मजदूर दिवस विशेष छंदबध्द कवितायें-प्रस्तुति छंद के छ परिवार
त्रिभंगी छंद - बोधन राम निषादराज
विषय - मजदूर
(1)
दिन रात कमाथे,सुख नइ पाथे,जाँगर पेरत,रथे सबो।
बोझा दुनिया के,ये भुइयाँ के,इही उठइया,कथे सबो।।
घर के सिरजइया,सड़क बनइया,बड़े-बड़े जी,बाँध घलो।
लोहा उगलाथे,पूल बनाथे,भार बोहथे,खाँध घलो।।
(2)
ये माटी कोड़त,पथरा फोड़त,ईंट बनावत,दिखै इहाँ।
अउ लहू पछीना,घुट घुट जीना,अपन कहानी लिखै इहाँ।।
बासी बटकी भर,नुन चुटकी भर,खाके देखव,काम करै।
अउ घाम पियासे,मिलके हाँसे,जग मा सुग्घर,नाम करै।।
(3)
हो हलाकान ये,दे परान ये,अपने दम मा,काम करै।
भोजन पाये बर,सुख लाये बर,जिनगी दुख के,नाम करै।।
दुनिया सिरजइया,इही कमइया,गाँव शहर मा,शोर हवै।
करथे मजदूरी,हो मजबूरी,महिनत इँखरे,जोर हवै।।
छंदकार:-
बोधन राम निषादराज
सहसपुर लोहरा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)
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मैं बनिहार ( आल्हा छंद )
बड़े बिहनिया जाथँव संगी,काम बुता मा मैंहर रोज।
घर के संसो छाये रहिथे,जाके करथँव दिनभर खोज।।
एती ओती जाके करथँव,काम बुता ला मैं बनिहार।
जब थक हारे घर मा आथँव,हो जाथे गा बड़ अँधियार।।
बड़ करलाई हावय भइया, देखव लइका मनके मोर।
रोजी रोटी बर मैं लड़थँव,अपन कमाथँव जाँगर टोर।।
घाम प्यास ला मैं नइ देखँव,करथँव काम बुता दिन रात।
लाँघन भूखन झन राहय जी,लइका मनहा सोचँव बात।।
भरे मझनिया करते रहिथँव,नही कभू मैं खोजँव छाँव।
लक लक तीपे रहिथे भुइयाँ,चट ले जरथे मोरो पाँव।।
कभू खनव मैं माटी गोदी,अउ ढेला पथरा ला फोड़।
महल अटारी घलो बनाथँव,रच रच ईंटा मैंहर जोड़।।
टप टप चूहे भले पसीना,राहय खुश मोरो परिवार।
जउन बुलाही काम बुता मा,जाके करहूँ मैं बनिहार।।
छंदकार:- राजेश कुमार निषाद
ग्राम चपरीद (समोदा) जिला रायपुर छत्तीसगढ़
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रोला छंद
मजबूर मैं मजदूर
करहूँ का धन जोड़, मोर तो धन जाँगर ए।
रापा गैंती संग, मोर साथी नाँगर ए।
मोर गढ़े मीनार, देख लौ अमरे बादर।
मोर धरे ए नेंव, पूछ लौ जाके घर घर।
भुँइया ला मैं कोड़, ओगराथौं नित पानी।
जाँगर रोजे पेर, धरा ला करथौं धानी।
बाँधे हवौं समुंद, कुँआ नदिया अउ नाला।
बूता ले दिन रात, हाथ मा उबके छाला।
घाम जाड़ आषाढ़, कभू नइ सुरतावौं मैं।
करथौं अड़बड़ काम, तभो फल नइ पावौं मैं।
हावय तन मा जान, छोड़ दौं महिनत कइसे।
धरम करम ए काम, पूजथौं देवी जइसे।
चिरहा ओन्हा ओढ़, ढाँकथौं करिया तन ला।
कभू जागही भाग, मनावत रहिथौं मन ला।
रिहिस कटोरा हाथ, देख वोमा सोना हे।
भूख मरौं दिन रात, भाग मोरे रोना हे।
आँखी सागर मोर, पछीना यमुना गंगा।
झरथे झरझर रोज, तभे रहिथौं मैं चंगा।
मोर पार परिवार, तिरिथ जइसन सुख देथे।
फेर जमाना कार, अबड़ मोला दुख देथे।
