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Saturday, August 31, 2019

तीजा पोरा विशेषांक(छंदबद्ध कविता)



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तीजा पोरा विशेषांक(छंदबद्ध कविता)
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रोला छंद-श्री सुखदेव सिंह"अहिलेश्वर"
               
भदरे भादो आज,अमावस अँधियारी हे।
रस्ता ला दस बेर,निहारत महतारी हे।
गे हे बाप लिवाल,करेजा के टुकड़ा बर।
जातो बेटा देख,पहुँच नइ पाये काबर।

दाई के सुन बात,टुरा के मन हरसे हे।
हाँसत निकलय खोर,कलम अँगरी अरझे हे।
देख सवारी चार,कुलक के घर मा आथे।
ले दीदी के नाँव,साँस बिन लेय बताथे।

दाई गय बिसराय,गिने सुरता के दिन ला।
देवय मया दुलार,अपन नाती नतनिन ला।
निक लागे घर द्वार,खोर अँगना भाये हे।
धर बेटी के रूप,खुशी मइके आये हे।

सुनबो गुनबो पोठ गोठ कबिरा घासी के।
पाबो आशीर्वाद,सदाशिव अविनाशी के।
रोटी पीठा राँध,जँवाबो बइला बाहन।
जेखर कृपा प्रसाद होत हे पोषन पालन।

बहिनी मनके पाँव,परे हे खोर गली मा।
शहर नगर घर गाँव,मगन मन हली भली मा।
भाव भजन ला झोंक,परब पबरित तँय पोरा।
जनमानस ला तोर,बछर भर रथे अगोरा।

              छंदकार-सुखदेव सिंह'अहिलेश्वर'
               गोरखपुर कबीरधाम छत्तीसगढ़

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मनहरण घनाक्षरी - दिलीप कुमार वर्मा
                   (1)
तीजा के तिहार आये, मन मोरो हरसाये,
भाई लेगे आही मोला, आँखी फरकत हे।
दाई ले मिलाप होही, खुसी मोरो बाप होही,
छोटे बहिनी ल देखे, मन तरसत हे।
कब रतिहा पहाये, भाई मोरो घर आये,
मन तक अकुलाये, नींद न परत हे।
बेरा कहूँ होही भाई, जीव मोर छूट जाही,
जलदी से आजा लेगे,  जिवरा बरत हे।
                      (2)
सबो सँगवारी आही, पोरा धर भाँठा जाही,
आनी बानी बतियाही, भाई अब आव रे।
बेरा हा चढ़त हावे, मन हा ढरत हावे,
आँखी भर आये झन, सूरत दिखाव रे।
आशा मोरो टूटे झन, मन मोरो रूठे झन,
रसता निहारत हौं, झन खाना भाव रे।
बदला ते झन लेना, माफ मोला कर देना,
झगरा ओ बचपन, आज भूल जाव रे।
                        (3)
भाई भाई घर आगे, आँखी देख भर आगे,
खुशी के ये आँसु मोरो, रोके ना रुकत हे।
महूँ तीजा माने जाहूँ, सखी सँग मिल आहूँ,
सोंच सोंच हिरदे हा, देख सुसकत हे।
लागे मोरो पाँख जागे, भाई जब घर आगे,
मनवा अगास उड़े, दुनिया झुकत हे।
काम में न मन लागे, दुख सबो बिसरागे,
मन मा उमंग छागे, पाँव थिरकत हे।

रचनाकार-दिलीप कुमार वर्मा
बलौदाबाजार (छत्तीसगढ़)

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कुकुभ छंद-जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"

सजे हवे माटी के बइला,माटी के जाँता पोरा।
राँध ठेठरी खुरमी भजिया,करे हवै सबझन जोरा।

भादो मास अमावस के दिन,पोरा के परब ह आवै।
बेटी माई मन हा ये दिन,अपन ददा घर सकलावै।
हरियर धनहा डोली नाचै,खेती खार निंदागे हे।
होगे हवै सजोर धान हा,जिया उमंग समागे हे।
हरियर हरियर दिखत हवै बस,धरती दाई के कोरा।
सजे हवे माटी के बइला,माटी के जाँता पोरा।1

मोर होय पूजा नइ कहिके,नंदी बइला हा रोवै।
भोला तब वरदान ल देवै,नंदी के पूजा होवै।
तब ले नंदी बइला मनके, पूजा होवै पोरा मा।
सजा धजा के भोग चढ़ावै,रोटी पीठा जोरा मा।
पूजा पाठ करे मिल सबझन,सुख पाये झोरा झोरा।
सजे हवे माटी के बइला,माटी के जाँता पोरा।2

कथे इही दिन द्वापर युग मा,पोलासुर उधम मचाये।
मनखे तनखे बइला भँइसा,सबझन ला बड़ तड़पाये।
किसन कन्हैया हा तब आके,पोलासुर दानव मारे।
गोकुलवासी खुशी मनावै,जय जय सब नाम पुकारे।
पूजा ले पोरा बइला के,भर जावय उना कटोरा।
सजे हवे माटी के बइला,माटी के जाँता पोरा।3

दूध भराये धान म ये दिन,खेत म नइ कोनो जावै।
परब किसानी के पोरा ये,सबके मनला बड़ भावै।
बइला मनके दँउड़ करावै,सजा धजा के बड़ भारी।
पोरा परब तिहार मनावय,नाचय गावय नर नारी।
खेले खेल कबड्डी खोखो,नारी मन भीर कसोरा।
सजे हवे माटी के बइला,माटी के जाँता पोरा।4

बाबू मन बइला ले सीखे,महिनत अउ काम किसानी
नोनी मन पोरा जाँता ले,होवय हाँड़ी के रानी।
पूजा पाठ करे बइला के,राखै पोरा मा रोटी।
भरे अन्न धन सबके घर मा,नइ होवै किस्मत खोटी।
परिया मा मिल पोरा पटके,अउ पीटे बड़ ढिंढोरा।
सजे हवे माटी के बइला,माटी के जाँता पोरा।5

सुख समृद्धि धन धान्य के,मिल सबे मनौती माँगे।
दुःख द्वेष ला दफनावै अउ,मया मीत ला उँच टाँगे।
धरती दाई संग जुड़े के,पोरा देवै संदेशा।
महिनत के फल खच्चित मिलथे,नइ तो होवै अंदेशा।
लइका लोग सियान सबे झन,पोरा के करै अगोरा।
सजे हवे माटी के बइला,माटी के जाँता पोरा।6

छंदकार-जीतेन्द्र कुमार वर्मा"खैरझिटिया"
पता-बाल्को,कोरबा(छत्तीसगढ़)

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बरवै छंद-द्वारिका प्रसाद लहरे

लकठा होगे अब तो,तीज तिहार।
लेनहार हा आही,करत बजार।।

लेहे बर अब आही,भइया मोर।
रद्दा देखत हावँव,खोरन खोर।।

धुकुर पुकुर तन होवत,हावय आज।
जल्दी जावँव करके,सुग्घर साज।।

रद्दा जोहत होहीं,संगी मोर।
कुलकत होहीं जम्मो,बँइहाँ जोर।।

बड़ दिन मा जी होही,मिलना संग।
सखी लगाहीं मोला,अपने अंग।।

मोर ददा दाई के,पावन छाँव।
मोर धनी जावन दे,मोला गाँव।।

तोर नाँव के रइहूँ,उहाँ उपास।
मया हमर बगरै जी,सुरुज अगास।।

छंदकार-द्वारिका प्रसाद "लहरे"
बायपास रोड़ कवर्धा छत्तीसगढ़

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सार छंद-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

लइका लोग ल धरके गेहे,मइके मोर सुवारी।
खुदे बनाये अउ खाये के,अब आगे हे पारी।

कभू भात चिबरी हो जावै,कभू होय बड़ गिल्ला।
   बर्तन भँवड़ा झाड़ू पोछा,हालत होगे ढिल्ला।
   एक बेर के भात साग हा,चलथे बिहना संझा।
मिरी मसाला नमक मिले नइ,मति हा जाथे कंझा।
दिखै खोर घर अँगना रदखद,रदखद हाँड़ी बारी।
   खुदे बनाये अउ खाये के,अब आगे हे पारी।1।

सुते उठे के समय बिगड़गे,घर बड़ लागै सुन्ना।
  नवा पेंट कुर्था मइलागे,पहिरँव ओन्हा जुन्ना।
कतको कन कुरथा कुढ़वागे,मूड़ी देख पिरावै।
     ताजा पानी ताजा खाना,नोहर होगे हावै।
कान सुने बर तरसत हावै,लइका के किलकारी।
खुदे बनाये अउ खाये के,अब आगे हे पारी।2।

खाये बर कहिही कहिके,ताकँव मुँह साथी के।
चना चबेना मा जी कइसे,पेट भरे हाथी के।
मोर उमर बढ़ावत हावै,मइके मा वो जाके।
राखे तीजा के उपास हे,करू करेला खाके।
चारे दिन मा चितियागे हँव,चले जिया मा आरी।
खुदे बनाये अउ खाये के,अब आगे हे पारी।3।

छंदकार-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
पता-बाल्को,कोरबा(छत्तीसगढ़)

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 सरसी छंद गीत-द्वारिका प्रसाद 'लहरे"

तीजा पोरा मा चल दे हे,
माने नइ हे बात।
लेगे जम्मो लइका मन ला,
कोन राँधही भात।।

मरना होगे अब तो संगी,
करय कोन अब काम।
झाडू पोंछा बरतन भाँड़ा,
कहाँ मिलय आराम।।

मइके जाके मजा उड़ावय,खावय रोटी सात...
तीजा पोरा मा चल दे हे,माने नइ हे बात...ll1

ये तीजा के चक्कर पेरय,
होय जीव के काल।
मइके जाये बर चलथे जी,
अब्बड़ ओ हा चाल।।

कुछू काम नइ करे सकँव मैं,
राँधव कइसे रोज।
साग पान अउ जरे भात ला,
मुँह मा लेथँव बोज।।

झड़कत होही मइके जाके,रोटी ताते तात...
तीजा पोरा मा चल दे हे,माने नइ हे बात...ll2

धुकुर पुकुर अब जिंवरा लागे,
काय बतावँव हाल।
पनछटहा जिनगी होगे हे,
बढ़गे हे जंजाल।।

ये दिन हा तो लटपट कटथे,
कटय कहाँ जी रात।
घेरी बेरी सुरता आथे,
सोवत जागत खात।।

का दुख मोर बतावँव संगी,हरँव पुरुष के जात..
तीजा पोरा मा चल दे हे,माने नइ हे बात...ll3

