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Monday, July 22, 2019

छत्तीसगढ़ी रोला छन्द श्रृंखला - 1

रोला छन्द-बोधन राम निषादराज

(1) बेटी
बेटी  फूल गुलाब, बाग के  सुघ्घर लाली।
देखौ खुशियाँ छाय,बनौ जी ओखर माली।।
घर के  वो सिंगार, ददा के मन मा बसथे।
दाई  देय दुलार, मया  मा बेटी हँसथे।।

(2) लछमी दाई
लछमी दाई तोर,पाँव ला परथौं मँय हाँ।
दे मोला आशीष,तार दे मोला  तँय हाँ।।
दीन हीन मँय तोर,देखले  बेटा आवँव।
रहिबे कुरिया मोर,आरती तोरे  गावँव।।

(3) माटी
धरती दाई मोर,जनम ला मँय हा पावँव।
तोला माथ  नवाय, बंदना  रोजे गावँव।।
अन पानी सिरजाय,चलौ जी महिमा गाबो।
गंगा जमना धार,मया के  फूल चढ़ाबो।।

छंदकार-बोधन राम निषादराज
सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छत्तीसगढ़)
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रोला छंद-द्वारिका प्रसाद लहरे

(1)
हे शिव भोले नाथ,तोर महिमा हे भारी।
जग के पालनहार,रूप आधा नर नारी।
गर मा लपटे साँप,राख ला तन मा साजे।
अवघड़ दानी नाँव,तोर डमरू हा बाजे।।

(2)
करे जहर के पान,जगत ला तहीं बचाये।
गंगा पानी बाँध,जटा मा अपन सजाये।
पारबती माँ पाँव,सदा जी तोर पखारे।
पापी बाढ़त जाँय,तोर तिरशुल संहारे।।

(3)
माँगत हँव वरदान,जगत के रक्षा करदे।
बाबा भोले नाथ,खुशी के झोली भरदे।
करदे अब कल्याण,रहँय कोनों झन दुख मा।
सबके मेंट विकार,रहँय सब मनखे सुख मा।।

छंदकार-द्वारिका प्रसाद लहरे
बायपास रोड़ कवर्धा, जिला-कबीरधाम छत्तीसगढ़
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रोला छंद -ईश्वर साहू बंधी

(1)
ओखी उही बताय, हार जे मन अपनाथे।
जेला खुद विश्वास, उही आगू बढ़ जाथे।।
अलहन विपदा झेल, झेल के रद्दा गढ़थे।
ओ मनखे ला फेर, जगत इतिहासी पढ़थे।।

(2)
युग हे अब तकनीक, ज्ञान के सार मिटत हे।
ऊपरछँवा दिमाग, तर्क के भार घटत हे।।
अतका सुबधा आज, काम उपकरन करत हे।
आलस कर इंसान, करम ले दूर टरत हे।।

(3)
कूड़ा कचरा डार, राख लौ कचरा पेटी।
पाही सुग्घर सीख, देख के बेटा बेटी।।
घर रइही जब साफ, तभे तो सुग्घर रहिबो।
निर्मल होही गाँव, स्वच्छ हे भारत कहिबो।।

छंदकार : ईश्वर साहू बंधी
बंधी, दाढ़ी, बेमेतरा छत्तीसगढ़
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रोला छंद - अशोक धीवर "जलक्षत्री"

(1)
दारु झन पी यार, फेर पाछू पछताबे।
जिनगी के दिन चार, कहाँ तँय येला पाबे।।
माँसाहार तियाग, तहाँ ले जिनगी बड़ही।
सुख पाबे भरमार, इही हा मंगल करही।।

(2)
बरखा पानी रोक, भरव सब डबरी तरिया।
इक दिन आही काम, साफ हो या हो करिया।।
कीम्मत येखर जान, करव सब येखर रक्षा।
जल हे तभे जहान, पढ़े हन चौथी कक्षा।।

(3)
चिंता हे बेकार, करव झन फोकट भारी।
सबला इही सताय, इही जड़ हे बीमारी।।
एला जउन भगाय, उही हा सबले सुखिया।
करलव सबले प्रेम, नहीं ते बनहू दुखिया।।

छंदकार - अशोक धीवर "जलक्षत्री"
ग्राम - तुलसी (तिल्दा नेवरा)जिला - रायपुर (छत्तीसगढ़)
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रोला छंद- महेंद्र कुमार बघेल

