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Sunday, October 24, 2021

दुर्मिल सवैया

 : दुर्मिल सवैया


 बिहने बिहने बड़ जाड़ लगे अउ साँझ बने मन भात रहे।

बुढ़ही बुढ़हा चँवरा बइठे गुड़ डार चहा छलकात रहे ।

लइका पिचका हर घीव बुड़े बड़ तात अँगाकर खात रहे ।

दिन चार धरे सुख आय हवे मनखे धन भाग बतात रहे ।

 शशि साहू कोरबा 🙏🙏

छप्पय छन्द- डी.पी.लहरे"मौज"

 छप्पय छन्द-

डी.पी.लहरे"मौज"

मँहगाई के मार, देख जनता मन झेलँय।

नेता मालामाल, खेल सत्ता के खेलँय।

कइसन आगे राज, इहाँ अब मरना होगे।

सबो जिनिस के भाव, बढ़े मा जनता भोगे।।

अच्छा दिन के आस मा, पानी फिरगे आज गा।

सपना नवा बिहान ला, मारत हावय गाज गा।।


डी.पी.लहरे"मौज"

कवर्धा छत्तीसगढ़

कुंडलिया छंद-अनुज छत्तीसगढ़िया*

 कुंडलिया छंद-अनुज छत्तीसगढ़िया*


छोड़व अब रासायनिक, बउरव जैविक खाद।

भुइयाँ पानी जीव ला, करत हवय बरबाद।।

करत हवय बरबाद, जहर होवत हे पानी।

होवत हे अब रोग, धान ला आनी-बानी ।।

डारव गोबर खाद, प्रकृति ले नाता जोड़व।

बंजर होवत खेत, कीटनाशक अब छोड़व।।


*अनुज छत्तीसगढ़िया*

   पाली जिला कोरबा

Wednesday, October 20, 2021

शरद पूर्णिमा, कोजागरी परब विशेष-छंदबद्ध कविता


 



शरद पूर्णिमा, कोजागरी परब विशेष-छंदबद्ध कविता




कुंडलियाँ छंद

कतका  कुहरत हे इहाँ,  जाड़ा हवय रिसाय ।

पुन्नी    के   चंदा   तको,   बादर पिछू लुकाय।।

बादर  पिछू  लुकाय, फिरत  ए दारी झाँकत।

नइ अमरित बरसाय, रहव बइठे तुम ताकत।।

कुदरत   तिर  अन्याय, करे हौ मनखे जतका।

'कांत'  तेकरे  पाय, इहाँ  कुहरत  हे  कतका।।

बधाई कइसे देवँव..


सूर्यकांत गुप्ता, 'कांत'

सिंधिया नगर दुर्ग(छ.ग.)


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छप्पय छंद-सूर्यकांत गुप्ता कांत

चंदा   तोर   अँजोर,  आज  के अलगे  हावय।

पुन्नी  महिना क्वाँर, चाँद  अमरित  बरसावय।। 

सोला कला समेट, गगन मा तँय दमकत हस।

जग  के पालनहार कन्हैया कस चमकत हस।।

सोला   कला  बताय हे  जइसे वेद पुरान  मा।

धर्म  ग्रंथ समझाय हे,  रहिथे ए  भगवान  मा।।


आव  राँध  के  खीर  मढ़ावन  छत मा भाई।

होही   आधा   रात  शुरू  अमरित  बरसाई।।

चलो   रचाबो   रास,  बलाबो अवतारी  ला।

कर लन ओकर ध्यान, छोड़ दुनियादारी ला।।

हबके  बर ए  देश  ला, बइठे  पापी माँद मा।

ऊपर ले बसबो कथें, जाके सब झन चाँद मा।।


कुदरत सँग खिलवाड़, होय झन अब अउ जादा।

बाहिर   भीतर   साफ,   राखबो  कर  लन  वादा।।

हे   नटवर   नँदलाल,   अगोरत  हन  अब  तोला।

आ  जाते  घनश्याम,  हमर  तर  जातिस  चोला।।

ईश्वर  तँय  सब  जानके, सोवत हस जी तान के।

जनता  हे  हलकान गा,  अच्छा दिन ला लान के।।

सूर्यकान्त गुप्ता

सिंधिया नगर दुर्ग(छ.ग.)

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चौपाई छंद- बोधन राम निषादराज

(शरद पुन्नी)


आज शरद पुन्नी मन भावै । लइका बच्चा खुशी मनावै ।।

आधा रतिया खीर बनावै । चंदा उजियारा मा लावै ।।1।।


कहिथे अमरित बरसे मोती । खीर बनावै जम्मो कोती ।।

बड़ भागी होथे नर नारी । खाथे अमरित सब सँगवारी ।।2।।


जघा-जघा त्योहार मनावै । चंदा मामा के गुन गावै ।।

हरु हरु पुरवइया हा भावै । जाड़ा के महिना हा आवै ।।3।।


जाड़ा-गरमी सब सम लागे । घुमे फिरे बर मन हा भागे ।।

अब कुँवार हा भागन लागे । सुग्घर महिना कातिक आगे ।।4।।

 

वाल्मीकि बने जी सन्यासी । ओखर आज घलो पैदासी ।।

रामायण के इही लिखइया । पावन पुन्नी देखव भइया ।।5।।


शुभ दिन होथे ये बेला हा । कहूँ कहूँ लगथे  मेला हा ।।

पुन्नी के जी रात सुहावन । चंदा देखव बड़ मनभावन ।।6।।


राधा किसना रास रचावै । गोपी मन के मन ला भावै ।।

लीला सुग्घर रास बिहारी । मथुरा वृन्दाबन के नारी ।।7।।


दूध बरोबर चंदा राती । जगमग जइसे दीया बाती ।।

निरमल देख अगासा चमकय । फिटिक अँजोरी भुइयाँ दमकय ।।8।।


कारी अँधियारी हा भागे । सोये भाग सबो के जागे ।।

पुन्नी के चंदा उजियारी । चमकत हावै गली दुवारी ।।9।।


छंदकार:-

बोधन राम निषादराज"विनायक"

सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)

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पुन्नी के चंदा(सार चंदा)


