Followers

Tuesday, July 16, 2019

गुरु पूर्णिमा विशेषांक




जितेंद्र वर्मा खैरझिटिया:

1,सरसी छन्द - गुरू महिमा

गुरू चरण मा माथ नवाले,गुरू लगाही पार।
भव सागर ले सहज तरे बर,बना गुरू पतवार।

छाँट छाँट के बने चीज ला,अंतस भीतर भेज।
उजियारा करथे जिनगी ला,बन सूरज के तेज।
जल जाथे जर जहर जिया के,लोभ मोह संताप।
भटक जानवर कस झन बइहा,नता गुरू सँग खाप।
ज्ञान आचमन कर रोजे के,पावन गंगा धार।
गुरू चरण मा माथ नवाले,गुरू लगाही पार।

धीर वीर ज्ञानी अउ ध्यानी,सबो गुरू के देन।
मानै बात गुरू के हरदम,पावै यस जश तेन।
गुरू बिना ये जग मा काखर,बगरे हावै नाम।
महिनत करले कतको चाहे,बिना गुरू ना दाम।
ठाहिल हीरा असन गुरू हे,गुरू कमल कचनार।
गुरू चरण मा माथ नवाले,गुरू लगाही पार।

गुरू बना जीवन मा बढ़िया,कर कारज नित हाँस।
गुरू सहारा जब तक रहही,गड़े कभू नइ फाँस।
नेंव तरी के पथरा बनके,गुरू सदा दब जाय।
यश जश बाढ़े जब चेला के,गुरू मान तब पाय।
गावै गुण सब लोक गुरू के,गुरू करै उपकार।
गुरू चरण मा माथ नवाले,गुरू लगाही पार।

2,रूपमाला छंद

गुरु बिना भव कोन तरथे,कोन करथे राज।
हाथ गुरु के सिर मा होवय,छोट तब सब ताज।
घोर अँधियारी मिटाथे,दुख ल देथे टार।
वो चरण मा मैं नँवावों,माथ बारम्बार।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा) छत्तीसगढ़
****************************************

द्वारिका प्रसाद लहरे:

विष्णु पद छन्द -

गुरू बचन हा सार हवय जी,ज्ञान सीख धरहूँ।
सदा गुरू के कहना मानत,सेवा मँय करहूँ।।

गुरू चरण मा माथ नँवाहूँ,तब तो मँय तरहूँ।
गुरू ज्ञान ला पाके संगी,दीया जस बरहूँ।।

गुरू ज्ञान ले मिट जाही जी,अँधियारी मन के।
मान बढ़ाहूँ  महूँ गुरू के,सदा शिष्य बन के।।

गुरू शरण मा परे रहँव मँय,माँगत हँव वर दौ।
गुरू चरण के धुर्रा चंदन,झोली मा भर दौ।।

छंदकार - द्वारिका प्रसाद लहरे
कबीरधाम,
****************************************

श्रीमती आशा आजाद

दोहा छन्द -

गुरु के महिमा जानलव,विश्व जगत अवतार।
जेखर गुरुवर नांव हे,बंदन बारंबार।।

बन्दौं मँय गुरु तोहिला,करत हवँव परनाम।
पावँव पबरित ज्ञान ला,सफल होय सब काम।।

अइसन मोला दान दे,पावँव मँय नित ज्ञान।
नेक भाव अउ कर्म ले,मिलत रहय सम्मान।।

सकल ज्ञान ला सीख के,जग मा मँय बगराव।
दीन दुखी के बीच मा,शिक्षा मँय पहुचाव।।

भेद भाव अउ द्वेष ला,जड़ ले सबो मिटाव।
शिक्षा के नित लाभ ला,जन जन बीच म गाव।।

गुरु के महिमा नेक हे,इही जगत आधार।
गुरु बिन अतके मान लौ,चलै नही संसार।।

आशा तँय भी ज्ञान ले,गुरु सँउहत भगवान।
सुरुज कहौं के अरुण जी,इही हमर अभिमान।।

छंदकार-श्रीमती आशा आजाद
पता-मानिकपुर, कोरबा,छत्तीसगढ़
****************************************

दोहा-गुरु महिमा- बोधन राम निषाद राज बिन गुरु भगती नइ मिलै,मिलै नहीं रे ज्ञान। चलबे गुरु के संग तँय,पाबे तँय भगवान।। सत् के डोंगा बइठ के,गुरु ला कर परनाम। गुरु के रद्दा में चलव,मिलही प्रभु के धाम।। गुरु के भगती पाय के,बन जाबे तँय धीर। गुरु के छाया में रबे, झन होबे गंभीर।। सुघ्घर पाबे ग्यान ला,मिटही सब अज्ञान। किरपा गुरु के होय ले,बढ़ जाही जी मान।। हाथ जोर बिनती करँव,चरन परँव मँय तोर। हे गुरुवर तँय ज्ञान दे,जिनगी बनही मोर।। गुरु के बानी सार हे,गुरु के ज्ञान अपार। जे मनखे ला गुरु मिलय,ओखर हे उद्धार।। भक्ति शक्ति दूनों मिलय,मिलय ज्ञान भंडार। गुरु पद में तँय ध्यान धर,गुरु हे तारनहार।। गुरु चरनन मा ध्यान हो,करौ सदा परनाम। सत् के रद्दा मा चलव,बनथे बिगड़े काम।। गुरु बिन जग अँधियार हे,ज्ञान कहाँ ले आय। हरि दरशन हा नइ मिलय,मुक्ति कहाँ ले पाय।। छंदकार-बोधन राम निषाद राज सहसपुर लोहारा,कबीरधाम(छ.ग.)
****************************************