(1)
उल्टा पुल्टा खाद, दवा भरमार छिताइस|
माटी पानी धान, हवा मा बिख घोराइस|
आते संकर बीज, फसल सिगसिगहा होवय|
माहूॅ कर दिस नाश, हाथ मुड़ धरके रोवय|

(2)
हरिहर ताजा साग, जेन बिन मौसम फरथे|
बने जतन के राख,तभो ले जल्दी सरथे|
नकली फल अउ साग, रात दिन हम सब खाथन|
जहर घुरे सामान, बिसा बीमारी लाथन|

(3)
कुछ तो करो उपाय, फसल देसी हा बाचै|
सिधवा हमर किसान, मगन हो कुलकय नाचै|
जैविक खेती लाव, खाद घुरुवा के डारव|
रोग-रई झन आय, सबो अलहन ला टारव|

छन्दकार- महेंद्र कुमार बघेल,
डोंगरगांव, राजनांदगांव, छत्तीसगढ़
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रोला छन्द  - ज्योति गभेल

(1)
जिनगी के दिन चार, बोलय संत अउ ज्ञानी,
धरम करम हे सार,बनौं गा बढ़िया दानी।
मानवता ला जान,बाँट सबके दुख पीरा,
करके सुघ्घर दान, पुन्य पाबे तँय हीरा ।।

(2)
महुआ फुलगे खार, लदागे डारा सब्बो,
टपके महुआ डार, बिने बर संगी जाबो।
लेवत हे सरकार, टोकरी भर भर लाबो,
सही दाम मा बेंच, बने हम पइसा पाबो ।।

छन्दकार  - ज्योति गभेल
जे.पी. कालोनी (S .E .C. L. ) कोरबा - छत्तीसगढ़
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रोला छंद - नीलम जायसवाल

(1)

सुन ले मोर पुकार, जगत के तँय महतारी।
तहीं सकत हस टार, मोर पर विपदा भारी।।
दाई हँव नादान, शरण मँय तोरे आयँव।
अँचरा मा बइठार, अबड़ दुख जग मा पायँव।।

(2)

कर लेवव सत्कार, मिलय नइ हरदम मौका।
दाई-ददा ल पूज, रहव मिल डइकी-डौका।।
लइका मन तक पाँय, सुघर गुण हो सँगवारी।
बन जावय घर स्वर्ग, महक। जावय फुलवारी।।

(3)

भज ले संगी राम, इही हे एक सहारा।
कर दीही भव पार, सबो के राम दुलारा।।
बिन नइया मजधार, फोकटे भटका खाबे।
राम हृदय मा राख, पार भव ले हो जाबे।।

छंदकार - नीलम जायसवाल
भिलाई, छत्तीसगढ़
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रोला छंद- उमाकान्त टैगोर

(1)
बाबू रोज कमाय, करय जी बेटा खरचा।
होगे हे मतवार, गली भर होवय चरचा।।
गाँव-गाँव के बात, कहूँ के घर के नोहय।
बाबू जी के भार, कोन अब सरवन बोहय।।

(2)
पढ़े लिखे का काम, बाप नइ सेवा जाने।
फिरथस बन हुसियार, अपन तँय छाती ताने।।
अइसन घोर कपूत, भाग मा जेकर होथे।
बेटा हाँसय रोज, बाप जिनगी भर रोथे।।

(3)
जी कल्लाथे मोर, पढ़े नइ जावस कहिके।
गारी खाबे रोज, गधा अउ अड़हा रहिके।।
जे दिन आही चेत, हाथ ला रमजत रहिबे।
सोच सोच के तोर, भाग ला टमरत रहिबे।।

उमाकान्त टैगोर
कन्हाईबन्द, जाँजगीर(छत्तीसगढ़)
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रोला छंद - श्रीमती आशा आजाद

(1)
भारत के हे शान,नदी हा बहिथे गंगा।।
फहराबो जी आज,देश के हमर तिरंगा।।
जाति धरम के भेद,छोड़ के सुमता लाबो
सब झन मिलके आज,चलो जी जन मन गाबो।

(2)
संसो ला सब छोड़,मान ये दुख के छाया।
लालच के सुध छोड़,छलय जी अड़बड़ माया।
मिहनत मा दे ध्यान,तोर घर खुशियाँ आही।
झन कर तँय हा लोभ,काम नइ आये काही।।

