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Tuesday, March 26, 2024

होली विशेषांक-छंदबद्ध कविता



 होली विशेषांक-छंदबद्ध कविता

 बरवै-छंद 🌹🌹


🙏गाँव-गाँव मा होली 🙏

 

गाँव-गाँव मा होली,गाथें फाग।

पावन फागुन महिना,छेंड़य राग।।


डहकी मांदर झुमका, बाजे झाँझ।

उड़त बुड़त ले खेलयँ, होगे साँझ।।


बने-बने मन दिखथें, कबरा चोर ।

गली सड़क सब भितिहा,रंगे खोर।।


देख बेवड़ा कतको, रेंगत झूम।

कइझन माते खुरचत,नइ दँय हूम।।


देखत लइका बाई, आँसू ढार।

जेन शराबी वो घर, बंठाधार।।


बरा सुहाँरी भजिया, कसके खाय।

कतको झन उछरत हें,जी पटियाय।।


धरे गुलाली पिंवरा, हरियर लाल।

नाक मुंँहू अउ मुन्डी, रचगे गाल।।


झूठ लबारी बारव, होले धाक।

पाप द्वेष अउ इरषा,होवय खाक।।


बढ़िया खावव गावव,सुघ्घर फाग।

छेड़ बसंती "बाबू", फगुवा राग ।।


कमलेश प्रसाद शर्माबाबू

 कटंगी गंडई

जिला केसीजी 

9977533375

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 कोन्हों पीये मंद हें, कोन्हों खाये भंग।

चाल ढाल मस्ती भरे, सम्हलत नइ हे अंग।।

 

दिखै चेहरा बेंदरा, पोताये हे रंग।

नाचत गावत फाग सब, माते हे हुड़दंग।।


हमर बुराई हा सबो ,जरै होलिका संग ।

ऊँच नीच के भेद बिन, लगै सबो ला रंग।।


जाति पाँति ला त्याग के, सुघ्घर परब मनाव।

बँधै प्रेम के डोर हा, अइसन रंग लगाव।।


 प्रेम रंग बरसै सदा,जिनगी रहै अँजोर।

देत बधाई भागवत, बिनती हे कर जोर।।


भागवत प्रसाद

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: कुण्डलिया छंद- 

होली खेलव मिल सबो


होली खेलव मिल सबो, रंग मया के घोर।

द्वेष भावना छोड़ दौ, बाँधव सुमता डोर।।

बाँधव सुमता डोर, रहव रख भाईचारा।

जाति-धर्म के नाम, करौ झन तुम बँटवारा।।

राहव मिल जुल मीत, कहौ नित मीठा बोली।

भरौ मया के रंग, सबो मिल खेलव होली।।


होवय झन बदनाम जी, दया मया के रीत।

होली के त्योहार मा, भर लौ मन मा मीत।।

भर लौ मन मा मीत, इही ये असल खजाना।

परंपरा के मान, सबो ला हवय निभाना।।

पुरखा के संस्कार, कभू झन संस्कृति खोवय।

गजानंद ये पर्व, हमर मनभावन होवय।।


इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़)

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         (हाइकू घनाक्षरी)


पिंवरा फुले आरसी मुनगा ग  हय सफेद।

 होली ठिठोली म संगवारी संग   होंगे ग भेंट।।

डोंगरगढ़ म हो गे अइसे गजब   मयारू होली।

होंगे सफेद कमीज लाल जैसे चले ग गोली।।

कहत बीबी  निकलत न रंग  न छोड़ें लाली।

कोन अतका हिम्मत वाली दुहू  कस के गाली

                                       - बेदराम पटेल

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 शक्ति छंद------ फाग


मजा देख लेवत, हवै फाग के ।

जुड़े पोठ हमरो, मया ताग के ।।

लगे फूल मउहा, सबो डार मा ।

बने देख झूमत, हवय खार मा ।।


गली खोर माते, सबो के मजा ।

बने आज कसके, नँगारा बजा ।।

लगादे बने रंग,  ला गाल मा ।

चले फाग के गीत, अब ताल मा ।।


मुकेश उइके "मयारू"

ग्राम- चेपा, पाली कोरबा(छ.ग.)