पुन्नी रात म चमचम चमकत,नाँचत हावै चंदा।

अँधियारी रतिहा ला छपछप,काँचत हावै चंदा।


बरै चँदैनी सँग में रिगबिग, सबके मन ला भाये।

घटे बढ़े नित पाख पाख मा,एक्कम दूज कहाये।

कभू चौथ के कभू ईद के, बनके जिया लुभाये।

शरद पाख सज सोला कला म,अमृत बूंद बरसाये।

सबके मन में दया मया ला,बाँचत हावै चंदा--।

पुन्नी रात म चमचम चमकत,नाँचत हावै चंदा।


बिन चंदा के हवै अधूरा,लइका मन के लोरी।

चकवा रटन लगावत हावै,चंदा जान चकोरी।

कोनो मया म करे ठिठोली,चाँद म महल बनाहूँ।

कहे पिया ला कतको झन मन,चाँद तोड़ के लाहूँ।

बिरह म रोवत बिरही ला अउ,टाँचत हावै  चंदा--।

पुन्नी रात म चमचम चमकत,नाँचत हावै चंदा।


सबे तीर उजियारा हावै,नइहे दुःख उदासी।

चिक्कन चिक्कन घर दुवार हे,शुभ हे सबके रासी।

गीता रामायण गूँजत हे, कविता गीत सुनाये।

खीर चुरत हे चौक चौक मा,मिलजुल भोग लगाये।

धरम करम ला मनखे मनके,जाँचत हावै चंदा----।

पुन्नी रात म चमचम चमकत,नाँचत हावै चंदा।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

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शरद पूर्णिमा

-----(मुक्तामणि छंद)--------


शरद पूर्णिमा रात के, बगरे फिटिक अँजोरी।

हे चकोर मनमोहना, अउ राधिका चकोरी।

नंदलाल नचवात हे,बंशी मधुर बजाके।

महारास ला देख के, कुलकै जल जमुना के।


हरहुना हा पाक गे, माई माथ नवाये।

लक्ष्मी हा अवतार ले, हमर खेत हे आये।

फुरहुर जुड़ लागै हवा, घाम तको मन भावै।

भुँइया मा चारों डहर, हरा बिझौना हावै।


ओस-बूँद नथली  पहिर, दूबी हा मुस्कावै।

तरिया देवै ताल निक, नरवा गीत सुनावै।

झुरझुर बोलै झोरकी,पतरावत हे धारी।

बादर अब छावै नहीं, हे लहुटे के पारी।


चंदा मामा खीर मा ,अमरित ला टपकाबे।

खाबो हम परसाद ला, जम्मों रोग भगाबे।

 दुनिया मा सुख शांति हो, घर-घर मा खुशहाली।

कातिक आवै झूमके, मानन बने दिवाली।


चोवा राम वर्मा 'बादल'

हथबंद, छत्तीसगढ़

Saturday, October 16, 2021

गुरु वंदना - आल्हा छंद*

 



*गुरु वंदना - आल्हा छंद*

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मँय गुरुवर जी चरन पखारँव,गंगा जल आँसू के धार।

एक सहारा भवसागर के,जिनगी नैया करिहौ पार।।


सुत उठ दर्शन पावँव मँय हा,पइँया लागँव गुरुवर रोज।

सत् के रद्दा अँगरी धरके,बने सिखाबे चलना सोझ।।


मँय लइका भकला बइहा कस,आखर शिक्षा देहू ज्ञान।

रहै सदा आशीष मूड़ मा,पढ़ लिख पोथी बनौं सुजान।।


छंद ज्ञान अनमोल रतन के,कर दव बरसा अमरित धार।

पी के येला मँय तर जावँव,हो जावय जिनगी उद्धार।।


तुँहर दुवारी आए हँव मँय,बिन माँगे नइ जावँव आज।

भरौ ज्ञान के अमिट खजाना,गदगद रहै "विनायक राज"।।


नाम कमावौं मँय दुनिया मा,तुँहरे पाछू गुरुवर मोर।

सबो मनोरथ पूरा होवय,सिरजावौं जिनगी के डोर।।

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छंदकार:-

बोधन राम निषादराज"विनायक"

सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)

आभार सवैया

 आभार सवैया


पानी बिना हे पियासे चिरैया दया जीव राखौ बचा जिन्दगानी ल ।

भाँड़ी मुहाँटी तरी रूख राई कुडे़रा सकोरा मढा़देव पानी ल।


मैना परेवा सुवा रोज आही दुवारी गुँजाही सुना मीठ बानी ल।


दाना चुगे बूँद पानी पिये जे कहाँ माँगथे लोभ मा राजधानी ल ।।

 