(3)
पढ़ना लिखना सीख,ज्ञान के रद्दा चुनले।
सबले बड़खा ज्ञान,मने मन संगी गुनले।
शिक्षा देही मान,बात ला तँय गठियाले।
सुग्घर होही नाम,जगत मा तँय पतियाले।।

छंदकार-श्रीमती आशा आजाद
पता-मानिकपुर,कोरबा,छत्तीसगढ़
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रोला- मनीराम साहू 'मितान'

(1)
बइठे हवस लुकाय, कहाँ तैं करिया बदरा।
गेइस पहा असाड़, भगागे सुक्खा अदरा।
सावन हे अब आय, मिलत नइहे गा आरो।
हरगे सबो मिठास, लगत हे जिनगी खारो।

(2)
सुक्खा जम्मो नार, सुखाये नदिया तरिया।
बाये हे दनगार, परत हे खेती परिया।
असली तहीं किसान,तोर बिन कहाँ किसानी।
जोहत हाबन बाट,गिराबे कब तैं पानी।

(3)
लाबे कहूँ दुकाल, मूड़ सब लागा जमहीं।
होय निरास किसान, फेर फाँसी ओरमहीं।
धरती अउ जग जीव, सबो ला तैं  हरसा दे।
बिनती करय मितान,अमृत कस जल बरसा दे।

छंदकार-मनीराम साहू 'मितान'
कचलोन (सिमगा), जिला-बलौदाबाजार-भाटापारा, छत्तीसगढ़
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रोला छंद - कौशल कुमार साहू

(1)
देवव मीठ जुबान, सबो ला अपने जानौ।
पहुना ला भगवान, बरोबर निसदिन मानौ ।।
झन कर गरब गुबान, सँगी जिनगी दिन चारे।
जाना हे सब छोड़, जगत ले हाँथ पसारे।।

(2)
छाय घटा घनघोर, झमाझम पानी गिरही।
खेत - खार अउ टार, लबालब तरिया भरही।।
गावत गीत किसान, सुमत मा खेती करही।
होही पोठ अनाज, सबो के बिपदा टरही ।।

(3)
नेता बदलय रंग, टेटका देख लजावै।
पल्टू राम धराय, नवा ये पदवी पावै।।
बिन पेंदी कस जान, ढुलय जी येती ओती।
होवय कुकुर समान, अंत मा चारो कोती।।

छंदकार - कौशल कुमार साहू
गांव - सुहेला (फरहदा )
जिला - बलौदाबाजार - भाटापारा, छत्तीसगढ़
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रोला छंद - केंवरा यदु "मीरा "

(1)
राधा तोरे श्याम,चरन ला महूँ मनावौं ।
चरनन माथ नवाँव, रोज गुन ओखर गावौं।।
दीनन के वो नाथ,श्याम जी मुरली वाला ।
मात यशोदा लाल,भक्तन के रखवाला ।।

(2)
देखौ आय तिहार,आय हे पितर देवता ।
बने घरो घर आज, बरा गा होय नेवता ।।
आये ददा हमार, बोबरा चीला खाही ।
पितर मनावत देख,पेट भरहा वो  पाही ।।

(3)
देखो खेती खार,कोयली गावत गाना ।
मन होगे खुश आज डोल थे  पाना पाना ।।
हरियर हरियर धान,देख के हाँसे कुलके ।
कइसन खेती  खार,डोलथे कांशी फुलके ।।

छंदकारा-केंवरा यदु "मीरा "
राजिम (छत्तीसगढ़)
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रोला छंद -आशा देशमुख

(1)
आडंबर के खेल ,बाढ़गे हावय भारी।
देख देख मन रोय, कहाँ गय असल पुजारी।
बोहावव झन दूध ,कहत हे औघड़दानी ।
तरसँय कतको जीव, पियावव उनला पानी। 1।

(2)
वाह वाह रे पूत,जगत बर प्याऊ खोले।
प्यास मरे माँ बाप,मया बोली नइ बोले।
बनके दानी छाय,तरसगे घर वाले मन।
जुच्छा मान गुमान,लुटाये पुरखा के धन।2।

(3)
पढ़के वेद पुराण,लूट के धंधा करथें।
बालमीकि के ज्ञान,सबो अँधियारी हरथे।
हवय जगत के सार, कबीरा के बानी मा।
मूसर मुड़ कुचराय,गरब के बेध्यानी मा।3।

छंदकार -आशा देशमुख
एनटीपीसी जमनीपाली कोरबा, छत्तीसगढ़
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रोला छन्द- गुमान प्रसाद साहू