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: होरी गीत

दुर्गा शंकर इजारदार के मनहरण घनाक्षरी छंद

शीर्षक 

(1) ब्रज म होरी

गोरी गोरी राधा रानी, रंग धरे आनी बानी ,

कन्हैया ला खोजत हे ,गोपी सखी संग हे ।

करिया ला करिया मा , अउ रंग फरिया मा ,

पोते बर करिया ला ,मन मा उमंग हे।

कदम के रुख तरी , खोजे गली खोल धरी ,

कन्हैया तो मिले नहीं ,राधा रानी तंग हे ।

कहत हे हाथ जोड़ ,आजा राधे जिद छोड़ ,

तोर बिना होरी के ये ,जीवन बेरंग हे ।।

(2)होरी के मउसम

परसा हा फूले हावै, आमा हर मौरे हावै ,

गुन गुन भौंरा करे, पीये जैसे भंग हे ।

कोयली हा गात हावै ,जिया हरसात हावै,

सरसों हा फूल के तो , झूमत मतंग हे ।

फागुन के रंग में तो ,सबो झन मात गे हे ,

सबो रंग मिल के तो ,होगे एक रंग हे ।

चार तेन्दू लोरी डारे ,मन ला तो मोही डारे,

मया अउ पिरित मा , भीगे अंग अंग हे ।


(3)अइसन होली खेलव

दया मया के तो डोरी ,बाँध खेलौ सब होरी ,

जात पाँत बैर भाव ,मन से निकालव गा ।

हरा पीला नीला लाल ,पोत डारौ मुँह गाल ,

छोटे बड़े सब संग ,मिल के मनालव गा ।

झन करौ हुड़दंग,छोड़ देवा दारू भंग ,

दूरिहा के काल झन, तीर मा बुलावव गा ।

कहत हँ हाथ जोड़ ,परत हँ पाँव तोर ,

सबो से तो नाता ला जी ,बने निभावव गा ।


(4) गजब होगे


गोरी के तो लाल गाल ,जब मैं रंगे गुलाल,

गुल गुल भजिया तो ,दिखत कमाल हे ,

गोरी के तो गाल देख ,सब होगे साव चेत ,

आरा पारा सबो अंग ,मचत बवाल हे ,

होली के बहाना कर ,गोरी के तो छूए गाल ,

पूछत हावय टूरा ,आगू का खयाल हे ,

गोरी मुसकात भारी ,मन मन देत गारी ,

मारे चटकन गोरी ,आगू टुरा गाल हे ।।

दुर्गाशंकर

********

 होरी परब - लावणी छंद 


हवय आज जब फागुन महिना, खुशी मनावँन मन मा।

मया रंग ले रंगभरन जी, घोरन मदरस तन मा।।1


सबला मीत बनावन भइया, जीयन ए जिनगानी ला ।

बरजन उधम मचइया मनला, टारन दुख के घानी ला ।।2


भाँग खाय कस अब जिनगी हे, चस्का छोड़न गोली के|

मया दया ले सबला सींचन, रंग रचावत होली के  ।।3


दारू गाँजा मा फदके ले, सना जथे 

सुग्घर तन हा|

नशा पान मा अब का उलझन, पना जथे समरत मन हा ||4


चेतन मन ला काबर कोनो, अवचेतन कर डारत हन| 

अपने मद मा झुमरत काबर, कइसन फेशन पारत हन||5

छंदकार-

अश्वनी कोसरे रहँगिया

कवर्धा कबीरधाम

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: *होली रंग बहार*


पहिली रतिहा होलिका, पाथे जलके काल।

फिर फागुन के पूर्णिमा, होथे पर्व विशाल।।

दिखथें सबके चेहरा, रंगे रंग गुलाल।

मिलथें जम्मों रंग हा, हाथ माथ अउ गाल।1।


पीला नीला अउ हरा, किसिम किसिम के अंग।

रंगव फगुआ रंग मा, मनखे मनखे संग।।

होली के त्यौहार हा, सुग्घर संस्कृति अंग।

दुख पीरा ला टार के, मन मा भरय उमंग।2।


आनी बानी रंग के, सबो डहर भरमार।

गाँव शहर मा छाय हे, होली रंग बहार।।

बैर भाव बिसराय के, होली हरे तिहार।

दया मया के रंग ला, सबके उप्पर डार।3।


रचना :- कमलेश वर्मा

छंद के छ, सत्र -09

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: सरसी छंद


रंग धरे हे परसा लाली, जस मँदार के फूल|

दुलहिन लागत हावय फागुन, जिवँरा  मारत हूल||


गली गली मा रंग उड़त हे, मिलके गावँय फाग|

रंग भंग मा रंग नँदागे, साजँय सुग्घर राग||


मया पिरित के छुटगे बँधना, झिनियागे सुख डोर|

मँदरस बोली तरसय चोला, करुहा के हे सोर||


सरपटप चाल सड़क हर भागे, उसनिदहा हे खोर।

रास रचइया कहाँ रचावय, कहाँ हें माखन चोर।।


कोन करय जग के रखवारी, काखर होवय सोर।

पपिहा कोयल तोता मैना, उड़गें छइहाँ छोर।।


छंदकार-

अश्वनी कोसरे रहँगिया

पोंड़ी कवर्धा कबीरधाम

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: कुण्डलिया - छंद


धरती अंबर छा गइस, चारो ओर गुलाल। 

बैर भाव ला छोड़ के, रँगव सबो के गाल।। 

रँगव सबो के गाल, देख अब आगे होरी। 

रंग मया के डार, बधाई देवव कोरी।। 

कहे शिशिर सच बात, फाग हर नोहय सस्ती। 

महँगी रख मनुहार, रँगव जी अंबर धरती।। 


पावन भुइँया देश मा, होली रंग तिहार। 

भेद भाव हा दूर हो, नीक रखव व्यवहार।। 

नीक रखव व्यवहार, रहय मनखे के बँधना। 

डार मया के हार, महक ही सबके अँगना।। 

कहे शिशिर सच बात, सबो घर आवन जावन। 

उड़ही रंग गुलाल, तभे भुइँया हो पावन।। 


सुमित्रा शिशिर

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: *कुंडलिया छंद*

*विषय-होली*


होली मन भर खेल ले, मया रंग ला बाँट।

मन के खटखट छोड़के, मनखे ला    तँय साँट।।

मनखे ला तँय साँट, मया के बाँटा करले।

दया-मया के रंग, हाथ मा संगी धरले।।

जिनगी हे दिन चार, गोठिया हँसी-ठिठोली।

भर पिचकारी मार, खेल तँय मन भर होली।।


*अनुज छत्तीसगढ़िया*

*पाली जिला कोरबा*

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छन्न पकैया छंद- होरी


छन्न पकैया छन्न पकैया, मनभानव हे होली|

ड॓डा नाचँय माँदर बाजय, निकरे घर ले टोली||


छन्न पकैया छन्न पकैया, फागुन सोर उड़ागे|

गली खोर पुर चक चौंरा मा, मया रंग बरसागे||


छन्न पकैया छन्न पकैया, चुरगे डुबकी कड़ही|

छंद राग मनभावन लागे, दिनभर होरी उड़ही||


छन्न पकैया छन्न पकैया, गुझिया पाग धरागे |

छंद गीत ले होरी खेलत, आँसो फगुवा जागे ||


छन्न पकैया छन्न पकैया, बाजत हवय नँगारा|

गावत बैठे राग फगुनवा ,झोकँय झारा झारा||


छंदकार-

अश्वनी कोसरे रहँगिया

कवर्धा कबीरधाम

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: छन्न पकैया छन्द 

16-12


छन्न पकैया- छन्न पकैया,आजा राधा गोरी।

बृंदाबन में धूम मचे हे,सँगे खेलबो होरी।।


छन्न पकैया-छन्न पकैया,हरियर पिँवरा लाली।

रंग ल धरके आहूँ मँय हा,आ जाबे तँय काली।।


छन्न पकैया- छन्न पकैया,नइ आवँव मँय बिलवा।

रंग म मोला तँय नहवाबे,सँग हे ग्वाला मितवा।।


छन्न पकैया- छन्न पकैया,झन कर आना कानी।

आथे साल गये मा होली,आजा राधा रानी।।


छन्न पकैया- छन्न पकैया,करथस तँय बरजोरी।

भर पिचकारी मारत जाथस,कही सरारा होरी।।


छन्न पकैया- छन्न पकैया, ले आ सखियाँ टोली ।

मया रंग ला आज लगाके, करबो हॅंसी ठिठोली ।।


छन्न पकैया-छन्न पकैया,आगे सखियाँ सारी।

देखे मोहन खुश होके तब,मारत हे पिचकारी।।


छन्न पकैया- छन्न पकैया, देखत हे नर नारी ।

बरजोरी झन करबे कान्हा,खाबे नइतो गारी।।


छन्न पकैया- छन्न पकैया,  भींगे चुनरी चोली ।

नाचे राधा कान्हा के सँग,खूब मनावत होली ।।


छन्न पकैया-छन्न पकैया,बाजे ढोल नँगारा।

ग्वाल बाल मन नाचन लागे,बनके गा हुरियारा।।


केवरा यदु"मीरा"राजिम

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.     *वसन्ती वर्मा के सरसी छंद* 


