Followers

Tuesday, January 31, 2023

गीत- बने करे भगवान(सरसी छंद)

 गीत- बने करे भगवान(सरसी छंद)


काम घूस खाये के दै नइ, बने करे भगवान।

महिनत करथौं पइसा पाथौं, नइ डोले ईमान।


पचे नहीं फोकट के पइसा, जस आये तस जाय।

होथे बिरथा बड़का बनना, कखरो ले के हाय।।

बने करम नित करत रहौं मैं, भरत रहै धन धान।

काम घूस खाये के दै नइ, बने करे भगवान।।


खून पछीना के धन दौलत, देवय चैन सुकून।

जादा के हे लालच बिरथा, लोभ मोह ए घून।

बने करम के होथे पूजा, करम धरम अउ दान।

काम घूस खाये के दै नइ, बने करे भगवान।।


घूसखोर के गत देखे हँव, माया पइस न राम।

लरहा बनके घुमते रहिगे, होगिस काम तमाम।।

इँहें सरग हे इँहें नरक हे, लिखथे करम विधान।

काम घूस खाये के दै नइ, बने करे भगवान।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

Monday, January 30, 2023

पूस के जाड़-सरसी छंद

 पूस के जाड़-सरसी छंद


जाड़ पूस के गजब जनाथे, जिवरा जाथे काँप।

किनकिन किनकिन ठंडा पानी, चाबे जइसे साँप।


सुरुर सुरुर बड़ चले पवन हा, हाले डोले डाल।

जीव जंतु बर पूस महीना, बनगे हावय काल।

संझा बिहना सुन्ना लागे, बाढ़े हावय रात।

नाक कान अउ मुँह तोपाये, नइहे गल मा बात।

चँगुरे कस हे हाथ गोड़ हा, बइठे सब चुपचाप।

जाड़ पूस के गजब जनाथे, जिवरा जाथे काँप।


दाँत करे बड़ किटकिट किटकिट, नाक घलो बोहाय।

सुधबुध बिसरे बढ़े जाड़ मा, ताते तात खवाय।

गरम चीज बर जिया ललाये, ठंडा हा नइ भाय।

तीन बेर तँउरइया टूरा, बिन नाहय रहि जाय।

लइका लोग सियान सबे झन, करें सुरुज के जाप।

जाड़ पूस के गजब जनाथे, जिवरा जाथे काँप।


भुर्री आखिर काय करे जब, पुरवा बरफ समान।

ठंडा पानी छीचय कोनो, निकल जाय तब प्रान।

काम बुता मा मन नइ लागे, भाये भुर्री घाम।

धीर लगाके लगे तभो ले, गजब पिराये चाम।

दिन ला गिनगिन काटत दिखथे, बबा गोरसी ताप।

जाड़ पूस के गजब जनाथे, जिवरा जाथे काँप।


मुँह के निकले गुँगुवा धुँगिया, धुँधरा कुहरा छाय।

कुड़कुड़ कुड़कुड़ मनखे सँग मा, काँपैं छेरी गाय।

चना गहूँ हें खेत खार मा, संसो मा रखवार।

कतको बेरा हा कट जाथे, बइठे भुर्री बार।

कतका जाड़ जनावत हावय, तेखर नइहे नाप।

जाड़ पूस के गजब जनाथे, जिवरा जाथे काँप।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

महिना पखवाड़ा मन के गोठ बात सरसी छन्द मा*

 *महिना पखवाड़ा मन के गोठ बात सरसी छन्द मा*


महिना अउ पखवाड़ा मिलके, करत हवंय सब बात। 

उँकर बैठकी मा आये हें, साँझ बिहनियाँ रात।। 1


चैत कहत हे होत मोर से, नवा साल शुरुआत। 

मोरे घर मा राम जनम अउ, माता के नवरात।। 2


दूसर मा बैसाख उठत हे,राखंव अक्ती तीज। 

दान धरम सब अक्षय रहिथें, मै किसान के बीज।। 3


जेठ घलो  आगी कस बोले, मैं हर रखथौ ताप। 

मोर तीर मा जेहर बैठे, ओकर निकले भाप।। 4


कहत असाढ़ सुनव भाई हो, मैं धरती महकाँव। 

बादर के संदेशा देवंव, रखंव घाम अउ छाँव।। 5


सावन के तो शान अलग हे , खुश हे भोलेनाथ। 

गंगा के धारा बोहत हे,जगत नवावय माथ।। 6


भादो के कोरा मा बैठे , शंकर सुवन गणेश। 

गाँव _गली घर घर म बिराजे , काटे विध्न कलेश।। 7


पुरखा मन के सुरता करके, करथे मान कुंवार। 

दुर्गा दाई ला बैठाके, करय जगत उजियार।। 8


कातिक कहिथे मोर सही जी, कोन हवय धनवान। 

मोला मिले हवय संगी हो, लक्ष्मी के वरदान।। 9


अग्घन घलो अकड़ के बोलय, मोर तीर हे जाड़। 

दुबके रहिथे घर मा लोगन, काँपे ऊँखर हाड़।।10


पूस मास मा अनपुरना माँ, टुकनी धर के आय। 

खनखन  खनकन कोठी हाँसय, अन्न धान छलकाय।। 11


माघ फगुनवा के अँगना मा, खेले खाय बसंत। 

राग _रंग जब मदरस घोरे, दुख के होवय अंत।।12


*तिथि मन के गोठ*


एकम तिथि के नवराती मा, होवय अब्बड़ मान। 

दूजे के चन्दा ला देखव, बनगे शिव के शान।। 2


दाई बहिनी मन रहिथें जी, तीजा तीज उपास। 

चौथ चतुर्थी संकट हरथे, सब बर होथे खास।। 2


अब्बड़ खास बसंत पंचमी, वाणी के अवतार। 

षष्ठी तिथि के होय खम्हर छठ, सगरी करे दुलार।। 3


साते के संतान सप्तमी, आठे जन्मे श्याम। 

नवमी तिथि मधुमास पुनीता, जन्म धरे श्री राम।। 4


दशमी बनगे विजया दशमी, जरगे रावण राज। 

जीत सदा सच के ही होथे, जानय सबो समाज।। 5


एकादश , द्वादश  के संगी , अबड़ महत्तम आय। 

लक्ष्मी नारायण के जोड़ी, कृपा दया बरसाय।। 6


तेरस चौदस के खाता मा, तन मन रहय निरोग। 

दीया दान अमावस पुन्नी, बने भाग्य के योग।।7


आशा देशमुख

एनटीपीसी जमनीपाली कोरबा

Sunday, January 29, 2023

बसंत ऋतु विशेष छंदबद्ध रचना


 बसंत ऋतु विशेष छंदबद्ध रचना


मनहरण घनाक्षरी------


बसन्ती बहार आगे, जाड़ा घलो दुरिहागे ।

रूख राई धीर लगे, पाना ल झर्रात हे। 


परसा ह फूले माते, सरसों ह बेनी गाँथे।

आँमा ह मँउर बाँधे, मँउहा गर्रात हे। 


गाँव बस्ती झूमे पारा, हरियागे लीम डारा। 

पुरवाही बहे न्यारा, गस्ती बिजरात हे। 


बड़ माते गउँहारी, चना खेत सँगवारी। 

घुँघरू के धुन भारी, आरो बगरात हे। 


नँगारा के ताल मा जी,अबीर गुलाल मा जी। 

फगुवा के तान मा जी, फागुन सर्रात हे। 


प्रेम रँग घोरे हावे, सबला चिभोरे हावे। 

जवानी के का ला कबे, बुढ़वा रिझात हे। 


पँड़की परेवा मैना, सुवा बोले मीठ बैना। 

नदिया पहाड़ सँग, डोंगरी लुभात हे। 


कइली ह राग धरे, मन म उमँग भरे। 

छंद नवा गीत राग, कवि सिरजात हे। 


         राजकुमार चौधरी "रौना" 

          टेड़ेसरा राजनांदगांव 

💐💐💐💐💐💐💐💐💐

 सार छन्द गीत 

विषय-बसंत

ऋतु बसंत के आये ला जी,बउरागे अमराई।

मौसम हा मन भावन होगे,जन-जन बर सुखदाई।।


परसा फुलवा लाली लाली,सरसो फुलवा पिंवरा।

ममहावत हे चारो कोती,भावत हावय जिंवरा।।

रंग बिरंगा फुलवा मन के,नीक लगे मुस्काई।।

ऋतु बसंत के आये ला जी,बउरागे अमराई।।


कुहके कारी कोयलिया हा,मारत हावय ताना।

फूल फूल मा झूमे नाचे,भौंरा गावय गाना।।

तन मन ला हरसावय अब्बड़,फुरहुर ए पुरवाई।

ऋतु बसंत के आये ला जी,बउरागे अमराई।।


फागुन के आये के अब तो,होगे हे तइयारी।

गाँव गली मा ढ़ोल नँगारा,चलही जी पिचकारी।।

रंग लगाही हँसी खुशी ले,होही बड़ पहुनाई।।

ऋतु बसंत के आये ला जी,बउरागे अमराई।।


डी.पी.लहरे"मौज"

कवर्धा छत्तीसगढ़

💐💐💐💐💐💐💐💐

*बसंत ऋतु - त्रिभंगी छंद*-


(1)

सुग्घर पुरवाई,बड़ सुखदाई,चलै बसंती,जोर इहाँ।

आमा मउरागे,बन हरियागे, ममहावै सब,ओर इहाँ।।

कोकिल के बोली,हँसी ठिठोली,सँगी जहुँरिया,हास करै।

बिरहिन के मन मा,भभकै तन मा,मया प्रीत हा,वास करै।।


(2)

भुइयाँ के अँचरा,नइ अब कचरा,सुग्घर अँगना,द्वार लगै।

परसा के लाली,मन मतवाली,पहिरे गर मा,हार लगै।।

पंछी सब गावय,मन ला भावय,उड़ै अगासा,छोर घलो।

फागुन के होरी,छोरा छोरी,बँधे मया के,डोर घलो।।


(3)

सुग्घर पुरवइया,देखव भइया,आमा लहसत,मउर भरे।

बन परसा लाली,फूल गुलाली,सबो डोंगरी,ठउर भरे।।

सरसो लहरावय,मन ला भावय,कोयल गावय,गीत बने।

अउ सँगी जहुँरिया,मया पिरितिया,लगन लगावै,मीत बने।।


(4)

सरस्वती दाई,करै सहाई,एखर पूजा,लोग करै।

फल बोइर हरियर,सरसो नरियर,चना गहूँ जौं,भोग करै।।

हर्षित सबके मन,कुलकत जन-जन,होरी मानय,रंग बने।

इहि परब फाग के,मया राग के,गावय गाना,संग बने।।


(5)

ऋतु बड़ मनभावन,सुघर सुहावन,मन हर्षित चहुँ,ओर लगै।

पाना हरियावत,खार लुभावत,सबो डोंगरी,छोर लगै।।

परसा के लाली,गेहूँ बाली,अरसी सरसो,फूल फभे।

अमुवा के डारा,लहसे झारा,मउर आम के,झूल फभे।।


(6)