(1)
मिलही शीतल छाँव, लगालव सब रुखराई,
दिखही हरियर फेर, तभे गा धरती दाई।
करय हवा ये साफ, जेन हा जिनगी हावय,
करथे तीरथ धाम, पेड़ ला जेन लगावय।।1

(2)
माटी हमर मितान, करम हा हरय किसानी,
महिनत हे पहिचान, हवय जी गुरतुर बानी।
बंजर माटी चीर, धान ला हम उपजाथन,
भुइयाँ के भगवान, तभे जी हमन कहाथन।।2

(3)
दारू गुटखा पान, हानिकारक बड़ हावय,
करय अपन नुकसान, जेन हा येला खावय।
आनी-बानी रोग, खाय ले येकर होथे,
परे नशा के जाल, जान कतको हे खोथे।।3

छंदकार :- गुमान प्रसाद साहू ,ग्राम - समोदा(महानदी),जिला - रायपुर, छत्तीसगढ़
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रोला छंद - बलराम चंद्राकर

(1)
भारत देश महान, सभ्यता बहुत पुरातन।
जगतगुरू कहलाय, धर्म हे सुघर सनातन।
किसिम किसिम के जात, वर्ण के इहाँ बसेरा।
रहिथे जुरमिल साथ, आज हे सुग्घर बेरा।।

(2)
बाँटी लँगड़ी टाँग, कबड्डी खोखो खेलौ।
देशी खेल कमाल, मजा बड़ सब झन ले लौ।
गुल्ली डंडा डाँड़, गजब जी लेवौ पादा।
चोर सिपाही खेल, लाय तन फुर्ती जादा।।

(3)
माघी पुन्नी आज, चलौ गा जाबो मेला।
सिरपुर राजिम धाम, सबो मा रेलमपेला।
नाच सिनेमा भीड़,अबड़ हे देखौ साथी।
सरकस अजब दिखाय, चलावय मोटर हाथी।।

छंदकार - बलराम चंद्राकर
पता-एसपीए/१ए/५ भिलाईनगर छत्तीसगढ़
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रोला छंद - दिलीप कुमार वर्मा

(1)
भर्री भाँठा खेत, सबो परिया पर जाही।
छत्तीसगढ़ मा देख, मानसुन जे नइ आही।
मरजाही सब पेंड़, घाँस मन तको सुखाही।
जीव सबो मरजाय, बता फिर कोन बँचाही।।

(2)
मनखे जावव चेत, पेंड़ ला अभी लगालव।
बोर करव सब बंद, कुँआ तरिया अपनालव।
नदिया देवव बाँध, नहर ला अउ बगरालव।
हरियर हरियर खेत, खुसी ला सबझन पालव।।

(3)
लहराही जब पेंड़, खुसी के बादर छाही।
गरजत घुमड़त आय, पोठ के जल बरसाही।
हरसाही सब जीव, बने सब भोजन पाही।
तब ही मनखे तोर, मेहनत हा रँग लाही।।

छंदकार - दिलीप कुमार वर्मा
बलौदाबाजार छत्तीसगढ़
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रोला छन्द - राजकिशोर धिरही

(1)
बेटी नइहे बोझ, कभू ओला झन मारव।
बेटी हे अनमोल, उँखर जिनगी ला तारव।।
बेटी रखथे मान, दाई ददा अउ सबके।
झन पावव कुछु दुःख, एक आँसू टपके।।

(2)
महतारी ला देख, पाँव ला परना चाही।
पावय झन कुछु दुःख, ज्ञान अइसन कब आही।।
दाई करय दुलार, भेद एको नइ जानय।
जबले हावय साथ, रात दिन हमला मानय।।

(3)
करलव पइसा दान, बने लागय तन मन ला।
नइ लेगन कुछु जोर, हमन कोनो जन धन ला।
कपड़ा घर अउ भात, इहाँ लटपट सब पाथे।
माँगत रहिथे भीख, सड़क मा मनखे आथे।।

छन्दकार -राजकिशोर धिरही
पता-तिलई,जांजगीर पूरा छत्तीसगढ़
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रोला छंद - सुधा शर्मा

(1)   
पुन्नी चंदा देख,-हँसे रे गगन बिशाला।
रास रचाइस आज,श्याम हर मुरली वाला।।
नाचिन बेसुध होत,-सबो रे गोपी बाला।
शरद पुन्नी ह आज,-होत हे अमरित प्याला।।

