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Tuesday, August 31, 2021

गुरुबालकदास जयंती

  गुरुबालकदास जयंती


रोला छन्द-द्वारिका प्रसाद लहरे"मौज"


सदगुरु बालकदास,जयंती आज मनाबो।

रहिस प्रतापी वीर,जगत ला बात बताबो।

सत के करय प्रचार,अमर राजा बलिदानी

संपत्ति अधिकार,दिलाइस हवय निशानी।।


गुरू बजाइस सोझ,फिरंगी मन के बाजा।

कहिथे तभे समाज,गुरू बलिदानी राजा।।

जानैं लोक समाज,गुरू के पावन गाथा।

गुरू चरन मा आज,नवाँलन सबझन माथा।।


राजा बालकदास,सबो जन के सुध लेवय।

करै सदा सत न्याय,सजा दोषी ला देवय।

औराबाँधा धाम,गुरू के अमर कहानी।

गुरू शहादत ग्राम,मुलमुला बने निशानी ।।


द्वारिका प्रसाद लहरे"मौज"

कवर्धा छत्तीसगढ़

Monday, August 30, 2021

: जन्माष्टमी विशेष-छंदबद्ध कवितायें


 




: जन्माष्टमी विशेष

जीतेन्द्र वर्मा खैरझिटिया: मोला किसन बनादे (सार छंद)

पाँख  मयूँरा  मूड़ सजादे,काजर गाल लगादे|
हाथ थमादे बँसुरी दाई,मोला किसन बनादे |

बाँध कमर मा करिया करधन,बाँध मूड़ मा पागा|
हाथ अरो दे करिया चूड़ा,बाँध गला मा धागा|
चंदन  टीका  माथ लगादे ,पहिरा माला मुंदी|
फूल मोंगरा के गजरा ला ,मोर बाँध दे चुंदी|
हार गला बर लान बनादे,दसमत लाली लाली |
घींव  लेवना  चाँट  चाँट  के,खाहूँ थाली थाली |
मुचुर मुचुर मुसकावत सोहूँ,दाई लोरी गादे।
हाथ थमादे बँसुरी दाई,मोला किसन बनादे |

दूध दहीं ला पीयत जाहूँ,बंसी मीठ बजाहूँ|
तेंदू  लउड़ी  हाथ थमादे,गाय  चराके आहूँ|
महानदी पैरी जस यमुना, रुख कदम्ब बर पीपर।    
गोकुल कस सब गाँव गली हे ,ग्वाल बाल घर भीतर।
मधुबन जइसे बाग बगीचा, रुख राई बन झाड़ी|
बँसुरी  धरे  रेंगहूँ   मैंहा ,भइया  नाँगर  डाँड़ी|
कनिहा मा कँस लाली गमछा,पीताम्बर ओढ़ादे।
हाथ थमादे बँसुरी दाई,मोला किसन बनादे |

गोप गुवालीन संग खेलहूँ ,मीत मितान बनाहूँ|
संसो  झन करबे वो दाई,खेल कूद घर आहूँ|
पहिरा  ओढ़ा  करदे  दाई ,किसन बरन तैं चोला|
रही रही के कही सबो झन,कान्हा करिया मोला|
पाँव ददा दाई के परहूँ ,मिलही मोला मेवा |
बइरी मन ला मार भगाहूँ,करहूँ सबके सेवा|
दया मया ला बाँटत फिरहूँ ,दाई आस पुरादे।
हाथ थमादे बँसुरी दाई,मोला किसन बनादे |

जीतेंद्र वर्मा "खैरझिटिया "
बालको (कोरबा )
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 हरिगीतिका छंद - बोधन राम निषादराज
(आठे कन्हैया)

भादो मनाथे अष्टमी,रखथे सबो उपवास जी।
लइका सबो खुश लागथे,रहिथे इँखर बर खास जी।।
आठे कन्हैया साजथे,सुग्घर लिपे भिथिया बने।
गेरू   रँगाथे   भेंगरा, माहुर  धरे   बिटिया बने।।

गगरी धरे ग्वालिन घलो,फोटू बनाथे ग्वाल के।
मछरी मगर बिच्छी सरप,हलधर कन्हैया लाल के।।
डोंगा  बनाथे  संग मा, केवट धरे पतवार जी।
अउ नाँग-नाँगिन बर सखा,रखथे कटोरी द्वार जी।।

पिढ़ली सजाके थाल मा,माखन दही ला जोर के।
आठे कन्हैया के सबो,मुख मा चटाथे घोर के।।
फल फूल नरियर धूप अउ,खीरा मिठाई धर सबो।
पूजा बियारी बेर जी,करथे इहाँ घर-घर सबो।।

छंदकार:-
बोधन राम निषादराज
सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)
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श्रीकृष्ण
-----(मत्तगयंद सवैया)----

धेनु चरा अउ रास रचा बँसुरी ल बजा चितचोर कहाये।
दूध दही जब बेंचयँ ग्वालिन मार गुलेल म रार मचाये।
चोर बने तैं माखन खातिर दू मन आगर खाय खवाये।
मातु जसोमति ला रिसवा सिधवा बन के तँय पेंड़ बँधाये।

मार अकासुर मार बकासुर ग्वाल सखा मन ला ग बँचाये।
खेलत गेंद गिरे जमुना तब नाँग के नाक म नाँथ लगाये।
धर्म धजा धरके मन मोहन पाप मिटा पुन ला बगराये।
कंस ला मार डरे पटके मथुरा नगरी म धजा फहराये।

दीन दुखी परजा मन ला हिरदे म बसा तँय लाज बँचाये।
मूँड़ ल काट डरे शिशुपाल के चक्र सुदर्शन हाथ घुमाये।
कौरव के कुल नाश करे बर तैं महभारत जुद्ध कराये।
देख दशा बिगड़े यदुवंश के आपस मा लड़वा मरवाये।

चोवा राम वर्मा 'बादल'
हथबंद, छत्तीसगढ़

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हरिगीतिका छंद - बोधन राम निषादराज
( नन्द लाला )

हे नन्द लाला तोर ये,मुरली घलो बइरी बने।
दिन रात मँय हाँ सोंचके,गुन गाँव मँय मन ही मने।।
घर द्वार मोला भाय नइ,सुन तोर मुरली तान ला।
मँय घूमथँव घर छोड़ के,कान्हा इहाँ अन पान ला।।

जमुना नदी के पार मा,काबर तहूँ इतराय रे।
चोरी करे कपड़ा तहूँ,अउ डार मा लटकाय रे।।
हम लाज मा शरमात हन,तँय हाँस के बिजराय रे।
अइसन ठिठोली छोड़ दे,अब जीव हा करलाय रे।।

ए राधिका सुन बात ला,तँय मोर हिरदे छाय हस।
मोरे मया ला पाय के,गजबे तहूँ इतराय हस।।
राधा बने तँय श्याम के,ये देख दुनिया जानथे।
राधा बिना नइ श्याम हे,अब संग मा पहिचान थे।।

छंदकार:-
बोधन राम निषादराज
सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)


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: अमृत ध्वनी छंद - राजेश कुमार निषाद
मटका फोड़न गाँव मा,करके अड़बड़ शोर।
चढ़के संगी सब सखा,बाँधन मटका डोर।।
बाँधन मटका,डोर धरे हे, रंग बिरंगी।
आमा पाना,केरा नरियर, सबझन संगी।
खाके माखन, मारत हावय,देखव चटका।
हँसी खुशी ले ,फोड़व सबझन,एसो मटका।।

छंदकार:- राजेश कुमार निषाद ग्राम चपरीद रायपुर

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: मनहरण घनाक्षरी-विजेन्द्र वर्मा

भादों मास सुखकारी, जन्म धरिन मुरारी।
देवकी के गोद मा तो,देख मुसकात हे।
वसुदेव हा धरके,टुकनी मा तो भरके।
ललना ला तोप बने,नंद करा जात हे।
मनमोहना रूप हे,पानी बादर धूप हे।
मुचुर मुचुर हाँस,जग ला रिझात हे।
बिधन ला टारे बर,दुष्ट ला तो मारे बर।
जन्म लिन धरती मा,इही सार बात हे।

विजेन्द्र वर्मा
नगरगाँव(धरसीवाँ)

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: बँसरी तैं मँगवादे (सार छंद)

सुन वो दाई छोटे खुमरी,
मुड़‌ बर तैं बनवादे।
किसना कस मैं गाय चराहूँ,
बँसरी तैं मँगवादे।

लेदे मँइया करिया कमरा,
पूरय हाही माही।
ओढ़े रइहूँ पार गँउठला,
नइ तन जाड़ जनाही।

लगही प्यास कहूँ वो दाई,
रखहूँ तुमड़ी पानी।
अँगरा‌ रोटी पो के देबे,
सँग अथान‌ के चानी।

चरही बगरे गरुवा बछरू,
बँसरी हा जब बजही।
ठिन ठिन गइयन के घाँटी मन,
नँगते के निक लगही।

लगही कहूँ थकासी दाई,
नरवा‌ खाल्हे जाहूँ।
गरुवा‌ बछरू संग मँझनिया,
पेड़‌ तरी सुरताहूँ।
-मनीराम साहू 'मितान'
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: जन्माष्टमी विशेष

किशना से गोहार

गीतिका छंद

हे कन्हैया आ जगत मा ,देख बाढ़े पाप हे।
बाढ़गे अतका सुवारथ ,छल अहम के ताप हे।।
लोभ के रद्दा धरे जग, मन मया ला छोड़ के।
बीच घर द्वारी रुंधागे , नेंव इरखा कोड़ के।।

देश दुनिया राज सत्ता , सब महाभारत करें।
धर्मराजा हे कलेचुप , जेब अँधवा मन भरें।।
आ किशन विनती विनत हव, प्रेम के अवतार धर।
फेर जग मा सुख बसा दे , शांति सुम्मत ला सुघर।।

हे किशन तोरे जरूरत , आज जग ला अउ  हवै।
नइ दिखे गोपाल कोनो,बिन गुवाला गउ हवै।
नाम के बस गोधूलि हे , आय पथरा राज हे।
लागमानी गोत नाता , मूल के बिन ब्याज हे।।

आशा देशमुख
एनटीपीसी कोरबा

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: घनाक्षरी छंद - श्लेष चन्द्राकर 

आठे हरय आज गा, करव पूजा-पाठ गा,
मनावव जन्म दिन, कृष्ण भगवान के। 

भक्ति मा बूड़ जावव, बने भजन गावव,
आज तिहार हरय, किरपा निधान के। 

मोहन किरपालु हें, अउ बड़ दयालु हें,
भरपाई कर देथें, सबो नुकसान के। 

घाव मन भर जही, जिनगी सँवर जही,
आरती उतारव गा, देवता महान के। 

छंदकार - श्लेष चन्द्राकर
पता - खैरा बाड़ा, गुड़रु पारा, वार्ड नं.-27,
महासमुंद (छत्तीसगढ़)

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 दिलीप वर्मा सर: श्रृंगार सवैया छंद (सँवाद)

यशोदा घर गोपी मन आय। 
कन्हैया के करनी ल बताय। 
सुनावैं लल्ला के उत्पात। 
यशोदा थोरिक नइ पतियात। 

यशोदा सुन ले लल्ला तोर।  
करे नुकसान घघरिया फोर। 
चुरा के माखन ला ओ खाय। 
फोर के घघरी ओ हर आय।

अब गोपिन बात हमार सुनौ तुम झूठ शिकायत नाहि करौ।  
हमरो ललना बड़ छोटन हे तुम फोकट चोर न नाम धरौ। 
ललना घर माखन खावत हे बिन फोकट ना तुम कान भरौ। 
लबरी लबरी तुम गोपिन हौ तुरते मुख टारत भाग टरौ। 

कन्हैया हावय कहाँ बताव। 
अभी ओला आघू मा लाव।  
पूछ ले ओखर ले सब बात। 
चोर हे तब्भे देख लुकात। 

लबारी नोहय सच तँय मान। 
कन्हैया ला थोरिक पहिचान। 
बड़ा नटखट होगे हे जान। 
पूछ ले धर के ओखर कान। 

सुन रे ललना इन गोपिन हा कुछ तोर शिकायत आय कहे।  
तुम फोरत हौ घघरी मटका अउ माखन खावत धाय कहे। 
सच बात कहौ नहिते सुन लौ करनी कर दण्ड ल पाय कहे। 
मुख माखन तोर लगे कइसे किसना अब साँच बताय कहे। 

बतावँव सुन ले मइया मोर। 
कहे सब मोला माखन चोर। 
भला मँय काबर बता चुरावँ। 
खाय जब माखन घर मा पावँ 

शिकायत जम्मो हे बेकार। 
सबो झन मोला करथे प्यार। 
मया के खातिर सबझन आय। 
बात मा तोला सब बिलमाय। 

अब तो सब जान डरे हव की किशना हर माखन ला नइ खाये। 
घघरी तक फोर सके नइ ये फिर काबर झूठ  कहे बर आये। 
समझावत हौं फिर से तुम ला तुँहरो करनी हमला नइ भाये।  
फिर झूठ कहे बर आहव ता भगवान तको तुम ला न बचाये। 

चलव री ये तो नइ पतियाय। 
मया के पट्टी आँख बँधाय। 
करे जे किशना हर ये बार। 
बाँध के रस्सी रखबो डार। 

दिखाबो किशना के करतूत। 
मानही तब्भे देख सबूत। 
किशनवा देखे अउ मुसकाय। 
गोप गोपी खिसियावत जाय। 

रचनाकार- दिलीप कुमार वर्मा 
बलौदाबाजार छत्तीसगढ़

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 मीता अग्रवाल: घनाक्षरी छंद 

शीत ललियाए धूप, राधा धरे गोप रूप,
ग्वाल-लइका कान्हा मिल,गऊ ला चराए जी।
हाथी घोड़ा  पालकी जी,जै कन्हैया लाल कह, 
तारी बजा कान्हा संग, किंदरत जाए जी।
कदंब डारि मा चघे,लुका के उही मा बैठें, 
मरकी ग्वालिन फोरे,माखन चुराएँ जी।
बाल रूप मन मोहे,हे मितानी  बड़ सोहे, 
बड़ उतपात छबि, गाँव सरी भाएँ जी।

डाॅ मीता अग्रवाल मधुर रायपुर छत्तीसगढ़
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दिलीप वर्मा 

 जब आइन ले अवतार, करे उद्धार, जगत के पालन हारे। 
खुश हो धरती इठलाय, पेंड़ लहराय, दिखे जग वारे न्यारे। 