कोयल के बोली,हँसी ठिठोली,गुरतुर सुग्घर,बास करै।

भँवरा मँडरावय,तितली गावय,फूल-फूल मा,रास करै।।

नदिया के पानी,कहै कहानी,कल-कल-कल-कल,धार बहै।

भुइयाँ हरियाली,मन खुशहाली,मया पिरित के,लार बहै।।


(7)

रुखवा हरियागे,फागुन आगे,परसा लाली,फूल झरै।

आगी कस दहकै,डोंगर महकै,सेम्हर देखव,झूल परै।।

मधुबन कस सोहै,मन ला मोहै,ये अमरइया,छाँव इहाँ।

कोयल के गाना,मारै ताना,बिरहिन मन के,नाँव इहाँ।।


(8)

सुग्घर निक लागै,आशा जागै,बाग बगइचा,ठउर इहाँ।

सरसो हा माते,अरसी हाँसे,झूलै आमा,मउर इहाँ।।

होरी के सुरता,पहिरे कुरता,रंग मया के,खेल इहाँ।

अउ सब नर नारी,धर पिचकारी,करै सबो ले,मेल इहाँ।।


(9)

आगे ऋतु राजा,बजगे बाजा,ढोल नँगारा,रंग उड़ै।

परसा के लाली,हो मतवाली,थिरकत जम्मों,अंग उड़ै।।

आमा मउरागे,तन बउरागे,कोकिल कुहकत,डार हवै।

डोंगर सब साजे,सरग बिराजे,दुल्हिन जइसन,खार हवै।



छंदकार:-

बोधन राम निषादराज"विनायक"

सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)

💐💐💐💐💐💐💐💐💐

: दोहा छन्द गीत

विषय- बसंत


ऋतु बसंत हा आय हे,मन मा भरे उलास।

उजरत जंगल देख के,मन ला करय उदास।।


खोजे मा अब नइ मिले,हरियर हरियर बाग।

चट-चट धरती हा जरे,कोन लगादिस आग।।

कभू सुने ला नइ मिले,कोयलिया के राग।

फुलवा बिन भौरा कहाँ,इँखरो फुटगे भाग।।

धुँवा-धुँवा धरती लगे,नइ हे कहूँ उजास।

ऋतु बसंत हा आय हे,मन मा भरे उलास।।(१)


फुरहुर पुरवाही बिना,साँसा घुटते जाय।

इहाँ बसंत बहार हा,अब कइसे रह पाय।

देख कारखाना इहाँ,जघा-जघा मा छाय।

जन जीवन बेहाल हे,कइसे जीहीं हाय।।

लटपट कटथे रात हा,नइ हे दिन हा खास।

ऋतु बसंत हा आय हे,मन मा भरे उलास।।(२)


डी.पी.लहरे"मौज"

कवर्धा छत्तीसगढ़

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

 बसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनाएँ

बसंत आय हे-मनहरण घनाक्षरी

(1)

उलहा डारा पाना हे,कोयली गावै गाना हे,

गमकत दमकत,बसंत हा आय हे।

मउँरे अमुवा डाल,परसा फूले हे लाल,

अंतस मारे हिलोर,खुशी बड़ छाय हे।।

बाँधय मया के डोरी,दाई सुनावय लोरी,

झूमत मन मँजूर,पाख फइलाय हे।

चना सरसों तिंवरा,देख जुड़ाय जिंवरा,

मउँहा मतौना बने,गंध बगराय हे।।


(2)

परसा सेम्हर डाल,अँगरा बरत लाल,

मुचमुच हाँसे गोंदा,बड़ बिजरात हे।

ताल मा खिले कमल,सुघर दल के दल,

मया रंग भर रति,रस बरसात हे।।

बोहाय मया के रंग,मन मा जागे उमंग,

पींयर पींयर पात,पुरवा झर्रात हे।

ताल तलैया के नीर,देख के भागय पीर,

ऋतु बसंत हा आय,खुशी बड़ छात हे।।

विजेन्द्र वर्मा

नगरगाँव(धरसीवाँ)

💐💐💐💐💐💐💐

: रोला छन्द


बसंत



आवत देख बसंत, पेड़ मन हाँसन लागें। 

 पुरवा दे आनन्द, शीत के ताप भगागे।। 

सुन महुआ के गोठ, हवा भी होय मतौना। 

लगय प्रकृति ला देख, होत दुलहिन के गौना।।1



ऋतुराजा के राज, सबो के मन ला भाये। 

मन मा भरे उमंग, जगत के मन हरषाये।। 

अरसी ला तो देख, नील मणि धरके बइठे। 

गहूँ घलो इतराय, सोन ला पहिने अंइठे।।2


सातों सुर जुरियांय, कोयली के सुन गाना। 

पुचूर पुचुर इतरात, डोलथें डारा पाना।। 

परसा ला झन पूछ, रंग के करय तियारी। 

फाग _राग के संग, खुशी मारे पिचकारी।। 3



बिना राग संसार, रहिस हे निच्चट कोंदा। 

माँ  वाणी ला देख,खिलें सरसों अउ गोंदा। 

सजे प्रकृति के अंग, सुघड़ सब गहना गूंठा। 

जगत बने धनवान, बटोरे मूंठा मूँठा।। 4


कामदेव , ऋतुराज, दुनो के हवय मिताई। 

फूल पान परघाँय, सुघर गहदे अमराई। 

नहा धोय कस आय, हवा धरके मम हाती। 

बिरहिन के दुख जाय, सजन के पढ़के पाती। 5


दे बसंत संदेश, जगत मा सुख ला बाँटव। 

मन मा भरव उमंग, द्वेष कंकर ला छाँटव।। 

सुखी रहय संसार, जतन कुछ अइसन करलव। 

रहव रंग के संग, खुशी से ओली भरलव।।6



आशा देशमुख

एनटीपीसी जमनीपाली कोरबा

💐💐💐💐💐💐💐💐

*दोहा*

*बसंत*


माते बगिया फूल ले, ऋतु बसंत जब आय।

भौंरा तब गुनगुन करय, माली के मन भाय।। 


बोले कारी कोयली, गीत मया के गाय।

कूदे आमा डार मा, जब बसंत ऋतु आय।। 


आय बसंती झूमके, मउहा माते फूल।

लठ-लठ फूले डार मा, जइसे झूले झूल।।


*हरिगीतिका छंद*

              *आगे बसंती*


आगे बसंती झूम के अब, देख जोही बाग ला।

ये पेड़ के पतझड़ हवा हा, शोर देवत फाग ला।।

चंपा-चमेली रातरानी, मन बने भावत हवें।

अउ देख भौंरा मन मया के, गीत ला गावत हवें।।


आमा घलो हा मउरगे हे, टीप थाँही डार मा।

बोलत हवय रे कोयली हा, पेड़ बगिया खार मा।।

सोना सही रे फूल सरसों, खेत मा फूले हवे।

अउ देख मउहा फूल हाँसत, थाँह मा झूले हवे।।


*अनुज छत्तीसगढ़िया*

*पाली जिला कोरबा*

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

*कुकुभ छंद----- ऋतु बसंत आगे*


बड़ मनभावन लागे संगी, ये ऋतु बसंत हा आगे ।

कोंवर-कोंवर उलहा डारा, रुख राई सुग्घर लागे ।।


झूमत हावय परसा लाली, जाड़ घलो अब दुरिहागे ।

फूल धरे सरसों हा पिंवरा, अमराई  हा  मउरागे ।।


कुहके कोयल डार-डार मा, लागे अब्बड़ सुखदाई ।

भँवरा गुनगुन गाना गावय, अउ चलै पवन पुरवाई ।।


धरती मा हरियाली छागे, झुमरय अरसी के बाली ।

पींयर- पींयर गोंदा फूले, अउ फुलगे सेम्हर लाली ।।


देख सखा ये ऋतु बसंत ला, दुल्हिन कस धरती लागे ।

खेत खार अउ का बन उपवन, चारो कोती हरियागे ।।


रंग बिरंगी तितली मन हा, फूल-फूल तिर मँडराये ।

मौसम होगे बने लुभावन,  सबके मन ला ये भाये ।।


हरियर-हरियर बने दिखत हे, चना गहूँ के उँनहारी ।

फगुवा रंग उड़ावत हावय, मारे भर- भर पिचकारी ।।


फाग गीत के शोर सुनाये, अउ ढोल नँगारा बाजे ।

ऋतु राजा ला देख प्रकृति हा, अंग-अंग सुग्घर साजे ।।



*मुकेश उइके "मयारू"*

ग्राम- चेपा, पाली, जिला- कोरबा(छ.ग)