थोर थोर मा रोष, करैं मालिक मुंसी मन।
काटत रहिथौं रोज, दरद दुख डर मा जीवन।
मिहीं बढ़ाथौं भीड़, मिहीं चपकाथौं पग मा।
अपने घर ला बार, उजाला करथौं जग मा।
पाले बर परिवार, नाँचथौं बने बेंदरा।
मोला दे अलगाय, बदन के फटे चेंदरा।
कहौं मनुष ला काय, हवा पानी नइ छोड़े।
ताप बाढ़ भूकंप, हौसला निसदिन तोड़े।।
सच मा हौं मजबूर, रोज महिनत कर करके।
बिगड़े हे तकदीर, ठिकाना नइहे घर के।
थोरिक सुख आ जाय, विधाता मोरो आँगन।
महूँ पेट भर खाँव, रहौं झन सबदिन लाँघन।।
मोर मिटाथे भूख, रात के बोरे बासी।
करत रथौं नित काम, जाँव नइ मथुरा कासी।
देखावा ले दूर, बिताथौं जिनगी सादा।
चीज चाहथौं थोर, मेहनत करथौं जादा।
आँधी कहुँती आय, उड़ावै घर हा मोरे।
छीने सुख अउ चैन, बढ़े डर जर हा मोरे।
बइठ कभू नइ खाँव, काम मैं मांगौं सबदिन।
करके बूता काम, घलो काँटौं दिन गिनगिन।
जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"
बालको(कोरबा)
9981441795
मजदूर दिवस अमर रहे,,,,
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आल्हा छंद- विजेन्द्र वर्मा
मजदूर
बनी करत अब कटत हवै दिन,कइथे मोला गा मजदूर।
दिन भर कनिहा तोड़ कमाथौं,हाबव आज तभो मजबूर।।
महिनत करथौं दिन भर खपथौं,करते रहिथौं बिक्कट काम।
तभो मरत हँव लाँघन भूखन, उचित कहाँ के मिलथे दाम।।
भ्रष्टाचारी मनखे मन हा,भरथे अब तो अपने पेट।
मोरो बर चिल्लाथे बिक्कट,कभू काम मा होथँव लेट।।
महल अटारी मही बनाथौं,नदियाँ नरवा के तो बाँध।
बनी करइयाँ मँय हा संगी,खाथँव रूक्खा सुक्खा राँध।।
विजेन्द्र वर्मा
नगरगाँव(धरसीवाँ)
जिला-रायपुर
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सार छंद- विजेन्द्र वर्मा
मजदूर
जावय जी मजदूर कमाए,खाके चटनी बासी।
पथरा फोड़य किस्मत जोड़य,घर मा तभो उदासी।।
कभू कभू तो पी के पसिया,कनिहा टोर कमाथे।
जाँगर अपन खपाथे संगी,तब परिवार चलाथे।।
लहू पछीना छींच छींच के,रोजी रोज कमाथे।
लाँघन भूखन रहिके वोहा,जाँगर अपन खपाथे।।
भेदभाव नइ जानय वोहा,रोज काम मा जाथे।
महल अटारी सब बर गढ़के,छपरी मा सुसताथे।।
नींद गँवाके बेच पछीना,भूखे प्यासे रहिथे।
अतका महिनत दिन भर करथे,मार गरीबी सहिथे।।
विजेन्द्र वर्मा
नगरगाँव(धरसीवाँ)
जिला-रायपुर
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आल्हा छंद---- मनोज कुमार वर्मा
गार पसीना रोज कमावौ, हे मजदूर मोर जी नाम।
चले भरोसा मोरे जग हा, करौ रात दिन पोठे काम।।
चीर धरा के सीना मॅंय हर, धान सोनहा जान उगॉंव।
भरके जगके पेट रोज के, बिन खाये नित मॅंय सुत जॉंव।
महल अटारी ला सिरजाके, मोड़ नदी के देथौ धार।
पर्वत सागर जंगल नापे, पॉंव रुके नइ हे थक हार।।
मोर भाग नइ लिखे विधाता, काबर एकोकनी आराम।
चले भरोसा मोरे जग हा, करौ रात दिन पोठे काम।।
गार पसीना रोज कमावौ, हे मजदूर मोर जी नाम.......