शशि साहू  कोरबा

🙏🙏

दोहा-मनोज वर्मा

 दोहा-मनोज वर्मा

एक समसामयिक दुखद घटना

घटना पत्थल गॉंव के, अंतस दे झकझोर।

राजनीति मा हे मगन, नेता जम्मो चोर।।


रोटी सेंकत लाश मा, कुकुर भेड़िया गिद्ध।

करत बयानी गोठ हर, मनसा इॅंखर सिद्ध।।


घर के लाठी टूट गे, उजरे मॉंघ सिॅंदूर।

दिही आसरा कोन हर, होय जीवरा चूर।।



बोली लगगे लाश मा, खूब मचाये शोर।

राजनीति मा हे मगन, नेता जम्मो चोर।।


हाल का परिवार के, नइ हे मतलब मान।

बने हितैषी बोट बर, मुर्दा खोर महान।।


नजर लगाये गिद्ध कस, ताकत रहिथे रोज।

जाति धरम अउ हादसा, पेट भरे निज खोज।।


जुॅंहा जोंख किन्नी बने, लहु चुहके मुह बोर।

राजनीति मा हे मगन, नेता जम्मो चोर।।

घटना पत्थल गॉंव के, अंतस दे झकझोर।


मनोज कुमार वर्मा

बरदा लवन बलौदा बाजार

किशना से गोहार* *गीतिका छंद*

 *किशना से गोहार*


*गीतिका छंद*


हे कन्हैया आ जगत मा ,देख बाढ़े पाप हे।

बाढ़गे अतका सुवारथ ,छल अहम के ताप हे।।

लोभ के रद्दा धरे जग, मन मया ला छोड़ के।

बीच घर द्वारी रुंधागे , नेंव इरखा कोड़ के।।


देश दुनिया राज सत्ता , सब महाभारत करें।

धर्मराजा हे कलेचुप , जेब अँधवा मन भरें।।

आ किशन विनती विनत हव, प्रेम के अवतार धर।

फेर जग मा सुख बसा दे , शांति सुम्मत ला सुघर।।


हे किशन तोरे जरूरत , आज जग ला अउ  हवै।

नइ दिखे गोपाल कोनो,बिन गुवाला गउ हवै।

नाम के बस गोधूलि हे , आय पथरा राज हे।

लागमानी गोत नाता , मूल के बिन ब्याज हे।।


आशा देशमुख

एनटीपीसी कोरबा

Friday, October 15, 2021

छंद के छ की प्रस्तुति-दशहरा परब विशेष

छंद के छ की प्रस्तुति-दशहरा परब विशेष
 
विजय दशमी पर्व की सादर बधाई 

*मन के रावण मार दे* उल्लाला छंद


पुतला ला तै झन जला , मन के रावन मारदे ।

काम क्रोध मन मा बसे , सब ला बंबर बारदे।।

दानव घुमे हजार झन ,बहुरुपिया के भेष मा ।

बल ओखर निसदिन बढ़े ,राम कृष्ण के देश मा।।

धरले बाना हाथ मा , पापी मन ल संहार दे ।

पुतला ला तै झन जला मन के रावण मारदे।।


बेटी मन के लाज ला , लूटय दानव रोज के।

खनके गड्ढा पाट दे ,बइरी मन ला खोज के ।।

ओखर मुड़ ला काट दे , जे मनखे रुप दाग हे ।

मनखे बन मनखे डसे , ओ जहरीला नाग हे ।।

बइरी मन के वंश ला, खउलत तेल म डारदे।

पुतला ला तै झन जला मन के रावण मारदे।।


स्वारथ बर चोरी करै, उदिम करेओ लाख जी।

सोना के लंका घलो , जरके होगे राख जी।।

सत् के रद्दा छोड़के , जे अवघट मा जाय जी।

जघा जघा कांटा गडे़ , जिनगी नरक बनाय जी।।

कांटा बने समाज के , ओला जग ले टारदे ।

पुतला ला तै झन जला मन के रावण मारदे।।


                    छंद साधक

       परमानंद बृजलाल दावना

                    भैंसबोड़ 

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बरवै छंद

दया मया के सुग्घर, दियना बार।

परब विजयदशमी मा, कर उजियार।।


विजय पताका सत के, चारों ओर।

देख बुराई भागय, सुनके शोर।।


गाँव गली मा गूँजय, सुख के शोर।

मुरहा मनखे मन हा, बनय सजोर।।


अहंकार अउ लालच, ला अब छोड़।

काम,क्रोध,अउ इरखा, ले मुँह मोड़।।


मन के रावण पहिली, तैं हर मार।

भगा जही संगी हो, सबो विकार।।


देश सँवरही रेंगव, सुनता बाँध।

हाथ जोर के मनखे, धरके खाँध।।


खुशी समावय मन मा, सबके आज।

मते गिरय जी कखरो, उप्पर गाज।।


विजेन्द्र वर्मा

नगरगाँव(धरसीवाँ)

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आल्हा छंद 


रावण मरगे कोन कथे गा,गली गली मा जय जयकार ।

हाबे जिंदा दुशासन हा,लुगरा होवत तारे तार।।


कइसे मनही आज दशहरा,रोवय बेटी पार गुहार।

नव दिन पूजा करे दिखावा,धोवे पैंया दूधे धार।।


दसवें दिन ले रौंदत हावें,बढ़गे जग मा अत्याचार।

तीन साल के बेटी मारे,जाबे रे तँय यम के द्वार।।


तोरो घर तो बेटी होही,सोच समझ के करबे पाप।

फाँसी मा चढ़वातिस तोला,रोतिस तोरो दाई बाप।।


रावण तो बड़ ज्ञानी रीहिस,मरगे वो करके अभिमान।।

शंकर के वो भक्त कहाथे,नित दिन ओकर धरथे ध्यान।।


चोरी करके लेगे सीता, बन बन खोजे लक्ष्मण राम।

ड़ारा पाना फूल ल पूछे,देखे हवौ जानकी नाम।


कोनो चोरी करके लेगे,रसता कोनो देव बताय।।

कुटिया में ओ रहिस अकेली,छलिया कोनो छली दिखाय।।


जनक नंदनी मोर सुवारी,लक्ष्मण के भौजाई आय।

धर धर धर धर रोवत हावय,कोनो देहू पता बताय।।


आगे हनुमत बाम्हन बनके,पूछे कौन कहाँ ले आय।

रामा कहिथे अवध पुरी  के,दशरथ हमरो  पिता कहाय।।


चौदह बरस हवै बनवासा,चोरी होगे सीता मोर।

कौने हरव बताहू हम ला,बिनती करथौं हाथ ल जोर।।


मैं हनुमत अँजनी के बेटा, सुग्रीव  सँग मा बदौ  मितान।

रिसमुक परबत मा रहिथे वो,गोठ बात मा हवै सियान।।


केवरा यदु "मीरा "

राजिम

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हाॅंसत रावन पूछत हे करनी हर काकर राम सही हे।

राह धरे सत के चलथे अइसे शुभ काकर काम सही हे।।

पूजय जे नित मात पिता घर मंदिर काकर धाम सही हे।

मार सके रहिके हद रावन राम ग काकर नाम सही हे।।


खोट हवै करनी हर मोर त काट डरौ तुम लान ग आरी।

बाढ़त रूप हवै जरके हर साल उपाय करौ अब भारी।।  

चोर बने मॅंय पाप करे हॅंव लाय हरें अउ दूसर नारी।।

शर्त हवै सुन मोर इहॉं करही वध जेन हरे सद्चारी।।


मनोज कुमार वर्मा

बरदा लवन बलौदा बाजार

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कुंडलियाँ छंद-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


रावन रावन हे तिंहा, राम कहाँ ले आय।

रावन ला रावन हने, रावन खुशी मनाय।

रावन खुशी मनाय, भुलाके अपने गत ला।

अंहकार के दास, बने हे तज तप सत ला।

धनबल गुण ना ज्ञान, तभो लागे देखावन।

नइहे कहुँती राम, दिखे बस रावन रावन।।


रावन के पुतला कहे, काम रतन नइ आय।

अहंकार ला छोड़ दव, झन लेवव कुछु हाय।

झन लेवव कुछु हाय, बाय हो जाही जिनगी।

छुटही जोरे चीज, धार बोहाही जिनगी।

मद माया अउ मोह, खोज के खुदे जलावन।

नइ ते जलहू रोज, मोर कस बनके रावन।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