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

- *बसंत*

विधा - सार छंद गीत

~~~~~~~~~~~~~

बाँध बोरिया बिस्तर अब तो, जाड़ा सरपट भागे।

राजा कस सज-धज के सुग्घर, ऋतु बसंत हा आगे।।


जुन्ना पाना झर्रावत हें, अब जम्मो रुखराई।

नवा पान फर फूल मिलेके, आस लगे हे भाई।

राग बसंती गावत सरसर, पवन घलो बउरागे।

राजा कस सज-धज के सुग्घर, ऋतु बसंत हा आगे।।


आमा मउरे अमली लहसे, मउहा फुले मतौना।

महर-महर बारी बखरी ला, महकावत हे दौना।

ओढ़ पियर सरसों के अचरा, भुइयाँ दुलहिन लागे।

राजा कस सज-धज के सुग्घर, ऋतु बसंत हा आगे।।


जंगल मा जस अँगरा दहकत, परसा के सुघराई।

रंग बसंती छाये सब मा, झूमय धरती दाई।

सुन कोकिल के तान सुहावन, अमरैया हरसागे।

राजा कस सज-धज के सुग्घर, ऋतु बसंत हा आगे।।



       *इन्द्राणी साहू"साँची"*

      भाटापारा (छत्तीसगढ़)

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

गीत-आइस नही बसंत(सरसी छन्द)


आइस नही बसंत सखी रे, आइस नही बसंत।

करे कोयली का अमुवा बिन, कांता हा बिन कंत।।


बिन फुलवा के हावय सुन्ना, मोर जिया के बाग।

आसा के तितली ना भौरा, ना सुवना के राग।।

हे बहार नइ पतझड़ हे बस, अउ हे दुःख अनंत।

आइस नही बसंत सखी रे, आइस नही बसंत।।


सनन सनन बोलय पुरवइया, तन मन लेवय जीत।

आय पिया हा हाँसत गावत, धर फागुन के गीत।।

मरत हवौं मैं माँघ मास मा, पठो संदेश तुरंत।

आइस नही बसंत सखी रे, आइस नही बसंत।।


देख दिखावा के दुनिया हा, बैरी होगे मोर।

छीन डरिस सुख चैन पिया के, काट मया के डोर।

पुरवा पानी पियत बने ना, आगे बेरा अंत।

आइस नही बसंत सखी रे, आइस नही बसंत।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

💐💐💐💐💐💐💐💐

: प्रदीप छन्द (16-13)

                    *रितु बसंत*


हरियागे सब रूख-रई मन, चिकनागे अब बाट हा।

पा गे लगथे नवा जवानी, गाँव-गाँव के हाट हा।

अमरइया के का कहना जी, मउरे हावय नेत मा।

रितु बसंत हर छागे देखो, बाग-बगइच्चा खेत मा।।


कमती होगे जल तरिया के अउ नदिया के धार हा।

झूमत हावय दलहन तिलहन, मन मोहत हे खार हा।

भँवरा बइहा कस गावत हे, लगथे नइहे चेत मा।

रितु बसंत हर छागे देखो, बाग-बगइच्चा खेत मा।।


चलत हवे अब पुरवइया हर, फरगे तेंदू चार हा।

चारों-कोती सरग बरोबर लागत हे संसार हा।

महकत हावय फुलवारी हर, जाड़ भगागे प्रेत मा।

रितु बसंत हर छागे देखो, बाग-बगइच्चा खेत मा।।


शोभा देखत धीरन होगे, सुरुज देव के पाँव हा।

मन ला अड़बड़ भावत हावय, पंछी के चिंव-चाँव हा।

लाल लाल परसा के डाली, फूल खिले हे नेत मा।

रितु बसंत हर छागे देखो, बाग-बगइच्चा खेत मा।।


                   राम कुमार चन्द्रवंशी

                   बेलरगोंदी (छुरिया)

                   जिला-राजनांदगाँव

💐💐💐💐💐💐💐

 लावणी छंद 


अमुआ के ड़ारी कोयलिया, कुहू कुहू कहि के  गाथे।

आगे हवे बसंत जहुँरिया,  तोरे सुरता हा आथे।


बाग बगीचा हरियर हरियर,फूले रंग रंग  फुलवा।

मेला मड़ई जगा जगा हे,झूली लेते हम छुलवा।

किसम किसम के खई खजानी,सब झिन मिल जुर के खाथे।

आगे हवे बसंत जँहुरिया, तोरे सुरता हा आथे।


अरसी घुँघरू बाँधे नाचे ,अमुआ  मौरत हे लागे।

सोना बाली गेंहू लहसे,पुरवइया हा बौरागे।

तोर बिना मन सुन्ना लागे,अँसुवन धारा बोहाथे।

आगे हवे बसंत जँहुरिया,तोरे सुरता हा आथे।


पींयर पींयर परसा फूले,साधू संतन कस लागे।

पींवर लुगरा सरसो ओढ़े,मोरो मन हा ललचागे। 

आ जा संगी लिये बरतिया, मोरो मन गाना गाथे।

आगे हवे बसंत जँहुरिया तोरे सुरता हा आथे।


केवरा यदु"मीरा"राजिम

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

लावणी छन्द विरह युगल गीत- ऋतु बसंत (२८/०१/२०२३)



कुहकत ये कारी कोयलिया, गीत मया के गाये हे ।

आजा तॅंय आजा ना रानी, ऋतु बसंत हा आये हे ।।


ममहावत हे बाग- बगीचा, पाना हरियर- हरियर ओ ।

पाके हे बोईर- बहेरा, गुरतुर- गुरतुर नरियर ओ ।।

तोर बिना मन हा नइ लागय, अउ काॅंही नइ भाये हे ।

आजा तॅंय आजा ना रानी, ऋतु बसंत हा आये हे ।।


आमा मउॅंरे परसा फूले, सादा पींयर लाली गा ।

आहूॅं कहिके तॅंय नइ आये, देखत रहेंव काली गा ।।

चुहके बर रस ला बइरी ये, भॅंवरा मन मॅंडराये हे ।

आजा तॅंय आजा ना राजा, ऋतु बसंत हा आये हे ।।


कल- कल करथे नदिया नरवा, झर- झर झरना झरथे ओ ।

सरर- सरर पुरवाही चलथे, जुगनू जुग- जुग बरथे ओ ।।

चिरई- चिरगुन मोर- पपीहा, मस्ती मा इतराये हे ।

आजा तॅंय आजा ना रानी, ऋतु बसंत हा आये हे ।।

ओम प्रकाश पात्रे "ओम"

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

 बसंत - दिलीप कुमार वर्मा 


ममहावत हे बड़ जंगल हा अउ खेत तको लहरावत हावय। 

ठुठवा रुखुवा हरसावत हे जब पान नवा उन पावत हावय। 

दमकावत हे परसा रुखुवा लगथे जग आग लगावत हावय। 

चल मस्त हवा बतलावत हे ऋतु राज बसंत ह आवत हावय।


एती ओती चारो कोती, बगरे बसंत देखा, 

रुखुवा के डारी डारी, फूल लदकाय हे। 

अमुवा म मौर आगे, परसा ह ललियागे, 

महुवा महक मारे, सब ला लुभाय हे। 

खेत खार झूमे लागे, ओनहारी भदरागे, 

सरसों के फूल देख, सब हरसाय हे। 

कोयली कुहुक मारे, तितली के वारे न्यारे, 

चहक चिरइया ह, फगुवा सुनाय हे। 


लेवत हे अंगड़ाई धरा हर, पा के नवा सवांगा। 

पान पतउवा अउ फुलुवा ले, भरगे ठांगा ठांगा। 


रचनाकार - दिलीप कुमार वर्मा 

बलौदाबाजार छत्तीसगढ़

💐💐💐💐💐💐💐

 दोहा छंद


आमा मउँरे सब डहर, महुआ हा ममहाय।

डारा बइठे कोयली, सुग्घर तान सुनाय।।


महर महर बारी करै, हरियर हरियर खेत।

फागुन हा आगू खड़े, राखे रहिबे चेत।।


चम्पा, गेंदा, मोंगरा, आनी बानी फूल।

देवत ए संदेश हे, करहू झन कुछु भूल।।


फूलें सरसों निक लगे, टेसू झूलें डार।

हे मतंग तन मन गजब, अउ झूमत संसार।।


सुग्घर पुरवाही चले, तन मन ला हरषाय।

ऋतुराजा ला देखके, लगे जवानी आय।।


स्वागत हे स्वागत हवै, ऋतु बसंत अब तोर।

मनखे मनखे बन रहय, अतके बिनती मोर।।


ज्ञानुदास मानिकपुरी

चंदेनी-कवर्धा

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

सार छन्द गीत - दिलीप कुमार वर्मा 

बसंत 


विधवा जइसन दुनिया होगे, जब ले पेड़ कटाये। 

मांग उजड़गे ये धरती के, तन पूरा मुरझाये। 

लकलक रेगिस्तान बरोबर, आगी ला धधकावय। 

कतको जोहत राहव रसता, अब बसंत नइ आवय। 


बिन रुखुवा का पान पतउवा, फुलुवा कइसे आही। 

महर-महर नइ महकय धरती, मउसम कब भदराही। 

तितली भंवरा मधुमक्खी हर, इहां कहां मंडरावय। 

कतको जोहर राहव रसता, अब बसंत नइ आवय। 


बिन आमा के मउर लगे नइ, बिन परसा का लाली। 

सुन्ना परगे खेत खार नइ, कुहकय कोयल काली। 

चिरई चिरगुन अइसन जग ला, अब थोरिक नइ भावय। 

कतको जोहत राहव रसता, अब बसंत नइ आवय। 


बारी बखरी सुन्ना परगे, कइसे के हरियाही। 

वन उपवन बिन पानी परिया, फुलुवा कोन लगाही। 

हरर-हारर बड़ हवा चलत हे, धुर्रा बस  उड़ियावय। 

कतको जोहत राहव रसता, अब बसंत नइ आवय 


रचनाकार - दिलीप कुमार वर्मा 

बलौदाबाजार छत्तीसगढ़

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

 दोहा


 रंग बसंती छाय हे,धरके यवना रूप।

परसा लाली फूल गे,बाढ़त हावय धूप।।


मउरे आमा खूब हे,कोयल गावय गीत।

पिया बिना तरसत हवै,प्रेम भरे मनमीत।।


पाना ला फोरत हवै,उलहा उलहा डार।

झूम उठे मस्ती सबो,झूमत खेती खार।।


राजेन्द्र कुमार निर्मलकर

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

 *बसंत* (सार छंद गीत)

----------------------------


एसो के सुघ्घर बसंत हा, गजब सुहावन लागे। 

मन मा आशा अउ उमंग के, नवा जोत हर जागे। ।


कोरोना के मारे बिरथा,दू ठो बछर सिराइन। 

कतको सपना के बिरवा मन, बिना खिले मुरझाइन। ।

अब लागत हे बिपदा के दिन, जइसे हमर सिरागे।

मन मा------


अमरइया के मउरे आमा,खिले फूल परसा के। 

जिवरा ला कुलकावत हे फिर,

कतिक बछर तरसा के। ।

कोयलिया के कूक मनोहर, सुन जम्मो दुख भागे।

मन मा------


दीपक निषाद--लाटा (बेमेतरा)

💐💐💐💐💐💐💐💐💐


*कुंडलियाँ-बसंत*


फूले फूल पलाश के, अमरैया बउराय।

कोयल कुहके डार तब, जान बसंत ह आय।।

जान बसंत ह आय, रिझाथे सरसों पिंवरा।

छाये नवाँ उमंग, देखके हरषय जिंवरा।।

तरसे बिरहिन नैन, चेहरा आँखी झूले।

एक झलक के आस, मया हर मन मा फूले।।

नारायण वर्मा, बेमेतरा

💐💐💐💐💐💐💐💐💐

ताटक छंद -"बसंत बहार"

                  *******

आए हावय सुघ्घर बसंत, घोफ्फा मा मउरे आमा।

हो के मतंग झूमे भँवरा, पहिरे पिंयर हे जामा।।


अरसी सरसों चुकचुक फूले, फुरफुर चलथे पुरवाही।

राग लमा के कोयल गाए, डारा मा  आवाजाही।।


मँगनी जँचनी लगिन मढ़ा के, बरा उरिद के राँधे।

रस रंग रंग के फूल चुहक, कइसे तितली मन बाँधे।।


परसा फूले दहकत लाली, लागय दुलहिन गवनाही।

पींयर फूले सरसों फुलवा, आमा मउर संग  भँवराही।।

                 *****

द्रोपती साहू "सरसिज" 

पिन-493445

Email; dropdisahu75@gmail.com

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

*लवंगलता सवैया* 

121×8 +1


बसंत/फागुन


खुशी मन के छलके जब कोयल हा कुहके मधु गीत सुनावत।

मया उमड़े मन मा भँवरा रसिया रस लेवत हे मँडरावत।

नवा फर फूल लगे उल्हवा उल्हवा निक पान डँगाल लुभावत।

अहा! ऋतुराज बसंत सुहावत जंगल बाग हवै ममहावत।।



बियाकुल हे भँवरा प्रिय खोजत फूल पराग हवै बगिया बन।

तपावत देह उड़े इँहचे उँहचे नइ पावत चैन न नैनन।

मिलै जब गंध सुगंध कहूँ मकरंद लगे मिलगे धन जीवन।

करे रसपान सुवासय प्राण धरा हरसे मनखे मन के मन।।



झरै सब पात जुना मन पेड़ डँगाल हवै ठुठवा ठुठवा बड़।

फुले परसा हर लाल गुलाल लगै अगियाय हवै जग ले अड़।

हिलोरत हे मउरे अमुवा पिंवरा पिंवरा महकाय नदी खड़।

बसंत हवै ऋतु फागुन आत सुहाय हवा निक जाड़ भगे झड़।।


रचना :बलराम चंद्राकर भिलाई

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐


Friday, January 20, 2023

छंद के छ की प्रस्तुति- सम्मान विषय मा छंदबद्ध रचना


छंद के छ की प्रस्तुति- सम्मान विषय मा छंदबद्ध कविता


दोहा गीत-सम्मान


बँटे रेवड़ी के असन, जघा जघा सम्मान।

आज देख सम्मान के, कम होवत हे शान।।


देवइया भरमार हें, लेवइया भरमार।

खुश हें नाम ल देख के,सगा सहोदर यार।

नाम गाँव फोटू छपा, अपने करयँ बखान।

आज देख सम्मान के, कम होवत हे शान।।


साहित के संसार मा, चलत हवै ये होड़।

मुँह ताके सम्मान के, लिखना पढ़ना छोड़।

कागज पाथर झोंक के, बनगे हवैं महान।

आज देख सम्मान के, कम होवत हे शान।।


धरहा धरहा लेखनी, सरहा होगे आज।

चाटुकार के शब्द हा, पहिनत हावै ताज।

हवै पुछारी ओखरे, जेखर हें पहिचान।

आज देख सम्मान के, कम होवत हे शान।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

ज्ञानू कवि: विष्णुप्रद छंद


गली-गली मा खुलगे हावय, आज दुकान इहाँ।

कोन असल हे कोन नकल हे, तँय पहिचान इहाँ।


भाग नाम के पाछू झन तँय, काम बने करले।

करत करम चुपचाप रहा तँय, गाँठ बाँध धरले।


करत चापलूसी कतको हे, अब पहिचान मिलै।

बिना काम के सोचत रहिथे, अब सम्मान मिलै।


तँय मोला अउ मंय तोला के, चलथे खेल इहाँ।

चोर-चोर मौसेरा भाई, होवय मेल इहाँ।


पाये बर सम्मान इहाँ अउ, तलुवा चाँटत हे।

कतको अउ निस्वार्थ अपन के, ज्ञान ल बाँटत हे।


जगह बना ले पर के हिरदै, अपने भाग जगा।

कागज पतरी के पाछू मा, झन तँय दौड़ लगा।


ज्ञानु

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

रोला छंद - दिलीप कुमार वर्मा 

सम्मान 


पाये का सम्मान, बहुत के इतरावत हस। 

अरकट्टा हे चाल, भाव भारी खावत हस। 

उड़ियाये आगास, पाँव धरती नइ माढ़े। 

सब ला बौना जान, अपन रकसा जस बाढ़े। 


नइ जानत हे तेन, बजावत राहयं ताली। 

हम जानन हर राज, तभे तो देथन गाली

करम करत हम पोठ, खाक अब तक छानत हन। 

कइसन पावय मान, आजकल सब जानत हन।


हावस तिकड़म बाज, गजब के हवस जुगाड़ू। 

नाक रगड़थस रोज, लगावत रहिथस झाड़ू। 

चमचा जयसन काम, दाम तक देके पाये। 

ये कइसन सम्मान, जेन बर तैं इतराये।   


अइसन के नइ चाह, तुही ला मिलय बधाई। 

होय तोर सम्मान, मोर बर कचरा भाई। 

आज नही ता काल, कभी तो दिन ओ आही। 

मिहनत कस ला खोज, सही सम्मान दिलाही।


दिलीप कुमार वर्मा 

बलौदाबाजार छ ग

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

उल्लाला छन्द - सुखदेव सिंह"अहिलेश्वर"


                      = सम्मान =


स्वाद मधुर मधुरस असन, अलंकरण सम्मान के।

कुछ मन पाइन थोरकन, कुछ मन पाइन तान के।।


तरह-तरह के आज कल, बँटत हवय सम्मान हर।

वाट्स-एप अउ फेसबुक, नजर मार सन्ज्ञान बर।।


सरकारी सम्मान के, बड़का हावय नाँव हर।

परगट हे पाथे उही, जेखर लगथे दाँव हर।।


विज्ञापन हल्ला अतिक, होवत हे सम्मान के।

दिख जाही आँखी बिना, सुना जही बिन कान के।।


साँपर के सम्मान हर, साँपरिहा कर जात हे।

कोन-जनी ए रीत के, कोन करे शुरुआत हे।।


महिना मा सम्मान के, पाती बीस-पचास ठन।

बन्धु, पवइया पात हे, भले होय विश्वास झन।।


बिरथा सरलग दउँडना, लालच मा सम्मान के।

दउँड़ ओतके हे सहीं, हो जय दरस बिहान के।।


जे तुँहला सम्मान दय, तुम उँहला सम्मान दव।

सम्मानित के हे कहन, रीत ल चलते जान दव।।


तोर मंच मा ओ पढ़य, पढ़ तँय ओखर मंच मा।

समय गवानाँ व्यर्थ हे, कवि छल कपट प्रपंच मा।


चाय मँझनिया साँझ के, चाहे रहय बिहान के।

चापलूस के चाय मा, चाह छुपे सम्मान के।।


कलम थाम्हही जेन हर, पाये बर सम्मान ला।

पा जाही सम्मान पर, नइ पाही गुण ज्ञान ला।


चित्त रखे सम्मान मा, कहाँ सिरजही पोठ हो।

कविवर आपन आपके, करत रहव मन मोठ हो।।


रोटी खा कपड़ा पहिन, द्वारे अपन मकान के।

ठाढ़े हे हर आदमी, स्वागत मा सम्मान के।।


रचना-‌ सुखदेव सिंह'अहिलेश्वर'

गोरखपुर कबीरधाम छत्तीसगढ़

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

सरसी छन्द

 विषय  _सम्मान


जाँनव अब सम्मान घलो के, होथे दू ठन रूप। 

एक दिखे बरसाती नाला, दूसर तपती  धूप।। 1


हाँका परगे सब समूह मा, होही जी सम्मान। 

रचना भेजव, रचना भेजव, कवि लेखक गुनवान। 2


पूरा पानी कस रेला मा, उमडें रचनाकार। 

रचना मा तो धार नहीं हे, बोहे धारे धार।। 3


पइसा मा सम्मान बिकत हें,बनगे हे व्यापार। 

भूल भुलैया हावय संगी, ये मीना बाजार।। 4



मुड़ धरके बड़ रोवत होहीं, तुलसी मीरा सूर। 

अतिक हमू मन होगे हावन,सस्ता अउ मजबूर।।5


मँय हा सबले ऊँचा हावंव, नइ बोले आकाश। 

ओखर पँवरी मा बइठे हे, हिमराजा कैलाश।। 6


आगी मा तपके सोना हा, पाये कुंदन  नाम। 

कतको राजा आय गए हें, कोन बने हें राम।। 7


प्रकृति धरे जब सूपा चन्नी, दाना राखय पोठ। 

युग नायक सब ज्ञानी ध्यानी, हें अभेद सब कोठ।। 8


दूध वंश के दही घलो हे, इही वंश के घीव। 

 एक चले हे चार दिनन बस, अउ एक चिरंजीव।। 


आशा देशमुख

एनटीपीसी जमनीपाली कोरबा

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

 हरिगीतिका छंद

*विषय-सम्मान*


बेटी घलो संतान होथे,राख ले *सम्मान गा।*

झन मार एला कोख मा तँय,लेत काबर जान गा।

लछमी कहाही तोर बेटी,लेन दे अवतार जी।

पढ़ लिख जगाही नाँव सुग्घर,लेगही भवपार जी।।1


बेटी कहाँ कमजोर होथे,देखले संसार ला।

अँचरा म सुख के छाँव देथे,देश अउ घर द्वार ला।

ए फूल जइसे महमहाथे,जोड़थे परवार ला।

अनमोल हीरा ताय बेटी,तारथे ससुरार ला।।2


डी.पी.लहरे"मौज"

कवर्धा छत्तीसगढ़

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐


रोला-छंद 

======

1-

पाये बर सम्मान, विधाता मरे ल परही |

जीते जी अब कोन, आँकलन तोरे करही ||

हवय कलम मा धार, रात दिन टेंवत रहिबे |

लिखत रहा चुपचाप, कभू तैं कुछ मत कहिबे ||

2-

राजनीति के भेंट, चढ़त हे कहिबे काला |

राष्ट्र पति ईनाम, घलो मा गड़बड़ झाला ||

जे मन वजनीदार, उही मन पाथे येला |

बड़का साहितकार, आज माटी कस ढेला ||



कमलेश प्रसाद शरमाबाबू

कटंगी-गंडई 

जिला-केसीजी

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

: विषय - सम्मान (गीतिका छंद)


2122 2122, 2122 212


पाय बर सम्मान ला सब, देख भागत हे इहाँ।

का लिखे हे भाग्य मा, ये कोन जानत हे इहाँ।


लड़ झगड़ के आदमी मन,लेय बर सम्मान ला।

फूँक देथे लाख रुपया, कर दिखावा जान ला।।


आज कल धंधा बने हे, खोज मनखे लात हे।

पाय पइसा जेब भरथे, तब कहूँ गुन गात हे।।


भूल जाथे आदमी सब, बेच के ईमान ला।

वाहवाही लूट लेथे, छोड़ के पहिचान ला।।


सोच ताकत हे कलम मा,खुद करौ विश्वास जी।

एक दिन पूरा तुँहर सब, होय सपना आस जी।।


रचनाकार:-

बोधन राम निषादराज"विनायक"

सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

 इंद्राणी साहू: *विषय-सम्मान*

*विधा-कुण्डलिया*

