छत्तीसगढ़ी राजभाषा दिवस विशेष छंदबद्ध कविता
मैं छत्तीसगढ़ी बानी अँव, गुरतुर गोरस पानी अँव।
पी के नरी जुड़ा लौ सबझन, सबके मिही निशानी अँव।
महानदी के मैं लहरा अँव, गंगरेल के दहरा अँव।
मैं बन झाड़ी ऊँच डोंगरी, ठिहा ठौर के पहरा अँव।
दया मया सुख शांति खुशी बर, हरियर धरती धानी अँव।
मैं छत्तीसगढ़ी बानी अँव, गुरतुर गोरस पानी अँव।।।।।।
बनके सुवा ददरिया कर्मा, माँदर के सँग मा नाचौं।
नाचा गम्मत पंथी मा बस, द्वेष दरद दुख ला काचौं।
बरा सुँहारी फरा अँगाकर, बिही कलिंदर चानी अँव।
मैं छत्तीसगढ़ी बानी अँव, गुरतुर गोरस पानी अँव।।
फुलवा के रस चुँहकत भौंरा, मोरे सँग भिनभिन गाथे।
तीतुर मैना सुवा परेवना, बोली ला मोर सुनाथे।
परसा पीपर नीम नँचइया, मैं पुरवइया रानी अँव।
मैं छत्तीसगढ़ी बानी अँव, गुरतुर गोरस पानी अँव।
मैं गेंड़ी के रुचरुच आवौं, लोरी सेवा जस गाना।
झाँझ मँजीरा माँदर बँसुरी, छेड़े नित मोर तराना।
रास रमायण रामधुनी अउ, मैं अक्ती अगवानी अँव।
मैं छत्तीसगढ़ी बानी अँव, गुरतुर गोरस पानी अँव।।
ग्रंथ दानलीला ला पढ़लौ, गोठ सियानी धरलौ जी।
संत गुणी कवि ज्ञानी मनके, अंतस बयना भरलौ जी।
मिही अमीर गरीब सबे के, महतारी अभिमानी अँव।
मैं छत्तीसगढ़ी बानी अँव, गुरतुर गोरस पानी अँव।।
जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को, कोरबा(छग)
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महतारी (सरसी छंद) - बोधन राम निषादराज
महिनत के पाछू तँय दाई,
करथस सेवा मोर।
जिनगी भर मँय छूँट सकँव नइ,
ये करजा ला तोर।।
कमा - कमा तन हाड़ा होंगे,
तन होंगे कमजोर।
दाई तोर मया ला पा के,
बनहूँ आज सजोर।।
तँय बनिहारिन दाई मोरे,
महिमा तोर अपार।
तोर बिना जग सुन्ना लागे,
अउ सुन्ना घर-द्वार।।
अँचरा पीपर छइहाँ जइसे,
सुग्घर जुड़हा छाँव।
सरग बरोबर भुइँया सोहै,
महिनत पाछू गाँव।।
हे महतारी तोरे कोरा,
बासी चटनी खाँव।
अमरित कस महिनत के रोटी,
माथा टेकँव पाँव।।
छंदकार:-
बोधन राम निषादराज
सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)
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छप्पय छंद-भाखा महतारी(डी पी लहरे)
(1)
छत्तीसगढ़ी बोल,हमर भाखा महतारी।
हमर राज के शान,महत्तम हावय भारी।
का के हावय लाज,बोल अंतस हरसाले।
भाखा हे अनमोल,गीत एखर जी गाले।
कर ले तँय सम्मान गा,भाखा हे पहचान जी।
जन-जन मा ये छाय हे,रख एखर तँय मान जी।
(2)
छत्तीसगढ़ी गोठ,लगे मँदरस कस धारा।
बोलव भाई रोज,सबो जी झारा-झारा।
दया-मया के डोर,बाँधथे भाखा बोली।
गोठियाव गा रोज,करौ जी हँसी ठिठोली।
छत्तीसगढ़ी बोल के,देवव मया दुलार गा।
बैरी ला मितवा करौ,पाव मया भरमार गा।।
द्वारिका प्रसाद लहरे
कवर्धा छत्तीसगढ़
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: *लावणी छंद*