                       *होरी* 

                        ---

लाली लाली परसा फूले,आगे फागुन मास।

धर पिचकारी होरी खेलें,देख बहुरिया सास।1।


मया पिरीत ला बाँटे होरी,मन मइलाये धोय।

जुन्ना झगरा अइसन टोरे,झगरा फेर न होय।2।


बाजे माँदर ढोल नंगाड़ा,गाँव म चौकी आँट।

गुजिहा भजिया बरा बनाबो,खाबो मिल सब बाँट।3।


रंग धरे हँव लाली पिंवरा,होरी- आज तिहार।

हाँसव खेलँव होरी मैं जी,जोही- संग हमार।4।



            *अमरइया के छाँव* 

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रंग धरे आइस वासन्ती,मउरे आमा फूल।

बइठे हावय कोयल कारी,गावय झुलना झूल।1।


आमा डारा मउरे घम- घम,हरियर- हरियर पान।

लागय लुगरा पिंवरा पहिरे,दुलहिन जइसन जान।2।


महर- महर महकय अमरइया,सुनें चिरइयाँ चाँव।

गीत सुनें कोयल कारी के,बइठे आमा छाँव।3।


आमा के डारा मा बइठे,देख सुवा इतराय।

हमर दुनों के जोड़ी संगी,सब्बो झन सहराँय।4।


देखें झट ले संझा होगे,संझा ले अब रात।

मन मा आशा धर के राखौं,भूलौं दुख के बात।5।


            *वसन्ती वर्मा* 

                बिलासपुर

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/फागुन के होरी/ सार छंद

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फागुन महिना सुग्घर होरी,

                        रंग गुलाल उड़ाबो।

भेद भाव ला छोड़ सबोझन,

                   मिलके खुशी मनाबो।।


आय बसन्ती पुरवाई मा,

                       डारा   पाना   झूले।

देख-देख मन भौंरा नाचे,

                        लाली परसा फूले।।

रास रंग मा डूब चलौ जी,

                       गीत फाग के गाबो।

फागुन महिना सुग्घर होरी...........


धर पिचकारी छरा ररा जी,

                        इक दूसर ला मारौ।

बैरी दुश्मन अपन बनाके,

                         रंग मया के डारौ।।

आवौ जम्मों मिल जुर संगी,

                        ढोल मृदंग बजाबो।

फागुन महिना सुग्घर होरी...........


कउनो लाली, पींयर, हरियर,

                         रंग गुलाल सनाये।

होरी खेलत दुःख भुलावत,

                         नर नारी बइहाये।।

नशा भाँग के चढ़गे भैया,

                      अब कइसे उतराबो।

फागुन महिना सुग्घर होरी............

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रचनाकार:-

बोधन राम निषादराज"विनायक"

सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)

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: बरवै छन्द-

होली


जलगे संगी होली, बइठव आव।

बाजत हवय नँगारा, फगुआ गाव।


मिल गाबो जी घर-घर, पीरित राग।

दया-मया के मन मा, बाँधन ताग।


इरखा, दोखी, छल अउ, तज अभिमान।

हवन बरोबर सब झन, एकै जान।


भेदभाव छोड़न हे, सबो समान।   

ऊँचा ना नीचा सब, मनखे आन।


चलही अब पिचकारी, भर-भर रंग।

लइका-पिचका गाहीं, संगी संग।


रंग-रंग मा भीजन, लगै गुलाल।

झूम नाचबो चल ना, दे दे ताल।


चोरो-बोरो होहीं, बारा हाल।

जमके खेलन होरी, ऐसो साल।


हेमलाल सहारे

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: छन्न पकैया छन्न पकैया, देखव फागुन आगे।

बाढ़े लागे दिन हा तिल तिल,जाडा़ कसके भागे।।

छन्न पकैया छन्न पकैया, खेलव मिलजुल होली।

बाँधव बँधना मन ले मन के,बोलव सुग्घर बोली।।

छन्न पकैया छन्न पकैया,हरियर पींयर लाली।

चीन्हे  सकथे कोनो ना ही,दिखथे मुख हा काली।

छन्न पकैया छन्न पकैया, मारे हे  पिचकारी।

भीजें हावय तन मन देखव,अउ भींजे हे सारी।।

छन्न पकैया छन्न पकैया ,ढोल नगारा बाजे।

झूमत नाचत गावत हावय,नवा साज ला  साजे।



चित्रा श्रीवास

सीपत बिलासपुर

छत्तीसगढ़

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 *होली के हार्दिक बधाई एवं शुभकामना*

*मोद सवैया*


रंग लगा अउ अंग सजा मन मैल हटा जी ले सँगवारी |

पींवर लाल गुलाल धरे जन निच्चट कोनो हावय कारी ||

छोड़ गुमान सबो झन ले रख तीर   पटा ले जी तँय तारी |

भेद मिटा हिरदे भर रंग मया रस होली के पिचकारी ||


अशोक कुमार जायसवाल

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 *होली* (सार छंद)

नाचत गावत धूम मचावत,आवत हे हमजोली।

रंग गुलाल लगाके जुरमिल ,खेलत हें सब होली।


कोनो पिंवरा कपड़ा पहिरे, कोनो पहिरे सादा।

कोनो मारे लिटिल पैक अउ, कोनो मारे जादा।

मजा उड़ावत हावय अड़बड़,देखव इंकर टोली।

रंग गुलाल लगाके जुरमिल,खेलत हें सब होली।


फाग गीत के धुन मा सबझन,नाचत हावय भारी।

नन्द लाल के रूप धरे हे ,मारत हें पिचकारी।

लइका बुढ़वा जम्मो झन सब,अड़बड़ करत ठिठोली।

रंग गुलाल लगाके जुरमिल,खेलत हें सब होली।


माते हावय सबझन संगी, पीके अड़बड़ दारू।

घर के आगू के नाली मा, गिरगे हवय समारू।

डगमग डगमग रेंगत हावय,खाय भांग के गोली।

रंग गुलाल लगाके जुरमिल,खेलत हें सब होली। 


मन ले इर्ष्या द्वेष भुलाके, रंग लगावत लाली।

जात पात तज गला मिलत हे, मानवता के माली।

मीठ मीठ बोलत हावय सब,अड़बड़ गुरतुर बोली।

रंग गुलाल लगाके जुरमिल, खेलत हें सब होली।


रचनाकार 

अमृत दास साहू 

ग्राम - कलकसा, डोंगरगढ़

जिला - राजनांदगांव (छ.ग.)