~~~~~

करथे सुग्घर काम जे, वो पाथे सम्मान।

सेवा कर सब जीव के, बन जाथे गुन खान।

बन जाथे गुन खान, सबो के मितवा बनके।

देथे मया दुलार, रहय नइ वो हर तनके।

करके गुरतुर गोठ, घाव ला मन के भरथे।

हरथे सब के कष्ट, छाँव सुख के वो करथे।।


      *इन्द्राणी साहू "साँची"*

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

: मुक्तामणि छन्द गीत

विषय-सम्मान

अंग्रेजी तुकांत

झोंकँय बस सम्मान ला,लेवँय फोटो शेसन।

आजकाल के कवि इहाँ,मारँय ले ले फेशन।।


सच्ची मा साहित्य के,नइ राहय कुछ मेटर।

कइसे मानी आज हम,इन ला सबसे बेटर।।

कहाँ पढ़ावँय गा कभू,सुमता के इन लेशन।

झोंकँय बस सम्मान ला,लेवँय फोटो शेसन।।


सत्य लिखइया के इहाँ,नइ हे भाई पावर।

चाटुकार कवि मंच मा,बोलय आठो आवर।।

ठलहा नाम कमाय के,होगे हावय पेशन।

झोंकँय बस सम्मान ला,लेवँय फोटो शेसन।।


बिना धार के हे कलम,नइ हे संगी फेयर।

तभ्भो मिलथे मंच मा,इनला हरदम चेयर।।

दउँड़े-दउँड़े जाँय जी,पाके इन्फर्मेशन।

झोंकँय बस सम्मान ला,लेवँय फोटो शेसन।


डी.पी.लहरे"मौज"

