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Saturday, November 28, 2020

छत्तीसगढ़ी राजभाषा दिवस विशेष छंदबद्ध कविता


 छत्तीसगढ़ी राजभाषा दिवस विशेष छंदबद्ध कविता



छत्तीसगढ़ी बानी(लावणी छंद)- जीतेंन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"


मैं छत्तीसगढ़ी बानी अँव, गुरतुर गोरस पानी अँव।
पी के नरी जुड़ा लौ सबझन, सबके मिही निशानी अँव।

महानदी के मैं लहरा अँव, गंगरेल के दहरा अँव।
मैं बन झाड़ी ऊँच डोंगरी, ठिहा ठौर के पहरा अँव।
दया मया सुख शांति खुशी बर, हरियर धरती धानी अँव।
मैं छत्तीसगढ़ी बानी अँव, गुरतुर गोरस पानी अँव।।।।।।

बनके सुवा ददरिया कर्मा, माँदर के सँग मा नाचौं।
नाचा गम्मत पंथी मा बस, द्वेष दरद दुख ला काचौं।
बरा सुँहारी फरा अँगाकर, बिही कलिंदर चानी अँव।
मैं छत्तीसगढ़ी बानी अँव, गुरतुर गोरस पानी अँव।।

फुलवा के रस चुँहकत भौंरा, मोरे सँग भिनभिन गाथे।
तीतुर मैना सुवा परेवना, बोली ला मोर सुनाथे।
परसा पीपर नीम नँचइया, मैं पुरवइया रानी अँव।
मैं छत्तीसगढ़ी बानी अँव, गुरतुर गोरस पानी अँव।

मैं गेंड़ी के रुचरुच आवौं, लोरी सेवा जस गाना।
झाँझ मँजीरा माँदर बँसुरी, छेड़े नित मोर तराना।
रास रमायण रामधुनी अउ, मैं अक्ती अगवानी अँव।
मैं छत्तीसगढ़ी बानी अँव, गुरतुर गोरस पानी अँव।।

ग्रंथ दानलीला ला पढ़लौ, गोठ सियानी धरलौ जी।
संत गुणी कवि ज्ञानी मनके, अंतस बयना भरलौ जी।
मिही अमीर गरीब सबे के, महतारी अभिमानी अँव।
मैं छत्तीसगढ़ी बानी अँव, गुरतुर गोरस पानी अँव।।

जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को, कोरबा(छग)

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महतारी (सरसी छंद) - बोधन राम निषादराज

महिनत   के   पाछू  तँय   दाई,
                         करथस  सेवा   मोर।
जिनगी भर मँय छूँट सकँव नइ,
                        ये  करजा  ला तोर।।

कमा - कमा  तन  हाड़ा  होंगे,
                        तन  होंगे   कमजोर।
दाई  तोर  मया  ला  पा   के,
                         बनहूँ आज सजोर।।

तँय  बनिहारिन  दाई    मोरे,
                        महिमा  तोर  अपार।
तोर  बिना  जग  सुन्ना लागे,
                       अउ  सुन्ना  घर-द्वार।।

अँचरा  पीपर  छइहाँ  जइसे,
                       सुग्घर  जुड़हा  छाँव।
सरग  बरोबर  भुइँया   सोहै,
                      महिनत  पाछू  गाँव।।

हे   महतारी     तोरे    कोरा,
                      बासी   चटनी   खाँव।
अमरित कस महिनत के रोटी,
                     माथा    टेकँव   पाँव।।

छंदकार:-
बोधन राम निषादराज
सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)

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 छप्पय छंद-भाखा महतारी(डी पी लहरे)

(1)
छत्तीसगढ़ी बोल,हमर भाखा महतारी।
हमर राज के शान,महत्तम हावय भारी।
का के हावय लाज,बोल अंतस हरसाले।
भाखा हे अनमोल,गीत एखर जी गाले।
कर ले तँय सम्मान गा,भाखा हे पहचान जी।
जन-जन मा ये छाय हे,रख एखर तँय मान जी।
(2)
छत्तीसगढ़ी गोठ,लगे मँदरस कस धारा।
बोलव भाई रोज,सबो जी झारा-झारा।
दया-मया के डोर,बाँधथे भाखा बोली।
गोठियाव गा रोज,करौ जी हँसी ठिठोली।
छत्तीसगढ़ी बोल के,देवव मया दुलार गा।
बैरी ला मितवा करौ,पाव मया भरमार गा।।

द्वारिका प्रसाद लहरे
कवर्धा छत्तीसगढ़

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: *लावणी छंद* 
 *राज भाषा दिवस*  (छत्तीसगढ़ी महतारी भाखा)

महतारी गुरतुर भाखा ला, बोलव भैया दीदी मन|
जुड़े हवय अस्मिता राज के, बोली मधुरस कस पावन||

महतारी के मया समाये, महिमा गाये सुर मुनि मन |
हिरदे भितरी हवँय बसाये, ये भाखा गुन लव जनजन||

मुखिया बोलय राजा बनके, मनखे भाखा पोहे तन||
माटी के ओ लाल घलो हा, अड़बड़ बोलय जतन जतन||

बारो महिना बउरँय बोली, महक उठे हे हर कनकन|
सुआ ददरिया करमा गाले, नाचा  पंथी मनभावन||

गुरतुर गुरतुर लागय एहर,रचे बसे हे सबो करम |
मनखे मनखे एकबरोबर, ए मानय जी सबो धरम||

ए भाखा के सेवा खातिर,सुंदर  कोदू हवँय अमर|
महतारी भाखा बगराइन, गाँव गली अउ शहर नगर ||

 छंद साधक
अश्वनी कोसरे 
कवर्धा कबीरधाम
 छंद कक्षा-9

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: सार छंद (सुधा शर्मा)

अपन राज के भाखा बोली,गुरतुर अब्बड़ हावय।
कोयल  मैना पड़की सुवना,गीत मया के गावय।।

झन बिसराहू संगी कोनो,महतारी के भाषा।
इही हमर संस्कृति चिनहारी, आगू बढ़ही आसा।।

बोलव संगी अपने बोली,मान करव महतारी। 
आओ एकर बढ़ोतरी बर,उदिम करन सब भारी।।

हमर गुनिक पुरखा कवि मन,एकर नाव जगाइन।
रचे दान लीला सुन्दर जी ,छत्तीसगढ़ सजाइन।।

कोदूराम दलित जी सुग्घर, गीत छंद मा  गावय।
ऊँकर बेटा अरुण निगम जी,आगू छन्द बढ़ावय।।

मस्तुरिया के गीत ल देखव,
जन जन हिरदे गाये।
महतारी भाखा मा रच के, नाव शोर बगराये।।

गीत अमर होगे ओखर जी,
सरग निसेनी अमरे।
काहत हावे संग चलव जी ,
हिरदे ला सब टमरे।।

किसिम किसिम के करथे सिरजन,
राज म सिरजन हारा।
महतारी के गीत गावथें,ए पारा ओ पारा।।

लोक गीत मा सुवा ददरिया,रंग-रंग के बोली।
बूढ़ी  दाई  किस्सा कहिनी,
सोहर के रंगोली।।

फरियर-फरियर बगरे हावे,छत्तीसगढ़ी  बोली।
मीठ मया के रस मा बूड़े,जस मिसरी के गोली।।

आखर-आखर  साधो संगी,अबड़ गुणिक महतारी।
हाना किस्सा रकम रकम के,हावय ग गीत गारी।।

भासा दिवस मनावत हावे, जम्मों 
छत्तीसगढ़िया।
राज काज के बनही जरिया ,
होही सबले बढ़िया।।

इही गोठ ला देखव संगी,जुरमिल आगू लावव।
आखर आखर धरौ मुकुट ला,दाई ला पहिरावव।।


सुधा शर्मा 
राजिम छत्तीसगढ़

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दोहा गीत -जीतेंद्र कुमार वर्मा "खैरझिटिया"

दया माया के मोटरा,सबके आघू खोल।
हरे मंदरस मीठ जी,छत्तीसगढ़ी बोल।

खुशबू माटी के घुरे, बसे हवे सबरंग।
तनमन येमा रंग ले,रख ले हरदम संग।
बाट तराजू हाथ ले,भाँखा ला झन तोल।
दया मया के मोटेरा, सबके आघू खोल।।

बानी घासीदास के,अबड़ हवै जी पोठ ।
रचे इही मा कवि दलित,अपन सियानी गोठ।
नाचा करमा अउ सुवा,देय मया अनमोल।
दया मया के मोटेरा सबके आगे खोल।।

 परेवना पड़की रटे, बोले बछरू गाय।
 गुरतुर भाँखा हा हमर,सबके मन ला भाय।
जंगल झाड़ी डोंगरी,बर गावय जस डोल।
 दया मया के मोटरा, सबके आघू खोल।।

                  3

छंद त्रिभंगी-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

सबके मन भाये,गजब सुहाये,हमर गोठ छत्तीसगढ़ी।
झन गा दुरिहावव,सब गुण गावव,करौ पोठ छत्तीसगढ़ी।
भर भरके झोली,बाँटव बोली,सबो तीर छत्तीसगढ़ी।
कमती हे का के,देखव खाके,मीठ खीर छत्तीसगढ़ी।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)

