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Friday, December 6, 2019

सार छंद: महेंद्र कुमार बघेल

सार छंद: महेंद्र कुमार बघेल

धान पान ला लुवे मिसे बर, हार्वेस्टर हर आगे।
देख फटाफट काम काज ला, सबके मन ललचागे।।

धड़धड़ धड़धड़ खेत भीतरी, लुवत मिसत बढ़ जाथे।
दाना ला कोठी मा भरके ,पैरा ला अलगाथे।।

उपज धान के पावत सबझन, काबर बनगें भैरा।
का हियाव ला करिन खेत के, परे हवय सब पैरा।।

समझावत सरकार कहत हे,सदा बनव बड़भागी।
राखव पैरा ला सकेल के,कभू ढिलव झन आगी।।

कहूॅ ढिलाही आगी भैया, बड़ अलहन हो जाही।
सब माटी के रोस उतरही, मित्र कीट मर जाही।

चारो खुॅट मा धुॅआ बगरही, होही जी परशानी।
साफ साॅस बर जीव तरसहीं, जिनगी होही चानी।।

अब सकेल के पैरा भूसा,पशुधन ला सब तारव।
खाद बना गोबर कचरा ला, अपन खेत मा डारव।।

जैविक खेती करे धरे बर, अपन सोच ला मोड़व।
जतन गाय के करलव संगी, सड़क डहर झन छोड़व।।

नकली मावा मिठई खाके, दूसर ला झन कोसव।
दूध दही गर  चाही सबला, गाय बछरु ला पोसव।।

रसायनिक खातू दवई ले,  धरती होही बंजर।
ये करनी ले अपन उपर जी, झन भोंगव तुम खंजर।।

छन्दकार: महेंद्र कुमार बघेल डोंगरगांव,
जिला राजनांदगांव

6 comments:

  1. वाहहहह!वाहहहह!बड़ सुग्घर

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  2. सुग्घर प्रस्तुति सर

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  3. गजब सुग्घर रचना सर

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  4. गजब सुग्घर रचना सर

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  5. बहुत सुग्घर सर जी बधाई हो

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