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Tuesday, April 27, 2021

वीर हनुमान जयंती विशेषांक, छंदबध्द कवितायें

फोटो-गुमान साहू(छंदकार)


 वीर हनुमान जयंती विशेषांक, छंदबध्द कवितायें


जय हनुमान-कुंडलियाँ छंद


भारी आहे आपदा, सबे हवै हलकान।

हाथ जोड़ सुमिरन करौं, दुरिहावव हनुमान।

दुरिहावव हनुमान, काल बनगे कोरोना।

शहर कहँव का गाँव, उजड़गे कोना कोना।

सब होगे मजबूर, खुशी मा चलगे आरी।

का विकास विज्ञान, सबे बर हे जर भारी।।


चंदा ला लेहन अमर, लेहन सूरज जीत।

कोरोना के मार मा, तभो पड़े हन चीत।

तभो पड़े हन चीत, सिरागे गरब गुमानी।

घर भीतर हन बंद, पियत हन पसिया पानी।

मति गेहे छरियाय, लटकगे गल मा फंदा।

टार रात अँधियार, पवन सुत बन आ चंदा।।


चारो कोती मातगे, हाल होय बेहाल।

सुरसा कस मुँह फार दिस, कोरोना बन काल।

कोरोना बन काल, लिलत हे येला वोला।

अइसन आफत देख, काँप जावत हे चोला।

आजा हे हनुमान, दुखी जन के सुन आरो।

नइ आवत हे काम, नता धन बल गुण चारो।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

कोरबा(छग)

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कुंडलियाँ छ्न्द मनोज वर्मा

भारी बिपदा छाय हे, संकट हर हनुमान।   

कखरो घर दुख आय झन, सुखी रहे इंसान।।

सुखी रहे इंसान, गीत प्रभु तोरे गावय।

बॉंटत मया दुलार, बीत ये जिनगी जावय।।

स्वस्थ रहे संसार, चलय झन सुख मा आरी।

संकट हर हनुमान, छाय हे बिपदा भारी।।


संकट मोचन नाम प्रभु, पवन अंजनी लाल।

थर थर कांपे देख के, स्वयं जेन ला काल।।

स्वयं जेन ला काल, माथ जी देख नवाये।

हृदय अपन वो चीर, जानकी राम दिखाये।।

पाय कृपा प्रभु राम, भजे जे निरमल हो मन। 

दुख दरिदर ले दूर, रखे नित संकट मोचन।।


लेके जेकर नाम ला, सागर लांघत जाय।

मारे अक्षय लाल ला, लंका रहे जलाय।।

लंका रहे जलाय, राम के शक्ति बताये।

बिपत लखन ला जान, खोज संजीवन लाये।।

अंयत राम समाय, नवा जी जिनगी देके।

करे बड़े नित काम, नाम रघुवर के लेके।


मनोज कुमार वर्मा लवन बलौदा बाजार

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सार छंद - बोधन राम निषादराज

शीर्षक - जय बजरंगी

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राम भक्त बजरंगी तोरे,

                      महिमा हावै भारी।

पवन अंजनी बेटा तँय तो, 

                    बने रूद्र अवतारी।।


राम लखन सँग सुग्रीव राजा,

                    दुनों मितान बनाये।

जनक नंदिनी सीता मइया,

                मिलके खोज कराये।।

लाँघ गये सागर ला तँय तो, 

                 मारे      अतियाचारी।

राम भक्त बजरंगी तोरे..............


मसक रूप ला धर के जम्मों,

                 घूम  डरे  तँय  लंका।

निशाचरी माया के हनुमत,

                 बजा डरे तँय डंका।।

अपन दिखाए तँय ताकत ला,

                     जरगे लंका सारी।

राम भक्त बजरंगी तोरे...................


संकट तहीं हरइया सबके,

                 राम लखन के प्यारे।

लाये संजीवन बूटी ला, 

               भाई   लखन  उबारे।।

ज्ञानवान गुनवान तहीं हस,

                 दुनिया  मा  बलधारी।

राम भक्त बजरंगी तोरे.............


