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Sunday, July 14, 2019

छत्तीसगढ़ी दोहा श्रृंखला - (1) मा 25 छन्दकार के दोहा

(1) दोहा छंद - गुमान प्रसाद साहू

पूजव सब दाई ददा,  लेवव पाँव पखार।
इँखर मया के छाँव मा,जिनगी अपन निखार।।

मथुरा काँशी ला घुमव,तीरथ करव हजार।
बिन सेवा माँ बाप के, सबो हवय बेकार।।

दुनिया मा आये हवव, करलव अइसन काम।
दया मया सब बर करव, भजलव सीता राम।।

अपन पेट ला सब भरय, पढ़े लिखे नादान।
जेन भरय पर पेट ला, उही हरय इन्सान।।

बइगा के चक्कर हवै, संगी जी के काल।
येकर पाछू झन पड़व, हो जाही जंजाल।।
पेड़ कटे ले होत हे, हमरे जी नुकसान।
काटव झन तुम पेड़ ला, राखव पुत्र समान।।

मुनगा अइसन पेड़ जे, कतको रोग भगाय।
येकर पत्ता फर तना, छाल दवा बन जाय।।

समय समय के फेर मा, बदल जाय तकदीर।
कभू रंक राजा बनै, राजा होत फकीर।।

छन्दकार - गुमान प्रसाद साहू
समोदा ( महानदी ), रायपुर छत्तीसगढ़

(2) दोहा छन्द - बोधन राम निषादराज

काया माया के गरब,झन करबे  तँय यार।
करले   संगत संत  के, होही बेड़ा  पार।।

राम श्याम  दू नाम हे, दूनों  गुन के खान।
जपले प्राणी ध्यान से,मिल जाही भगवान।।

मया मोह ला जोर के,घर ला  आज बसाय।
पहुना बनके तँय चले,दुनिया छूटत जाय।।

मोर मोर कह तँय धरे,कहीं काम नइ आय।
मेल-जोल हा सार हे,सबके  मन ला भाय।।

जिनगी दूसर नइ मिलै,करले बढ़िया काम।
बिगड़े ले फिर नइ बनै,होवै झन बदनाम।।

जीव जगत में  सार हे,मीठा भाखा  बोल।
मन ला सबके जीत ले,दया मया रस घोल।।

सेवा करे म फल मिलै,रख तँय सेवा भाव।
बूड़ जथे एखर बिना,जिनगी के जी नाव।।

सुनता सबझन मिल करौ,काम करौ जी साथ।
बड़े काम  हर हो जथे,धरौ  हाथ में हाथ।।

छंदकार-बोधन राम निषादराज
सहसपुर लोहारा, जिला-कबीरधाम (छत्तीसगढ़)


