Followers

Sunday, August 30, 2020

अमृतध्वनि छन्द-राम कुमार चन्द्रवंशी

 अमृतध्वनि छन्द-राम कुमार चन्द्रवंशी

शीर्षक-राखव सुम्मत बाँध

कपट छोड़ के तुम सदा,राखव सुम्मत बाँध।
बनही जम्मो काम हर,चलव जोड़ के खाँध।
चलव जोड़ के,खाँध जगत मा,प्रेम बढ़ावौ।
जस तुम पाहू,नाँव कमाहू,जग ल सिखावौ।
एक बनव जी,नेक करव जी,मया जोड़ के।
देश बचावौ, धरम निभावौ,कपट छोड़ के।।

राखव सुम्मत बाँध के,जस डोंगा पतवार।
सुम्मत आघू हारथे,नदिया के जलधार।।
नदिया के जल,धार हारथे,सन्तन कहिथे।
सुनता मा बल,मुश्किल के हल,हरदम रहिथे।
सुख नित मिलथे,हिरदे खिलथे,त्यागव बिम्मत।
घर हर बनथे,देश सँवरथे,राखव सुम्मत।।

छन्दकार-राम कुमार चन्द्रवंशी
ग्राम+पोष्ट-बेलरगोंदी
जिला-राजनांदगाँव
छत्तीसगढ़

Saturday, August 29, 2020

अमृतध्वनि छंद - विरेन्द्र कुमार साहू

 अमृतध्वनि छंद - विरेन्द्र कुमार साहू 

नाँगर बइला जोर के, चलव नँगरिहा खेत।
आगे दिन बरसात के, थोरिक करलव चेत।
थोरिक करलव, चेत लगाके, खेती-बारी।
येहर हावय, हमर राज के, असल चिन्हारी।
बिन मिहनत के, मिलय नहीं कुछु, पेरव जाँगर।
करव किसानी, अपन बुती मा, फाँदव नाँगर।१।

खोय सुतइया खास ला, होवय दुच्छा हाथ।
पाये दुख संताप ला , अपन घरतिया साथ।
अपन घरतिया ,साथ नि समझे, जिम्मेदारी।
जन-जन के मुँह, अइसन मनखे, खाथे गारी।
गोठ ल सिरतों, लिखे हवय गा, रीत बनइया।
जम्मों सुख ला, पाय जगइया, खोय सुतइया।२।

होगे हावय मुँदरहा, जागव सँगी मितान।
बेर उवत ले अब नहीं, सोवव चादर तान।
सोवव चादर, तान नहीं अब, घर सम्भालव।
मिहनत करके, बड़े बने के ,सपना पालव।
मनखे बर तो, आलस सबले, बड़का रोगे।
छोड़ नदानी, उठ जा अब तो, बिहना होगे।३।

छंदकार -विरेन्द्र कुमार साहू, ग्राम - बोड़राबाँधा (पाण्डुका) जि.- गरियाबंद(छत्तीसगढ़)

छप्पय - - छंद*-शशि साहू

 


*छप्पय - - छंद*-शशि साहू

1/पानी बिन जग सून, पियासे धरती दानी।
नदिया हर दुबराय,कुआँ के अउँटय पानी।।
मचही हाहाकार,अइसने दिन जब आही।
होही झगरा वार,कोन ला कोन बचाही।।
भर दव धरती पेड़ ले,पर्यावरण बचाय बर।
उदिम करव मिलके सबो,पानी ला बरसाय बर ।।

2/छेल्ला किंजरे गाय,मिले नइ दाना पानी।
चारा कोन खवाय,मिलाके कुटकी सानी।।
बाँचे रोटी भात,फेकथें झिल्ली भर के।
खा के मरथे गाय, पेट मा झिल्ली धरके।।
सबले विनती मयँ करवँ,बंद करव उपयोग ला।
बड़का खतरा ये हरे,लाने कतका रोग ला।। 

3/झिल्ली मा हे बैन,तभो बेचय व्यापारी।
माटी होय खराब,साग नइ होवय बारी।।
येला कभू जलाव,धुआँ हर जहर उछरथे। 
जले कभू नइ फेर, हवा ला  दूषित करथे ।
झिल्ली तो हे काम के,फेर करे नुकसान ला।
बउरव झिल्ली झन कभू,लेवय जीव परान ला।