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: उत्सव परब तिहार 


उत्सव परब तिहार जुरे हे, हम सबके जिनगानी ले।

जिनगानी के तार जुरे हे, खेत किसान किसानी ले।


मन के हे संबंध पेट ले, पेट भरत भर जाथे मन।

सुख के सोत अनाज अन्न ए, पुरुप गवाही हे जीवन।


मनखे ले मनखे के नाता, जुरे सुमत के डोरी मा।

सुख के रंग खुशी बड़ देथे, परगट दिखथे होरी मा।


भलमनशुभा असीस दुआ हर, मिलथे मीत-मितानी ले।

उत्सव परब तिहार जुरे हे, हम सबके जिनगानी ले।


पतझर देख लगाम लगाथे, जेहर तीन-परोसा मा।

ऋतु बसंत उल्होथे पाना, भरथे रंग भरोसा मा।


पाख अँजोरी फागुन पुन्नी, ओन्हारी के होरा हे।

रंग परब बर रंग-रंग के, तुक-तुक तोरा-जोरा हे। 


परय रंग मा भंग न कखरो, बिपदा बादर-पानी ले।

उत्सव परब तिहार जुरे हे, हम सबके जिनगानी ले।


रचना-सुखदेव सिंह 'अहिलेश्वर'

गोरखपुर कबीरधाम छत्तीसगढ़

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दुर्मिल सवैया(पुरवा)


सररावत  हे  मन  भावत  हे  रँग फागुन राग धरे पुरवा।

घर खोर गली बन बाग कली म उछाह उमंग भरे पुरवा।

बिहना मन भावय साँझ सुहावय दोपहरी म जरे पुरवा।

हँसवाय कभू त रुलाय कभू सब जीव के जान हरे पुरवा।

खैरझिटिया

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झन बिगाड़ होली मा बोली- गीत(चौपाई छंद)


चिल्लाथस बड़ होली होली, लोक लाज के फाटक खोली।

झन बिगाड़ होली मा बोली, झन बिगाड़ होली मा बोली।।


मया पिरित के ये तिहार मा, द्वेष रहे झन तीर तार मा।

बार बुराई होली रचके, चल गिनहा रद्दा ले बचके।।

उठे कभू झन सत के डोली, पथ चतवार असत ला छोली।

झन बिगाड़ होली मा बोली, झन बिगाड़ होली मा बोली।।


बजा नँगाड़ा झाँझ मँजीरा, नाच नाच दुरिहा दुख पीरा।

समा जिया मा सब मनखे के, दया मया नित ले अउ दे के।

छीच मया के रँग ला घोली, बना बने मनखे के टोली।

झन बिगाड़ होली मा बोली, झन बिगाड़ होली मा बोली।।


एखर ओखर खाथस गारी, अबड़ मताथस मारा मारी।

भाय नही कोनो हर तोला, लानत हे अइसन रे चोला।।

दारू पानी गाँजा गोली, गटक कभू झन मिल हमजोली।।

झन बिगाड़ होली मा बोली, झन बिगाड़ होली मा बोली।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