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सार छंद -दीपक

हमर राजभाखा ए सुघ्घर, छत्तीसगढ़ी बोली। 

जेमा भरे दरद पीरा दुख, गुरतुर हँसी ठिठोली। ।

बोलचाल अउ कामकाज मा, साहित मा बउरावय। 

छत्तीसगढ़ी भाखा सरलग, दुनिया मा ममहावय। ।

मँदरस मिसरी ले मीठा ए, बड़ गुरतुर मनभावन। 

हाना मन के पगे चासनी, नौ रस भरे सुहावन। ।

माटी महतारी के एहा, गीत आरती बंदन। 

सुघ्घर छत्तीसगढ़ी भाखा, बोलय सरलग जन जन। ।

दीपक निषाद- बनसाँकरा( सिमगा)

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 छत्तीसगढ़ी बोली 

चौपाई छंद 


छत्तीसगढ़ के भाखा बोली।

गुरतुर लागे हँसी ठिठोली।।


बोले में काबर शरमाबो।

सुवा ददरिया कर्मा गाबो।


छत्तीसगढ़िया सबले बढ़िया।

जानत हावय सारी दुनिया ।।


लोरिक चंदा के ग  कहानी।

जग मा कोनो नइये सानी।।


छत्तीसगढ़ में नाचा होथे।

कभू हंसाथे कभू रोथे।


पंडवानी ह नीक ग लागे।

तिजन बाई सबो ले आगे।।


ढ़ोला मारू कथा सुहावे।

बाजा बाजत मन ला भावे।।


वर्णन कतका ये भाखा के।

गावँव भैया गीत ल गा के।।


छंदकार 

केवरा यदु "मीरा "

राजिम

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 श्लेष चन्द्राकर -छत्तीसगढ़ी राज भाखा दिवस के बधाई अउ शुभकामना...


दोहा छंद - श्लेष चन्द्राकर


छत्तीसगढ़ी ले जुड़े, पुरखा मन के आस।

हमर राज भाखा हरय, हर भाखा ले खास।।


खोवत हे पहिचान ला, छत्तीसगढ़ी आज।

येकर बर आवव लड़ौ, जुरमिल सबो समाज।।


छत्तीसगढ़ी के करौ, मंचन मा गुणगान।

लहुटाना हम ला हवय, खोय इखँर सम्मान।।


सुग्घर भाखा बर करव, जुरमिल अइसे काज।

छत्तीसगढ़ी हा बनय, जन-जन के आवाज।।


हरय राज भाखा हमर, संस्कृति के पहिचान।

सब येकर उत्थान बर, आवव देवव ध्यान।।


छंदकार - श्लेष चन्द्राकर

पता - महासमुंद (छत्तीसगढ़)

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 *भाखा हमर पहिचान ये (घनाक्षरी छंद)*


भाखा महतारी ये जी , मान सबो रखलव ।

लव  आज  जान  संगी , इही पहिचान ये ।।


करमा के ताल इही , ददरिया सुवा अस ।

पंडवानी  भरथरी  , बांसगीत तान ये ।।


राउत नाचा के संग , पंथी बसदेवा गीत ।

अरपा  पैरी  के धार ,  हमर  गुमान ये ।।


ये चंदैनी गोंदा कस ,  रिगबिग आज फुले ।

जी मस्तुरिहा के गीत ,  जग मा महान ये ।।


       छंदकार - मोहन कुमार निषाद 

                 गाँव - लमती , भाटापारा ,

                जिला - बलौदाबाजार (छ.ग.)

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Thursday, November 26, 2020

कज्जल छंद -सुधा शर्मा

 कज्जल छंद -सुधा शर्मा



*धरती कोरा*

1---

सुग्घर हरियर दिखे धान,

कोरा धरती के महान,

करथें मिहनत गा किसान,

देत फसल तब धीरवान ।


2---

रुख-राई अउ  खेतखार,

चले नीक बढ़िया बयार,

किसिम किसिम के ये तिहार ,

सुखमय जिनगी नहीं भार।


3----

बरसाये पानी अमोल,

बूँद बूँद बउरव ग तोल,

हरियर चारों होय मोर,

धरती दाई ओर छोर।


       *नशा*

1---

करत हवे जिनगी उजाड़।

टूटत सबो घर परिवार ।।

बाढ़त नशा अतियाचार।  

हे समात मन मा विकार।।


2---'

गारी दाई बाप देत।  

बोले के गा नहीं चेत।।

कोनो देवत गला रेत।

नशा सेती सबोअचेत।।


3----


छोड़व गा सब नशा पान।

एमा ककरो नहीं मान।।

डहर बने रेंगव मितान।

बनके सबो रहव सुजान।। 

4---


जाँगर टूटत करे काम।

दारू भठ्ठी गये शाम।।

दिए कमाय पइसा फेंक। 

लाँघन लइका घर म देख।।

       

     *कातिक पुन्नी*


कातिक पुन्नी हवे आय,

हमर गाँव मेला भराय।

किसिम किसिम पसरा सजाय,

लइका बड़का ह जुरियाय।


नदिया मा डुबकी लगाय,

मंदिर दर्शन  करे  जाय।

घूमत भजिया बरा खाय,

गुपचुप खाय मजा उड़ाय।              


जघा जघा मा भीड़ भार,

सँघरा देखौ हे बजार।

सजे खिलौना जोर दार,

ठेली ठेला हे अपार।।


संग मितानी मेल जोल,

गोठ बात हो हृदय खोल।

जोड़ी जाँवर बाठ बोल,

नवा नता के मोल तोल।।


मड़ई मेला इही नाम,

कतको होथे इहाँ काम।

बच्छर भर मा देख आय,

जब कोठी धर धान जाय।।


सुधा शर्मा,

राजिम

छत्तीसगढ़

कज्जल छंद--चोवा राम 'बादल'

 कज्जल छंद--चोवा राम 'बादल'


भींड़


भरे खचाखच हे बजार।

रोड जाम मनखे लचार।

पाकिटमारी पर्स पार।

बेवस्था हे तार तार। 1


गाड़ी घोड़ा गँज मँजाय।

सबो बजरहा लक लकाय।

कतको झन झंझट मँचाय।

पोलिस देखय बोक बाय।2


अरझे हवयँ दुकानदार।

माईलोगिन बइठ चार।

घंटा भर छाँटे निमार।

लटपट लेथें एक हार।3


भींड़ भाँड़ के चिल्लचाल।

बिगड़े हावय चाल ढाल।

बड़े बड़े मार्केट माल।

चारों मूँड़ा इही हाल।4


चोवा राम 'बादल'

हथबंद,छत्तीसगढ़

हेम के कज्जल छंद

 हेम के कज्जल छंद


भाजी

खूब विटामिन भरे पाव।

ताजा भाजी टोर लाव।

अपन बने सेहत बनाव।

भाजी पाला रोज खाव।


योग

करलव बढ़िया रोज योग।

होत बिहनिया करव भोग।

होवय तन हर जी निरोग।

भारत मा हो स्वस्थ्य लोग।



छत्तीसगढ़ी भाखा

भाखा ला जी अपन जान।  

आही फेर नवा बिहान।

छत्तीसगढ़ी रखव मान।

बोलव सबो अपन जुबान।



गुरतुर भाखा

गुरतुर भाखा सदा बोल।

मनमा तँय झन जहर घोल।

तोर शब्द के हवय मोल।

अपन बात रख तोल तोल।



घड़ी

देख समय के अंतराल।

डिब्बा अंदर के कमाल।

टिकटिक घूमे चक्र काल।

समय बतावत चले चाल।

-हेमलाल साहू

छंद साधक सत्र-01

ग्राम गिधवा, जिला बेमेतरा(छ. ग.)

छत्तीसगढ़ी राजभाषा दिवस पर-दलित जी की कविता


 छत्ततीसगढ़ी राजभाषा पर

गरीब गोहार/ कोदूराम दलित


परमेश्वर कइसन दिन आइस, का कलजुग सिरतोन खराइस,

पापिन–चण्डालिन महँगाई, हम गरीब–गुरबा ला खाइस ।


कइसे करके पाली–पोसी डउकी–लइका, कुटुम–कबीला,

कब तक हम बड़हर मन के, देखत रहीं चरित्तर–लीला ।


अड़बड़ मुसकिल होगे हमला, पाए खातिर रोजी-रोटी,

निठुर मनन के करना परथै, गजब किलौली, पाँव–पलौटी


बड़े बिहिनिया ले संझा तक, माई–पीला जाँगर पेरीं,

पापी पेट भरे खातिर हम, गारी खाथीं घेरी-बेरी ।


पसिया-पेज, कभू तिउँरा के, ठोम्हा भर घुघरी हम खाईं,

होगे हमर पुनस्तर ढीला, काकर मेर जाके गोहराईं ।


लइका मन हमार लुलवाथें, पाए बर कोंढ़ा के रोटी,

खेत-खार में जाके खाथैं, उरिद-मुंगेसा अऊ चिरपोटी ।


लाँघन-भूखन मरथीं हम्मन, ओमन माल-मलीदा खाथैं,

मरकी अउर कुढ़ेरा साहीं, उनकर पेट बड़े हो जाथैं ।


हमर सिरागे रुँजी-पूँजी, ऊँकर मन के भरगै थैला,

हम्मन अनपढ़, लेड़गा-कोंदा, बने हवन घानी कस बैला ।


कब सुराज के सुख ला पाबो, कब मिलिही भुइयाँ घर कुरिया,

कब हमार मन के दिन फिरही, कब तक रहिबो दुरिहा-दुरिहा ।


निच्चट कुकुर-बिलाई साहीं, कब तक ले ठुकरायें जाबो,

ठगरा मन सब ठगतेच जाथैं, कब तक इनला बड़े बनाबो ।


जर जावै अइसन जिनगानी, जम्मो झिन ला जउन अखरगे,

का ? हमार बर देउँता-धामी, घलो रूठिन कि पट ले मरगें ।


कब तक हम भरमाए जाबो, कब तक कहिबो ‘किस्मत खोटी’,

बीता भर चिरहा-फरिहा के, कब तक रही हमार लिंगोटी ।


रचनाकार-कोदूराम 'दलित'