तब खुलगे जम्मो द्वार, कड़ी तक झार, प्रभु सब बंधन टारे। 
ले टुकना मा वसुदेव, लाल ला लेव, निकल गे घुप अँधियारे। 

तब छाय घटा घनघोर, करे बड़ शोर, चमक बिजुरी चमकावै। 
अउ होवँय बारिस जोर, गिरे घनघोर, राह तक नजर न आवै। 

बढ़गे यमुना के धार, करे बर पार, बहुत वसुदेव विचारे। 
जब मुड़ मा पालन हार, जगत के सार, कहाँ ले फिर ओ हारे। 

फिर यमुना हर लहराय, चरण नइ पाय, कन्हैया पाँव उतारे।  
धो चरण कमल ला आज, करत हे नाज, राह बर पानी टारे। 

बड़ नटखट लीला तोर, करे नइ शोर, नंद घर चुपके आये। 
तँय प्रगटे कारागार, नदी के पार, यशोदा लाल कहाये।

रचनाकार- दिलीप कुमार वर्मा 
बलौदाबाजार 30-08-2021
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अशोक कुमार जायसवाल: *उल्लाला*
राधा बोलय श्याम ले, सुनँव मोहना बात जी |
बैरी हावय बाँसुरी, सुतन देत नइ रात जी ||
रचना-अशोक जायसवाल
साधक -सत्र 13
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] मीता अग्रवाल: दोहावली
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 *कान्हा* 

जनमिस कारागार मा,किशन जगत के  भूप।
संसो मा दाई ददा,निरख अलौकिक रूप ।

ले वसुदेव चलय उहाँ,जिहाँ नंद के गाँव।
उफनत जमुना पाँव छू,शेष करें हे छाँव ।।

बटय बधाई नंद घर,बरसत हे आनंद।
नंद लाल जसुमति मया,बरनत हे मति मंद।

हाथी घोड़ा पालकी, कान्हा के जयकार।
गाँव भरें बाँटत  हवय,हार रत्न उपहार ।।

दूध-दही अउ लेवना,सब लइका हर खाय।
मथुरा काबर भेजबो,कान्हा करय उपाय ।।

मनखे जिनगी मा रहय, रंग सबो उल्लास ।
संदेशा दिन कृष्ण हा,वृन्दा वन मा रास।।

रकसा मन के आघु मा,मनखे झन हो दीन।
कान्हा करथे सामना,असुर सबो बलहीन।।

दुष्ट दलन कर दंड दे, आर्य सभा के धर्म ।
कंस ममा ला मारना,धर्म कहें सत्कर्म ।।

लइका अबला नार तन, करथे अत्याचार ।
सब जुग मा कान्हा करय,अइसन नर संहार ।।

कष्ट  ददा दाई हरय, अइसन श्री गोपाल ।
राजमुकुट पहिना करें, तिलक नना के  भाल।।

पुरी द्वारिका मा बसय,दाऊ भैया  साथ।
राज धर्म हित मा करिन,हमरे दीनानाथ।।

वसन हीन शोभय नही,नारी दाई मान।
चीर-हरण बाढत गयें, देत जगत ला ज्ञान ।।

पापी दुर्योधन बढ़य, दिन-दिन अत्याचार ।
पार्थ-सारथी हा करिन,वोखर भी उपचार ।।

कृष्ण महाभारत कथा, चरित देत आभास।
हवे महा नायक सदा, भगवद् -गीता खास।।

 *रचनाकार* 
 *डाॅ मीता अग्रवाल मधुर रायपुर छत्तीसगढ़*

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लीलेश्वर देवांगन,बेमेतरा: छप्पय छन्द

जनम धरे हे आज, कृष्ण मोहन गिरधारी ।
करले पूजा पाठ,नाथ के पारी पारी।।
वासुदेव ला देख, नंद घर झूलय पलना।
हावय सुग्धर रूप,यशोदा माॅ के ललना।।
आठे के दिन हे जनम,हरे बिष्णु अवतार जी।
सब दुख पीरा ला हरय,सबके तारन हार जी।।

लिलेश्वर देवांगन गुधेली(बेमेतरा)
साधक-छत्र १०
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[केंवरा यदु राजिम: सरसी छंद - केवरा यदु"मीरा"
(जन्माष्टमी)

भादो तिथि आठे को जन्में ,नटवर नंद किशोर।
कारी अँधियारी हे रतिहा, छाय घटा घनघोर ।

मात देवकी देखे लाला,मुचुर मुचुर मुस्काय।
मन में सोचे माता बेटा,बहुते दिन मा आय।।
तोरे रस्ता जोहत हावँव,दुख ला हरबे मोर।
कारी अँधियारी हे रतिहा, छाय घटा घनघोर।।

तारा बेड़ी जम्मो खुलगे,सुतगे पहरे दार।
भर किलकारी रोये मोहन,महतारी ल निहार।।
पितु वसुदेव देख के हाँसे,लाला सुन्दर मोर।।
कारी अँधियारी हे रतिहा, छाय घटा घनघोर ।।

कड़कड़ - कड़कड़ बिजुरी चमके,बरखा मुसला धार।
सबो देवता फूल गिरावत,महिमा अमित अपार।।
मगन होत हे मातु पिता हा,काटव बंधन कोर।।
कारी अँधियारी हे रतिहा, छाय घटा घनघोर ।।

घेरी बेरी मुँह ला चूमे,कइसे भेजँव लाल।
राखे रहिहूँ आही पापी,तोर ममा बन काल।।
जाये बर तँय जाबे लाला ,लेवत रहिबे सोर।।
कारीअँधियारी हे रतिहा, छाय घटा घनघोर ।।

सूपा मा धर चले वसुदेव,नंद यशोदा द्वार।
यमुना जी ला देख डराये,मारे लहरा पार।।
चरण छुये के आशा मोला,पाँव बढ़ादे तोर।।
कारी  अँधियारी हे रतिहा, छाय घटा घनघोर ।।

शेषनाग छैंहा बर आगे,सिर मा छत्र लगाय।
जमुना मैंया हाथ बढ़ा के,चरणन छू मुसकाय।।
आवत रहिबे मोहन अबतो, मुरली धर तट मोर ।।
कारी अँधियारी हे रतिहा, छाय घटा घनघोर ।।

पहुँचे नंद भवन मे मोहन,मातु पिता ले दूर।
मात यशोदा संग सुतावे,छोड़ होय मजबूर।।
आँखी ले आँसू चूहत हे,चले न कोई जोर।।
कारी अँधियारी हे रतिहा,छाय घटा घनघोर ।।

केवरा यदु "मीरा "
राजिम
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मनोज वर्मा:

 जनम धरे धरती मा आये, महिमा हे जेकर भारी।
लीला रचके नाच नचाये, लीलाधर   श्री बनवारी।।

नंद देवकी के कोरा मा, आये जग पालन हारी।
नंद किशन ला झउॅंहा मा धर, गोकुल कोती जी भागे।
गोड़ धोय यमुना प्रभु जी के, सउॅंहत आज भाग जागे।।
चरनन छूके यमुना प्रभु के, भाग अपन सहराये।
रद्दा देके करे सुवागत, मान बहुत तब तो पाये।।
राधा के सॅंग रास रचाके, मन मोहे बंशी धारी।
मुॅंह भीतर मा जग देखाके, अचरज डारे महतारी।।
लीला रचके नाच नचाये, लीलाधर   श्री बनवारी......

लइकापन के खेल खेल मा, पापी कतको ये मारे।
काग नाग पुतना वत्सासुर, कंश बकासुर ला तारे।।
गोपी मन ला छेड़-छेड़ तॅंय, मया बढ़ाये हस बानी।
राधा ला तॅंय किशन बनाके, बनगे खुद राधा रानी।।
गोकुल छोड़े मथुरा आये, होवत हे का तइयारी।
धरती भार उतारे प्रभु जी, मान बढ़ाये तॅंय नारी।।
भेद धरम अधरम मा करके, सत के रद्दा सिरजाये।
सुग्घर गीता ज्ञान बताके, धार अमृत के बोहाये।
रचे महाभारत केशव जी, रहे सारथी त्रिपुरारी।
लीला रचके नाच नचाये, लीलाधर   श्री बनवारी........
जनम धरे धरती मा आये, महिमा हे जेकर भारी......


मनोज कुमार वर्मा
बरदा लवन बलौदा बाजार
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दिलीप वर्मा 

आज कन्हैया काबर रूठे, अब तो जानव। 
सुनलव संगी बात कहत हँव, सच्ची मानव। 

जेन कदम के पेंड़ चढय ओ, सबो कटागे। 
नदिया के नीला पानी मा, काई छागे। 
असुर सिरागे मनखे बनगे, हावय दानव। 
आज कन्हैया काबर रूठे, अब तो जानव। 

जेन गाय ला रोज चराये, जाय कन्हैया।
उही गाय मन लावारिस कस, घूमय भैया। 
कोन बटोरे हे मधुबन ला, अब पहिचानव। 
आज कन्हैया काबर रूठे, अब तो जानव। 

घर के लक्ष्मी दूर भगा दिन, काला कहिबे। 
माखन मिश्री खोज मिलय नइ, अब का रहिबे। 
गोवर्धन ला स्वारथ खातिर, तुम झन खानव। 
आज कन्हैया काबर रूठे, अब तो जानव। 

रचनाकार- दिलीप कुमार वर्मा 
बलौदाबाजार 30-08-2021
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ज्ञानू कवि: मदिरा सवैया

मोहन नाचत गावत हे मुरली धुन मा मनमोहत हे।
देखत रीझत हे मन सुग्घर तान मया रस घोरत हे।
भावत हे नखरा मन ओखर मीठ भरे  बड़ बोलत हे।
गोकुल धाम उमंग हवै रसता सब ग्वालिन जोहत हे।।

हाथ धरे मलिया मलिया भरके मुँह माखन खावत हे।
देख अपार हवै महिमा प्रभु माखनचोर कहावत हे।
संग धरे सब ग्वालन हे अउ नाचत कूदत गावत हे।
देखव भक्तन खातिर मोहन बंधु सखा बन जावत हे।।

ज्ञानुदास मानिकपुरी
चंदेनी- कवर्धा

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 गुमान साहू: सुंदरी सवैया- 

।।माखनचोर।।
चुपके छुप खावय माखन श्याम सखा सब संग हवैं सकलाये।
बन माखनचोर लुटे मटका सब दूध दही अँगना बगराये।
मनमोहन आवत देख जसोमति ला सिधवा बन के छुप जाये।
पकड़े मइया मुख खोल कहे मुख लोक सरी तब श्याम दिखाये।।

।।बँसुरी धुन।।
बइठे चढ़ डार कदम्ब म मोहन राग धरे मुरली ल बजाये।
सब ग्वाल सखा मन ले मिलके जमुना तट श्याम ह गाय ल चराये।
सुनके बँसुरी गइया हुलसे बन मोर रिझे बड़ नाच दिखाये।
सब काम बुता तज भागय ग्वालिन मोहन के बँसुरी म खिंचाये।।

-गुमान प्रसाद साहू 
समोदा(महानदी ), रायपुर
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*छन्न पकैया छंद*

छन्न पकैया छन्न पकैया, आठे महिना भादों।
तरिया नदिया भरगे राहय,माचे चिखला कादों।

छन्न पकैया छन्न पकैया, घुप छाये अँधियारी।
रही रही के कड़के बिजली, कहूँ नहीं उजियारी।

छन्न पकैया छन्न पकैया, होइस रतिहा आधा।
गरजे घूमरे बरसे बादर,टूटिस बेड़ी बाधा।

छन्न पकैया छन्न पकैया,प्रगटिन कृष्ण मुरारी।
कोरा पाके सुग्घर लइका,होइस खुश महतारी।

छन्न पकैया छन्न पकैया, उजरे झन अब कोरा।
जीयत राहय ललना अब तो,बिनती सुन ले मोरा।

छन्न पकैया छन्न पकैया, भरे टूटहा सूपा।
ललना लेके बाबा निकलै,सुंदर साँवर रूपा।

छन्न पकैया छन्न पकैया, शेष बने हे छाता।
जमुना जल पग  छूके उतरे,बेसुध राहय माता।
धन्न पकैया छन्न पकैया, छोड़ जशोदा तीरे।
देवी धरके निकले बाबा, रेंगत धीरे धीरे।

छन्न पकैया छन्न पकैया, खुशी मा नंद झूमे।
नाचे गाये सब नर नारी,माता माथा चूमे।


चित्रा श्रीवास
बिलासपुर
छत्तीसगढ़
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Sunday, August 29, 2021

जैविक खातू

 जैविक खातू


जैविक खेती ला अपनावव, तभे जीव के हे कल्याण।

जहर परोसत ये रासायन, होवत सब के मरे बिहान।।


लालच मा उत्पादन खातिर, अनदेखा झन करव मितान।

बढ़त रोग हर आनी बानी, जान बूझ झन बनव नदान।।


डी.ए.पी.युरिया ले बाढ़े, टी.बी केंसर जइसन रोग।

बी.पी.शुगर कुपोषण घातक, अलप काल मा मरथें लोग।।


किडनी लीवर नुकसान करत हे, करत हवा पानी बरबाद।

अगला पीढ़ी ला का दे हव, सोचव बने तभे मरजाद।।


होत जात हे माटी बंजर, लागत भारी बाढ़त जाय।

करत हानि हे जीव जंतु ला, पर्यावरण घलो मइलाय।।


जैविक खातु संग माटी अउ, फसल घलो मा होय सुधार।

कम लागत मा गुण जादा हे, दिन दिन बाढ़त पैदावार।।


आमदनी हर बाढ़य जादा, वातावरण बनय खुशहाल।

शुद्ध हवा अउ भोजन पानी, कटय बिमारी के जंजाल।।


🙏🙏🙏🙏

नारायण प्रसाद वर्मा *चंदन*

ढ़ाबा-भिंभौरी, बेरला(बेमेतरा)