(3) दोहा छन्द - महेन्द्र देवांगन माटी

झनकर तैं अभिमान जी, काम तोर नइ आय ।
धन दौलत के पोटली, संग कभू नइ जाय ।।

धन के पाछू भाग झन, माया मोह ल छोड़ ।
भज ले सीता राम ला, प्रभु से नाता जोड़ ।।

का राखे हे देंह मा , काम तोर नइ आय ।
माटी के काया हरे , माटी मा मिल जाय ।।

माटी के ये देंह ला, करय जतन तैं लाख ।
उड़ा जही जब जीव हा, हो जाही सब राख ।।

पानी के हे फोटका, ये तन ला तैं जान ।
जप ले हरि के नाम ला, माटी कहना मान ।।

माटी मा बाढे हवन, माटी हमर परान ।
माटी के सेवा करव, एहर स्वर्ग समान ।।

माटी मा उपजे सबो, गन्ना गेहूँ धान ।
सेवा करथे रोज के, जाथे खेत किसान ।।

चंदन जस माटी हवय, माथे तिलक लगाय ।
रक्षा खातिर देश के, सैनिक सीमा जाय ।।

छन्दकार - महेन्द्र देवांगन माटी, पंडरिया छत्तीसगढ़

(4) दोहा छन्द - राम कुमार चन्द्रवंशी

भुइयाँ सुन्ना रुख बिना,तुलसी बिना दुवार।
कोठा सुन्ना गउ बिना,बेटी बिन संसार।।

धरती सुन्ना करव झन,भुइयाँ हरा बनाव।
मिलही सब ला फर सदा,छाँव सबो मन पाव।।

तुलसी,आँगन मा रहे,मच्छर तीर न आय।
सबला दिन अउ रात मा,ऑक्सीजन पहुँचाय।।

दूध-दही हर गाय के,जग मा हे अनमोल।
धरती के अमरित हरे,संग न ककरो तोल।।

बेटी जे घर मा रहय,घर मा रौनक आय।
मइके अउ ससुराल के,शोभा सदा बढ़ाय।।

जग मा लक्ष्मी तीन हे,नारी,धरती,गाय।
ये तीनों के रूठना,भारी विपदा लाय।।

जब नारी के नैन ले,निकले जल के धार।
पाँव पसारे दुख सदा,बिखरे नित परिवार।।

जब-जब धरती माँ रिसे,जग ल रोस देखाय।
भुइयाँ मा भूकम्प कस,विपदा भारी आय।।

गउ माता के रूठना,बड़ दुखदाई होय।
धरती मा मनखे सदा,दूध-दही बर रोय।।

छंदकार- राम कुमार चन्द्रवंशी
बेलरगोंदी(छुरिया), जिला-राजनांदगाँव, छत्तीसगढ़

(5) दोहा छंद -आशा देशमुख

भारी गरमी मा घलो,चाँटी अबड़ कमाय।
जब आये बरसात तब,बइठे बइठे खाय।।

पानी के दू रूप मा, रहय प्यास अउ लाज।
एक दिलाथे मान ला ,एक चलाथे काज।।

बीमारी के बैद मन ,करथें सही  इलाज।
झाड़ फूँक में झन परव, जागव सबो समाज।।

चोरी होवत हे अबड़ ,सुते हवय दरबान।
चद्दर ला ताने रहय,मूंदे आँखी कान।।

गुर्राये बर बाघ हे,करे कुकुर के काज।
अइसन मनखे ला कभू,आवय नइ तो लाज।।

ठग जग करना हा घलो,बड़ मिहनत के काम।
अन्तस ला मारत हवय ,मुख बतियाये राम।।

कैसे मिलही नौकरी,फैले भ्रष्टाचार।
शिक्षा के व्यापार मा ,डिग्री बिकय हजार।।

चपरासी के ताव बड़, हवय कलेक्टर फेल।
डिग्री के सब भार ला,कागज देत धकेल।।

छंदकार --आशा देशमुख
एनटीपीसी जमनीपाली कोरबा,
छतीसगढ़

(6) दोहा छंद - शुचि 'भवि'