(2)  
जगमगकरतअँजोर,-हवे चंदा जनवासा।
हवे बराती आज,-रेफ के रासा बासा।।
दुल्ही कस सिंगार,-लगे हे सुग्घर कोरा।
धरती काया साज,-देंह भर चाँदी डोरा ।।

(3)   
देखव आज अकास,-बगरगे हवे चँदैनी।
फूटत हवे अँजोर,-लगे हे सरग निसेनी।।
हाँसत खुल खुल देख,-अरे पुन्नी मतवारी।
पीरा मया उजास दूर भागे अँधियारी।।

छंदकार-सुधा शर्मा
पता-ब्राह्मण पारा राजिम, जिला-गरियाबंद छत्तीसगढ़
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रोला छंद- इंजी.गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

(1)
ऋतु बसंत शुरुआत,आज ले होगे संगी।
मन मा जगे उमंग,देख फुलवा सतरंगी।।
जीव जंतु अउ पेड़,लता सब नाचे झूमे।
प्रेम रंग भर राग,रीति रस यौवन चूमे।।

(2)
मधुर माधवी गंध,महक छवि सने रसाला।
झपत झार मधु अंध,देख अब बनके प्याला।।
फूले फूल पलाश,लगे जस सजे स्वयंबर।
ऋतु बसन्त बारात,चले हे अवनी अम्बर।।

(3)
स्वागत खड़े दुवार,चमेली कुरबक बेला।
कमल आम कचनार,नीम अउ नींबू केला।।
बजे नगाड़ा ढोल,कोयली फगुवा गाये।
लगे मया के रंग,सबो के मन हरसाये।।

इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"
बिलासपुर (छत्तीसगढ़)
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रोला - मथुराप्रसाद वर्मा

(1)
काँटा बों के यार, फूल तँय कइसे पाबे।
अपन करम के भार, तहूँ हा इहें उठाबे।
पर बर जे हा रोय, मान वो जग मा पाथे।
उदिम करइया हाथ, भाग ला खुद सिरजाथे।

(2)
भूखन लाँघन लोग, कभू झन कोनो सोवय।
बाँधे पथरा पेट, नहीं अब लइका रोवय।
दे दे सबला काम, सबो ला रोजी-रोटी।
किरपा कर भगवान, मिलय सब ल लँगोटी।

(3)
नेता खेलय खेल, बजावै ताली जनता।
अब तिहार तो रोज, मनावै खाली जनता।
सस्ता चाउर-दार, पढावै हमला पट्टी।
ले लय सबला लूट, खोल के दारू भट्ठी।

रचनाकार- मथुरा प्रसाद वर्मा
पता - ग्राम कोलिहा ,लवन जिला बलौदाबाजार (छत्तीसगढ़)
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छंद के नाम - रोला संदीप परगनिहा

(1)
जात पात ला छोड़, हवन सब भाई-भाई।
एक हमर परिवार, देश हे सबके दाई।
भारत माँ के मान, हमन जी सदा बढ़ाबो।
करबो बढ़िया काम,जगत मा नाम कमाबो।।

(2)
कुरता पहिर सफेद, काम ला करथे करिया।
बाँटय फोकट चीज, खाय जी बड़का किरिया।
गुड़ कस बोली मीठ, लगय जस मनखे बपरा।
चुनई आगे तीर,दिखय अब नेता लबरा।।

(3)
धरके कॉपी पेन, स्कूल मा आके पढ़हू।
पाहू जब तुम ज्ञान, तभे तो आगू बढ़हू।
बबा ददा के बात, मान लव सब सँगवारी।
पढ़ना लिखना आय, सबो झन बर हितकारी।।

छंदकार - संदीप परगनिहा
पता - परशुराम वार्ड मोतीबाड़ी
तहसील-भाटापारा,जिला-बलौदाबाजार-भाटापारा
छत्तीसगढ़
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रोला - पोखन लाल जायसवाल

(1)
बिगड़े बात बनाव,संग मिल बइठ सबोझन।
सुनता ले हर काम,होय सब मिलजुल करथन।
सुग्घर बनही गाँव,करन जब साफ सफाई।
दूसर मुख झन ताक,हवय जी अपन भलाई।1

(2)
पाबे का का सोंच,नशा के पीछू चल के।
पाए हे सुख कोन,मान ए रस्ता छल के।
हली भली सब संग,बने रहि चेत लगाके।
घर भर सुख पहुँचाय,नशा ले दुरिहा पाके।2