छत्तीसगढ़ी राजभाषा दिवस 2020*🌹

 


🌹 *छत्तीसगढ़ी राजभाषा दिवस 2020*🌹


*छत्तीसगढ़ मा छन्द के अलख जगइया - जनकवि कोदूराम "दलित"*



छत्तीसगढ़ी कवि सम्मेलन के हर मंच ले दुनिया मा कविता के सब ले छोटे परिभाषा ला सुरता करे जाथे “ जइसे मुसुवा निकलथे बिल ले, वइसे कविता निकलथे दिल ले” अउ एकरे संग सुरता करे जाथे ये परिभाषा देवइया जनकवि कोदूराम “दलित” जी ला. दलित जी के जनम ग्राम टिकरी (अर्जुन्दा) मा 05 मार्च 1910 के होइस. उनकर काव्य यात्रा सन् 1926 ले शुरू होईस. छत्तीसगढ़ी अउ हिन्दी मा उनकर बराबर अधिकार रहिस. गाँव मा बचपना बीते के कारन उनकर कविता मा प्रकृति चित्रण देखे ले लाइक रथे. दलित जी अपन जिनगी मा भारत के गुलामी के बेरा ला देखिन अउ आजादी के बाद के भारत ला घलो देखिन. अंग्रेज मन के शासन काल मा सरकार के विरोध मा बोले के मनाही रहिस, आन्दोलन करइया मन ला पुलिसवाला मन जेल मा बंद कर देवत रहिन. अइसन बेरा मा दलित जी गाँव गाँव मा जा के अपन कविता के माध्यम ले देशवासी मन हे हिरदे मा देशभक्ति के भाव ला जगावत रहिन. दोहा मा देशभक्ति के सन्देश दे के राउत नाचा के माध्यम ले आजादी के आन्दोलन ला मजबूत करत रहिन. आजादी के पहिली के उनकर कविता मन आजादी के आव्हान रहिन. आजादी के बाद दलित जी अपन कविता के माध्यम ले सरकारी योजना मन के भरपूर प्रचार करिन. समाज मा फइले अन्धविश्वास, छुआछूत, अशिक्षा  जइसन कुरीति ला दूर करे बर उनकर कलम मशाल के काम करिस. 

जनकवि कोदूराम “दलित” जी के पहचान छत्तीसगढ़ी कवि के रूप मा होइस हे फेर उनकर हिन्दी भाषा ऊपर घलो समान अधिकार रहिस. लइका मन बर सरल भाषा मा बाल कविता, जनउला,बाल नाटक, क्रिया गीत रचिन. तइहा के ज़माना मा ( सन् पचास के दशक) जब छत्तीसगढ़ी भाषा गाँव देहात के भाषा रहिस कोदूराम दलित जी आकाशवाणी नागपुर, भोपाल, इंदौर मा जा के छत्तीसगढ़ी भाषा मा कविता  अउ कहानी सुनावत रहिन. छत्तीसगढ़ी कविसम्मेलन के मंच स्थापित करइया शुरुवाती दौर के कवि मन मा उनला सुरता करे जाही. दलित जी के भाषा सरल, सरस औ सुबोध रहिस. व्याकरण के शुद्धता ऊपर वोमन ज्यादा ध्यान देवत रहिन इही पाय के उनकर ज्यादातर कविता मन मा छन्द के दर्शन होथे. दलित जी के हिन्दी रचना मन घलो छन्दबद्ध हें.  पंडित सुंदरलाल शर्मा के बाद कोनो कवि हर छत्तीसगढ़ मा छन्द ला पुनर्स्थापित करिस हे त वो कवि कोदूराम "दलित" आय.  पंडित सुंदरलाल शर्मा के बाद कोनो कवि हर छत्तीसगढ़ मा छन्द ला पुनर्स्थापित करिस हे त वो कवि कोदूराम "दलित" आय. 28 सितम्बर 1967 के दलित जी के निधन होइस। आज दलित जी के 51 वाँ पुण्यतिथि मा आवव उनकर छन्दबद्ध रचना ला छन्द विधान सहित जानीं।

 

दोहा छन्द - दू पद अउ चार चरण के छन्द आय। दुनों पद आपस मा तुकांत होथें अउ पद के अंत गुरु, लघु मात्रा ले होथे। 13 अउ 11 मात्रा मा यति होथे। कोदूराम दलित जी के नीतिपरक दोहा देखव -


संगत सज्जन के करौ, सज्जन सूपा आय।

दाना दाना ला रखै, भूँसा देय उड़ाय।।


दलित जी मूलतः हास्य व्यंग्य के कवि रहिन। उनकर दोहा मा समाज के आडम्बर ऊपर व्यंग्य देखव - 


ढोंगी मन माला जपैं, लम्भा तिलक लगायँ।

हरिजन ला छीययँ नहीं, चिंगरी मछरी खायँ।।


बाहिर ले बेपारी मन आके सिधवा छत्तीसगढ़िया ऊपर राज करे लगिन। ये पीरा ला दलित जी व्यंग्य मा लिखिन हें – 


फुटहा लोटा ला धरव, जावव दूसर गाँव।

बेपारी बनके उहाँ, सिप्पा अपन जमाँव।।


टिकरी गाँव के माटी मा जनमे कवि दलित के बचपना गाँवे मा बीतिस। गाँव मा हर चीज के अपन महत्व होथे। गोबर के सदुपयोग कइसे करे जाय, एला बतावत उनकर दोहा देखव –


गरुवा के गोबर बिनौ, घुरवा मा ले जाव।

खूब सड़ो के खेत बर, सुग्घर खाद बनाव।।


छत्तीसगढ़ धान के कटोरा आय। इहाँ के मनखे के मुख्य भोजन बासी आय। दलित जी भला बासी के गुनगान कइसे नइ करतिन – 


बासी मा गुन गजब हे, येला सब मन खाव।

ठठिया भर पसिया पियव, तन ला पुष्ट बनाव।।


दलित जी किसान के बेटा रहिन। किसानी के अनुभव उनकर दोहा मा साफ दिखत हे – 


बरखा कम या जासती, होवय जउने साल।

धान-पान होवय नहीं, पर जाथै अंकाल।।

जनकवि कोदूराम "दलित" नवा अविष्कार ला अपनाए के पक्षधर रहिन। ये प्रगतिशीलता कहे जाथे। कवि ला बदलाव के संग चलना पड़थे। देखव उनकर दोहा मा विज्ञान ला अपनाए बर कतिक सुग्घर संदेश हे – 


आइस जुग विज्ञान के, सीख़ौ सब विज्ञान।

सुग्घर आविष्कार कर, करौ जगत कल्यान।।


सोरठा छन्द - ये दोहा के बिल्कुले उल्टा होथे। यहू दू पद अउ चार चरण के छन्द आय। दुनों विषम चरण आपस मा तुकांत होथें अउ विषम चरण के अंत गुरु, लघु मात्रा ले होथे। 11 अउ 13 मात्रा मा यति होथे।


बंदँव बारम्बार, विद्या देवी सरस्वती।

पूरन करहु हमार, ज्ञान यज्ञ मातेस्वरी।।


उल्लाला छन्द - दू पद अउ चार चरण के छन्द आय। विषम अउ सम चरण  या सम अउ सम चरण आपस मा तुकांत होथें अउ हर चरण दोहा के विषम चरण असन होथे। ये छन्द मा 13 अउ 13 मात्रा मा यति होथे।


खेलव मत कोन्हों जुआ, करव न धन बरबाद जी।

आय जुआ के खेलना, बहुत बड़े अपराध जी।। 

 

सरसी छन्द - दू पद अउ चार चरण के छन्द आय। दुनों पद आपस मा तुकांत होथें अउ पद के अंत गुरु, लघु मात्रा ले होथे। 16 अउ 11 मात्रा मा यति होथे।दलित जी सन् 1931 मा दुरुग आइन अउ इहें बस गें। वोमन प्राथमिक शाला के गुरुजी रहिन। उनकर सरसी छन्द मा गुरुजी के पीरा घलो देखे बर मिलथे –


चिटिक प्राथमिक शिक्षक मन के, सुनलो भइया हाल।

महँगाई के मारे निच्चट , बने हवयँ कंगाल।।


गुरुजी मन के हाल बर सरकार ऊपर व्यंग्य देखव –

 

जउन देस मा गुरूजी मन ला, मिलथे कष्ट अपार।

कहै कबीरा तउन देस के , होथे बंठाढार।।


दलित जी अइसन गुरुजी मन ऊपर घलो व्यंग्य करिन जउन मन अपन दायित्व ला बने ढंग ले नइ निभावँय – 

जउन गुरूजी मन लइका ला, अच्छा नहीं पढ़ायँ।

तउन गुरूजी अपन देस के, पक्का दुस्मन आयँ।।


रोला छन्द - चार पद, दू - दू पद मा तुकांत, 11 अउ 13 मात्रा मे यति या हर पद मा कुल 24 मात्रा।