कइसे कर सकबे बता, एके दिन मा याद।
नोनी मन करथें सदा, जम्मो जग आबाद।।

शान तिरंगा के रखव, करव कर्म जी नेक।
नफ़रत ला भूलव चिटिक, हिंसा ला दव फेंक।।

जे मनखे दुख देत हे, करय कपट व्यवहार।
ओला भी सुख दे तहूँ , कहिथे शिष्टाचार।।

दाई अउ संगी ददा, दिही कहाँ तक साथ ।
अपन भरोसा खुद करव, जब तक बल हे हाथ।।

लहू नहीं विश्वास हे, रिश्ता के आधार।
बिधना जोड़े जेन ला, तोड़व झन बेकार।।

घर के कोंटा मा परे, रोवत हे ईमान।
देखव तो कतका गिरय, करजुग के इंसान।।

नफ़रत के बिच्छी इहाँ, मारै कइसे डंक।
दया मया भूलत हवे, फइलत हे आतंक।।

गंगा-जमुना देस मा, 'भवि' पर्वत के  धार।
दुहु भारत मा ही जनम, प्रभुजी बारम्बार।।

छंदकार - शुचि 'भवि'
जुनवानी, भिलाई, छत्तीसगढ़

(7) दोहा - द्वारिका प्रसाद लहरे

जात-पात जब तक रही,आवे नहीं सुराज।
भेद-भाव मिटही तभे,पाबो बने समाज।।

करके नवा अँजोर जी,सुमता ला सब लाव।
भेद-भाव ला छोड़ के,भाई सबो कहाव।।

जिनगी करव अँजोर जी,पढ़ लिख नाम कमाव।
गुरु ले लेवव सीख ला,निस दिन शिक्षा पाव।।

आय हरेली देख ले,गेंड़ी सबो खपाय।
खोजे बाँस मिले कहाँ,लकड़ी संग कटाय।।

डारा पाना लीम के,खोंचत राउत जाय।
हमर हरेली आय जी,लोगन सबो मनाय।।

रेशम डोरी प्रेम के,बहिनी हा पहिराय।
रक्षा भाई हा करे,राखी बचन निभाय।।

मन के डोंगा बोर के,मान कभू झन हार।
सतगुरु लेगय खींच के,भवसागर ले पार।।

जिनगी हे डोंगा सहीं,दुख के नदी अथाह।
माया पापी पेरथे,जसने बाढ़त चाह।।

छंदकार-द्वारिका प्रसाद लहरे
कबीरधाम छत्तीसगढ़

(8) दोहा छंद - पुरूषोत्तम ठेठवार

चूल्हा देवी देवता, पबरित होके बार ।
किसिम किसिम जेवन पका, खाही सब परिवार ।।

चूल्हा तीर म बइठ के, सास बहू समझाय ।
जेवन राँधे के विधा, हाँसत सबो बताय ।।

पुरी म जेवन बने, भोग लगे भगवान ।
माटी चूल्हा मा पके, लागे मीठ मितान ।।

धन हे रे घर फोरवा, सुनता दे हे टोर ।
घर मा आग लगाय गा, चूल्हा दे हे फोर ।।

नवा बहू के आय मा, भारी अजगुत होय ।
चूल्हा सुनता के बँटे, घर के मुखिया रोय ।।

चाउर नइहे खाय बर, चूल्हा हवय उदास ।
लागे लाँघन रात मा, सुतही जमो उपास ।।

तोर मोर के फेर मा, टूटत हे परिवार ।
चूल्हा देखत सोचथे, का होही संसार ।।

संग रहे के फायदा, चूल्हा ठीक बताय ।
रहे घरो घर गा सुखी, जग मा नाम कमाय ।।

छंदकार - पुरूषोत्तम ठेठवार
ग्राम - भेलवाँटिकरा, जिला - रायगढ़, छत्तीसगढ़

(9) दोहा छंद - ज्ञानुदास मानिकपुरी

फोकट फोकट बोल झन,बोली हे अनमोल।
मीठा मँदरस घोर के,बानी सुग्घर बोल।।

बोलव सब मीठा वचन,झूठ कपट ला छोड़।
होही जिनगी हा सफल,सबले रिश्ता जोड़।।

जिनगी चिटपत जानलौ,हार कभू हे जीत।
कभू घाम छइहाँ इहाँ,दुख सुख हावय रीत।।

जिनगी खेती जानलौ,रखव सदा चतवार।
बीज करम के पोटहा,बोवव गा संसार।।

पीरा ला हिरदै रखव,समझौ झन अभिशाप।
ठोकर आँखी खोलथे,सहिलव गा चुपचाप।।

मनखे के पहिचान हे,जीवन के आधार।
धन दौलत हा बिन मया,हावय सब बेकार।।

गुरु किरपा ले हे मिले,हम सब झन ला ज्ञान।
पढ़व लिखव ज्ञानी बनव,करम बनाय महान।।

बिना करम कखरो इहाँ,होवय गा पहिचान।
जस करनी तस फ़ल मिले,सब लव एला जान।।

छ्न्दकार-ज्ञानुदास मानिकपुरी
चंदेनी-कवर्धा, जिला-कबीरधाम(छ्त्तीसगढ़)

(10) दोहा छंद  - राजेश कुमार निषाद

दोहा केंवट राज के, सुनलौ चतुर सुजान।
पार लगाये राम ला, जग मा हवय महान।।

नदिया नरवा ढोड़गी, जाके करथे खोज।
लाथे मछरी ला बने, केंवट भइया रोज।।

केंवट भइया रोज के, मछरी पकड़े जाय।
धरके छोटे अउ बड़े, घर मा संगी लाय।।

सौंखी पेन्ना चोलिया, डिसको अउ गिरनेट।
दावन गरि मा हे लगे, बड़का बड़का बेट।।

रोहू कतला टेंगना, आनी बानी नाम।
लुदवा बाँमी खोखसी, जेकर अबड़े दाम।।

चढ़के डोंगा मा बने, फेंकय बढ़िया जाल।
फंसे मछरी देख के, लेवय सबो निकाल।।

छंदकार - राजेश कुमार निषाद ग्राम चपरीद पोस्ट समोदा तहसील आरंग जिला रायपुर छत्तीसगढ़