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Sunday, March 24, 2024

मुक्ताहरा सवैया-प्रस्तुति "छंद के छ" परिवार

 मुक्ताहरा सवैया-प्रस्तुति "छंद के छ" परिवार


 *मुक्ताहरा सवैया छंद*

*विषय-बसंत*


121   121   121  121  121 121  121  121

बही सुन रे बन मा अब छाय हवे मदमस्त बसंत बहार।

तिहार मनावत जंगल के बन जीव सबो खुश होत अपार।

सुनावत हावय रे अब कोयल गीत मया टिकरा बन खार

बने उलहोवत हावय कोंवर-कोंवर रे सरई अउ चार।


*अनुज छत्तीसगढ़िया*

*पाली जिला कोरबा*

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 मुक्ताहरा सवैया

धनी धरती जग मातु हरे उपकार करे भर पेट खवाय।

अमीर गरीब सबो बर माँ हर अन्न भरे सथरा बन जाय। 

पहाड़ नदी अउ जंगल सागर अंग सजे गहना कस आय।

सबे सुख दान करे धरती हर पालय पोषय दुःख भगाय।


कबीर चले सत ज्ञान सुमारग शील दया धर नेक विचार।

गुरू सत पारख संत रहे कथनी करनी सब छाँट निमार।

कुरीति अनीति फँसे जग के बँधना पग छोर बता सत सार।

असत्य सरी अँधियार नही अउ सत्य सरीख नही उजियार।

शशि साहू

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बिषय.....साग

121*8


*पताल दिखै झुमका झुमका झुनगा मुनगा फरगे भरमार*।

*लगै मखना बड़का रखिया सब गोल मटोल फरै हर डार*।

*घिया मनभावन लागय रोग हरै सबके  दुधिया  रस दार*।

*दिखै बड़ सुघ्घर बाग बगान फरै सब नार चघैय  अपार*।


*धनेश्वरी सोनी गुल*✍️

बिलासपुर

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 *मुक्ताहारा सवैया*


कहाँ दिखथे टुकनी चरिहा डलिया दुहना अउ काँवर आज।

नँदावत बेलन नाँगर बक्खर ट्रेक्टर के अब हावय राज।।

कहाँ मिलथे अब दूध दही कइसे निपटै सब हूमन काज।

सुने म सबो लगथे सपना अउ  गोठ करे अब लागत लाज।।


भागवत प्रसाद चन्द्राकर

डमरू बलौदाबाजार

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मुक्ताहारा सवैया- ।।चुनाव।।


हवै अब फेर ग आय चुनाव चलौ मिलके करबो मतदान।

कभू नइ आवन लालच मा सच झूठ घलो करबो पहिचान। 

सबो मिलके चुनबो मुखिया ल इही सबके अब हे अभियान।

रही जनता खुशहाल सदा बन ही तब तो गणतंत्र महान।। 


- गुमान प्रसाद साहू ,समोदा (महानदी) ,रायपुर छत्तीसगढ़

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 *मुक्ताहारा सवैया*


बरात चले शिव संग सबो झन भूत पिशाच परेत मशान |

धरे कतको झन रूप अनेक चले सब गावत अल्कर गान ||

मुड़ी बिन हावय देह घलो कतको झन देख सुपा जस कान |

उमंग मतंग सबो झन जावय दानव देव सिरी भगवान ||


    अशोक कुमार जायसवाल

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(1)  बरसा के अगोरा


असाढ़ गए अब सावन आय तभो बरसा ह कहाँ अब होय ।

किसान सबो मन मूड़ धरे बइठे अब देखत हे बड़ रोय।।

बियास करे बर नीर नहीं भइया कलपै अब आस सँजोय।

परे दुख मा अब साँझ बिहान इहाँ बिनती ल किसान बिनोय।।


(2)  बरसा के अगोरा


सुनौ भगवान करौ किरपा अब देर नहीं धनहा अइलाय।

गरीब किसान सबो मनखे मन हार थके अब आस लगाय।।

इहाँ घनघोर घिरे बदरा बिजुरी लउके अउ लाज न आय।

बता भगवान तहीं अब तो मनखे मन आज करे अब काय।।


रचना:-

बोधन राम निषादराज"विनायक"

सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)

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: कबाड़ (मुक्ताहरा सवैया)


कबाड़ भरे घर भीतर हाबय फेर ग रोज बिछावत देख।

समान जरूरत के नइये तब ले ग सबो ल मँगावत देख।

परे कचरा कस हे पनही अउ चप्पल फेर बिसावत देख।

सियान कहे पइसा ल बँचावव फोकट के उड़वावत देख।


चोवा राम 'बादल'

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 मुक्तहारा सवैया--- *किस्मत*



उपाय करै कतको मनखे नइ किस्मत के लिखना बदलाय।

भले कतको तँय टार लिखे विधि के लिखना नइ मान टराय।।

कहे नित बेद पुरान बिहा मरना अउ जन्म समे तय आय।

जपै प्रभु नाम सुजान सदा रख मारग ला चतुवार बनाय।।


करै कमिया रतिहा दिन काम तभो नइ पेट कभू भर खाय।

खवा सबला भर पेट खुदे नइ जेवन पेट कभू भर खाय।।

नदी जस धार गिरे तन के तब खेत म बड़े मुसकाय।

किसान करे जग पालन ये भुइयाँ बड़ तो अउ देव कहाय।।


मिलै सुख सुम्मत के रसता बनथे बिगड़े सब जानव काम।

हवै जन के हित हा बड़ पूजन देव कृपा  करथे प्रभु राम।।

जपै हरि नाम बसावय जे मन पावय वो शुभ पावन धाम।

बनावय मंदिर जी घर मात पिता भजके बिहना अउ शाम।।


मनोज कुमार वर्मा

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 मुक्ताहरा सवैया


बिना रुपिया पइसा जिनगी हर बीतत जावत हे तँगहाल।

बिहाव करौ कइसे मँय होवत हे बिटिया अठरा अब साल।

दहेज बिसावव लाव कहाँ मँहगाइ बढ़े ग गलै नइ दाल।

करौ कइसे मन सोचत आज दहेज बने बिटिया बर काल।


ज्ञानु

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         *मन के दुख*


कहौं कइसे मन के दुख ला कइसे मन मोर धरै नहिँ धीर।

गुने दिन-रात उही मन आत उही मन जात तजै नहिँ पीर ।।

मही समझावँव बाँधव धीर जुबान बुरा जन के तय चीर।

कभू झन भेदन दे दुनिया भर के दुख के कँटवारन तीर।।



डॉ पद्मा साहू "पर्वणी"

खैरागढ़

जिला खैरागढ़ छुईखदान गंडई

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हुए ललना अँजनी घर आय रहे जस सूरज तेज समान ।

लिए जग मा अवतार धरे तब बानर रूप इहाँ हनुमान ।।

चले जब राम सिया दरबार बने रखवार मिले पहिचान ।

हरे सबके दुख संकट ताप जपो बजरंग बली बलवान ।।


             -वसन्ती वर्मा 


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: मुक्ताहरा सवैया- बचावव पेड़


बचावव पेड़ लगावव पेड़ इही जिनगी सुख के रखवार।

गिरावय नीर मिटावय पीर दिये फल छाँव सुने मनुहार।।

दुआ दवई बनके करथे उपचार पड़े जब लोग बिमार।

करै बिनती कर जोर गजानन पेड़ बचावव मोर पुकार।।


इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़)

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: मुक्ताहारा सवैया 

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बने पहुना रितुराज बसंत ह आय त कोन खुशी न मनायँ।

खिले परसा मउहा अमुवा सरसो बिरवा फुलवा बरसायँ।।

करैं चिरई चिंव चाँव मनोहर कोयलिया मन फाग सुनायँ।

लगे जस मौसम भाँग पिए तब मानुष संग सबो बउरायँ।।


दीपक निषाद--छंद साधक सत्र-10

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बिना रुपिया पइसा जिनगी हर बीतत जावत हे तँगहाल।

बिहाव करौं कइसे मँय होवत हे बिटिया अठरा अब साल।

दहेज बिसावँव लाँव कहाँ मँहगाइ बढ़े ग गलै नइ दाल।

करौ कइसे मन सोचत आज दहेज बने बिटिया बर काल।


ज्ञानु

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"तभे फभथे"


सियान बिना घर हे बिरथा बिन देव फभे नइ मंदिर जान।

अकारथ लागत स्कूल जिहाँ न रहै न पढ़ै न बनै  बिदवान।।


बिहाय चले ससुराल उही घर मंदिर धाम बरोबर  मान।

जरे हिरदे ह जुड़ाय लगे जब हे मिलथे मिठहा ग जबान।।


जथे उलहाय मिले चुरुवा जल पेड़ म फूल लगे फल जाय।

मया मिलथे तरसे हिरदै अइलाय परे रुखवा हरियाय।।

गरेर चले दुख के सुख पान झरे जिनगी रइथे मुरझाय।

बसंत बहार बहूर जही उलहावत पान सहीं सुख लाय।।

      