छंदकार-द्वारिका प्रसाद"लहरे"
बायपास रोड़ कवर्धा छत्तीसगढ़

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मनहरण घनाक्षरी-राम कुमार चन्द्रवंशी
                    1
तीजा के तिहार आगे,दीदी के जी मन भागे,
भांची-भांचा मन हर बड़ मुस्कात हे।
दीदी उपवास हावे,भांटो ह उदास हावे,
कचरा ल फेंके बर, भांटो कनवात हे।
भांटो के जी बला होंगे,दीदी ल तीजा पठोके,
घर घर दीदी हर करु भात खात हे।
भांटो गये तरिया हे, धरे जी गगरिया हे।,
पानी ल भरत भांटो,अबड़ लजात हे।।
                  2
चाँउर निमारत हे, सूपा ल बजावत हे,
आगी घलो बरे नहीं,भांटो झुँझवात हे।
चेतबुध खोवत हे, हलकान होवत हे,
भांटो हर दीदी कर फोन जी लगात हे।
दीदी मुसकात हावे,मजा जी उड़ात हावे,
कहाँ काये चीज हावे,फोन म चेतात हे।
भांटो चौंधियावत हे, दीदी याद आवत हे,
एक बेर राँध भांटो तीन बेर खात हे।।

छंदकार-राम कुमार चन्द्रवंशी
बेलरगोंदी जिला-राजनांदगाँव
छत्तीसगढ़

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कज्जल छंद - विरेन्द्र कुमार साहू

बंदय  बइगा  देव - खार।
करय मातृका के सिँगार।
पहिनावय शुभ फूल हार।
आवै  जब  पोरा  तिहार।१।

महके हूँम म घर -दुवार।
गुरहा चीला चढ़य  चार।
नंदी  के  होवय  सिँगार।
आवै  जब  पोरा  तिहार।२।

बइला दउँड़य धुआंधार।
हाँसय  लइका  जोरदार।
बहय गाँव मा मया धार।
आवै  जब  पोरा  तिहार।३।

छंदकार:- विरेन्द्र कुमार साहू , ग्राम बोड़राबाँधा (पाण्डुका) , वि.स. राजिम जि. गरियाबंद , छ.ग.

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दोहा छंद-संतोष कुमार साहू

तीजा बने तिहार हे,हर बेटी के आस।
आथे येहा साल मे,एक बार गा खास।।

बेटी जाथे मायके,पाथे खुशी अपार।
पाथे ददा दुलार ला,अउ दाई के प्यार।।

बहिनी के भाई तको,करथे बिकट सम्मान।
दिल ओकर टूटे नही,हरदम रखथे ध्यान।।

एक जगा बहिनी सबो,ये तिहार मा आय।
अपन अपन सुख दुख बने,सुग्घर अकन बताय।।

बेटी रहे उपास अउ,कतरा भोग लगाय।
सबके सुख अउ शाँति बर,ईश्वर ला मनवाय।।

सखी सहेली भेंट से,सुग्घर मन हर्षाय।
बचपन के सब याद मा,मुचुर मुचुर मुस्काय।।

सुन्दर नावा ओनहा, सबझन पहिरे नेक।
एक दूसरा देख के,दिखे उमंग अनेक।।

संतोष कुमार साहू
रसेला(छुरा)
जिला-गरियाबंद(छत्तीसगढ़)

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लावणी छन्द:कमलेश कुमार वर्मा

सावन पाछू आथे संगी,भादो हा पावन-सुग्घर।
चारों मूड़ा खेत-खार मन,दिखथें जी हरियर-हरियर।।

परब खमरषठ मा महतारी,रखथें व्रत लइका मन बर।
छै जिनीस के भाजी सब्जी, अउ खाथें चाउँर पसहर।।

कृष्ण पाख के आठे मा जी,जनम धरिन जग मा गिरधर।
येकर पावन गीता-बानी,मानवता बर हे हितकर।।

बेटी-माई मन तीजा मा, रहि उपास निर्जल दिनभर।
शिव-गौरी ला पूज मांगथे,बड़ लम्बा पति बर उम्मर।।

शुक्ल पाख के चौथा तिथि मा, विराजथे जी गणपति हर।
बड़ उछाह ले पूजा करथें,भक्तन मन दस दिन घर -घर।।

छन्दकार - कमलेश कुमार वर्मा
भिम्भौरी,बेमेतरा (छत्तीसगढ़)

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वाम सवैया-श्रीमती आशा आजाद
                    1
बड़ा मनभावन लागत हे बहिनी मनहा सब तीज मनावै।
लगावत हे सब हाथ म रंग सखी मिलके मुसकावत गावै।
सुहागिन आज सजै बड़ देखव नीक सुहावन लागत हावै।
धियान धरै पति नाव रटै सुमिरै ग सुहागिन ओ कहलावै।।
                       2
बलावत हे सब तीज तिहार म भात खवाय बड़ा मन भाथे।
सबो झन प्रेम ल राखय आज सुहागिन गीत ल सुग्घर गाथे।।
अपार खुशी मइलोगन के दिन रात रखे उपवास सुहाथे।
बिहान म ये फरहार करे हर साल तिहार मया बरसाथे।।

छंदकार-श्रीमती आशा आजाद
पता-मानिकपुर, कोरबा,छत्तीसगढ़

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सखी छंद---चोवा राम 'बादल '
                     
पोरा के महिमा  भारी। सुन लेहू गा सँगवारी ।।
  पोलासुर अत्याचारी। उधम मचाइस जब भारी ।।

कृष्ण मुरारी मारे हे। आजे के दिन तारे हे।।
  नाम परिच तभ्भे पोरा।  गो पालक के सँग जोरा ।।

 बइला के पूजा होथे। खेत हमर जे हा बोथे ।।
  दउँड़ाथें घँघड़ा साजे ।घनन घनन जे हा बाजे।।

 खेल खिलौना माटी के। दर्शन हे परिपाटी के ।।
  अबड़ अकन राँधे रोटी। बड़की मँझली अउ छोटी।।

  माते जब खुडवा खो-खो। चिहुर परै देखो देखो ।।
   नाच सुआ नोनी पीला। खुश हे दीदी रमशीला ।।

तीजा होही शुरु काली। सब बर माँगे खुशहाली ।।
 करू करेला सब खाहीं।  आसिस गौरी के पाहीं।।

 दीदी के लुगरा नावा। पहिरे झट बासी खावा।।
  बेटी दू दिन सुरतागे। मइके मन भावन लागे।।

 पूरा अब होगे तीजा। लेगे  आ जाही जीजा ।।
 तीजा गुन 'बादल' गाथे। अब्बड़ ओकर मन भाथे।।

छंदकार--चोवा राम 'बादल '
              हथबन्द (छग)

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कज्जल छंद-जितेन्द्र कुमार निषाद

पबरित पोरा के तिहार।
गाँव -शहर मा मजा मार।।
चुरे हवय रोटी अपार।
जेन करा हे रोजगार।।

एसो होगे बुराहाल।
खेती होगे हमर काल।।
बिन पानी के हे दुकाल।
ऊपरवाला अब सम्हाल।।

का पीसन अब रोज-रोज।
जाँता मा अब खोज-खोज।।
लागा-बोड़ी दीस बोज।
मिले नहीं भरपेट भोज।।

बइला छेल्ला घुमैं खेत।
कोन करत हे तको चेत।।
सउँहे ला खेदार देत।
मूरति पूजा करै नेत।।

छंदकार-जितेन्द्र कुमार निषाद
सांगली,बालोद(छत्तीसगढ़)

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दोहा छंद-संतोष कुमार साहू

तीजा बने तिहार हे,हर बेटी के आस।
आथे येहा साल मे,एक बार गा खास।।

बेटी जाथे मायके,पाथे खुशी अपार।
पाथे ददा दुलार ला,अउ दाई के प्यार।।

बहिनी के भाई तको,करथे बड़ सम्मान।
दिल ओकर टूटे नही,हरदम रखथे ध्यान।।

एक जगा बहिनी सबो,ये तिहार मा आय।
अपन अपन सुख दुख बने,सुग्घर अकन बताय।।

बेटी रहे उपास अउ,कतरा भोग लगाय।
सबके सुख अउ शाँति बर,ईश्वर ला मनवाय।।

सखी सहेली भेंट से,सुग्घर मन हर्षाय।
बचपन के सब याद मा,मुचुर मुचुर मुस्काय।।

सुन्दर नावा ओनहा, पहिरे गा हर एक।
एक दूसरा देख के,दिखे उमंग अनेक।।

संतोष कुमार साहू
रसेला(छुरा)
जिला-गरियाबंद(छत्तीसगढ़)

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लावणी छन्द - बोधन राम निषादराज

"पोरा अउ तीजा"

तीजा पोरा बड़ निक लागे,जम्मों खुशी  मनावत हे।
लइका पिचका,नँदिया बइला,गली खोर रेंगावत हे।।

चुकिया पोरा अउ दीया हे,घर घुँदिया सिरजाये हे।
सुघ्घर बारी बखरी लागे, सपना आज सजाये  हे।।

तीजा के तइयारी सुग्घर ,दीदी  मन मुस्कावत हे।
भाई देख अगोरा करके,रद्दा घलो निहारत हे।।

नवा नवा लुगरा ला जोरत,मन मा आस बँधावत हे।
तीजा के त्यौहार मनाये.सुख-दुख ला बतियावत हे।।

दाई दीदी जम्मों बहिनी,मइके मा सकलावत हे।
आज ठेठरी खुरमी देखौ,मिलके सबो  बनावत हे।।

छंदकार - बोधन राम निषाद राज
सहसपुर लोहारा जिला-कबीरधाम (छत्तीसगढ़)

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कुण्डलियाँ छन्द~कन्हैया साहू 'अमित
                1
पोरा माटी के धरे, संगी बाँहीं जोर।
भाँठा मा सकलाय के, पटक-पटक दँय फोर।।
पटक-पटक दँय फोर, करँय सब हँसी ठिठोली।
होवय मेल मिलाप, मया के बोलँय बोली।।
कहय अमित ए गोठ, बछर भर रहय अगोरा।
खेलँय बिक्कट खेल, सबो ला भावय पोरा।।
                     2
गुझिया खुरमी ठेठरी, घर-घर मा ममहाय।
पोरा मा भर-भर भरे, पटक बिपत बिसराय।।
पटक बिपत बिसराय, फोर के बाटँय नरियर।
बाढ़य धन अउ धान, रहय धरती हा हरियर।।
कहय अमित ए बात, सजे हे जाँता चुकिया।
नँदिया बइला खाप, खाँय सोंहारी गुझिया।।
                    3
आवत हे लेवाल हा, बहुते मन अकुलाय।
तिजहारिन के मन कहय, मइके गजब सुहाय।।
मइके गजब सुहाय, ददा दाई के अँगना।
कभू टूट नइ पाय, लहू के बज्जर बँधना।।
कहय अमित ए बात, रीत अब्बड़ सहँरावत।
आज हमर लेवाल, डहर मा होही आवत।।
                   4
तिजहा लुगरा साल के, देथे खुशी अपार।
बेटी बहिनी तीज मा ,पाथें मया दुलार।।
पाथें मया दुलार, ददा दाई के कोरा।
लगे रथे बड़ आस, आय कब तीजा पोरा।।
गुनव अमित के गोठ, मया मा अंतस सिजहा।
सुघर चलागत सार, बिसाथें लुगरा तिजहा।।
               5
तीजा पोरा नेंग के, सुंदर हावत बात।
रहि उपास सब निरजला, खा के करुहा भात।।
खा के करुहा भात, रातभर सुनँय कहानी।
अमर रहै सेंदूर, इही माँगय वरदानी।।
कइसे बनही बात , करेला हा बिन बीजा।
पुरखौती के रीत, हमर ए पोरा तीजा।।
                6
चूरी टिकली फुंदरी, माहुर बिन्दी सार।
तिजहा लुगरा पोलखा, सुग्घर तीज तिहार।।
सुग्घर तीज तिहार, लागथे खारा मीठा।
जुरमिल सबो बनाय, हाँस के रोटी पीठा।
कहय अमित ए बात, मया जिनगी के धूरी।
मइके मान हजार, नेंगहा टिकली चूरी।।