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Wednesday, October 13, 2021

नवरात्रि विशेष-माता रानी ल छंदबद्ध भाव पुष्प

 


नवरात्रि विशेष-माता रानी ल छंदबद्ध भाव पुष्प

इंद्राणी साहू: *माँ दुर्गा के स्तुति*

विधा - *विष्णुपद छंद*

26- मात्रा, यति- (16,10), समचरणान्त- 12

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दुर्गा दाई हवय बिराजे, शुभ सिंगार करे ।

बघवा ऊपर करे सवारी, तिरसुल हाथ धरे ।।


माथा चमके चंदा कस अउ, आँखी हवय बड़े ।

खप्परवाली अपन भक्त के, रक्षा करत खड़े ।

निरमल भाव पुकार करे ले, संकट सबो टरे ।

दुर्गा दाई हवय बिराजे, शुभ सिंगार करे ।।


भक्तन के दुख दूर करैया, मइया करय दया ।

शरन म ओकर आवय ओला, माँ के मिलय मया ।

सुख के मिलय बिछौना सुग्घर, आवत दुख ह डरे ।

दुर्गा दाई हवय बिराजे, शुभ सिंगार करे ।।


भक्ति भाव हिरदय म जगावत, सुग्घर रूप सजे ।

संत समाज हवय जुरियाये, माँ के नाँव भजे ।

खाली झोली भरके दाई, सबके दुख ल हरे ।

दुर्गा दाई हवय बिराजे, शुभ सिंगार करे ।।


         *इन्द्राणी साहू"साँची"*

         भाटापारा (छत्तीसगढ़)     

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 अमृतदास साहू (विष्णु पद छंद)

आबे मइयाँ नवराती मा,दया मया धरके।

करबो सेवा जुरमिल तोरे,पइयाँ ला परके।।

नव दिन मा तँय सबके माता,दुख पीरा हर दे।

पापी अत्याचारी मन ला,कुट कुट ले छर दे।।

नइहे कोनो हमर पुछइया,तोर सिवा मइयाँ।

सदा मया बरसावत रहिबे,परत हवन पइयाँ ।।

सबके बधना पूरा करथस,हमरो ला करदे।

सबके झोली भरथस माता,हमरो ला भरदे।।

तोर दरस बर आये हावन ,कतको अनगइहाँ।

पाये बर ओ दया मया के, दाई कस छइहाँ।

रेंगत हपटत तोर दुवारी,आये हन मइयाँ।

पार लगा दे हमरो माता,अटके हे नइयाँ।।

अमृत दास साहू

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 नंदकुमार साहू 

विष्णु पद छंद 


नवराती मा माता मन के,  नाँव ला  सुमरबो।

सुघर अंगना चौक पुराबो, सेवा ला करबो।


खीर मिठाई पान फूल अउ, नरियर ला धरके।

तोर दुवारी गीत आरती, गाबो मन भरके।


नान नान हम लइका दाई, सुरता तँय करबे।

देबे अचरा छाँव अपन तँय, सब दुख ला हरबे।


नन्द कुमार साहू नादान

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मतगयंद सवैया

हाथ धरे तलवार गदा जग के जननी भुँइया अब आवै।

शेर चढ़े जग के जननी अब पाँव धरा म मढा़वत हावै।।

देख अलौकिक रूप सबो अँगना फुलवा ल सजावत हावै।

रंग गुलाल धरे अब स्वागत मंगल गीत सबो झन गावै।।

बृजलाल दावना


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*जयकारी छंद-3* दुर्गा दाई


अरजी हे दाई कर जोर। हर लेबे दुख पीरा मोर।।

कर देबे अॅंछरा के छाॅंव। सेवा मा दिन अपन पहाॅंव।।


महिमा हावय अगम अपार। जग मा होवत जय जयकार  ।।

दे दे दया मया के दान। दाई तोर करॅंव गुनगान।।  


दाई तोर हवय बड़ रूप। तोला भावय बंदन धूप।।

बैरी मन के कर दे नास। दाई भक्तन के तॅंय आस।।

रीझे यादव

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त्रिभंगी छंद


हे माता रानी,जग कल्याणी,दुखियन के अब,कष्ट हरौ।

सब के पीरा हर,माता तेहर,मनखे मन के,ध्यान धरौ।।

बड़ मान मनौती,होय बढ़ौती,सब मनखे के,आज इहाँ।

माँ अइसन वर दव,सुमता भर दव,होय नेक अब,काज इहाँ।।

विजेन्द्र वर्मा

नगरगाँव(धरसीवाँ)

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🌸🌸नवरात्रि पर्व🌸🌸

    ( हरिगीतिका छंद)

रचना-कमलेश वर्मा,भिम्भौरी,बेमेतरा

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नवरात्रि के पावन परब,उत्साह चारों कोत हें।