कन्हैया साहू अमित

कुण्डलियाँ छन्द -
(1)
कजली कोठी मन हवय, जग लागय अँधियार।
गुरू सुमरनी कर सदा, इही असल उजियार।
इही असल उजियार, गुरू के महिमा भारी।
बिन गुरु जग जंजाल, गुरू हे तारनहारी।
गुनव अमित के गोठ, गुरू वंदन नित पहिली।
करही बेड़ापार, गुरू धोवत मन कजली।

(2)
गुरुवर सुमिरन नित करव, गुरू ग्यान आधार।
गुरु चरनन के बंदगी, करलव बारंबार।
करलव बारंबार, हाथधर डहर बताये।
पाछू हे भगवान, करम गुरु सरी सिखाये।
गुनव अमित के गोठ, जपव गुरु ला सब सुग्घर।
मिलही मान अपार, कृपा जब करही गुरुवर।

(3)
आदर अंतस मा करँव, जय जय हे गुरुदेव।
दुरगुन दुविधा लेस के, शरण अपन धरलेव।
शरण अपन धरलेव, परे हँव चुहके गोही।
मुँड़ मा राखव हाथ, सफल ये जिनगी होही।
करँव अमित बड़ मान, गुरू गुण गावँव सादर।
मन अँधियारी मेट, अमावव अंतस आदर।

कन्हैया साहू "अमित"
भाटापारा छत्तीसगढ़
****************************************
शोभा मोहन श्रीवास्तव                     

उल्लाला छंद -
(1)
गुरु के महिमा ला कहे,गीता बेद पुरान हा।              
अउ गुरु ला बड़का कहे,अपनो ले भगवान हा।।
(2)
सोना ठुक ठुक मार के,जेवर गढ़े सुनार हा।
कूट पीट लोहा बने,गड़हन देत लुहार हा।।
(3)
सब झन गुन ला सीख के,रचना रच सुख पात हे।                                     
देखव आने हे अपन,आने सिरज मड़ात हे।।
(4)
गुरु समर्थ अपने असन, करथे  देके ग्यान ला।
गुरु के दरजा नइ मिलय, तेकर सेती आन ला।।

शोभामोहन श्रीवास्तव
भिलाई, छत्तीसगढ़
****************************************

अरुण कुमार निगम:

उल्लाला छन्द -

जिनगी (उल्लाला – १३,१३ ,विषम-सम तुकांत)
जिनगी के दिन चार जी, हँस के बने गुजार जी ।
दुख के हे अँधियार जी, सुख के दियना बार जी ।।
नइ हे  खेवन-हार जी , धर मन के  पतवार जी ।
तेज नदी के धार जी, झन हिम्मत तयँ हार जी।।

गुरू – १ (उल्लाला – १३,१३, सम-सम तुकांत)

दुख के पाछू सुख हवे, गोठ सियानी मान ले ।
बिरथा नइ जाये कभू , संत गुरू के ग्यान ले।।
गुरू बड़े भगवान ले , हरि दरसन करवाय जी ।
गुरू साधना मा जरै, अउ अँजोर बगराय जी ।।

गुरु – २ (उल्लाला – १५,१३, सम-सम तुकांत)

तँय घुनही घनई बइठ झन, बुड़ो दिही मँझधार मा ।
गुन  बिना गुरू  पतवार के , कोन उतरही पार मा ।।
सुन  तीन लोक के देव मन, जपैं गुरू के नाम ला ।
जब  पावैं  आसिरवाद  तब, सुरु करैं उन काम ला।।

अरुण कुमार निगम
दुर्ग, छत्तीसगढ़
****************************************
आल्हा छंद- इंजी.गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

गजानंद गुरु महिमा गावय,लिख लिख सुग्घर आल्हा छंद।
हे गुरु ज्ञानी ज्ञान बता जा,मँय लइका हँव जी मतिमंद।।

तीन लोक त्रिभुवन मा गूँजे,गुरु के तो जय जयकार।
फूल देवता मन बरसावय,गुरु के महिमा अपरंपार।।

किरपा गुरु के पाके लाँघय,लँगड़ा हा जी ऊँच पहाड़।
अँधरा हा सुख सपना देखय,गूँगा मारय देख दहाड़।।

दाई ददा जनम ला देवय,गुरु हा देवय जग संस्कार।
बुरा भला के राह बतावय,दीन दुखी सेवा उपकार।।

गुरु ला बड़ के कोन भला हे,ये दुनिया मा जी भगवान।
ज्ञान जोत के अलख जगावय,सबला मानय एक समान।।

इंजी.गजानंद पात्रे "सत्यबोध"
बिलासपुर (छत्तीसगढ़)
****************************************

कुंडलिया छंद- इंजी.गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

अरुण निगम गुरुदेव के,महिमा करँव बखान।
ये दुनिया मा मोर बर,सउँहत वो भगवान।।
सउँहत वो भगवान,ज्ञान रुप मिलगे मोला।
पाये बर गुरु ज्ञान,रहिस भटकत जी चोला।।
जीवन उठे तरंग,बुढापा जस होय तरुण।
अइसे गुरु बन छाँव,मिले मोला देव अरुण।।

इंजी.गजानंद पात्रे "सत्यबोध"
बिलासपुर (छत्तीसगढ़)
****************************************