दानव  मारे  बड़े-बड़े सब,

                   पापी   ला   संघारे।

सियाराम अउ भरत लखन के,

                 जम्मों  काज सँवारे।।

अरज करत हे तोर "विनायक",

                 आ के शरन  तिहारी।

राम भक्त बजरंगी तोरे...............

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छंदकार  :--

बोधन राम निषादराज"विनायक"

सहसपुर लोहार,कबीरधाम(छ.ग.)

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 कुण्डलिया छंद- विजेन्द्र वर्मा

जय हनुमान


सबके दुख ला जी हरय,संकट मोचन जान।

भागय विपदा के घड़ी,जपय जेन हनुमान।।

जपय जेन हनुमान,उँकर बर तारनहारी।

महिमा गावन आज,इहाँ सब्बो नर नारी।

देथे बड़ वरदान,रहव कोनों ना दबके।

सपना पूरन होय,आज दुनिया मा सबके।


पूजा करके देख लव,जिनगी होय उजास।

श्रद्धा भगती जे करय,दुख के होवय नास।।

दुख के होवय नास,भाग चमके कस लागय।

बनथे बढ़िया योग,दुष्ट मन हा जब भागय।

तारय सकल जहान,पवन सुत सा ना दूजा।

मिलही सुख के छाँव, करव भक्तन मन पूजा।


विजेन्द्र वर्मा

नगरगाँव(धरसीवाँ)

जिला-रायपुर


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कवि चोवा राम वर्मा बादल: जय हनुमान

(वीर छंद)

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पँइया लागवँ हे बजरंगी,पवन तनय अँजनी के लाल।

शंकर सुवन केशरी नंदन,भूत प्रेत के सँउहें काल।।


रामदूत अतुलित बलधारी, संकट मोचक सुमिरौं नाम।

जेकर हिरदे के मंदिर मा, सदा बिराजे सीताराम।।


अजर अमर तैं चारों जुग मा, पल मा विपदा देथच टोर।

बाधा बिघन हटा दौ हनुमत, दंडा शरण परे हँव तोर।।


 तैं कपिपति सुग्रीव सहायक,करे हवच बड़का उपकार।

रघुराई ला लान मिलाये,होगे बालि तको भवपार।।


रघुराई के संकट टारे, जग जननी के खबर बताय।

रावण के नस बल ला टोरे, गढ़ लंका ला राख बनाय।।


भक्त विभीषण के उपकारी, पागे वो लंका के राज।

तोर नाम के सुमिरन करते, बनके रहिथे बिगड़े काज।।


शक्ति बाण मा लछिमन मूर्छित, लाके बूटी प्राण बँचाय।

भरत सहीं भाई अच कहिके,रघुनंदन हा कंठ लगाय।।


तहस नहस निसचर दल करके, दाँत कटर के ठाने युद्ध।

दसकंधर हा मूर्छित होगे, मारे मुटका होके क्रुद्ध।।


अहिरावण के भुजा उखाड़े,जाके मारे लोक पताल।

भक्तन रक्षक हे बजरंगी, दुष्टन बर तैं सँउहें काल।।


देख हाल अब ये दुनिया के, माते हावय हाहाकार।

 रार मचाये हे कोरोना ,कर दे जल्दी तैं संहार।।


जै जै जै बजरंग बली जै, जै जै जै जै जै श्रीराम।

हाथ जोर के बिनती हावय, भारत भुँइया हो सुखधाम।।


चोवा राम वर्मा 'बादल'

हथबंद, छत्तीसगढ़

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रोला छंद--आशा देशमुख

रामभगत हनुमान ,हरव प्रभु जग के पीरा।

बड़ भारी उत्पात,मचावत नानुक कीरा।

कोरोना हे नाम,लुका के घात करत हे।

मनखे मन के प्राण ,इही हा रोज हरत हे।1



भक्तन करें पुकार,सुनव बिनती बजरंगी।

तहीं हमर भगवान,तहीं स्वामी अउ संगी।

रोवत हे संसार,विपत आये हे भारी।

करव अमंगल दूर, लाव सुख मंगलकारी।2



राम दूत हनुमान,जगत  के सुध ले लेवव।

टारव गरब कलेश, भक्ति के वर दे देवव।

तहीं भजन अउ भक्ति,तहीं कलयुग के देवा।

आये तोरे द्वार,करें भक्तन मन सेवा।3



आशा देशमुख

एनटीपीसी कोरबा

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Saturday, April 24, 2021

चौपाई छंद- इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"