(11) दोहा छन्द - उमाकान्त टैगोर

झन माँगव जी भीख ला, करलव  सुग्घर काम।
रहिहव सुग्घर ठाठ मा, मिलही जग मा नाम।।

बैर-भाव ला छोड़दव, छोड़व मन के पाप।
सुमता मन मा राखलव, राखव मेल मिलाप।।

मन के बारी बाँध लव, घुसरे झन दव पाप।
नइते चरही जोर से, निकल जही सब ताप।।

गुड़ गोबर सब काम के, करथे वो दिन रात
ककरो समझाये घलो, जे नइ मानँय बात।।

जे दुर्रावय बाप ला, वो पापी कहलाय।
अइसन बेटा हा जनम, ले हे बिन मर जाय।।

सत् के रद्दा जे चलय, ओला मिलथे राम।
जग मा होथे नाम अउ, बनथे बिगड़े काम।
गहना गूठा संग मा, नइ जावय परलोक।
होय नहीं जे हा हमर, ओकर का के शोक।।

गुरतुर बोली बोल के, कतको देथे झाम।
मन ओकर करिया रथे, उज्जर दिखथे चाम।।

उमाकान्त टैगोर
कन्हाईबन्द, जाँजगीर(छत्तीसगढ़)

(12) दोहा - कौशल कुमार साहू

हरेली

आय हरेली के परब, सबके मन ला भाय ।
खेत खार चारो मुड़ा, धरती हा हरियाय।।

सवनाही काँदा कुसा, बइगा दवा बनाय।
गउमाता दइहान मा, पुतका लोंदी खाय।।

लीम डार राउत धरे, घर घर खोंचे जाय।
झोंकय चाँउर दार अउ, भजिया रोटी खाय।।

चंदन-बंदन पोत के, नाँगर ला जेंवाय ।
जोंड़ा नरियर फोर के, चीला भोग लगाय।।

पाती ठोंकय लोहरा, सँचरय झन कुछु रोग।
टोना-मंतर नइ लगय, होवय सुख संजोग।।

डोरी नरियर खोतली, चढ़ के टप-टप रेंग।
गेंड़ी खापव बाँस के, नइ लागय कुछु नेंग ।।

खो-खो बिल्लस खेल हे, टप्पा नरियर फेंक।
हार-जीत के दाँव मा, घुटना तँय झन टेंक।।

आज हरेली के परब, मन मा संगी ठान।
करौ सुरक्षा पेड़ के, रोज हरेली मान।।

छंदकार - कौशल कुमार साहू
गांव - सुहेला (फरहदा )
जिला - बलौदाबाजार - भाटापारा, छत्तीसगढ़

(13) दोहा छंद - अशोक धीवर "जलक्षत्री"

भुँइयाँ के भगवान - किसान
सबके दुखड़ा तँय हरे, भइया मोर किसान।
भुँइयाँ के भगवान तँय, सबके तहीं मितान।।

खेती करय किसान हा, तभे चलय संसार।
नइते भूखन सब मरै, होही बंटाधार।।

दाम मिलय या झन मिलय, तभो बेच ले धान।
खेत खार ला बेच झन, आही काम मितान।।

   सतनाम के दूत - गुरु घासीदास बाबा

महँगू के लाला हरे, अमरौतिन के पूत।
घासी नाम धराय हे, सत्यनाम के दूत।।

मनखे मनखे एक हे, बोले घासी दास।
सत के जोत जलाय के, जग मा होगे खास।।

मानौ ओखर  बात ला, बनहू सबो महान।
भेदभाव हिंसा मिटे, होही सुखी जहान।।

जइतखाम पूजा करव, सत के जोत जलाय।
सादा जीवन जीव बर, रद्दा सुघर बताय।।

सत के रद्दा जेन हा, चलही मनखे जात।
दुख दारिद मिट जाय जी, सिरतो कइथँव बात।।

छंदकार - अशोक धीवर "जलक्षत्री"
ग्राम - तुलसी ( तिल्दा नेवरा )
जिला - रायपुर ( छत्तीसगढ़ )

