौ नित परनाम, इही हे पावन माटी ।
    अब्बड़ लड़िन शहीद, युद्ध ला जंगल घाटी ।।
    करिन नेक बलिदान, धन्य हे जिनगी जानौ ।
    भूख प्यास ला त्याग, देह त्यागिन ये मानौ ।।

    छंदकार - आशा आजाद"कृति"
    पता - मानिकपुर कोरबा छत्तीसगढ़



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  4. सुग्घर संग्रह

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  5. बहुत बढ़िया संग्रह

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  6. बहुत सुग्घर संग्रह सबक रचनाकार ल बधई।

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