कवर्धा छत्तीसगढ़

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

: "सम्मान" गीतिका छंद


मान  पाबे  तँय  तभे जी, दे तहूँ  सम्मान  ला।

आसरा करबे कहूँ ले, कर उकर गुणगान ला।।


काम तोरे  देख के सब, सोरियावत आ जही।

बाढ़ही  सम्मान संगी, नाम यश युग युग रही।।


चार दिन  के  चाँदनी ये, झूठ के सम्मान हा।

थोरके मे  मिल जथे गा, दाम  मा दे दान हा।।


देख के दिल दुख जथे अब, का कबे बेकार हे।

छूट  जाथे  नाम  ओकर, जेन  हा  हकदार हे।।


मोल पानी के बिकत हे, चौंक मा सम्मान हा।

बैठ देखे  लाज पावत, लोक  मा भगवान हा।।


देश खातिर हाँस के दे, वीर सँउहत जान ला।

नाम हो जाथे अमर जी, पा असल सम्मान ला।।


द्रोपती साहू "सरसिज"

💐💐💐💐💐💐💐💐💐


घनाक्षरी

मत कोनों लाहो लेवौ,मुड़ पीरा झन देवौ, 

तभे झट ले होथे जी, समस्या निदान हा। 

छोड़व बैर भाव ला, मेट डरव घाव ला, 

बात इही ला गुनव, मिटही अज्ञान हा। 

बोली आचार विचार, नेक रखौ व्यवहार, 

देख ताक राह धरौ, बाढ़ही जी शान हा। 

होथौ काबर अधीर, हवय धीर  मा खीर, 

सत राह मा चले ले, मिलथे सम्मान हा। 

विजेंद्र वर्मा

नगरगाँव (धरसीवाँ)

💐💐💐💐💐💐💐💐💐

: सम्मान-हरिगीतिका छन्द


सम्मान बर सम्मान ला गिरवी धरौ जी झन कभू।

कागत धरे पाथर धरे रेंगव अकड़ जड़ बन कभू।।

माँगे मिले ता का बता वो लेखनी के शान हे।

जब बस जबे सबके जिया मा ता असल सम्मान हे।।


जूता घिंसे बूता करत तब ले कई पिछुवात हें।

ता चाँट जूता एक दल सम्मान पा अँटियात हें।।

पइसा पहुँच मा नाम पागे काम के नइहे पता।

जेहर असल हकदार हे थकहार घूमत हे बता।।


तुलसी कबीरा सूर मीरा का भला पाये हवै।

लालच जबर बन जर बड़े नव बेर मा छाये हवै।।

ये आज के सम्मान मा छोटे बड़े सब हें रमे।

नभ मा उड़त हावैं कई कोई धरा मा हें जमे।।


साहित्य साहस खेल सेवा खोज होवै या कला।

विद्वान के होवै परख मेडल फभे उँखरें गला।।

जे योग्य हें ते पाय ता सम्मान के सम्मान हे।

पइसा पहुँच बल मा मिले सम्मान ता अपमान हे।।


उपजे सुजानिक देख के सम्मान अइसन भाव ए।

अकड़े जुटा सम्मान पाती फोकटे वो ताव ए।।

सम्मान नोहे सील्ड मेडल धन रतन ईनाम ए।

बूता बताये एक हा ता एक साधे काम ए।।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

 सरसी छन्द गीत- सम्मान (१९/०१/२०२३)


ये दुनिया मा ग़र पाना हे, तोला जी सम्मान । 

करले नेकी धरम-करम ला, हे मानुष गुणवान ।।


शिक्षा के तॅंय जोत जला दे, होवय  जग मा शोर । 

ॲंधियारी ला दूर भगा दे, कर दे फिटिक ॲंजोर ।।


सोये मन के भाग जगा दे, ले ले दे ले ज्ञान ।

करले नेकी धरम-करम ला, हे मानुष गुणवान ।।


सोंच समझ मन विचार कर ले, कर ले निशदिन काम ।

समय परे हे खाली रहिबे, तब करबे आराम ।।


बइठे-बइठे समय गवाॅं झन, होही बड़ नुकसान ।

करले नेकी धरम-करम ला, हे मानुष गुणवान ।।


नव युग आगे कलम उठा ले, लिख दे नव इतिहास ।

लइका ला तॅंय पढ़ा- लिखा दे, करही दुख के नाश ।।


आन बान अउ शान देश के, बनही वीर जवान ।

करले नेकी धरम-करम ला, हे मानुष गुणवान।।


✍️ ओम प्रकाश पात्रे "ओम "🙏

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

 डी पी लहरे: प्रदीप छन्द गीत..


जे साहित के सा नइ जाने,वो पावय सम्मान ला।

आसमान ला छूवत हावय,का कहिबे जी शान ला


जोकड़ बनगे हावय भाई,जघा-जघा मा छाय हे।

हँसी-ठिठोली दाँत निपोरी,श्रोता ला भरमाय हे।।

देखव बेचत हावय संगी,कविकुल के पहिचान ला।

जे साहित के सा नइ जाने,वो पावय सम्मान ला।


नाम कमाये के चक्कर मा,छपथे जी अखबार मा।

सरहा लेख लिखइया सिरतो,जगमग हे संसार मा।

आज गिरावत हावय नीचा,साहित के उत्थान ला।

जे साहित के सा नइ जाने,वो पावय सम्मान ला।।


डी.पी.लहरे"मौज"

कवर्धा छत्तीसगढ़

💐💐💐💐💐💐💐💐

 कुंडलिया छंद 


विषय-सम्मान 


करले सुग्घर काम तँय, पाबे गा सम्मान। 

गुरु के चरणन शीश धर, मिलही तोला ज्ञान। 

मिलही तोला ज्ञान,गीत बड़ सुग्घर गाबे। 

पूजा कर पितु मातु,,घरे मा देव मनाबे।

जिनगी हे दिन चार, मया ले झोली भरले।

बाँट के मया दुलार, काम तँय सुग्घर करले।।


केवरा यदु"मीरा"राजिम

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

 घनाक्षरी - दिलीप कुमार वर्मा 

सम्मान 

करम ल पूजा मान, काम बस करे चल, 

मान सम्मान के जी, आस झन राखबे। 

आज नही काली हाेही, पूजा सजे थाली होही, 

तोरो तो दिवाली होही, साफ मन राखबे। 

मिहनत टले नही, काम चोर फले नही, 

चापलूसी चले नही, साँच धन राखबे।

घुरुवा के दिन आथे, तपे ते खरा कहाथे, 

साँच सदा जीत जाथे, ओ वचन राखबे।  


दिलीप कुमार वर्मा 

बलौदाबाजार छ ग

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐


: सम्मान- कुण्डलिया छंद


करथे लोगन मन इहाँ, जुगत लगा पहचान। 

तलवा चटई के बुता, पाये बर सम्मान। 

पाये बर सम्मान, जेन हर करे हुजूरी। 

बेंच अपन ईमान, आस करथे वो पूरी। 

हावय जे विद्वान, सोच थर्रा के मरथे। 

परख चतुर क़े आज, कहाँ कोनों हा करथे।।


संगीता वर्मा

भिलाई(छग)

💐💐💐💐💐💐💐💐💐

: कुंडलिया छंद 


विषय-सम्मान 


करले सुग्घर काम तँय, पाबे गा सम्मान। 

गुरु के चरणन शीश धर, मिलही तोला ज्ञान। 

मिलही तोला ज्ञान,गीत बड़ सुग्घर गाबे। 

पूजा कर पितु मातु,,घरे मा देव मनाबे।

जिनगी हे दिन चार, मया ले झोली भरले।

बाँटत मया दुलार, काम तँय सुग्घर करले।।


केवरा यदु"मीरा"राजिम

💐💐💐💐💐💐💐💐💐

: *सरसी छंद*

*विषय-सम्मान*


अपन कला ला बेचत हावय, थोरिक नइ हे लाज।

होड़ मचे हे मान पाय बर, सब्बो कोती आज। 


मान खरीदे बर पैसा मा, जावत हें बाजार।

होशियार सब बनत हवें गा, देखत हे संसार।।

सब मनखे मन बढ़ा चढ़ा के, अपन बतावत काज।

होड़ मचे हे मान पाय बर, सब्बो कोती आज। 


काम-धाम मा रंग-ढंग नइ, पावत हे सम्मान।

बने कला इज्जत नइ हें, जावत इँखर जान।।

नवसिखिया मन के मुड़ मा, सजत हवे अब ताज।

होड़ मचे हे मान पाय बर, सब्बो कोती आज ।।


*अनुज छत्तीसगढ़िया*

*पाली जिला कोरबा*

*सत्र 14*

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

: छप्पय छंद

सम्मान

पाथे वो सम्मान, मेहनत जे हा करथे।

छोड़े माया लोभ, उही हा आगे बढथे।।

झूठ लबारी त्याग, नेक रास्ता अपनाये।

मिलय मान सम्मान, खरा सोना बन जाये।।

मार हथौड़ी के सहे, वो पखरा बढ़ काम के।

देखा सीखी जे करय, रइ जाथे बस नाँव के।।


राज साहू

 समोदा

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

: सार छंद दिलीप कुमार वर्मा 

सम्मान 


परम वीर या शौर्य चक्र हो, या हो पद्म विभूषण। 

पावत हे सम्मान उही मन, जेमन जीतत हे रण।


लेखन हो या हो समाज बर, या हो खेल खिलाड़ी। 

ओ मन ला सम्मान मिलत हे, जेमन रहे अगाड़ी। 


जन सेवा बर काम करत चल, तहू मान ला पाबे। 

पर आशा जादा झन रखबे, नइ ते बड़ पछताबे।  


आज नही ता काली मिलही, काल नही ता परसो। 

कतको अइसन करम करइया, तरसत रहिगे  बरसों।


महा पुरुष कुछ अइसे होइन, जे मन रतन कहाइन। 

सकल उमर भर काम करिन अउ, मरणासन मा पाइन। 


शासन के सम्मान परोसे, मान उही झन जानव।  

घर समाज मा नित जे मिलथे, मान उही सच मानव। 


करत रहव सम्मान सबों के, मान तभे सब पाहू। 

बड़का अउ छोटे मन खातिर, संस्कार अपनाहू। 


रचनाकार दिलीप कुमार वर्मा 

बलौदाबाजार छ ग

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

घनाक्षरी

 *सम्मान* 


पाये बर सनमान, बेंचत हवेै ईमान|

ललचाहा लालच मा, कतको सनाय हें|

चापलूसी बड़ करैं, मट मट घलो करैं|

कउड़ी के ना काम के, नाक ला

लमाय हें||


अइसनो का मान पाथें, जग मा हँसी कराथें|

कदए ना काठी तेमन, पहुँच लगाय हें|

बात मा पिटाई होगे, मुँह के लुकाई होगे|

सीट धरे बैठे हावें, मुकुट खपाय हें||


तन मा सरम चाही, कारज करम गाही|

अइसने पवइया मन, नियत गड़ाय हें||

उँखरे हे पागा भारी, गाँव गली लागा सारी|

लँगटा निंगोट वाले, मंडल कहाय हें||


अश्वनी कोसरे

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

दोहा गीत दिलीप कुमार वर्मा 

सम्मान 


झन मरबे सम्मान बर, बस कागज ये जान। 

अगर करम बढ़िया रही, मिल जाही सम्मान। 


लगन लगाये नइ हवस, उपर छवा हे काम। 

मन मा राखे आस तैं, महूँ कमाहूँ नाम। 

अइसन मा नइ मिल सकय, सुन बाबू दे कान।

अगर करम बढ़िया रही, मिल जाही सम्मान। 


सोंचत हस उड़ियाय बर, खुला देख आकाश। 

बिना पाँख कइसे बने, सपना होही नाश। 

पग पग सीढ़ी चढ़ कका, मंजिल तब आसान। 

करय साधना जेन मन, ओ पावय सम्मान। 


देख दुसर के नाम ला, काबर तैं अकुलाय। 

मिहनत तैं देखे नहीं, मन ही मन खिसियाय। 

काय करे ओ काम हे, तेला पहिली जान। 

तहूँ गला हाड़ा अपन, फिर मिलही सम्मान।


रचनाकार दिलीप कुमार वर्मा 

बलौदाबाजार छ ग

💐💐💐💐💐💐💐💐

 दोहा छंद


सुघर करम सम्मान हे,बाकी सब बेकार।

मानुष जिनगी सार हे,करौ सबो साकार।।


रुके काज पूरा करे,हरे उही इंसान।

बिपत परे मा नइ डिगे,अलग रखै पहिचान।।


राजेन्द्र कुमार निर्मलकर

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

सम्मान(कुंडलिया)