विरेन्द्र कुमार साहू

सार छंद -

गुरु हा जब जिनगी मा आथे, भाग जथे अँधियारी।
गुरु प्रकाश के पुंज बरोबर ,होथे बड़ उपकारी।१।

गुरु भगवान समान जगत मा ,बिपदा सब हर लेथे।
सेवक ला सुख  देथे अइसे ,जइसे दाई  देथे।२।

बेर उये के बाद मिटाये , जस जग के अँधियारी।।
नाश करे अज्ञान दुष्ट  के, गुरु तलवार दुधारी।३।

जम्मों जग जानौ भवसागर,  गुरु नौका खेवइया।
ओकर छोड़ जगत मा कोन्हों, नइ हे पार लगइया।४।

सदगुरु खोजत जम्मों किंजरे,  राजा देव भिखारी।
बने सकय नइ उनकर बिन जी, जग महान नर-नारी।५।

भटके मंजिल खोजत - खोजत, जग मा कतको   राही।
पाये बर आराम   सबे ला, सिरतों सदगुरु  चाही।६।

जेन अपन गुरुदेव असन के, करथे निंदा चारी।
अइसन मनखे मन हा खच्चित, होय नरक अधिकारी।७।

मान जउन गुरुवर के करथे, तउन ज्ञान ला पाथे।
गुरु  निंदा मा  बूड़े मनखे, अज्ञानी रहि जाथे।८।

गुरु ले बड़का मान अपन ला, गरजिस जेन कुराही।
भरे पाप ले टिपटिप उनकर, फुटगे सोन सुराही।९।

गुरुवर के अपमान करइया,  मान कहाँ ले पाही।
रावण कौरव कंस ल देखौ, हे इतिहास गवाही।१०।

तज के गरब गुमान आदमी, गुरु के चौखट जाथे।
हीरा मोती धन ले बड़का, बिद्या धन ला पाथे।११।

गुरुवर के मंतर हा  सिरतों, फल देथे मनचाहा।
गुरु किरपा ले राजा बनगे, चंद्र गुप्त चरवाहा।१२।

गुरु के महिमा अतका हाबे, भव सागर नहकाथे।
मनखे दानव संग देंवता, तक हा  माथ नवाथे।१३।
छंदकार -  विरेन्द्र कुमार साहू
       ग्राम बोड़राबाँधा (पाण्डुका)
       वि.स. राजिम जि. गरियाबंद, छत्तीसगढ़
****************************************

चोवाराम वर्मा

दुर्मिल सवैया छंद -

(1)
घपटे अँधियार हवे मन द्वार बिचार बिमार लचार हवै ।
जग मोह के जाल बवाल करे  बन काल कुचाल सवार हवै।
मन के सब भोग बने बड़ रोग बढ़ाय कुजोग अपार हवै ।
गुरुदेव उबारव दुःख निवारव आवव मोर पुकार हवै।।

(2)
लकठा म बला निक राह चला सब होय भला बिपदा ल हरो।
मन ला गुरु मोर जगा झकझोर भगा सब चोर अँजोर भरो।
हिरदे पथरा परिया कस हे हरिया  दव प्रेम के धार बरो।
अरजी कर जोर सुनौ प्रभु मोर। हवौं कमजोर सजोर करो।।

(3)
नई जानवँ आखर अर्थ पढ़े अउ भाग गढ़े मतिमंद हवै ।
ममता जकड़े नँगते अँकड़े कसके पकड़े जग फंद हवै।
अगनी कस क्रोध जरे मन मा तन  मा धन मा छल छंद हवै।
किरपा करके दव खोल अमोल  विवेक कपाट ह बंद हवै।।

चोवा राम 'बादल'
हथबन्द, छत्तीसगढ़
****************************************
बलराम चंद्राकर:

दोहे -

शरण गुरू के जब मिलिस, मिलिस ज्ञान भंडार।
सुरुज असन अंजोर हे, मन मंदिर उजियार।।

भटक भटक संसार मा, खोजँव ज्ञान प्रकाश।
हवै गुरू पारस सहीं, होत पाप के नाश।।

दुनिया के ये भीड़ मा, ठगजग अजब अपार।
गुरू बताये रासता, सही गलत चिनहार।।

का रहेंव का अब हवौं, कतका काय बताँव।
गुरू ज्ञान के धार हे, पावन सुघर नहाँव।।

माथ नवावौं मैं सदा, करौं चरन जोहार।
गुरु असीस सब ला रहै, गुरु गंगा के धार।।

बलराम चंद्राकर
भिलाई, छत्तीसगढ़
****************************************

आशा देशमुख:

दोहा चौपाई छन्द -

गुरु के महिमा का कहँव,कतका करँव बखान।
गुरु अँजोर के सामने ,टिमटिमाय दिनमान।

गुरु आवँय अमरित के सागर। देवन मन ले बड़के आगर।।
गुरु चरणन मा माथ नवावँव।अपन भाग ला सँहरावँव।।

पाये गुरु ले आखर जोती।चमकय जेहर चारो कोती।।
गुरु सँउहत भगवान हरे जी,जम्मो युग गुणगान करे जी।

मँय आवँव निच्चट अज्ञानी।गुरु मोरे हे विद्यादानी।।
गुरु से सफल होय जिनगानी।नोहय येहर कथा कहानी।।

जतका भीतर बूड़त जावौं।गुरु ज्ञान के मोती पावौं।।
गुरु हर भवसागर ले तारे।,मन के जम्मो कष्ट निवारे।

गुरु जइसे नइहे जी दाता।गुरु जग के हे भाग्य विधाता
गुरु चरणन ला जेहर छोड़े ।अपन भाग ला खुद वो फोड़े।