 

चौपाई छंद- इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"


( *संत शिरोमणि गुरु घासीदास बाबा जी के 52 उपदेश* )

*अ*

अमर नही संतो ये चोला| काल उठा ले जाही तोला||

हिरदे मा सतनाम बसा ले| गुरु के महिमा मनुवा गा ले||1


*आ*

आवव आवव सतगुरु चरना| नाम-पान हे गुरु के धरना||

भवसागर ले तब तर जाहू| सबद सबद जब ज्ञान लखाहू||2


*इ* 

इरखा लिग़री-चारी त्यागौ| मीठ बोल मा अंतस पागौ||

दूर बुराई पर के रहना| सत मारग धर निस दिन चलना||3


*ई*

सत ईमान धरम हे गहना| संत गुनी गुरु जन के कहना||

सत ला जानौ सत ला मानौ| सत रक्षा बर मन मा ठानौ||4


*उ*

उल्लू चाहत घपटे रतिया| हम ला भावत सतगुरु बतिया||

सत्य प्रकाश करे उजियारा| झूठ करे जग मन अँधियारा||5


*ऊ*

ऊँचा जग मा इंखर दर्जा| चुका कभू नइ पावन कर्जा||

दाई ददा जनम देवइया| गुरु हे जिनगी के सिरजइया||6


*ए*

एक नाम हे सार जगत मा| रमे बसे सतनाम भगत मा||

घट घट कण कण जीव चराचर| चाँद सुरुज अउ पर्वत सागर||7


*ऐ*

ऐंठ गोठ झन ऐंठत रहिबे| दया मया झन मेंटत रहिबे||

धन दौलत के छोड़ गुमाना| जुच्छा आना जुच्छा जाना||8


*ओ*

ओढ़ चलौ गुरु नाम चदरिया| छाय नही तब दुःख बदरिया||

नार फाँस ला काटे यम के| खुशहाली से जिनगी दमके||9


*औ*

और नही मन रंग रँगावव| अजर नाम सतनाम लखावव||

दया दान जन पर हित सेवा| कर्म नेक रख पावव मेवा||10


*अं*

अंत अनंत अनादि हवे सच| लोभ मोह ले रइहौ बच बच||

क्रोध अगन ले तन मन जलथे| धीर धरे सुख जिनगी चलथे||11


*अः*

छः आगर छः कोरी सुमिरन| करके तन मन गुरु ला अर्पन||

बन सत हंसा गुरु गुन गावय| जनम दुबारा जग मा पावय||12


*ऋ*

ऋषि मुनि गुरु जन के बानी| सत्य प्रेम ले सत पहचानी||

कर्मयोग जिनगी के शाखा| जग कल्याण करे नित भाखा||13


*क*

कपट द्वेष झन रार करौ जी| सत्य काम मा ध्यान धरौ जी||

नजर गड़े झन पर धन नारी| अपन करम फल कर निस्तारी||14


*ख*

खान-पान सादा रख भाई| काम असुर हे मांस खवाई||

स्वस्थ दिमाक बसे चतुराई| बात कहे सच गुरु गोसाई||15


*ग*

गला लगा ले दीन दुखी ला| हँसी खुशी दे बाँट सुखी ला||

मान असल जग मान खजाना| दुख बिपदा मा हाथ बँटाना||16


*घ*

घर घर मंगल चौका गावव| सत के मांदर झाँझ बजावव||

महानाम सतनाम जपौ सब| सत्य करम मा पाँव नपौ सब||17


*ङ*

गङ्गा जल कस गुरु के बानी| ध्यान लगा उर बनबे ज्ञानी||