छंद साधक~कन्हैया साहू 'अमित'
शिक्षक-भाटापारा छत्तीसगढ़

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अमृतध्वनि छंद-श्रीमती आशा आजाद
                 
पोरा सुग्घर मान लौ,हावय हमर तिहार।
कृष्ण पक्ष मा आय जी,रहिथे सुग्घर सार।
रहिथे सुग्घर,सार अबड़ हे,सबझन मानौ।
नँदिया बइला,जोड़ी रहिथे,गुन ला जानौ।
संगी साथी,सब करथे जी,आज अगोरा।
छोट बड़े सब,नोनी बाबू,मानय पोरा।।1
               
अँगना घर ला लीपथें,खूब बने पकवान।
छत्तीसगढ़ी ठेठरी,हमर राज के सान।
हमर राज के,सान आज जी,झूमय सबझन।
मिहनत करके ,खूब कमावय,भरथें अन धन।
खुशी मनावय,किंजरय जम्मों,नइ हे बँधना।
मया बरसथे,हँसी ठिठोली,सबके अँगना।।2

चुकिया दीया देख लव,सुग्घर रंग लगाय।
लइका मन सब खेलथे,मनला अब्बड़ भाय।
मनला अब्बड़,भाय रंग मा,जाँता सजथे।
गुलगुल मीठा,अरसा रोटी,अब्बड़ बनथे।
दुख ला हर लौ,झन राहय जी,कोनो दुखिया।
मिल के राहव,घर-घर लावव,दीया चुकिया।।3

छंदकार-श्रीमती आशा आजाद
पता-मानिकपुर, कोरबा,छत्तीसगढ़

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कुण्डलिया छंद--आशा देशमुख
                     1
पोरा तीज तिहार मा, बेटी मन सब आँय।
कुलकत हें दाई ददा, मिलके ख़ुशी मनाँय।
मिलके ख़ुशी मनाँय,मया के बोहय धारा।
बेटी मन के मान,,घरो घर अँगना पारा।
पबरित मया दुलार,भरे दाई के कोरा।
बेटी बहिनी आय,मनावँय तीजा पोरा।
                 2
करथें परब तिहार मन ,हमरो संस्कृति पोठ।
अइसन रीति रिवाज हा, करे मया के गोठ ।
करे मया के गोठ,भिगोये अंतस मन ला।
सुम्मत अउ सम्मान,बाँध के जोड़े जन ला।
मान मया के बोल,हृदय के पीरा हरथे।
मन जोड़े के काम,परब संस्कृति मन करथे।
                 3
सुघ्घर शुभ संदेश ला,  देवँय    रीति रिवाज।
खोंलँव सबके बीच मा, करू भात के राज।
करू भात के राज,मया के भीतर खोली।
सब्बो नियम विधान,बसाये पावन बोली।
प्रकृति धरे गुण पोठ,रहय झन कोनो दुब्बर।
देश गाँव परिवार,रहे सुम्मत से सुघ्घर।

आशा देशमुख
एनटीपीसी रामगुंडम
तेलांगाना

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अमृत ध्वनि छंद -आशा देशमुख
                     1
आनी बानी हे परब,आनी बानी गीत।
हमरो तीज तिहार के,अजब गजब हे रीत।
अजब गजब हे,लोक परब हे,सुनव कहानी।
करू करेला,धरे मया के,मीठा बानी।
नँदिया बइला,पोरा जाँता,दाना पानी।
करम धरम हे,नीति नियम हे,आनी बानी।।
                2
हरियर हरियर सब डहर,बादर वर्षा संग।
धरती अउ सब जीव के,भीगय सब्बो अंग।
भीगय सब्बो,अंग अंग हा, जीव जगत के।
पीरा हरथे ,मन सुख भरथे, देव भगत के।
मन हे फरियर, मंदिर हे घर ,फूटे नरियर।
सबके खेती,रोटी बेटी,राहय हरियर।।

आशा देशमुख
एनटीपीसी रामगुंडम
तेलंगाना

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सार छंद - श्लेष चन्द्राकर

अबड़ चलाथें नंदी बइला, जम्मो लइका मन हा।
सुग्घर पोरा परब मनाथें,  घर-घर मा सबझन हा।।

अन्न खेत मा बोये रहिथे, ओमा दूध भराथे।
तब किसान हा खुश होके जी, पोरा परब मनाथे।।

बने खिलौना माटी के जी, लइका मन ला भाथें।
गाँव-गाँव मा खेल कबड्डी, खो-खो खेले जाथें।।

खेती मा जी साथ निभाथे, पशुधन साथी बनके।
येकर सेती पूजा करथें, ये दिन सब पशु मन के।।

तीजा पोरा परब मनाये, बेटी मइके आथे।
अपन ददा-दाई के घर मा, रहिके परब मनाथे।।

बरा ठेठरी खुरमी चीला, व्यंजन ये दिन बनथें।
माटी के बरतन मा भरके, जिनकर पूजा करथें।।

पोरा के दिन इहाँ प्रेम के, गंगा जी बोहाथे।
परब नीक गा हमर राज के, ये हा माने जाथे।।

छंदकार - श्लेष चन्द्राकर
पता - खैरा बाड़ा, गुड़रु पारा,
 महासमुन्द(छत्तीसगढ़)

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 छंदकार  केवरा यदु "मीरा "

बहिनी मनहा आत हे, मइके तीज तिहार।
एक बछर मा आय गा,भइया देख हमार।।

सावन जबले आय हे,मानत हवन तिहार।
पहिली गेंड़ी बाज गे,  राखी फेर बहार ।।

पोरा आज मनात हे, बहिनी मन सकलाय ।
बइठे खटिया में बने, दुखम सुखम बतियाय।।

करू करेला भात गा,  खाके रबो उपास ।।
बेटी मन मुसकात हे, ये तीजा  हे खास ।।

भाई लानिस लूगरा, हरियर पिंयर  लाल ।
भाँचा बर कुरता घलो, रहय सदा खुशहाल।।

तीजा भोले नाथ के, चरण नवाबो माथ ।
धनी मोर जुग जुग जिये, झिन छूटे पिय हाथ ।।

भाई बहिनी के मया, जानत हे संसार ।
सुरता आथे बचपना, तोरे मया दुलार ।।

सेवा में माँ बाप के, जिनगी तोर पहाय ।
राखी तीज तिहार मा,आ जबे गा लिवाय ।।

तोर संग माँ बाप गा ,रहिथों मँय ससुरार ।
सुरता ला तँय राखबे,   आहूँ तोर दुवार ।।

छंदकार- केंवरा यदु "मीरा "
राजिम

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कुुकुभ  छन्द - गुमान प्रसाद साहू

भइया हा लेगे बर आही, आवत हे तीजा पोरा।
रस्ता जोहत बैठे बहिनी, राखे हे करके जोरा।।1

नान्हेंपन के सखी सहेली, मइके मा सब सकलाही।
अपन अपन सब हाल चाल ला,बने फोर के बतियाही।2

घर अँगना खुँटिया के सब झन, करै परब के तैयारी।
पहिली होही पोरा संगी, तब तीजा के पारी।।3

छंदकार- गुमान प्रसाद साहू ,ग्राम- समोदा (महानदी), रायपुर छत्तीसगढ़

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        रोला छंद-सुधा शर्मा

             1
संगी हावे आज,परब मावस के पोरा।
धरती माता साज, आय ग सुख भरे जोरा।।
माटी बइला खेल, खेलत हें घरघुंदिया।
भाठा मा हे मेल, पटकत ग पोरा चुकिया।।
            2
छम छम छम आवाज,सुनावथे चारों मुड़ा।।
हाँसत खेलत संग, हवें मिल टूरी टूरा।।
बने हवे नमकीन ,  खात ग खुरमी  ठेठरी।
बाँधे बइला पीठ,बना सबो झन मोटरी।।
                3
सुखमय हो सब आज,देवत आसीस धरती।
 मानव सबो तिहार,जीयत भर हवे संस्कृति।।
शंकर नंदी रूप,करें ग सबो घर पूजा।
धरम करम हे नीत, नहीं बूता  हे दूजा।।

छंदकार-सुधा शर्मा

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रोला छंद-सुधा शर्मा

           (1)
पोरा  पाछू  आत,हवे परब संगवारी।
रहिथें तीज उपास, सबो दीदी  महतारी।।
मइके ले लेवाल , आय ग परब पहुनाई ।
धरे संग में  जात, हवें सबो ददा भाई।।
             (2)
खाये बर करु भात,परे नेवता हँकारी।
कुलकत हावें जात,मिले सबो संगवारी।।
सुख दुख ल गोठियात,  सब झन संगी जँहुरिया।
सुरता के सब बात, बीत गे पहर उमरिया।।
            (3)
करत हावें मान, देत सब बहिनी बेटी।
ओन्हा नेवर लान,नवा सिंगारे बेटी।।
देवँय सब आसीस,सदा बेटी बड़भागी।
करें कृपा नित ईश, रखें गा अमर सुहागी।।
             (4)
पूजँय भोलेनाथ,सजे हावे  फूलेरा।
जागें मिल के साथ,रात भर करय भजन ला।।
शक्ति भक्ति के मेल,हवें ग नारी परानी ।
चलत साँस के खेल,बीत जाथे जिनगानी ।।
              (5)
वोला पूछय कोन, हवे नइ कोनो जेकर ।
पीरा हावय मौन, देख सब सुख के सागर।।
हाँसत हावे स॔ंग,सबो पीरा ल लुकाए।
मन मा रोत उमंग, हवे सुध मइके आए।।

छंद कार-सुधा शर्मा
राजिम छत्तीसगढ

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कुकुभ छंद-रामकली कारे

बच्छर दिन मा आथे संगी ,तीज तिहार परब पोरा ।
चलव चलव हाँडी ला धरके ,गरब गुमान अपन फोरा ।।