गुरु के करथें वन्दना ,सत्य शांति भगवान।
गुरु के जी पँउरी तरी, बसे सबो सम्मान।

आशा देशमुख
एन टी पी सी कोरबा, छत्तीसगढ़
****************************************

अशोक धीवर जलक्षत्री:

दोहा छंद -

बिना गुरू संसार मा, कभू मिलय नइ ज्ञान।
मन के शंका छोड़ के, ब्रम्ह गुरू ला मान।।१।।

कहाँ चले भगवान बर, गुरु ला अंतस जान।
शरणागत होके बने, देव गुरू ला मान।।२।।

सुमिरन गुरु के कर बने, दूसर ला मत मान।
मन मा शंका झन करव, उही हरे भगवान।।३।।

गुरू शरण मा जाय के, भक्ति करव गा पोठ।
ज्ञान मुक्ति देथे घलो, सही कहत हँव गोठ।।४।।

गुरु ला पूजय गुरुमुखी, खोजय नइ भगवान।
बहिरमुखी हा का करय, खोजत फिरे जहान।।५।।

छंदकार - अशोक धीवर "जलक्षत्री"
ग्राम - तुलसी (तिल्दा नेवरा)
जिला - रायपुर (छत्तीसगढ़)
****************************************

जगदीश "हीरा" साहू

दोहा छन्द -  

बात बतावय ज्ञान के, रस्ता सुघर सँवार।
जेकर गुरु गुनवान हे, होगे बेड़ापार।।


****************************************

नीलम जायसवाल:

अमृतध्वनि छंद -

- गुरु -
गुरु हरि ले बड़ होत हे, हरि हा खुदे बताय।
जब हरि ला मुस्किल पड़ै,शरण म गुरु के जाय।।
शरण म गुरु के, जाय के देखव, बढ़िया कर लव।
गरब छोड़ के, गुरु चरनन मा, मस्तक धर लव।।
ज्ञान ल पावव, मटकी भर लव, गुण के सरि ले।
इही तारही, सदा होत हे, बड़ गुरु हरि ले।।

छंदकार - नीलम जायसवाल
खुर्सीपार, भिलाई, छत्तीसगढ़।
****************************************

सुधा शर्मा

दोहा छन्द -

बंदव मैं गुरु पाँव ला,मन श्रद्धा भरपूर।
आँखी आँसू हे गिरत ,शब्द ओंठ ले दूर।।

दूबी कस लिल्हर हवँव,देहू गुरु आधार।
दोष दूर करके सबो,भरव ज्ञान भंडार।।

डगमग डग मन डोंगिया,अंतस भरे विकार।
धो -धो कर निर्मल करे,गुरुवर करथे  पार।।

जिनगी के रस्ता गढ़य,काँटा खूंटी निमार।
अँगरी धर रेंगात हे,किरपा करय अपार।।

गुरु बिन ज्ञान कहाँ मिले ,भटकन सब संसार।
उमर बीत जाथे फकत, जीव परे अँधियार।।

गुरवर  किरपा नित बने,रहे चरण मा ध्यान।
मूरख मैं मतिमंद हँव,मेटव सबअज्ञान।।

घोर तमस में दीयना,जगमग करय अँजोर।।
मन में भरत उजास हे,धन्य धन्य गुरु मोर।।

सुधा शर्मा
राजिम छत्तीसगढ़
****************************************

सरस्वती चौहान

दोहा छंद

नमन छंद परिवार ला,धन धन हमरो भाग।
चेत लगा के सीखबो,दोहा लय अउ राग।।

भरव ज्ञान के कोठरी,कण कण सोना ताय।
गुरू ज्ञान अंतस रहै,मन से कभू न जाय।।

गुरु वंदन निश दिन करव,गुरु बिन मिलय न ज्ञान।
तीन लोक गुरु तार दँय,करलव जी सम्मान।।

नाम- सरस्वती चौहान
ग्राम-बरडांड़, पोस्ट-नारायणपुर
जिला-जशपुर नगर (छ.ग.)
****************************************

दुर्गाशंकर इजारदार:

मनहरण घनाक्षरी छंद - गुरु महिमा

गुरु होथे आन बान ,गुरु होथे भगवान ,
गुरु के बिना तो भैय्या ,जग अँधियार हे ।।
गुरु होथे ज्ञान खान ,गुरु महिमा ला जान ,
गुरु हा लगाथे भैय्या ,जग बेड़ापार हे ।।
गुरु होथे गा धरम,गुरु होथे गा करम ,
गुरु के बिना तो सुन्ना ,ये जग संसार हे।।
गुरु होथे गा लहर ,गुरु होथे गा डहर ,
गुरु के बिना तो जीव ,फँसे मँझधार हे ।।

दुर्गा शंकर इजारदार
सारंगढ़, छत्तीसगढ़
****************************************

मनीराम साहू 'मितान'

कुंडलिया छंद

बंदन बारम्बार हे, स्वीकारव गुरु मोर।
तुँहर कृपा ले आज हे, जिनगी मोर अँजोर।
जिनगी मोर अँजोर,रहिस घपटे अँधियारी।
हरगे जम्मो खोट,भराये भीतर भारी।
पँवरी धुर्रा माथ, लगाववँ चोवा चंदन।
पाववँ सदा असीस,करत हँव तुँहला बंदन।