7354958844

कमरछठ परब विशेषांक-छंदबद्ध कवितायें



कमरछठ परब विशेषांक-छंदबद्ध कवितायें


अमृतध्वनि छंद- विजेन्द्र वर्मा


महतारी मन आज तो, रहिथे सुघर उपास।

बेटा बेटी खुश रहय, माँगय वर जी खास।

माँगय वर जी,खास सबो के,उम्मर बाढ़य।

पोती मारय,मुड़ मा विपदा, झन तो माढ़य।

एक ठउर मा,अउ जुरियाके,जम्मो नारी।

महादेव के,पूजा करथे,सब महतारी।।


घर के बाहिर कोड़ के, सगरी ला दय साज।

गिन गिन पानी डार के, करथे पूजा आज।

करथे पूजा,आज नेंग जी,करथे भारी।

लइका मन के,रक्षा बर तो,हे तैयारी।

हूम धूप अउ,फूल पान ला,सुग्घर धरके।

सुमिरन करथे, महतारी मन,जम्मो घरके।।


पतरी महुआ पान के, भाजी के छै जात।

चुरथे घर-घर मा इहाँ, पसहर के अउ भात।

पसहर के अउ,भात संग मा,दूध दही ला।

महतारी मन,खाय थोरकिन,डार मही ला।

गहूँ चना अउ,महुआ के सन,लाई-लुतरी।

सुघर चघावै,नरियर काँशी,दोना पतरी।।


विजेन्द्र वर्मा

नगरगाँव(धरसीवाँ)

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हरिगीतिका छंद - बोधन राम निषादराज

(कमरछठ मइया)


भादो अँधेरी छठ परब,मइया कमरछठ आत हे।

दाई बहिन सब गाँव मा,मिल जुल सबो जुरियात हे।।

पानी भरै सगरी सबो,मंदिर मुहाटी कोड़ के।

चारो कती काँशी सजा,नरियर चघावै फोड़ के।।


गेहूँ, चना, महुआ, उरिद, लाई चघावै धान के।

पूजा करै सगरी सबो,देवी सहीं जी मान के।।

पसहर बनावै खीर कस,सब दूध भैंसी डार के।

भाजी खवावै संग मा,भुइयाँ कुँवारी खार के।।


उपवास लइका बर सबो,राहय मया बरसाय बर।

माँगय सबो आशीष ला,लम्बा उमर ला पाय बर।।

गेड़ी  घलो  राखय इहाँ, सगरी तरी मा बोर के।

जोरन भरे सूपा सबो,लावय उपसहिन जोर के।।


छंदकार :-

बोधन राम निषादराज

सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)

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: सरसी छन्द- सुखदेव सिंह'अहिलेश्वर'

                       

                       कमरछठ


भगवन्ता भादो के महिना, छठ ॲंधियारी पाख।

परथे पबरित परब कमरछठ, तैं सुध सुरता राख।


बहिनी अउ दाई-माई मन, ए दिन रथें उपास।

सुफलित होथे मॉंग-मनौती, पक्का हे विश्वास।


भुॅंइया कोड़ बनाथें सगरी, बड़ सुग्घर संस्कार।

कॉंशी फूल बबा बिरवा कस, शोभय सगरी पार।


जुरियाथें दस-बीस उपसहिन, ए सगरी के तीर।

सुनथें कथा कहानी गुनथें, धर के मन मा धीर।


सगरी मा जल अरपित करथें, हाथ दुनोठन जोर।

माई ले कुछ अरजी करथें, फर नरियर के फोर।


रहय सुमत सुख सम्मत सरलग, चिरंजीव संतान।

अइसन पावन निरमल हिरदय, नारी नर के खान।


मउहा चना मसूर गहूॅं अउ, लाई के परसाद।

समय हमर संतानन ला तैं, खरचा मा झन लाद।


मउहा पाना के पतरी मा, पसहर के पकवान।

मनखे के यात्रा के हमला, देवावत हे ध्यान।।


रचना - सुखदेव सिंह'अहिलेश्वर'

गोरखपुर कबीरधाम छत्तीसगढ़


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कमरछट(बरवै छंद)


हवै कमरछट पावन,परब हमार।

नारी पूजा करथें, बिधि अनुसार।।


कृष्ण पक्ष भादो के ,छट तिथि खास।

छै ठन कथा-कहानी,भरे हुलास।।


छै विकार दुरिहाथे, रहे उपास।

गौरी के किरपा ले, हे बिंसवास।।


मउहा काड़ी दतवन,कर असनान।

बलदाऊ भगवन के,धरे धियान।।


छोटे -छोटे सगरी,दू ठन कोड़।

छै लोटा जल अरपन, हाथ ल जोड़।।


फूल -पान अउ लाई , भेंट चढ़ाय।

काँसी के मड़वा ला, सुंदर छाय।।


छै ठन भाजी पसहर, चाँउर भोग।

हूम-धुँआ ले जेकर, भागय रोग।।


मउहा पाना पतरी, मा फरहार।

दूध-दही भँइसी के, सान मिंझार।।


हवै उपसहिन मन के,रीत रिवाज।

पावन ये तिहार के, हावय नाज।।


शक्ति स्वरूपा नारी, हवयँ महान।

श्राप ताप सब हरथें, दे वरदान।।


घर परिवार सुखी अउ, हो खुशहाल।

चिरंजीव हो सब के, सुग्घर लाल।।


चोवा राम वर्मा 'बादल'

हथबंद, छत्तीसगढ़

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 आशा देशमुख: *खम्हर छठ पूजा*


छन्नपकैया छंद


छन्नपकैया छन्नपकैया ,होय खम्हर छठ पूजा।

ये उपास जइसन दुनियाँ मा ,नइहे अउ गा दूजा।l1


छन्नपकैया छन्नपकैया ,लावँय महुआ डारा।

सब बहिनी मन पूजा करथें ,गली मुहल्ला पारा।l2


छन्नपकैया छन्नपकैया,अब्बड़ नियम बताये।

नाँगर मा झन जोते राहय, अइसे जिनिस चढ़ाये।l3


छन्नपकैया छन्नपकैया,दोना पतरी लावँय।

दूध दही घी भैंसी के हे ,सब झन इँहा मगावँय।l4



छन्नपकैया छन्नपकैया,लेवँय पसहर चाँउर।

छै जतिया हे मिंझरा भाजी ,बठवा मिरचा चुरपुर।l5


छन्नपकैया छन्नपकैया,दू ठन सगरी कोड़े।

सगरी मा पानी ला डारय ,अउ नरियर ला फोड़े।l6


छन्नपकैया छन्नपकैया,काँसी डारा खोंचँय।

बाँटी भौंरा तको चढावै, सुघ्घर मन मा सोंचँय।l7


छन्नपकैया छन्नपकैया ,भरथें दोना लाई।

विधि विधान से पूजा करथें, सब घर दाई माई।l8


छन्नपकैया छन्नपकैया,सुनथें कथा कहानी।

इंद्र देव  सगरी ला भरथे,बरसावय जी पानी।|9


छन्नपकैया छन्नपकैया,ये उपास हे भारी।

लइका मन बर पूजा करथें,सबके घर महतारी।10।


छन्नपकैया छन्नपकैया ,अब्बड़ सुघ्घर लागै।

दाई मन हा पोता मारैं, सबो दुःख हर भागै।11।



आशा देशमुख

एनटीपीसी जमनीपाली कोरबा

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मनोज वर्मा: कुकुभ छंद


दाई मन उपवास सबो कर, मनो कामना ला पाथे।

दूध दही घी मउॅंहा लाई, सब देके मातु मनाथे।।


पसहर चाउॅंर सॅंग छः भाजी, किसम किसम के सब खाथे।।

कोदो कुटकी नरियर सबला, सगरी मा कोढ़ चढ़ाथे।।


रहे लोग लइका हर सुख मा, पूजा करथे जी दाई।

नॉंगर जोते मा नइ जावय, हलषष्टी के पहुनाई।।


आवत होही छिपिया कहिके, गली खोर देखत झॉंके।

बिंदी चूरी टिकली माहुर, छॉंट छॉंट के जी ताके।।


पहिर ओढ़ दाई सब लागे, सुग्घर नवा नवेली जी।

रानी बन संस्कार धरे तब, जावय सबो सहेली जी।।


बजा गोड़ के घुॅंघरू छम-छम, पइरी ला हे खनकाथे।

दूध दही घी मउॅंहा लाई, ला देके मातु मनाथे।।

दाई मन उपवास सबो कर, मनो कामना ला पाथे.....


मनोज कुमार वर्मा

बरदा लवन बलौदा बाजार

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पोखनलाल जायसवाल:


 दाई-माई सबझन मानँय।परब कमरछठ भादो जानँय।।

रहिके उपास लइका मन बर। सुख माँगय गौरी ले मन भर।।


पार बनाके सगरी ऊप्पर।काँसी-मड़वा छाथें सुग्घर।। 

जल अर्पण कर दू मन आगर।भेंट चढ़ाथे दोना भर-भर।।


फूल पान अउ लाई धरके।माँगँय आशीष पाँव परके।।

चना गहूँ अउ मसूर दाना।भोग चढ़ावँय मउहा-पाना।।


सुनथें सगरी तीर कहानी।रखके सुग्घर मन अउ बानी।।

भेंट चढ़ावँय बांटी-भँवरा।भूख मिटावँय पसहर-कँवरा।।


बेटी बेटा एक जान के। पालँय सबझन एक मान के।।

लइका ल खूब पोता मारँय।दुख-पीरा सब ऊँकर झारँय।।


पोखन लाल जायसवाल

पठारीडीह पलारी

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,*कुकुभ छंद*

पसहर चाउँर मुनगा भाजी, मउहा के पतरी पाना।

सगरी अँगना खोदे हावय,पूजा मा जल्दी आ ना।

दाई बहिनी दीदी जम्मो, मिलके पूजँय छठ दाई।

जुग जुग जीयय मोरे ललना, बिनती सुनले तयँ माई।

लइका के जिनगी बर देखव,दाई मारे हे पोता।

अबड़े हावय नेम धरम जी,चलय नहीं नाँगर जोता।



चित्रा श्रीवास

बिलासपुर

छत्तीसगढ़

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खमर्छठ(सार छंद)


खनर खनर बड़ चूड़ी बाजे,फोरे दाई लाई।

चना गहूँ राहेर भुँजाये ,झड़के बहिनी भाई।


भादो मास खमर्छठ होवय,छठमी तिथि अँधियारी।

लीपे  पोते  घर  अँगना  हे,चुक  ले दिखे दुवारी।


बड़े बिहनिया नाहय खोरय,दातुन मउहा डारा।

हलषष्ठी के करे सुमरनी,मिल  पारा  के पारा।


घर के बाहिर सगरी कोड़े,गिनगिन डारे पानी।

पड़ड़ी काँसी खोंच पार मा,बइठारे छठ रानी।


चुकिया डोंगा बाँटी भँवरा,हे छै जात खिलोना।

हूम धूप अउ फूल पान मा,महके सगरी कोना।


पसहर  चाँउर  भात  बने हे, बने हवे छै भाजी।

लाई नरियर के परसादी,लइका मनबर खाजी।


लइका  मन  के रक्षा खातिर,हे उपास महतारी।

छै ठन कहिनी बैठ सुने सब,करे नेंग बड़ भारी।


खेत  खार  मा नइ तो रेंगे, गाय  दूध  नइ पीये।

महतारी के मया गजब हे,लइका मन बर जीये।


भैंस दूध के भोग लगाये,भरभर मउहा दोना।

करे दया हलषष्ठी  देवी,टारे दुख जर टोना।


पीठ म  पोती   दे बर दाई,पिंवरी  माटी  घोरे |

लइका मनके पाँव ल दाई, सगरी मा धर बोरे।


चिरई बिलई कुकुर अघाये,सबला भोग चढ़ावै।| 

महतारी के  दान  धरम ले,सुख  समृद्धि आवै।


द्वापर युग मा पहिली पूजा,करिन देवकी दाई।

रानी उतरा घलो सुमरके,लइका के सुख पाई।


घँसे पीठ मा महतारी मन,पोती कइथे जेला।

रक्षा कवच बने लइका के,भागे दुःख झमेला।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को(कोरबा)

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चौपाई छंद 


जय हो जय  हलषष्ठी 

माई।

भोग चढ़ाऔ मउहा लाई।।

होबे माता हमर सहाई।।

हाथ जोर के माँगत दाई।।


दूध दही के भोग लगावँव।

फूल पान धर मातु मनावँव।।

सुख में  राहय बेटी बेटा ।

दुख पीरा ला मार सपेटा।।


पसहर चाँउर के परसादी।

खावे मिलके  दादा  दादी।।

रक्षा खातिर पोता मारे।

माता सब्बो दुख ला टारे।।


छय किसम मिले भाजी पाला।

भैसी दूध दही रस वाला।।

पहसर के हम भात ल खाबो।

कमरछठ मैंया ला मनाबो।।


केवरा यदु "मीरा "

राजिम

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Sunday, August 22, 2021

राखी परब विशेष छंदबध्द कवितायें-प्रस्तुति छंद के छ परिवार













राखी परब विशेष छंदबध्द कवितायें-प्रस्तुति छंद के छ परिवार

 सार छन्द गीत-द्वारिका प्रसाद लहरे

(राखी)


रंग बिरंगी राखी धर के,बहिनी मइके आथे।

चंदन टीका माथ लगाके,राखी ला पहिराथे।।


भाई-बहिनी के नाता हा,जग मा होथे पावन।

सदा बरसथे दया मया हा,होथे सुख के सावन।।

रक्षा करके बहिनी मन के,भाई फरज निभाथे।

रंग-बिरंगी राखी धरके,बहिनी मइके आथे।


बँधे रहय ए मया डोर हा,बहिनी के ए आसा।

भाई के मन मा नइ देखय,बहिनी कभू निरासा।।

सुख होवय चाहे दुख होवय,भाई संग निभाथे।।

रंग-बिरंगी राखी धरके,बहिनी मइके आथे।।


अबड़ मयारू बहिनी होथे,जइसे सुख के सागर।

खुशी लुटाथे भाई मन बर,दया मया ला आगर।।

भाई के खुशहाली खातिर,निशदिन दुआ मनाथे।

रंग-बिरंगी राखी धरके,बहिनी मइके आथे।।


द्वारिका प्रसाद लहरे

कवर्धा छत्तीसगढ़


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कुण्डियाँ छन्द  ...लिलेश्वर देवांगन


राखी....