पण्डाल-मंदिर मा जलत, मन-कामना के जोत हें।

नित आरती सेवा भजन, जयकार भारी होत हे।

सुख-शान्ति पावत आदमी, आवत इहाँ जो रोत हे।


हे माँ भवानी रात-दिन, हम तोर महिमा गात हन।

नवरात्र मा माँ अम्बिका, आशीष तोरे पात हन।

पाके क्षमा सब भूल के, आँखी तुँहर हम भात हन।

विश्वास मन मा भर बिकट, चौखट सदा हम आत हन।


लाली करे श्रृंगार सब, सुग्घर सजे दरबार हे।

सिंह हे सवारी आपके, अउ हाथ मा तलवार हे।

दानव बड़े महिषा सँही, संहार बर अवतार हे।

हे पार्वती-गौरी नमन, कर जोड़ बारम्बार हे।


🌸🌸जय माता दी🌸🌸

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चौपाई छंद 


जय हो जय अंबे महरानी।

जग मा नइये तोरो सानी।।


शैल सुता माँ ब्रह्मचारिणी।

तोला कहिथें जग कल्याणी।।


  माता    चंद्रघंट  बन आये

चौथे कुष्मांड़ा कहलाये।।


  पंचम दिवस हे स्कंदमाता      

मैंया सबके भाग विधाता ।।


दिन छठ कात्यायनी माता।

होवत घर घर में  जगराता।।


कालरात्रि साते बन आये।

दुष्टन ला तँय मार भगाये।।


आठे के बने महागौरी ।

मैंया तोरे लागौं पँवरी।।


नवम सिद्धिदात्री तँय माता।

मैंया मोरे हे सुख दाता।।


मात शारदा मैंहर वाली।

तहीं हरस संतन प्रतिपाली।।


मंगल करणी तँय दुख हरनी।

दुनिया कहिथे तोला जननी।।


शिव शंकर के उमा भवानी।

हावे तोरे अकथ कहानी।।


शुंभ निशुंभ दानव ला मारे।।

महिषासुर ला तँय संघारे।।


रक्तबीज के मुड़ ला काटे।

भक्त जनन ला सुख तँय बाँटे।।


दुख दारिद के नाशन हारी।

पँवरी मा जावौं बलिहारी।।


अँधरा तोर दुवारी आथे।

हाँसत आँखी पा घर जाथे।।


बाँझन ला तँय बेटा देथस।

दुख माता तँयहा हर लेथस।।


कोढ़ी तोरे द्वार पुकारे।

काया दे माँ तहीं उबारे।।


निर्धन के भर देथस झोली।

छलकल रहिथे कोठी ड़ोली।।


दुखिया के तँय बने सहाई।

जय हो अंबा जय महमाई ।।


फूल पान धर मातु मनावौं।

तोर जियत भर ले गुण गावौं।।


ध्वजा नारियल भेट चढ़ावँव।

सुमरि सुमरि तोरे गुण गावँव।।


हिंगलाज में मातु भवानी।

माने दुनिया तँय वरदानी।।


धरके श्रद्धा भक्ति  सुमरथे।

भवसागर ले पार उतरथे।।


आओ चरण म शीश झुकाबो।

मन के हमूँ मनौती पाबो।।


नवदिन अउ नव रात मनावौं।

झुमर झुमर के जस ला गावौं।।


केवरा यदु "मीरा "

राजिम

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दाई तोर बघवा (जस गीत,बरवै छंद)


दाई  तोरे  बघवा,करे उजार।

बैरी दल मा मचगे,हाहाकार।


तन मा कारी पिंवरी,हावय डाड़।

बादर  गरजे  तइसे ,लगे  दहाड़।

रीस भरे आँखी मा,हे बड़ लाल।

तेज  हवा  ले  भागे,मार उछाल।

कोई नइ तो पाये,ओखर पार--।

दाई तोरे बघवा,करे उजार----।


आरी ले जादा हे, धरहा  दाँत।

बइरी मन ला मारे,धरके पाँत।

कतको मन बिन मारे,जान गँवाय।

कोनो हा बघवा  ले,सक नइ पाय।

डरके रन ले भागे,माने हार.......।

दाई तोरे बघवा,करे उजार........।


बिछगे  भारी रन मा,लासे  लास।

कँउवा कुकुर अघाये,खाये मास।

चारों मुड़ा  बहावय,खूने खून।

देख  सबो  के नाड़ी,होगे शून।

रहिथे वो सेवा बर, सदा तियार.।

दाई तोरे बघवा,करे उजार.......।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को(कोरबा)

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: *चौपाई छंद - बोधन राम निषादराज*

(मइया शेरावाली)