मितान बदे पुरखा मन हे त निभावत जावत मान बचाय।

नता ल बचावत मानत हे पहुना मन के पहुनाइ रचाय।।

समोख सियान हरौं कहिके हिरदै म बने बिगड़े ल पचाय।

चलौ चलबो सुन गोठ सियान जिही चिरबोर न शोर मचाय।।


बियाय बने लइका उकरो जिनगी सुख सोहर ले भर जाय।

कमावत जाँगर टोर कभू झन ओकर गोड़ म फाँस चुभाय।।

धियान रखौ बुढ़वा पन माँ अउ बाप उही लइका पन पाय।

तभे फभथे ग जभे मनखे जनमे हन सोच सुजान जनाय।।


द्रोपती साहू "सरसिज"

महासमुन्द छत्तीसगढ़

पिन-493445

Email; dropdisahu75@gmail.com

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मुक्ताहरा सवैया


श्रीराम

समाय हबै मन-मंदिर मा नित मोर सियावर जी प्रभु राम।

अँजोर करै जिनगी ल सदा सब लेवव जी अति पावन नाम।

बड़ा मनभावन प्रेम समुन्दर राम हबै जग मा गुण-धाम।

दयालु कृपालु उदार क्षमानिधि हे रघुनायक मोर प्रणाम।


कमलेश वर्मा

सत्र -09

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*सवैया 18


*मुक्ताहरा सवैया*


*ठग* 


दुकान लगावय गाँव गली ठग चंदन बंदन माथ लगाय।

 ठगावत हे मनखे मन हा सब फोकट मा धन धान लुटाय । 

धरे पतरा ठग बाँचत हे मनखे मन के मति ला भरमाय। 

इँहा नइहे सुख जीयत ले सुख ठौर सबो परलोक बताय। *


*सीख*

 कमाय हवे पुरखा मन हा तुँहरे बर तो अतका धन मान।

गरीब लचार जिहाँ दिखथे कर लौ भइया उँहचे कुछु दान। 

जबान कभू कड़ुवा झन बोलव गुत्तुर बोल हवे सुख खान। 

कहे सत मारग जेन चले उँखरे बर साहित हे भगवान।



*घर भेदी* 

इहाँ बइरी बइठे घर मा अपने घर बार लगावय आग।

 सिखावन मानत दूसर के पर के बुध मा सुन गावय राग। 

सगा बस हे पइसा इँखरे नइ जानय कोन नता अउ लाग। 

दुखी परिवार समाज रहे सब एमन कोढ़ लगे कस दाग ।


*जलसंकट*


 बढ़े जल संकट हे गहरावय येखर खोजय कोन निदान।

 नदी नरवा तरिया सब सूखय जीव जनावर हे हलकान। 

कहूँ कर छाँव घलो नइहे छइहाँ सब खोजय होय थकान। 

सबो करनी मनखे करथे अब काय करे कइसे भगवान।


 *हनुमान जयंती*


 लला अवतार धरे अँजनी घर भक्त शिरोमणि हे हनुमान। 

दिखे मुखमंडल तेज प्रताप सबो मिल देव करे गुणगान। 

बसे मन मा बस राम सिया बल बुद्धि किये नइ जाय बखान। 

सबो दुख दारिद दूर करे बस संकट मोचन के कर ध्यान।



 *मशीन* 


विकास करे दुनियाँ नित देखव आज मशीन घरो घर छाय।

 मशीन करे सब काम बुता मनखे मन के बइठे अलसाय।

 हवै वरदान कहे जतका सुनले वतका अभिशाप कहाय। 

मिले तन ला सुख अब्बड़ जी तब ले तन मा बड़ रोग हमाय । 


आशा देशमुख


Sunday, March 10, 2024

विश्व महिला दिवस विशेष

विश्व महिला दिवस विशेष


 नारी 


अब तो नारी मन जागव। काली देवी कस लागव। 

बन जावव लक्ष्मी बाई। झन होवय अब करलाई। 


अबला खुद ला झन जानव। बाघिन जइसे तुम मानव। 

अंतस मा साहस भर लव। धार दार नख ला कर लव। 


आँखी कोन तरेरत हे। कइसे तोला पेरत हे। 

नजर मिला लव ओखर ले। का डरना अब जो करले। 


अब सबला बन जावव जी। नाको चने चबावव जी। 

बन जावव मरदानी माँ। झाँसी वाली रानी माँ। 


बुरा करे जे सोचत हे। तोला जेमन नोचत हे।

अइसन मन थरथर काँपय। पाँच हाथ दूरी नाँपय। 


पर्दा ला तो अब टारव। रूढ़ि वाद आगी बारव। 

दुनिया ला दिखला दव जी। नवा बिहानी ला दव जी। 


नर ले काँध मिलालव जी। मान तहुँ मन पा लव जी। 

संग चलव काँधा जोरे। बैरी के आँखी फोरे। 



दुनिया महिमा ला गावायँ। नारी ला सब झन भावयँ। 

बेटी माँ बहिनी जानयँ। अर्ध अंग तोला मानयँ। 


तँय जननी ये दुनिया के। बेटा बेटी मुनिया के। 

तँय दादी काकी नानी। तँय प्यासे मन बर पानी। 


तँय हच ता सब हो जाथे। तोर बिना सब खो जाथे। 

तोर मया बाँधे सब ला। दुनिया जानय रग रग ला। 


अपन आप पहिचानव जी। कम थोरिक झन मानव जी। 

तुहरे चक्कर सब काटय। कोन बता तोला डाँटय। 


माथा मोर नवावत हँव। तोरे गुण ला गावत हँव। 

तोरे लागत हँव पइयाँ। बन जा तँय दुर्गा मइयाँ। 


बैरी बर रण चंडी बन। समे परे सिरखंडी बन। 

बन जा तँय दुर्गा काली। आँखी ला कर ले लाली। 


ममता मइ माता मोरे। बिनती हावय कर जोरे। 

कतको रूप बनाबे माँ। ममता झन बिसराबे माँ। 


तोर मया अमरित लागे। दुख पीरा सबके भागे। 

जे तोला घर पावत हे। अपन भाग सहरावत हे। 


रचनाकार दिलीप कुमार वर्मा

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*नारी* (हरिगीतिका छंद)


नारी जनम भगवान के,वरदान हावै मान लौ।

देवी बरोबर रूप हे,सब शक्ति ला पहिचान लौ।।

दाई  इही  बेटी   इही, पत्नी   इही  संसार मा।

अलगे अलग सब मानथे,जुड़थे नता ब्यौहार मा।।


नारी बिना मनखे सबो,होवय अकेला सुन सखा।

परिवार सिरजय संग मा,तब होय मेला सुन सखा।।

अँगना दुवारी  रोज के, नारी करै श्रृंगार जी।

सब ले बने करके मया, लावै सरग घर द्वार जी।।


नारी अहिल्या रेणुका,अउ राधिका सुख कारिणी।

सीता इही गीता इही,लक्ष्मी इही जग तारिणी।।

पूजा जिहाँ होथे सुनौ,भगवान के छइँहा रथे।

सम्मान नारी के करौ,सुख घर दुवारी आ जथे।।


रचनाकार:-

बोधन राम निषादराज"विनायक"