शुक्ल पक्ष भादों के महिना ,प्रथम दिवस के दिन आगे ।
भक्ति भाव अउ करम धरम हा ,इष्ट देव के हे सँग जागे।।

झम झम नांदिया बइला के , रंग रूप ला बड़ साजै ।
पाँव घुंघरू गर मा घन्टी ,टन टन टन टन बड़ बाजै ।।

जाता चुकिया खेल खिलौना,हाट बजार म भर जाथे ।
टिकली फुँदरी बिझिया चूरी , बिसा बिसा के घर लाथे ।।

बरा ठेठरी खुरमी रोटी ,आनी बानी बड़ खाबो ।
लइका लोग सियान सबो जुर , पोरा के परब मनाबो ।।

रामकली कारे बालको नगर
कोरबा छत्तीसगढ़

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कुकुभ छंद - रामकली कारे

लेहे ला कब आही भइयाँ , तीजा पोरा लकठागे ।
गरजत घुमरत भादों महिना , रोज -रोज दिन हा भागे ।।

मन पंछी हा अबड़ उड़ावय ,किंजर किंजर मइके जाथे ।
घेरी बेरी सुरता बैरी ,आँखी मा आँसू आथे ।।

सखी सहेली बहिनी जुरके ,  माता के गुन ला गाबो ।
नवाँ नवाँ लुगरा सब पहिरे ,मान मनौती ला पाबो ।।

भरही घर बेटी बहिनी ले , सुघ्घर गोठ गोठियाबो ।
भेंट फेर कब होही दीदी, अइसन मया कहाँ पाबो ।।

करू भात ला खाके रहिबौ , रतिहा गीत भजन गाबो ।
पारबती शिव के पूजा कर ,अमर सुहागन बन जाबो ।।

गजब मिठाथे तिजहा बासी ,  इड़हर भाजी ला खाके ।
निचट जुड़ाथे बेटी के मन ,घर महतारी ला पाके ।।


रामकली कारे बालको नगर
कोरबा छत्तीसगढ़


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सखि छन्द- मनीराम साहू मितान

अबड़े  रहिस अगोरा जी।आगे तीजा पोरा जी।
एक बछर मा आये हे।खुशी खजाना लाये हे।

बहिनी बेटी माई के।परब हरय सब दाई के।
छोड़ आयँ हें  सब पीरा।हीरा सीरा अउ नीरा।

सबके घर मा आये हें।देखव तो जुरियाये हें ।
खोर गली बड़ निक लागे। देखत सब पीरा भागे।

गुरतुर गुरतुर बोली हे।हाँसी मया ठिठोली हे।
चहकत हाबयँ भारी जी। सँग संगी सँगवारी जी।

नइ भावत हें अउ काँही।गोठ कुछू आँही-बाँही।
लइका पन मा खोगे हें। एकमई सब होगे हें ।

छंदकार का नाम- मनीराम साहू 'मितान'
कचलोन (सिमगा)
जिला- बलौदाबाजार, छत्तीसगढ़

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कुकुभ छंद - चित्रा श्रीवास

तीजा पोरा आगे संगी ,भैया तो लेहे आही।
किसिम किसिम के खई खजाना,भांची भांचा बर लाही।।

रद्दा देखत हावँव ठाढ़े,जल्दी मइके मैं जाहूँ।
मइके के सुरता नित आथे,बहुरे बचपन ला पाहूँ।।

गोठ बात कर जम्मो बहिनी,सुख दुख ला अपन बताबो।
मीठ गोठ मा कटही रतिहा,तीज गीत जुरमिल गाबो।।

संगी साथी मिलही जम्मो,संझा तरिया मा जाबो।
देखत आँखी भर भर जाही,भेंट घाट मा जब पाबो।।

दाई रद्दा देखत होही,बेटी मोरे अब आही।
मया दया के बरसा करही,खुशी मया के बड़ छाही।

दिन भर रोटी पीठा बनही,कुसली खुरमी अउ चीला।
बइठे जुरमिल खाबो जम्मो,खाई ला माई पीला।

करू करेला संझा खाबो,घूम घूम सब घर जाबो।
निर्जल रहिबो दिनभर संगी,गौरा गौरी सँभराबो।।

बासी इड़हर डुबकी खाबो,रद्दा देखत सब होही।
चूरी टिकली मुँदरी देके,बहुरे के बेरा रोही ।।

मया ददा के हावय अब्बड़,कहिथे भाई कब आबे।
दाई आँसू पोंछत कहिथे,नोनी बाबू ला लाबे।।

छंदकार -चित्रा श्रीवास
 कोरबा ,छत्तीसगढ़

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मदिरा सवैया-ज्ञानुदास मानिकपुरी

बाँध मया गठरी बहिनी मनहा मइके जुरियात हवै।
हाँसत गावत हावय सुग्घर देखव मान बढ़ात हवै।
लागत हे सइमों सइमों घर देख ददा मुसकात हवै।
राँधत हे पकवान नवा लुगरा पहिरे हरषात हवै।

छन्दकार-ज्ञानुदास मानिकपुरी
चंदैनी-कवर्धा
जिला -कबीरधाम (छ्त्तीसगढ़)

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 कुकुभ छंद -पोखन लाल जायसवाल

परछी अँगना होवत रहिथे,भाई के करत अगोरा।
मइके के सुध लामे रहिथे,आथे जब तीजा पोरा।।

कुलकत हाँसत रद्दा जोहे,भाई मोरो अब आही।
देख ददा अउ माई मइके,अंतस बहुते सुख पाही।।

मिलबो सबझन बहिनी माई,अउ ननपन के सँगवारी।
घर अँगना अउ गली खोर हा,सुनही कतको किलकारी।।

कर के पूजा नंदी जाँता,पोरा ला सबो मनाही।
नोनी खेलय जाँता पोरा,बाबू बइला रेंगाही।।

मिले नेवता करू भात के,घूम घरोघर सब खाथे।
गोठ गोठियावत ननपन के,अउ सुरता मा बुड़ जाथे।

सदा सुहागिन के अशीष मा,तीजा के लुगरा पाथे।
पावत मया ददा दाई के,मइके के गुन ला गाथे।।

छंदकार-पोखन लाल जायसवाल
पता- पठारीडीह पलारी
जिला बलौदाबाजार भाटापारा छग.

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 लावणी छंद  -- महेन्द्र देवांगन माटी

तीजा पोरा आ गे संगी , बहिनी सब सकलावत हे ।
अब्बड़ दिन मा आज मिले हे, सुख दुख सबो बतावत हे।।

कइसे दिखथस बहिनी तैंहर , अब्बड़ तैं दुबराये हस ।
काम बुता जादा होगे का , नंगत के करियाये हस ।।
फिकर करे कर तैं जादा झन , दीदी हा समझावत हे ।
अब्बड़ दिन मा आज मिले हे, सुख दुख सबो बतावत हे।।

गाँव गली हा मेला लागय , सखी सहेली आवत हे ।
कब के बिछुड़े आज मिलत हे, पारा भर सकलावत हे।।
हालचाल सब पूछत हावय , सबझन गला  मिलावत हे ।
अब्बड़ दिन मा आज मिले हे, सुख दुख सबो बतावत हे।।

हँसी ठिठोली करय सबोझन,  लुगरा ला देखावत हे।
बरा ठेठरी खुरमी गुझिया , बइठे सबझन खावत हे।।
झूला झूलय सबो सहेली,  मिलके खुशी मनावत हे ।
अब्बड़ दिन मा आज मिले हे, सुख दुख सबो बतावत हे।।

छंदकार-महेन्द्र देवांगन माटी
पंडरिया  (कवर्धा) छत्तीसगढ़

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शंकर छन्द - नीलम जायसवाल
                  (1)
हमर गाँव मा पोरा के दिन, गाँव भर सकलाँय।
ढंग-ढंग के खेल करावँय, बइला ल दँउड़ाँय।
फुगड़ी खोखो दौंड़ कबड्डी, होय सइकिल रेस।
माई-पिल्ला सब झन आवँय, साज सुघ्घर भेस।
                (2)
बहिनी मन मइके आयें हें, पोरा के तिहार।
सजे हवय दाई घर अँगना, हाँसय मुख निहार।
बइला मन के छुट्टी हावय, होत हावय साज।
सुघ्घर सज-धज दँउड़ लगाहीं, खाँय जेवन आज।।
              (3)
किसिम-किसिम के बने कलेवा, सबो जुर-मिल खाव।
ठेठरी-खुरमी बरा सुहारी, मजा गुझिया पाव।
बाबू नाँगर नोनी जाँता, मगन खेलँय खेल।
पोरा के दिन खुशी मनावव, होवय हेल मेल।।

छंदकार - नीलम जायसवाल
पता - खुर्सीपार, भिलाई
जिला - दुर्ग (छत्तीसगढ़)
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छन्न पकैया छंद - नीलम जायसवाल

छन्न पकैया-छन्न पकैया, आज लेवाल आही।
जोरा करके करे अगोरा, बेटी मइके जाही।।

छन्न पकैया-छन्न पकैया, सबे नता घर जाबो।
किँजर-किँजर के सग सोदर घर,करू-भात ला खाबो।।

छन्न पकैया-छन्न पकैया, दीदी मन सकलाए।
मइके घर मा मेला होगे, भाँटो ढोल बजाए।।

छन्न पकैया-छन्न पकैया, दीदी आहे तीजा।
बपुरा जुच्छा भात ल खावय, हलाकान हे जीजा।।

छन्न पकैया-छन्न पकैया, बेटी मइके आए।
संगी मन सँग मिलना होगे, तीजा गजब सुहाए।।

छन्न पकैया-छन्न पकैया, तीजा रतिहा जागौं।
शिव-भोला अउ पार्वती ले, मान-मनौती मागौं।

छन्न पकैया-छन्न पकैया, सजे धजे हे बहिनी।
कतको सुरता नान्हेपन के, कतको हावय कहिनी।।

छन्न पकैया-छन्न पकैया, दुख-सुख के बतियाना।
कतका दिन के बाद मिले हस, कइसे रहे बताना।।

छन्न पकैया-छन्न पकैया, जुर-मिल के बतियावव।
रंग-रंग के खुर्मी-पीठा, सब्बो सँग मा खावव।।

छंदकार - नीलम जायसवाल
भिलाई, दुर्ग, छत्तीसगढ़।

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कुंडलिया छंद-मीता अग्रवाल

(1)
तीजा पोरा रत जगा,भोला गौरी संग।
कर निर्जला उपास ला,बहिनी करथे दंग।
बहिनी करथे दंग,तिजहरिन भोला माने।
कर सोलह सिंगार,  वरत के मतलब जाने।
सुन मीता के गोठ,साल भर रहे अगोरा।
सखी सहेली संग,मानथे तीजा पोरा।

(2)