आथे जी हर साल ए,राखी तीज तिहार|

राखी बांधे हाथ मा ,देवय बहन दुलार ||

देवय बहन दुलार, मया बड़ करथे भाई |

राखी मा जी आज,सजे हे बने कलाई ||

मिलथे खुशी अपार,बहन भाई घर जाथे |

राखी एके बार,साल भर मा जी आथे ||



आने आने रंग के,राखी बिकय हजार |

राखी मा हावय छिपे,दया मया के धार ||

दया मया के धार ,सबो  भाई बर आगे |

भइया करय दुलार,बहन के मन हा भागे ||

राखी मा गा हाथ ,सजे  हावय मनमाने |

राखी हे भरमार ,रंग मा  आने आने ||



पावन राखी बॉधके,बहिनी बड़ मुसकाय|

रक्षक बनके हे सदा,भाई  साथ निभाय |

भाई साथ निभाय,सहारा होथे भइया |

लेके आशीर्वाद ,परय जी बहिनी पइया ||

रक्षाबंधन तीज,आय हे  पुन्नी सावन|

मिलथे खुशी अपार,बने हे  राखी पावन ||


लिलेश्वर देवाॉगन

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हेम के कुण्डलिया (राखी)


बहनी राखी ला धरै, मइके आय दुवार।

भैया के मन भात हे, देवत मया दुलार।।

देवत मया दुलार, हाथ मा पहिने राखी।

नाता हे अनमोल, मया के बाँधे साखी।।

दे दव रक्षा वचन, मान लव मोरो कहनी।

लक्ष्मी बनके भाग्य, आय भाई घर बहनी।।

-हेमलाल साहू

छंद साधक, सत्र-1

ग्राम गिधवा, जिला बेमेतरा

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राखी 

सब के माथा टीका लग गे,

मोर माथ हे सुन्ना। 

राखी सबके बँधे कलाई,

मोर हाथ हे उन्ना। 


दाई दीदी ले मिलवादे,

कहाँ बसे मँय जाहूँ। 

रसता जोहत होही दीदी, 

जा राखी बँधवाहूँ। 


दाई के कुछ समझ न आवय,

कइसे करय बहाना। 

दीदी नइ हे ये मुन्ना के, 

गड़बड़ होय बताना। 


तुरते जा के राखी लानिस, 

सँग मा लाय मिठाई।

दीदी तोरो भेजे कहिके, 

बाँधिस हवय कलाई।


रचनाकार- दिलीप कुमार वर्मा 

बलौदाबाजार

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*राखी तिहार के हार्दिक बधाई।*

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राखी धर बहिनी अउ दीदी,आथें जी घर आज।

भइया-भाई ला तिलक सारथें, थाल आरती साज।।


बाँध कलाई रक्षा धागा,मीठा मुँह मा डार।

चुलबुलहिन मन चहक-चहक के, तहाँ जनाथें प्यार।

अबड़ पिरोहिल मातु-पिता के, दू कुल के हें लाज।

राखी धर बहिनी अउ दीदी,आथें जी घर आज।।


लक्ष्मी जइसे बहिनी-दीदी,देथें असिस अँजोर।

सुखी रहैं कभ्भू झन आवै, आँसू आँखी कोर।

ऊँखर सुख बर जिंयत-मरत ले, करना हे सब काज।

राखी धर बहिनी अउ दीदी,आथें जी घर आज।।


रक्षाबंधन के तिहार हा, हे पावन अनमोल।

भाई बहिनी के रिश्ता मा, परै कभू झन झोल।

रीत रिवाज हमर हे सुग्घर, होथे जेमा नाज।

राखी धर बहिनी अउ दीदी,आथें जी घर आज।।


चोवा राम वर्मा 'बादल'

हथबंद, छत्तीसगढ़

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कुण्डलिया- विजेन्द्र वर्मा


राखी


बचपन के तो आज जी,सुरता बहुते आय।

राखी रेशम के बने, सबले जादा भाय।

सबले जादा भाय, हाथ भर पहिरन अतका।

रिकिम रिकिम के लाय, बाँध दय बहिनी जतका।

आनी-बानी खान, भोग राखी मा छप्पन।

होगे हवन जवान, याद आथे अब बचपन।।


बंधन बाँधय हाँस के, बहन निभावय रीत।

हिरदे मा भर प्रीत ला, मन भाई के जीत।

मन भाई के जीत,  प्रीत के बाँधय धागा।

कुमकुम तिलक लगात, सुघर पहिराये पागा।

भाई हे अनमोल, करत हे प्रभु  ला वंदन।

हाँसत अउ हँसवात, आज बाँधत हे बंधन।।


विजेन्द्र वर्मा

नगरगाँव(धरसीवाँ)

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दिनांक____ 20/08/2021

अमृत ध्वनि छंद

                  *राखी*

राखी के पबरित परब,  पुन्नी सावन मास।

भाई बहिनी के परब, दया मया के आस ।।

दया मया के, आस जगाथे, राखी धागा ।

बाँध कलाई, प्रीत बढ़ाथे, तब ये तागा।

माथे चंदन, तिलक लगाथे, दुनिया साखी।

बहिनी बाँधय, भाई ला जी, सुग्घर राखी।।


राखी के बदला सदा , मान मिलय उपहार।

नइ माँगव बाँटा कभू, चाहँव मँय हा प्यार।।

चाहँव मँय हा, प्यार संग दू , लोटा पानी।

रहँव ददा अउ , दाई के बन, बिटिया रानी।

हरंँव उखँर  मँय, अँगना के गा, फुदकत पाखी।

आहूँ मइके, भाई बर धर, मँय हा राखी।।


पद्मा साहू *पर्वणी*

खैरागढ़ जिला राजनांदगांव छत्तीसगढ़

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: कुण्डलिया छंद-संतोष कुमार साहू

(राखी)


(1)

भाई बहन तिहार गा,रक्षाबंधन मान।

अड़बड़ मया दुलार के,सुग्घर एला जान।।

सुग्घर एला जान,खुशी हा झलके भारी।

भाई बहिनी बीच,पटे नित बढ़िया तारी।

भाई के ये बोल,तोर मँय करँव भलाई।

हर दुख आँवव काम,तोर अइसे हँव भाई।।


(2)

मोरे राहत ले बहन,चिंता ला सब छोड़।

राखी के बदला सदा,देहूँ खुशी करोड़।।

देहूँ खुशी करोड़,तोर नित रक्षक बन के।

करहूँ मँय हा तोर,मदद तन मन अउ धन के।

कभ्भू कोनो कष्ट,तीर झन जावय तोरे।

अतका पक्का मान, ध्यान हा रइही मोरे।।


छंदकार-संतोष कुमार साहू

रसेला,जिला-गरियाबंद

छ.ग.

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 रोला छन्द- सुखदेव सिंह'अहिलेश्वर'


         "सूत पोनी के राखी"


बहिनी गइस बजार, बिसाये बर हे राखी।

लेइस छॉंट-निमार, दिखिस सुग्घर जे राखी।

मन मा करिस बिचार, बने फभही दे राखी।

गजबे करिस हिसाब, गिनिस लगही के राखी।


लेइस राखी एक, अपन दुलरू भाई बर।

दिन भर देथे छॉंव, एकठन रुखराई बर।

एक ददा के बोल, शबाशी सहुॅंराई बर।

राखी लेइस एक, जनम जननी दाई बर।


पढ़ लिख पाइस ज्ञान, एकठन विद्यालय बर।

पाइस पद सम्मान, एकठन कार्यालय बर।

पबरित राखी एक , बिसाइस देवालय बर।

महिला के मरजाद, एकठन शौचालय बर।


राखी एक किताब, तरी दाबे बर लेइस।

एक अपन संदूक, उपर बॉंधे बर लेइस।

पबरित राखी एक, जनम भुइयॉं बर लेइस।

एक अपन घर गॉंव, ठिहा छइहॉं बर लेइस।


लोकतंत्र के नॉंव, वोट बर लेइस राखी।

संविधान कानून, कोर्ट बर लेइस राखी।

रंग बिरंगा खूब, फभय नोनी के राखी।

सस्ता सुन्दर पोठ, सूत पोनी के राखी।


-सुखदेव सिंह'अहिलेश्वर'

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*राखी के परब - बोधन राम निषादराज*

(हरिगीतिका छंद)


सावन परब पुन्नी बखत,भादो लगाती मास मा।

बहिनी मया करथे गजब,भइया मिले के आस मा।।

घर के  दुवारी मा  खड़े, रद्दा घलो  जोहत रथे।

भइया बिहनिया गाँव ले,आही सखी मन ला कथे।।


राखी धरे बहिनी सबो,थारी सजाथे साथ मा।

दीया जला अउ आरती,चन्दन लगाथे माथ मा।।

राखी कलाई बाँध के,मुँह मा मिठाई डार के।

बहिनी बने आशा करै,खुशियाँ मिलै संसार के।।


राखी अमर डोरी हवै,पबरित मया के संग मा।

आवय बछर भर मा इही,घोरय मया रस अंग मा।।

भाई बहिन के ये परब, राखी सुघर त्यौहार जी।

भाई मया करथे बहिन, पाथे बने सत्कार जी।।


छंदकार:-

बोधन राम निषादराज

सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)

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राखी 


बिहनाले टिपटॉप गोलू तइयार हे। 

जानत हे आज तो जी राखी के तिहार हे। 


काली ओ बाजार जाके उपहार लाये हे। 

कोनो झन देख पावय झोला म लुकाये हे। 

दीदी ल चकित करे, बड़ा हुशियार हे।


आरती सजाये दीदी पीढ़वा मढ़ाय हे। 

आजा भाई राखी बाँधु गोलू ल बलाय हे। 

मेवा मिष्ठान राखे  थारी म बहार हे। 


कुमकुम गुलाल के टीका ल लगाय हे। 

आरती उतार दीदी राखी पहिराय हे। 

मुँह मीठा कर दीदी, देवत दुलार हे। 


गोलू जे लुकाये राहय झटकुन लान दय। 

दीदी हो चकित देखे,  खुशी हर जान दय। 

भाई बहिनी के मया अपरम पार हे।


रचनाकार- दिलीप कुमार वर्मा 

बलौदाबाजार

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अमृतध्वनि छंद- संगीता वर्मा

राखी


चंदन कुमकुम आरती, धरे हाथ मा थार।

बहिनी राखी बाँध के, पहिरावत हे हार।।

पहिरावत हे,हार गला मा,मया लुटावत।

भाई के कर,सुघर आरती,रीत निभावत।

भाई बहिनी,सुघर मनावय, रक्षाबंधन।

पूजन वंदन,करत लगावय, कुमकुम चंदन।।


संगीता वर्मा

अवधपुरी भिलाई

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भोजली दाई(मनहरण घनाक्षरी)


माई खोली म माढ़े हे,भोजली दाई बाढ़े हे

ठिहा ठउर मगन हे,बने पाग नेत हे।

जस सेवा चलत हे, पवन म  हलत हे,

खुशी छाये सबो तीर,नाँचे घर खेत हे।

सावन अँजोरी पाख,आये दिन हवै खास,

चढ़े भोजली म धजा,लाली कारी सेत हे।

खेती अउ किसानी बर,बने घाम पानी बर

भोजली मनाये मिल,आशीष माँ देत हे।


भोजली दाई ह बढ़ै,लहर लहर करै,

जुरै सब बहिनी हे,सावन के मास मा।

रेशम के डोरी धर,अक्षत ग रोली धर,

बहिनी ह आये हवै,भइया के पास मा।

फुगड़ी खेलत हवै,झूलना झूलत हवै,

बाँहि डार नाचत हे,जुरे दिन खास मा।

दया मया बोवत हे, मंगल ग होवत हे,

सावन अँजोरी उड़ै,मया ह अगास मा।


अन्न धन भरे दाई,दुख पीरा हरे दाई,

भोजली के मान गौन,होवै गाँव गाँव मा।

दिखे दाई हरियर,चढ़े मेवा नरियर,

धुँवा उड़े धूप के जी ,भोजली के ठाँव मा।

मुचमुच मुसकाये,टुकनी म शोभा पाये,

गाँव भर जस गावै,जुरे बर छाँव मा।

राखी के बिहान दिन,भोजली सरोये मिल,

बदे मीत मितानी ग,भोजली के नाँव मा।


राखी के पिंयार म जी,भोजली तिहार म जी,

नाचत हे खेती बाड़ी,नाचत हे धान जी।

भुइँया के जागे भाग,भोजली के भाये राग,

सबो खूँट खुशी छाये,टरै दुख बान जी।

राखी छठ तीजा पोरा,सुख के हरे जी जोरा,

हमर गुमान हरे,बेटी माई मान जी।

मया भाई बहिनी के,नोहे कोनो कहिनी के,

कान खोंच भोजली ला,बनाले ले मितान जी।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को(कोरबा)

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राखी


बड़े बिहनिया झटकुन दीदी,राखी धरके आबे ना।

हाल-चाल अउ दया-मया ला, ॲंचरा मा गॅंठियाबे ना।


धरे रबे बहिनी ॲंचरा मा,ननपन के जम्मो सुरता।

माते जब वो पटकिक पटका ,फट जावय तुनहा कुरता।।

भौंरा बिल्लस खेल खेल मा,बड़ होवन धक्का मुक्की।

ददा शिकायत सुनके आवय, तॅंय भागस मारत बुक्की।।

मया अतिक भाई बहिनी के, कते डहर अब पाबे वो।

बड़े बिहिनियाॅं झटकुन दीदी, राखी धरके आबे वो।।


खई-खजानी जब-जब बाॅंटे,मन मा राहय बड़ खटका।

तोर बहुत अउ मोर ह कमती,बड़ होवन झटकिक- झटका।।

एक दूसरा के बस्ता ले,शीश कलम ला बड़ टापन।

पता लगे अउ झगरा माते,ददा करे तब उद्यापन।।

झगड़ा पाछू मेल जोल ला,दुनिया म कहां पाबे वो।।

बड़े बिहिनियाॅं झटकुन दीदी,राखी धरके आबे वो।।


उमर अठारा मा करत रहिन,जबरन तोर सगाई ला।

ओ दिन तॅंय अंतस मा लाने,खप्पर वाले माई ला।।

सबक सिखाये अपने घर मा,मान रखे बर नारी के।

ददा बबा तब ऑंख उघारिन,समझिन दरद सुवारी के।।

रौद्र रूप वाले बहिनी तॅंय,सबके दुख बिसराबे ना।

बड़े बिहिनियाॅं झटकुन दीदी,राखी धरके आबे ना।।


महेंद्र कुमार बघेल

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छन्नपकैया छंद ----आशा देशमुख


राखी

छन्नपकैया छन्नपकैया ,किसम किसम के राखी।
भाई बहिनी मन चहकत हे ,जइसे चहके पाखी।1।

छन्नपकैया छन्नपकैया,भैया देखे रस्ता।
अबड़ मोल राखी के डोरी,झन  जानँव गा सस्ता।2।

छन्नपकैया छन्नपकैया,मन पहुना लुलवाथे।
ननपन के सब मान मनौवा, अब्बड़ सुरता आथे।3।

छन्नपकैया छन्नपकैया,भठरी मन सब आवैं।
पहली के सब रीत चलागन,अब तो सबो नँदावैं।4।

छन्नपकैया छन्नपकैया ,मँय बहिनी मति भोरी।
भाई बहिनी के तिहार मा, बगरे मया अँजोरी।5।