दलित जी के ये रोला छन्द मा बात के महत्ता बताये गेहे –

जग के लोग तमाम, बात मा बस मा आवैं।

बाते मां  अड़हा - सुजान  मन चीन्हें जावैं।।

करो सम्हल के बात, बात मा झगरा बाढ़य।

बने-बुनाये काम,सबो ला  बात  बिगाड़य।।

आज के जमाना मा बेटा-बहू मन अपन ददा दाई ला छोड़ के जावत हें। इही पीरा ला बतावत दलित जी के एक अउ रोला छन्द – 


डउकी के बन जायँ, ददा - दाई नइ भावैं।

छोड़-छाँड़ के उन्हला, अलग पकावयँ-खावैं।।

धरम - करम सब भूल जायँ भकला मन भाई।

बनयँ ददा - दाई बर ये कपूत दुखदाई।।


छप्पय छन्द – एक रोला छन्द के बाद एक उल्लाला छन्द रखे ले छप्पय छन्द बनथे। ये छै पद के छन्द होथे। गुरु के महत्ता बतावत दलित जी के छप्पय छन्द देखव –


गुरु हर आय महान, दान विद्या के देथे।

माता-पिता समान, शिष्य ला अपना लेथे।।

मानो गुरु के बात, भलाई गुरु हर करथे।

खूब सिखो के ज्ञान, बुराई गुरु हर हरथे।।

गुरु हरथे अज्ञान ला, गुरु करथे कल्यान जी।

गुरु के आदर नित करो,गुरु हर आय महान जी।।


चौपई छन्द - 15, 15 मात्रा वाले चार पद के छन्द चौपई छन्द कहे जाथे। चारों पद या दू-दू पद आपस मे तुकांत होथें। 


धन धन रे न्यायी भगवान।कहाँ हवय जी आँखी कान।।

नइये ककरो सुरता-चेत।देव आस के भूत-परेत।।

एक्के भारत माँ के पूत।तब कइसे कुछ भइन अछूत।।

दिखगे समदरसीपन तोर।हवस निचट निरदई कठोर।।


चौपाई छन्द - ये 16, 16 मात्रा मे यति वाले चार पद के छन्द आय। एखर एक पद ला अर्द्धाली घलो कहे जाथे। चौपाई बहुत लोकप्रिय छन्द आय। तुलसीदास के राम चरित मानस मा चौपाई के सब ले ज्यादा प्रयोग होय हे। जनकवि कोदूराम "दलित" जी अपन कविता ला साकार घलो करत रहिन। उन प्राथमिक शाला के गुरुजी रहिन। अपन निजी प्रयास मा प्रौढ़ शिक्षा के अभियान चला के  आसपास के गाँव साँझ के जाके प्रौढ़ गाँव वाला मन ला पढ़ावत घलो रहिन। प्रौढ़ शिक्षा ऊपर उनकर एक चौपाई – 


सुनव सुनव सब बहिनी भाई। तुम्हरो बर अब खुलिस पढ़ाई।।

गपसप मा झन समय गँवावव। सुरता करके इसकुल आवव।।

दू दू अक्छर के सीखे मा। दू-दू अक्छर के लीखे मा।।

मूरख हर पंडित हो जाथे। नाम कमाथे आदर पाथे।।

अब तो आइस नवा जमाना।हो गै तुम्हरे राज खजाना।।

आज घलो अनपढ़ रहि जाहू।तो कइसे तुम राज चलाहू।।


पद्धरि छन्द - ये 16, 16 मात्रा मा यति वाले दू पद के छ्न्द आय। एखर शुरुवात मा द्विकल (दू मात्रा वाले शब्द) अउ अंत मा जगण (लघु, गुरु, लघु मात्रा वाले शब्द) आथे। हर दू पद आपस मा तुकांत होथे। दलित जी अपन जागरण गीत मा पद्धरि छन्द के बड़ सुग्घर प्रयोग करिन हें – 

झन सुत सँगवारी जाग जाग। अब तोर देश के खुलिस भाग।।

अड़बड़ दिन मा होइस बिहान।सुबरन बिखेर के उइस भान।।

घनघोर घुप्प अँधियार हटिस। ले दे के पापिन रात कटिस।।

वन उपवन माँ आइस बहार। चारों कोती छाइस बहार।। 


मनहरण घनाक्षरी - कई किसम के घनाक्षरी छन्द होथे जेमा मनहरण घनाक्षरी सब ले ज्यादा प्रसिद्ध छन्द आय। येहर वार्णिक छन्द आय। 16, 15 वर्ण मा यति देके चार डाँड़ आपस मा तुकांत रखे ले मनहरण घनाक्षरी लिखे जाथे। चारों डाँड़ आपस मा तुकांत रहिथे। घनाक्षरी छन्द ला कवित्त घलो कहे जाथे। जनकवि कोदूराम "दलित" जी के ये प्रिय छन्द रहिस। उनकर बहुत अकन रचना मन घनाक्षरी छन्द मा हें। कविता मा गाँव के नान नान चीज ला प्रयोग मा लाना उनकर विशेषता रहिस। ये मनहरण घनाक्षरी मा देखव अइसन अइसन चीज के बरतन हे जउन मन समे के संगेसंग नँदा गिन। चीज के नँदाए के दूसर प्रभाव भाजहा ऊपर पड़थे। चीज के संगेसंग ओकर नाम अउ शब्द मन चलन ले बाहिर होवत जाथें अउ शब्दकोश कम होवत जाथे। तेपाय के असली साहित्यकार मन अइसन चीज के नाम के प्रयोग अपन साहित्य मा करके ओला चलन मा जिन्दा राखथें। ये घनाक्षरी दलित जी अइसने प्रयास आय – 


सूपा ह पसीने-फुने, चलनी चालत जाय

बहाना मूसर ढेंकी, मन कूटें धान-ला।

हँसिया पउले साग, बेलना बेलय रोटी

बहारी बहारे जाँता पिसय पिसान-ला।

फुँकनी फुँकत जाय, चिमटा ह टारे आगी

बहू रोज राँधे-गढ़े, सबो पकवान-ला।

चूल्हा बटलोही डुवा तेलाई तावा-मनन

मिलके तयार करें, खाये के समान-ला।।


जब अपन देश ऊपर कोनो दुश्मन देश हमला कर देथे तब कवि के कलम दुश्मन ला ललकारथे। सन् 1962 मा चीन हर हर देश ऊपर हमला करे रहिस। दलित जी के कलम के ललकार देखव - 


चीनी आक्रमण के विरुद्ध (घनाक्षरी)


अरे बेसरम चीन, समझे रहेन तोला

परोसी के नता-मा, अपन बँद-भाई रे।

का जानी कि कपटी-कुटाली तैं ह एक दिन

डस देबे हम्मन ला, डोमी साँप साहीं रे ।

बघवा के संग जूझे, लगे कोल्हिया निपोर

दीखत हवे कि तोर आइगे हे आई रे।

लड़ाई लड़े के रोग, डाँटे हवै बहुँते तो

रहि ले-ले तोर हम, करबो दवाई रे ।। 


अइसने सन् 1965 मा पाकिस्तान संग जुद्ध होइस। दलित जी के आव्हान ला देखव ये घनाक्षरी मा –

 

चलो जी चलो जी मोर, भारत के वीर चलो

फन्दी पाकिस्तानी ला, हँकालो मार-मार के।

कच्छ के मेड़ों के सबो, चिखलही भुइयाँ ला

पाट डारो उन्हला, जीयत डार-डार के।

सम्हालो बन्दूक बम , तोप तलवार अब

आये है समय मातृ-भूमि के उद्धार के।

धन देके जन देके, लहू अउ सोन देके

करो खूब मदद अपन सरकार के।।


गाँव मे पले-बढ़े के कारण दलित जी अपन रचना मन मा गाँव के दृश्य ला सजीव कर देवत रहिन। उनकर चउमास नाम के कविता घनाक्षरी छन्द मा रचे गेहे। उहाँ के दू दृश्य मा छत्तीसगढ़ के गाँव के सजीव बरनन देखव – 


बाढिन गजब माँछी बत्तर-कीरा "ओ" फांफा,

झिंगरुवा, किरवा, गेंगरुवा, अँसोढिया ।

पानी-मां मउज करें-मेचका भिंदोल घोंघी,

केंकरा केंछुवा जोंक मछरी अउ ढोंड़िया ।।

अँधियारी रतिहा मा अड़बड़ निकलयं,

बड़ बिखहर बिच्छी सांप-चरगोरिया ।

कनखजूरा-पताड़ा सतबूंदिया औ" गोहे,

मुंह लेड़ी धूर नाँग, कँरायत कौड़िया ।।


जनकवि कोदूराम "दलित" के एक प्रसिद्ध रचना "तुलसी के मया मोह राई छाईं उड़गे" मा गोस्वामी तुलसी दास के जनम ले लेके राम चरित मानस गढ़े तक के कहिनी घनाक्षरी छन्द मा रचे गेहे। वो रचना के एक दृश्य देखव कि छत्तीसगढ़ के परिवेश कइसे समाए हे – 