मनीराम साहू 'मितान'
कचलोन, छत्तीसगढ़
****************************************

चित्रा श्रीवास

दोहा छंद -

बंदव गुरुजन ला सदा,देत छंद के ज्ञान ।
हमर छंद परिवार के,सदा बढ़ँय जी मान ।।

गुरु के पूजन  मैं करँव ,बंदन बारंबार ।
जोत ज्ञान के बार के ,हरथे सब अँधियार ।।

गुरु के किरपा से मिले ,मोला सुग्घर ज्ञान ।
छंद साधना मैं करँव ,मानँव गुरु भगवान ।।

गुरु के गुन ला गात हे, गीता बेद पुरान ।
गुरु के महिमा मैं भला ,कइसे करँव बखान ।।

जनम दिहिन दाई ददा ,देंवय गुरु हा ज्ञान ।
पूजव तीनों ला सदा ,जइसे की भगवान ।।

- चित्रा श्रीवास
एम.पी .नगर,कोरबा, छत्तीसगढ़
****************************************

ज्ञानुदास मानिकपुरी

सोरठा छंद

कोटि कोटि परणाम ,गुरुवर ला मोरे हवै।
अरुण निगम जी नाम,मृदुभाषी गुणवान हे।

उल्लाला छंद

जिनगी बिरथा होय झन,गुरू के कहना मान ले।
हिरदै गठरी जोर ले,करम धरम ला जान ले।

दया बिना जिनगी लगे,जइसे तन बिन प्रान के।
धन दौलत ला जान लव,बिरथा हे बिन दान के।

सुग्घर नर तन पाय के,झनकर गरब गुमान जी।
जिनगी बड़ अनमोल हे,राहय सदा धियान जी।

रोला छंद

गुरू बचन ला जान,ज्ञान के करथे बरसा।
छिन मा देथे मेंट,मोह माया अउ इरसा।
सत्यनाम हे सार,गुरू के अइसन बानी।
हिरदै गठरी राख,सफल होही जिनगानी।

रूपमाला छंद

भूल होवय झन कभू जी,जीत चाहे हार।
छोड़ माया मोह ला अब,बात हावय सार।
छोड़ इरखा द्वेष ला तँय,राख हिरदै जोर।
नाव चढ़ गुरु गुरु ज्ञान के,भाग जागे तोर।

छ्न्दकार-ज्ञानुदास मानिकपुरी
चंदेनी-कवर्धा,जिला-कबीरधाम(छ्त्तीसगढ़)
****************************************

महेन्द्र देवांगन माटी

सदगुरु ( दोहा छंद)

पारस जइसे होत हे , सदगुरु के सब ज्ञान ।
लोहा सोना बन जथे , देथे जेहा ध्यान ।।

देथे शिक्षा एक सँग , सदगुरु बाँटय ज्ञान ।
कोनों कंचन होत हे , कोनों काँछ समान ।।

सत मारग मा रेंग के  , बाँटय सबला ज्ञान ।
गुरू कृपा ले हो जथे , मूरख हा विद्वान ।।

छोड़व झन अब हाथ ला , रस्ता गुरु देखाय ।
दूर करय अँधियार ला , अंतस दिया जलाय ।।

नाम गुरू के जाप कर , तैंहर बारंबार ।
मिलही रस्ता ज्ञान के  , होही बेड़ा पार ।।

महेन्द्र देवांगन माटी
पंडरिया कबीरधाम, छत्तीसगढ़
****************************************

आशा देशमुख

गीतिका छंद -
(1)
देवता मन ले बड़े हे ,गुरु जगत में जान ले।
राम कृष्णा मन तको जी ,गुरु शरण मा ज्ञान ले।
बार कतको रोज दीया ,मन तभो अँधियार हे।
भाग्य से मिल जाय गुरु तब,जान जिनगी सार हे। 1।
(2)
एक दिन जाना हवे जी ,मोह के संसार से।
मँय उऋण नइ हो सकँव गुरु,आपके उपकार से।
पुण्य से जिनगी मिले हे ,गुरु मिले सौभाग्य से।
गुरु कृपा ला का बखानौं ,छंद रचना काव्य से।

आशा देशमुख
एनटीपीसी जमनीपाली कोरबा
छत्तीसगढ़
****************************************
श्रीमती शोभा मोहन श्रीवास्तव  

दोहा छन्द -

छंदकार जनकवि दलित,कर जन मन के बात ।
कुल उजास कर दिन अपन,छंद छटा बगरात।।

जनकवि के कुल कीर्ति में,करत जबर विस्तार ।
कुलदीपक हे छंदविद ,निगम अरूण कुमार ।

जनकवि के कुल कीर्ति में,करत जबर बढ़वार  ।
अरुण निगम गुरुवर हमर,बना छंद परिवार ।।

छत्तीसगढ़ी ला करे ,अवधी ब्रज संग ठाढ़ ।
अरुण निगम जी हे अड़े,भाखा हित गुन काढ़  ।।

श्रीमती शोभा मोहन श्रीवास्तव
छत्तीसगढ़
****************************************

दिलीप कुमार वर्मा

हरिगीतिका

गुरुदेव के आशीष ले,पाये हवन हम ज्ञान जी।  
उखरे कृपा के जोर ले,मिलथे सदा सम्मान जी।

अज्ञानता के तोपना ले,सब ढँकाये हे इहाँ।
गुरुदेव ही हर खोलथे, सच मानलव देखव जिहाँ।

गुरुदेव के ना जात हे, ना गोत्र अउ ना धर्म हे।
दुख दूर कर सुख सींचना,गुरुदेव के बस कर्म हे।  