छन्नपकैया छन्नपकैया,घर घर बने मिठाई।
माथ सजे हे मंगल टीका, राखी सजे कलाई।6।

छन्नपकैया छन्नपकैया,कहुँ हो जाये देरी।
निकल निकल के बहिनी देखे,रस्ता घेरी बेरी।7।

आशा देशमुख
एनटीपीसी जमनीपाली कोरबा

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राखी-बरवै छंद

राखी धरके आहूँ, तोरे द्वार।
भैया मोला देबे, मया दुलार।।

जब रेशम के डोरी, बँधही हाथ।
सुख समृद्धि आही अउ, उँचही माथ।

राखी रक्षा करही, बन आधार।
करौं सदा भगवन ले, इही पुकार।

झन छूटे एको दिन, बँधे गठान।
दया मया बरसाबे, देबे मान।।

हाँस हाँस के करबे, गुरतुर गोठ।
नता बहिन भाई के, होही पोठ।।

धन दौलत नइ माँगौं, ना कुछु दान।
बोलत रहिबे भैया, मीठ जुबान।।

राखी तीजा पोरा, के सुन शोर।
आँखी आघू झुलथे, मइके मोर।।

सरग बरोबर लगथे, सुख के छाँव।
जनम भूमि ला झन मैं, कभू भुलाँव।।

लइकापन के सुरता, आथे रोज।
रखे हवँव घर गाँव ल, मन मा बोज।।

कोठा कोला कुरिया, अँगना द्वार।
जुड़े हवै घर बन सँग, मोर पियार।।

पले बढ़े हँव ते सब, नइ बिसराय।
देखे बर रहिरहि के, जिया ललाय।

मोरो अँगना आबे, भैया मोर।
जनम जनम झन टूटे, लामे डोर।।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को, कोरबा(छग)
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Sunday, August 15, 2021

आजादी के 75वीं वर्षगाँठ म छंद बद्ध कवितायें- छंद के छ परिवार


 

आजादी के 75वीं वर्षगाँठ म छंद बद्ध कवितायें- छंद के छ परिवार


सार छंद  -- महेन्द्र देवांगन *माटी*

*झंडा ला फहराबो*


देश हमर हे सबले प्यारा , येकर मान बढ़ाबो ।

कभू झुकन नइ देन तिरंगा, झंडा ला फहराबो ।।


भेदभाव ला छोड़ के संगी, सबझन आघू बढ़बो ।

हिन्दू मुस्लिम सिक्ख इसाई, मिल के हम सब लड़बो ।।


अपन देश के रक्षा खातिर, बाजी सबो लगाबो ।

कभू झुकन नइ देन तिरंगा, झंडा ला फहराबो ।।


रानी लक्ष्मीबाई आइस, अपन रूप देखाइस ।

गोरा मन ला मार काट के, वोला मजा चखाइस ।।


हिलगे सब अंग्रेजी सत्ता, कइसे हमन भुलाबो

कभू झुकन नइ देन तिरंगा,  झंडा ला फहराबो ।।


आन बान अउ शान तिरंगा, लहर लहर लहराबो ।

दुनियाँ भर के सबो जगा मा, येकर यश फइलाबो ।।


भारत भुइयाँ के माटी ला, माथे तिलक लगाबो ।

कभू झुकन नइ देन तिरंगा, झंडा ला फहराबो ।।


छंदकार

महेन्द्र देवांगन *माटी*

(प्रेषक- सुपुत्री प्रिया देवांगन *प्रियू*

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: आल्हा छंद- विजेन्द्र वर्मा


आजादी के मोल समझ के,अपने मन ला खुदे टटोल।

लोकतंत्र के रक्षा खातिर,आवव अपने बुध ला खोल।।


जनम भूमि हा सब ले बड़का,होथे येला तुम सब मान।

येकर रक्षा खातिर संगी,चाहे जावय अब तो जान।।


लहू बहे हे पुरखा मन के,अमर रहय ओकर बलिदान।

भारत माँ के सेवा बर जी,जेन गँवाये अपने जान।।


जात पात सब छोड़ छाड़ के,मनखे बन जव एक समान।

देश तभे आगू बढ़ही जी,मनखे बनहू तभे महान।।


अपने बर तो सब जीथे सुन, देश धरम बर जीना सीख।

दया मया ले काम करव अब, कोनों माँगव झन अब भीख।।


राजनीति जे करथे बिक्कट,खाथे भक्कम रिश्वत रोज।

सेवा खाली झूठ लबारी,बन के गिधवा करथे भोज।।


पद पइसा के भूखे हाबय,जेन भरत अपने घर बार।

सरम करम सब बेच खात हे, अइसन मनखे ला धिक्कार।।


अगुवा बनके रेंगव संगी,लावव अब तो नवा बिहान।

तोर मोर के चक्कर छोड़व,तभे हमर बनही पहिचान।।


विजेन्द्र वर्मा

नगरगाँव(धरसीवाँ)

जिला-रायपुर

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जीतेन्द्र वर्मा खैरझिटिया: स्वतंत्रता दिवस अमर रहे,,,


बलिदानी (सार छंद)


कहाँ चिता के आग बुझा हे,हवै कहाँ आजादी।

भुलागेन बलिदानी मन ला,बनके अवसरवादी।


बैरी अँचरा खींचत हावै,सिसकै भारत माता।

देश  धरम  बर  मया उरकगे,ठट्ठा होगे नाता।

महतारी के आन बान बर,कोन ह झेले गोली।

कोन  लगाये  माथ  मातु के,बंदन चंदन रोली।

छाती कोन ठठाके ठाढ़े,काँपे देख फसादी----।

भुलागेन बलिदानी मन ला,बनके अवसरवादी।


अपन  देश मा भारत माता,होगे हवै अकेल्ला।

हे मतंग मनखे स्वारथ मा,घूमत हावय छेल्ला।

मुड़ी हिमालय के नवगेहे,सागर हा मइलागे।

हवा  बिदेसी महुरा घोरे, दया मया अइलागे।

देश प्रेम ले दुरिहावत हे,भारत के आबादी----।

भुलागेन बलिदानी मन ला,बनके अवसरवादी।


सोन चिरइयाँ अउ बेंड़ी मा,जकड़त जावत हावै।

अपने  मन  सब  बैरी  होगे,कोन  भला  छोड़ावै।

हाँस हाँस के करत हवै सब,ये भुँइया के चारी।

देख  हाल  बलिदानी  मनके,बरसे  नैना धारी।

पर के बुध मा काम करे के,होगे हें सब आदी--।

भुलागेन  बलिदानी मन ला,बनके अवसरवादी।


बार बार बम बारुद बरसे,दहले दाई कोरा।

लड़त  भिड़त हे भाई भाई,बैरी डारे डोरा।

डाह  द्वेष  के  आगी  भभके ,माते  मारा   मारी।

अपन पूत ला घलो बरज नइ,पावत हे महतारी।

बाहिर बाबू भाई रोवै,घर मा दाई दादी--------।

भुलागेन बलिदानी मन ला,बनके अवसरवादी।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को(कोरबा)

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कुकुभ छंद - राजेश कुमार निषाद

।।आजादी परब मनाबो।।

चलव चलव सब दीदी भइया,आजादी परब मनाबो।

तीन रंग के धजा तिरंगा,मिलके हम सब फहराबो।।


गली गली मा योद्धा मन के,करत घूमबो जयकारा।

धरे हाथ मा धजा तिरंगा,लगही सुघ्घर बड़ प्यारा।।


आजादी पाए बर कतको,वीर बनिन हे बलिदानी।

कइसे हमन भुलाबो संगी,वोकर मन के कुर्बानी।।


अंग्रेजन ले मुक्त करे बर,पुरखा मन खाइन गोली।

हाँसत झुलगे जब फाँसी मा,कतको वीरों की टोली।।


गोली से अब हमन खेलबो,फाँसी मा भी चढ़ जाबो।

जब तक साँस हमर हे तन मा,बइरी ला मार भगाबो।।


जेन देश हा आँख उठाही,वोला चुर चुर कर जाबो।

कतको आही चाहे विपदा,मन मा हम नइ घबराबो।।


चलव चलव सब दीदी भइया, आजादी परब मनाबो।

तीन रंग के धजा तिरंगा,मिलके हम सब फहराबो।।


छंदकार:- राजेश कुमार निषाद ग्राम चपरीद रायपुर (छ. ग.)

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*आजादी के परब*

हरिगीतिका छंद - बोधन राम निषादराज


चल आज लहराबो बने,मिलके तिरंगा शान मा।

बइरी सबो देखत रहै,चलबो इहाँ अभिमान मा।।

आँखी उठाके देखही,बइरी कहूँ अब देश ला।

दे के जवाबी खेल मा,हम जीत जाबो रेश ला।।


स्वाधीनता के हे परब,खाबो मिठाई आज जी।

अब तो खुशी मा झूम के,करबो बने हम काज जी।।

सुग्घर हमर  जनतंत्र हे,सुग्घर  हमर ये देश जी।

अब डर नहीं कखरो इहाँ,चिटको नहीं अब क्लेश जी।।


झंडा परब महिना इही,आवव मनाबो आज जी।

बलिदान होइस वीर मन,पाए हवन तब राज जी।।

करबो इँखर सम्मान ला,दे के सलामी हाथ मा।

करबो सुरक्षा देश के,रहिबो सबो जी साथ मा।।


छंदकार:-

बोधन राम निषादराज"विनायक"

सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)

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 मनोज वर्मा: सरसी छंद

तीन रंग ले सजे तिरंगा, भारत मॉं के शान।

केसरिया सादा अउ हरियर, सुग्घर हे पहिचान।।


केसरिया हर साहस के सॅंग, हरे चिन्ह बलिदान।

सादा सत्य शान्ति निरमलता, के जी आय निशान।।


रंग तीसरा हे समृद्धि के, हरियर हा धन धान।

भाईचारा के  संदेश ल दय, बढ़थे गौरव ज्ञान।।

तीन रंग ले सजे तिरंगा, भारत मॉं के शान.....


कहे चक्र ये अशोक के जी, चलना दिन हे रात।

कारज नित करना हे बढ़िया, घूम बतावय बात।।


चिन्ह सबो चोबीस तीलि हर, मनखे गुन के आय।

करम धरम निज सुग्घर करले, पावन बात बताय।।


लहर लहर लहराय तिरंगा, करे हिन्द जय गान।

केसरिया सादा अउ हरियर, सुग्घर हे पहिचान......

तीन रंग ले सजे तिरंगा, भारत मॉं के शान......


मनोज कुमार वर्मा

बरदा लवन बलौदा बाजार

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 आल्हा छंद - अनिल सलाम 

स्वतंत्रता दिवस


नमन देश के वीर सिपाही, जुग जुग सुरता रइही शान। 

आज खुशी मा झूमत हावन, ये सब हे तुम्हरे बलिदान।।


आज तिरंगा लहरावव जी, बड़े खुशी के दिन हे आज।

जन गण मन के गान करव जी, पाये हावन अपन सुराज।। 


समझे ला परही सबला गा, बड़ मुश्किल मा मिले सुराज।

जात पात के भेद मिटाबो, मिलके किरिया खाबो आज।।


रोजगार अउ शिक्षा बर जी, आव उठाबो हम आवाज।

नइ लड़ना हे जात पात बर, सुमता ला बाँधव जी आज।।


राजनीति हावी झन होवय, इहाँ रहय जनता के राज।

नहीं गुलामी झेले परही, जागव जागव सबो समाज।।


छंद साधक सत्र - 11

अनिल सलाम

गाँव - नयापारा उरैया

तहसील - नरहरपुर

जिला - कांकेर (छत्तीसगढ़)

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लीलेश्वर देवांगन,बेमेतरा: रूपमाला  छन्द


तिरंगा...

देश  के   लहरा  तिरंगा , आज  सीमा पार |

दाग गोली  आज फौजी,  चोर   बैरी   मार ||

देख दुश्मन भग जही जी,फौज ला बलवान |

हिन्द के जयकार कर के, देश  के रख मान||


शान भारत के    तिरंगा,   खूब हे पहिचान |

देश खातिर जंग लड़ के,वीर मन दिस जान||

वीर के गाथा सुनव   जी, बड़ छिपे हे राज |

गीत   वंदेमातरम  के , जय  बुला ले आज।।


लिलेश्वर देवांगन

सत्र १०

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हेम के त्रिभंगी छंद 

हे भारत माता, भाग्य विधाता, तोर शरण मा, माथ नवे।

झंडा फहराबो, जश्न मनाबो, शुभ दिन आये, आज हवे।।

मन राखे चंगा, बन बजरंगा, वीर सिपाही, मोर रहें।

भारत जयकारा, गूँजय नारा, भारतीय जय, जगत कहें।।

-हेमलाल साहू

छंद साधक, सत्र-1

ग्राम गिधवा, जिला बेमेतरा

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उल्लाल छंद

भारत माता बोलथे , बेटा सुनलव बात ला |

भाईचारा  मा रहव , छोड़व झगरा जात ला || 

              अशोक जायसवाल

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छन्द - *कुण्डलिया छन्द*

विषय - *तिरंगा*


शान तिरंगा देश के,  सुख समृद्धि के संग।

केसरिया सादा हरा, मन मा भरँय उमंग।।

मन मा भरँय उमंग, हरा हरियाली लाथे।

केसरिया के रंग, त्याग  के भाव जगाथे ।

*पद्मा* सादा रंग, बहाथे सुख के गंगा ।

नीला चक्र अशोक, सजे हे शान तिरंगा।।


गाँधी भगत सुभाष अउ, मंगल पांडे राज ।

खुदीराम सुखदेव मन, करिन नेक हे काज।। 

करिन नेक हे काज, ब्रिटिश ला मार भगाइन।

अपन प्राण ला त्याग , देश के मान बचाइन।

छेड़िन हें संग्राम, क्रांति के बनके आँधी।

आजादी के वीर, चंद्रशेखर अउ गाँधी।।


आजादी के ये परब,  भाईचारा संग।

चलो मनाबो आज सब , छोड़ दुश्मनी जंग।।

छोड़ दुश्मनी जंग , करौ सुरता कुर्बानी ।

झंडा थामे हाथ , अमर होगे बलिदानी ।

*पद्मा* जोड़य हाथ ,आज बन के फरियादी ।

समझव कीमत मान, मिलिस कइसे आजादी।।


पद्मा साहू *पर्वणी* 

खैरागढ़ जिला राजनांदगांव छत्तीसगढ़

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*विधा - दोहा छंद*

 भाषा- छत्तीसगढ़ी

*।। शीर्षक- जलक्षत्री के देशभक्ति दोहा ।।*


भारत देश महान हे, बसे इही मा जान।

करनी अइसन हँव करत, बढ़य देश के मान।।१।।

मान बढ़य आदर मिलय, निसदिन हो बढ़वार।

धजा तिरंगा के हमर, होवय जय जयकार।।२।।

मातृभूमि बर जान ला, कर देहूँ न्यौछार।

आँच न आवन दँव कभू , बइरी देहूँ मार।।३।।

जीना मरना मोर हो, राष्ट्रभक्ति के साथ।

मान देश के दँव बढ़ा, दुनिया टेके माथ।।४।।

देश भक्ति ले हे नहीं, बढ़ के कोनो काम।

जान लुटाथे देश बर, होथे ओखर नाम।।५।।

सरहद मा दिन रात भर, डटे हवँय जाँबाज।

उँखरे खातिर चैन से, सूतत हावन आज।।६।।

करथे रक्षा देश के, उही सपूत कहाय।

मातृभूमि के मान बर, शीष घलो कटवाय।।७।।

सीमा खडे़ जवान हे, बाजी जान लगाय।

भारत माँ के मान ला, सगरो जग बगराय।।८।।

रक्षा भारत के करँय, सीमा खड़े जवान।

मर के घलो मरय नहीं, अमर होय बलिदान।।९।।

केसरिया सादा हरा, हरे तिरंगा शान।

गूँजय वंदे मातरम, भारत देश महान।।१०।।


*छंदकार- अशोक धीवर "जलक्षत्री"*

ग्राम- तुलसी (तिल्दा-नेवरा)

