Thursday, September 4, 2025

श्री गणेश स्तुति- त्रिभंगी छंद


 श्री गणेश स्तुति- त्रिभंगी छंद 


श्री गणेश गणपति,लम्बोदर प्रभु ,सूरवीर तँय, महा बला।

गौरी सुत नन्दन,सिद्धि विनायक,गजब दिखाये,ललित कला।

देवों के तँय हा,देव बुद्धिप्रिय,सुमुख भुवनपति,नाथ हरौ।

हे विध्नविनाशक,विद्यावारिधि,विकट चार भुज,हाथ हरौ।।


हे शुभगुणकानन,बुद्धिविधाता,मूषक वाहन,देव तहीं।

हे विश्वाराजा,मात पिता के,सेवक कीर्ति,नेंव तहीं।

हे कपिल कृपाकर, विघने हरता,माता तोरे, पारबतीI 

हे वक्रतुंड प्रभु,एकदंत तँय,सबले जादा,हवय मतीII  


गजमुख गणनायक,वरदविनायक,नमस्थेतु प्रभु,धरे गदा।

हे मंगलमूरति,ओमकार जप,जय हो जय हो,तोर सदा।

एकाक्षर श्वेता,शशिवरणम शुभ,रिद्धि सिद्धि के,नाथ तहीं। 

हे यज्ञकाय प्रभु,भक्तन मन ला,देथस वर अउ,साथ तहींII


जे योगाधिप प्रभु,तरुण यशस्कर,विघ्नराज के,ध्यान धरै।

भागय विपदा हा,धन बल बाढ़य,भव के सागर,पार करैI

हे देवदेव श्री ,गुण सर्वात्मन,पुण्य काज मा,साथ तहींI

प्रथमेश्वर स्वामी,शुभ कारज के,वर देवइया,हाथ तहींII


हे शूपकर्ण प्रभु,दीनन के सुख,भक्ति धार के,रंग हरौI

हव ज्ञान जोत के,दीप जलइया,गणराजा नित,संग हरौ।

धीरज गहना ये,कहव सदा प्रभु,सुघर चन्द्र के,भाल हरौI

हे धूम्रवर्ण प्रभु,गणाध्यक्ष तँय,बइरी बर तो,काल हरौII

 

हे बुद्धिनाथ तँय,तोर कृपा ले,सबके पूरन,काज बने।

लड्डू मोदक के,परसादी ले,मन शरीर ला,साज बनेI 

दूर्जा दैमांतुर,लम्बकर्ण प्रभु,हरथस सबके,पीर बनेI  

हे अमित अखूरथ,तोला प्रिय हे,मोदक लडुवन,खीर बने।। 


हे गुणिन मनोमय,मृत्युंजय प्रभु,विनती हे कर,जोर करौं।

हे रक्त रूद्रप्रिय,माथ नँवाके,श्रद्धा भक्ति ला,तोर करौं।

देव स्क्न्दपूर्वज,महाकाय नित,रक्षा खातिर,खाम बनौ।

देवान्तकनाशक,भटके मन मा,मूरत बनके,धाम बनौ।।


हे प्रमोदाय सुन,मँय अगियानी,निचट अपड़ हँव,ज्ञान दवौ।        

हे भीम चतुर्भुज,क्षेमकरी प्रभु,गजनानेटी,ध्यान दवौ।                       

हे मुक्तिदया कृति,सिद्धिप्रिया तँय,बाधा विपदा,टार सदा।

हे शुबान सुमुखा,पुरुष नंदना,बनथस खेवन, हार सदा II 


हे विश्वराज प्रभु,तोर कृपा ले, बिगड़े सबके,भाग बने।

क्षिप्रा विघनेश्वर,गजा हंभवी,ज्ञान जोत के,पाग बने।

यशवासिन कविशा,हाथ जोर के,महिमा तोरे,गाँव सदाI

हे गुनिना कपिला,तोर कृपा के,मिलत रहय नित,छाँव सदाII


हे देव गजानन,हे अवनीशा,सबके हरथव,क्लेश इहाँ।

हे यशस्करम प्रभु,पनपे झन तो,कखरोंअंतस,द्वेष इहाँ।

पइयाँ लागव मँय,नाथ उबारव,सबले बड़का,देव तहीं।

गिरजा के लाला,दीन दयाला,भक्तन के सुध,लेव तहींII


विजेन्द्र कुमार वर्मा 

नगरगाँव (धरसीवांँ)

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