करके मिहनत रोटी खाथॅंव, पथरा ले ओगारॅंव नीर।
हीरा पन्ना सोना चाॅंदी, रोज निकालॅंव धरती चीर।।
चोरी बेईमानी नइ जानौ, इज्जत के जी हॅंव धनवान।
रापा गैंती संग मितानी, इही मोर बर हे भगवान।।
भेद भाव ले दूर सदा जी, धरम करम ला जानौ सार।
पूजा करथौ मिहनत के मॅंय, नइ खावॅंव कखरो हक मार।।
चलौ नेक के रद्दा निश दिन, रखबे प्रभु जी हाथ ग थाम।
चले भरोसा मोरे जग हा, करौ रात दिन पोठे काम।।
गार पसीना रोज कमावौ, हे मजदूर मोर जी नाम.......
मनोज कुमार वर्मा
बरदा लवन बलौदा बाजार
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पद्मा साहू "पर्वणी"
खैरागढ़ जिला राजनांदगांव छत्तीसगढ़
*विद्या___ दोहा*
*विषय____मजदूर /बनिहार*
रोज कमाथे पेट बर, खेतन मा बनिहार।
सरदी गरमी शीत मा, करथे काम अपार।।१
गार पछीना रोज के, पाथे रोटी चार।
करथे काम विधून गा, मिहनतकश बनिहार।।२
फोरे पथरा रोज गा, धरै हथौड़ी हाथ।
तड़पय झन मजदूर हा, देवव इनकर साथ।।३
अपन सबो सुख-दुख भुला , काम करय बनिहार।
मालिक महल सजाय के, रहिथे छपरी द्वार।।४
कहिथे जब मजदूर तब, लगथे बड़ आघात ।
का होइस बनिहार हा, खाथे चटनी भात।।५
मोर नाम मजदूर हे, भावै नहीं हराम।
मिहनत करथो रोज गा, रोटी करँव प्रणाम।।६
पद्मा साहू "पर्वणी"
खैरागढ़ जिला राजनांदगांव छत्तीसगढ़
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: कुण्डलिया छंद- इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"
मजदूर दिवस मा मजदूर मन ला सादर समर्पित-
कहिथे जग मजदूर ला, भुइँया के भगवान।
जेखर श्रम के सामने, नत मस्तक इंसान।।
नत मस्तक इंसान, झुका श्रम पग मा माथा।
जुग जुग ले गुनगान, करे जन गा गा गाथा।।
जाड़ घाम बरसात, सबो बर दुख ला सहिथे।
भुइँया के भगवान, तभे तो दुनिया कहिथे।।1
छाला दिखथे हाथ मा, दिखे बिवाई पाँव।
बोझ रखे दुख काँध मा, दूर रहे सुख छाँव।।
दूर रहे सुख छाँव, गरीबी घाँव अघौना।
करथे गुजर अभाव, खुला आकाश बिछौना।।
भाग लिखे मजबूर, खुशी मा लटके ताला।
श्रम हे बस पहिचान, कहे तोर हाथ के छाला।।2
सुख सुविधा ले दूर हे, काबर जी मजदूर।
खुद के श्रम अधिकार ला, पाये बर मजबूर।।
पाये बर मजबूर, बखत दू सुख के रोटी।
काम करे दिन रात, ढके तब बदन लँगोटी।।
अरजी हे सरकार, इँखर मिट जाये दुविधा।
बढ़िया करौ उपाय, मिले इन ला सुख सुविधा।।3
इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"
बिलासपुर ( छत्तीसगढ़ )
मो. नं.- 8889747888
💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐: कुण्डलिया (मजदूर) - अजय अमृतांशु
खाथे सब मजदूर मन, अपन पसीना गार।
नँगत कमाथे पेट बर, नइ मानँय जी हार ।।
नइ मानँय जी हार, मुफ्त के इन नइ खावय।
देथे जाँगर टोर, अपन गुन खुद नइ गावय।
खून पसीना गार, इही मन महल उठाथे।
निसदिन करथें काम, तभे दू रोटी खाथे।।
झन करहू मजदूर के, जीवन मा अपमान।
मनखे छोटे या बड़े, सब ला एके जान।।
सब ला एके जान, कामचोरी नइ जानय।
रहँय भले मजबूर, हार इन कभू न मानय।
काम करँय मजदूर, तपाके रोजे तन मन।
पाथे तभे पगार, दुखावव कोनो ला झन।