गुरुदेव ओ बनथे सखा,जेकर करा सब ज्ञान हे।
सब ला बराबर जान के,शिक्षा करत जे दान हे।

बड़का उमर के होय ले,नइ बन सकय गुरु जान जी।
छोटे तको गुरु बन जही,जेकर करा हे ज्ञान जी।

जे हर सिखावत हे हुनर,गुरु तेन बड़का मान ले।
बस कान फूँकत जे इहाँ,नइ होय गुरु ये जान ले।   

गुरु के चरण मा मँय अपन,माथा नवावत हँव अभी।
गुरुदेव के आशीष ले,अँधियार मिट जावय सभी।

दिलीप कुमार वर्मा
बलौदाबाजार, छत्तीसगढ़
****************************************

राजेश कुमार निषाद

उल्लाला छंद

कहना मोरो मान जी,गुरु से मिलथे ज्ञान जी।राखव ओकर मान जी,देके बने धियान जी।।

प्रण ला बढ़िया ठान के,गुरु के कहना मान के।करव बने सब काम गा, जग मा होही नाम गा।।

सीखे के बड़ चाह हे, गुरु के ज्ञान अथाह हे।
पबो बढ़िया ज्ञान ला,रखबो गुरु के मान ला।।

गुरु जेहा अपनाय गा, धोखा ओ नइ खाय गा।
ज्ञान अनोखा पाय गा, जग मा नाम कमाय गा।।

रोज शरण मा आँव गा, ज्ञान तोर मैं पाँव गा।
करदे किरपा मोर गा, गुरु बिना ज्ञान थोर गा।।

छंदकार - राजेश कुमार निषाद
ग्राम चपरीद रायपुर छत्तीसगढ़
****************************************

रामकली कारे

दोहा छंद (गुरु के महिमा)

गुरु के महिमा जान लव ,जीवन सफल बनाय ।
रूप गढ़य कुम्हार हा ,ठोक पीट सिरजाय ।।

बिन गुरु के जी नइ मिलय ,हम सब ला कुछु ज्ञान ।
ज्ञान सुधा के बरसा करयँ ,कर देवय गुणवान ।

गुरु सत शिव सुन्दर हवय ,ज्ञान भरे भण्डार ।
गुरु चरनन मा हे नमन ,गुरुवर जग के सार ।।

गुरुवर अरुण कुमार जी ,जनकवि के सन्तान ।
हमर छंद परिवार ले ,बार बार    परनाम ।।

रामकली कारे
बालको कोरबा, छत्तीसगढ़
****************************************

केवरा यदु "मीरा "

दोहा छन्द -

भक्ति नहीं गुरु बिन मिले, मन मा करव बिचार ।
भवसागर ले तारथे,  महिमा अगम अपार ।।

तीन देव गुरु रूप मा, ब्रम्हा विष्णु महेश ।
गुरु चरनन मा जाय ले, कटही सकल कलेश ।।

ठाढ़े  गुरु गोविन्द हा ,काकर  लागौं पाँय ।
बड़का गुरुजी मोर ले, रद्दा दिए  बताय ।।

हवय ज्ञान दाता इही, चरण नवा लव  माथ ।
ज्ञानी ध्यानी रूप ला , सदा राखिहौ साथ ।।

गुरु चरनन मा जाय ले, खुलही ज्ञान कपाट ।
मन मा हे अभिमान ता, पढ़े लिखे ह सपाट ।।

गुरु चरनन मा रोज दिन,मँहू नवावँव माथ ।
किरपा करबे मोर बर, मुड़ी मढ़ा दव हाथ ।।

छंदकारा - केवरा यदु "मीरा "
राजिम, छत्तीसगढ़
****************************************

राधेश्याम पटेल

दोहा छंद

नमन करँव गुरु चरण मा,हाँथ दुनो मैं जोर ।
काज बनय परताप ले , भाग सँवारव  मोर ।।

आशिष  तुँहरे  पाइके, भाग अपन सहराँव ।
तुँहीं मोर  हव आसरा , छोंड़ कहाँ मैं  जाँव ।।

जिनगी डोलत धार मा, दुरिहा लागय पार ।
मिल जावय किरपा कहूँ , हो  जाही उद्धार ।।

राधेश्याम पटेल
छत्तीसगढ़
****************************************

नीलम जायसवाल

कुण्डलिया छंद -

- गुरु के महिमा -
गुरु के चरण पखार लव, मन ले देवव मान।
गुरु के किरपा ले बनय, मूरख हा गुणवान।।
मूरख हा गुणवान, चतुर अउ निरमल बनथे।
जेखर पर गुरु हाथ, उही आकाश म तनथे।।
जइसे गरमी घाम, छाँव निक लागे तरु के।
वइसे शीतल होय, वचन हा हरदम गुरु के।।

छंदकार - नीलम जायसवाल
खुर्सीपार, भिलाई, (छत्तीसगढ़।)
****************************************

मीता अग्रवाल

दोहा छंद-

गुरु के कर लव वंदना, गुरू ज्ञान के खान ।
बिन गुरु  ज्ञान मिलय नही, मिलय नही सम्मान ।।