(14) दोहा छंद - इंजी.गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

दाता तो सतनाम हे, मानय सबला एक।
सत्य अहिंसा प्रेम के, पाठ पढ़ावय नेक।।

सत्य नाम डोंगा बने, गुरु घासी पतवार।
लहरा कतको मार लै, होही बेड़ा पार।।

मनखे मनखे एक हे, गुरु बाबा के बोल।
सत्यनाम जग सार हे, सत बानी अनमोल।।

एक रंग सतनाम हे, जेला कहय सफेद।
मानवता के पाठ हे, जेमा नइ हे भेद।।

सात रंग माया सजे, तीनों लोक जहान।
पर सादा के देख ले, कतका हावय मान।।

सहीं झूठ के ज्ञान दय, मारग नेक बताय।
सत्य पुजारी नाम गुरु, घासी दास कहाय।।

पहिली गुरु दाई ददा,दूजा हे गुरु सार।
माटी मन कच्चा घड़ा,जइसे गढ़े कुम्हार।।

जिनगी सुन्ना गुरु बिना,बिरथा हे सम्मान।
गुरु जीवन के सार हे,गुरु जग बर बरदान।।

इंजी.गजानन्द पात्रे "सत्यबोध"
बिलासपुर (छत्तीसगढ़)


(15) दोहा छन्द - जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"

जिनगी के दिन चार हे,जाने सकल जहान।
तभो रात दिन मोह मा,भटकत हे इंसान।।

फूल पात मन मोहथे,जड़ नइ जिया लुभाय।
झरे पात अउ फूल हा,जड़ हा पानी पाय।।

तिनका तिनका जोड़ के,पंछी नीड़ बनाय।
जोरे नइ धन धान ता,पिलवा छोड़ उड़ाय।।

माटी काया के गजब,नखरा गेहे बाढ़।
उड़ियावै आगास मा,लाहो लेवै ठाढ़।।

गाँव शहर चिक्कन दिखे,चिक्कन घर बन मेड़।
सुरसा सहीं विकास हा,निगलत हावै पेड़।।

अन्तस् मन के बात ला,जान सके गा कोन।
मन पंछी अतलंगहा,या सज्जन सिरतोन।।

काम बिना कखरो कहाँ,जग मा होथे नाम।
काम बने गिनहा रथे,बने काम ला थाम।।

बचपन मा पइसा नही,समय रहय भरपूर।
पइसा आइस हाथ ता,होगे समय ह दूर।।

जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)

(16) दोहा- मनीराम साहू 'मितान'