पाए  बर  सम्मान  तो,  काकर  नइए  चाह।

दू  आखर  ए  वाह के,    बढ़वाथे   उच्छाह।।

बढ़वाथे   उच्छाह,  मेहनत   जमके  करथे।

रहिथे जी परवाह, पाय बिन बिकट हदरथे।।

बिना  कलम  के  दास, बने  जँउहर  रेंगाए।

'कांत' तभे  सम्मान, कभू तँय हर नइ पाए।।


सूर्यकान्त गुप्ता

सिंधिया नगर दुर्ग(छ.ग.)

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

*विषय - सम्मान*( छप्पय छंद) 

---------

मन मा रख विश्वास, मेहनत जे करथे जी।

जग मा वो इतिहास, अमरता के गढ़थे जी।।

पाथे बड़ सम्मान, करम के पाछू भइया ।

गाथे जस के गीत, गगन-धरती पुरवइया ।।

परमारथ के काज ला,करथे करतब जान के।

पाथे जी आशीष ला, सउँहे वो भगवान के ।।


-------- मोहन लाल वर्मा 

       (छंद साधक सत्र -3)

ग्रामअल्दा,तिल्दा,रायपुर(छ.ग.)

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

 आशा देशमुख: हरिगीतिका छन्द


सम्मान


सम्मान तो बस भाव हे, समझव न येला चीज गा। 

मिहनत समय दोनों लगय, ये सत करम के बीज गा।। 

कुछ कोचिया मन स्वार्थ मा , धंधा बनालिन हें भले। 

लेकिन असल सम्मान हा, हर काल युग युग तक चले।।


अब तो उधारी लाय कस, होगे हवय सम्मान हा। 

लेना चुकाना बन गए, चारण सहीं गुणगान हा। 

फइले हवय हर क्षेत्र मा, ये मान उलझे जाल मा। 

पानी लिखत हे नाम अउ, मन ला भरम चिरकाल मा।  



आशा देशमुख

एनटीपीसी जमनीपाली कोरबा

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

*सरसी छंद*

*विषय-सम्मान*


अपन कला ला बेचत हावय, थोरिक नइ हे लाज।

होड़ मचे हे मान पाय बर, सब्बो कोती आज। 


मान खरीदे बर पैसा मा, जावत हें बाजार।

होशियार सब बनत हवें गा, देखत हे संसार।।

सब मनखे मन बढ़ा चढ़ा के, अपन बतावत काज।

होड़ मचे हे मान पाय बर, सब्बो कोती आज। 


काम-धाम मा रंग-ढंग नइ, पावत हे सम्मान।

बने कला के इज्जत नइ अब, इँखर जात हे जान।।

नवसिखिया मन के मुड़ मा, सजत हवे अब ताज।

होड़ मचे हे मान पाय बर, सब्बो कोती आज ।।


*अनुज छत्तीसगढ़िया*

*पाली जिला कोरबा*

*सत्र 14*

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

छंद- दोहा

विषय -सम्मान

साधिका- शुचि 'भवि'

स्थान- भिलाई, छत्तीसगढ़


योग्य मनुष ला नइ मिलय, इहाँ 'भवि' सम्मान।

दुम जेकर जतका हिलय, ओखर ओतक मान।।


तुमर अपन सम्मान हे, देखव तुमरे हाथ।

अभिमानी ला नइ मिलय , कोनो के भी साथ।।


बूता 'भवि' अइसन रहय, जेमा मिलही मान।

कुकुर बरोबर झन करव, पाए बर सम्मान।।


एक्के दिन मा नइ बँधय, 'भवि' ओखर सम्मान।

देव तुल्य गुरु मन सदा, नित दिन देवव मान।।


सबो चीज ला दे सकय, 'भवि' इहाँ पर दान।

कोनो ला नइ दे मगर , अपन आत्म सम्मान।।

शुचि

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

: छंद- दोहा

रचनाकार-डॉ मीता अग्रवाल मधुर रायपुर  छग. 


सम्मान


बने कर्म सम्मान हर ,लेखा -जोखा रूप । 

स्वाभिमान राखव सदा, बन हूँ मन मा भूप।। 


मात-पिता सेवा करव, दव सियान ल मान। 

विनम्रता अनमोल गुण, आन बढ़य सम्मान।। 


शिक्षा ज्ञानी ले मिलय,साधव साधक ज्ञान। 

धर्म-अर्थ-मोक्ष चुनो, धर आत्म-सम्मान ।। 


भावभीनी अहं घातक हवे, क्षमाशीलता आन। 

बोल मधुर बोलव सदा, करय सबो सम्मान।। 


मिलय समाजिक मान तव, मन बाढय संतोष। 

बदलत हावय रूप अब,मोल  देत परितोष।। 


धर्म -कर्म हर क्षेत्र मा, निर्धारित सम्मान। 

जिनगी बर अनमोल हे, गौरव पंथ महान।। 

 

छंद-कला परिवार मिल,गुनय सुघर संलाप। 

साधक गुरु नित साधना, सम्मानित घर भाँप ।। 


छंदकार- डॉ मीता अग्रवाल मधुर रायपुर छग

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

 दीपक निषाद, बनसांकरा: विषय-- *सम्मान*


हरिगीतिका छंद 


सम्मान खातिर आदमी करथे उदिम सरलग अबड़।

अवसर मुताबिक तन जथे सकला जथे जइसे रबड़। ।

सम्मान हा सिर मा चघय कतकोन के बनके नशा। 

सम्मान के लालच बिगाड़य आदमी मन के दशा। ।


सम्मान के भूखा सबो रहिथे जगत के रीत जी। 

कतको सुनावय मान खातिर चापलूसी गीत जी।।

गदहा ल बोलय बाप रगड़य नाक कतको द्वार मा।

बस मान जइसे भी मिलय थोड़ा-बहुत संसार मा।।


लेकिन यहू सच ए टिकय नइ कभू झूठा मान हा।

 कोनो ल फोकट मा कभू नइ मिलय सत सम्मान हा।।

सम्मान ला कोनो बिसाये नइ सकय बाजार ले। 

सम्मान मिलथे आदमी ला काम ले व्यवहार ले। ।


दीपक निषाद--लाटा (भिंभौरी)-बेमेतरा

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

: दोहा छंद

लिखैया - शशि साहू कोरबा छग


गुरू ज्ञान धन देत हे, सदा करव सम्मान। 

गुरू कृपा बिसराव झन,जब तक घट मे प्रान।। 


पाये बर सम्मान हे,सबला दे तँय मान। 

बोलत वचन विचार के,तज के सब अभिमान। 


चार घड़ी के जिन्दगी,रखबे झन अनबोल।

तार साँस के टूटही, अउ दुनिया ले गोल।।


सब घट बइठे राम हे,वोला दे तँय मान। 

हाथ जोर जोहार ले,ये सतगुन ला जान।। 


हाँसत भाखा बोल ले, चिटिक लगे नइ दाम

सबला साहेब बंदगी,सबला जय श्री राम।। 


छंद साधिका- शशि साहू 

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐


*सम्मान---- दोहा छंद*


सत  के  रद्दा  मा  चलव,  कहे सदा सत ज्ञान ।

कारज सब अइसे करव, खुद मिलही सम्मान ।।


आजकाल सम्मान हा,  बिकत हवय बाजार ।

औने- पौने  दाम  मा,  ले  आवँय  घर  द्वार ।।


सबो बनावत हे इहाँ,  बिसा-बिसा पहिचान ।

होड़ लगे हे आज गा,  पाए  बर  सम्मान ।।


जे मन देवय मान जी, लहुट मिलय सम्मान ।

सार बात  हावय इही,  हे  मुरूख  इंसान ।।


नकली-चकली शान बर, होवत  हे  बैपार ।

मान  कभू  पाए  नहीं,  जाए  धारे  धार ।।


*मुकेश उइके "मयारू"*

ग्राम- चेपा, पाली, जिला- कोरबा(छ.ग.)