बुरा भला के राह बतावय| भटकत हंसा पार लगावय||18


*च*

चाल चलन रख नेक करम ला| थाम सदा सतनाम धरम ला||

जनम धरे हस कुल सतनामी| सत्य अहिंसा बन अनुगामी||19


*छ*

छोड़ बुराई जी सुख जिनगी| नशा पान हे दुख के तिलगी||

हँसी खुशी घर तन जर जाये| पद इज्जत धन मान गँवाये||20


*ज*

जल जंगल के रक्षा कर लौ| मातृभूमि बर जी लौ मर लौ||

जिनगी के आधार हवय ये| सतगुरु उद्गार हवय ये||21


*झ*

झगरा झंझट ला तुम टारौ| द्वेष अहम ला आगी बारौ||

आपस मा हम भाई भाई| सुमता के मिल बीज उगाईं||22


*ञ*

पञ्च तत्व ले बने शरीरा| अग्नि भूमि जल गगन समीरा||

नाम तभे भगवान पड़े हे| सत्यनाम संसार खड़े हे||23


*ट*

टल जाथे दुख बिपदा आये| महामंत्र सतनाम लखाये||

मनुज मनोरथ सुफल सुहाये| पद निर्वान सुगम पथ पाये||24


*ठ*

ठगनी हे ये काया माया| मोह धरे जग जन इतराया||

अंत घड़ी मिट्टी मिल जाना| फिर मनुवा काहे पछताना||25


*ड*

डर डर के नइ जिनगी जीना| सुख दुख के हे बिछे बिछौना||

दुख दिन बाद मिले सुख रैना| कतका सुग्घर गुरु के बैना||26


*ढ*

ढोंग रूढ़िवादी ला छोड़व| ज्ञान राह मा मन ला मोड़व||

सही गलत के कर करौ सरेखा| कर्म बनाये सब के लेखा||27


*ण*

प्राण भले जावय सच खातिर| पर जीते ना कपटी शातिर||

ध्यान धरौ सतगुरु के कहना| सत्य सदा हो सबके गहना||28


*त*

तरी तरी तन घुन्ना खाये| जे सतनाम सबद दुरिहाये|

धरे नही जे गुरु के बैना| पाय नही वो सुख दिन रैना||29


*थ*

थाह मिले ना ज्ञान समुंदर| खोज मनुज मन खुद के अंदर||

सबद सबद धर गुरु के बानी| बनबे मनुवा परम सुजानी||30


*द*

दान ज्ञान के मोल अनोखा| बिना ज्ञान के जिनगी खोखा||

सच ला थाम मढ़ा ले जोखा| नइ खाबे तब मनुवा धोखा||31


*ध*

धरम करम दू नाँव बने हे| सतगुरु किरपा छाँव बने हे||

धरम बिना हे करम अधूरा| करम लेख ला कर लौ पूरा||32


*न*

नमन करौ गुरु संत चरन मा| ध्यान लगा सतनाम भजन मा||

नाम सबद जग मुक्ति बँधे हे| हर प्राणी के साँस छँदे हे||33


*प*

पाटव जाति- पाति के खाई| एक रंग तन लहू समाई||

मनखे मनखे एक समाना| सीखव सब ला गले लगाना||34


*फ*

फाँस फँसौ ना जाति धरम के| पाठ पढ़व सब नेक करम के||

कर्म बड़े हे मानव जग मा| बाँध सुमत चल हर पग पग मा||35


*ब*

बैर खैर के दाग न छूटे| प्रेम भाव के घड़ा न फूटे||

बात ध्यान ये रख के चलना| झूल सबो लौ सुमता पलना||36


