छत्तीसगढ़ी राजभाषा दिवस के गाड़ा-गाड़ा बधाई...
"छत्तीसगढ़ी भाखा महतारी के आरती गीत"
छत्तीसगढ़ी भाखा महतारी, पइयाँ लागँव तोर
पइयाँ लागँव तोर ओ दाई, पइयाँ लागँव तोर
तहीं आस अस्मिता हमर अउ, तहीं आस पहिचान
आखर अरथ सबद के दे दे, तँय मोला वरदान।।
खोर गली मा छत्तीसगढ़ के, महिमा गावँव तोर…
पइयाँ लागँव तोर ओ दाई, पइयाँ लागँव तोर
एक हाथ हे हँसिया बाली, दूसर दे वरदान
तीसर हाथ धरे हे पोथी, चौथा देवै ज्ञान।।
पढ़े लिखे बोले बर दाई, चरन पखारँव तोर...
पइयाँ लागँव तोर ओ दाई पइयाँ लागँव तोर
करमा सुआ ददरिया पंथी, गौरा-गौरी फाग
पंडवानी भरथरी तोर बिन, कइसे पावै राग।।
छमछम नाचँव राउत नाचा, दोहा पारँव तोर...
पइयाँ लागँव तोर ओ दाई पइयाँ लागँव तोर
कभू दानलीला रचवाये, कभू सियानी गोठ
मस्तुरिया के अन्तस बइठे, करे गीत ला पोठ।।
महूँ रात-दिन सेवा करहूँ, बेटा आवँव तोर
पइयाँ लागँव तोर ओ दाई पइयाँ लागँव तोर
रचनाकार - अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर, दुर्ग
छत्तीसगढ़
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*सरसी छंद गीत- कब होही नवा बिहान?*
कहाँ उड़ागे सोन चिरइँया, सुन्ना हे घर खोर।
रोवत हे मन के पिंजरा हा, लमा-लमा के सोर।।
बंजर खेती खार दिखत हे, नदी कुँआ अउ ताल।
सुख्खा परगे डोली धनहा, मुरझावत सुख डाल।।
धान कटोरा ये भुइँया मा, कोंन जहर दिस घोर।
रोवत हे मन के पिंजरा हा, लमा-लमा के सोर।।1
जल जंगल भुइँया के मालिक, पर देशी हे आज।
लुलवावत हे छत्तीसगढ़िया, पाये राज सुराज।।
डाका डारत हमर खुशी मा, बहरुपिया कुछ चोर।
रोवत हे मन के पिंजरा हा, लमा-लमा के सोर।।2
जहर कारखाना हे उगलत, अरझत हावय साँस।
पतझड़ होगे हरियाली अउ, होगे पेड़ विनाश।।
पुरख़ा के चिनहा बिरवा अब, कटगे ओरी ओर।
रोवत हे मन के पिंजरा हा, लमा-लमा के सोर।।3
मान कहाँ पावत भाखा निज, वाजिब दाम किसान।
आँख निटोरत खड़े हवन कब, होही नवा बिहान।।
आँसू आँख भरे छलकत हे, पीरा पोरे पोर।
रोवत हे मन के पिंजरा हा, लमा-लमा के सोर।।4
गुरु के महता घटत दिनों-दिन, शिक्षा हे बदहाल।
लइका ले बस्ता भारी हे, बिछे लूट के जाल।।
कमर टूटगे महँगाई मा, पीठ परे दुख लोर।
रोवत हे मन के पिंजरा हा, लमा-लमा के सोर।।5
उल्टा-पुल्टा पाठ पढ़ा के, बदलत हें इतिहास।
मान कहाँ हे पुरख़ा मन के, होवत हे उपहास।।
गजानंद जी बाँध चलौ अब, सुख सुमता के डोर।
रोवत हे मन के पिंजरा हा, लमा-लमा के सोर।।
लौट चले आ सोन चिरइँया, सुन्ना हे घर खोर.....6
✍🏻इंजी. गजानंद पात्रे 'सत्यबोध' (बिलासपुर)
छंद परिवार- छत्तीसगढ़