गुरु बानी अनमोल  हे,अंतस ले दे ध्यान।
आस अउ विस्वास भरय, राह बने आसान। ।            

गुरु अइसन दीपक हवे,जर जर करय प्रकाश।
ज्ञान ले उजियार करे, जिनगी के आकाश।।

जहाँ जहाँ ले सीख मिले,तउने ला गुरु जान।
सब्बो जीव म गुरु छिपे,अंतस ले पहिचान। ।

ज्ञान दीप बाती बरय,गुरु करथे उपकार ।
जगमग जगमग जोत हे,महिमा अगम अपार।।

गुरू दीप जइसन बरय,जोत जरय निज ज्ञान ।
माटी घड़े कुम्हार कस, ऑच दिही पहिचान ।।

बड़ भागी ला गुरु मिलय, गुरु ला देवव मान।
मन ले करलव बंदगी, महिमा गुरु के जान।।

छंदकार-डाॅ मीता अग्रवाल
पुरानीबस्ती , रायपुर छत्तीसगढ़
****************************************

सुखदेव सिंह अहिलेश्वर

दोहा चौपाई  - गुरु पुन्नी

धन बल भोजन ज्ञान सुख,मिलही कीर्ति उजास।
आ मनु प्राणी बइठ ले,गुरु चरनन के पास।।

गुरु पुन्नी के नमन बधाई।बाँटे झोंके बर सकलाई।
मिल के ज्ञान तिहार मनाई।मति अनुसार गुरू गुण गाई।

प्रथम गुरू माँ बाप जगत मा।हम ला उबजारे हे सत मा।
काया गढ़े पाँच ठन तत मा।रेंगा के छोड़े सत गत मा।

दूसर गुरु इस्कूल म आथे।सिल्हट कापी कलम धराथे।
बचपन थप थप थप थपताथे।तब माटी आकार ल पाथे।

तीसर कला निधान गुरू हे।समझ ज्ञान विज्ञान शुरू हे।
सोलह गुण संपन्न करत हे।भोर भविस के नेव धरत हे।

चौंथा गुरु भुँइ पाठ म आथे,रवि कबीर घासी कहिलाथे।
मइलाये अंतस उजराथे।पुरुष पिता ले भेंट कराथे।

सुरता रखबे रे मना,पाँच नाम गुरु चार।
झन जावै हंसा अरझ,हो जय बेड़ा पार।

छंदकार-सुखदेव सिंह अहिलेश्वर
गोरखपुर,कबीरधाम(छत्तीसगढ़)
****************************************

राम कुमार साहू

गुरु चरनन के बंदना,रोज नवावँव माथ।
सत के रद्दा लेगथे,अँगरी धरके साथ।।

हमला तोरे आसरा,तहीं हमर आधार।
मँय डोंगा सरहा हरँव,गुरु हस तँय पतवार।।

बइहा पूरा बाढ़ हे,फँसगे हँव मँझधार।
डोंगा खो दव अब तुहीं,उतर जहूँ मँय पार।।

गुरु के ज्ञान अमोल हे,जिनगी भर उपकार।
शब्द शब्द के मंत्र ले,जीवन देय सुधार।।

राम कुमार साहू
सिल्हाटी, कबीरधाम, छत्तीसगढ़
****************************************

रूपमाला छंद - महेंद्र कुमार बघेल

जब इहाॅ तॅय आय पहिली, केहुं कहिके रोय|
मातु कोरा हा मिलिस जी, तब कलेचुप होय|
सोच बिन माॅ के जगत मा, का तुॅहर पहिचान|
माॅ प्रथम जी गुरु सबों के,कर सदा सम्मान||

हर कदम मा हाथ धरके, सत असत बतलाय|
हारके खुद खेल मा जी, पूत ला जितवाय|
अउ कभू झन आय अलहन, राह दिस चतवार|
हर पिता जइसन इहाॅ गुरु, ले सदा अवतार||

का कहॅव मॅय संगवारी, सोंच ननपन गोठ|
ये अगढ़ मन ला करे हे, गुरु कलम मा रोठ|
हाथ धर सबला सिखाइस, नीति के हर बात|
गुरु हमर बर होम कर दिस, नित कई दिन रात||

मान के हर सीख ला जी, मॅय करत हॅव राज|
बंदना हे आपला सब, मोर गुरुवर आज|
मां पिता अउ संग गुरु बस, तीन हे भगवान|
नेक रस्ता मा चलय पग,दे इही वरदान|

गुरु नमन हे आप ला जी, हो हमर बर खास|
अब छतीसगढ़ी पढ़े बर,जाग गे विसवास|
छंद के सम्मान खातिर,देत हव पैगाम|
ये धरा मा रहि सदा जी, आप गुरु के नाम||

छंदकार - महेंद्र कुमार बघेल
डोंगरगांव,जिला- राजनांदगांव, छत्तीसगढ़
****************************************

वसन्ती वर्मा

दोहा छंद -

बंदगी  गुरू ला करों,  हाथ जोर पैलाग।
पाके मानुस जनम ला,सहरावत हौ भाग

वसन्ती वर्मा
बिलासपुर, छत्तीसगढ़
****************************************

पोखन लाल जायसवाल

दोहा छन्द -

गुरु भगाय अँधियार ला , अउ देवय बड़ ज्ञान ।
ठोंक पीट आशीष दय , आव करन सम्मान ।।

छंद ज्ञान दे गुरु *अरुण*, करिन बहुत उपकार ।
पावन पबरित गुरु चरण , बंदँव बारम्बार ।।

गुरु वाणी अनमोल हे , हर आखर मा सीख ।
गुरु गियान तो नइ मिलय, माँगे कोनो भीख ।।
सदा राखहू ध्यान ए , गुरु के झन हो अपमान ।
छोड़ अपन अभिमान ला , राखव गुरु के शान ।।

छंदकार
पोखन लाल जायसवाल
पठारीडीह पलारी जि बलौदाबाजार, छत्तीसगढ़
****************************************