अजय अमृतांशु
भाटापारा (छत्तीसगढ़)
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: उल्लाला छंद (चंद्रमणि छंद) - श्लेष चन्द्राकर
शीर्षक - बनिहार
मँय सिधवा बनिहार हँव, करथँव अड़बड़ काम गा।
खेत-खार मा बीतथे, मोर बिहिनिया शाम गा।।
मिहनत करथँव मँय तभे, पइसा मिलथे चार जी।
इही कमाई ले चलत, बने मोर परिवार जी।।
फैलावँव मँय हाथ नइ, खुद मा बड़ विश्वास हे।
सुख के जिनगी जी सकँव, अतके मोर प्रयास हे।।
खुद बर नइ सोचव कभू, हितवा हरँव समाज के।
सदा भलाई चाहथँव, अपन देश अउ राज के।।
धरम निभावत हँव बने, जे होथे बनिहार के।
धन-दौलत के लोभ नइ, भूखा हँव मँय प्यार के।।
जानव नइ छल अउ कपट, मँय सिधवा बनिहार गा।
फरज निभाये बर सदा, रहिथँव मँय तइयार गा।
छंदकार - श्लेष चन्द्राकर
पता - खैरा बाड़ा, गुड़रु पारा, वार्ड नं.-27,
महासमुंद (छत्तीसगढ़)
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छप्पय छ्न्द-दिलीप वर्मा
कोन हरे मजदूर, समझ कोनो नइ पावयँ।
करे तिहाड़ी काम, तेन ला सबो बतावयँ।
हम का धन्ना सेठ, चाकरी जेन करत हन।
हपटत हन दिन रात, पाँव मा ताप जरत हन।
जम्मो झन मजदूर हन, करत हवन सब काम जी।
जइसन जेकर चाकरी, तइसन पावन दाम जी।
रचनाकार- दिलीप कुमार वर्मा
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(अंतरराष्ट्रीय मजदूर दिवस विशेष)
मजदूर
जग ला सब सुख देने वाला, तैं हावस सब ले मजबूर।
दुच्छा निसदिन थैली तोरे, पेट बियाकुल तैं मजदूर।।
रिबी रिबी बर तरसत रहिथें,तोर सुवारी लइका लोग।
खून पछीना तोर कमाई, बइठाँगुर मन करथें भोग।
तोर काम के दाम तको ला, बइरी मन नइ दँय भरपूर।
दुच्छा निसदिन थैली तोरे, पेट बियाकुल तैं मजदूर।
तोर भुजा के बल मा आइस, ये दुनिया मा आज विकास।
पाँव तोर धरती मा गड़गे, नेता चढ़गें कूद अगास।
हक नइ माँगच रार मँचाके,हावय तोरे इही कसूर।
दुच्छा निसदिन थैली तोरे, पेट बियाकुल तैं मजदूर।
जाँगर पेर कमावत रहिथस, घाम भूख अउ सहिके प्यास।
भोग आन मन छप्पन झड़थें,रहिथे हँड़िया तोर उपास।
देख तमाशा हाँसत रहिथें, सेठ धनी मन मद मा चूर।
दुच्छा निसदिन थैली तोरे, पेट बियाकुल तैं मजदूर।
जादा सिधवा झन रा संगी, तभे बाँचही तोरे लाज।
मूँड़ उठाके रेंग बने तैं, पटकू बंडी पागा साज।
'बादल' के अरजी हे अतके,झन चिखबे खट्टा अंगूर।
दुच्छा निसदिन थैली तोरे, पेट बियाकुल तैं मजदूर।
चोवा राम वर्मा 'बादल '
हथबंद, छत्तीसगढ़
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सुखदेव: मँय मरहा मजदूर
मँय मरहा मजदूर,खाँध मा जग बोहे हँव।
तभो चपक के पेट,मजूरी बर जोहे हँव।
करत करत निर्माण,ददा पुरखा मन मरगे।
सुख सुविधा ले दूर,कई जुग जनम गुजरगे।
मोरे अघुवा पाँव,रोड़ रस्ता मा गे हे।
मोर हाथ हा नेव,बाँध बाँधा के दे हे।
झोपड़पट्टी एक,खदानन दूसर घर हे।
संग साथ बिन मोर,कारखाना अध्धर हे।
बनके काँड़ मियार,छत्त छानी बोहे हँव।
तभो चपक के पेट,मजूरी बर जोहे हँव।
ईंटा गार जोर,गढ़ँव देवालय मन ला।
बड़े बड़े संस्थान,महाविद्यालय मन ला।
छिनी हथौड़ी थाम,करँव पथरा ला मूरत।