छंद साधक- सत्र 2
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सरसी छंद- *मान दिलाये छत्तीसगढ़ी, करना हे मिल काज*
छत्तीसगढ़ी भाखा हावय, अब्बड़ मया दुलार।
सरग बरोबर येकर छइँहा, बहे पिरित के धार।।1
गोद लिये हे सब्बो भाखा, दे के ममता छाँव।
छत्तीसगढ़ी महतारी के, परत हवँव मैं पाँव।।2
सुवा ददरिया पंथी करमा, हमर धरोहर शान।
धान कटोरा महतारी के, छत्तीसगढ़ी मान।।3
सत के अलख जगाये घासी, छत्तीसगढ़ी बोल।
मनखे मनखे एक बरोबर, कहिस बात अनमोल।।4
मान बढाइस महतारी के, सन्त पवन दीवान।।
कोदूराम दलित ये भुइँया, देइस छंद बिधान।।5
दरद सुनाइस महतारी के, मस्तुरिहा के गीत।
तन सोलह सिंगार कराइस, तब खुमान संगीत।।6
स्वर कोकिला दीदी कविता, गावय महिमा गान।।
पाँव पखारय अरपा पैरी, माथ मुकुट हे धान।।7
पँडवानी तीजन बाई के, गूँजय देश विदेश।
अउ भरथरी सुरुज बाई के, छोड़य छाप विशेष।।8
चलौ उठाबो पुरखा बाना, कदम बढ़ाके आज।
मान दिलाये छत्तीसगढ़ी, करना हे मिल काज।।9
इंजी.गजानंद पात्रे "सत्यबोध"
बिलासपुर
छंद परिवार- छत्तीसगढ़
साधक- सत्र 2
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धमतरी: दिनांक: 28 नव॰ 2021
विषय: महतारी भाखा छत्तीसगढ़ी
महतारी भाखा हरे , छत्तीसगढ़ी जान ।
पढ़व लिखव बोलव सबो , सदा करव जी मान ।।
सदा करव जी मान , तभे तुम मान ल पाहू ।
छत्तीसगढ़ी बोल , मया सुग्घर बगराहू ।।
बनहू जब हुँसियार , तभे फुलही फुलवारी।
हरियर सुख के छाँव हरे , भाखा महतारी।।
छत्तीसगढ़ी बोल ले , बहे मया के धार ।
सहज हृदय ला छू जथे , देथे खुशी अपार।।
देथे खुशी अपार , भरे हे सुख के सागर ।
सुवा ददरिया गीत , मया ला बाँटय आगर ।।
गजबे स्वाद बताय , सुहाथे जइसे कड़ही ।
मँदरस अस हे मीठ , हमर ये छत्तीसगढ़ी।।
बोली मीठा गुड़ सहीं , कतका करँव बखान ।
महतारी छत्तीसगढ़ , इही हमर पहिचान ।।
इही हमर पहिचान , हमन बड़भागी आवन ।
जब तक रही परान , ठेठ भाखा अपनावन ।।
हरियर हे सिंगार , हमर दाई के चोली ।
करबो जग मा राज , बोलके मीठा बोली ।।
परमानंद बृजलाल दावना
भैंसबोड़
6260473556
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: छत्तीसगढ़ी भाखा दिवस
28/11/2021
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छत्तीसगढ़ी भाखा सुग्घर,
दाई तोर दुलार हे।
गुरतुर बोली मँदरस जइसन,
बरसत मया फुहार हे।।
छत्तीसगढ़ी भाखा सुग्घर........
आवव संगी भाई जुरमिल,
गुन माटी के गाव जी।
बनके सब किसान नँगरिहा,
अन्न सोन उपजाव जी।।
करमा-सुआ-ददरिया सुग्घर,
गली - गली गोहार हे।
छत्तीसगढ़ी भाखा सुग्घर.......