डॉ मीता अग्रवाल

त्रिभंगी छंद-

गुरु होथे कृपालु,होथे दयालु,ज्ञान दान के, खान हरै।
पूजें जग सारा,ज्ञान अधारा, अंधकार ला ,दूर करै।
करथे उजियारा,अमरित धारा,बूँद बूँद झर,धार बनै।
मूरख मति हर ले,गुन ले भर दे,बड भागी हा, गुरू गुनै।।

छंदकार- डॉ मीता अग्रवाल
पुरानी बस्ती रायपुर छत्तीसगढ़
****************************************

रोला छंद - मोहन लाल वर्मा

                (1)
जे देथे जी ज्ञान, जगत मा गुरू कहाथे।
हरथे मन अज्ञान, मान ला सबके पाथे ।।
करथे गा उजियार, बरय जस दियना - बाती।
मेटय सब अँधियार, भरम के जे दिन-राती ।।
                   (2)
सदा नवावँव माथ, चरण मा तोरे गुरुवर ।
धरती के सम्मान, झुकय जस फर के तरुवर।।
अंतस ले करजोर, तोर मँय महिमा गावँव।
"मोहन "तन मा साँस, रहत ले नइ बिसरावँव ।।

छंदकार-  मोहन लाल वर्मा
पता - ग्राम अल्दा, वि.खं.-तिल्दा, जिला- रायपुर (छत्तीसगढ़).
****************************************

सरसी छंद - मोहन लाल वर्मा

माथ नवावँव गुरु चरनन मा, महिमा करँव बखान।
जेकर किरपा ले पाये हँव, ये जिनगी के ज्ञान ।।

जब तक सूरज-चंदा रइही, अउ ये धरा- अगास।
अंतस मा गुरु मोर समाके, पूरा करही आस।।

करँव वंदना मँय करजोरे, पावँव आशिर्वाद।
छाहित रहिके देवव गुरुवर, अपने ज्ञान प्रसाद।।

छंदकार - मोहन लाल वर्मा
पता - ग्राम अल्दा, वि.खं.- तिल्दा, जिला - रायपुर (छत्तीसगढ़)
****************************************

20 comments:

  1. अद्भुत संग्रह, सादर नमन गुरुदेव

    ReplyDelete
  2. हमर छंद परिवार बर अतुलनीय खजाना गुरु देव, आप असन गुरु पाये मोर धन्य भाग ये माटी के लोंदा कुछु लिख पाइस।गुरु पूर्णिमा के अनुपम संग्रह ।सादर प्रणाम गुरु देव ।

    ReplyDelete
  3. छंद खजाना दिनोंदिन बाढ़त जात हे ,आप सबो ल बधाई व गुरुदेव के चरण वंदना

    ReplyDelete
  4. प्रणम्य गुरुदेव ल सादर चरण वंदन।
    अब्बड़ सुग्घर एक से बढ़ के एक छंदमय गुरुदेव दर्शन करावत जम्मो गुरुदेव मन के रचना पढ़े बर मिलिस।।

    सब के रचना ल जोरे खातिर परम पूज्य गुरुदेव ल सादर चरण वंदन।।

    ReplyDelete
  5. सादर नमन हे गुरुदेव आप ल

    ReplyDelete
  6. अति सुन्दर गुरुदेव जी सादर नमन । अइसने एक ठो "छत्तीसगढ़ी छन्द खजाना" नाम के पुस्तक छप जाही त मजा आ जाही गुरुदेव।

    ReplyDelete
  7. जय जय गुरुदेव। छत्तीसगढ़ी साहित का पोठ के आपके हर उदिम हा प्रणम्य हावय।

    ReplyDelete
  8. गुरु पूर्णिमा के शुभ अवसर में गुरु ला ह्रदय से श्रद्धा सुमन अर्पित करत सबो भाई बहिनी मन के रचना बेहतरीन हवय । आप सबला गुरु पूर्णिमा के गाड़ा गाड़ा बधाई अउ शुभकामना ।
    गुरुदेव ला शत शत नमन हे ।

    माटी

    ReplyDelete
  9. अनुपम संग्रह जम्मो आदरणीय छंदकार मन ल बधाई अउ शुभकामना हे।गुरुदेव ल सादर प्रणाम हे

    ReplyDelete
  10. सुन्दर संग्रह गुरुदेव! सादर नमन,आभार।

    ReplyDelete
  11. सबो छंद साधक भैया बहिनी मन के भाव भरे रचना
    आप सबो ल बहुतेच बधाई

    ReplyDelete
  12. अनमोल खजाना है सबो साधक भाई बहिनी मन कै

    ReplyDelete
  13. गुरु के महिमा अपरंपार हे...एखर विषम मा सुग्घर संकलन करिन हे हमर गुरुदेव मन उनला अउ जम्मो साधक साधिका मन ला गाड़ा गाड़ बधाई👍👌💐

    ReplyDelete
  14. बहुत सुग्घर संकलन होय हे, गुरुदेव ।सादर प्रणाम

    ReplyDelete
  15. छंद खजाना,अनमोल धरोहर
    सादर प्रणाम गुरुदेव।।

    ReplyDelete
  16. वाह!नँगतेच सुग्घर संकलन गुरुदेव सादर प्रणाम आप

    ReplyDelete
  17. गुरूपूर्णिमा विशेषांक... सबो के अद्भुत रचना गुरूदेव...🙏🙏🙏

    ReplyDelete
  18. अदभुत संग्रह गुरुदेव

    ReplyDelete