पथरा अब हे नाथ,न देखय मोरे सूरत।
गरमाला बर फूल,टोर के महीं ह लाथँव।
शंकर के तिरछूल,घला ल महीं बनाथँव।
धागा बनके हार तरी मँय हर पोहे हँव।
तभो चपक के पेट,मजूरी बर जोहे हँव।
मतदाता भगवान,कथें सरकारन मोला।
संख्या देखत लोक-तंत्र के धारन मोला।
पाँच बछर मा एक,बार भर खोज खबर हे।
जोतिस कथे बिचार,अवइया भाग जबर हे।
देथें उन भुलियार,पीठ मा हाथ फेर के।
कारण दू का चार,बता देथें अबेर के।
इतिहासन के माथ,मकुट बनके सोहे हँव।
तभो चपक के पेट,मजूरी बर जोहे हँव।
दाता तोर असीस,मोर बर उपर-छवाँ हे।
भूख दरद दुख कष्ट,रोज के नवाँ नवाँ हे।
न तो ठिकाना मोर,न लइकन के भविष्य के।
तोर बिना अब कोन,कल्पना करय दृश्य के।
का हे हाल निहार,कभू तो तँय घर आ के।
मनबोधत हस मोर,एक दिन दिवस मना के।
बिन सोंचे परकीति,तोर सुख बर दोहे हँव।
मँय मरहा मजदूर,खाँध मा जग बोहे हँव।
रचना-सुखदेव सिंह'अहिलेश्वर'
गोरखपुर कबीरधाम छत्तीसगढ़
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जयकारी छन्द-
कमिया जांगर टोर कमाय
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कमिया जांगर टोर कमाय।लेकिन बढ़िहा दाम न पाय।
जावय बेरा उगते खार।बाँधय ओहर मेड़ अउ पार।
चटनी बासी अबड़ सुहाय।जेला धर बनिहारिन लाय।
अड़बड़ दिनभर करथे काम। जेखर पड़गे कमिया नाम।
करके मिहनत ओ दुख पाय।कइसे घर मा राशन लाय।
कइसे लइका अपन पढ़ाय। ओ पइसा मुसकिल म कमाय।
पेट बिकाली भटकत जाय।कोनो कोती ठउर न पाय।
लाँघन भूखन सूतत जाय।कइसे ओ खुशहाली लाय।
कमिया जाँगर टोर कमाय-------
रचनाकार- डॉ तुलेश्वरी धुरंधर,अर्जुनी - बलौदाबाजार
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भुजंगप्रयात छंद
करे काम वो हाथ मजबूत होथे।
करम बाँचथे जेन श्रमदूत होथे।
अबड़ होत सिधवा कहव झन अनाड़ी।
करे काम निशदिन मजूरी दिहाड़ी।1।
भुजा बल भरोसा सदा दिन करे हे।
मजूरी करत अउ पसीना धरे हे।
खड़े हे महल अउ बने कारखाना।
न पाये उही मन कभू एक दाना।2।
करे जेन मिहनत उही है पुजारी।
उठे रोज बिहने चले खेत बारी।
भरे पेट सबके इही अन्नदाता।
निभावत हवय श्रम जगत संग नाता।3
कभू धर कुदारी कभू फावड़ा ला।
कुचर देत पथरा व लोहा कड़ा ला।
न नदिया न सागर उगारे पसीना।
दिखे माथ मोती धरे श्रम नगीना।4
बने जग धनी जेन श्रम दान पाके।
सबो फूल बगिया खिले मान पाके।
चलव आज सब श्रम दिवस ला मनावौ।
करव मान श्रम के सरग ला बुलावौ।5
आशा देशमुख
एनटीपीसी जमनीपाली कोरबा
(छत्तीसगढ़)
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*जयकारी छंद*-*चित्रा श्रीवास*
*मजदूर*
करथँव मिहनत जाँगर तोड़। ईटा पथरा गारा जोड़।
देथँव महल अटारी तान।पावँव कभू नही मँय मान।
कहिथे मोला सब मजदूर।कतका हावँव मँय मजबूर।
लाँघन गुजरे कतको रात।खुश हँव खाके चटनी भात।
जरके करिया होगे चाम।मिलथे कम मिहनत के दाम।
पानी पथरा ले ओगार।रद्दा बनगे देख पहार।
आथँव सबके मँय हा काम।देथँव सबला मँय आराम।
मोरो मिहनत ला पहचान।देवव मनखे मोला मान।
चित्रा श्रीवास
बिलासपुर
छत्तीसगढ़
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