*भ*

भरम-भूत के तोड़व जाला| सत्य प्रेम के पी लौ प्याला||

बाँध मया परिवार रखौ जी| सुख जिनगी आधार रखौ जी||37


*म*

मन के जीते जीत हवे जग| मन के हारे हार हवे पग||

धीर धरे सुख जिनगी मिलथे| रात गये ही भोर निकलथे||38


*य*

यज्ञ बरोबर मारग सच के| चलिहौ संतो तुम बच बच के||

कठिन परीक्षा पग पग मिलथे| फूल सफलता के तब खिलथे||39


*र*

रंग रचे बस सादा तन मा| नाम सुमर गुरु के जीवन मा||

अइसे कर लौ खुद के करनी| तर जाहू संतो बैतरनी||40


*ल*

लगन लगा कर माटी सेवा| मिलही धाम परम सुख मेवा||

येखर गोदी सरग समाना| संत गुनी गुन करे बखाना||41


*व*

वाणी गुरु के अमरित जइसे| सत्य ज्ञान हे पबरित जइसे||

जग जन हित संदेश दिये हे| मानवता परिवेश दिये हे||42


*श*

शंख बजे सतनाम सबद जब| मिट जाये दुख संत दरद सब||

मन कर चंगा भरे उमंगा| जब जब बाजे झाँझ मृदंगा||43


*ष*

षड़यंत्र करे जे सगा बिरादर| नइ पावय वो जग मा आदर||

छल कपटी ले बच के रइहू| नइ तो पग पग दुख ला सइहू||44


*स*

समय बड़ा बलवान हवे जी| सुख दुख के पहिचान हवे जी||

कदर करे जे मान कमाये| समय गवायें वो पछताये||45


*ह*

हँसी खुशी धर जिनगी जीना| चमके श्रम के माथ पसीना||

हीन भाव तज आगू बढ़ना| नव विकास के सिढ़ही गढ़ना||46


*क्ष*

क्षमा प्रेम ज्ञानी के गहना| दूर द्वेष कुंठा ले रहना||

समरसता के पाठ पढ़ावय| भला करे जग पाँव बढ़ावय||47


*त्र*

त्रास मिटे सतनाम जपन मा| फूल खिले सुख हिया चमन मा||

गा लौ संतो सतगुरु महिमा| जेन बढ़ावय जग जन गरिमा||48


*ज्ञ*

ज्ञान कभू नइ बिरथा जावय| मान सदा वो जग मा पावय||

धीर विवेक रखे ये मनखे| सच ला जाने सच ला परखे||49


*ढ़*

ढूँढ़ फिरे मन अंदर बाहिर| सत के महिमा जग हे जाहिर||

सत मा धरती खड़े अकासा| बात कहे गुरु घासीदासा||50


*ड़*

हाड़ मांस के देह बने हे| छुआछूत धर लोग सने हे||

खून अलग नइ बहे शरीरा| एक सबो के सुख अउ पीरा||51


*श्र*

श्रवण करौ सतगुरु के बानी| सँवर जही मानुष जिनगानी||

धर चलिहौ बावन उपदेशा| मिट जाही संतो सब क्लेशा||52


छंदकार- इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर ( छत्तीसगढ़ )

मो.नं.- 8889747888

*नोट:- सर्वाधिकार सुरक्षित*

Friday, April 23, 2021

विश्व पृथ्वी दिवस पर,,लावणी छंद-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया" धरती दाई


 