श्रीमती शशि साहू
बाल्कोनगर - कोरबा

Monday, August 24, 2020

छप्पय छंद- विजेन्द्र वर्मा

 छप्पय छंद- विजेन्द्र वर्मा

जंगल
स्वार्थी होत समाज,कटत हे अब तो जंगल।
आरी चलथे घेंच,उहाँ कइसे हो मंगल।
लगे हवय सब लोग,मिटाएँ बर जी हस्ती।
अभी समे हे शेष,बचालव अपने बस्ती।
जंगल झाड़ी चीख के,अबड़ मचावय शोर जी।
अब तो झन काटव तुमन,देखव भविष्य ओर जी।

परदेश
जावव झन परदेश,बना लव अब परिपाटी।
इहे कमावँव खाव,खनव गा खंती माटी।
पखरा ला अब फोड़,करम ला इहेच जोड़व।
मिलके राहव आज,मया कोती मुँह मोड़व।
अइसन करलव काम तुम,जग मा बगरै नाँव जी।
जिनगी ला सिरजाय बर,गाँव बनय गा छाँव जी।

मितान
माटी मोर मितान,पीर जी सब के सहिथे।
सहिके घाम पियास,खुदे जी लाँघन रहिथे।
लाथे नवा बिहान,अन्न जग बर उपजाथे।
ए भुइँया के देव,सबो के कष्ट मिटाथे।
भेदभाव जानय नहीं,जन जन बर वो एक हे।
कतका करँव बखान जी,हमरो संगी नेक हे।

खेती बारी
खेती बारी देख,खुशी के मारे झूमय।
हरियर हरियर खेत,देख माटी ला चूमय।
पानी पसिया पेज,खेत मा धर के जावय।
करके अब तो चेत,काम बूता सरकावय।
आगे हवै अषाढ़ जी,सब झन बोथे धान गा।
जागिस सबके भाग अब,करथे काम किसान गा।

घुरुवा
घुरुवा मा ही डार,गाय गरवा के गोबर।
एखर खातू पाल,खेत बर अमृत बरोबर।
घुरुवा ला झन पाट,खाद गुणकारी बनथे।
हरियर खेती खार,पेड़ पउधा हा तनथे।
बारी मा घुरुवा बना,कचरा गोबर डार जी।
एखर खातू ले बने,होही फसल अपार जी।

गोबर
गोबर ला झन फेक,तुमन घुरुवा मा डालव।
समझव मत बेकार,खेत मा येला पालव।
जानव गोबर खाद,हवय कतका गुणकारी।
एखर सब उपयोग,करव जी बहुते भारी।
गोबर गरुवा गाय के,कतको आथे काम जी।
खेती बारी के फसल,देथे बढ़िया दाम जी।

विजेन्द्र वर्मा
नगरगाँव(धरसीवाँ)

Sunday, August 23, 2020

छप्पय छंद-श्री सुखदेव सिंह'अहिलेश्वर'

 


छप्पय छंद-श्री सुखदेव सिंह'अहिलेश्वर'

प्रणम्य गुरुवर

अरुण निगम हे नाँव, मोर प्रणम्य गुरुवर के।
नस नस मा साहित्य, मिले पुरखा ले घर के।
पेंड़ बरोबर भाव, कृपाफल सब ला मिलथे।
पाथें जे सानिध्य, उँखर जिनगी मन खिलथे।
छत्तीसगढ़ी छंद बर, बनगे बरगद कस तना।
गुरु के कृपा प्रसाद ले, होत छंद के साधना।

जल संरक्षण

बोरिंग हो गय बन्द, बूँद भर जल नइ आवय।
अब मनखे नलकूप, खना के प्यास बुतावय।
चार पाँच सौ फीट, धड़ाधड़ पम्प उतरगे।
संकट हर दू चार कदम दुरिहागे टरगे।
जल संरक्षण के पवित, कारज कोन सिधोय जी।
हिजगा-पारी देख के, कलम धरे कवि रोय जी।

ममता

माँ के मया दुलार, खाद माटी अउ पानी।
असतित पावय जीव, फरै फूलै जिनगानी।
ठुमुक उचावय पाँव, धरे अँगरी माई के।
बचपन फोरे कण्ठ, पाय ममता दाई के।
मातु असीस प्रभाव हे, बैतरणी के पार जी।
महतारी ममता बिना, सुन्ना जग संसार जी।