सहसपुर लोहारा, जिला-कबीरधाम(छ.ग.)💐


Friday, March 8, 2024

महाशिवरात्रि परब विशेष

महाशिवरात्रि परब विशेष
 

त्रिभंगी छंद

महादेव 


हे महादेव शिव,शंकर भोले,घट-घट वासी,देव तहीं।

सुशरण अविनाशी,नीलकंठ तँय,देव दनुज के,नेंव तहीं। 

हे मन बलिहारी,महाकाल तँय,सबके दुख के,काट तहीं। 

वय गुणग्राही अणु,आदि अनंता,भूप उमापति,भाट तहीं।। 


हे तांडव रनता,मुक्तिमाल प्रभु,अंग लपेटे,खाल पटा। 

विश्वेश्वर गिरिवर,डमरू धारी,तोर मूड़ भर,जाल जटा।

हे देवेश्वर प्रभु,जय हो जय हो,अजर-अटल तँय,कल्प महा। 

औघड़ अवदूता,सर्वेश्वर तँय,तोर कृपा ले,दुष्ट ढहा। 



हे धुनी रमइया,ज्ञान गम्य निधि,चन्द्र भाल मा,गजब फभे। 

मिलथे वरदानी,करंताल के,हर हर के कर,जाप तभे। 

हे भुजंग भूषण,हिरण्यरेता,हवि गिरिश्वर,महाबला। 

अज सोम सदाशिव,तोर कृपा ले,कतको संकट,जाय टला।। 


हे व्योमकेश मृड,खण्डपरशु हवि,त्रयीमूर्ति प्रभु,नाथ तहीं। 

शाश्वत सात्विक तँय,पशुपति देवा,देथस सब ला,साथ तहीं। 

हे अनंत तारक,परमेश्वर भव,मृत्युंजय के,जाप तहीं। 

जग शंभु जगत गुरु,हे शशि शेखर,दुष्टन मन बर,श्राप तहीं।। 


हे शर्व दिगंबर,महासेन तँय,दया-मया के,छाँव तहीं। 

कवची मृगपाणी,ललाटाक्ष अउ,पाशविमोचन,नाँव तहीं। 

हे त्रिलोकेश तँय,भक्तवत्सला,उग्र शिवा प्रिय,रूप धरे। 

सुरसूदन गृहपति,सहस्रपाद तँय,अंतस के दुख,ताप हरे।। 


हे वीरभद्र प्रभु,सुभग अनीश्वर,उँकर कष्ट तँय,खुदे सहे

जे दक्षाध्वरहर, सहस्रसाक्ष हरि,परमात्मा के,नाम कहे। 

हे भीम कृपा निधि,दक्ष महेश्वर,शेषनाग गर,धार करे। 

गिरिप्रिय गिरिधन्वा,पुराराति नित,जीव जगत के,ध्यान धरे।।


हे विरूपाक्ष सम,हे कामारी,सबके सुनले,इहाँ व्यथा। 

तँय नाथ अंबिका,स्वामी बनके,सुघर सुनाये,राम कथा। 

हे गंगाधर गिरि,गोचराय पटु,भूत प्रेत सन,रहय घला। 

भोले खटवांगी,जग के हितवा,बड़ निरमोही,आय भला।। 


हे श्मशान वासी,तँय समदर्शी,साथ रिहिस हे,पारबती। 

तँय पुष्कर लोचन,गौरीभर्ता,ईश पिनाकी,मदन मती। 

हे विमल निरंजन,हे दुख भंजन,सबके तारन,हार हरौ। 

अउ विश्वरूप रवि,विषवाहन धव,अचल विरोचन,सार हरौ।। 


हे नन्दीश्वर शुचि,सुखी सोमरत,गति ज्योतिर्मय,माथ हरौ। 

जय सुरेश भूशय,एक बंधु ध्वनि,महाकोश ध्वनि,नाथ

 हरौ। 

हे महेश भूपति,भूतपाल विभु,महाचाप खग,शान्त हरौ। 

वरगुण सहयोगी,नित्य सुलोचन,महाकोप अउ,कान्त हरौ।। 

विजेंद्र कुमार वर्मा

नगरगाँव (धरसीवाँ)

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*सार छंद*

परब महाशिवरात्रि आज हे,जुरमिल सबे मनाबो।

महादेव के करबो पूजा,भजन आरती गाबो।।


दूध दही जल घींव शहद ले,भोले ला नउहाबो।

बेल पान अउ फुड़हर धतुरा,सुग्घर अकन चढ़ाबो।


फागुन महिना के तेरस अउ,पाख रथे अँधियारी।

इही रात मा बनथे भोला,पारबती सँगवारी।।


भूत संग मा धर परेत ला,शिव हा लाय बराती।

हरे इही मन गोतियार अउ,येकर इही घराती।।


बनय नाग हा हार गला के,नंदी तोर सवारी।

गंगा तोर बिराजे लट मा,तँय हा डमरू धारी।।


सागर मंथन के विष ला तँय,अपन नरी मा धारे।

नीलकंठ तँय बनके शंभू,जग ला दुख ले तारे।।


सरी जगत के तँय हा भोले,आवस भाग्य विधाता।

आये हावन तोर दरस बर दरसन देदे दाता।


अमृत दास साहू

कलकसा डोंगरगढ

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 ( ताटंक छंद )

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फागुन महिना के अंधियारी,

तिथि तेरस जब आथे जी।

दिवस उही ला हमर देश मा,

शिव के परब मनाथे जी।।1।।


करके पूजा शिव भोला के,

जन्म सुफल कर जाथे जी।

लगथे मेला शिव मंदिर मा,

सब दर्शन बर जाथे जी।।2।।


फूल पान नरियर ल चढ़ाथे,

प्रसाद सब झन पाथे जी।

लेन देन जी कर मेला मा,

मन मा खुशी मनाथे जी।।3।।


इहाँ खिलौना ले लइका बर,

सब्जी घलो बिसाथे जी।

देख खिलौना लइका मन हा,

खुश अब्बड़ हो जाथे जी।।4।।


संझा बेरा होथे ताहन,

घर वापस सब आथे जी।

"दीप" ह जतना जानत हावे,

सब ला उही बताथे जी।।5।।


कुलदीप सिन्हा "दीप"