भात करेला  खाय जी ,करू भात कहलाय।
तीजा के पहिली दिन ले,सब बहिनी  सकलाय।
सब बहिनी  सकलाय,करथे जी हँसी ठठ्ठा।
घूम घूम के खाय, पाय तब लुगरा लठ्ठा।
सुन मीता के गोठ,नता मइका अलबेला।
करे पित्त के नास,खाय करु भात करेला।।

छंदकार-डाॅ मीता अग्रवाल
पुरानी बस्ती लोहार चौंक
रायपुर छत्तीसगढ़ 492001

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गीतिका छंद- मीता अग्रवाल

आज पोरा ला मना लव,मीठ रोटी खाव जी।
होय बइला साज सज्जा, दौड़ भागे जाव जी।
खेल खेले घर दुवारी,सीख नोनी खेल मा।
खेल बाबू खेलथे जी,बैल दौड़े खेल मा ।

जान लेथें मान लेथें,घर किसानी काम जी।
जानबे पोरा तिहारे,काम काजे दाम जी।
लाय भैयाआय बहिनी,मान तीजा मान ले।
ठेठरी खुरमी बिहाने,रोट पीठा सान ले।

मान थे भोला बबा ला, संग गौरी ला सजा।
बेल पतरी संग नरियर,ऊँच फूलेरा धजा ।
जागथें जी रात भर गा, ढोलकी के थाप जी।
माँगथे भोला मनौती,टार दे  हर शाप जी।

छंदकार-डाॅ मीता अग्रवाल
पुरानी बस्ती लोहार चौंक
रायपुर छत्तीसगढ़ 492001

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शंकर छंद - बोधन राम निषादराज

                   (1)
बच्छर दिन के तीजा-पोरा,बने रीत सुहाय।
देखौ बहिनी घर भइया हा,तीज ले बर जाय।।
दाई बाबू के घर आके,जम्मो सुख ल पाय।
सखी सहेली संग बिताके, बूड़ मया म जाय।।

                  (2)
अपन धनी बर ब्रत ला करथे,आय तीज तिहार।
शिव शंकर के पूजा करके,देखै पति निहार।।
नवा-नवा लुगरा ला पाथे, भइया  के दुलार।
अइसन मया बँधाये दीदी,नइ  छूँटै  दुवार।।

                (3)
फरहारी तीजा के करथे,मही कढ़ही खाय।
रंग-रंग  के  हवै  मिठाई,खुरमी हा सुहाय।।
घर-घर जावै मया बढ़ावै,तिजहारी कहाय।
हँसी खुशी घर लहुटत जावै,मन बड़े सुख पाय।।

छंदकार - बोधन राम निषाद राज
सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम (छत्तीसगढ़)

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"छंद के छ" परिवार डाहर ले जम्मो पाठक संगी मन ल तीजा पोरा के बहुत बहुत बधाई,जय जोहार






Wednesday, August 28, 2019

सार छंद-खमर्छठ

सार छंद-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
खमर्छठ

खनर खनर बड़ चूड़ी बाजे,फोरे दाई लाई।
चना गहूँ राहेर भुँजाये ,झड़के बहिनी भाई।

भादो मास खमर्छठ होवय,छठ तिथि अँधियारी।
लीपे  पोते  घर  अँगना  हे,चुक  ले दिखे दुवारी।

बड़े बिहनिया नाहय खोरय,दातुन मउहा डारा।
हलषष्ठी के  करे  सुमरनी,मिल  पारा  के पारा।

घर के बाहिर सगरी कोड़े,गिनगिन डारे पानी।
पड़ड़ी काँसी खोंच पार मा,बइठारे छठ रानी।

चुकिया डोंगा बाँटी भँवरा,हे छै जात खिलोना।
हूम धूप अउ फूल पान मा,महके सगरी कोना।

पसहर  चाँउर  भात  बने हे, बने हवे छै भाजी।
लाई नरियर के परसादी,लइका मनबर खाजी।

लइका  मन  के रक्षा खातिर,हे उपास महतारी।
छै ठन कहिनी बैठ सुने सब,करे नेंग बड़ भारी।

खेत  खार  मा नइ तो रेंगे, गाय  दूध  नइ पीये।
महतारी के मया गजब हे,लइका मन बर जीये।

भैंस दूध के भोग लगाये,भरभर मउहा दोना।
करे  दया  हलषष्ठी  देवी,टारे  दुख अउ   टोना।

पीठ  म   पोती   दे  बर  दाई,पिंवरी  माटी  घोरे।
लइका मनके पाँव ल थोरिक,सगरी मा धर बोरे।

चिरई बिलई कुकुर अघाये,सबला भोग चढ़ावै।
महतारी  के  दान  धरम ले,सुख  समृद्धि आवै।

द्वापर युग मा पहिली पूजा,करिन देवकी दाई।
रानी उतरा घलो सुमरके,लइका के सुख पाई।

टरे  घँसे  ले  महतारी के,झंझट दुख झमेला।
रक्षा कवच बने लइका के,पोती कइथे जेला।

छंदकार-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
पता-बाल्को,कोरबा,छत्तीसगढ़

Friday, August 16, 2019

रक्षा बंधन विशेषांक

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ताटंक छंद - विरेन्द्र कुमार साहू

गजब अगोरे बहिनी मन हा , परब मया के राखी ला।
गुन-गुन गढ़यँ रेशमी डोरी , सजा मोर के पाखी ला।।

नइ माँगे सोना अउ चाँदी ,बहिनी पहिरा के धागा।
माँगे मया मया के बदला , वोहर रिश्ता के लागा।।

बैर भुलाके मिलथे जुलथे , दुनिया के बहिनी भाई।
बनथे नवा महल रिश्ता के , जुड़य मया पाई पाई।।

राखी के तिहार ला जानौ ,परब बहिन अउ भाई के।
भारत के संस्कृति मा ए , अवसर हे सुखदाई के।।

छंदकार:- विरेन्द्र कुमार साहू , ग्राम बोड़राबाँधा (पाण्डुका) , वि.स. राजिम जि. गरियाबंद , छ.ग.  
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हरिगीतिका छंद - द्वारिका प्रसाद लहरे
(1)
अब्बड़ मयारू मोर बहिनी,आज राखी लाय हे।
देवत खुशी भरमार मोला,मोर मन हरसाय हे।
बहिनी बचन सुग्घर निभावय, हाथ राखी बाँध के।
लाने हवय जी खीर रोटी,मोर बर जी राँध के।।
(2)
रसधार बोहय गा मया के,आज घर परवार मा।
सबले बड़े व्यवहार भइया,देख ये संसार मा।
रक्षा करव भाई हवव सब,दुःख बहिनी पाय झन।
नाता सदा हरियर रहय,ये फूल कस मुरझाय झन।।2

छंदकार - द्वारिका प्रसाद लहरे
कबीरधाम छत्तीसगढ़
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छन्नपकैया छंद - आशा देशमुख

छन्नपकैया छन्नपकैया ,किसम किसम के राखी।
भाई बहिनी मन चहकत हे ,जइसे चहके पाखी।1।

छन्नपकैया छन्नपकैया,भैया देखे रस्ता।
अबड़ मोल राखी के डोरी,झन  जानँव गा सस्ता।2।

छन्नपकैया छन्नपकैया,मन पहुना लुलवाथे।
ननपन के सब मान मनौवा, अब्बड़ सुरता आथे।3।

छन्नपकैया छन्नपकैया,भठरी मन सब आवैं।
पहली के सब रीत चलागन,अब तो सबो नँदावैं।4।

छन्नपकैया छन्नपकैया ,मँय बहिनी मति भोरी।
भाई बहिनी के तिहार मा, बगरे मया अँजोरी।5।

छन्नपकैया छन्नपकैया,घर घर बने मिठाई।
माथ सजे हे मंगल टीका, राखी सजे कलाई।6।

छन्नपकैया छन्नपकैया,कहुँ हो जाये देरी।
निकल निकल के बहिनी देखे,रस्ता घेरी बेरी।7।

छन्दकार - आशा देशमुख
एनटीपीसी जमनीपाली कोरबा
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सरसी छन्द - बोधन राम निषादराज

दया मया के बँधना हावै, राखी के त्योहार।
कच्चा डोर बँधाये देखौ,बहिनी-भाई प्यार।।
दया मया के बँधना.....................

ननपन के गा खेले-कूदे,अँगना  परछी खोर।
सावन मा जी आथे सुरता,दीदी मन के लोर।।
राखी लेत बहाना जाथे ,बहिनी के घर द्वार।
दया मया के बँधना...................

जनम जनम के रक्छा के तो,भाई बचन निभाय।
भाई बने सहारा होथे,बहिनी जब दुख पाय।।
करके भाई जी के सुरता,बहिनी रोय गुहार।
दया मया के बँधना....................

रंग-रंग के राखी धरके ,थारी  खूब सजाय।
आवत होही भाई कहिके,बहिनी ह सोरियाय।।
देख बनाये  हे मेवा अउ, करे खड़े  सिंगार।
दया मय के बँधना.....................

सावन के हे पबरित महिना,भाई आस लगाय।
छम-छम-छम-छम नाचय बरखा,बहिनी के मन भाय।।
सराबोर भींजे झूमे सब, राखी देख बहार ।
दया मया के बँधना...................

छंदकार - बोधन राम निषादराज
गाँव - सहसपुर लोहारा, जिला-कबीरधाम (छत्तीसगढ़)
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सार छंद - रामकली कारे

कुलकत हाबय बहिनी के मन , हम अब मइके जाबो ।
बाँध कलाई भाई के जी , राखी सुघर मनाबो ।।

चुन चुन बहिनी राखी लेवय ,रक्षा बन्धन आगे ।
तिलक लगाहव भाई ला कह , मया अबड़ जी लागे ।।

सावन सबले पावन महिना , बहिनी के मन भावय ।
रेशम डोरी बाँध मया के ,मान मया ला पावय ।।

जब जब दुख के बादर  छावय ,आघू आवय भाई ।
बहिनी बर सुख छत्ता बनके ,वोकर करय भलाई ।।

छंदकार - रामकली कारे
बालको नगर कोरबा, छत्तीसगढ़
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गीतिका छंद - अशोक धीवर "जलक्षत्री"

सूँत के तागा हरय जी, फेर सुँतरी हय नही।
ये बहिन भाई दुनो के, भाव मन के लव कही।।
प्रेम अउ रक्षा वचन के, पाय दिन बहिनी सबो।
दूर कतको वो रहय जी, बाँधही राखी तभो।।
छंदकार - अशोक धीवर "जलक्षत्री"
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विष्णुपद छंद - श्रीमती आशा आजाद