झन जा दाई

घाम छाँव बरसात, अभी मै जाने नइ हँव।
जिनगानी के रंग, कतिक पहिचाने नइ हँव।
अतका जल्दी हाँथ, छोड़ के झन जा दाई।
घर बन जिनगी मोर, मात जाही करलाई।
कहि देबे भगवान ला, तोर बने पहिचान हे।
नइ आवँव बैकुंठ मँय, पूत अभी नादान हे।

नव पीढ़ी के हाथ मा

मोला नइ तो भाय,काखरो गोठ उखेनी।
जेखर कारण देश राज मा झगरा ठेनी।
बुता काम ला छोड़,भटकथे माथा जाँगर।
शहर सनकथे रोज, गॉंव मा होथे पाँघर।
घर परिवार समाज ला, रद्दा नेक दिखाव जी।
नव पीढ़ी के हाथ मा, संविधान पकड़ाव जी।

लोक बड़ाई

परम्परा के नाँव, मार डारिस अनदेखी।
खेत खार ला बेंच, बघारय मनखे सेखी।
छट्ठी शादी ब्याह, तेरही खात खवाई।
बड़ खर्चीला आज, चलागन लोक बड़ाई।
लोक लाज के नाँव मा, खरचा लाख हजार जी।
पाँव निकलगे आज कल, चद्दर के ओ पार जी।

योग

दुरिहा रहिथे रोग, योग के संग जिये मा।
संझा बिहना रोज, स्वच्छ पुरवई पिये मा।
घंटा आधा एक, योग बर समय निकालन।
सेहत के हर बात, अपन आदत मा ढालन।
स्वास्थ लाभ ला पाय बर, अपनावन जी योग ला।
कर के प्राणायाम नित, दुरिहा राखन रोग ला।

धौंरी धौंरी बरी अदौरी

नोनी छत मा आज, बिराजे हे खटिया मा।
पीठी उरिद पिसान, धरे गंजी मलिया मा।
नान्हे नान्हे खोंट, बनावय बरी अदौरी।
माढ़य ओरी ओर, दिखत हे धौंरी धौंरी।
नोनी बड़ हुँशियार हे, लक्ष्मी के अँवतार जी।
आड़े अँतरे खाय बर, बरी करय तइयार जी।

रचना-सुखदेव सिंह'अहिलेश्वर'
गोरखपुर कबीरधाम छत्तीसगढ़

Saturday, August 22, 2020

छंद के 'छ' परिवार के मयारुक भाई महेंद्र कुमार 'माटी' जी ल काव्यांजलि


 छंद के 'छ' परिवार के मयारुक भाई महेंद्र कुमार 'माटी' जी ल 
काव्यांजलि



लीला  तो  भगवान  के,  कउन सके हें जान।
काया  'माटी'  के  बना,  डारय  ओमा  प्रान।।
डारय  ओमा  प्रान,  साँस  भरथे  गनती के।
कोजनि कब आ जाय, कथौं बेरा खनती के।।
आँसू   श्रद्धा  फूल, चढ़ावत  'माटी' जी  ला।
पूछत  हौं  भगवान,  तोर  ए   कइसे  लीला।


सूर्यकान्त गुप्ता  'कांत'
सिंधिया नगर दुर्ग(छ.ग.)

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐


: *महेंद्र देवांगन "माटी" भइया जी मन ला सादर काव्यांजलि समर्पित (रोला छंद)* 

मन हर हवयँ उदास , कहँव का येखर पीरा ।
संगी हमर मितान , रहिस माटी जी हीरा ।।
सब के मनला भाय , हँसी के संग ठिठोली ।
सुरता आथे आज , सबो ओ गुरतुर बोली ।।

सुन्ना पड़गे देख , आज हमरो घर अँगना ।
माटी  भइया छोड़ , हमर सब गीसे बँधना ।।
सब ला मया दुलार , सबो दिन देइन भारी ।
बोलिन सुग्घर बोल , कभू  नइ जाने चारी ।। 

करत  रहिन  हे  भेट , बोल  के  सुग्घर  बानी ।
सरल सहज स्वभाव , रहिस उनकर जिनगानी ।।  
सब सो रखय मिलाप , लोग सब उनला जाने ।
लिखत रहिन हे पोठ , कलम ला उनकर माने ।।

माटी जिंकर नाँव , अमर जी जग मा हावय ।
महतारी  के लाल , सबो  ला  सुग्घर भावय ।।
नमन करत हन आज , सबो हम गुनला गाके ।
माटी  भइया  तोर ,  चरण  मा  माथ  नवाके ।। 

          मयारू मोहन कुमार निषाद
             गाँव - लमती , भाटापारा ,
         जिला - बलौदाबाजार (छ.ग.)