जिला- रायपुर (छत्तीसगढ़)

सचलभास क्र.-९३००७१६७४०

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आशा देशमुख: कुकुभ छंद


आज़ादी के मोल


कतको झन मन जान गवाइन ,तभे मिलिस  आज़ादी हा।

सिल्क मखमली आगी पहिरिस, शोभा पाइस खादी हा।।1


बंधुआ कस बड़ दुख भोगे हें,अपने खेती बारी मा।

ये अँगेजी सत्ता सब के ,सुख ला काटे आरी मा।।2


सोन चिरैया के पाँखी ला, दुष्ट शिकारी मन नोंचे।

हमर देश के कोहिनूर ला, अपन मुकुट मा हे खोंचे।।3


सोच गुलामी के पीड़ा ला ,आँसू के बोहय धारी।

दाना दाना बर तरसाइन ,अंग्रेजन अत्याचारी।।4


आज़ादी के अब्बड़ कीमत ,सस्ता येला झन जानौं।

लहू सींच के बाग बचाये,गुण शहीद मन के मानौं।।5


आज परब आज़ादी के हे, आवव जश्न मनावौ जी।

भारत माता के पँउरी मा ,माथा अपन नवावौ जी।6


शान तिरंगा मान तिरंगा ,लहर लहर लहरावौ जी।

भारत भुइयां सबले बढ़िया, अपन भाग सँहरावौ जी।7



आशा देशमुख

एनटीपीसी जमनीपाली कोरबा

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: *कुकुभ छंद*  *देश के सैनिक*


माथ नवावँव सैनिक मन ला, अपन देश बर लड़ जाथे।

मातृभूमि के रक्षा खातिर, सीना मा गोली खाथे।।


ये धरती के प्यारा बेटा, भारत के शान बढ़ाथे।

आँच कभू नइ आवन देवे, खुद के वो प्राण चघाथे।। 

जब जब आथे घर के सुरता, आँखी आँसू बोहाथे।

मातृभूमि के रक्षा खातिर, सीना मा गोली खाथे।।



देखत रहिथे रोज सुवारी, मोर पिया कब घर आही।

हँसी ठिठोली करबो मिल के, सुख दुख के बात बताही।।

मया मोह के बंधन तज के, घर ले दुरिहा हो जाथे।

मातृभूमि के रक्षा खातिर, सीना मा गोली खाथे।।


डटे रथे सीमा में सैनिक, आये आँधी या पानी।

अपन वचन ला पूरा करथे, निकले चाहे जिनगानी।।

खुद बलिदानी हो जाथे अउ, माटी के कर्ज चुकाथे।।

मातृभूमि के रक्षा खातिर, सीना मा गोली खाथे।।


प्रिया देवांगन *प्रियू*

*छंद सत्र- 13

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दोहा गीत(हमर तिरंगा)


लहर लहर लहरात हे,हमर तिरंगा आज।

इही हमर बर जान ए,इही  हमर ए लाज।

हाँसत  हे  मुस्कात  हे,जंगल  झाड़ी देख।

नँदिया झरना गात हे,बदलत हावय लेख।

जब्बर  छाती  तान  के, हवे  वीर  तैनात।

संसो  कहाँ  सुबे   हवे, नइहे  संसो   रात।

महतारी के लाल सब,मगन करे मिल काज।

लहर------------------------------ आज।


उत्तर  दक्षिण देख ले,पूरब पश्चिम झाँक।

भारत भुँइया ए हरे,कम झन तैंहर आँक।

गावय गाथा ला पवन,सूरज सँग मा चाँद।

उगे सुमत  के  हे फसल,नइहे बइरी काँद।

का  का  मैं  बतियाँव गा,हवै सोनहा राज।

लहर------------------------------लाज।


तीन रंग के हे ध्वजा, हरा गाजरी स्वेत।

जय हो भारत भारती,नाम सबो हे लेत।

कोटि कोटि परनाम हे,सरग बरोबर देस।

रहिथे सब मनखे इँहा, भेदभाव ला लेस।

जनम  धरे  हौं मैं इहाँ,हावय मोला नाज।

लहर-----------------------------लाज।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

कोरबा,छत्तीसगढ़

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देशभक्ति

एक दिन के देश भक्ति (सरसी छन्द)-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


देशभक्ति चौदह के जागे, सोलह के छँट जाय।

पंद्रह तारिक के दिन बस सब, जय भारत चिल्लाय।


आय अगस्त महीना मा जब, आजादी के बेर।

देश भक्ति के गीत बजे बड़, गाँव शहर सब मेर।

लइका संग सियान मगन हे, झंडा हाथ उठाय।

पंद्रह तारिक के दिन बस सब, जय भारत चिल्लाय।


रँगे बसंती रंग म कोनो, कोनो हरा सफेद।

गावै हाथ तिरंगा थामे, भुला एक दिन भेद।

तीन रंग मा सजे तिरंगा, लहर लहर लहराय।

पंद्रह तारिक के दिन बस सब, जय भारत चिल्लाय।


ये दिन आये सबझन मनला, बलिदानी मन याद।

गूँजय लाल बहादुर गाँधी, भगत सुभाष अजाद।

देशभक्ति के भाव सबे दिन, अन्तस् रहे समाय।

पंद्रह तारिक के दिन बस सब, जय भारत चिल्लाय।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

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2, अपन देस(शक्ति छंद)


पुजारी  बनौं मैं अपन देस के।

अहं जात भाँखा सबे लेस के।

करौं बंदना नित करौं आरती।

बसे मोर मन मा सदा भारती।


पसर मा धरे फूल अउ हार मा।

दरस बर खड़े मैं हवौं द्वार मा।

बँधाये  मया मीत डोरी  रहे।

सबो खूँट बगरे अँजोरी रहे।


बसे बस मया हा जिया भीतरी।

रहौं  तेल  बनके  दिया भीतरी।

इहाँ हे सबे झन अलग भेस के।

तभो  हे  घरो घर बिना बेंस के।

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चुनर ला करौं रंग धानी सहीं।

सजाके बनावौं ग रानी सहीं।

किसानी करौं अउ सियानी करौं।

अपन  देस  ला  मैं गियानी करौं।


वतन बर मरौं अउ वतन ला गढ़ौ।

करत  मात  सेवा  सदा  मैं  बढ़ौ।

फिकर नइ करौं अपन क्लेस के।

वतन बर बनौं घोड़वा रेस के---।

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जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"

बाल्को(कोरबा)

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3, कइसे जीत होही(सार छंद)


हमर देश मा भरे पड़े हे,कतको पाकिस्तानी।

जे मन चाहै ये माटी हा,होवै चानी चानी----।


देश प्रेम चिटको नइ जानै,करै बैर गद्दारी।

भाई चारा दया मया ला,काटै धरके आरी।

झगरा झंझट मार काट के,खोजै रोज बहाना।

महतारी  ले  मया करै नइ,देवै रहि रहि ताना।

पहिली ये मन ला समझावव,लात हाथ के बानी।

हमर देश मा भरे पड़े हे,कतको पाकिस्तानी--।


राजनीति  के  खेल निराला,खेलै  जइसे  पासा।

अपन सुवारथ बर बन नेता,काटै कतको आसा।

मातृभूमि के मोल न जानै,मानै सब कुछ गद्दी।

मनखे  मनके मन मा बोथै,जात पात के लद्दी।

फौज  फटाका  धरै फालतू,करै मौज मनमानी।

हमर देश मा भरे पड़े हे,कतको पाकिस्तानी--।


तमगा  ताकत  तोप  देख  के,काँपै  बैरी  डर मा।

फेर बढ़े हे भाव उँखर बड़,देख विभीषण घर मा।

घर मा  ये  मन  जात  पात  के,रोज मतावै गैरी।

ताकत हावय हाल देख के,चील असन अउ बैरी।

हाथ  मिलाके  बैरी  मन ले,बारे  घर  बन छानी।

हमर देश मा भरे पड़े हे,कतको पाकिस्तानी----।


खावय ये माटी के उपजे,गावय गुण परदेशी।

कटघेरा मा डार वतन ला,खुदे लड़त हे पेशी।

अँचरा फाड़य महतारी के,खंजर गोभय छाती।

मारय काटय घर वाले ला,पर ला भेजय पाती।

पलय बढ़य झन ये माटी मा,अइसन दुश्मन जानी।

हमर देश मा भरे पड़े हे,कतको पाकिस्तानी-----।


घर के बइला नाश करत हे, हरहा होके खेती।

हारे हन इतिहास झाँक लौ,इँखरे मन के सेती।

अपन देश के भेद खोल के,ताकत करथे आधा।

जीत भला  तब कइसे होही,घर के मनखे बाधा।

पहिली पहटावय ये मन ला,माँग सके झन पानी।

हमर देश मा भरे पड़े हे,कतको पाकिस्तानी----।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को(कोरबा) छग

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अंकुर के दोहे... 


आजादी बर देश के, पुरखा देइन जान ।

आइस तभे सुराज हा, राखव येकर मान ।।

राखव मान शहीद के, सदा करव सम्मान ।

रक्षा खातिर देश के, वीर गँवाइन प्राण ।।

आजादी बर देश के, दे दिस खुद के जान ।

अइसन वीर शहीद के, आव करन सम्मान ।।

भाई -भाई झन लड़व, बनही बिगड़े काम ।

सुमता मा बँध के रहव, चलही जग मा नाम ।।

झन कर तँय बिरथा करम, होही अपजस तोर ।

करबे सुग्घर काम ता, उड़ही अब्बड़ सोर ।।

सुम्मत के दीया जला, झन कर पर अपमान ।

गांधी जी के बात ले, मत रह तँय अनजान ।।


         ओमप्रकाश साहू "अंकुर "

          सुरगी, राजनांदगाँव

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अमर अटल बनहूँ फौजी (हेम के कुकुम्भ छंद)


कहिथे नोनी सुन दाई ला, अमर अटल बनहूँ फौजी।

अपन देश के रक्षा खातिर, करहूँ मँय हर मन मौजी।।


मोरो रग रग मा भारत हे, बनहूँ मँय हर मर्दानी।

सब दुश्मन ले लोहा लेहूँ, बन मँय झाँसी के रानी।।


जय भारत जय भाग्य विधाता, रोजे मँय गावँव गाथा।

हे भारत भुइँया महतारी, अपन लगालँव तोला माथा।।


बइरी मन के काल बनव मँय, घुसे नहीं सीमा द्वारी।

खड़े तान के सीना रइहूँ, सौ सौ झन बर मँय भारी।।


काली दुर्गा रणचंडी बन, बइरी ला मार भगाहूँ।

भारत के वीर तिरंगा ला, सदा सदा मँय लहराहूँ।।


अटल खड़े रइहूँ पहाड़ जस, अपन देश के मँय सीमा।

देख देख बइरी मन भागय, ताकत रखहूँ जस भीमा।।


दुश्मन कतको मार भगाहूँ, रहूँ एकदम मँय चंगा।

मर जाहूँ ता पहिरा देबे, मोला तँय कफन तिरंगा।।


जय भारत जय भारतीय के, बोले दुनिया जयकारा।

अपन वीर बलिदानी मन के, गूँजय सबो डहर नारा।।


-हेमलाल साहू

छंद साधक सत्र-01

ग्राम गिधवा, जिला बेमेतरा(छ. ग.)