मँय राखी ला आज बाँधिहौ,शान सबो कहिथें।
सैनिक हावय मान हमर जी,अबड़ दरद सहिथें।।

कतका पीड़ा सहिथें ओमन,रात रोज जगथें।
दुश्मन ले लोहा ओ लेथें,हमर लाज रखथें।।

बहिनी बनहू हर सैनिक के,मान रखे मन मा।
रक्षा करके लाज बचावय,साहस हे तन मा।।

रोवत रहिथे लइका ओखर,दूर अबड़ रहिथें।
घरवाली मन देख अगोरत,रोज दरद सहिथें।।

भूख प्यास सब भुला जथे गा,रहय सबो बन मा।
दुश्मन कतको मार गिराथे,निडर भाव मन मा।।

भारत माँ के बेटा मन के,पाव सबो पर लौ।
हाथ बधाँये सुग्घर डोरी,नेक काज कर लौ।।

सैनिक हे सम्मान देश के,प्रेम भाव धर लौ।
लाज बचावत मान हमर जी,नमन सबो कर लौ।।

छंदकार-श्रीमती आशा आजाद
पता-मानिकपुर,कोरबा,छत्तीसगढ़
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अमृत ध्वनि छंद - सरस्वती चौहान

भाई-बहिनी के मया,राखी हवै तिहार।
पबरित डोरा प्रेम के,बस ये ही हे सार।।
बस ये ही हे,सार मया ये,सबले सुग्घर।
भाई-बहिनी,ले दुवार घर,होथे उज्जर।।
लाज बचा लव,अपनें हें सब,बहिनी दाई।
झन टूटय ये,प्रेम भाव हा,बहिनी-भाई।।

छंदकार-श्रीमती सरस्वती चौहान
ग्राम- बरडांड़, पोस्ट-नारायणपुर, तहसील-कुनकुरी
जिला-जशपुर नगर,छत्तीसगढ़

कुंडलिया छंद- इंजी.गजानंद पात्रे "सत्यबोध"
(1)
राखी बंधन प्रेम के,रिस्ता ये विश्वास।
भाई रखथे मान ता,बहिनी रखथे आस।।
बहिनी रखथे आस,सदा दिन सुख ये पावँव।
रखबे खुला दुवार,कभू जब घर मैं आवँव।।
तोर सहारा आज,उड़त हँव धर मैं पाखी।
रिस्ता ये विश्वास,मया के बंधन राखी।।
(2)
बहिनी बइठ दुवार मा,झाँकय अँगना खोर।
भाई नइहे भाग मा,अँधियारी सुख भोर।।
अँधियारी सुख भोर,मया बर तरसे नयना।
जिनगी के सुख राह,दिखाथे भाई अयना।।
एक फूल दू डार,लगे हे सुंदर टहनी।
बिन भाई के आज,दुखी बइठे हे बहिनी।।
(3)
सून कलाई मोर हे,बहिनी नइ हे पाठ।
जिनगी भारी बोझ हे,संग बँधे दुख गाँठ।।
संग बँधे दुख गाँठ,खोर अँगना महकाये।
बड़का जेकर भाग,उही हा बहिनी पाये।।
बड़ा अभागा आँव,सुनावँव दुख मैं भाई।
राखी आज तिहार,मोर हे सून कलाई।।

इंजी.गजानंद पात्रे "सत्यबोध"
बिलासपुर (छत्तीसगढ़)
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छप्पय छंद - मोहन लाल वर्मा

सावन पुन्नी खास,मनाथें रक्षाबंधन ।
बहिनी राखी बाँध, लगाथे रोली चंदन।
भाई दे उपहार, मया बहिनी के पाथे।
रक्षा के जब डोर, कलाई मा बँध जाथे।।
भाई-बहिनी के मया, हे अटूट संसार मा।
रक्षाबंधन के परब, दिखथे जे परिवार मा।।

छंदकार - मोहनलाल वर्मा ,
पता-  ग्राम-अल्दा,वि.खं.तिल्दा, जिला- रायपुर, छत्तीसगढ़
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बरवै छंद - जितेन्द्र कुमार निषाद

राखी हावय पबरित,हमर तिहार ।
सावन पुन्नी के दिन,बँटे दुलार।।

बहिनी बाँधे राखी,भइया हाथ ।
तिलक लगावै रोली,चमकै माथ ।।

बैरी बनगे मनखे,आज मितान ।
करे निर्भया घटना,बन शैतान ।।

बहिनी खातिर भइया,दे वरदान ।
तोर लाज बर देहूँ,मैंहा प्रान ।।

हे भाई-बहिनी के,मया अपार ।
रहे सदा जगदीश्वर,सुन गोहार ।।

छंदकार - जितेन्द्र कुमार निषाद
गाँव-सांगली, जिला-बालोद (छत्तीसगढ़)
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उमाकांत टैगोर: लावणी छन्द- उमाकान्त टैगोर

आगे संगी राखी आगे, खुशी जमो कोती छागे।
जम्मो भाई बहिनी मन के, पावन हिरदे हरियागे।।

भाई बहिनी के नाता हा, सब ले पावन होथे जी।
भाई जब जब दुख मा परथे, बहिनी धर धर रोथे जी।।

राखी हर डोरी भर नोहय, येमा ताकत हे भाई।
बाँध मया ला राखे रहिथे, जमय नहीं मन मा काई।।

जे भाई के बहिनी होथे, वो बड़ किस्मत वाला ये।
जे बहिनी के कदर करय ना, ओकर जिनगी काला ये।।

बहिनी सब के बहिनी होथे, हमला ये गुनना चाही
तभे सबो नोनी बहिनी मन, आघू आघू बढ़ पाही।।

छंदकार- उमाकान्त टैगोर
कन्हाईबन्द, जाँजगीर, छत्तीसगढ़
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छन्न पकैया छंद -  राजेश कुमार निषाद

छन्न पकैया छन्न पकैया, बहिनी मन हा आके।
बाँधय राखी भाई भइया, माथा तिलक लगाके।।

छन्न पकैया छन्न पकैया,अड़बड़ दिन मा आथे।
रंग रंग के राखी संगी,सबके मन ला भाथे।।

छन्न पकैया छन्न पकैया,बहिनी मन घर आथे।
बाँध कलाई राखी हमरों, अबड़े मया जगाथे।।

छन्न पकैया छन्न पकैया, खाव मिठाई जादा।
करहू बहिनी मन के रक्षा, कर लव भाई वादा।।

छन्न पकैया छन्न पकैया, बहिनी हमरों आही।
मया पिरित के राखी लाही, बाँध कलाई जाही।।

छन्न पकैया छन्न पकैया, आथे छोड़े डेरा।
बाँधे बिना कभू नइ जावय,होवय कतको बेरा।।

छंदकार - राजेश कुमार निषाद ग्राम चपरीद पोस्ट समोदा तहसील आरंग जिला रायपुर छत्तीसगढ़
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लावणी छंद - श्लेष चन्द्राकर

जम्मो भारतवासी मन बर, खास महीना हे सावन।
परब मनाथें माह अंत मा, रक्षाबंधन के पावन।।

बहन सजाथे थारी मा जी, अक्षत रोली अउ चंदन।
तिलक लगाके आज बाँधथे, भाई ला रक्षाबंधन।।

बहन वचन लेथे भाई ले, मोर सदा रक्षा करबे।
साथ निभाबे जिनगी भर गा, सबो दु:ख पीरा हरबे।।

भाई हा वादा कर कहिथे, तोर सबो संकट हरहूँ।
देथे आशीर्वाद बहन ला, तोर सदा रक्षा करहूँ।।

माने जाथे हमर देश मा, महापरब रक्षाबंधन।
बड़े शान से इहाँ मनाथें, मनखे मन येला सबझन।।

मया प्रेम विस्वास बढ़ाथे, ये तिहार हे मनभावन।
हरय परब भाई बहिनी के, रक्षाबंधन जी पावन।।

छंदकार - श्लेष चन्द्राकर
पता - खैराबाड़ा, गुड़रुपारा, महासमुन्द(छत्तीसगढ़)
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कुण्डलिया छंद-संतोष कुमार साहू
(1)
राखी गजब तिहार ये,देथे खुशी अपार।
भाई बहिनी बीच मे,खूब बढ़ाथे प्यार।।
खूब बढ़ाथे प्यार,कभू नइ होवन दे कम।
इही ह एखर सार,याद रहिथे गा हरदम।।
रिश्ता रखथे नेक,इही एखर बैशाखी।
खास परब ये जान,बहन भाई के राखी।।
(2)
सावन पुन्नी मे गजब,राखी आय तिहार।
एक साल मा एक दिन,ये सब दिन ले सार।।
ये सब दिन ले सार,खुशी हा दिखथे भारी।
भाई बहिनी नेक,लगे जी प्यारा प्यारी।।
कतको इहाँ तिहार,बड़े हे राखी पावन।
सबमे होही भूल,बहन नइ भूले सावन।।

संतोष कुमार साहू
रसेला(छुरा) जिला-गरियाबंद, छत्तीसगढ़
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सार छंद - डॉ. तुलेश्वरी धुरंधर

सुरता मा बहिनी मन के जी,पथराजाथे आँखी।
भाई बहिनी के तिहार ये, सुघ्घर बाँधव राखी।।

रद्दा जोहत रहिथे भाई, ये दिन हा कब आही।
बाँध हाथ मा राखी बहिनी,बइठ मिठाई खाही।।

कबके तोला देखे हावँव, सुरता आथे तोरो।
भेजत हावँव राखी भाई, लेबे आरो मोरो।

बचपन के खेलना हा भाई, रहि रहि सुरता आथे।
सुघ्घर परब ल भाई बहिनी, मिल जुल संग मनाथे।।

बाँध हाथ मा राखी बहिनी, रक्षा कवक्ष बनाथे।
गुरतुर गुरतुर खवा मिठाई, ममता अबड़ लुटाथे।।

छन्दकार - डॉ. तुलेश्वरी धुरंधर अर्जुनी बलौदाबाजार
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Thursday, August 15, 2019





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कुकुभ छंद - विरेन्द्र कुमार साहू , राजिम

हाथ तिरंगा झंडा प्यारा , मुँह जय भारत के नारा।
आय जवानी बहगे कतनो , देश प्रेम पबरित धारा।।

माटी ला तरवा चटका के , पीके गंगा के पानी।
अंग्रेजन ले लोहा ले बर , जूझिन कतनो बलिदानी।।

नइ छोड़िन हे अपन धरम ला ,तन के करदिन कुर्बानी।
हाँसत हाँसत चढ़गे फाँसी , जब्बर बीर स्वाभिमानी।।

झूमिन नाचिन देश प्रेम मा , करिन मौत सँग मा शादी।
उखरे तन के सिढ़िया चढ़के , आये हाबे आजादी।।

छंदकार:- विरेन्द्र कुमार साहू , ग्राम बोड़राबाँधा (पाण्डुका) , वि.स. राजिम जि. गरियाबंद , छ.ग.
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दोहा छन्द - बोधन राम निषादराज