महिना सुग्घर लागत हावै ।

 मन मा आसा जागत हावै ।।

जाहूँ नवराती के मेला ।

 डोंगरगढ़ मा रेलम पेला ।।


जगमग-जगमग अँगना चमके । 

लकलक-लकलक सुग्घर दमके ।।

चारो मूड़ा ढोल-नँगारा ।

 बाजय जम्मो पारा-पारा ।।


हे दुर्गा माता सुन मइया । 

मँय हाँ तोरे परथौं पइँया ।।

मोरो बिनय अरज सुन लेबे ।

 मन चाही मोला वर देबे ।।


सफल मनोरथ करबे मइया ।

 मोरो नइया पार लगइया ।।

दीन-हीन के रक्षा करबे ।

 खाली झोली मोरो भरबे ।।


हे माता तँय शेरावाली ।

 कतका सुग्घर भोली-भाली ।।

मोरो सोये भाग जगादे । 

काट गरीबी मार भगादे ।।


जोत जँवारा के उजियारा ।

 बगरत हावै आरापारा ।।

मन के अँधियारी ला मारौ ।

 लोभ मोह के फन्दा टारौ ।।


आदि शक्ति माता महरानी ।

 दुख हरनी अउ सुख के खानी ।।

दानव मारे छिन मा भारी ।

 पापी लोभी अतियाचारी ।।


जगमग मंदिर तोर दुवारी ।

 सजे हवै माँ मंडप भारी ।।

रानी मइया के जयकारा ।

 गूँजत हावै सब संसारा ।।


काली रूप धरे महरानी ।

 मारय दानव आनी-बानी ।।

थर-थर काँपै अतियाचारी ।

 भागय जम्मोझन सँगवारी ।।


मोरो दुःख हरो कंकाली ।

 दउड़त आवौ शेरा वाली ।।

बइठे हँव मँय तोर दुवारी ।

 काटौ मोरो बिपदा भारी ।।


हे जगदम्बा आदि भवानी ।

 कृपा करौ मइया कल्यानी ।।

मोरो अँगना पाँव पसारौ ।

 लइका तोरे मातु उबारौ ।।


बीच भँवर नइया हा डोले ।

 सुआ पिंजरा के माँ बोले ।। 

जय हो माता परबतवासी ।

 छाये हे घन-घोर उदासी ।।


मइया    ला  चुनरी  ओढ़ाबो।

 आशीष हमन ओखर पाबो।। 

माता   रानी   दया   दिखाथे।

 जे  नर नारी  गुन ला  गाथे।।


पापी   मन  ला  मार  गिराए।

 जग ले अतियाचार  मिटाए।।

भक्ति शक्ति के जोत  जलाए।

 सेवा  करके  फल  ला  पाए।।


माता  दुर्गा   तँय   कल्यानी।

 आदि शक्ति हे मातु भवानी।।

हिंगलाज    जगदम्बे    माता।

 दुखिया के तँय भाग्य बिधाता।।


तोर चरन के  रज मँय  पावँव।

 राख  भभूती  माथ  लगावँव।।

हे  काली   कंकालिन   मइया।

 डुबती  नइया  पार  लगइया।।


जोत   जँवारा   सुघ्घर  साजे।

 ढोल   नँगारा   मांदर   बाजे।।

नव दिन  नव राती  के  मेला।

 मंदिर  जगमग  रेलम  पेला।।


रूप  सजे  हे  सुन्दर  मुखड़ा।

 हरबे    दाई   मोरो   दुखड़ा।।

मँय  निर्बल  हँव  माता रानी।

 पाप  हरो  जगदम्ब  भवानी।।


लाली  चुनरी  फीता   लाली।

 शेर   सवारी   जोता  वाली।।

जय जय जय जगदम्बे रानी।

 माई   शारद  आदि  भवानी।।


रूप दिखै जस चंदा तोरे ।

 मोहय माता मन ला मोरे ।।

बिनय करौं माँ मँय दिन-राती ।

 वर देबे मोला वरदाती ।।


हाँसत हावै जोत जँवारा । 

सोर उड़त हे पारा-पारा ।।

जगजननी माँ आदि भवानी ।

 गूँजे जयकारा महरानी ।।


धजा नारियल पान चढ़ावौं ।

 तोर दरस के किरपा पावौं ।।

सेवा ला मँय निसदिन गावौं ।

 धजा नारियर फूल चढ़ावों ।।


लाल लँगुरुवा हे रखवारे ।

 पापी मन ला वो संघारे ।।

परबत मा डेरा ला डारे ।

 जगमग मंदिर तोर दुवारे ।।


पंडा बइठे आसन मारे । 

लिम्बू काटे मंतर भारे ।।

जय हो माँ लोहारा वाली ।

 करबे मोरो तँय रखवाली ।।


सुरता मोला आही दाई ।

 होवत हावय तोर बिदाई ।।

जिवरा मोरो कलपत हावै ।

 तोर चरन छोड़न नइ भावै ।।


छंदकार:-

बोधन राम निषादराज"विनायक"

सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)

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*सार छंद - बोधन राम निषादराज*

(जोत जँवारा)


जगमग जगमग जोत जँवारा,सजे तोर फुलवारी।

पंडा बाबा बइठे सुघ्घर, अँगना  तोर दुवारी।।


भीड़ लगत हे मेला भारी, चैत महिना आवय।

तोर मनौती कर नर नारी,सुघ्घर फल ला पावय।।


दाई मोरो  बिनती  सुनके, मोरो  बिपदा हरबे।

मँय दुखियारा दुख के मारा,इच्छा पूरन करबे।।


नव दिन के नवरात आय हे,जगमग जोत जलाहूँ।

नव दिन ले मँय सेवा करहूँ,तोरे  गुन ला गाहूँ।।


हे जगदम्बा शारद माई, मंदिर  सुघ्घर पावन।

तोर चरन मा माथ नवावँव,रूप तोर मनभावन।।


सुघ्घर डोंगरगढ़ बमलाई, माता  अँगना तोरे।

आए हे सब दर मा दाई,खड़े हवे कर जोरे।।


चइत-कुँवारे मेला  भरथे, होथे  रेलम  पेला।

मन मा जम्मो आसा लेके,फोरय नरियर भेला।।


परबत ऊपर बइठे मइया,देखय दुनिया सारी।

तोर चरन मा माथ नवाए,लइका नर अउ नारी।।


जगमग जोत जँवारा साजे,माता तोर भुवन मा।

कर उजियारा मोरो मन मा,अउ मोरो जीवन मा।।


नान्हें-नान्हें  लइका तोरे, ए जग जननी  दाई।

आए हावन तोर शरन मा,हमरो करव सहाई।।


छंदकार:-

बोधन राम निषादराज"विनायक"

सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)

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नवरात्रि(कज्जल छंद)

लागे महिना,हे कुँवार।

बोहावत हे,भक्ति धार।

बना मातु बर,फूल हार।

सुमिरन करके,बार बार।


महकै अँगना,गली खोल।

अन्तस् मा तैं,भक्ति घोल।

जय माता दी,रोज बोल।

मनभर माँदर,बजा ढोल।


सबे खूँट हे,खुशी छाय।

शेर सवारी,चढ़े आय।

आस भवानी,हा पुराय।

जस सेवा बड़,मन लुभाय।


पबरित महिना,हरे सीप।

मोती पा ले,मोह तीप।

घर अँगना तैं,बने लीप।

जगमग जगमग,जला दीप।


माता के तैं,रह उपास।

तोर पुराही,सबे आस।

आही जिनगी,मा उजास।

होही दुख अउ,द्वेष नास।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को(कोरबा)



Tuesday, October 5, 2021

विश्व पशुधन दिवस पर छंदबद्ध रचनायें


विश्व पशुधन दिवस पर छंदबद्ध रचनायें


 : हरिगीतिका छंद - बोधन राम निषादराज

(गौ माता)


सेवा करौ जी  गाय के, माता बरोबर मान के।

गोरस भरे अमरित सहीं,पी लौ सबो जी जान के।।

झन खोर मा ढिल्ला करौ,कोठा रखौ चतवार के।

पूजा करौ दुनों जुवर,सब रोज दीया बार के।।


खा हौ सबो घी दूध अउ,माखन दही उगलात ले।

गोबर अबड़ उपयोग के,झन फेंकिहौ लतियात ले।।

छेना बनाके  बार लौ, जेवन चुरोलव रोज के।

खातू बने बनथे इही,सब खेत डारौ खोज के।।


बछवा मिलै गौ मातु ले,नाँगर जुँड़ा बोहाय जी।

बछिया मिलै लक्ष्मी सहीं,घर अन्न ले भर जाय जी।।

ये बिन मुँहूँ के जीव जी,अपने सहीं सब जान लौ।

अउ देवता देवी सबो,गौ मातु मा पहिचान लौ।।


छंदकार:-

बोधन राम निषादराज"विनायक"

सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)

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आशा देशमुख: विश्व पशु दिवस मा मोर रचना