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सार छंद - हमर तिरंगा


तीन रंग के हमर तिरंगा, लहर लहर लहराही।

डोल वीरता अमन चैन के, सुग्घर गीत सुनाही।।

रंग केसरी सादा हरियर, जन गण मन ला भाथे।

नील चक्र मा धम्म ध्वजा हर, फहर फहर फहराथे।। 


जन्म भूमि मा गौतम ज्ञानी, ध्यान ज्ञान ला पागे।

पंचशील अउ अष्टांगिक ले, जग ला राह दिखागे।।

मूलनिवासी भारत वासी, वंशी नाग कहाथें।।

जल जंगल माटी के सेवक, दुनिया देश बचाथें।।


बोय धान गहुॅ दलहन तिलहन, खेत किसान कमाये। 

भारत माता के अॅचरा मा, सोन सोन बरसाये।।

रिमझिम रिमझिम सावन बरसय, बादर कारी कारी। 

हाथ तिरंगा झंडा धरके, कुलकय सब नर नारी।।


जनम धरिंन हें वीर शिवाजी, गौरव राष्ट्र बढ़ागें।

भारत के रक्षा बर बेटा, अपने प्राण गवागें।।

बोस भगत आजाद राज गुरु, अड़बड़ लड़िन लड़ाई।

हाॅसत हाॅसत फाॅसी चढ़गिन, सत्य इहीं हे भाई।।


देश भारती लोग भारती, झंडा ला फहराओ

देश अजादी के उत्सव ला, जुरमिल सबो मनाओ।।

बलिदानी सब वीरन मन के, चरनन फूल चढ़ाबो।

धरा धाम के रक्षा करबो, बैरी मार गिराबो।।

रामकली कारे बालको 

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कुण्डलिया छंद - श्लेष चन्द्राकर

(1)

आजादी के दिन हरय, सब ले बड़े तिहार।

चलव मनाबो हम बने, हो जावव तइयार।।

हो जावव तइयार, तिरंगा ला फहराबो।

राष्ट्र-गान ला नीक, एक सुर मा सब गाबो।।

मिलत हमन ला आज, सबो सुविधा बुनियादी।

भूलव झन ये गोठ, फलत सुग्घर आजादी।।

(2)

गावव वंदेमातरम, राहव झन खामोश।

सुरता वीरन ला करव, भरव सबो मा जोश।।

भरव सबो मा जोश, सुनाके अमर कहानी।

मातृभूमि बर लोग, दिहिन कइसे कुर्बानी।।

स्वतंत्रता के पर्व, सबो झन बने मनावव।

देशभक्ति के गीत, आज सब मिलके गावव।। 


छंदकार - श्लेष चन्द्राकर

पता - खैरा बाड़ा, गुड़रु पारा, वार्ड नं.-27,

महासमुंद (छत्तीसगढ़)

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[8/15, 6:12 PM] विजेन्द्र: कुण्डलिया छंद- विजेन्द्र वर्मा


भारत माँ के वीर मन, करिन देश आजाद।

हाँसय छाती तान के, गर मा फंदा लाद।

गर मा फंदा लाद, अपन देइन बलिदानी।

लानिन नवा बिहान, देश बर दे कुर्बानी।

कतका दुख ला भोग, लिखिन हे नवा इबारत।

माथ नँवाके आज, कहव जय हो जय भारत।।


चंदन जइसे हे हमर, माटी बड़ ममहात।

येकर रक्षा मा लगे, हवय वीर  तैनात।

हवय वीर तैनात, रात दिन पहरा देथे।

बइरी काहय भाग, नींछ खड़री ला लेथे।

माटी बर दय जान, वीर सैनिक ला वंदन।

महर-महर ममहात, हमर माटी हे चंदन।।


विजेन्द्र वर्मा

नगरगाँव (धरसीवाँ)

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दोहा चौपाई छंद-द्वारिका प्रसाद लहरे


भाई-चारा एकता,भारत के पहिचान।

मिलके रहिथन संग मा,कोनों नोहन आन।।


भारत भुँइयाँ के गुन गावौं।

होत बिहनिया माथ नवावौं।।

ये माटी मा जनम बितावौं।

सात जनम बर येला पावौं।।


तीन रंग के धजा तिरंगा।

देखत मा मन होवय चंगा।।

हमर एकता भाई-चारा।

रहिथन मिलके झारा-झारा।।


ऊँचा भारत देश के,राहय जग मा भाल।

सबो बढ़ाबो मान ला,हम भारत के लाल।।


सरग बरोबर भारत भुँइयाँ।

झरना सागर लागय पँइयाँ।।

तरिया नदिया पाँव पखारे।

खड़े हिमालय बाँह पसारे।।


अब्बड़ सोहे हवय पहाड़ी।

हरियर-हरियय जंगल झाड़ी।।

फूल बाग के पहिरे साँटी।

खेत-खार के महके माटी।।


पावन भारत देश के,कतका करँव बखान।

सरग बरोबर लागथे,सुख के इहाँ खदान।।


जगत गुरू भारत कहिलावै।

सोन चिरइयाँ जग दुलरावै।।

अजर-अमर भारत के गाथा।

जुग-जुग टेंकय जग हा माथा।।


आनी-बानी गहना गोंटी।

भरे धान के सुघ्घर ओंटी।

जीव-जगत ला पार लगावै।

भारत भुँइयाँ सब ला भावै।।


वंदन भारत देश ला,जग मा हवय महान।

नमन् हवय सब वीर ला,जे होगें बलिदान।।


छंदकार

द्वारिका प्रसाद लहरे

बायपास रोड़ कवर्धा 

छत्तीसगढ़

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आल्हा छंद: आजाद


मिलिस हवय आजादी जब ले,

हम सब होगे हन आजाद। 

कहाँ मानथन कखरो कहना, 

करत हवन सब ला बरबाद। 


का सपना देखिन पुरखा मन, 

जेखर बर आजादी लाय। 

माटी खातिर पगला बन के, 

लड़त-लड़त सब जान गँवाय। 


स्वारथ मा सब याद करत हन,

घड़ियाली आँसू बोहाय। 

भाषण झाड़त रहिथन दिनभर,

दिन निकलत सबकुछ बिसराय। 


सरग बरोबर सपना देखे, 

नरक सहीं करदे हन हाल। 

सबो डहर कचरा फइले हे, 

भारत माँ दिखथे कंगाल। 


हिजगा पारी मा सब छोड़न, 

हमला का करना हे बोल। 

अवसर पाके कतको झन मन, 

करत हवँय जी भारी झोल। 


अपन पाँव मा मार कुल्हाड़ी, 

बोहावत हन आँसू धार।

बछर पछत्तर तको बीत गे, 

नइ होइस हे बेड़ा पार। 


चला मनाबो परब अजादी, 

कर लेथन थोरिक चल याद। 

तहाँ रोज कस ढर्रा चलही, 

काबर की हम हन आजाद। 


रचनाकार- दिलीप कुमार वर्मा 

बलौदाबाजार

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कवि बादल: *जय भारत माता*

(चौपाई छंद)

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जय जय हो जय भारत माता । जय किसान जय भाग्य विधाता।।

 धजा तिरंगा के जय जय हो। नजर परे बैरी मा भय हो।।


 जय शहीद बलिदानी मन के। हिंद निवासी जम्मों झन के।।

 अजर अमर हे भारत माता। तहीं हमर अच भाग्य विधाता।।


 शांति दूत जग जाहिर गाँधी। जे सुराज के लाइस आँधी।।

 बाल पाल अउ लाल जवाहर। लौह पुरुष सब हवयँ उजागर ।।


जय सुभाष जे फौज बनाइच। आजादी के अलख जगाइच।।

भगत सिंग बिस्मिल गुरु अफजल। गोरा मन के टोरिन नसबल।।


 ऊँचा माथ चंद्रशेखर के। गौरव गाथा हे घर घर के।।

 रानी लक्ष्मी झाँसी वाली। दुर्गावती लड़िस जस काली ।।


 कतको झन हावयँ बलिदानी। उनकर कोनो नइये सानी।। 

महराणा वो चेतक वाला। जेन अपन नइ छोड़िच भाला ।।


 वीर शिवाजी सुरता आथे। रोम-रोम पुलकित हो जाथे।।

 देवभूमि माँ हे कल्यानी। पबरित गंगा जमुना पानी ।।


सेवा मा सब हावय अरपन। भारतवासी के  तन मन  धन।।  

 रहिबे छाहित भारत माता ।सरग सहीं सब सुख के दाता ।।


चोवा राम वर्मा 'बादल'

हथबंद, छत्तीसगढ़

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दोहे: *देशभक्ति*🇮🇳🇮🇳


रक्षा करबो देश के, नइ आवन दन आँच।

बैरी बन ललकारहीं, ओला देबो खाँच।

   

आजादी के रूख ला, रखबो खूब सम्हाल। 

अपन लहू ला छींचबो, नइ मुरझावै डाल। 


रक्षा खातिर देश के, भेदभाव सब टार।

सुरता करव शहीद के, देखव आँख उघार।

     

करँय गरब माँ बाप हा, होवय पूत शहीद।

अइसन बेटा ला नमन, करय लड़े बर जीद।

  

फाँसी चढ़ेव देश बर, राज भगत सुखदेव।

करँव नमन तुहँला सदा, माँ के लाज रखेव। 

    

कतको इहाँ तिहार हे, राहय कोई वार। 

सब्बो ले सुग्घर हवै, ये राष्ट्रीय तिहार।

     

जाति-धरम ला टार दव, भाई-भाई आन। 

मिट जाबो हम देश बर, भारत के संतान।

      

बोस भगत मन देश बर, होगें हवँय शहीद। 

तभे खुशी से मान थन, दीवाली अउ ईद।


भारत माँ के पूत मैं, मोरे ले उम्मीद।

दस-दस झन ला मारके, होगे हवँव शहीद।

   

माँग उजर गय सैकड़ों, सुन्ना होगय गोद।

बिजय मिलिस गा अंत मा, छागय बड़ आमोद।

   

      

भेजइया:-धन्नूलाल भास्कर 'मुंगेलिहा' 

              लोरमी, जि.मुंगेली (छ.ग.) 

                साधक सत्र  - 15

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दोहा छंद-संतोष कुमार साहू


पन्द्रह अगस्त तिहार ला,मानन बढ़िया आज।

भारत माँ के जोर से,जय कर लन आवाज।।


इही दिवस के आज गा,होयन हम आजाद।

बलिदानी मन के सबो,सुग्घर कर लन याद।।


आजादी के मान ला,सदा रखन सब पास।

भूलावन झन हम कभू,मानन एला खास।।


भारत माँ हा अब  कभू,अउ झन होय गुलाम।

राहन सबो सचेत हम,सबके राहय काम।।


छंदकार-संतोष कुमार साहू

रसेला,जिला-गरियाबंद, छ.ग.

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विधा-दोहा छंद

शीर्षक-देशभक्ति


हमर तिरंगा  शान हे, रहय अमर  ये छाप।

तन मन ले सेवा करव, ये भुइँया के आप।।


महू  पूत  हँव  हिंद  के, बघवा  मोला जान।

सिधवा बर सिधवा हरँव, बैरी बर तन हान।।


देशभक्ति ले तँय बता, का हे बड़का सार।

देह समरपन  मोर  हे, माटी मया अपार।।


स्वतंत्रता  बर देश के, मिटगे कतको आन।

राजगुरू शेखर खुदी, देदिस अपन परान।।


ये माटी  के पूत  तँय, करजा  अपन उतार।

कर ले सेवा  देश के, जिनगी  दिन हे चार।।


नागेश कश्यप.

कुंवागाँव, मुंगेली छ.ग.।।

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विष्नुपद छंद


आजादी ला पाये हावन, बड़ हम मुश्किल मा।

हवय अभी ले चिंगारी बड़, भभकत हे दिल मा।।


कतको कुर्बानी दे हन जब, ये दिन आइस हे।

लहर लहर ये  हमर तिरंगा, तब लहराइस हे।।


नमन वीर सैनिक मन ला अउ, नमन तोर भुइँया।

केसरिया सादा अउ हरियर, अँचरा हे मइया।।


भुइँया के रक्षा खातिर जें, देथे प्रान इहाँ।

अइसन वीर सपूत ल दे सब, बड़ सम्मान इहाँ।।


दाई के सुग्घर अँचरा मा, अब झन दाग लगे।

कोनो ठगिया बनके छलिया, अब झन आज ठगे।।


देशभक्ति झन दिखय एकदिन, सब दिन हो दिल मा।

मान करव ये मिले हवय दिन, हम ला मुश्किल मा।।


ज्ञानुदास मानिकपुरी

चंदेनी- कवर्धा

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 दोहे: *देशभक्ति*🇮🇳🇮🇳


रक्षा करबो देश के, नइ आवन दन आँच।

बैरी बन ललकारहीं, ओला देबो खाँच।

   

आजादी के पेड़ ला, रखबो खूब सम्हाल। 

अपन लहू ला छींचबो, नइ मुरझावै डाल। 


रक्षा खातिर देश के, भेदभाव सब टार।

सुरता करव शहीद के, देखव आँख उघार।

     

करँय गरब माँ बाप हा, होवय पूत शहीद।

अइसन बेटा ला नमन, करय लड़े बर जीद।

  

फाँसी चढ़ेव देश बर, राज भगत सुखदेव।

करँव नमन तुहँला सदा, माँ के लाज रखेव। 

    

कतको इहाँ तिहार हे, राहय कोई वार। 

सब्बो ले सुग्घर हवै, ये राष्ट्रीय तिहार।

     

जाति-धरम ला टार दव, भाई-भाई आन। 

मिट जाबो हम देश बर, भारत के संतान।

      

बोस भगत मन देश बर, होगें हवँय शहीद। 

तभे खुशी से मान थन, दीवाली अउ ईद।


भारत माँ के पूत मैं, मोरे ले उम्मीद।

दस-दस झन ला मारके, होगे हवँव शहीद।

   

माँग उजर गय सैकड़ों, सुन्ना होगय गोद।

बिजय मिलिस गा अंत मा, छागय बड़ आमोद।

   

      जय हिन्द 🇮🇳🙏

भेजइया:-धन्नूलाल भास्कर 'मुंगेलिहा' 

              लोरमी, जि.मुंगेली (छ.ग.) 

                साधक सत्र  - 15

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*देश भक्ति दोहा*


सीमा मा जम्मो खड़े, सैनिक छाती तान।

भारत के रक्षा करँय, दे के अपन परान।।


भारत के सरहद खड़े, सेना गजब महान।

विपदा आवय देश मा, लड़ के राखँय मान।।


देश भक्त बलिदान दे, करवाइन आजाद।

मोर सोनहा देश हा, झन होवय बरबाद।।


आसमान लहरात हे, ध्वजा तिरंगा आज।

चाहे जावय जान हा, एखर राखव लाज।।


राजगुरू आजाद अउ, बिस्मिल उल्ला खान।

भारत खातिर हाँस के, करिन अपन बलिदान।।


जाति धरम बर झन लड़व, जुरमिल राहव एक।

फूट होय झन देश मा, काम करव सब नेक।।


देश सुरक्षा मा घलो, होवय सबके ध्यान।

अब तियार राहय सदा, हर घर एक जवान।।


त्याग करव अइसन सबो, काम देश केआय।

भारत खातिर लड़ भिड़व, भले जान हा जाय।।


जानव समझव अब सबो, आजादी के हाल।

कतको उजड़े माँग हा, कखरो खो गे लाल।।




भागवत प्रसाद चन्द्राकर

ग्राम-डमरु

बलौदाबाजार

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- दोहा छन्द

शीर्षक-देशभक्ति


कोनो बैरी हा कहूँ, हम ला आँख दिखाय।

किरिया हाबय देश के, जगत देख नइ पाय।।


माटी हे चंदन असन, सोना जइसन धान।

दाई अइसन देश के, बने रखव सब ध्यान।।


इंकलाब के घोष मा, भारी राहय जोश।

सुन गोरा सरकार के, उड़ जावय गा होश।। 


भगत राजगुरु बोस के, बारे मा सुन बात।

देश प्रेम के भावना, रग रग मा भर जात।।


देश भक्त सुखदेव अउ, वीर भगत आजाद।

तुँहर वीरता ला सदा, करही देश ह याद।।


🙏नारायण प्रसाद साहू

     आगेसरा (अरकार)

     जिला-दुर्ग(छत्तीसगढ़)

     छन्द साधक सत्र-15

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मनोज वर्मा: दोहा छंद 


लहर लहर लहरात हे, बने तिरंगा शान।

तोरे सेवा बर खड़े, सैनिक सीना तान।।


सुघर तोर मॉं भारती, हावय वीर सपूत।

बैरी मन बर काल बन, लागे यम के दूत।।


सरदी गरमी हर रहय, या होवय बरसात।

पानी हवा जमीन मा, पहरा दय दिन रात।।


तन मन ला अरपन करें, देशभक्ति मा सान।

तोरे सेवा बर खड़े, सैनिक सीना तान।।

लहर लहर लहरात हे, भारत मॉं के मान....