एक दिन आगे तुलसी के सग सारा टूरा,

ठेठरी अउ खुरमी ला गठरी मा धर के।

पहुँचिस बपुरा ह हँफरत-हँफरत,

मँझनी-मँझनिया रेंगत थक मर के।

खाइस पीइस लाल गोंदली के संग भाजी,

फेर ओह कहिस गजब पाँव पर के।

रतनू दीदी ला पठो देते मोर संग भाँटो,

थोरिक हे काम ये दे तीजा-पोरा भर के।।


कुण्डलिया छन्द – ये छै डांड़ के छन्द होथे. पहिली दू  डांड़ दोहा के होथे ओखर बाद एक रोला छन्द रखे जथे. दोहा के चौथा चरण रोला के पहिली चरण बनथे. शुरू के शब्द या शब्द-समूह वइसने के वइसने कुण्डलिया के आखिर मा आना अनिवार्य होते. कोदूराम "दलित" जी  आठ सौ ले ज्यादा कविता लिखिन हें फेर अपन जीवन काल मा एके किताब छपवा पाइन - "सियानी गोठ"। ये किताब कुण्डलिया छन्द के संग्रह हे। कवि गिरिधर कविराय, कुण्डलिया छन्द के जनक कहे जाथें। उनकर परम्परा ला दलित जी, छत्तीसगढ़ मा पुनर्स्थापित करिन हें। साहित्य जगत मा कोदूराम "दलित" जी ला छत्तीसगढ़ के गिरिधर कविराय घलो कहे जाथे। गिरिधर कविराय के जम्मो कुण्डलिया छन्द नीतिपरक हें फेर दलित जी के कुण्डलिया छन्द मा विविधता देखे बर मिलथे। आवव कोदूराम "दलित" जी के कुण्डलिया छन्द के अलग-अलग रंग देखव – 


नीतिपरक कुण्डलिया – राख


नष्ट करो झन राख –ला, राख काम के आय।

परय खेत-मां राख हर , गजब अन्न उपजाय।।

गजब  अन्न  उपजाय, राख मां  फूँको-झारो।

राखे-मां  कपड़ा – बरतन  उज्जर  कर  डारो।।

राख  चुपरथे  तन –मां, साधु,संत, जोगी मन।

राख  दवाई  आय, राख –ला नष्ट करो झन।।


सम सामयिक  - पेपर

पेपर मन –मां रोज तुम, समाचार छपवाव।

पत्रकार संसार ला, मारग सुघर दिखाव।।

मारग सुघर दिखाव, अउर जन-प्रिय हो जाओ।

स्वारथ - बर पेपर-ला, झन पिस्तौल बनाओ।।

पेपर मन से जागृति आ जावय जन-जन मा।

सुग्घर समाचार छपना चाही पेपर-मा।।


पँचसाला योजना  (सरकारी योजना) - 

 

पँचसाला हर योजना, होइन सफल हमार।

बाँध कारखाना सड़क, बनवाइस सरकार।।

बनवाइस सरकार, दिहिन सहयोग सजाबो झन।

अस्पताल बिजली घर इसकुल घलो गइन बन।।

देख हमार प्रगति अचरज, होइस दुनिया ला।

होइन सफल हमार, योजना मन पँचसाला।।


अल्प बचत योजना - (जन जागरण)

अल्प बचत के योजना, रुपया जमा कराव।

सौ के बारे साल मा, पौने दू सौ पाव।।

पौने दू सौ पाव, आयकर पड़ै न देना।

अपन बाल बच्चा के सेर बचा तुम लेना।।

दिही काम के बेरा मा, ठउँका  आफत के।

बनिस योजना तुम्हरे खातिर अल्प बचत के।।


विज्ञान – (आधुनिक विचार)

आइस जुग विज्ञान के , सीखो  सब  विज्ञान।

सुग्घर आविस्कार कर ,  करो जगत कल्यान।।

करो जगत कल्यान, असीस सबो झिन के लो।

तुम्हू जियो अउ दूसर मन ला घलो जियन दो।।

ऋषि मन के विज्ञान , सबो ला सुखी बनाइस।

सीखो सब  विज्ञान,   येकरे जुग अब आइस।।


टेटका – (व्यंग्य) 


मुड़ी हलावय टेटका, अपन टेटकी संग।

जइसन देखय समय ला, तइसन बदलिन रंग।।

तइसन बदलिन रंग, बचाय अपन वो चोला।

लिलय  गटागट जतका, किरवा पाय सबोला।।

भरय पेट तब पान-पतेरा-मां छिप जावय।

ककरो जावय जीव, टेटका मुड़ी हलावय।।


खटारा साइकिल – (हास्य)


अरे खटारा साइकिल, निच्चट गए बुढ़ाय।

बेचे बर ले जाव तो, कोन्हों नहीं बिसाय।।

कोन्हों नहीं बिसाय, खियागें सब पुरजा मन।

सुधरइया मन घलो हार खागें सब्बो झन।।

लगिस जंग अउ उड़िस रंग, सिकुड़िस तन सारा।

पुरगे मूँड़ा तोर, साइकिल अरे खटारा।।


अउ आखिर मा दलित जी के ये कुण्डलिया छन्द, हिन्दी भाषा मा -

नाम -

रह जाना है नाम ही, इस दुनिया में यार।

अतः सभी का कर भला, है इसमें ही सार।।

है इसमें ही सार, यार तू तज के स्वारथ।

अमर रहेगा नाम, किया कर नित परमारथ।।

काया रूपी महल, एक दिन ढह जाना है।

किन्तु सुनाम सदा दुनिया में रह जाना है।।


छत्तीसगढ़ के जनकवि कोदूराम "दलित" जी अपन पहिली कुण्डलिया छन्द संग्रह "सियानी गोठ" (प्रकाशन वर्ष - 1967)मा अपन भूमिका मा लिखे रहिन- "ये बोली (छत्तीसगढ़ी) मा खास करके छन्द बद्ध कविता के अभाव असन हवय, इहाँ के कवि-मन ला चाही कि उन ये अभाव के पूर्ति करें।स्थायी छन्द लिखे डहर जासती ध्यान देवें।ये बोली पूर्वी हिन्दी कहे जाथे। येहर राष्ट्र-भाषा हिन्दी ला अड़बड़ सहयोग दे सकथे। यही सोच के महूँ हर ये बोली मा रचना करे लगे हँव"। उंकर निधन 28 सितम्बर 1967 मा होइस, उंकर बाद छत्तीसगढ़ी मा छन्दबद्ध रचना लिखना लगभग बंद होगे। सन् 2015 के दलित जी के बेटा अरुण कुमार निगम हर छत्तीसगढ़ी मा विधान सहित 50 किसम के छन्द के एक संग्रह "छन्द के छ" प्रकाशित करवा के दलित जी के सपना ला पूरा करिन। उन मन आजकाल छन्द के छ नाम के ऑनलाइन कक्षा मा छत्तीसगढ़ के नवा कवि मन ला छन्द के ज्ञान देवत हें जेमा करीब 40 नवा कवि मन छत्तीसगढ़ी भाषा मा कई किसम के छन्द लिखत हें अउ अपन भाषा ला पोठ करत हें। इन नवा कवि मन के छन्द इंटरनेट मा छन्द खजाना नाम के ब्लॉग मा संकलित होवत हें जेला दुनिया के बीसों देश मा रसिक मन पढ़त हें। 


*अरुण कुमार निगम*

Wednesday, November 25, 2020

कज्जल छंद :- हमर गाँव (जगदीश "हीरा" साहू)

 कज्जल छंद :- हमर गाँव

  (जगदीश "हीरा" साहू)


बर पीपर के सुघर छाँव।

कउवा करथे काँव-काँव।।

अउ चिरई के चींव-चाँव।

सरग बरोबर हमर गाँव।।


सब मनखे के अलग ढंग।

अलग-अलग हे रूप रंग।।

सबझन  रहिथे  एक संग।

देखइया  मन  हवय दंग।।


मन के  सच्चा  देख  जाँच।

नइ  जानय  जे तीन-पाँच।।

बोले   अड़बड़ नीक  साँच।

पाटे    गड्ढा    बैर    खाँच।।


सुख दुख मा सब काम आय।

सुनता सबके गजब भाय।।

घर बाहिर सबला बलाय।

एक संग सब बइठ खाय।।


बरसे पानी झोर-झोर।

करथे बादर अबड़ शोर।।

होये सबझन सराबोर।

भींगे अँगना गली खोर।।


बोलय सबला राम नाम।

लगे सबो झन अपन काम।।

पानी बादर रहय घाम।

देखय नइ बिहनिया शाम।।


 जगदीश "हीरा" साहू (व्याख्याता)