लावणी छंद-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


धरती दाई


जतन बिना धरती दाई के, सिसक सिसक पड़ही रोना।

पेड़ पात बिन दिखे बोंदवा, धरती के ओना कोना।।


टावर छत मीनार हरे का, धरती के गहना गुठिया।

मुँह मोड़त हें कलम धरइया, कोन धरे नाँगर मुठिया।

बाँट डरे हें इंच इंच ला, तोर मोर कहिके सबझन।

नभ लाँघे बर पाँख उगा हें, धरती मा रहिके सबझन।

माटी ले दुरिहाना काबर, आखिर हे माटी होना।

जतन बिना धरती दाई के, सिसक सिसक पड़ही रोना।।


दाना पानी सबला देथे, सबके भार उठाय हवै।

धरती दाई के कोरा मा, सरी संसार समाय हवै।

मनखे सँग मा जीव जानवर, सब झन ला पोंसे पाले।

तेखर उप्पर आफत आहे, कोन भला ओला टाले।

धानी रइही धरती दाई, तभे उपजही धन सोना।

जतन बिना धरती दाई के, सिसक सिसक पड़ही रोना।


होगे हे विकास के सेती, धरती के चउदा बाँटा।

छागे छत सीमेंट सबे कर, बिछगे हे दुख के काँटा।

कभू बाढ़ मा बूड़त दिखथे, कभू घाम मा उसनावै।

कभू काँपथे थरथर थरथर, कभू दरक छाती जावै।

देखावा धर मनुष करत हे, स्वारथ बर जादू टोना।

जतन बिना धरती दाई के, सिसक सिसक पड़ही रोना।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

दोहा छंद* *🌴🌳पेड़🌳

 *दोहा छंद*

                  *🌴🌳पेड़🌳🌴*


सुनव सुनव गा पेड़ ला, बाढ़न दव झन काट।

जीव बचाथे  पेड़ हा, जंगल  ला  झन  पाट।।


ये  भुइँया  मा  पेड़  ला, सबो  डहर  बगराव।

जग ला सरग बनाव गा, जुरमिल पेड़ लगाव।। 


झन लेवव  तुम  छोट  मा, होही  भारी  भूल।

पेड़  लगावव  पेड़ जी, रहय  फेर  अनुकूल।।


जानव  सबझन  पेड़ ला, भुइँया  के  सिंगार।

काट काट के पेड़ जी, झन तो बनव जिमार।।


जीव जंतु  सब  पेड़ ले, जियत  हवय संसार।

ए   माटी   मा   पेड़  के, भारी  दया  अपार।।


                        *नागेश कश्यप*

                 *कुंवागाँव, मुंगेली छ.ग.।।*

Wednesday, April 21, 2021

भगवान श्री राम जयंती विशेषांक


 भगवान श्री राम जयंती विशेषांक


चौपाई छंद  - नागेश कश्यप

तिथि नवमी तँय ले अवतारेे, दशरथ नंदन राम दुलारेे।।

शत शत वंदन प्रभु हे तोरे, कर स्वीकार अरज ला मोरे।।


जग ले संकट हरबे रामा, अब जिनगी हे तोरे नामा।।

दुख के जिनगी झन तो बोरव , सबके अंतस सुख ला घोरव।


जल थल मा सब तोरे वासा, नभ वायु राम अनल अकासा।।

बिन मन भगवन कुछ ना होवय, हव कोनो हाँसे अउ रोवय।।


जप ले संगी राघव नामा, बिगड़े काम बनाही रामा।

का हे तोरे मन के आसा, रखव भरोसा अउ विश्वासा।।


मन मा जप ले धीरज राखव, राम रमापति मुख ले भाखव।

मैं अंतस ले बात बतावँव, पद पंकज सब माथ नवावव।।

                           नागेश कश्यप

                           कुंवागांव मुंगेली छ.ग.

                              7828431744

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जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

दोहा

थर-थर कापत हे धरा, का बिहना का शाम।

आफत ला झट टार दौ, जयजय जय श्री राम।

घनाक्षरी

आशा विश्वास धर, सियान के पाँव पर।

दया मया डोरी बर, रोज सुबे शाम के।।

घर बन एक जान, जीव सब एक मान।

जिया कखरो न चान, स्वारथ म लाम के।।

मीत ग मितानी बना, गुरतुर बानी बना।

खुद ल ग दानी बना, धर्म ध्वजा थाम के।।

डहर देखात हवे, जग ला बतात हवे।

अलख जगात हवे, चरित्र ह राम के।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

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तिथि नवमी चैती के महिना,

              अवध  नगर  हर्षावत हे।

राजा दशरथ अउ कौशिल्या,

            जम्मों सुख ला पावत हे।।


जीव जन्तु सब खुशी मनावै,

               बनवासी   के  डेरा मा।

पुरवइया सुग्घर निक लागै,

            राम जनम शुभ बेरा मा।।

सरयू के पबरित जल छलकत,

              भाग अपन सँहरावत हे।

तिथि नवमी चैती....................