*राज भाषा दिवस* (छत्तीसगढ़ी महतारी भाखा)
महतारी गुरतुर भाखा ला, बोलव भैया दीदी मन|
जुड़े हवय अस्मिता राज के, बोली मधुरस कस पावन||
महतारी के मया समाये, महिमा गाये सुर मुनि मन |
हिरदे भितरी हवँय बसाये, ये भाखा गुन लव जनजन||
मुखिया बोलय राजा बनके, मनखे भाखा पोहे तन||
माटी के ओ लाल घलो हा, अड़बड़ बोलय जतन जतन||
बारो महिना बउरँय बोली, महक उठे हे हर कनकन|
सुआ ददरिया करमा गाले, नाचा पंथी मनभावन||
गुरतुर गुरतुर लागय एहर,रचे बसे हे सबो करम |
मनखे मनखे एकबरोबर, ए मानय जी सबो धरम||
ए भाखा के सेवा खातिर,सुंदर कोदू हवँय अमर|
महतारी भाखा बगराइन, गाँव गली अउ शहर नगर ||
छंद साधक
अश्वनी कोसरे
कवर्धा कबीरधाम
छंद कक्षा-9
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: सार छंद (सुधा शर्मा)
अपन राज के भाखा बोली,गुरतुर अब्बड़ हावय।
कोयल मैना पड़की सुवना,गीत मया के गावय।।
झन बिसराहू संगी कोनो,महतारी के भाषा।
इही हमर संस्कृति चिनहारी, आगू बढ़ही आसा।।
बोलव संगी अपने बोली,मान करव महतारी।
आओ एकर बढ़ोतरी बर,उदिम करन सब भारी।।
हमर गुनिक पुरखा कवि मन,एकर नाव जगाइन।
रचे दान लीला सुन्दर जी ,छत्तीसगढ़ सजाइन।।
कोदूराम दलित जी सुग्घर, गीत छंद मा गावय।
ऊँकर बेटा अरुण निगम जी,आगू छन्द बढ़ावय।।
मस्तुरिया के गीत ल देखव,
जन जन हिरदे गाये।
महतारी भाखा मा रच के, नाव शोर बगराये।।
गीत अमर होगे ओखर जी,
सरग निसेनी अमरे।
काहत हावे संग चलव जी ,
हिरदे ला सब टमरे।।
किसिम किसिम के करथे सिरजन,
राज म सिरजन हारा।
महतारी के गीत गावथें,ए पारा ओ पारा।।
लोक गीत मा सुवा ददरिया,रंग-रंग के बोली।
बूढ़ी दाई किस्सा कहिनी,
सोहर के रंगोली।।
फरियर-फरियर बगरे हावे,छत्तीसगढ़ी बोली।
मीठ मया के रस मा बूड़े,जस मिसरी के गोली।।
आखर-आखर साधो संगी,अबड़ गुणिक महतारी।
हाना किस्सा रकम रकम के,हावय ग गीत गारी।।
भासा दिवस मनावत हावे, जम्मों
छत्तीसगढ़िया।
राज काज के बनही जरिया ,
होही सबले बढ़िया।।
इही गोठ ला देखव संगी,जुरमिल आगू लावव।
आखर आखर धरौ मुकुट ला,दाई ला पहिरावव।।
सुधा शर्मा
राजिम छत्तीसगढ़
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दोहा गीत -जीतेंद्र कुमार वर्मा "खैरझिटिया"
दया माया के मोटरा,सबके आघू खोल।
हरे मंदरस मीठ जी,छत्तीसगढ़ी बोल।
खुशबू माटी के घुरे, बसे हवे सबरंग।
तनमन येमा रंग ले,रख ले हरदम संग।
बाट तराजू हाथ ले,भाँखा ला झन तोल।
दया मया के मोटेरा, सबके आघू खोल।।
बानी घासीदास के,अबड़ हवै जी पोठ ।
रचे इही मा कवि दलित,अपन सियानी गोठ।
नाचा करमा अउ सुवा,देय मया अनमोल।
दया मया के मोटेरा सबके आगे खोल।।
परेवना पड़की रटे, बोले बछरू गाय।
गुरतुर भाँखा हा हमर,सबके मन ला भाय।
जंगल झाड़ी डोंगरी,बर गावय जस डोल।
दया मया के मोटरा, सबके आघू खोल।।
