Sunday, March 13, 2022

कुण्डलिया छन्द -*

 *कुण्डलिया छन्द -*


 (1) होरी खेलय श्याम


मोहन गावय फाग ला, राधा  रंग  लगाय।

बरसत हावै प्रेम हा, मनखे मन बउराय।।

मनखे मन बउराय, देख लव  माते  होरी।

नाचत हावय गोप, संग मा राधा  गोरी।।

बरसाना हा देख, सबो के मन ला भावय।

होरी खेलत श्याम, फाग ला सुघ्घर गावय।।


(2) पुरवइया


फागुन आ गे देखतो, परसा फुलगे लाल।

चारो मूड़ा धूम हे, बदले हावै चाल।।

बदले हावै चाल, समागे  सबके  मन  मा।

सरसो फूल अपार, छाय हे सब उपवन मा।।

अइसन बेरा देख, मोर मन ला बड़ भा गे।

सुग्घर पुरवा आय, देख तो फागुन आ गे।।


(3) बिरहिन 


हाँसत हावै  फूल हा, मोरो  मन   बउराय।

भँवरा गुनगुन गात हे, आगी हिया लगाय।। 

आगी जिया लगाय, कोन ला भेजँव पाती।

जोड़ी  गै  परदेश, दुःख मा  जरथे छाती।।

बइरी फागुन आय, करौं का कुछु नइ  भावै।

देख हाल ला मोर, फूल  हा  हाँसत  हावै।।


बोधन राम निषादराज"विनायक"

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