दाई कौशिल्या के गोदी,

             खेलत अवध  बिहारी हे।

कैकेयी के भरत शत्रुघन,

             पारत सब किलकारी हे।।

लखन सुमित्रा आँखी तारा,

             सबके मन ला भावत हे।।

तिथि नवमी चैती..................


जोगी बनके भोले बाबा,

               अँगना  द्वार  पधारे  हे।

आस लगाए बजरंगी हा,

               रूप    बेंदरा   धारे हे।।

दर्शन खातिर नर अउ नारी,

               फूल सबो बरसावत हे।

तिथि नवमी चैती....................

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छंदकार:-

बोधन राम निषादराज"विनायक"

सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)


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: कुण्डलिया छंद-

कोरोना संहार कर, जग तारण श्री राम।

शरण पड़े हें भक्त जन, लौ बिपदा मा थाम।।

लौ बिपदा मा थाम, राम नवमी शुभ बेला।

जन्म जयंती आप, सहे ना भक्त झमेला।।

जान गवाँ बेमौत, पड़े ना रोना- धोना।

विघ्नहरण प्रभु राम, दूर कर दौ कोरोना।।

इंजी. गजानन्द पात्रे सत्यबोध

बिलासपुर

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सर्वगामी सवैया- विजेन्द्र वर्मा

रामनवमी


लो संत ज्ञानी सबो बोलथे भक्ति जे हा करे रोज आशीष पाथे।

श्री राम के नाम ला तो जपे ले  सबो के इहाँ कष्ट हा भाग जाथे।

गाथे खुशी के बने गीत वोहा ग जे भक्ति मा डूब गंगा नहाथे।

होथे सदा ओकरे मान दाई ददा ला सदा चित्त मा जें बसाथे।

विजेन्द्र वर्मा

नगरगाँव(धरसीवाँ)

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सुन लो राम कहानी

ताटक छंद 

राजा दशरथ के अँगना में , खेले चारो भैया जी।

देखत माता होत मगन हे,कैकेयी कौशल्या जी।


ठुमुक ठुमुक जब रेंगे रधुवर,बाजत हे पैजनिया जी।

सरग लोक ले देवता  देखे,लेवत हावय बलैया जी।


तीनों देवी करे आरती,लक्ष्मी अंबा ब्रम्हाणी।

जय हो जय हो चारो भैया, गावत हे वीणा पाणी।।


मुख में दधि लिपटाये भागे,खेले अंगना दुवारी।

सुनलो राम कहानी भैया,देखो लागे मनहारी।।


राजा दशरथ कुलकत मन में,  बेटा पायेंव रामा जी।

भरत शत्रुघन अऊ लछिमन हे, मन में करत प्रणामा जी।।


धन्य भाग राजा दशरथ के,चौथे पन मा पाइस हे।

गोदी मा बैठारे राहय,मुख चूमत सुख भाइस हे।


सुनलो राम कहानी भैया,भव से पार लगाथे जी।

दीन दुखी के दुख ला हरथे,सब ला सुख पहुँचाथे जी।।


केवरा यदु "मीरा "

राजिम

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आशा देशमुख: 

मनहरण घनाक्षरी


राम लला अवतरे,रोग राई दुख टरे,

चारो कोती ज्योत बरे, राम संसार हे।

राम मा समाय सब,राम ला बसाय सब,

राम ला मनाय सब,राम ही आधार हे।

राम सुख धाम हवे,राम आठो याम हवे,

प्रभु पूर्ण काम हवे,राम भरतार हे।

राम नाम जपौ प्राणी,सुधरे हे जिनगानी,

पढ़ो करम कहानी,राम कथाकार हे।


आशा देशमुख

एनटीपीसी जमनीपाली कोरबा

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 कुण्डलिया (रामनवमी) ... अजय अमृतांशु