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छंद त्रिभंगी-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
सबके मन भाये,गजब सुहाये,हमर गोठ छत्तीसगढ़ी।
झन गा दुरिहावव,सब गुण गावव,करौ पोठ छत्तीसगढ़ी।
भर भरके झोली,बाँटव बोली,सबो तीर छत्तीसगढ़ी।
कमती हे का के,देखव खाके,मीठ खीर छत्तीसगढ़ी।
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)
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सार छंद -दीपक
हमर राजभाखा ए सुघ्घर, छत्तीसगढ़ी बोली।
जेमा भरे दरद पीरा दुख, गुरतुर हँसी ठिठोली। ।
बोलचाल अउ कामकाज मा, साहित मा बउरावय।
छत्तीसगढ़ी भाखा सरलग, दुनिया मा ममहावय। ।
मँदरस मिसरी ले मीठा ए, बड़ गुरतुर मनभावन।
हाना मन के पगे चासनी, नौ रस भरे सुहावन। ।
माटी महतारी के एहा, गीत आरती बंदन।
सुघ्घर छत्तीसगढ़ी भाखा, बोलय सरलग जन जन। ।
दीपक निषाद- बनसाँकरा( सिमगा)
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छत्तीसगढ़ी बोली
चौपाई छंद
छत्तीसगढ़ के भाखा बोली।
गुरतुर लागे हँसी ठिठोली।।
बोले में काबर शरमाबो।
सुवा ददरिया कर्मा गाबो।
छत्तीसगढ़िया सबले बढ़िया।
जानत हावय सारी दुनिया ।।
लोरिक चंदा के ग कहानी।
जग मा कोनो नइये सानी।।
छत्तीसगढ़ में नाचा होथे।
कभू हंसाथे कभू रोथे।
पंडवानी ह नीक ग लागे।
तिजन बाई सबो ले आगे।।
ढ़ोला मारू कथा सुहावे।
बाजा बाजत मन ला भावे।।
वर्णन कतका ये भाखा के।
गावँव भैया गीत ल गा के।।
छंदकार
केवरा यदु "मीरा "
राजिम
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श्लेष चन्द्राकर -छत्तीसगढ़ी राज भाखा दिवस के बधाई अउ शुभकामना...
दोहा छंद - श्लेष चन्द्राकर
छत्तीसगढ़ी ले जुड़े, पुरखा मन के आस।
हमर राज भाखा हरय, हर भाखा ले खास।।
खोवत हे पहिचान ला, छत्तीसगढ़ी आज।
येकर बर आवव लड़ौ, जुरमिल सबो समाज।।
छत्तीसगढ़ी के करौ, मंचन मा गुणगान।
लहुटाना हम ला हवय, खोय इखँर सम्मान।।
सुग्घर भाखा बर करव, जुरमिल अइसे काज।
छत्तीसगढ़ी हा बनय, जन-जन के आवाज।।
हरय राज भाखा हमर, संस्कृति के पहिचान।
सब येकर उत्थान बर, आवव देवव ध्यान।।
छंदकार - श्लेष चन्द्राकर
पता - महासमुंद (छत्तीसगढ़)
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*भाखा हमर पहिचान ये (घनाक्षरी छंद)*
भाखा महतारी ये जी , मान सबो रखलव ।
लव आज जान संगी , इही पहिचान ये ।।
करमा के ताल इही , ददरिया सुवा अस ।
पंडवानी भरथरी , बांसगीत तान ये ।।
राउत नाचा के संग , पंथी बसदेवा गीत ।
अरपा पैरी के धार , हमर गुमान ये ।।
ये चंदैनी गोंदा कस , रिगबिग आज फुले ।
जी मस्तुरिहा के गीत , जग मा महान ये ।।
छंदकार - मोहन कुमार निषाद
गाँव - लमती , भाटापारा ,
जिला - बलौदाबाजार (छ.ग.)
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