कड़ार (भाटापारा), बलौदाबाजार

Tuesday, November 24, 2020

कज्जल छंद --आशा देशमुख

 कज्जल छंद --आशा देशमुख


जाल


फाँसत हावय मोह जाल।

द्वारी मा हे खड़े काल।

मनखे अब्बड़ चले चाल।

सुख हा होगे फ़टे हाल।


हमर देश


भारत देश हवय महान।

जय जवान अउ जय किसान।

बड़का बड़का हे खदान।

होवत हे हर जगह मान।


बचपन


लइका मन के सुघर खेल

कंधा धरके बने रेल।

चोर पुलिस अउ धरे जेल।

थोकिन झगड़ा होय मेल।


रीति रिवाज


सुघ्घर लागय लोक रीत।

सुआ ददरिया मया गीत।

खेत खार हे हमर मीत।

जिनगी मा हे हार जीत।


जिनगी


अबड़ मिठावय साग भात।

बीतय दिन सुख चैन रात।

दुख के झन तो परे लात।

सब मनखे हो एक जात।



आशा देशमुख

एनटीपीसी जमनीपाली कोरबा

Monday, November 23, 2020

कज्जल छंद - अनिल सलाम

 कज्जल छंद - अनिल सलाम


साफ-सफाई


साफ सफाई करव रोज

कचरा बीनव खोज खोज

बिनके गड्ढा देव बोज

रोग भागही सोज सोज।


बिहान 


होगे हावय गा बिहान 

चटनी बासी धर किसान 

खेत जात हे लुए धान

माटी के वो हे मितान।। 


मोह


बढ़य मोह झन कर गुमान

बन  भाई नेक इंसान 

झूठ कभू झन कर जुबान

सत गंगा मा सब नहान।।


गोरसी


लकड़ी करले खाप खाप

बार गोरसी ताप ताप

हरि हरि बस तँय नाम जाप

धुल जाही जी तोर पाप।।


गरम गरम कपड़ा सुहाय 

चटर पटर कुछ खाय जाय

ठंडा दिन हा अबड़ भाय

सब्बो साग अबड़ मिठाय।। 


पताल


दिखथे भारी लाल लाल

बारी फरे हवय पताल

चटनी मा लागय कमाल

होय खाय मा लाल गाल।।


सूपा


सूपा के करथँव बखान

फूनव चाँउर दार धान

बड़का येखर हवय मान

पूजय येला देव जान।।


करेजा


मोर करेजा चान चान

ले डारे तैंहा परान

गोरी मोरो बात मान

मोर डहर भी दे धियान।।


दिल मा रखले अपन जान

अपन बना ले ओ परान

साथ निभाहूँ बात मान 

मया भरे जिनगी बितान।।


छंद साधक - अनिल सलाम

गाँव - नयापारा उरैया

तहसील - नरहरपुर

जिला - कांकेर (छत्तीसगढ़)

Sunday, November 22, 2020

कज्जल छंद - बोधन राम निषादराज

 कज्जल छंद - बोधन राम निषादराज

(1) जीवन दरपन:-


जिनगी दुख के खान आय

सुख तो दिन के चार पाय

दुनिया मा तँय का कमाय

मोर-मोर कह तँय भुलाय।।


जप  ले  मानुष  राम नाम

बन जाही सब  तोर काम

राम चरन सुख दुःख धाम

चेत  लगावव  सिया राम।।


जय रघुनन्दन जय तुम्हार

किरपा   करके  दे  दुलार

संझा  बिहना  रोज  हार

तोला  चढ़ावँव सरकार।।


पापी  मनुवा   कर   उपाय

माटी  चोला  ह तर   जाय

नइ तो  जिनगी  फेर  आय

का तँय  खोए  काय पाय।।


(2) मड़वा के छाँव-


हरियर मड़वा देख छाँव

नाचन  लागय  उठै पाँव

हावय मोरो मन सुरताँव

बाजे बाजा कहाँ जाँव।।


               दूल्हा   साजे  मउर  माथ

               पररा बिजना लाय  साथ

               कतका सुघ्घर  घड़ी हाथ

               दुलहिन के वो बने नाथ।।


बने  बराती   देख   आय

बाजा-गाजा   सबो  लाय

मांदी  जम्मो  बइठ  खाय

भाँवर मड़वा मा  घुमाय।।


               गीत   बिदाई  के  सुनाय

               बिदा पठौनी  ला  कराय

               साजन के घर देख  जाय

               दुनिया के जी रीत आय।।


बेटी  घर  के  आय  शान

नारी  जग मा  हे  महान

कन्या  सबले  बड़े   दान

पुण्य कमालौ जी सुजान।।


(3) पेड़ हमर जान -


पेड़ लगालौ   बात मान

एखर ले हे  हमर  जान

आवौ   संगी  पेड़  लान

बंजर भुइयाँ मा लगान।।


               धरती  हरियर  तभे  होय

               जुरमिल आवौ सबे कोय

               जंगल झाड़ी   म उलहोय

               छोटे-छोटे    बीज  बोंय।।


पानी  खींचत  देख आय

पर्यावरण   बने     सुहाय

रिमझिम पानी ला गिराय

मोरो मन ला आज भाय।।


               धरती   के   सिंगार   पेड़

               आव  लगावौ  खेत  मेड़

               खाही   चारा  गाय   भेड़

               कहना  मानौ  नहीं  लेड़।।


बढ़त अबादी रोक यार

पेड़ लगाहू  खेत  खार

पाबे  सबके तँय दुलार

जिनगी होही तोर पार।।


छंद साधक:-

बोधन राम निषादराज"विनायक"

सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम

(छत्तीसगढ़)

Monday, November 16, 2020

कज्जल छंद-शशि साहू

 कज्जल छंद-शशि साहू


आये हँव मँय बैंगलोर

मिलहूँ नोनी संग मोर

चउथा माला ले अगोर

जादा चिन्ता खुशी थोर।।

 

कतका सुग्घर हमर देश

ओमा कर्नाटक   प्रदेश

 रंग- रंग के  धरे  वेश

मनखे  होगे  हे विशेष।। 


बहुते बड़का शहर आय

नावा पीढ़ी ला सुहाय

मनमाफिक सब बुता पाय

सुग्घर जिनगी ला पहाय।।


घूमे ल जाबो मैसूर

बैंगलोर ले थोर दूर

हरियाली हवय भरपूर

आनंद भरे हमर टूर।।


सरग बरोबर हे पहाड़

नीलगिरी अउ पेड़ ताड़

पूस माघ कस हवय जाड़

करँव प्रकृति ला गंज लाड़।।

Saturday, November 14, 2020

छंद के छ की प्रस्तुति-देवारी तिहार विशेष छंदबद्ध कवितायें

 


छंद के छ की प्रस्तुति-देवारी तिहार विशेष छंदबद्ध कवितायें

"छंद के छ"  परिवार डहर ले देवारी तिहार के सादर बधाई

अमृतध्वनि छंद - बोधन राम निषादराज

(1) देवारी
देवारी सुग्घर लगै, कातिक  के  त्योहार।
लीपे पोते सब दिखै,चुक-चुक ले घर द्वार।।
चुक-चुक ले घर,द्वार लिपाए,सुग्घर दमके।
हँसी खुशी के,दीया जगमग,देखव चमके।।
चउदस के दिन,चउदा दीया,भर-भर थारी।।
अम्मावस दिन,लक्ष्मी पूजा, शुभ देवारी।।

(2) लक्ष्मी माता
बने मिठाई खीर अउ,कलशा बने सजाय।
लाई नरियर फूल  ला,लक्ष्मी माता भाय।।
लक्ष्मी माता, भाय बने तब, घर मा आवै।
लइका मन सब,फोर फटाका,खुशी मनावै।।
जोर बतासा,  भर-भर दोना,  बाँटय दाई।
हँसी खुशी सब,खावत हावै,बने मिठाई।।

(3) गौरी गौरा
गौरी गौरा के परब, सुग्घर  रीत  रिवाज।
परम्परा अद्भुत बने, छत्तीसगढ़ी साज।।
छत्तीसगढ़ी,साज सजे जी,देखव सुग्घर।
शंकर बिलवा,गौरा बनथे,गौरी उज्जर।।
रात-रात भर,बर बिहाव के,सजथे चौरा।
होत बिहनिया,करे विसर्जन,गौरी गौरा।।

(4) सुआ नाच
हरियर पींयर साज के,खोपा गजरा डार।
सुआ धरे अउ टोकनी,नाचै सबके द्वार।।
नाचै सबके,  द्वार घरो घर, जा के नारी।
तरि हरि ना ना,मिल सब गावै,बन सँगवारी।।
सुआ खाय बर,अन्न चघाथे,सँग मा नरियर।
नाचत माँगय,पहिरे लुगरा,पींयर हरियर।।


छंदकार:-
बोधन राम निषादराज
सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम
(छत्तीसगढ़)
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: बरवै छंद- विजेन्द्र वर्मा

आय हवै देवारी,बाती बोर।
गली गली मा बगरै,बिकट अँजोर।।

खेत खार मा नाचय,मन के मोर।
मुरहा मनखे मन ला,तको अगोर।।

गाँव गली मा गूँजय,सुख के शोर।
देवारी मा राहय,जग मा भोर।।

सबके अँगना महकै,डारा पान।
दुख के रात पहावय,अब भगवान।।

अँधियारी बादर हा,अब छट जाय।
दीया के जगमग ले,सावन आय।।

हँसी खुशी ले गुजरे,जिनगी आज।
झूमव नाचव गावव,सुग्घर काज।।

परब आय देवारी,दियना बार।
बैर भाव ला तजके,बाँटव प्यार।।

विजेन्द्र कुमार वर्मा
नगरगाँव(धरसीवाँ)
जिला-रायपुर(छ.ग.)