पाये हस मानुष जनम, भज मनखे श्रीराम।

कलजुग नाम अधार हे, बनही बिगड़े काम।।

बनही बिगड़े काम, राम जब पालनहारी।

टरही विपदा तोर, फिकर झन कर सँगवारी।

कहे अजय कविराय, कोन का ले के जाये।

जप ले तँय हरिनाम, काय धर के तँय आये।


आज्ञाकारी हम बनिन, जइसन के श्रीराम।

रघुकुल रीति निभाय बर, तजिन अयोध्या धाम।

तजिन अयोध्या धाम, पिता के बचन निभाइन।

पुरिस जभे वनवास , तभे उन वापस आइन।

कहे अजय कविराय, राम के महिमा भारी।

कलजुग राम अधार, उही हे पालनहारी ।।


अजय अमृतांशु

भाटापारा (छत्तीसगढ़)

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Wednesday, April 14, 2021

छप्पय छंद -भीम जयंती

 


छप्पय छंद -भीम जयंती


भीम जयंती आय,चलव जी खुशी मनाबो।

घर अँगना मा आज,मया के दीप जलाबो।

संविधान के भीम,रहिस हे जी निर्माता।

दलित मसीहा जान,सबो के भाग विधाता।

ऊँज-नीच के भेद ला,भीम करे हे दूर जी।

मनखे के अधिकार बर,लड़े रहिस भरपूर जी।।


जग मा हावय कोन,भीम के जइसे ज्ञानी।

मानवता के भीम,पियाये सबला पानी।

सुमता समता लाय,सबो मनखे मा भाई।

बाबा भीम महान,अबड़ ये करे भलाई।

भारत माँ के वीर ला,बारम्बार प्रणाम जी।

भीम राव अम्बेडकर,जुग-जुग रइही नाम जी।।


छंदकार-

द्वारिका प्रसाद लहरे"मौज"

बायपास रोड़ कवर्धा छत्तीसगढ़

सूरुज सम सुखदाता संविधान निर्माता"-सुखदेव अहिलेश्वर


 

"सूरुज सम सुखदाता संविधान निर्माता"-सुखदेव अहिलेश्वर


लोकतंत्र पाये तैं पाये पद ला भाग्य विधाता के।

संगवारी सुध सुरता करले, संविधान निर्माता के।


चौदह अप्रेल अठ्ठारह सौ इन्क्यानवे ईसवी सन।

भीमराव के जनम भइस ॲंधियारी रात पहाती कन।


विश्वरतन के पिता रामजी सुबेदार सकपाल कहॅंय।

बाबा साहब ला माता भीमाबाई के लाल कहॅंय।


बचपन ले संघर्ष डगर के, पथरीला रस्ता रेंगिस।

संविधान के बॉंध बना के, सुख के जलधारा छेंकिस।


मध्यप्रदेश महू के माटी, गुण गाथे जे नाता के।

संगवारी सुध सुरता करले, संविधान निर्माता के।


भाग्य-वाद ला भेद बताइस, महिमा भागीदारी के।

चिन्ह्वाइस चलके देखाइस, चौखट करम दुवारी के।


शिक्षा समानता समता सुख के घर काला कहिथे जी।

पुरुषारथ के परदरशन बर अवसर काला कहिथे जी।


भारत के बढ़वार बड़ाई अउर भलाई कइसे हे।

ऑंखी ला अलखाइस देखाइस के देखव दइसे हे।


थके घमाये शोषित मनके, छानी छइहॉं छाता के।

संगवारी सुध सुरता करले, संविधान निर्माता के।


दफ्तर के दरवाजा-फइका, खुलगे अक्कल अलमारी।

खुर्शी मा बइठे खुश हावयॅं, सबन जाति के नर नारी।


सिपचाये ले अब नइ सिपचय, जात-धरम के चिंगारी।

भारत माता के लइकन मा, देखे लाइक हे यारी।


पछुआ परजा जनतन्तर मा, जनता जनार्दन होगे।

भले अपन अदरा आदत चलते लाचार असन होगे।


शासन सत्ता सुलभ करइया, सूरुज सम सुखदाता के।

संगवारी सुध सुरता करले, संविधान निर्माता के।


रचना-सुखदेव सिंह''अहिलेश्वर''

गोरखपुर कबीरधाम छत्तीसगढ़