बगरत हावै चारो कोती,
दाई के ईमान हा।
एखर सेती बाढ़त हावै,
दुनिया मा पहिचान हा।।
महतारी भाखा मा सुनलौ,
जम्मों ला जोहार हे।
छत्तीसगढ़ी भाखा.......
गंगा कस पबरित भाखा ये,
एखर गुन गायेंव मँय।
ननपन ले सुन-सुन के भइया,
ज्ञान जोत पायेंव मँय।।
मान मिलत सम्मान मिलत हे,
जग मा कृपा तुम्हार हे।
छत्तीसगढ़ी भाखा........
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छंदकार :-
बोधन राम निषादराज"विनायक"
सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम (छ.ग.)
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जीतेन्द्र वर्मा खैरझिटिया: छंद त्रिभंगी
सबके मन भावय, गजब सुहावय हमर गोठ, छत्तीसगढ़ी।
झन गा बिसरावव, सब गुण गावव, करव पाठ, छत्तीसगढ़ी।
भर भरके झोली, बाँटव बोली, सबे तीर, छत्तीसगढ़ी।
कमती हे का के, देखव खाके, मीठ खीर, छत्तीसगढ़ी।
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को, कोरबा(छग)
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महतारी भाँखा- दोहा गीत
दया मया के मोटरा, सबके आघू खोल।।
मधुरस कस गुरतुर गजब, छत्तीसगढ़ी बोल।
खुसबू माटी के उड़े, बसे हवै सब रंग।
तन अउ मन ला रंग ले, रख ले हरदम संग।
हरे दवा निसदिन खवा, बोल बने तैं तोल।
दया मया के मोटरा, सबके आघू खोल।।
परेवना पँड़की रटय, बोले बछरू गाय।
गुरतुर भाँखा हा हमर, सबके मन ला भाय।
जंगल झाड़ी डोंगरी, गावय महिमा डोल।
दया मया के मोटरा, सबके आघू खोल।।
इहिमे कवि अउ संत मन, करिस सियानी गोठ।
कहे सुने मा रोज के, भाँखा होही पोठ।।
महतारी ले कर मया, देखावा ला छोल।
दया मया के मोटरा, सबके आघू खोल।।
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को, कोरबा(छग)
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छत्तीसगढ़ी बानी(लावणी छंद)- जीतेंन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"
मैं छत्तीसगढ़ी बानी अँव, गुरतुर गोरस पानी अँव।
पी के नरी जुड़ा लौ सबझन, सबके मिही निशानी अँव।
महानदी के मैं लहरा अँव, गंगरेल के दहरा अँव।
मैं बन झाड़ी ऊँच डोंगरी, ठिहा ठौर के पहरा अँव।
दया मया सुख शांति खुशी बर, हरियर धरती धानी अँव।
मैं छत्तीसगढ़ी बानी अँव, गुरतुर गोरस पानी अँव।।।।।।
बनके सुवा ददरिया कर्मा, माँदर के सँग मा नाचौं।
नाचा गम्मत पंथी मा बस, द्वेष दरद दुख ला काचौं।
बरा सुँहारी फरा अँगाकर, बिही कलिंदर चानी अँव।
मैं छत्तीसगढ़ी बानी अँव, गुरतुर गोरस पानी अँव।।
फुलवा के रस चुँहकत भौंरा, मोरे सँग भिनभिन गाथे।
तीतुर मैना सुवा परेवना, बोली ला मोर सुनाथे।
परसा पीपर नीम नँचइया, मैं पुरवइया रानी अँव।
मैं छत्तीसगढ़ी बानी अँव, गुरतुर गोरस पानी अँव।
मैं गेंड़ी के रुचरुच आवौं, लोरी सेवा जस गाना।
झाँझ मँजीरा माँदर बँसुरी, छेड़े नित मोर तराना।
रास रमायण रामधुनी अउ, मैं अक्ती अगवानी अँव।