गुरु अउ मारग होय सम, सबके भार उठाय।
अपन रहय जसतस उँहें, मंजिल तक पहुँचाय।

बाँटे ले अउ बाढ़थे,सुन ले मोर मितान।
एक दुवा अउ दूसरा,हाबय गा मुस्कान ।

संकट बेरा आय तब, होय सहारा आस।
धीर धर होही बने,रख मन मा विश्वास।

ये जिनगी के बाट मा,आथे चढ़उ उतार।
देख ताक के रेंगहू, काँटा खूँटी टार।

रख विश्वास मितान तैं, गे हे जेन भुलाय।
करही सुरता देखबे, स्वारथ के दिन आय।

भँवरा कस मनखे हवयँ, माया मा नेताय।
कारन के नइहे पता, घूमत हें  रठ खाय।

असल सफलता हाथ मा, आही जिनगी तोर।
सुन मितान तैं कर मदद, दुसरो के पुरजोर।

संकट देथे टार वो,  करथे दुख के अंत।
अबड़ शक्ति हरि नाम मा, जपले हो श्रीमंत।

छंदकार- मनीराम साहू  'मितान'
कचलोन (सिमगा), जि.- ब.बाजार-भाटापारा, छत्तीसगढ़

(17) दोहा छंद- मीता अग्रवाल

काया माया हा बने,पंचभूत ले साॅस।
आगी पानी अउ हवा,उड़त  चलय आकास।।

पानी कस गुन ला धरव, मिलय सबो के रंग ।
जे मनखे अइसन रहय ,दुनिया ओखर संग ।।

पानी गति  मा जब रहय ,नहर नदी  कहलाय।
बाँध पाट रद्दा  बनय,सब्बोआवय जाय ।।

पानी बर लाइन लगय, बरतव धन कस जान ।
पानी ला जाँनव रतन ,  जतनव रुपिया मान।।

बिरथा पानी  झन बहे,जल के मोल अमोल।
कुआँ नहर तरिया हवय ,जल के कल-कल बोल।।

बूँद बूँद पानी  बहय,जानव वोखर मोल।
पाई पाई धन जुडय,संकट हो ही गोल।।

बचे चार प्रतिशत सुनव ,भारत मा जल शेष।
जल संकट गहरात हे ,मिलत हवय संदेश।

पानी पानी सब करय,पानी जीवन आस।
पानी पानी  जप करत ,निकल जही जी साँस ।।

छंदकार - डाॅ मीता अग्रवाल
पुरानी बस्ती   रायपुर छत्तीसगढ़

(18) दोहा छन्द   - ज्योति गभेल

ज्ञान सुमत के जानिए, बिपती दूर पराय ।
अँगुली एक टिके नहीं, पाँच मुट्ठी बन जाय ।।

बाती बोलय तेल ले, देख सदा ये होय,।
तिल -तिल करके हम जलें, तभे अंजोर होय ।।

करम धरम सब्बो करें, सत्यकरम आधार।
झूठा माया मोह हे,त्याग ए व्यवहार।।

गुरतुर बोलव बोल जी, करलव बढ़िया काम।
दान धरम करके बने, पावत हरि के धाम ।।

चारों तीरथ धाम कर,मिले न बैकुँठ धाम।
सेवा दई -ददा करौं, पूरन होही काम ।।

छन्दकार  - ज्योति गभेल
जे.पी. कालोनी .(S .E. C. L.)
कोरबा - छत्तीसगढ़

(19) दोहा छन्द -(बेटी) अजय अमृतांशु

झन मारव जी कोख मा,बेटी हे अनमोल।
बेटी ले घर स्वर्ग हे,इही सबो के बोल।।

बेटी मिलथे भाग ले,करव इँकर सम्मान।
दू कुल के मरजाद ये,जानव येहू ज्ञान।।

बेटी ला सम्मान दव,ये लक्ष्मी के रूप।
बेटी छइँहा कस रहय,छाँव मिलय या धूप।।

काली दुर्गा शारदा,सब करथे उद्धार।
बेटी कतको रूप मे,जग के पालनहार।।

माँ बेटी अर्धांगिनी,अउ बहिनी के रूप।
त्याग करय हर साँस मा,सहय जेठ के धूप।।

बेटी नइ भूलय कभू ,सात समुंदर पार।
सुरता कर दाई ददा,रोथे आँसू चार ।।

बेटी मिलथे भाग ले,तरसत रहिथे लोग।
जेकर बढ़िया हे करम,ओकर बनथे योग।।

घर मा बेटी आय जब,जीवन मा सुख आय।
बेटी मारे कोंख जे,बहू कहाँ ले पाय।।

छंदकार- अजय अमृतांशु
हथनीपारा भाटापारा, छत्तीसगढ़

(20) दोहा छंद - ईश्वर साहू बंधी

पुरखा गढ़े बिचार के, गजब कलेवा देख।