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

शक्ति छन्द

122--122--122--12


हदय मा बसे जे  मया खोज ले।

बला तीर मोला दया खोज ले।। 


बिसाके मिलत आज सम्मान जी। 

बियापत हवय मन दशा खोज ले।। 


निहारौ न दरपन चलव मोह तज।

उही रूप जुन्ना मजा खोज ले।। 


हँसी अउ ठिठोली मिलाके नयन। 

बहै  प्रेम  धारा  नता  खोज  ले।। 


कहाँ  ओ लुकागे मया डार के। 

गिरै धार आँसू सजा खोज ले।। 


न सम्मान पावै सहीं आदमी। 

दिखावा कथन के पता खोज ले।। 


शिशिर के नजर मा सबो एक हे। 

कहानी लिखे बर लता खोज ले।। 


सुमित्रा शिशिर

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

: सार छंद दिलीप कुमार वर्मा 

सम्मान 


बेंचत हँव सम्मान खरीदव, आके बीच बजरिया। 

लटकावव दीवार रहय झन, घर हर निच्चट परिया। 


बड़े-बड़े मोमेंटो ले लव, सुग्घर नाम छपा के। 

जइसन चाही तइसन फोटो, चिपकावव खिंचवा के। 

अड़बड़ सस्ता बेंचत हावंव, आके तुहर नगरिया। 

लटकावव दीवार रहय झन, घर हर निच्चट परिया। 


कुछ बड़का कुछ छोटे हावय, कुछ हे गजब निराला। 

हर तपका आ नाम कमालव, पाँव परे बिन छाला।  

चमचम झमझम चमकत हावय, जैसे सजे सुंदरिया।

बेंचत हँव सम्मान खरीदव, आके बीच बजरिया। 


मिले प्रशस्तिपत्र इहां हे, पाव किलो ले जावव। 

चना फुटेना जइसन कीमत, आवव जल्दी आवव। 

बड़ दुरिहा ले आए हावंव, मैं हर तुहर दुवरिया। 

बेंचत हँव सम्मान खरीदव, आके बीच बजरिया।


रचनाकार दिलीप कुमार वर्मा 

बलौदाबाजार छ ग

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

Sunday, January 15, 2023

पूस के जाड़-सरसी छंद

 पूस के जाड़-सरसी छंद


जाड़ पूस के गजब जनाथे, जिवरा जाथे काँप।

किनकिन किनकिन ठंडा पानी, लागे जइसे साँप।


सुरुर सुरुर बड़ चले पवन हा, हाले डोले डाल।

जीव जंतु बर पूस महीना, बनगे हावय काल।

संझा बिहना सुन्ना लागे, बाढ़े हावय रात।

नाक कान अउ मुँह तोपाये, नइहे गल मा बात।

चँगुरे कस हे हाथ गोड़ हा, बइठे सब चुपचाप।

जाड़ पूस के गजब जनाथे, जिवरा जाथे काँप।


दाँत करे बड़ किटकिट किटकिट, नाक घलो बोहाय।

सुधबुध बिसरे बढ़े जाड़ मा, ताते तात खवाय।

गरम चीज बर जिया ललाये, ठंडा हा नइ भाय।

तीन बेर तँउरइया टूरा, बिन नाहय रहि जाय।

लइका लोग सियान सबे झन, करें सुरुज के जाप।

जाड़ पूस के गजब जनाथे, जिवरा जाथे काँप।


भुर्री आखिर काय करे जब, पुरवा बरफ समान।

ठंडा पानी छीचय कोनो, निकल जाय तब प्रान।

काम बुता मा मन नइ लागे, भाये भुर्री घाम।

धीर लगाके लगे तभो ले, गजब पिराये चाम।

दिन ला गिनगिन काटत दिखथे, बबा गोरसी ताप।

जाड़ पूस के गजब जनाथे, जिवरा जाथे काँप।


मुँह के निकले गुँगुवा धुँगिया, धुँधरा कुहरा छाय।

कुड़कुड़ कुड़कुड़ मनखे सँग मा, काँपैं छेरी गाय।

चना गहूँ हें खेत खार मा, संसो मा रखवार।

कतको बेरा हा कट जाथे, बइठे भुर्री बार।

कतका जाड़ जनावत हावय, तेखर नइहे नाप।

जाड़ पूस के गजब जनाथे, जिवरा जाथे काँप।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

Friday, January 6, 2023

छेरछेरा परब विशेष-छंदबद्ध कविता



छेरछेरा परब विशेष-छंदबद्ध कविता


छेरछेरा

------------

(चंद्रमणि छंद)


अरन बरन कोदो झरन, देबे तभ्भे हम टरन।

लइका मन सब आय हें, छेर छेर चिल्लाय हें।


आज छेरछेरा हवय,पावन पुन बेरा हवय।

 सुग्घर आय तिहार ये, देथे जी संस्कार ये।


एकर जी इतिहास हे, फुलकैना के खास हे।

राजा चलन चलाय  हे, जमींदार वो साय हे।


माँगे मा का लाज हे, परंपरा के काज हे।

सूपा मा भर धान ला,करथे धर्मिन दान ला।


दान करे धन बाढ़थे,मन के पीरा माढ़थे।

बरसा होथे प्यार के, आसिस अऊ दुलार के।


ढोलक माँदर ला बजा,माँगत आथे बड़ मजा।

डंडा नाचत झूम के, गाँव ल पूरा घूम के।


धन्य हवय छत्तीसगढ़, जेकर सुंदर कीर्ति चढ़।

भाँचा रघुपति राम हे, दया धरम के धाम हे।


चोवा राम वर्मा 'बादल'

हथबंद, छत्तीसगढ़

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

*सरसी छंद*

*छेरछेरा तिहार*


कहत छेरछेरा माँगत हें, लइका सबो सियान।

पारा बस्ती अउ घर-घर मा, देवत हावँय दान।। 


डंडा नाचत गावत हें गा, गली खोर अउ द्वार।

झाँझ मंजिरा सबो बजावत, मानत हवें तिहार।।

दीदी बहिनी सुवा गीत के, छेड़त हावँय तान।

पारा बस्ती अउ घर-घर मा, देवत हावँय दान।।



सबो मनावत हावँय सुघ्घर, मिलके बने तिहार।

सबके मन मा अब्बड़ छाये, हावय खुशी अपार।।

दया मया के गुरतुर बोली, बने मिलत हे मान।

पारा बस्ती अउ घर-घर मा, देवत हावँय दान।।


*अनुज छत्तीसगढ़िया*

*पाली जिला कोरबा*

💐💐💐💐💐💐💐💐8💐💐💐💐

*महा परब छेरछेरा---दोहा छंद*


छेरिक छेरा सब कहत, गली-गली अउ खोर ।

नाचत कूदत जात हें,  करत हवयँ जी शोर ।।


लइका मन झोला धरे, माँगत घर-घर जात ।

महा परब हे दान के,  खोंची  खोंची  पात ।।


अरन-बरन कोदो दरन, कहिके हाँक लगात ।

रोटी- पीठा  हे  बने,  मुसुर-मुसुर सब खात ।।


नाचँय डंडा अउ सुवा, ढोलक माँदर साज । 

छेरिक  छेरा  बोल के,  माँगे मा का लाज ।।


पूस  माह  के  हे  परब, करव अन्न  के दान ।

मुठा- मुठा देवव  सबो,  होही गा कल्यान ।।


*मुकेश उइके "मयारू"*

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

मनहरन घनाक्षरी(छेरछेरा)

छेरछेरा छेरछेरा, हेरहेरा हेरहेरा, पारा पारा गली गली, भारी चिचियात हें।

माँगत हें अन्न दान, मिल लइका सियान, खेवन- खेवन देखौ, खंझा खंझा आत हें।

दोरदिर-दोरदिर, कोरकिर-कोरकिर, रेंगत हें एती ओती, भारी उम्हियात हें।

माँ शाकम्भरी बार मा, अन्न दान तिहार मा, मया प्रेम भाईचारा, मिल बगरात हें।


आप सब ला अन्नदान के बड़का परब छेरछेरा के गाड़ा -गाड़ा-गाड़ा बधाई।

- मनीराम साहू 'मितान'

💐💐💐💐💐8💐💐💐💐💐💐💐

छेरछेरा


छेरिक छेरा हे परब,अन्न दान के मान।

अपन कमाये धान ले,कोठी भरय किसान।

कोठी भरय किसान,छेरछेरा पुन्नी मानय।

छोट बड़े के भेद,बंधना ला नइ जानय।

सुनो मधुर के गोठ,लोक किंवदंती डेरा।

साक दान जगदंब, परब बड छेरिकछेरा।।


(2)

दानव रूरू नाव के,बढ़गे अइताचार।

देवी डंडा नाचथे,करिन उखर संहार।

करिन उखर संहार,नाच के डंडा  साँचा।

तबले हे शुरुवात,छेरछेरा मा नाचा। 

शिव परीक्षा लीन,बिहा गौरी तब जानव।

बिकट मधुर संवाद,मानथे देवी दानव।।


डाॅ मीता अग्रवाल मधुर रायपुर छत्तीसगढ़

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

 *छेरछेरा आगे - लावणी छंद*


पूस माह के पुन्नी आगे,

             छेरिक   छेरा   आगे   ना।

सुनलव मोरे भाई बहिनी,

              धरम करम सब जागे ना।

पूस माह के पुन्नी आगे........


होत बिहनिया देखौ लइका,

                बर चौरा सकलावत हे।

कनिहा बाँधे बड़े घाँघरा,

             नाचत अउ मटकावत हे।।

देवव दाई-ददा धान ला,

               कोठी   सबो  भरागे  ना।

पूस माह के पुन्नी आगे........


मुठा मुठा सब धान सकेलय,

                टुकनी हा भर छलकत हे।

छत्तीसगढ़ी रीति नियम ये,

                मन हा सुग्घर कुलकत हे।।

छेरिक छेरा परब हमर हे,

                  भाग घलो लहरागे ना।

पूस माह के पुन्नी आगे........


देखव संगी चारों कोती,

                बने  घाँघरा  बाजत हे।

बोरा  चरिहा  टुकना बोहे,

             बहुते  लइका  नाचत हे।।

छेरिक छेरा नाच  दुवारी,

                 खोंची खोंची माँगे ना।

पूस माह के पुन्नी आगे.........


छंदकार:-

बोधन राम निषादराज"विनायक"

सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

-घनाक्षरी

कहिके छेरिक छेरा, मनखे करय फेरा, 

बाजा गाजा ल बजात, लइका सियान हे। 

पूस पुन्नी छेरछेरा, दान पुन्न के जी बेरा, 

देवय आशीष अउ, झोली मा ले धान हे।। 

दानी पावै गा सम्मान, गावै सब गुनगान, 

माई कोठी के धान, बाँटत किसान हे। 

मानै सुग्घर तिहार, हँसी खुशी परिवार, 

करम धरम मा तो, डूबय इंसान हे।।


विजेंद्र वर्मा

नगरगाँव (धरसीवाँ)

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

: दोहा छंद 


छेरिक छेरा माँग  के,पाये सब झन दान।

बाजा धर के आय हे,लइका अऊ सियान।।


मुठ्ठी मुठ्ठी दान ले,झोला हा बर जाय।

होय मगन लइका सबो,नाचत गावत आय।।


आय साल भर बाद में,छेरीकछेरा तिहार। 

बरा सुहाँरी राँध के,मगन सबो परिवार।।


धान दान देथें सबो,सूपा में भर लान।

दान दिवस येला कथे,पाथे सब सम्मान।।


बाजा बाजे द्वार में,गाथें सुग्घर गीत।

बन के राधा अउ किसन,लागे सबके मीत।।


राम राम जपते रथें,गाथें सीता राम।

दान धरम कर लो कथें, बनही बिगड़े काम।।


केवरा यदु"मीरा"राजिम

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐


छेरछेरा(सार छंद)