कुकरेल ( सलोनी ) धमतरी

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इजारदार: कनक मंजरी छंद

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जय शिव शंकर हे डमरू धर नाम रटे सब पाप कटे,

जय जगदीश हरे जय हो जय हो जय हो सब नाम रटे।।


बम बम बोल करे जयकार सबो नर नार कहे जय हो,

जपत शिवाय शिवाय शिवाय सबो सुख सागर अक्षय हो।।


सुमिरन नाम करे जब भी शिव काल महा विकराल टले,

कहत शिवा जय हो जय हो जय हो गति काल कुकाल टले।।


अलख अनंत अखंड निरंजन जाप करें मन तो हरषे,

हर हर बोल महा शिव शंकर पॉंव पखार कृपा बरसे।।


विषधर पान करे शशिशेखर का मॅंय रूप बखान करौं,

घट घट वास करे डमरूधर का मॅंय हा गुण गान करौं।।


बिषहर सांप गले लपटे सब अंग भभूत लगाय हवे,

डम डम नाद करे डमरू सबके मन सुग्घर भाय हवे।।


मरघट वास करे शिव जी सॅंग भूत पिसाच चुड़ैल रहे,

गण अड़भंग रहे सॅंग मा मुॅंड माल डले शिव सैल रहे।।


कल कल गंग बहे अतिपावन जूट जटा रस धार बहे,

धनुष पिनाक त्रिशूल धरे सब रूद्र त्रिनेत्र महान कहे।।


तरपउॅंरी सुख धाम हवे सब हे शिव जी सुख नाम करौ,

डगमग डोलत हे नइया मझधार फॅंसे जग पार धरौ।।


दुर्गा शंकर जायसवाल

सारंगढ़ 9617457142

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*हे शिव शम्भू**(बरवै छंद)*


कण कण बसथे शंकर, भोलेनाथ।

मोर हिरदे बिराजो,गौरा साथ।।

औघड़ दानी शम्भू, देवव दान।।

भक्ति मुक्ति दुनों मिले, पाववँ मान।

ऊँ नमः शिवाय इही, चलथे जाप।

धीरे धीरे मन के,मिटथे पाप।।

गिरिजापति हा करही, भव ले पार।

स्वामी तोला सिमिरौं,बारंबार ।।



चित्रा श्रीवास

बिलासपुर छत्तीसगढ़

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[3/8, 4:14 PM] पद्मा साहू, खैरागढ़ 14: कुकुभ छंद

                    शिव 


महाकाल उज्जैन नगर के, घट-घट  तैं  रमथस  भोला ।

तहीं काल के काल हरस सब, महाकाल कहिथें तोला।।

राख भस्म ला मरघट्टी के, ओंगे शिव तैं चोला मा ।

बनके भूत परेत के संगी, मस्त भंगिया  गोला  मा ।।


चिता जलय  जी मरघट्टी के, दहकत आगी  अंगारा ।

तोर  बसेरा  बनगे  भोला, ये  भूत  घाट  के  पारा ।।

राम तोर ये महिमा जानिस, अंत समय के  सच्चाई ।

महाकाल के शक्ति  बने  हे, योग  ज्ञान  के  गहराई ।।


श्री राम तोर करथें पूजा, अउ तैं जपथस शिव वोला ।

राम रमे  हे  मन  मा  तोरे, बड़  महिमा  तुंहर  भोला ।।

महाकाल के डम-डम डम-डम, डमरू हा बाजय प्यारा ।

मंदिर-मंदिर मा गूंजय  सब, बम  भोले  के  जयकारा ।।


     डॉ. पद्मा साहू "पर्वणी"

           खैरागढ़

जिला खैरागढ़ छुईखदान गंडई

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[3/8, 7:00 PM] अश्वनी कोसरे : वीर छंद- अश्वनी कोसरे


 *महाशिवरात्रि* 


महादेव कैलास निवासी, तुहँरे महिमा अपरम्पार|

ब्रम्हा बर ब्रम्हास्त्र बनाये, शक्ति के अतुलित भंडार||


जग सृष्टि मा तुहँर दया ले, सबो जीव के हे कल्याण|

अस्त्र शस्त्र के सिरजन कर्ता, चक्र सुदरशन हे निर्माण||


अवघड़ दानी भोले बाबा, का-का महिमा करँव बखान|

तीनो लोक चौदह भुवन मा , सब करथे जी तुहँरे ध्यान||


सत्य नाम के रोपे बिरवा, पीके जहर करे उपकार||

गंगा धारण करे जटा मा, जग जाहिर तुहँरे उपहार||


हनुमान के रुप धरेव तब, जग जानिस तुहँरे अँवतार|

शिव शंभू भोले भंडारी, दीनन के करथव उधियार ||


पूजा हवन करँत हे तुहँरे, सजे धजे निकले बारात|

डमरू ढोल बजत हे घर -घर, मंडप नीक लगत हे घात ||


सब बर कृपा बरसही बाबा, शिवराती मा हे जसगान|

हाथ जोर सब नमन करत हें, देहव मन माफिक बरदान||



छंदकार- अश्वनी कोसरे रहँगिया कवर्धा कबीरधाम

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औघड़ दानी (मोद सवैया)


देवन मा महदेव बड़े सिव संभु हवै जी औघड़ दानी ।

अंग भभूत रमाय रथे सिर मा बहिथे गंगा जुड़ पानी ।

दानव मानव भूत पिसाच सबो झन पूजे संग भवानी।

होय प्रसन्न चढ़े धतुरा पतिया फुलवा भोला गुन खानी।


चोवा राम 'बादल'

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[3/8, 9:44 PM] Om Prakash Patre: दुर्मिल सवैया छन्द - महाशिवरात्रि (०८/०३/२०२४)


भगवान सदाशिव शंकर के , अरजी बिनती बड़ होवत हे ।

किरपा सुख के छइहाॅं मिलही , कहिके सब दूध रितोवत हे ।

व्रत ला करके कतको मनखे , मइला मन ला नित धोवत हे ।

जग पालनहार हरे शिव जी , दिन - रात जगे नइ सोवत हे ।



💐ॐ नमः शिवाय 🙏

✍️ओम प्रकाश पात्रे 'ओम '🙏

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