धजा  तिरंगा  मान हे, पुरखा  के पहिचान।
लाज बचाना हे धरम,कमर कसौ जी जान।।

आवौ  भाई आव जी, बइरी  ला भगवाव।
आँख उठा के देखथे,वोला सबक सिखाव।।

भारत के खातिर सबो,मर मिट जाबो संग।
उड़न नहीं  देवन हमन, आज तिरंगा रंग।।

लहर-लहर लहराव जी, झंडा  उड़े अगास।
खुशियाँ सबो मनाव जी,बइठौ नहीं उदास।।

इही  तिरंगा  ले हवै,  हमर देश के  मान।
बइरी मन काँपत रथे, अइसन हिंदुस्तान।।

केसरिया पहिचान हे,तप अउ त्याग समान।
एखर  ले हे  देश अब, सर्व  सुरक्षा मान।।

भाई-चारा  शांति के,  सादा रंग महान।
समे बतावत चक्र हे, नीला  गोल निशान।।

हरियर  भुइँया खार  हे, पर्यावरण सुधार।
रंग  तिरंगा  देश के, करलौ  जय जोहार।।

छंदकार - बोधन राम निषादराज
सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छत्तीसगढ़)
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सार छन्द - गुमान प्रसाद साहू

आजादी के परब आज हे, जुरमिल सबो मनावव।
जय बोलव भारत माता के, राष्ट्र गान ला गावव।।

बड़ मुश्किल मा मिले हवै जी, सब ला ये आजादी।
अउ होवन झन देहू संगी, अइसन जी बरबादी।।

हरय तिरंगा शान देश के, लहर लहर लहरावव।
आजादी के परब आज हे, जुरमिल सबो मनावव।।

मनखे मनखे एके हावय, भेद कभू झन जानौ।
जात पात के पाटव डबरा, धरम देश ला मानौ।।

भेद मिटालव ऊँच नीच के, सुमता डोर बँधावव।
आजादी के परब आज हे, जुरमिल सबो मनावव।।

छंदकार - गुमान प्रसाद साहू
ग्राम- समोदा (महानदी),रायपुर, छत्तीसगढ़
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कुण्डलिया छंद - मीता अग्रवाल
(1)
भारत देश बड़े हवे,विश्व गुरू पहिचान।
लोकतंत्र सब ले बड़े, सोन चिरैया मान।
सोन चिरैया मान,बहे पावन जल गंगा।
जनगण मन हे गान,गाव ले हाथ तिरंगा।
सुन मीता के गोंठ,आन हे बड़का दौलत।
हवे शान कश्मीर, तिरंगा लहरे भारत।।
(2)
आजादी के मोल बर,होय लाल कुर्बान।
अंग्रेज़न के राज मा,हिन्दी के अपमान।
हिन्दी के अपमान, रहिस अंग्रेजी चंगा।
होय वीर बलिदान, धरे हर हाथ तिरंगा।
सुन मीता के गोंठ,लड़े जागे आबादी।
छेड़ देश बर तान,पाय मुश्किल आजादी।।

छंदकार-डाॅ मीता अग्रवाल
पुरानी बस्ती ,लोहार चौंक, रायपुर छत्तीसगढ़
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सार छन्द - कमलेश कुमार वर्मा

भारत माँ के रक्षा खातिर,गवाँ अपन जिनगानी।
जुग-जुग बर अम्मर हो जाथे,सबो वीर बलिदानी।।

जंगल पर्वत बरसा गर्रा,झेल सबो परशानी।
छूट अपन माटी के करजा, करथे  सफल जवानी ।।

इँकर वीरता ले हो जाथे, बैरी पानी-पानी।
ठोंक अपन छाती ला रन मा, याद दिलाथे नानी।।

आखिर दम तक गावत रइथे,जय भारत  के बानी।
सदा तिरंगा हा ही बनथे, सैनिक कफ़न निशानी।।

सींच लहू ले ये भुइँया ला,लिखथे त्याग कहानी।
गाड़ा-गाड़ा वंदन कर लव,सुरता कर कुर्बानी।।

छंदकार:कमलेश कुमार वर्मा
शिक्षक, भिम्भौरी,बेरला, जिला-बेमेतरा(छ. ग)
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कुण्डलियाँ छन्द - कन्हैया साहू अमित
(1)
धजा तिरंगा देश के, फहर-फहर फहराय।
तीन रंग के शान ले, बैरी घलो डराय।
बैरी घलो डराय, रहय कतको अभिमानी।
देबो अपन परान, निछावर हमर जवानी।
गुनव अमित के गोठ, कभू  झन आय अड़ंगा।
जनगण मन रखवार, अमर हो धजा तिरंगा।
(2)
छतरंगा संस्कृति इहाँ, आनी-बानी भेस।
अनेकता मा एकता, हावय भारत देस।
हावय भारत देश, मिलय दाई कस ममता।
अलग धरम अउ जात, तभो ले दिखथे सुमता।
कहय अमित हा आज, सुमत मा रहिथें चंगा।
सुग्घर तीज तिहार, इहाँ संस्कृति छतरंगा।
(3)
धजा तिरंगा देख के, बैरी हा थर्राय।
संग हवा के ऊँच मा, लहर-लहर लहराय।
लहर-लहर लहराय, गजब झंडा हा फर-फर।
काँपय कपसै ठाढ, देख के बैरी थर-थर।
कहय अमित हा आज, इहाँ रक्छक बजरंगा।
अड़बड़ फभित अगास, हमर हे धजा तिरंगा।
(4)
बनँव पतंगा देश बर, अपने प्रान गवाँव।
धरँव जनम जे बेर मैं, भारत भुँइयाँ पाँव।
भारत भुँइयाँ पाँव, देश के बनँव पुजारी।
नाँव-गाँव सम्मान, इँहे ले हे चिन्हारी।
सिधवा झन तैं जान, बैर मा हरँव भुजंगा।
कहय अमित सिरतोन, देश बर बनँव पतंगा।

छन्दकार - कन्हैया साहू 'अमित'
भाटापारा छत्तीसगढ़
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ताटंक छन्द - जगदीश "हीरा" साहू

अपन देश के रक्षा खातिर, प्रण कर मर मिट जाना हे।
आँखी जेन दिखाही हमला, सबके मजा चखाना हे।।

नइ डर्रावन हम तो भाई, अब धमकी अउ गोली ले।
पटक-पटक के मारव सबला, खींचव भीतर खोली ले।।

कूटी-कूटी कर देवव अतका, गिन-गिन सब थक जावै जी।
काँप जवय सब पुरखा थर-थर, जिनगी भर पछतावै जी।।

हमर मया ला देखे अब तक, अब नफरत दिखलाबो जी।
ये दुनिया के नक्शा ले हम, पाकिस्तान मिटाबो जी।।

कासमीर ला माँगत हावय, अब राँची ला लूटौ जी।
बनके बघवा भारत माँ के, बैरी ऊपर टूटौ जी।।

करजा तभे छुटाही सबके, तिरंगा लहराना हे।
राष्ट्रगान भारत के मिलके, पाकिस्तान म गाना हे।।

छन्दकार - जगदीश "हीरा" साहू
कड़ार (भाटापारा) छत्तीसगढ़
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सार छंद - महेन्द्र देवांगन माटी

देश हमर हे सबले प्यारा , येकर मान बढ़ाबो ।
कभू झुकन नइ देन तिरंगा , झंडा ला फहराबो ।।

भेदभाव ला छोड़ के संगी , सबझन आघू बढ़बो ।
हिन्दू मुस्लिम सिक्ख इसाई , मिल के हम सब लड़बो ।।

अपन देश के रक्षा खातिर  , बाजी सबो लगाबो ।
कभू झुकन नइ देन तिरंगा  , झंडा ला फहराबो ।।

रानी लक्ष्मीबाई आइस , अपन रूप देखाइस ।
गोरा मन ला मार काट के , वोला मजा चखाइस ।।

हिलगे सब अंग्रेजी सत्ता  , कइसे हमन भुलाबो
कभू झुकन नइ देन तिरंगा,  झंडा ला फहराबो ।।

आन बान अउ शान तिरंगा  , लहर लहर लहराबो ।
दुनियाँ भर के सबो जगा मा , येकर यश फइलाबो ।।

भारत भुइयाँ के माटी ला , माथे तिलक लगाबो ।
कभू झुकन नइ देन तिरंगा  , झंडा ला फहराबो ।।

छंदकार - महेन्द्र देवांगन माटी
पंडरिया  (कबीरधाम)
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कुकुभ छंद - श्लेष चन्द्राकर

आजादी के परब मनाबो, जब अगस्त पंद्रह आही।
दफ्तर कालेज स्कूल मन मा, हमर तिरंगा लहराही।।

गाना गाबो देशभक्ति के , अउ सबके जोश बढ़ाबो।
उनकर मन मा अपन देश के, सेवा के भाव जगाबो।।

सुरता अमर शहीदन मन के, करबो गीत ग़ज़ल गाके।
उनकर मन के पूजा करबो, नरियर अउ फूल चढ़ाके।।

खुशी मनाये लइका मन सन, उखँर पाठशाला जाबो।
हो प्रभातफेरी मा शामिल, नारा बहुतेच लगाबो।।

झंडा फहराये जाही तब, राष्ट्र-गान सबझन गाबो।
लइका मनके कविता सुनबो, उनकर उत्साह बढ़ाबो।।

हरय हमर राष्ट्रीय परब जी, येहा पावन दिन होथे।
खुशी मनाये के मौका ला, कोन भला संगी खोथे।।

स्वतंत्रता के दिन मा जग ला, हमर एकता दिखलाबो।
हिंदू मुस्लिम सिख ईसाई, सब जुरमिल परब मनाबो।।

छंदकार - श्लेष चन्द्राकर
पता - खैराबाड़ा, गुड़रुपारा, महासमुन्द (छत्तीसगढ़)
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सार छंद  - रामकली कारे
(1)
सुरता करलव सबझिन संगी ,आज अजादी पाइन ।
धरे तिरंगा झंडा ला सब ,फहर फहर फहराइन ।।
भारत माता के सेवा बर ,अड़बड़ लड़िन लड़ाई ।
भगत सिंग आजाद राज गुरु ,सैनिक बहिनी भाई ।।
(2)
भारत माँ के बेटा प्यारा ,ऐ माटी मा खोगे ।
माथ नवाँवव जी माटी ला ,ऐ तो चन्दन होगे ।।
हाँसत हाँसत फाँसी चढ़गिन,वीर हमर बलिदानी ।
अपन देश के माटी खातिर , दिंहिन हवय कुरबानी ।।
(3)
परब अजादी आज हवय जी ,जुरमिल सबो मनाबो ।
तीन रंग के धजा तिरंगा ,लहर लहर लहराबो ।।
भारत माता खातिर मरबो ,देश हमर महतारी ।
बेटा बेटी बनबो रक्छक ,भुइयाँ ले चिन्हारी ।।

छंदकार  - रामकली कारे
बालको नगर ,कोरबा ( छत्तीसगढ़ )
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चौपाई छंद--चोवा राम 'बादल '