कूद  कूद के कुहकी पारे,नाचे   झूमे  गाये।

चारो कोती छेरिक छेरा,सुघ्घर गीत सुनाये।


पाख अँजोरी  पूस महीना,आवय छेरिक छेरा।

दान पुन्न के खातिर अड़बड़,पबरित हे ये बेरा।


कइसे  चालू  होइस तेखर,किस्सा  एक  सुनावौं।

हमर राज के ये तिहार के,रहि रहि गुण ला गावौं।


युद्धनीति अउ राजनीति बर, जहाँगीर  के  द्वारे।

राजा जी कल्याण साय हा, कोशल छोड़ पधारे।


आठ साल बिन राजा के जी,काटे दिन फुलकैना।

हैहय    वंशी    शूर  वीर   के ,रद्दा  जोहय   नैना।


सबो  चीज  मा हो पारंगत,लहुटे  जब  राजा हा।

कोसल पुर मा उत्सव होवय,बाजे बड़ बाजा हा।


राजा अउ रानी फुलकैना,अब्बड़ खुशी मनाये।

राज रतनपुर  हा मनखे मा,मेला असन भराये।


सोना चाँदी रुपिया पइसा,बाँटे रानी राजा।

रहे  पूस  पुन्नी  के  बेरा,खुले रहे दरवाजा।


कोनो  पाये रुपिया पइसा,कोनो  सोना  चाँदी।

राजा के घर खावन लागे,सब मनखे मन माँदी।


राजा रानी करिन घोषणा,दान इही दिन करबों।

पूस  महीना  के  ये  बेरा, सबके  झोली भरबों।


ते  दिन  ले ये परब चलत हे, दान दक्षिणा होवै।

ऊँच नीच के भेद भुलाके,मया पिरित सब बोवै।


राज पाठ हा बदलत गिस नित,तभो होय ये जोरा।

कोसलपुर   माटी  कहलाये, दुलरू  धान  कटोरा।


मिँजई कुटई होय धान के,कोठी हर भर जावै।

अन्न  देव के घर आये ले, सबके मन  हरसावै।


अन्न दान तब करे सबोझन,आवय जब ये बेरा।

गूँजे  सब्बे  गली  खोर मा,सुघ्घर  छेरिक छेरा।


वेद पुराण  ह घलो बताथे,इही समय शिव भोला।

पारवती कर भिक्षा माँगिस,अपन बदल के चोला।


ते दिन ले मनखे मन सजधज,नट बन भिक्षा माँगे।

ऊँच  नीच के भेद मिटाके ,मया पिरित  ला  टाँगे।


टुकनी  बोहे  नोनी  घूमय,बाबू मन  धर झोला।

देय लेय मा ये दिन सबके,पबरित होवय चोला।


करे  सुवा  अउ  डंडा  नाचा, घेरा गोल  बनाये।

झाँझ मँजीरा ढोलक बाजे,ठक ठक डंडा भाये।


दान धरम ये दिन मा करलौ,जघा सरग मा पा लौ।

हरे  बछर  भरके  तिहार  ये,छेरिक  छेरा  गा  लौ।


जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"

बाल्को(कोरबा)

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐



Sunday, January 1, 2023

अंग्रेजी नवा बछर 2023 विशेष छंदबद्ध कविता


 

डी पी लहरे: सार छन्द गीत

नवा बछर के गाड़ा-गाड़ा,झोंकव मोर बधाई।

मंगलमय जिनगी हा राहय,जीयत भर सुखदाई।।


दुख के बादर दुरिहा राहय,सुख के होवय बरसा।

तन मन मा हरियाली राहय,जइसे उलहा परसा।।

हँसी-खुशी मा बीतय जिनगी,पावव मया मिठाई।

नवा बछर के गाड़ा-गाड़ा,झोंकव मोर बधाई।।


जबतक जिनगी हावय संगी,कसके मजा उड़ालौ।

झूमव नाँचव मया बाँट के,अंतस ला हर्षालौ।।

सत के रद्दा चलव हमेशा,खाहू दूध- मलाई।

नवा बछर के गाड़ा-गाड़ा,झोंकव मोर बधाई।।


डी.पी.लहरे"मौज"

कवर्धा छत्तीसगढ़

💐💐💐💐💐💐💐


: *नही नही कहिके सबझन जनवरी म नवा साल मनाथे*


नहीं नही कहिके सब, नावा साल मनाथें।

हाँसत कूदत सबझन, नाचत नाचत गाथें।


डीजे डिस्को जगमग, आनी बानी जाथे।

दारू ठर्रा मन मउहा, सबझन झड़काथे।


कलचुप कलचुप घरमा ,कुकरी मुर्गा खाथे।

रंग रंग के केक काटथे, पिकनिक सबो मनाथे।


चैत मानथे कहिथे, कतको कतुक बताथे।

छोड़ सकै नइ येला, नया कलेंडर लाथें।


झूठ झूठ कहिथे सब, नइ मानन येला।

हैप्पी न्यू ईयर कहिथे,जेला पाथे तेला।


गुरतुर गोठ मया के,एके दिन बतियाथे।

नवा साल हे कहिके, मया सबो ल जताथे।।


बिनहा उठके साधू, बनके सिधवा लागै।

गुजरय असने साल ह, सोचत सोचत जागै।


साफ सफाई करथे, घर घर दिया जलाथे।

दूसर दिन ले ढर्रा,उसने फुन रंग दिखाथे।


रतिहा जगमग जगमग, लागै जस दीवाली।

होटल डिस्को जाके, करथे पइसा खाली।


साल नवा मा सुनलौ, मन मा दिया जलावौ।

अंतस के बाती बारौ, मनखे ला मनखे भावौ।


मया पिरित ला समझौ,जग के अँधियार मिटावौ।

नावा साल चैत क महिना, राम सिया ला माथ नवावौ।।


धनेश्वरी सोनी गुल

बिलासपुर

💐💐💐💐💐💐💐💐💐

: बरवै छन्द 


सबले आगर लागे, हमरो देश। 

नवा बिहनिया आगे, नव परिवेश।। 


जन गण मन हा छागे, देश विदेश। 

नवा पाग ला पाके, दिखय विशेष।। 


तीनों रंग तिरंगा  , मन ला भाय। 

पबरित बोहे गंगा, जन हितलाय।। 


बनके भारत रानी, राज  चलाय। 

उन्नति भरे जुवानी, हे बलखाय।। 


सुमित्रा शिशिर "

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

 ज्ञानू कवि: अंग्रेजी नवा बछर के बहुत बहुत बधाई💐


नवा बछर के शुभ बेला मा, बाँटव मया दुलार।

का का होवत हे दुनिया मा, थोरिक करव बिचार।।


करम धरम ला भूले मनखे, अउ भूले सत्कार।

छोटे छोटे बात बात मा, टूटय घर परिवार।


धन दौलत पद पाके मनखे, करे गजब मतवार।

आज नता रिश्ता मनखे बर, होगे हे व्यापार।।


दाई ददा अन्न पानी बर, तरसत रहिथे रोज।

मिलय नही प्रभु मंदिर बेटा, करले कतको खोज।।


रिश्वतखोरी के दीमक हा, चाट खाय संसार।

भेंट चढ़े भ्रष्ट्राचारी के, लाखों बंठाधार।।


चक्कर काँटय आँफिस लोगन, अफसर हे अबसेन्ट।।

अफसरशाही मौज करत हे, खा खाके परसेन्ट।।


लोकतंत्र नइ बोट बैंक हे, थोरिक करव बिचार।

जिम्मेदारी भूले काबर, राजनीति बाजार।।


धरती दाई रोवत हावय, देख जगत के हाल।

बेजाकब्जा हा फइलत हे, जइसे मकड़ी जाल।।


कोर्ट कचहरी अपराधी बर, घरघुँदिया के खेल।

मौज करत हे खुल्लमखुल्ला, नियम कायदा फेल।।


 अउ किसान बपुरा के जिनगी,  बीतत हे तँगहाल।

कमा कमा मजदूर बिचारा, के नइ बाँचत  खाल।।


महँगाई हा सुरसा होगे, बाढ़त कनिहा टोर।

करत हवय सब त्राहि त्राहि गा, कोरोना के शोर।।


नवा बछर के शुभबेला मा, लेवव ये संकल्प।

सरग बनाबो ये भुइँया ला, करबो काया कल्प।।


ज्ञानु

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

 नवा बछर (लावणी छंद)


नवा बछर मा झूमौ नाचौ, 

               मन मा खुशी मनावौ जी।

सुख के दिन हा आवत हावै, 

             स्वागत फूल सजावौ जी।।


नवा काम बर बाना बाँधौ, 

               मिलके बहिनी भाई मन।

नवा अँजोरी लाने बर अब,

                  आगू रहिहौ दाई मन।।

अपन करम ला खुदे बनावौ,

             महिनत दीप जलावौ जी।

नवा बछर मा..............


नवा जमाना संग चले बर,

                     रस्ता नवा बनाना हे । 

पाछू दिन के सुध ला छोड़ौ, 

                   आगू ध्यान लगाना हे।।

पथरा फोर पाट के डबरा, 

              भुइयाँ सरग बनावौ जी।

नवा बछर मा................


का खोए अउ का पाए हव,

              बिसरा दव अब ओला जी।

नवा बछर मा उन्नति होवै,

                सुम्मत धरलौ झोला जी।।

कोन अपन अउ कोन पराया,

                सब ला संग चलावौ जी।

नवा बछर मा.................


रचनाकार:-

बोधन राम निषादराज"विनायक"

सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐


नवा बछर के गाड़ा गाड़ा बधाई.


( छन्न पकैया छंद) 


छन्न पकैया छन्न पकैया, नवा बछर हा आगे |

जगर मगर हे जम्मो कोती, मन मा खुशी अमागे ||


छन्न पकैया छन्न पकैया, लइका पिचका नाचे |

नवा साल के नव उमंग ला, झूमत गावत बाँचे ||


छन्न पकैया छन्न पकैया, डी जे गाना बाजे |

मस्ती मा हे मस्त राम सब, चटक ओनहा साजे ||


छन्न पकैया छन्न पकैया, केक मगन हो काटे |

मुँह भर जम्मो लगा केक ला, अँगरी अँगरी चाटे ||


छन्न पकैया छन्न पकैया, कइसना रीति आगे |

अपन देश के संस्कृति ला सब, फैशन मा भूलागे ||


छन्न पकैया छन्न पकैया, जागव भइया जागव |

कति तोर सभ्यता जावत हे, मन गुन लव तब भागव ||


अशोक कुमार जायसवाल

भाटापारा

1-1-2023

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐


सुगति छन्द मा


नव साल हे ।खुशहाल हे।

विपदा टरे। सुख हा भरे।


मनमीत रे।गा गीत रे।

जग खुश रहै।गंगा बहै।


सूरुज उगे।किस्मत जगे।

उजियार हो।आधार हो।


सद्भावना।शुभकामना।

जग घूम ले।पग चूम ले।


विश्वास हे।उल्लास हे।

तँय उड़ बने।मन बल सने।


मुँह हार के।फटकार के।

शुभ हाथ मा।जग साथ मा।


आकाश हे ।कैलाश हे।

ईश्वर हवे।ठुड़गा नवे।


जग जीत ले।सच रीत ले।

नेकी करौ।गड्डा भरौ।


घर द्वार मा।परिवार मा।

बसथे मया।रहिथे दया।


सबके सुनव ।मन मा गुणव।

जब साँच हे।का आँच हे।


पानी रहय।छानी रहय।

माँ बाप हे।शुभ छाप हे।


झन कर कपट।झन तो झपट।

सुख चैन रख।मुख बैन रख।


चल शान से।सम्मान से।

बानी नरम।चूल्हा गरम।


जे छल करे।तरवा धरे।

सुम्मत रखौ।सुख ला चखौ।


सब एक हो।मन नेक हो।

जिनगी हँसे।दुख हा धँसे।


आशा देशमुख

एनटीपीसी जमनीपाली कोरबा

💐💐💐💐💐💐💐💐💐