मैं छत्तीसगढ़ी बानी अँव, गुरतुर गोरस पानी अँव।।
ग्रंथ दानलीला ला पढ़लौ, गोठ सियानी धरलौ जी।
संत गुणी कवि ज्ञानी मनके, अंतस बयना भरलौ जी।
मिही अमीर गरीब सबे के, महतारी अभिमानी अँव।
मैं छत्तीसगढ़ी बानी अँव, गुरतुर गोरस पानी अँव।।
जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को, कोरबा(छग)
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*राज भाषा दिवस* (छत्तीसगढ़ी महतारी भाखा)
महतारी गुरतुर भाखा ला, बोलव भैया दीदी मन|
जुड़े हवय अस्मिता राज के, बोली मधुरस कस पावन||
महतारी के मया समाये, महिमा गाये सुर मुनि मन |
हिरदे भितरी हवँय बसाये, ये भाखा गुन लव जनजन||
मुखिया बोलय राजा बनके, मनखे भाखा पोहे तन||
माटी के ओ लाल घलो हा, अड़बड़ बोलय जतन जतन||
बारो महिना बउरँय बोली, महक उठे हे हर कनकन|
सुआ ददरिया करमा गाले, नाचा पंथी मनभावन||
गुरतुर गुरतुर लागय एहर,रचे बसे हे सबो करम |
मनखे मनखे एकबरोबर, ए मानय जी सबो धरम||
ए भाखा के सेवा खातिर,सुंदर कोदू हवँय अमर|
महतारी भाखा बगराइन, गाँव गली अउ शहर नगर ||
अश्वनी कोसरे
कवर्धा कबीरधाम
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*सार छंंद*
*विषय-छत्तीसगढ़ी भाखा*
छत्तीसगढ़ी भाखा मा अब, परभाखा लदकागे।
हमर इहाँ आके पर-रजिहा, भाखा हा पोठागे।
नेता मन परबुधिया होगे, भाखा अपन भुलागे।।
मान पाय बर महतारी हा, अपन इहाँ पछुवागे।।
अपन राज मा छत्तीसगढ़ी, कोन्टा मा सकलागे।
आज अपन भाखा बउरे बर, अब सरकार लजागे।।
क्षेत्रवाद जब कइथें हमला, हमन माँगथन हक ला।
लड़थन हम भाखा संस्कृति बर, सबो समझथें जकला।।
*अनुज छत्तीसगढ़िया*
पाली जिला कोरबा
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छत्तीसगढ़ी राज्य भाषा दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ
छत्तीसगढ़ी बोली भाखा, बड़ गुरतुर मोला लागे।
जन्म जन्म के रिश्ता हावे, जेला मोरे मन भागे।
मोर हवय जे दाई भाखा, मानव जेला भगवाने।
मीठ मीठ अउ गुरतुर बोली, बोलव जी सीना
ताने।
नाचत पन्थी अऊ सुवा ला, करथन जेमा गुनगाने।
राग ददरिया करमा सुघ्घर, भाषा दे हे पहचाने।
दान दया ला राखे सुघ्घर, मया प्रीत ला हे बाँधे।
करम धरम के गुन ला गाथे, राम नाव ला हे साधे।।
फेर देख हालत भासा के, आँखी ले आँसू आथे।
हमर शहर ला हमरे भाखा, काबर अइसन नइ भाथे।
छोड़व मन के संका अबतो, राज काज देवव मोरो।
पढ़ लिख ले दाई भाखा मा, भाग जागही अब तोरो।
-हेमलाल साहू
ग्राम गिधवा, पोस्ट नगधा
तहसील नवागढ़, जिला बेमेतरा
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राजभाषा दिवस विशेष
छत्तीसगढ़ी भाखा हा जी, कइसे पाही मान
कारी घपटे अँधियारी ले, कइसे होय बिहान।
कहूँ कहूँ ला बतराये मा, आथे भारी लाज।
सब दफ्तर मा अंग्रेजी के, बढ़गे भारी काज।
अपने भाखा हा लदका के, पर गे निचट उतान।।
छत्तीसगढ़ी भाखा हा जी, कइसे पाही मान...