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देवारी तिहार (दोहा)

गांव छोड़ परदेस मा ,  बसे रहे सब आय।
अपन मयारू गांव मा अंतस के सुख पाय।।

आय हवै दीपावली  ,  अइसन दियना बार ।
अंतस मा परकास हो  ,  मिट जाए अँधियार ।।

गोबर मा अँगना लिपौ ,  सुग्घर चँउक पुराव।
धनतेरस के शुभ घड़ी  ,  तेरह दीप जलाव।।

धनलक्ष्मी के वंदना  ,  संझा बिहना गाव ।
धन वैभव आही सुघर , आवव खुशी मनाव ।।

जगर बगर चारो मुड़ा , दियना जले हजार।
परब खुशी के लाय हे ,  दीपावली अपार।।

गौरी गौरा रात में  ,  जागे घर घर जाय ।
नर नारी पूजा करे  ,  सकल मनोरथ पाय ।।

लइका मन खेलै सुघर ,  सुरसुरी अउ अनार ।
मँजा गजब के पाय जी , नाचै आँगन द्वार।।

लक्ष्मी बर खिचड़ी बने , कुम्हड़ा कोचइ साग।
गौ जूठा खाए सबो ,  सँहराए जी  भाग ।।

सुग्घर खरखासाल  मा ,  होवय मातर मेल  ।
बाजा रूंजी संग मा , चले अखाड़ा खेल।

आनी बानी खेल ला , देखत अति मन भाय।
अइसन हमर तिहार हे , देव घलो सँहराय ।।

खुशी खुशी मा दावना , रचना रचते जाय ।
संगी सँगवारी सबों , एक जघा जुरियाय।।

     छंद साधक सत्र 10
 परमानंद बृजलाल दावना
              भैंसबोड़
       6260473556
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बरवै छंद - सुकमोती चौहान "रुचि"

धनतेरस के दीया , करय अँजोर।
बान पटाखा फूटय , होवय शोर।।

लक्ष्मी माता पूजव , मावस रात।
कृपा होय ले होथे , धन बरसात ।।

माटी के दियना जी , डारव तेल।
सुग्घर जिनगी होही , करलव मेल ।।

मन भाये देवारी , दिन हे पाँच ।
सरलग मना परब जी, दियना आँच ।।

सुघर सुघर रंगोली , सोहे द्वार ।
आमा तोरन झूलय , गोंदा हार ।।

पहन नवा कपड़ा ला ,लइका आय ।
हाँसत गावत सब ला , बात बताय ।।

गोवर्धन के पूजा , दय वरदान।
भरे रहय अन धन ले , घर गोठान ।।

जम्मो झन ला रुचि के , जय जोहार ।
सबो बधाई झोकव , मिलय दुलार ।।

साधिका - श्रीमती सुकमोती चौहान "रुचि"
बिछिया, महासमुन्द ,छ.ग.
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बरवै छंद(देवारी)-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

सबे खूँट देवारी, के हे जोर।
उज्जर उज्जर लागय, घर अउ खोर।

छोट बड़े सबके घर, जिया लुभाय।
किसम किसम के रँग मा, हे पोताय।

चिक्कन चिक्कन लागे, घर के कोठ।
गली गाँव घर सज़ धज, नाचय पोठ।

काँटा काँदी कचरा, मानय हार।
मुचुर मुचुर मुस्कावय, घर कोठार।

जाला धुर्रा माटी, होगे दूर।
दया मया मनखे मा, हे भरपूर।

चारो कोती मनखे, दिखे भराय।
मिलजुल के सब कोई, खुशी मनाय।

बनठन के सब मनखे, जाय बजार।
खई खजानी लेवय, अउ कुशियार।

पुतरी दीया बाती, के हे लाट।
तोरन ताव म चमके,चमचम हाट।

लाड़ू मुर्रा काँदा, बड़ बेंचाय।
दीया बाती वाले, देख बलाय।

कपड़ा लत्ता के हे, बड़ लेवाल।
नीला पीला करिया, पँढ़ड़ी लाल।

जूता चप्पल वाले, बड़ चिल्लाय।
टिकली फुँदरी मुँदरी, सब बेंचाय।

हे तिहार देवारी, के दिन पाँच।
खुशी छाय सब कोती, होवय नाँच।

पहली दिन घर आये, श्री यम देव।
मेटे सब मनखे के, मन के भेव।

दै अशीष यम राजा, मया दुलार।
सुख बाँटय सब ला, दुख ला टार।

तेरस के तेरह ठन, बारय दीप।
पूजा पाठ करे सब, अँगना लीप।

दूसर दिन चौदस के, उठे पहात।
सब संकट हा भागे, सुबे नहात।

नहा खोर चौदस के, देवय दान।
नरक मिले झन कहिके, गावय गान।

तीसर दिन दाई लक्ष्मी, घर घर आय।
धन दौलत बड़ बाढ़य, दुख दुरिहाय।

एक मई हो जावय, दिन अउ रात।
अँधियारी ला दीया, हवै भगात।

बने फरा अउ चीला, सँग पकवान।
चढ़े बतासा नरियर, फुलवा पान।

बने हवै रंगोली, अँगना द्वार।
दाई लक्ष्मी हाँसे, पहिरे हार।

फुटे फटाका ढम ढम, छाय अँजोर।
चारो कोती अब्बड़, होवय शोर।

होय गोवर्धन पूजा, चौथा रोज।
गूँजय राउत दोहा, बाढ़य आज।

दफड़ा दमऊ सँग मा, बाजय ढोल।
अरे ररे हो कहिके, गूँजय बोल।

पंचम दिन मा होवै, दूज तिहार।
बहिनी मनके बोहै,भाई भार। 

कई गाँव मा मड़ई, घलो भराय।
देवारी तिहार मा, मया गढ़ाय।

देवारी बगरावै, अबड़ अँजोर।
देख देख के नाचे, तनमन मोर।

जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को, कोरबा(छग)

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कुंडलियाँ छंद-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

देवारी त्यौहार के, होवत हावै शोर।
मनखे सँग मुस्कात हे, गाँव गली घर खोर।
गाँव गली घर खोर, करत हे जगमग जगमग।
करके पूजा पाठ, परे सब माँ लक्ष्मी पग।
लइका लोग सियान, सबे झन खुश हे भारी।
दया मया के बीज, बोत हावय देवारी।

भागे जर डर दुःख हा, छाये खुशी अपार।
देवारी त्यौहार मा, बाढ़े मया दुलार।।
बाढ़े मया दुलार, धान धन बरसे सब घर।
आये नवा अँजोर, होय तन मन सब उज्जर।
बाढ़े ममता मीत, सरग कस धरती लागे।
देवारी के दीप, जले सब आफत भागे।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को,कोरबा(छग)
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अमृत ध्वनि छंद:- *सुरहुत्ती*

सुरहुत्ती शुभ रात मा, चहुॅंदिश होय ॲंजोर।
रिगबिग ले दीया बरे, गमकय ॲंगना खोर।
गमकय ॲंगना , खोर रात कुन,गौरा जागे।
देख ईस ला, तुरत इहाॅं ले,  तम हर भागे।
समझ भगत के,मान गौन ला,आवय सत्ती।
भरय धान ले,कोठी डोली, जय सुरहुत्ती।

महेंद्र कुमार बघेल डोंगरगांव
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कुण्डलिया- अजय अमृतांशु

(1)
देवारी आये हवय,नाचय मन के मोर। 
दीया बारव सब डहर,जगमग करय अँजोर। 
जगमग करय अँजोर,मिटय जी सब अँधियारी।
झूमव मिलके आज,सबो संगी सँगवारी।
मन के भेद मिटाव,करव झन ककरो चारी।
घर घर खुशी मनाव,परब आये देवारी।।

(2)
माटी के दीया बरत,बड़ निक लागत आज।
देवारी आ गे हवय,जुरमिल करबों काज।।
जुरमिल करबों काज, तभे खुशहाली लाबों।
सुखी रहय परिवार,मया ला हम बगराबों।
आवव मिलके आज,कुमत के गड्ढा पाटी।
आघू पाछू ताय, सबों ला होना माटी।

(3)
गौरा गौरी गाँव मा, बइठारे हन आज।
माँगय हन हम देव ले,सुग्घर होवय राज।
सुग्घर होवय राज,सबो झन खुशी मनावय।
घर घर रहय तिहार, दुःख कोनो झन पावय।
जगर बगर हे राज, गाँव घर अँगना चौरा।
पूजत हन सब आज, गाँव मा गौरी गौरा।

अजय अमृतांशु
भाटापारा (छत्तीसगढ़)
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*बरवै छंद ---आशा देशमुख*

*देवारी तिहार*

आये हे देवारी,बड़े तिहार।
चमकत हे घर अँगना,गली दुवार।

गाँव गाँव मा गूँजय ,गौरा गीत।
सुघ्घर लागत हावय, अइसन रीत।

सोन बरोबर चमके,खेती खार।
खरही गांजे भरगे ,हे कोठार।

अन धन गउ मा करथे ,लक्ष्मी वास।
ये तिहार मन भरथे, अबड़ मिठास।

कतिक महिना अब्बड़,पबरित आय।
बड़े बिहनिया कतको,भगत नहाय।

दीया सँग मा रहिथे ,बाती तेल।
देवय ये संदेशा ,सुमता मेल।

कातिक महिना पाये, अब्बड़ भाग।
मया खुशी के घर घर,पागय पाग।


आशा देशमुख
एनटीपीसी कोरबा
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Monday, November 9, 2020

कज्जल छंद-श्री सुखदेव सिंह अहिलेश्वर

 कज्जल छंद-श्री सुखदेव सिंह अहिलेश्वर


किसान


भुँइया के बेटा किसान।

खेती मा देथस धियान।

उपजाथस सोनहा धान।

कारज हे सबले महान।


धन धन जगपालक किसान।

अंतस मा नइहे गुमान।

तोर दया जिनगी परान।

तहीं असल देश के मान।


जब ले तैं उपजाय अन्न।

नइहे जी कोनो विपन्न।

करे कड़ाही छनन छन्न।

खाके जन मन हे प्रसन्न।


रचना-सुखदेव सिंह'अहिलेश्वर'