सरसी छंद -


कँगला हो जाही भैया हो , पशु धन बिन संसार।

एक दुसर बिन सबो अधूरा , गाँव देश परिवार।। 1


मनखे मन हा करय तरक्की , आगे हवय मशीन।

नकली चकली दूध दही ला ,कहत हवय प्रोटीन।2


गाय गरू बर कोठा नइहे ,बनत हवय अब फ्लैट।

कहाँ जाय अब बछरू पठरू ,घर में डॉगी कैट।।3


घर मे एको गइया नइहे ,करय दूध व्यवसाय।

पाकिट मा सब माल बिकत हे ,शुद्ध जिनिस मइलाय।।4


गरवा मन सब छेल्ला घूमय , कोनो नहीं हियाय।

अइसन करनी देख देख के,कलजुग तको लजाय।5


बिन मुँह के धन बर अब तो जी ,देवव थोकिन ध्यान।

पशु मन के पीरा ला समझव , राखव बन मैदान।।6


पशु पालन भी बहुत जरूरी , मनखे के हे मीत।

परब रीत सब बने हवय जी ,गाथे इंखर गीत।7


खेती बारी के सहयोगी , आवक के आधार।

दूध दही घी शुद्ध मिले हे , स्वस्थ रहय परिवार।।8


छेरी पठरू भेड़ी पालन , रोजगार मा आय।

सूरा कुकरी चिरई चुरगुन , यहु मन धन बरसाय।।9


रोजगार के जरिया बनगे ,  मन से करव कमाव।

पशुपालन के सीख तरीका , जिनगी ला चमकाव।10


प्रकृति बनावय सबो जिनिस ला ,सबो चीज के मान।

पशु मन बर अब बनत हवय जी ,चरागाह गोठान।।11



आशा देशमुख

एनटीपीसी जमनीपाली कोरबा

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विजेन्द्र वर्मा: गीतिका छंद


आज गोधन ला बचाके,नेक करले काम जी।

तोर पीढ़ी जेन आही,तेन जपही नाम जी।।

कान सब झन खोल के अब,बात ला सुन मान लौ।

गाय गरुवा ला तुमन तो,भाग्य लक्ष्मी जान लौ।।


विजेन्द्र वर्मा

नगरगाँव(धरसीवाँ)

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: *छप्पय छंद*

*विषय-पशुधन*


पशुधन के बड़ लाभ, दूध अउ खातू अंडा।

मिलथे सब ला काम, दवा अउ गोबर कंडा।।

छेरी कुकुरी गाय, भइस ला पालन करलौ।

अनुज कहत हे गोठ, आज ले मन मा धरलौ।।

झन छोड़व पशुधन ला तुमन, जिनगी के आधार हे।

सब झन पशुपालन ला करौ, पशु धन ले संसार हे।।


*अनुज छत्तीसगढ़िया*

 *पाली जिला कोरबा*

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: सार छंद- विश्व पशु दिवस 


मनखे के जिनगी हावय गा, पशु के बिना अधूरा।

 जुरमिल के बचाव एला तब, बूता होही पूरा।।


दूध दही अउ घीव पायबर, एखर सकला करबो।

दस दस हाथी के ताकत तब, अपन भुजा मा भरबो।।


मनखे के जिनगी मा हावय, पशु के महिमा भारी।

बइला भँइसा, घोड़ा हाथी, पुरखा के सँगवारी।।


गदहा घोड़ा सबो जीव ला, हमला बचाय परही।

बिना गाय के पूछी पकड़े, चोला कइसे तरही।।


गाय गरू अउ कुकुर बिलाई, घर अँगना मा रहिथे। 

मनखे के कतको बाधा ला, अपन उपर गा सहिथे।।


पर्यावरण बचाए खातिर, इँखर रक्षा जरुरी।

प्रकृति ला सम बनाय खातिर, एमन हावय धूरी।।


पहिली भगवान घलो मन हा, पशु रुप मा आइन।

मछरी बरहा नरसिग बनके, नर लीला देखाइन।।



हीरालाल गुरुजी "समय"

छुरा, जिला-गरियाबंद


Sunday, October 3, 2021

गांधी शास्त्री जयंती विशेष छंदबद्ध भाव पुष्प


गांधी शास्त्री जयंती विशेष

 जीतेन्द्र वर्मा खैरझिटिया: कुकुभ छंद-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


            ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,बापू,,,,,,,,,,,,,,,,


नइहे बापू तोर पुजारी, ना चरखा चश्मा खादी।

सत्य अंहिसा प्रेम सिरागे, बढ़गे बैरी बरबादी।


गली गली मा लहू बहत हे, लड़त हवै भाई भाई।

तोर मोर के फेर म पड़के, खनत हवै सबझन खाई।

हरौं तोर चेला जे कहिथे, नशा पान के ते आदी।

नइहे बापू तोर पुजारी, ना चरचा चश्मा खादी।।


कतको के कोठी छलकत हे, कतको के गिल्ला आँटा।

धन बल खुर्शी अउ स्वारथ मा, सुख होगे चौदह बाँटा।

देश प्रेम के भाव भुलागे, बनगे सब अवसरवादी।

नइहे बापू तोर पुजारी, ना चरचा चश्मा खादी।।


दया मया बर दाई तरसे, बरसे बाबू के आँखी।

बेटी बहिनी बाई काँपे, नइ फैला पाये पाँखी।

लउठी वाले भैंस हाँकथे, हवै नाम के आजादी।

नइहे बापू तोर पुजारी, ना चरचा चश्मा खादी।।।


राम राज के दउहा नइहे, बाजे रावण के डंका।

भाव भजन अब करै कोन हा, खुद मा हे खुद ला शंका।

दया मया सत खँगत जात हे,  बढ़गे बड़ बिपत फसादी।

नइहे बापू तोर पुजारी, ना चरचा चश्मा खादी।।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

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कुण्डलिया छंद


गाँधी जी हा देश मा, लानिस नवा बिहान।

परहित सेवा बर इहाँ, करिस जान कुर्बान।

करिस जान कुर्बान, बाँध के मुड़ मा फेटा।

बनके शांति दूत,देश के हीरा बेटा।

बाँटिस जग मा प्रीत,साँच के वोहर आँधी।

राह दिखाइस नेक, पिताजी बनके गाँधी।


विजेन्द्र वर्मा

नगरगाँव(धरसीवाँ)

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: *हरिगीतिका छंद - बोधन राम निषादराज*

(महात्मा गाँधी)


गाँधी बबा के सत्य मा,भारत बने आजाद जी।

आवव इहाँ जुरमिल सबो,करबोन थोकन याद जी।।

देखौ बुरा मत अउ सुनौ,कहना बुरा मत मान लौ।

इँखरे रिहिस उपदेश हा,ये बात ला सब जान लौ।।


साधक अहिंसा सत्य के,जिनगी पहादिस देश बर।

खादी करे निर्माण वो,चरखा चलाए भेष बर।।

बनगे महात्मा नाम हा,मनखे सबो गाँधी कहै।

अंग्रेज मन के काल अउ,स्वाधीनता आँधी कहै।।


जादू दिखाए देश मा,आजाद भारत आज जी।

जिन्दा हवै सब नीति हा,अइसे करिस वो काज जी।।

कस्तूरबा गाँधी घलो,सहयोग मा सँग साथ जी।

कतको हमर नेता लड़िन,धर हाथ मा सब हाथ जी।।


छंदकार -

बोधन राम निषादराज"विनायक"

सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)

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 डी पी लहरे: छप्पय छन्द


सत्य अहिंसा प्रेम,गँवागे भाई चारा।

बढगे अत्याचार,बैर हे पारा-पारा।

कोन सँभालै देश, इहाँ सब अवसरवादी।

लूट-लूट के देश, करँय अब्बड़ बरबादी।।

दिखय नहीं अब एकता, बापू जी ए देश मा।

बगरे हे नफ़रत इहाँ, पापी जइसे भेष मा।।


डी.पी.लहरे"मौज"

कवर्धा छत्तीसगढ़

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कुण्डलिया- अजय अमृतांशु


खादी पहिरे शान से, टोपी घलो लगाय।

चश्मा मा धुर्रा जमे, जनहित कहाँ सुहाय।

जनहित कहाँ सुहाय, देख के गाँधी रोवत। 

चोरी हत्या लूट, नशा के खेती होवत।

जाति धर्म व्यापार, हवँय इन अवसरवादी। 

सत्ता मद में चूर, पहिर के घूमत खादी। 


अजय अमृतांशु

भाटापारा (छत्तीसगढ़ )

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 मीता अग्रवाल: कुण्डलियां छंद -


गाँधी बबा


लाठी धर रेगिंस बबा,कर्म  जगाइस ज्ञान।

सत्य अहिंसा ला पढ़ा,गाँधी बनिस महान।

गाँधी बनिस महान,मौनगुण शस्त्र  बनाइन।

बिना खड़्ग अउ ढ़ाल,देस आजाद कराइन।

सूती धोती आन,अटल ऊखर कद काठी।

खादी बनिस विचार, अमर हे चरखा लाठी।।


(2)


चिंतन गाँधी के गुनव,बापू गाँधी  मान।

राम राज साकार हो,सबलव मन मा ठान।

सबलव मन मा ठान,स्वच्छता लक्ष्य हमर हो।

मोहन के व्यवहार,सुदेशी चरखा घर हो।

तकली काते सूत,करव सब धारन तन-मन।

भारत के पहिचान,बनय जी गाँधी चिंतन ।।

रचनाकार-डाॅ मीता अग्रवाल मधुर रायपुर छत्तीसगढ

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 *छप्पय छंद*



सत्य अंहिसा प्रेम, सबो झन आज भुलागे।

हवय चोरहा राज, देश मा हिंसा छागे।।

करके भ्रष्टाचार, करत हें सब बरबादी।

बनगें नेता आज, पहिर के कपड़ा खादी।।

आजा बापू देश मा, ला दे फेर सुराज ला।

हवय अगोरा तोर अब, राख देश के लाज ला।।


*अनुज छत्तीसगढ़िया*

  पाली जिला कोरबा

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: दोहा छंद 


गाँधी बाबा आ जते,दुनिया म एक बार।

चारो खुट माते हवय,जग में हाहाकार ।।


चरखा रोवत आज हे,बिगड़े हवे समाज।

बापू तोरे देश मा,अलकर होवत काज।।


सत अहिंसा ला भूल के,बिगड़त हावय चाल।

झूठ लबारी में फँसे,करथें जीव हलाल।।


दया मया के गोठ ले,करदो फेर सुधार।

देखव थोकिन गा बबा,पारत हवंव गोहार।।


आजादी के पाठ दे,अमर करे हव नाम।

कोनो नइये अब इहाँ,करही अइसन काम ।।


रघुपति राजा राम कहि,दे सुग्घर संदेश।

बापू अपने देश के,हरते सबो कलेश।।


केवरा यदु "मीरा "

राजिम

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गाँधी जी

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(सार छंद मा)


घोर गुलामी बेड़ी जकड़े, जनता हा जब रोथे।

ये धरती के भाग जगे मा, गाँधी पैदा होथे।।


सत्य अहिंसा के रसता मा, बिछे रथे बड़ काँटा।

बैरी मन दुर्वचन सुनाथें, सहे ल परथे चाँटा।

आन ल देके सेज-सुपेती, खोर्रा मा खुद सोथे।

ये धरती के भाग जगे मा, गाँधी पैदा होथे।।


मारै नहीं मार सहि जाथे, शांति धजा फहराथे।

प्रेम-घड़ा भर मूँड़ी बोहे,भभके क्रोध बुझाथे।

बापू जी के अनुयायी हा, भाईचारा बोथे।

ये धरती के भाग जगे मा, गाँधी पैदा होथे।।


गाँधी जइसे बनना दुश्कर, फेर असंभव का हे?

वोकर दे मानवता मंतर, दुनिया हा तो पा हे।

हरिया जाथे हिरदे बिरवा, बादर त्याग उनोथे।

ये धरती के भाग जगे मा, गाँधी पैदा होथे।।


गाँधी जी के अगुवाई मा, मिलगे हे आजादी।

दुख हे अब तो नेताजी मन, लावत हें बरबादी।

करे ओड़हर गाँधी जी के, कोन जहर बड़ मोथे।

ये धरती के भाग जगे मा, गाँधी पैदा होथे।।


चोवा राम वर्मा 'बादल'

हथबंद, छत्तीसगढ़

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विष्णुपद छंद


ऊँचनीच के भेदभाव ला, छोडव अब करना।

बड़े होय अउ चाहे छोटे, सब ला हे मरना।।


भेद छोड़ मनखे मनखे मा, एक समान सबो।

जाँत-पाँत मा भले अलग हन, हम इंसान सबो।।


लाभ उठाये बर कतको मन, राग अलापत हे।

देख ठगावत मनखे मन ला, जीं हा कलपत हे।।


अपन अपन सब करम धरम मा, खुश सब ला रहना।

आँव बड़े मैं अउ तँय छोटे, नइये कुछ कहना।।


कखरो आस्था अउ पूजा सँग, झन खिलवाड़ करी।

अंधभक्त बन फेर इहाँ झन, तिल के ताड़ करी।।


सत्य अहिंसा के मारग मा, रोज हमन चलबो।

 स्वस्थ समाज बनाये खातिर, काम सदा करबो।।


ज्ञानुदास मानिकपुरी

चंदेनी- कवर्धा

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