आने भाखा बोलव कतको, मत येला बिसराव।
मोह धरे आने भाखा के, झन जादा इतराव।
काबर अपने संस्कृति के जी, नइ हे थोरिक ज्ञान।।
छत्तीसगढ़ी भाखा हा जी, कइसे पाही मान...
घर के जोगी रहै जोगड़ा, आन गाँव के सिद्ध।
नोच झपट के झन ले जावय, कहूँ बहिरहा गिध्द।
हमीं हमन झन रहन उपेक्षित, सोचव सबो सियान।।
छत्तीसगढ़ी भाखा हा जी, कइसे पाही मान...
उमाकान्त टैगोर, जाँजगीर
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सूर्यकांत गुप्ता सर: राजभाखा दिवस के बधाई देवत...
जइसे हम पखवाड़ा रखके, हिंदी के करथन सम्मान।
महतारी छत्तीसगढ़ी के,राखन चिटिकुन मान मितान।।
दूसर भाखा शामिल करथे,लिखइ पढ़इ मा तो सरकार।
महतारी के सेवा बर जी, उदिम करन हम अउ दमदार।।लिखत 'अमर घर चल' कस भाई, छपय एकरो बने किताब।
रहँय लड़कपन ले लइकामन, पढ़े लिखे बर जी बेताब।।
प्रचलित जुन्ना बोली सँग सँग, एकर भरन शब्द भंडार।
गुरतुर बोली भाखा बर गा, बाढ़य सबके मया दुलार।।
बनै व्याकरण मानक एकर, अउ भाखा कस ठँउका पोठ।
बन के झन रहि जावय खाली, गुरतुर भाखा हर जी गोठ।।
सूर्यकान्त गुप्ता, सिंधिया नगर दुर्ग(छ.ग.)
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कवि बादल: छत्तीसगढ़ी भाषा
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अपने घर मा दासी काबर, छत्तीसगढ़ी भाषा दाई।
अंग्रेजी हा राज करत हे,वोकर पावर हे हाई।।
राजकाज एमा नइ होवय,बनके रहिगे बस शोभा।
पढ़ई लिखई कोन कराही,गड़थे का जइसे खोभा।।
कभू परीक्षा रोजगार बर, काबर नइ होवय एमा।
साहित के हे भरे खजाना,नीक व्याकरण हे जेमा।।
गूढ़ ज्ञान सँग भाव झलकथे,संस्कृति के घन फुलवारी।
लोकगीत हे,लोककथा हे,तीज तिहार हवै भारी।।
अरथ भरे जस मँदरस गुत्तुर, कान परे अमरित बानी।
बोले मा हे निचट सोझवा, निर्मल जस गंगा पानी।।
मातु कोसला के ममता हे, रघुराई के मरजादा।
करमा सुवा ददरिया पंथी, बोली बतरा बड़ सादा।।
आवव छत्तीसगढ़ी भाखा के, गौरव सबो जगाना हे।
कोटि कोटि हम बेटी बेटा, वोखर हक देवाना हे।।
नइये वो दिन हा अब दुरिहा,छत्तीसगढ़ी हा अगुवाही।
राजकाज हा खच्चित होही, संविधान मा जुड़ जाही।।
चोवा राम वर्मा 'बादल'
हथबंद, छत्तीसगढ़
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: छत्तीसगढ़ी राजभाषा दिवस के आप सब ला गाड़ा गाड़ा बधाई💐💐
सरसी छंद गीत- *जतन करव महतारी भाखा*
जतन करव महतारी भाखा, भइया मोर मितान।
इही हमर हे स्वाभिमान अउ, इही हमर हे शान।।
दया-मया के गुरतुर बैना, मधुरस भरे मिठास।
सत संदेश दिये जन-जन ला, सतगुरु घासीदास।।
कहे इही भाखा मा मनखे, मनखे एक समान।