चीला चौसेला फरा, बहुँत बिसय उल्लेख।।

जोड़ी खुरमी ठेठरी, हे शिव शक्ति सरूप।
अइसन ये परसाद हे, महिमा एकर खूब।।

गुड़ के धर के पाग ला, ओमा चाउँर मोय।
अईरसा बनथे तभे, मीठ गजब के होय।।

दूध फरा के संग मा, चीला गजब सुहाय।
मन भर आगर लेय के, चाव लगा के खाय।।

हमर कलेवा खाय ले, मया पिरित बढ़ जाय।
चीला चटनी चाँट के, जिनगी भर ललसाय।।

नान नान लइका सबो, जुरमिल खेले जाय।
लेगय खुरमी ठेठरी, बाँट बाँट के खाय ।।

छंदकार - ईश्वर साहू बंधी
बंधी, दाढ़ी, बेमेतरा, छत्तीसगढ़

(21) दोहा-सुखदेव सिंह अहिलेश्वर के

पूरन होही आस सब,मन मा धर बिश्वास।
छोड़ भटकना बइठ आ,गुरु चरनन के पास।1।

धंधा जइसन रीत मा,अउ कतका परतीत।
देखा देखी मा फँसे,जुग जिनगी गय बीत।2।

आना जाना हे लगे,सुख दुख छँइहा घाम।
करत चलव सतकाम ला,झन दव कभू विराम।3।

अन उपजावय आन हा,कोठी आन भराय।
लइकन हाना जान के,सुनय गुनय पतियाय।4।

मनखे दय शुभकामना,एक दुसर ला देख।
खुद के सुख हित लाभ बर,इच्छा हे अनलेख।5।

हे मनुवा माँ बाप के,नमन भजन कर रोज।
पुरखा के सत्कार बर,तिथि विशेष झन खोज।6।

घरवाली ला भेज के,काबर हस पछतात।
घरवाला कर ठोल के,कहय पूस के रात।7।

बंगाला ला देख के,सोंचत हावय सेव।
सदा गरीबी नइ रहै,दुरिहा हो गय भेव।8।

-सुखदेव सिंह अहिलेश्वर
गोरखपुर,कबीरधाम,छत्तीसगढ़

(22) दोहा छन्द - ईश्वर लाल साहू 'आरुग'

ईंटा पखरा जोड़ के, महल भले सिरजाय ।
मया पिरित सद्भाव हा, घर ला सरग बनाय ।।

ताँय फाँय करके करम, आसा जबर लमाय ।
सबर करय सिरतोन जे, गुरतुर फर ला खाय ।।

घाव करय बोली जबर, मलहम घलो लगाय ।
गोठ करव समहाल के, जीभ ह धरहा ताय ।।

इरखा के गरदा भरे, अन्तस हे अँधियार ।
बाहिर दीया बार के, खोजत हें उजियार ।।

जिनगी भर मल मल नहा, खूब सजा ले चाम ।
आखिर मा सब राख हे, कौड़ी मिले न दाम ।।

बोंबे जे लूबे उही, गोठ हरय सिरतोन ।
गोटारन के पेंड़ ले, आमा टोरय कोन ।।

राजनीति हा हाँस के, खेले जब जब दाँव ।
भाई ले भाई लड़े, माते रहिथे गाँव ।

मुँह मा जेखर राम अउ, बाखा छुरी दबाय ।
वइसन मन ले राम जी, हमला लिहू बचाय ।।

छन्दकार - ईश्वर लाल साहू 'आरुग'
ठेलका-सजा-थानखमरिया, छत्तीसगढ़

(23) दोहा छंद - मोहन लाल वर्मा  

हमर नवा पीढ़ी करँय, पुरखा मन के मान।
करबो चलव उदीम ला, देके बने धियान।।

मूँड़ी अपन ठठात हें, नशा पान कर लोग।
तन होगे बीमार जब, लगगे कतको रोग।।

हमर देश के रीत हे, पहुना देव समान।
गुरतुर भाखा बोल के, देवव गा सम्मान।।

मंदिर जाके देख लव, पखरा हे भगवान।
जग मा दाई अउ ददा, हावँय देव समान।।

सुख-सुविधा के आड़ मा, बनगे हवन अलाल।
नइ उसरय अब काम जी, होगे बड़ जंजाल।।

धरती के सिंगार बर, चलव बढ़ावव हाथ ।
लइका सबो सियान मिल, काम करव नित साथ।।

सुरता नइ आवय कभू , सुख मा जी भगवान ।
वो मनखे दुख मा कहय, समय बड़ा बलवान ।।

रुखराई ला काट के, कहिथे चतुरा आँव ।
नइ समझय वो आदमी, घाव करय खुद पाँव।।

छंदकार - मोहन लाल वर्मा
पता - ग्राम-अल्दा, पोस्ट आफिस-तुलसी (मानपुर),व्हाया-हिरमी, तहसील-तिल्दा, जिला रायपुर (छत्तीसगढ़)