सींच लहू तन के अपन, सुतगे अॅंचरा छॉंव।

होगे बलिदानी अमर, लेके तोरे नॉंव।।


गात अजादी गीत ला, नाचत गावत झूम।

चढ़गे फॉंसी लाल सब, रस्सी ला तब चूम।।


स्वतंत्रता के राग मा, चढ़े जवानी जीद।

नमन करव सब वीर ला, होगे जेन शहीद।।


जेखर यश के गीत ला, गावत हे भगवान।  

लहर लहर लहरात हे, बने तिरंगा शान।

तोरे सेवा बर खड़े, सैनिक सीना तान......

    


मनोज कुमार वर्मा

बरदा लवन बलौदा बाजार

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: कुण्डलिया छंद


आजादी


गावव गाथा गान ला, सब मनखे मन आज।

महतारी के लाल मन, करलव सुग्घर काज।

करलव सुग्घर काज, मिले हे अब आजादी।

स्वारथ ला अब छोड़, बनव झन अवसरवादी।

देश धरम बर लोग, एकजुट अब हो जावव।

छाती तानें आज, देश के गाथा गावव।।


संगीता वर्मा तरंगिणी

भिलाई, अवधपुरी

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ए धरती ला हे नमन, जहां जनम हम लेन।

जेकर धुर्रा खेल के, अतका जड़ बाढ़ेन ।।

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अंग्रेजी शासन चलय, सब झन बड़ दुख पाय।

सत्याग्रह के जोर ले, गांधी बबा भगाय ।।

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बोस तिलक आजाद अउ, भगत गुरू सुखदेव।

कुर्बानी रद्दा चले, नाव अमर कर लेव।।

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ऊंचा झण्डा हा  रहय, बाढ़य एकर शान।

आजादी के पर्व मा, झूमे लइका सियान ।।

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देशभक्ति मन मा रहय, राखव सेवा भाव।

रक्षा खातिर देश के,  जीवन अपन लगाव ।।

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आजादी बर देश के, देदिन कतको प्राण।

कीमत एकर सोच लव, राखव एकर मान।।



आशुतोष साहू

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कुण्डलिया- अजय "अमृतांशु"


आजादी के रंग मा, रंगे हवय परिवेश।

रंग बसंती छाय हे, झूमत हावय देश।।

झूमत हावय देश, भगतसिंह सुरता आथे।

खुदीराम के त्याग, जोश मन मा भर जाथे।।

सुन गाँधी के गोठ, देश मा छागे खादी।

कतको दिन बलिदान, पाय बर ये आजादी।।


आजादी के ये परब, जुरमिल सबो मनाव।

धजा तिरंगा शान ले, लहर लहर लहराव।

लहर लहर लहराव, मान येकर सब कर लव। 

देश प्रेम के गोठ, सबो गठिया के धर लव। 

बढ़ही निसदिन शान, पहिरही जब सब खादी। 

बड़ मुसकुल ले जान, मिले हावय आजादी।


अजय साहू"अमृतांशु"

भाटापारा(छत्तीसगढ़)

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 दोहा-


जनम धरे हन हम जिहाँ, करबो येकर मान।

आवय कोनो आँच झन, जावय चाहे जान।।


धन्य भाग हावय हमर, हमन  हिन्द संतान।

हिलमिल के रहिथन इहाँ, रखबो येकर मान।।


जनम दुबारा जब मिलय, जनमँव भारत देश।

सबो  धरम  के  मेल  हे,  सुघ्घर  हे  परिवेश।।


लहू  बूँद  तन  के  कहूँ, आय  देश  के  काम।

जीवन   न्योछावर  करँव,  ये  माटी  के  नाम।।


द्रोपती साहू "सरसिज"

महासमुन्द, छत्तीसगढ़

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Wednesday, August 11, 2021

सार छंद गीत-द्वारिका प्रसाद लहरे"मौज"


 


सार छंद गीत-द्वारिका प्रसाद लहरे"मौज"


ममता करुणा के तँय मूरत,मोर मिनी माता ओ।

अघुवा बनके जोरे राहस,जन-जन ले नाता ओ।।


सतनामी के शान तहीं हा,महके जस फुलवारी।

सुमता समता लाके तँय हा,टारे जग अँधियारी।।

दुखिया मन के दु:ख हरइया,सुख के तँय दाता ओ।

ममता करुणा के तँय मूरत,मोर मिनी माता ओ।।

नारी मन के मान बढ़ाये,पहली संसद बनके।

सत्य राह मा निसदिन तँय हा,चले रहे ओ तनके।।

दीन हीन सब मनखे मनके,तँय भाग बिधाता ओ।

ममता करुणा के तँय मूरत,मोर मिनी माता ओ।।


तोर सहीं महिमा वाले अब,नइ हें कोनो दूजा।

जब तक चाँद सुरुज हा रइही,जुग-जुग होही पूजा।।

भाई-चारा अमर एकता,सब मा उद्गाता ओ।।

ममता करुणा के तँय मूरत,मोर मिनी माता ओ।।


 द्वारिका प्रसाद लहरे"मौज"

व्याख्याता/शा.उ.मा.वि.इंदौरी

बायपास रोड कवर्धा

कुकुभ छंद* - ममता मयी गुरु माता मिनी माता के पावन सुरता


 

*कुकुभ छंद* - ममता मयी गुरु माता  मिनी माता के पावन सुरता


*हे ममता मयी मिनी माता, जब सुरता तोरे आही|* 

 *आँखी ले तर तर तर दाई, आँसू मोरे बोहाही||* 


जिनगी भर बड़ टोरे तन ला, लड़े लड़ाई तँय भारी|

तभे हमन बन पाये हावन, छोटे मोटे अधिकारी||


बांध बनाये हिम्मत देके, छत्तीसगढ़हिन महतारी|

बाढ़िस हावय फसल सियारी, भागिस दुख के अँधियारी||


 *महिला मन बर रसदा बनगे, शिक्षा पाइन हितकारी|* *

 *तोर दया ले पढ़े लिखे बर, आगे बाढ़िन हे नारी||** 


तन बर बस्तर मन भर खाना, घर घर परचम लहराये|

हक अधिकार दिलाके दाई, भाग सबो के सहँराये||


जोर लगा के भेलाईमा, कलखाना तँय खुलवाये|

छत्तीसगढ़िया बेटा मन ला, रोजगार तँय दिलवाये||


संसद मा तँय खड़े रहे माँ, ममता राखे गुन भारी|

बिलख बिलख के रोवत हावन, सुरता मारे हुदकारी|| *


 *भेद मिटाये मनखे तन के, करे जगत ले रखवारी|** 

 *हाथ धरे तँय सुमता लाये, शोषित दुखिया सँगवारी||*


  छंद साधक

अश्वनी कोसरे

कवर्धा कबीरधाम

लावणी छंद


 

लावणी छंद 


अट्ठारह सौ छियानबे के, बात बतावत हँव तोला।

पड़े रहय जब अकाल भारी, बेच डरिन सब घर कोला।।


तीन बछर के अकाल बैरी, कमर सबो के टोर डरे।

दाना दाना बर सब तरसे, लोगन भूखन प्यास मरे।।


पंडरिया के गाँव सगोना, मालगुजार बुधारी जी।

खाय कमाये निकल पड़े तब, संग पत्नि बुधियारी जी।।


चाउँरमति अउ पारबती, देवमती तीनों बेटी।

छोट छोट लइका ला राखे, मुड़ी उठाये दुख पेटी।।


चले कमाये असम राज मा, सब्बो बैठ रेलगाड़ी।

बीच सफर मा दू बेटी के, देख जुड़ागे तन नाड़ी।।


भूख प्यास मा दू बेटी ला, परगे जिनगी ले खोना।

दिल मा पथरा बाँध रखे जी, कोंन सुनय ममता रोना।।


मातु पिता के गोद बचिस तब, देवमती बेटी इक झन।

कोंख येखरे जनम धरिस हे, मीनाक्षी अनमोल रतन।।


आगे चलके जेन कहाइस, ममता मयी मिनी माता।

दीन दुखी के बनिस मसीहा, छतीसगढ़ से रख नाता।।


सन उन्निस सौ तेरह के अउ, तेरह तारीख पहाती।

लेइस जनम मिनी माता जी, दहन होलिका के राती।।


असम राज के नवागांव मा, जनम धरे माटी पावन।

धन्य बुधारीदास पिता हो, माता बुधयारिन दामन।।


दग दग काया कंचन जइसे, चमके माँ सूरत भोली।

जग उद्धार करे बर आये, ममता भरके माँ ओली।।


जन्म ग्राम सलना ला छोड़े, जमुनामुख मा आ बसगे।

पाय प्राथमिक तक शिक्षा माँ, देश प्रेम तन मन रसगे।।


सतनामी समाज छत्तीसगढ़, अगमदास गुरु गोसाई।

रामत सामत करत पहुँचगे, असम राज के परछाई।।


निसंतान गुरु जी हा राहय, चिंता उत्तराधिकारी।

ब्याह करे बर मीनाक्षी से, बात करिस पिता बुधारी।।


कहे बुधारीदास संत जी, अहो भाग गुरु  हमरे हे।

बनहि बहू गुरु कुल मीनाक्षी, ओखर किस्मत सँवरे हे।।


दू तारीख जुलाई महिना,सन उन्निस सौ तीस रहे।

धूमधाम से शादी होगे, जन जन जय जयकार कहे।।


राजनीति मा अगुवा गुरु जी, काम करे जन प्रिय भावन।

लोकसभा मा सांसद बनगे, सन उन्निस सौ जी बावन।।


अगम दास सतलोकी होगे, तरस गये माँ सुख अंगद।

सन तिरुपन के उपचुनाव मा, बनिस मिनीमाता सांसद।।


मध्यप्रदेश अविभाजित के, सांसद पहिली महिला ये।

ज्ञानवान माँ प्रखर प्रवक्ता, विचार जेखर गहिला ये।।


तीन बार माँ लगातार जी, करिस सुशोभित खुद आसन।

बाँध रखे राहय मुट्ठी मा, सबो प्रशासन अउ शासन।।


सन उन्निस सौ इक्यासी मा, हसदो बाँध बनाये बर।

माँ प्रस्ताव रखिस संसद मा, भूख अकाल मिटाये बर।।


संसद ले मंजूरी ला के, बनगे माँ भाग्य विधाता।

नामकरण ला मिलके राखिन, बांगो बाँध मिनीमाता।।


माँगिस कानून एक अइसे, सत्रह अप्रैल तिरुपन के।

अश्पृश्यता करे निवारण, दुःख हरे माँ जन जन के।।


आठ मई उन्निस सौ पचपन, करिस राष्ट्रपति मंजूरी।

एक जून सन पचपन मा जी, सपना होइस माँ पूरी।।


बड़े बड़े नेता मन से तो, माँ के राहय पहिचानी।

रहिस इंदिरा खास करीबी, राखे खुदे स्वाभिमानी।।


श्रमिक हित मा कदम बढ़ाइस, देख इँखर जी करलाई।

छत्तीसगढ़ मजदूर संघ के, गठन करिस  तब भेलाई।।


कांड करिस गुरुवाइन डबरी, बन सवर्ण मन उन्मादी।

ला कटघरा खड़ा कर दिस माँ, तब सुनौ इंदिरा गाँधी।।


जिनगी ला अर्पण कर दिस माँ, जन जग दीन भलाई मा।

सत उपदेश धरे अँचरा गुरु, घासीदास दुहाई मा।।


काल बरोबर बनके आइस, ग्यारह अगस्त बहत्तर जी।

छोड़ सबो ला माता चल दिस, रोये धरती अम्बर जी।।


लौट चले आजा ओ माता, जन जन आज पुकारत हे।

गजानंद बन दुखिया बेटा, श्रद्धा सुमन चढ़ावत हे।।


इंजी. गजानंद पात्रे 'सत्यबोध'

बिलासपुर (छत्तीसगढ़)

मो. नं.-  8889747888


Sunday, August 8, 2021

टोक्यो ओलम्पिक -चोवाराम वर्मा"बादल"


 

टोक्यो ओलम्पिक -चोवाराम वर्मा"बादल"

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मेडल आगे मेडल आगे, जग मा नीरज छागे।

नील गगन मा धजा तिरंगा, फहर फहर फहरागे।।


झूमत हावयँ खुशी मनावत, भारत के नर नारी।

दसों दिशा मा होइस संगी, हमरो आज चिन्हारी।

गोल्डन युग हा खेल जगत के, देखौ जी लकठागे।

मेडल आगे मेडल आगे, जग मा नीरज छागे।।


भारत माता के सपूत मन, हरदम मान बढ़ाथें।

शक्ति स्वरूपा इहाँ के बेटी, जब्बर दम देखाथें।

सिंधु चनू बाक्सर लवलीना, फुलवा कस ममहागे।

मेडल आगे मेडल आगे, जग मा नीरज छागे।।


कुश्ती मा जी रवि दहिया अउ, वो पुनिया बजरंगी।

हाकी मा तो पुरुष टीम हा, नइ होवन दिच तंगी।

खेल देख महिला हाकी के,जिवरा हमर जुड़ागे।

मेडल आगे मेडल आगे, जग मा नीरज छागे।।


ओलम्पिक मा खेलिन तिन ला,हावय कोटि बधाई।

हार जीत तो होते रइथे, हिम्मत हे सुखदाई।

अब्बड़ तुँहर जुझारू पन हा, जन जन के मन भागे।

मेडल आगे मेडल आगे, जग मा नीरज छागे।।


चोवा राम वर्मा 'बादल'

हथबंद, छत्तीसगढ़