जतन करव महतारी भाखा, भइया मोर मितान।।1
लिखिस दानलीला ला बढ़िया, पंडित सुंदर लाल।
कोदूराम दलित के कविता, ऊँच करा दिस भाल।।
जनकवि लक्ष्मण मस्तुरिहा के, मातृभूमि प्रति गान।
जतन करव महतारी भाखा, भइया मोर मितान।।2
रखिन सँजो के पुरख़ा हमरो, सपना आँखी कोर।
छत्तीसगढ़ी आगू बढ़ही, गाँव शहर घर खोर।।
छत्तीसगढ़िया बन परबुधिया, आज भुलागे मान।
जतन करव महतारी भाखा, भइया मोर मितान।।
तरसे सुवा ददरिया करमा, राउत गम्मत नाच।
परदेशी भाखा पथरा मा, दिहिस अपन ला काँच।।
झन परलोकिहा बनौ भइया, पढ़े लिखे विद्वान।
जतन करव महतारी भाखा, भइया मोर मितान।।4
सुसकत हावय बासी-चटनी, नंगरिहा अउ खेत।
बइला गाड़ी के घँघड़ा हा, कहत हवे कर चेत।।
गजानंद जी जाग-जाग अब, लाबो नवा बिहान।
जतन करव महतारी भाखा, भइया मोर मितान।।5
✍🏻इंजी. गजानंद पात्रे 'सत्यबोध'
बिलासपुर
छंद परिवार- छत्तीसगढ़
छंद साधक- सत्र 2
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*छत्तीसगढ़ी भाखा दिवस(दोहा छंद)*
महतारी भाखा बनय, राज-काज आधार ।
तब हो जाही गा हमर, सपना हा साकार ।।१
छत्तीसगढ़ी के सदा, राखव सब झन मान ।
पोठ हवय भाखा हमर, सार बात लौ जान ।।२
करलौ भाखा के जतन, भाखा हे अनमोल ।
पढ़व-लिखव संगी तुमन, छत्तीसगढ़ी बोल ।।३
खुदके भाखा ले हमर, होथे गा पहिचान ।
महतारी के आज हम, कर लन जी सम्मान ।४
आने भाखा हा इहाँ, ठाड़े सीना तान ।।
छत्तीसगढ़ी बोल के, करिहौ गा अभिमान ।।५
*मुकेश उइके "मयारू"*
*छंद साधक-- सत्र 16*
चेपा(बकसाही) पाली,
जिला- कोरबा(छ.ग.)
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दिनाँक 28/11/2021
सार छंद__गीत
*विषय____छत्तीसगढ़ी भाखा*
मान मिलै छत्तीसगढ़ी ला, मिल के कदम बढ़ावन।
आवव छत्तीसगढ़िया संगी, एला हम सिरजावन।।
छत्तीसगढ़ी भाखा के सब, मिलके मान बढ़ाबो ।
लिखबो छत्तीसगढ़ी मा अउ, गीता पाठ पढ़ाबो।।
छत्तीसगढ़ी भाखा के हम, रस्ता ला चतरावन।
मान मिलै छत्तीसगढ़ी ला, मिल के कदम बढ़ावन।।१
घर दफ्तर मा छत्तीसगढ़ी, हमन बोलबो सुग्घर।
करबों पोठ अपन संस्कृति ला, शान मान पाये बर।
शान बढ़ै हिंदी के जइसे, आवव अलख जगावन।
मान मिलै छत्तीसगढ़ी ला, मिल के कदम बढ़ावन।।२
करमा सुआ ददरिया नाचा, संस्कृति हरै पुराना।
पुरखा के इही धरोहर, हे अनमोल खजाना ।।
छत्तीसगढ़ी भाखा बर हम, सुनता जोत जलावन।
मान मिलै छत्तीसगढ़ी ला, मिल के कदम बढ़ावन।।३
मान मिलै छत्तीसगढ़ी ला, मिल के कदम बढ़ावन।
आवव छत्तीसगढ़िया संगी, एला हम सिरजावन।।
पद्मा साहू "पर्वणी"
खैरागढ़ जिला राजनांदगांव छत्तीसगढ़
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