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐


 छंद- माटी

माटी कस हे तन इही, माटी कस हे प्रान।
मिल जाना माटी हवे, छोड़व गरब गुमान।।
छोड़व गरब गुमान, चार दिन के जिनगानी।
जब तक तन मा सांस, निभा लौ मीत मितानी।।
गजानन्द चल साथ, बाँध लिन प्रेम मुहाटी।
माटी हवय महान, मोल समझौ जी माटी।।

इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"
बिलासपुर ( छत्तीसगढ़ )

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐


 ज्ञानू कवि: माटी जी ला काव्यजंलि 

धन दौलत परिवार सगा ला, छोड़ एक दिन जाना।
कंचन काया माटी होही, काबर जी इतराना।।

बड़े बड़े ये महल अटारी, छूट एक दिन जाना।
हवस भूल मा काबर हरदम, छोड़ अपन मनमाना।।

संग रहव सब मिलजुल संगी, रिश्ता नता निभाना।
ये दुनियाँ ला जानौ संगी, दू दिन अपन ठिकाना।।

गुरतुर बोली बोल मया के, हिरदै अपन बसाना।
बैर कपट ला समझौ दुश्मन, गीत मया के गाना।।

मुट्ठी बाँधे आय जगत में, हाथ पसारे जाना।
सुग्घर मनखे तन ला पाके, जिनगी सफल बनाना।।

दया मया अउ करम धरम हा, सबले बड़े खजाना।
सत्य प्रेम के पाठ पढ़व अउ, सब ला हवय पढ़ाना।।

ज्ञानु

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐


 आदरणीय माटी गुरु जी ला काव्यजंली

जइसन करबो अपन करम ला, उही भाग मा पाबो जी।
माटी काया माटी माया, माटी मा मिल जाबो जी।।

माटी के हे धन अउ दौलत, छूट इहें सब जाही जी।
रही संग मा करम कमाई, बनके दिही गवाही जी।।

काम तोर नइ आवय कोन्हो, रीबि रीबि जे जोरे तै।
जाबे खाली हाथ जान ले, करनी जग मा छोरे तै।।

जिनगी कागज स्याही सुग्घर, रॅंग भर हमी सजाबो जी।
माटी काया माटी माया, माटी मा मिल जाबो जी।।
जइसन करबो अपन करम ला, उही भाग मा पाबो जी......

    मनोज कुमार वर्मा
    कक्षा 11

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐


 हमर छंद परिवार के माटी भैया ला काव्यांजलि

छंद छ के परिवार,रोत हे माटी भैया।
सुग्घर सिरजन भाव,छंद के सुघर रचैया।
घेरी बेरी रोय,याद सब करथे तोला।
चल दे बिना बताय,मिटागे अब तो चोला।।

घरवाली हा रोय,कहय माटी तँय आजा।
जोहत रद्दा तोर,खोलहूँ मँय दरवाजा।
चीख चीख के रोय,मांग के सेंदुर नइ हे।
मातम घर मा छाय,अबड़ माते करलइ हे।।

बेटी कलपत आज,रोत हे बाबू कहिके।
कइसे राखय धीर,आय सुरता रहि रहिके।
बेटी कोन बलाय,कोन शिक्षा ला देही।
होय अकेला आज,कोन आरो ला लेही।।

दाई कहिथे रोज,काल मोला ले जाते।
तोला लिहिस बुलाय,कास मँय हा मर जाते।
सुन्ना परगे कोख,कहव अब बेटा काला।
सुरता अब्बड़ आय,नही उतरय ग निवाला।

आशा आजाद
कोरबा छत्तीसगढ़

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

विषय: माटी जी के सुरता(छप्पय छंद)

माटी के ओ लाल ,आज ले माटी होगे।
विधि के अजब विधान  , ओढ़ के माटी सो गे ।।
बसे हृदय मा मोर , समाये सुरता माटी।
रचना देहस छोड़ ,सबो बर तॅयहा खाटी।।
भइगे सुरता बाॅचगे  , आॅखी मा तