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Monday, October 30, 2023

फूल (जयकारी छंद के लय आधारित)


 

फूल (जयकारी छंद के लय आधारित)

चंपा गुड़हल सदाबहार।गेंदा के बनथे जी हार।।

नर्गिस नारंगी मन भाय।लिली माधवी बड़ मुसकाय।।


अर्जुन अगस्त्य फूल गुलाब।नीलकमल खिलथे तालाब।।

कामलता बनफूल कनेर। सूर्यमुखी हा आँख तरेर।।


राई मुनिया हर सिंगार।सुघर कामिनी मन मतवार।।

रजनी गंधा अउ कचनार।देवकली के रूप निहार।।


फूल सावनी मुच मुच हाँस।तारक बचनाग अमलतास।।

रक्त केतकी जूही फूल।सत्यानाशी शूल अकूल।।


ब्रम्हकमल अउ बूगनबेल।माथ चमेली के मल तेल।।

असोनिया अउ सादा आक। चन्द्र मोगरा शोवी ढाक।।


नील गुलैंची मुसली फूल।खिल -खिल हाँसत हावय झूल।।

छुईमुई छूबे ते सकुचाय।मूंग मालती मया जगाय।।


हे गुलमोहर के बड़ नाम।फूल चाँदनी नोहय आम।।

गुलेतुरा लेवेंडर कोन।कुकरोधा केसर हे सोन।।


चील आँकरी द्रोप सिरोय।झुमका मौली मा मन खोय।।

अपराजिता बसंती कुंद।मून महकनी अउ मुचमुंद।।


गुलखैरा होथे जी खास।फूल केवड़ा बाँधय आस।

डहेलिया बगिया के शान।कउँवा कानी ला पहचान।।


सेवंती हे रंग बिरंग।महिमा मन मा भरे उमंग।।

सीता अशोक मुर्गा लाल।जुनबेरी ला देख निढ़ाल।।


आर्किड अमला कुकु ब्लूस्टार।सुघर अमोली के परिवार।।

फूल धतूरा शिव ला भाय।सुघर रात रानी ममहाय।।


ऐस बकाइन घंटी फूल।बजय नहीं झन देवव तूल।।

तितली कोरल क्रोकस कान।सिला केरिया खसखस जान।।


मंकी फ्लावर गार्डन गेट।बर बिहाव मा होथे भेंट।।

गुब्बारा बाटल ब्रश लान।नाव तको अइसन हे जान।।

विजेन्द्र कुमार वर्मा

नगरगाँव (धरसीवाँ)

Tuesday, October 10, 2023

आवव जानन अपन आसपास के पेड़ पौधा मन कतका गुणकारी हे। *जयकारी छंद*-विजेंद्र वर्मा


 

आवव जानन अपन आसपास के पेड़ पौधा मन कतका गुणकारी हे।

*जयकारी छंद*-विजेंद्र वर्मा

दाँत दरद मा मिले अराम। दतवन के गा आथे काम।।

सुघर सोनहा एखर फूल। लकड़ी ईंधन आय *बबूल*।।


औषधीय गुण ले भरपूर।फर पाना ला जान कपूर।।

दाद खाज ला दूर भगाय। *नीम* दाँत के दरद मिटाय।।


जीव जगत के प्रान अधार।ऑक्सीजन देथे भरमार।।

देव बिराजे एखर ठाँव। *बर* के सुग्घर शीतल छाँव।।


सबो देव हा करे निवास।पूजन ले पूरी हो आस।।

शारीरिक दुख दूर भगाय। *पीपर* मा जल जेन चढ़ाय।।


पीपर जइसन रंगे रूप।डारा खाँधा दिखे अनूप।।

घनेदार अउ शीतल छाँव। *गस्ती* मा चिरई के ठाँव।।


धरम-करम मा अगुवा मान।हे प्रतीक शुभता के जान।।

फल मा वो राजा कहलाय। पेड़ *आम* के वैभय लाय।।


कब्ज़ रोग ला दूर भगाय।गूदा एखर शुगर मिटाय।।

शिव बाबा हर खुश हो जाय। *बेल* पत्र जे रोज चढ़ाय।।


कतका मिनरल हवय भराय।एखर सेवन उमर बढ़ाय।।

धार्मिक महत्व पौधा आय।विष्णु *आँवला* तरी लुकाय।।


खट्टा-मीठा फर के स्वाद। लकड़ी चेम्मर अउ फौलाद।।

हवय आयरन के ये खान। *इमली* के गुण ला पहचान।।


इँकर पेड़ ला कटही जान।गोल जलेबी फर ला मान।।

फर मा पोषक तत्व भराय। *गंगा इमली* नाँव कहाय।।


रोग-रइ बर फायदेमंद। फाईबर गा भरे बुलंद।।

करथे पाचन तंत्र सुधार। *जाम* भगाथे पेट विकार।।


हवय आयरन गा भरपूर।फर दिखथे करिया अंगूर।।

पाना फर गुणकारी आय। *जामुन* कृमि नाशक कहलाय।।


रोजगार के स्रोत गा आय। मंडी मा फर हा कुड़हाय।।

नशा पान मा हे बदनाम। *महुआ* आथे मद के काम।।


कतका उपयोगी हे छाल।काढ़ा पी ले सालों साल।।

हेल्दी सेहत उही बनाय। *कउँहा* के गुण धरे समाय।।


जंगल के गा आग कहाय।लाली-लाली फूल झुलाय।।

पत्तल दोना आथे काम।   *परसा* के हे कतको नाम।।


लकड़ी मा सोना गा जान। फर्नीचर होथे निरमान।।

हरा-भरा हर ऋतु मा देख। पेड़ बने *सागौन* सरेख।।


खिड़की चौखट नाव बनाय।स्लीपर बन के ये बिछ जाय।।

कोनो गिलास तको बनाय। *साल* भिगों के रस पी जाय।।


छाल फूल फर पाना बीज।वात पित्त कफ चर्म मरीज।।

दूर भगाथे केंसर रोग। *सिरसा* आथे बड़ उपयोग।।


अल्सर मा दिखथे परिणाम।सेहत ला तब मिले अराम।।

मूत्र रोग ला दूर भगाय। *शीशम* के जे पत्ती खाय।।


एंटी आक्सीडेंट भराय। खट्टा-मीठा फर गा आय।।

घना पेड़ काँटा छबड़ाय। *बोइर*  दिमाग चुस्त बनाय।।


औषधीय गुण हे भरमार। प्रकृति देय हे गा उपहार।।

दाँत दरद अउ चमड़ी  रोग। दतवन *करंज* कर उपयोग।।


ठंडा एखर हे तासीर।छाल पीस के लेप शरीर।।

जेन कब्ज ले हे परशान।खाय फूल *सेमर* के जान।।


देख फोसवा लकड़ी आय।पाना फर अउ फूल सुहाय।।

रक्तचाप ला दूर भगाय। *मुनगा* हर तो बूटी आय।।


बहुते हवय फायदेमंद।तन ला रखथे सुघर बुलंद।।

खाँसी खुजली दूर भगाय। *नीलगिरी* के तेल लगाय।।


इमारती लकड़ी गा जान।खेत मेड़ मा बोय किसान।।

लकड़ी मा जानव गा सार।कतका आथे काम *खम्हार*।।


लाठी डंडा साज समान।बल्ली सूपा चरिहा तान।।

पूजा मंडप तको छवाय।    *बाँस* भाग्य ला तको बनाय।।


बर बिहाव मा शुभता आय।मंडप घर घर तभे छवाय।।

शुक्र देव के रहिथे वास। *डूमर* पूजन आथे रास।।


पेड़ हवय लंबा गा जान।फर फरथे ऊँच आसमान।।

फर कतका गुणकारी आय।तन ला *खजूर* स्वस्थ बनाय।।


तरिया नरवा डबरी तीर।खड़े हवय पानी मा गीर।।

चोट घाव गोदर हो जाय।पान *बेशरम* पीस लगाय।।


पेड़ जादुई येला जान।गैस कब्ज बर रामेबाण।।

पीला फुलवा पेड़ सजाय। *अमलतास* हा जगत हँसाय।।


बाग-बगीचे मा इठलाय।पान पीस के जेन लगाय।।

गंजा पन ला दूर भगाय। *गुलमोहर* सबके मन भाय।।


पर्यावरणी दूत कहाय।माटी कटाव रोक बचाय।।

रोजगार लोगन मन पाय। *छींद* पान फर बेंच कँमाय।।


लंबा सीधा जड़ मजबूत।इकर पेड़ मनखे के दूत।।

बवासीर खाँसी अतिसार। *हरड़* भगाथे कब्ज बुखार।।


कफ नाशक औषधि गा आय।जेन पेट कृमि मार भगाय।।

पित्त दोष अउ भूख मिटाय।बीज *बहेड़ा* ला जे खाय।।


इको फ्रेडली पेड़ कहाय।एंटी फंगल गुण ला पाय।।

शुद्ध हवा बड़ वोहर पाय।घर मा *अशोक* जेन लगाय।।


सुघर कीमती लकड़ी आय। औषधीय गुण हवय भराय।।

हवन पाठ पूजन करवाय। *चंदन*  शीतलता बरसाय।।


लीवर ला ये स्वस्थ बनाय।फूल फली सेवन कर खाय।।

कृष्ण बाँसुरी जिहाँ बजाय। पेड़ हरे गा *कदंब* ताय।।

विजेन्द्र कुमार वर्मा

नगरगाँव (धरसीवाँ)

Sunday, October 8, 2023

आन लाइन बाजार-रोला छंद

 आन लाइन बाजार-रोला छंद


सजे हवै बाजार, ऑनलाइन बड़ भारी।

घर बइठे समान, बिसावत हें नर नारी।।

होवत हे पुरजोर, खरीदी मोबाइल मा।

छोटे बड़े दुकान, पड़त हावैं मुश्किल मा।


देवत रहिथें छूट, लुभाये बर ग्राहक ला।

घर मा दे पहुँचाय, तेल तरकारी तक ला।

साबुन सोडा साल, सुई सोफा सोंहारी।

हवै मँगावत देर, पहुँच जाथे झट द्वारी।।


शहर लगे ना गाँव, सबे कोती छाये हे।।

बाढ़त हावै माँग, बेर डिजिटल आये हे।

सबे किसम के चीज, ऑनलाइन होगे हें।

बड़े लगे ना छोट, सबे येमा खोगे हें।


होमशॉप फ्लिपकार्ट, अमेजन अउ कतको कन।

खुलगे हे बाजार, मगन हें इहि मा सब झन।।

सुविधा बढ़गे आज, राज हे पढ़े लिखे के।

तुरते होवै काम, जरूरत हवै सिखे के।।


जतिक फायदा होय, ततिक नुकसान घलो हे।

का बिहना का साँझ, रोज के हलो हलो हे।।

लोक लुभावन फोन, मुफत मा ए वो बाँटे।

जे चक्कर मा आय, तौन आफत ला छाँटे।।


बिना जान पहिचान, काखरो बुध मा आना।

खाता खाली होय, पड़े पाछू पछताना।।

करव सोंच विचार, झपावौ झन बन भेंड़ी।

पासवर्ड आधार, आय खाता के बेंड़ी।।


आघू करही राज, ऑनलाइन हटरी हा।

दिखही सबके ठौर, बँधे इँखरे गठरी हा।

लूटपाट ले दूर, रही के होवै सेवा।।

करैं बने जे काम, तौन नित पावैं मेवा।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

पितर- कुकुभ छंद

 पितर- कुकुभ छंद


पुरखा मन के सुरता कर गुण, गावँव बारम्बार।

ये धरती मा जनम लेय के, करिन हमर बढ़वार।


खेत खार बन बाट बनाइन, बसा मया के गाँव।

जतिन करिन पानी पुरवा के, सुन चिरई के चाँव।

जीव जानवर पेड़ पात सँग, रखिन जोड़ के तार।।

पुरखा मन के सुरता कर गुण, गावँव बारम्बार।


रीत नीत अउ धरम करम के, सदा पढ़ाइन पाठ।

अपन भरे बर कोठी काठा, बनिन कभू नइ काठ।

जियत मरत नइ छोड़िन हें सत,नेत नियम संस्कार।

पुरखा मन के सुरता कर गुण, गावँव बारम्बार।।


डिही डोंगरी मंदिर मंतर, सब उँकरे ए दान।

गाँव गुड़ी के मान बढ़ाइन, अपन सबे ला मान।

एक अकेल्ला रिहिन कभू नइ,दिखिन सबे दिन चार।

पुरखा मन के सुरता कर गुण, गावँव बारम्बार।


उँखरे कोड़े तरिया बवली, जुड़ बर पीपर छाँव।

जब तक ये धरती हा रइही, चलही उंखर नाँव।

गुण गियान के गुँड़ड़ी गढ़के, चलिन बोह सब भार।

पुरखा मन के सुरता कर गुण, गावँव बारम्बार।।


पाप पुण्य पद प्रीत रीत के, करिन पितर निर्माण।

स्वारथ खातिर आज हमन हन, धरे तीर अउ बाण।

देख आज के गत बुढ़वा बर, बइठे हे थक हार।

पुरखा मन के सुरता कर गुण, गावँव बारम्बार।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

Friday, October 6, 2023

जनकवि- स्व.कोदूराम दलित जी के 56 वीं पुण्यतिथि मा काव्य सुमन सादर समर्पित)🙏💐

 ( जनकवि- स्व.कोदूराम दलित जी के 56 वीं पुण्यतिथि मा काव्य सुमन सादर समर्पित)🙏💐

आल्हा छंद- सुरता पुरखा के


करके सुरता पुरखा मन के, चरन नवावँव मँय हा माथ।

समझ धरोहर मान रखव जी, मिलय कृपा के हर पल साथ।।


इही कड़ी मा जिला दुर्ग के, अर्जुन्दा टिकरी हे गाँव।

जनम लिये साहित्य पुरोधा, कोदूराम दलित हे नाँव।।


पाँच मार्च उन्निस सौ दस के, दिन पावन राहय शनिवार।

माता जाई के गोदी मा, कोदूराम लिये अवतार।।


रामभरोसा पिता कृषक के, जग मा बढ़हाये बर नाँव।

कलम सिपाही जनम लिये जी, बगराये साहित के छाँव।।


बचपन राहय सरल सादगी, धरे गाँव  सुख-दुख परिवेश।

खेत बाग बलखावत नदिया, भरिस काव्य मन रंग विशेष।।


होनहार बिरवान सहीं ये, बनके जग मा चिकना पात।

अलख जगाये ज्ञान दीप बन, नीति धरम के बोलय बात।।


छंद विधा के पहला कवि जे, कुण्डलिया रचना रस खास।

रखे बानगी छत्तीसगढ़ी, चल के राह कबीरा दास।।


गाँधीवादी विचार धारा, देश प्रेम प्रति मन मा भाव।

देश समाज सुधारक कवि जे, खादी वस्त्र रखे पहिनाव।।


ढ़ोंग रूढ़िवादी के ऊपर, काव्य डंड के करे प्रहार।

तर्कशील विज्ञानिकवादी, शोधपरक निज नेक विचार।।


गोठ सियानी ऊँखर रचना, जग-जन ला रस्ता दिखलाय।

मातृ बोल छत्तीसगढ़ी के, भावी पीढ़ी लाज बचाय।।


आज पुण्यतिथि गिरधर कवि के, गजानंद जी करे बखान।

जतका लिखहूँ कम पड़ जाही, कोदूराम दलित गुनगान।।


✍🏻इंजी. गजानंद पात्रे 'सत्यबोध'

बिलासपुर (छत्तीसगढ़ी)

छत्तीसगढ़ के पुरोधा जनकवि श्रद्धेय कोदूराम 'दलित' जी ला आज उनकर 56 वीं पुण्यतिथि के अवसर मा विनम्र श्रद्धांजलि--

 छत्तीसगढ़ के पुरोधा जनकवि श्रद्धेय कोदूराम 'दलित' जी ला आज उनकर 56 वीं पुण्यतिथि के अवसर मा विनम्र श्रद्धांजलि--


पुरखा जनकवि के हवय, पुण्य तिथि हा आज।

श्रीमन कोदू राम जी,करिन नेक हें काज।

करिन नेक हें काज,छंद मा रचना रचके।

सुग्घर के सुरताल, भाव मनभावन लचके।

गाँधी सहीं विचार, रहिंन उन उज्जर छवि के।

 अमर रही गा नाम, सदा पुरखा जनकवि के।


आइस बालक ले जनम,पावन टिकरी गाँव।

मातु पिता जेकर धरिन,  कोदू राम जी नाँव।

कोदू राम जी नाँव, पिता श्री राम भरोसा।

घोर गरीबी झेल, करिन उन पालन पोसा।

अर्जुन्दा के स्कूल, ज्ञान के गठरी पाइस।

गुरुजी बनके दुर्ग, शहर मा वो हा आइस।


बड़का रचनाकार वो,गद्य-पद्य सिरजाय।

हास्य व्यंग्य के धार मा, श्रोता ला नँहवाय।

श्रोता ला नँहवाय, गोठ वो लिखिन सियानी।

माटी महक समाय, गठिन बड़ कथा-कहानी।

अलहन के जी बात,व्यंग्य के डारे तड़का।

दू मितान के गोठ, करिन वो कविवर बड़का।


श्रद्धावनत

चोवा राम वर्मा 'बादल'

हथबंद, छत्तीसगढ़

छन्न पकैया सार छंद * *पितरपाख*

 *छन्न पकैया सार छंद *

*पितरपाख*


छन्न पकैया छन्न पकैया, पितर पाख हा आगे।

कँउआ मन के भइया देखो, अब तो किस्मत जागे।।


छन्न पकैया छन्न पकैया, जीयत भर ले तरसे।

मरे बाप महतारी बर जी, मया अबड़ हे बरसे।।


छन्न पकैया छन्न पकैया, जीयत कर लव सेवा।

सबो अकारथ पाछू बर जी, भले खवावव मेवा।।


छन्न पकैया छन्न पकैया, मन मा बने बिचारो।

सरवन बेटा बन के भइया, पुरखा मन ला तारो।।


*प्यारेलाल साहू*

प्रदीप छन्द (16-13) *काबर पितर मनाथन*

 प्रदीप छन्द (16-13)

            *काबर पितर मनाथन*


काबर पितर मनाथन हम सब, सुनलौ सिरतो बात ला।

काबर कउँआ ला दोना मा, देथन हम सब भात ला। 

वैज्ञानिक अउ धार्मिक दू हे, सुनव दुनों के मान्यता।

धार्मिक मनखे मन हर कहिथे, पुरखा के हावय नता।।


पिये रिहिस कउँआ हर अमरित, कहिथे वेद पुरान हा।

कउँआ तन मा सबो जीव के, रहि सकथे जी जान हा।

इही मान्यता के कारण जी, देथन हम सब भात ला।

पितर पाख मा भोज कराथन, कउँआ के बारात ला।।


ध्यान लगाके सुनव सबो झन, वैज्ञानिक आधार ला।

ऑक्सीजन देथे बर पीपर, दिन रतिहा संसार ला।

खाके बर पीपर फर कउँआ, शोधित करथे पेट मा।

करके बीट नवा बर पीपर, कउँआ देथे भेंट मा।।


कइसे भूलन भारतवासी, कउँआ के उपकार ला।

फर्ज हमर हे सदा बचाना, कउँआ के परिवार ला।

खीर-भात ला तेकर सेती, देथन हितवा जान के।

सच मा कउँआ हर दुनिया मा, काबिल हे सम्मान के।।


मोर मगज अनुसार सुनौ अब, मनखे सब संसार के।

भूखमरी के दिन होथे जी, महिना गजब कुँवार के।

हवे मोल बड़ कहिथें ज्ञानी, जग मा भोजन दान के।

लोगन मन सब पितर मनाथन, इही सबो ला जान के।।


प्यासे मन ला नीर पिलाना, हमर देश के नीत हे।

भूखे मन ला भोजन देना, इही सनातन रीत हे।

सबो जीव ला ईश्वर के जी, मूरत जग मा मान के।

सेवा करथन भारतवासी, अपन धरम हम जान के।।

           

             राम कुमार चन्द्रवंशी

              बेलरगोंदी (छुरिया)

             जिला-राजनांदगाँव

जन्म भुइयाँ हम सबके एक

 जन्म भुइयाँ हम सबके एक


जनम भुइयॉं हम सबके एक।

भले हे पोथी पंथ अनेक।


सबोझन भारतवासी आन।

हृदय मा हिन्दी हिन्दुस्तान।


एक बस्ती ए झारा-झार।

बसे हन भलते चिन्हा पार।


नता मा एक कुटुम परिवार।

लड़ाई-झगरा हे बेकार।


निहारत जाति धरम के भेद।

जनम भुइयाँ ला होथे खेद।


खोभ के आगी करथे खाक।

सुनत देखत गय चूंदी पाक।


पढ़न गीता गुरुग्रंथ कुरान।

पढ़त खानी रहिके इंसान।


बने हे कल बनही कल आज।

सुमत समता ले नेक समाज।


अहिंसा परमधरम सुख सार।

महात्मा गाँधी कहिस बिचार।


-सुखदेव सिंह'अहिलेश्वर'

बिजौरी - सार छंद//

 //बिजौरी - सार छंद//


बरा बिजौरी देखत संगी, मुँह मा पानी आथे।

देखत पेट घलो भर जाथे, जब ये बड़ ममहाथे।।


छत्तीसगढ़ी तीज तिहारी, घर-घर देखव जाके।

पीठी दार उरिद सँग तिल्ली, रखथे घाम सुखाके।।

दार भात सँग खाके देखव, अड़बड़ बने सुहाथे।

बरा बिजौरी देखत संगी,.........


चौमासा के दिन बड़ सुग्घर, गिरथे रिमझिम पानी।

घर मा बबा डोकरी दाई, कहिथे बने कहानी।।

चुरकी मा वो धरे बिजौरी, मुसुर-मुसुर जब खाथे।

बरा बिजौरी देखत संगी,..............


स्वाद गजब के एखर जानौ, छप्पन भोग भुलाहू।

एक पइत जब मुँह मा जाही, खाके गुन ला गाहू।।

लालच लगे रथे खाये के, मन हा बड़ ललचाथे।

बरा बिजौरी देखत संगी,..............


रचनाकार:-

बोधन राम निषादराज"विनायक"

सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)

आल्हा छंद आधारित गीत

 आल्हा छंद आधारित गीत 


अपने मन के ढोल ढमाका। 

खींच तान के गावय राग। 

रोज चोर हर घूमत हावय। 

मानस मन अब जल्दी जाग।। 


रूप चोर के बगुला जइसे, 

कोन करय येकर पहिचान। 

घात लगाये बइठे हावय, 

झन रहिबे जी तँय अंजान। 

हिरदे इंकर काजर कोठी, 

दिखथे जइसे करिया नाग।

रोज चोर हर घूमत हावय, 

मानस मन अब जल्दी जाग।। 


कउन चोर हे कउन सिपाही, 

चिटको नइये इँकरो भान। 

चोर-चोर मौसेरा भाई, 

गाँठ बाँधले तहूँ मितान। 

झूठ मूँठ के मया दिखावय, 

फोकट मा बाँटत हे ज्ञान। 

रोज चोर हर घूमत हावय, 

मानस मन अब जल्दी जाग।। 


पाँच साल बर बदे मितानी, 

संग चलावय धरके हाथ। 

जब-जब बिपदा परे गाँव मा, 

छोड़ चले मनखे के साथ। 

सहीं बात हे सुनौ शिशिर जी, 

बड़े मनुष के बड़का दाग। 

रोज चोर हर घूमत हावय, 

मानस मन अब जल्दी जाग।। 


सुमित्रा शिशिर

पितर देवता-चौपाई छंद*

 *पितर देवता-चौपाई छंद*


भादो बुलकिस कुँवार आगे।

पितर पाख मनभावन लागे।।

देव सरग के आगे जानौ।

लव आशीष पितर ला मानौ।।


हम ला दे हावय जिनगानी।

कुश दूबी धर देवौ पानी।।

ऋण पितर के छूटव भैया।

उँखर कृपा हे जीवन नैया।।


बरा बोबरा खूब खवावौ।

खीर पुड़ी के भोग लगावौ।।

तोर भला बर बड़ दुख पाइन।

रहि उपास तोला जेवाइन।।


अपन चैन ला करिन निछावर।

दर्द सहिन तोला पाये बर।।

धरके अँगरी ला रेंगाइन।

पढ़ा लिखाके योग्य बनाइन।।


झन पाखंड कभू तुम मानौ।

सरग देवता येला जानौ।।

इँखर लोक परलोक सँवारौ।

श्रद्धा फूल चढ़ा के तारौ।।


परम्परा सुरता के सुग्घर।

हमर बीच मा नइहे जेहर।।

गुण गाथा ला ओखर गावौ।

पावन संस्कृति अपन निभावौ।।


फेर ध्यान देहव तुम भाई।

जीयत जेखर बाबू दाई।।

भरपूर मान ओला देवौ।

बइठ तीर पीरा हर लेवौ।।


चाहे भाजी भात खवावौ।

संझा बिहना माथ नवावौ।।

धन दौलत नइ खोजय काँहीं।

मीठ बात बस इनला चाही।।


जीते जी तँय करले सेवा।

घर बइठे मिल जाही देवा।।

मान ददा दाई हर पाहीं।

सबो देव मन खुश हो जाहीं।।



🙏🙏🙏🙏

नारायण प्रसाद वर्मा 

ढ़ाबा-भिंभौरी, बेमेतरा(छ.ग.)

आल्हा छंद ~ बिजौरी

 आल्हा छंद ~ बिजौरी

                      

रखिया के बीजा ला दाई, कोर-कोर राखे अलगाय।

उरिद दार के पीठी मेलय, मेथी तिल अउ नून मिलाय।


गोल ईट चौकोर सहींके, अलग अलग आकार बनाय।

सफ्फा सूती के ओन्हा मा, दे जड़कल्ला घाम सुखाय।


खेड़-खेड़ ले जब सुख जावय, तब बरनी मा जतने जाय।

आवय मौका या पहुना तब, अँगरा या ते तेल तराय।


चूरय दार चेंच भाजी जब, देवय थारी दूइ सजाय।

खावय ते तब कहाँ अघावय, देखइया मन घलु ललचाय।


चुर्रुस चुर्रुस बजय बिजौरी, जाड़ काल मा गजब सुहाय।

का नोनी का बाबू ये हा, सबके मन ला अब्बड़ भाय।


एक बार जे मन पा जावँय, येखर खास अनोखा स्वाद।

बारम्बार बिजौरी आवय, खाने वाले मन ला याद।


छंदकार - विरेन्द्र कुमार साहू बोडराबाँधा (पाण्डुका)

गांधीजी अउ शास्त्रीजी जयंती के अवसर मा


 

कुकुभ छंद-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


            ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,बापू,,,,,,,,,,,,,,,,


नइहे बापू तोर पुजारी, ना चरखा चश्मा खादी।

सत्य अंहिसा प्रेम सिरागे, बढ़गे बैरी बरबादी।


गली गली मा लहू बहत हे, लड़त हवै भाई भाई।

तोर मोर के तोता पाले, खनत हवै सबझन खाई।

हरौं तोर चेला जे कहिथे, नशा पान के ते आदी।

नइहे बापू तोर पुजारी, ना चरचा चश्मा खादी।।


कतको के कोठी छलकत हे, कतको के गिल्ला आँटा।

धन बल कुर्सी अउ स्वारथ मा, सुख होगे चौदह बाँटा।

देश प्रेम के भाव भुलागे, बनगे सब अवसरवादी।

नइहे बापू तोर पुजारी, ना चरचा चश्मा खादी।।


दया मया बर दाई तरसे, बरसे बाबू के आँखी।

बेटी बहिनी बाई काँपे, नइ फैला पाये पाँखी।

लउठी वाले भैंस हाँकथे, हवै नाम के आजादी।

नइहे बापू तोर पुजारी, ना चरचा चश्मा खादी।।।


राम राज के दउहा नइहे, बाजे रावण के डंका।

भाव भजन अब करै कोन हा, खुद मा हे खुद ला शंका।

दया मया सत खँगत जात हे, बड़ बढ़गे बिपत फसादी।

नइहे बापू तोर पुजारी, ना चरचा चश्मा खादी।।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)