(24) दोहा - महेंद्र कुमार बघेल

पानी ला बरसात के, छेंक बांध के राख|
कटत पेंड़ ला थाम के, अपन बचा ले साख||

लाबो नवा अँजोर ला, अपन गॉव मा आज|
बेटी मन पढ़ही तभे ,बनही सुघड़ समाज||

जुरमिल सबो किसान मन, लाही नवा बिहान|
तब सुराज ला जानही, लइका लोग सियान||

खोलव ज्ञान कपाट ला, करलव मन उजियार|
दुर्गुण ला चतवार लव, भाग जही अँधियार||

डोंगा कस जिनगी हमर, धरम करम पतवार|
उफनत लहरा काट के, करलव नइयाँ पार||

बंदँव गुरुवर आप ला, पउँरी माथ नवाँव|
तुँहर ज्ञान आशीष ला,जिनगी भर मँय पाँव||

जात धरम मा एकता, हमर आय पहिचान|
रिस्ता नाता भाव हा, सब बर एक समान||

महतारी अउ बाप बर, घर ला सरग बनाव|
सास बहू मा एकता, लाके सब देखाव||

छन्दकार - महेंद्र कुमार बघेल डोंगरगांव,राजनांदगांव,छत्तीसगढ़

(25) दोहा छंद-श्रीमती आशा आजाद दाई अपने कोख मा,मोला झन तयँ मार । सरी जगत ला देखहूँ,लेके मँय अवतार।। भ्रूण नाश काहे करे,एहा अब्बड़ पाप। जिनगी ला मोरे बचा,नोहय बेटी श्राप।। अंश हरौं मँय तोर वो,नारी के अवतार। मोला सुग्घर दे जनम,मोर हवय गोहार।। जिनगी मोला दान दे,मँय बेटी वरदान। भ्रूण नाश ला भूलके,समता ला तँय मान।। तोर कोख के हव कली,माँ हो झन मजबूर। बेटा के लालच म सुन,झन करबे तँय दूर।। बैठे हावँव कोख मा,करत हवँव गोहार। मोला नव संसार दे,मोर हवय जोहार।। मात पिता के नाँव ला,रोशन करहूँ जान। सुग्घर तुहला पोसहूँ,देहूँ मँय सम्मान।। मोला दे अधिकार माँ,जग देखे के आस। आहूँ ए धरती म मँय,मोला हे विश्वास।। छंदकार-श्रीमती आशा आजाद पता-मानिकपुर,कोरबा,छत्तीसगढ़

20 comments:

  1. छंद खजाना म जघा दे बर प्रणम्य गुरुदेव ला सादर चरण वंदन हे।।

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  2. जम्मो गुरुदेव मन के शानदार दोहा ल पढ़ के अब्बड़ नीक लगिसे एक ले बढ़के एक...

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  3. अनुपम अउ उपयोगी संकलन।एक ले एक अप्रतिम ज्ञानवर्धक अउ आनंददायक दोहा मन ल मोहत हें।

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  4. वाह्ह वाह्ह् शानदार दोहा संकलन

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  5. गजब सुग्घर रचना पढ़े बर मिलिस अउ ज्ञान के बात समझे बर मिलिस ।छन्द खजाना म रचना प्रकाशन अइसने होते रहय।आदरणीय गुरुदेव ल सादर नमन !!!
    🙏🙏🙏🙏

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  6. मोर दूसरा दोहा म गलती होय हे गुरुदेव।
    धरती सुन्ना झन करव होना चाही।गलती से करव झन होगे हे।तेकर बर क्षमा चाहत हँव।अउ सुधार खातिर निवेदन करत हँव गुरुदेव !
    🙏🙏🙏

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  7. बहुतेच सुग्घर दोहा के संकलन
    परम पूज्य गुरूदेव जी ल सादर प्रणाम

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  8. बहुतेच सुग्घर दोहा संकलन
    परम पूज्य गुरूदेव जी ल सादर प्रणाम

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  9. बहुत सुग्घर आपके उदीम हे,गुरुदेव ।छत्तीसगढ़ीसाहित्य बर आपके समर्पण भाव ला सादर नमन ।सबो छंदकार मन ला हार्दिक बधाई अउ शुभकामना हे।

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  10. सबके दोहा दमदार है

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  11. गुरु देव आपके मिहनत अउ साधना के प्रति फल हे एक संग दोहा पढे बर मिलीस।हमर परिवार पर गर्व होथे।सादर प्रणाम ।

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  12. अति सुन्दर गुरुदेव जी सादर नमन । अब एक साथ सबो छन्द साधक मन के छन्द रचना एके जगह सुरक्षित होंगे।

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  13. बढ़िया संदेश परक दोहावली ....आप सबो ल बधाई,

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  14. आप जम्मो सम्मानीय साधक मन ला अनंत बधाई,गुरुदेव के अनमोल ज्ञान विश्व जगत बर अनमोल देन हे।👍👌💐💐

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  15. बहुतेच सुग्घर संकलन गुरुदेव, सादर पयलगी

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  16. बहुत सुघ्घर दोहा छन्द सभी छन्दकार की अच्छी रचना सादर नमन

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  17. बहुत ही उत्तम संग्रह, वाह वाह।

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  18. बहुत सुग्घर दोहा संकलन

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  19. बहुत सुंदर संकलन

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