जय किसान जय हो जवान के ।जय जय जय हो राष्ट्रगान के।।
धजा तिरंगा के जय जय हो। नजर परे बैरी मा भय हो।।

जय शहीद बलिदानी मन के। हिंद निवासी जम्मों झन के।।
अजर अमर हे भारत माता। तहीं हमर अच भाग्य विधाता।।

शांति दूत जग जाहिर गाँधी। जे सुराज के लाइस आँधी।। बाल पाल अउ लाल जवाहर। लौह पुरुष सब हवयँ उजागर ।।

जय सुभाष जे फौज बनाइच। आजादी के अलख जगाइच।।
भगत सिंग बिस्मिल गुरु अफजल। गोरा मन के टोरिन नसबल।।

ऊँचा माथ चंद्रशेखर के। गौरव गाथा हे घर घर के।।
रानी लक्ष्मी झाँसी वाली। दुर्गावती लड़िस जस काली ।।

कतको झन हावयँ बलिदानी। जिंकर कोनो नइये सानी।। महराणा वो चेतक वाला। जेन अपन नइ छोड़िच भाला ।।

वीर शिवाजी सुरता आथे। रोम-रोम पुलकित हो जाथे।। देवभूमि माँ हे कल्यानी। पबरित गंगा जमुना पानी ।।

सेवा मा सब हावय अरपन। बादल के  ए तन मन अउ धन।।
रहिबे छाहित भारत माता ।सरग सहीं सब सुख के दाता ।।

छंदकार - चोवा राम 'बादल '
              हथबन्द ,छत्तीसगढ़
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त्रिभंगी छंद - अशोक धीवर "जलक्षत्री"

झंडा फहरावौ, सबझन आवौ, देश मनावत, परब बने।
सब भेद भुलाके, सँग मा आके, गला लगाके, रहव तने।।
काशी कस गंगा, हमर तिरंगा, पावन निर्मल, शान हरे।
भारत माता के, कोख म आके, बिरथा कोनो, झन ग मरे।।

छंदकार - अशोक धीवर "जलक्षत्री"
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आल्हा छंद - इंजी.गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

आजादी का खुशी मनावँव,देख दुखी भारत के हाल।
भ्रष्टाचारी अत्याचारी,बने हवय जी के जंजाल।।

माटी सोन चिरैया के जी,होवत हे अब लहू लुहान।
कोन उगावय भारत भुइयाँ,समता राखे नवा बिहान।।

जाति धरम मा देश बँटे हे, राजनीति के कइसन खेल।
समतावादी समाज के अब,दूर दूर तक नइहे मेल।।

अंधभक्ति मा लोग बुड़े हें,सही गलत के नइ पहिचान।
ज्ञान विज्ञान सबो हे भूले,धर्म जरी मा फँसे नदान।।

आजादी के मतलब बदले,बदले हे  उल्टा परिवेश।
नारी के तो इज्जत लूटे,साधु बलात्कारी धर भेष।।

छाप छाप मा देश बँटे हे,नोट वोट मा आज समाज।।
नेता बनगे हे दल बदलू,कोन करय जन हित मा काज।।

एक मरत हे दू रोटी बर,एक करत हे छप्पन भोग।
ये विकास हे देख देश मा,लगे इहाँ  मतलब के रोग।।

न्याय मिले के ख्वाब छोड़ दे,अँधरा बनगे हे कानून।
दीन दलित बर लाठी बरसे,सच्चाई के होवत खून।।

अब शहीद के कुरबानी ला,कोन भला जी रखथे याद।
खून बहा के जेन करिन हें,भारत भुइयाँ ला आजाद।।

तहीं बता दे कइसे देवँव,आज बधाई के संदेश।
मन मा भारी पीरा उमड़े,कोन मिटावय जी ये क्लेश।।

छन्दकार - इंजी.गजानंद पात्रे "सत्यबोध"
बिलासपुर (छत्तीसगढ़)
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कज्जल छंद - मोहन लाल वर्मा
(1)
हमर देश के गा जवान ।
रतिहा होवय या बिहान ।
राख हथेरी मा परान ।
चलथे सीना अपन तान ।।
(2)
मानँय नइ वो कभू हार  ।
रहिथे  रण बर गा तियार  ।
भागय नइ हथियार डार ।
आघू बढ़के करय वार ।।
(3)
सुरता पुरखा के लमाय ।
माथ तिलक माटी लगाय ।
कफन तिरंगा बड़ सुहाय ।
मान  देश के गा बढ़ाय ।।

छंदकार- मोहन लाल वर्मा,
पता- ग्राम -अल्दा,वि.खं.-तिल्दा, जिला-रायपुर (छत्तीसगढ़)
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सार छन्द - जीतेन्द्र वर्मा खैरझिटिया

कहाँ चिता के आग बुझे हे,हवै कहाँ आजादी।
भुलागेन बलिदानी मन ला,बनके अवसरवादी।
(1)
बैरी अँचरा खींचत हावै,सिसकै भारत माता।
देश धरम बर मया उरकगे,ठट्ठा होगे नाता।
महतारी के आन बान बर,कौने झेले गोली।
कोन लगाये माथ मातु के,बंदन चंदन रोली।
छाती कोन ठठाके गरजे,काँपे देख फसादी।
भुलागेन बलिदानी मन ला,बनके अवसरवादी।
(2)
अपन  देश मा भारत माता,होगे हवै अकेल्ला।
हे मतंग मनखे स्वारथ मा,घूमत हावय छेल्ला।
मुड़ी हिमालय के नवगेहे,सागर हा मइलागे।
हवा बिदेसी महुरा घोरे, दया मया अइलागे।
देश प्रेम ले दुरिहावत हे,भारत के आबादी।
भुलागेन बलिदानी मन ला,बनके अवसरवादी।
(3)
सोन चिरइयाँ अउ बेंड़ी मा,जकड़त जावत हावै।
अपने मन सब बैरी होगे,कोन भला छोड़ावै।
हाँस हाँस के करत हवै सब,ये भुँइया के चारी।
देख हाल बलिदानी मनके,बरसे नैना धारी।
पर के बुध मा काम करे के,होगे हें सब आदी।
भुलागेन बलिदानी मन ला,बनके अवसरवादी।
(4)
बार बार बम बारुद बरसे,दहले दाई कोरा।
लड़त  भिड़त हे भाई भाई,बैरी डारे डोरा।
डाह द्वेष के आगी भभके,माते मारी मारी।
अपन पूत ला घलो बरज नइ,पावत हे महतारी।
बाहिर बाबू भाई रोवै,घर मा दाई दादी।
भुलागेन बलिदानी मन ला,बनके अवसरवादी।

छन्दकार - जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा) छत्तीसगढ़
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आल्हा छंद - राजेश कुमार निषाद

आय परब हे आजादी के,मिलके संगी खुशी मनाव।
तीन रंग के हमर तिरंगा,लहर लहर गा सब लहराव।।

मिले देश ला आजादी हे, पुरखा मनके हे बलिदान।
धजा तिरंगा लहरा भइया, करव आज गा सब गुणगान।।

बइरी मन ला हमर देश मा, झन आवन देहू तुम आज।
डटे रहू गा सीमा मा सब, रखहू भारत माँ के लाज।।

कर लव सेवा भारत माँ के, प्रण ला सुग्घर मन मा ठान।
बइरी मन ला मार भगावव, चाहे निकले तन ले प्राण।।

बइरी मन ला दूर भगाके, रखव धजा के हरदम शान।
अमर रहय दिन आजादी के, जय भारत जय हिंदुस्तान।।

छंदकार - राजेश कुमार निषाद ग्राम चपरीद पोस्ट समोदा तहसील आरंग। जिला रायपुर छत्तीसगढ़ ।
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छप्पय छन्द - उमाकान्त टैगोर

जारे बेटा आज, पउल के गर्दन  लाबे।
कहलाबे तँय वीर, मारबे या मर जाबे।।
दाई आवँव तोर, कहत हँव हाँसत तोला।
रक्षा करबे देश , गरब होही बड़ मोला।।
बैरी के छाती चीर दे, अंतस मा हुंकार भर।
झंडा तँय धर ले हाथ मा, जोर लगा जयकार कर।।

अमृतध्वनि छन्द - उमाकान्त टैगोर

सेवा करिहँव देश के, जब तक हाबय जान।
धरती मैय्या तोर मँय, नइ जाये दँव शान।।
नइ जाये दँव, शान तोर मँय, रक्षा करिहँव।
दुनिया खातिर, मँय हर लड़िहँव, तब तो तरिहँव।।
झन तँय रोबे, सुन दाई तँय, जब मँय मरिहँव।
जीयत भर ले, ये भुइँया के, सेवा करिहँव।।

छंदकार - उमाकान्त टैगोर
कन्हाईबंद, जाँजगीर छत्तीसगढ़
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लावणी छन्द - राम कुमार चन्द्रवंशी

आजादी के दिन आगे जी,चलव तिरंगा फहराबो।
भारत माँ के जय के नारा,चारों कोती गूँजाबो।।

इही तिरंगा खातिर पुरखा,लेइस हावय पंगा जी।
पुरखा के बलिदान के चिन्हा,आवय हमर तिरंगा जी।।

बलिदानी के जस ला संगी,घर-घर मा बगरालव जी।
जात-धरम तुम आज भुलाके,सुग्घर खाँध मिलालव जी।।
पुरखा मन के सपना संगी,हम ला आज सधाना हे।
आजादी के महा परब ला, जुरमिल आज मनाना हे।।

छन्दकार - राम कुमार चन्द्रवंशी
बेलरगोंदी(छुरिया) जिला-राजनांदगाँव, छत्तीसगढ़
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चौपाई छंद- पोखन लाल जायसवाल

बरनवँ का-का गौरव गाथा,भारत भुइयाँ टेंकवँ माथा।
मुकुट बने गिरिराज हिमालय, महा समुंदर पाँव पखारय।।

देश भक्ति के गीत सुनाबो,भारत माता के जय गाबो।
अजर-अमर होगे बलिदानी,आजादी बर दे कुर्बानी।।

छुआछूत बर बन के आँधी,जनम लीन हे बापू गाँधी।
भगत खुदी कतको बलिदानी,आजादी बर दीस जवानी।।

आजादी के दिन आए हे,तन मन सबके हरसाए हे।
लइका सबो लगाए नारा,झंडा ऊँचा रहे हमारा।।

केसर सादा हरियर प्यारा,झंडा हावय सबले न्यारा।
नील गगन मा गूँजय नारा,देश हमर जिनगी ले प्यारा।।

सैनिक सीना तान खड़े हे,जान हाथ मा धरे अड़े हे।
सीमा पार लगाही बइरी,वोला मार मताहूँ गइरी।।

छंदकार - पोखन लाल जायसवाल
पठारीडीह (पलारी)जिला बलौदाबाजार भाटापारा छग
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