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सार छंद- जीतेन्द्र वर्मा खैरझिटिया


गीत-शास्त्री जी


जय जवान अउ जय किसान के, जग ला दिस हे नारा।

लाल बहादुर शास्त्री जी के, चलो करिन जयकारा।।


पद पइसा लत लोभ भुलाके, जीइस जीवन सादा।

बोलिस कम हे जिनगी भर अउ, काम करिस हे जादा।

रिहिस मीत बर मीठ बताशा, बइरी मन बर आरा।।

जय जवान अउ जय किसान के, जग ला दिस हे नारा।


आजादी के रथ ला हाँकिस, फाँकिस दुख दुर्गुन ला।

नित नियाव के झंडा गाड़िस, बता पाप अउ पुन ला।

रिहिस उठाये सिर मा सब दिन, देशभक्ति के भारा।।

जय जवान अउ जय किसान के, जग ला दिस हे नारा।


ताशकन्द मा कइसे सुतगिस, जेन कभू नइ सोवै।

देख समाधी विजय घाट के, यमुना रहिरहि रोवै।।

लाल बहादुर लाल धरा के, नभ के चाँद सितारा।

जय जवान अउ जय किसान के, जग ला दिस हे नारा।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)



गांधी शास्त्री जयंती के अवसर मा दुनो हस्ती ला शत शत नमन

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कुकुभ छंद


तॅंय कलयुग के सच्चा मनखे,जग तोला कहिथे गाॅंधी।

लाने खातिर आज़ादी ला,बने बबा तॅंय हर ऑंधी।।


जब-जब संकट परे जगत मा,देव धरे मनखे चोला।

गदर गुलामी सहे देश हा,‌धरे फिरंगी गन गोला।।


देव सरी तब लइका जन्में,पुतली बाई के कोरा।

कोन जानथे इही हाथ ले, कटय गुलामी के डोरा।।


भारत माँ के बेड़ी काटे,काटे बर सब दुख पीरा |

करमचंद के कोरा खेले,भारत के बेटा हीरा ॥


लहू-रकत मा माँ के अँचरा,कलप- कलप आँसू ढारे।

तब अवतारी बापू आये,गोरा मन ला खेदारे।।


सत्य अहिंसा आय पुजारी,पहिरे सादा कस खादी।

बाॅंध लगोंटी पटका लउठी,भागत आइस आज़ादी।।


करो मरो के नारा गूॅंजे, बिगुल बजिस आज़ादी के।

मनखे-मनखे मन हर पहिरे, कपड़ा लत्ता खादी के।।


दाई दीदी बहिनी निकले,दल के दल पारा- पारा।

भारत माता अमर रहे के,गाॅंव गली गूॅंजे नारा।।


शशि साहू । बाल्को नगर

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गांधी के ओ बानी (छन्न पकैया छंद)


छन्न पकैया छन्न पकैया , गांधी के ओ बानी ।

सदा सत्य के मारग चलके , जियव अपन जिनगानी।।


छन्न पकैया छन्न पकैया , बुरा कभू झन बोलव ।

जब भी बोलव अपन बात ला , मन मा सुग्घर तोलव।।


छन्न पकैया छन्न पकैया , झन कर अइसे करनी ।

सरग नरक हे ए भुँइया मा , दिखथे बेरा मरनी ।।


छन्न पकैया छन्न पकैया , नोहे गोठ लबारी ।

भला करे मा मिले भलाई , सुनलव जी सँगवारी।।


छन्न पकैया छन्न पकैया , बात बांधलव मन मा।

जिनगी हे चरदिनिया भाई , का राखे हे तन मा ।।


छन्न पकैया छन्न पकैया , ये तन हा मिट जाही ।

सदा साँच के संगत करले , राम कृपा बरसाही।।


बृजलाल दावना