गोरखपुर कबीरधाम छत्तीसगढ़

Sunday, November 8, 2020

सुकमोती चौहान "रुचि"

 कज्जल छंद - माँस अउ दारू के बढ़त फेसन 


- सुकमोती चौहान "रुचि"


बकरा भेड़ा काट काट

बेचत हावय हाट हाट

खाय खवइया चाट चाट

जोहत हावँय बाट बाट।


किलो किलो जी माँस खाय

मनखे मा राक्षस समाय 

तब ले कोनों नइ अघाय

रामा कइसन राज आय।


लागे नइ जी दया धर्म

हत्या बन गे सहज कर्म

जाने नइ का जीव मर्म

आवय एको देख शर्म।


दारू पीवय संग संग

घर के सुख अउ शांति भंग

करथे बड़ मतवार तंग

उड़गे सुख के सबो रंग।


दारू पीये शान मार

धर गिलास मा ढार ढार

पहुँचे हपटत घर दुवार

जिनगी होगे नारखार।


झगरा गारी रोज रोज

करथे ओखी खोज खोज

नशा बढ़ावै रोष ओज

करू करय जी बात सोज।


एखर ले नुकसान होय

सुसक सुसक परिवार रोय

जम्मो इज्जत मान खोय

दया धर्म नइ करे कोय।


सुकमोती चौहान रुचि

बिछिया ,महासमुन्द ,छ.ग.

Saturday, November 7, 2020

कज्जल छंद- विजेन्द्र वर्मा

 कज्जल छंद- विजेन्द्र वर्मा


मोह


बइहा मोला तँय बनाय

मोह मया मा तो फँसाय

हिरदे मा अइसे समाय

मीठ बोल के बड़ लुभाय।


सपना देखत हवँव तोर

बइहा बनके करँव शोर

मूरख बनगे बुद्धि मोर

मोह मया के चलत जोर।


गावत हावँव मया गीत

बन जा संगी तही मीत

बाढ़त राहय सदा प्रीत

जिनगी के अब इही रीत।


मँदरस टपकय तोर बोल

जाथे नींयत मोर डोल

गाल गुलाबी दिखै गोल

कखरो से अब नहीं तोल।


विजेन्द्र वर्मा

नगरगाँव(धरसीवाँ)

जिला-रायपुर

Friday, November 6, 2020

माटी के दुलरुवा बेटा स्वर्गीय लक्ष्मण मस्तुरिया जी ला सादर काव्यांजलि

 


माटी के दुलरुवा बेटा स्वर्गीय लक्ष्मण मस्तुरिया जी ला सादर काव्यांजलि

कुण्डलियाँ छन्द

मस्तुरिया ला आज मॅय , श्रद्धा सुमन चढाॅव ।
संग चलव मनखे सबो , कहे तोर दुहराॅव ।।
कहे तोर दुहराॅव , सबो मनखे जुरियाही ।
जब्बर बनही पेड़ , समय हा जल्दी आही।।
छत्तीसगढ़ी मान , बढा़ए जाके दुरिया ।
नमन करत हंव तोर , आज लक्ष्मण मस्तुरिया।।

माटी के महिमा लिखे , गुन गुन करे बखान।
तोरे परसादे मिलिस , छत्तीसगढ़ ल मान ।।
छत्तीसगढ़ ल मान , देवाए बेटा तॅयहा ।
सुरता करके तोर , आज रोवत हॅव मॅयहा।।
रचना रचे अपार  , गरू तॅय हर लोहाटी।
माटी महिमा गान , करत सुतगे तॅय माटी।।

मस्तुरिया के नाम से , बने  राज सम्मान।
मुखिया छत्तीसगढ़ के , देवव अब तो ध्यान।।
देवव अब तो ध्यान , सुघर हे मोरे कहना।
राजकीय सम्मान , बने लक्ष्मण के गहना।।
दावना हर गुहार  ,  लिखत बइठे हे कुरिया ।
छत्तीसगढ़ी शान  , हरे लक्ष्मण मस्तुरिया।।

             छंद साधक
 परमानंद बृजलाल दावना
             भैंसबोड़ 
        6260473556

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आशा आजाद: सरसी छंद गीत - आशा आजाद"कृति"

मस्तुरिया जी सान राज के, नेक रहिस इंसान ।
मानवता के पाठ पढ़ायिस, ए भुइयाँ के सान  ।।

संग चलव रे गीत ल गाके, सुग्घर दिस संदेश ।।
दीन दुखी के संग चलव रे, कहिस मिटादव क्लेश ।
छत्तीसगढ़ म सोना जइसन, नायक के पहिचान ।
मानवता के पाठ पढ़ायिस, ए भुइयाँ के सान  ।।

आशा आस्था उमंग साहस, युवा गीत के बोल ।
छत्तीसगढ़ी भाखा सुग्घर, ज्ञान दिहिन अनमोल ।
चंदैनी गोंदा मा कह दिस, हवे अधार किसान ।
मानवता के पाठ पढ़ायिस, ए भुइयाँ के सान  ।।

रंगमंच के नायक राहिस, कला रहिस भरमार ।
ए भुइयाँ मा हीरा जइसन, बेटा के अवतार ।
वर्तमान मा ज्ञान दान हा, हमर हवे अभिमान ।
मानवता के पाठ पढ़ायिस, ए भुइयाँ के सान  ।।

हमर राज के नेक धरोहर, गला म खूब मिठास ।
जन ला नित संदेश दिहिन जी, अंतस भर विश्वास ।
छत्तीसगढ़ी लेखन धारा, अमिट राज सम्मान ।
मानवता के पाठ पढ़ायिस, ए भुइयाँ के सान  ।।

छंदकार - आशा आजाद"कृति"
पता - मानिकपुर कोरबा छत्तीसगढ़

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चोवाराम वर्मा बादल

छत्तीसगढ़ के नाम जगाये, माटी के जस गाके।
जनकवि हे लक्ष्मण मस्तुरिया,पावन कलम चलाके।।

महानदी के छलकत आँसू,सरु किसान के पीरा।
अउ गरीब ला हृदय बसाके, गाये गीत कबीरा।।

आखर आखर अलख जगाके,तैं अँजोर बगराये।
परे डरे कस मनखे मन बर,सुग्घर भाव जगाये।।

कर विरोध सब शोषक मन के,हक बर लड़े सिखोये।
दुखिया के बन दुखिया संगी, बीज मया के बोये।।

लोक गीत के ऊँचा झंडा, फहर फहर फहराये।
छत्तीसगढ़ियापन के लोहा,सरी जगत मनवाये।।

झुके नहीं तैं पद पइसा मा,कलाकार के सँगवारी।
पाये नहीं भले तैं तमगा, कोनो जी सरकारी।।

जन जन के हिरदे मा बसथस,सुरता मा लपटाये।
श्रद्धांजलि देवत हे 'बादल', तोला मूँड़ नँवाये।।

चोवा राम 'बादल'
हथबंद, छत्तीसगढ़

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आल्हा छंद- विजेन्द्र वर्मा


रिहिस हवै जी माटी बेटा,कहय चलव जी मोरे संग।
गिरे परे हपटे मन हा तब,रँगत  रिहिन हे ओकर रंग।1।

हमर राज के राजा बेटा, लक्ष्मण मस्तुरिया हे नाँव।
गीत लिखे जी आनी बानी,गूँजय गली गली हर ठाँव।2।

कलम गढ़े जन जन के पीरा,परदेशी बर बनजय काल।
हितवा मन के हितवा बनके,बइरी बर डोमी विकराल।3।

रद्दा सुमता मा चलके जी,स्वारथ छोड़व अब इंसान।
कहत रिहिन हे लक्ष्मण भइया,बेंचव झन कोनो ईमान।4।

बसे हवै जन जन के हिरदे,गावयँ सुग्घर गुरतुर गीत।
परे डरे ला साथ लान के,बना डरिस जी सब ला मीत।5।

भरे रहै जी तन मा गरदा,अंतस जेकर हे अँधियार।
दीप जला के करदय लक्ष्मण,मन ला ओकर जी उजियार।6।

देश धरम बर काम करिन हे,देवत रिहिन मया के छाँव।
हाथ जोड़ के पाँव परत हँव,अमर रहय जी ओकर नाँव।7।

विजेन्द्र वर्मा
नगरगाँव(धरसीवाँ)
जिला-रायपुर

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ज्ञानु


संग चलव सब मोर कहइया।
दया मया के गीत गवइया।।
छ्त्तीसगढ़ के मान बढ़इया।
कहाँ गए तँय लक्ष्मण भइया।।

गिरे परे ला इहाँ उठइया।
भटके मन ला राह बतइया।।
सोवइया ला सदा जगइया।
कहाँ गए तँय लक्ष्मण भइया।।

बइरी बर फुफकार करइया।
शोषक मन ला आँख दिखइया।।
जनता बर आवाज उठइया।
कहाँ गए तँय लक्ष्मण भइया।।

नाम अमर जग मा मस्तुरिया।
छत्तीसगढिया सबले बढ़िया।।
स्वाभिमान हुंकार भरइया।
कहाँ गए तँय लक्ष्मण भइया।।

ज्ञानु

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