(3)
पानी बिना मितान,खेत हा हावय सुन्ना।
कुआँ बावली खार,हवय सब तरिया उन्ना।
होगे मरे बिहान,असो के साल किसानी।
सावन बीतत जाय,फेर कब गिरही पानी।3

छंदकार - पोखन लाल जायसवाल
पठारीडीह ( पलारी )जिला बलौदाबाजार भाटापारा छत्तीसगढ़
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रोला छंद - मीता अग्रवाल

(1)
बैर भाव ला मेट,मनवता तुम अपनावव।
सुख ले करना भेंट,दुख ल तुम पहिली  पावव।
करव अहं के नास,उही हा मति ला हरथे।
क्रोध चढे जब मूड़, ड़ाह ला दुगुना करथे।।

(2)
ग्यान  जोत ला बार,होय जगमग उजियारा ।
अंधकार ला चीर ,तमस के तोड़य कारा।
गुरु बिन मिलय न ग्यान,अपन अंतस ल जगा ले।
खोल ग्यान के द्वार, गुरू ले रद्दा पाले।।

(3)
सोच समझ के काम, करव सब मिलजुल भाई।
जिनगी के दिन चार, मया जग मा बगराई।
भाई भाई आज, बैर अंतस मा पालय।
मया दया ला छोड,अपन अपने ला काटय।।

छंदकार-डाॅ मीता अग्रवाल,
पुरानी बस्ती, रायपुर छत्तीसगढ़
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23 comments:

  1. सादर आभार गुरुदेव

    सबो छंदकार भाई बहिनी मन ला बधाई

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  2. छंद खजाना- भरे ताना बाना
    अनमोल खजाना- देख नवा जमाना।

    सुंदर संकलन,प्रणाम गुरुदेव..

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  3. अनमोल खजाना गुरुदेव जी।सादर प्रणाम

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  4. सबो के रचना बहुतेच सुग्घर आप सबो ल बधाई

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  5. अति सुग्घर गुरुदेव के उम्दा बुता बर धन्यवाद अउ शुभकामना हे

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  6. छंद खजाना भर के राखव, दव अइसन अंजाम।
    नवा नवा साधक बर आही, शोध करे के काम।।

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  7. हमर परम श्रद्धेय गुरुदेव जी ला अनंत नमन जेखर कारन आज सुंदर संकलन होत हे,उँखर अनमोल समय हा छत्तीसगढ़ राज बर अनमोल धरोहर हे।
    जम्मो साधक मन ला बधाई👍👌💐💐💐

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  8. बहुत ही शानदार रोला छंद के संग्रह। सबो छ्न्दकार ला बहुत बहुत बधाई

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  9. बहुत ही शानदार रोला छंद के संग्रह। सबो छ्न्दकार ला बहुत बहुत बधाई

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  10. बढ़िया रोला छंद सभी छंदकारो की सबको बधाई।
    गुरुजी को नमन .

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  11. अनुपम संकलन।गुरुदेव के प्रणम्य उदिम।

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  12. बहुत सुग्घर संकलन होय हे, गुरुदेव ।सादर नमन

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  13. एक ले बढ़ के एक रोला छंद के संग्रह करे बर प्रणम्य गुरुदेव ला सादर चरण वंदन संगें संग जम्मो छंदकार मन ला गाड़ा गाड़ा बधाई हो......

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  14. छंद खजाना मा स्थान देय बर सादर आभार गुरुदेव। सादर प्रणाम

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  15. अनमोल सुग्घर संकलन बर कोरी कोरी बधाई गुरुदेव ।

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  16. अनमोल संकलन म स्थान पा के धन्य हँव।

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  17. अनमोल परिवार पाके धन्य होगे हँव।
    बहुतेच सुग्घर संकलन गुरुदेव।।
    सादर चरण वंदन है।

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  18. बहुत अच्छा संकलन बरछंदककार मन के सम्मान बर ये उदीम बर प्रणम्य गुरुदेव सादर प्रणाम आप महतारी भाखा ला जेन जिघा पहुँचाना चाहत हव वो लक्ष्य वो जरूर मिलही ।

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  19. बहुतेच सुग्घर ,छंद ,सबो झन ल बधाई

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  20. मनभावन शानदार रोला संकलन। जम्मो झन ला हार्दिक बधाई।

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  21. जम्मो छंदकार मन ला सुग्घर सृजन करे बर बहुत बधाई

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  22. बहुत-बहुत बधाई

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