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Sunday, April 14, 2019

अम्बेडकर जयंती

(1)

कुकुभ छंद-श्रीमती आशा आजाद

अम्बेडकर जयंती

चलँव मनाइन जन्मदिवस ला, शुभ दिन देखौ आये हे।
भीम रंग मा डूबिन सबझन,खुशी गीत ला गाये हे।।

बाबा के बानी हे सुग्घर,समता हमला सिखलावै।
रद्दा सत के देखाइस हे,सत मारग ला बतलावै ।।

बाबा के कुर्बानी अइसन, सुग्घर आज बनाये हे।
शिक्षित होके दय प्रकाश ला,कतका नाम कमाये हे।।।

प्रेम भाव समरसता बरसय,शिक्षित बनौ सिखाये हे।
खुदे अकेला कठिन राह मा,रद्दा नवा दिखाये हे।।

जात पात ले ऊपर लाइस,नेक करम ला जानौ जी ।
छूत भाव ले मुक्त कराइस,ओखर गुन ला मानौ जी।।

भीमराव की बेटी हावँव,जानँव अपने हक लेना ।
नारा हे संघर्ष करौ के, साथ भीम के हे सेना।।

शान बान सब तोरे दम ले, बाबा तँय हा दिलवाये ।
झूम उठिन हे जन्मदिवस मा, भीम रंग हे लहराये।।

शिक्षा के अनमोल रतन ले,कर लौ सब उजियारा जी। विपदा मा सुन पार लगाही,हटही दूर अंधियारा जी।।

रचनाकार-श्रीमती आशा आजाद
पता -मानिकपुर कोरबा छत्तीसगढ़

(2)

दोहा छन्द - बोधन राम निषाद राज
(भीमराव अम्बेडकर)

नेता  बड़े  महान  गा, भीमराव  जी  नाम।
ऊँच नीच के भेद ला,पाटिस देख तमाम।।

भारत के  कानून ला, हाथ  लिए  वो देख।
सुग्घर नियम विधान हे,संविधान के लेख।।

समरसता समभाव हे, भारत  के वो शान।
भीमराव   अम्बेडकर, नेता  बने  महान।।

जाति पाँति के भेद अउ,मिटा दिए व्यभिचार।
भाई  चारा   मन  बसे, प्रेम   भाव   संसार।

जन-जन मा कानून के,करिन हवै परचार।
बाबा साहब भीम के,होवय जय जयकार।।

रचनाकार:-
बोधन राम निषाद राज
सहसपुर लोहारा,कबीरधाम (छ.ग.)

(3)

लावणी छंद-सुखदेव सिंह अहिलेश्वर

शीर्षक-भीम दिखावत हे अँगरी

परबुधिया पिछलग्गू बनके,अब नइहे भटका खाना।
भीम दिखावत हे अँगरी ला,तेन डहर हावय जाना।

संविधान मा रख के श्रद्धा,संविधान के गोठ करन।
संविधान के नियम धियम ला,जानन खुद ला पोठ करन।

सुमता के धागा ले बुनलन,जिनगी के ताना-बाना।
भीम दिखावत हे अँगरी ला,तेन डहर हावय जाना।

मूल निवासी हम भुँइया के,गड़े नेरुवा पुरखा के।
कभू पेज नुनहा पसिया पी,कभू जिये हन गुर खा के।

अब सुख अपनो घर अँगना मा,लाये बर बाँधन बाना।
भीम दिखावत हे अँगरी ला,तेन डहर हावय जाना।

रचना-सुखदेव सिंह अहिलेश्वर
गोरखपुर कबीरधाम छत्तीसगढ़

Monday, April 1, 2019

सार छन्द - जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"

विरह गीत(सार छंद)

तोर  रूप  दगहा  हे  चंदा,तभो  लुभाये  सबला।
मोर रूप हा चमचम चमकै,तबले तड़पौ अबला।

तोर कला ले मोर कला हा,हावै कतको जादा।
तभो मोर परदेशी बलमा,कहाँ निभाइस वादा।
चकवा रटन लगाये तोरे,मोर पिया दुरिहागे।
करधन ककनी कुंडल कँगना,रद्दा देख खियागे।
मोर रुदन सुन सुर ले भटके,बेंजो पेटी तबला।
तोर  रूप  दगहा  हे चंदा,तभो लुभाये सबला।

पाख अँजोरी अउ अँधियारी,घटथस बढ़थस तैंहा।
मया जिया मा हावै आगर,करौं बता का मैंहा।
कहाँ हिरक के देखे तभ्भो,मोर सजन अलबेला।
धीर धरे हँव आही कहिके,लाद जिया मा ढेला।
रोवै नैना निसदिन मोरे,भला गिनावौ कब ला?
तोर  रूप  दगहा हे चंदा,तभो लुभाये सबला।

पथरा गेहे आँखी मोरे,निंदिया घलो गँवागे।
मोर रात दिन एक बरोबर,रद्दा जोहँव जागे।
तोर संग चमके रे चंदा,कतको अकन चँदैनी।
मोर मया के फुलुवा झरगे,पइधे माहुर मैनी।
जिया भीतरी बारे दियना,रोज मनाथँव रब ला।
तोर  रूप  दगहा  हे  चंदा,तभो लुभाये सबला।

अबक तबक नित आही कहिके,मन ला धीर धरावौ।
आजा  राजा  आजा  राजा,कहिके  रटन  लगावौ।
पवन पेड़ पानी पंछी सब,रहिरहि के बिजराये।
कइसे करौं बता रे चंदा,पिया लहुट नइ आये।
काड़ी कस काया हा होगे,कपड़ा होगे झबला।
तोर  रूप  दगहा  हे चंदा,तभो लुभाये सबला।

छन्दकार - जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा) छत्तीसगढ़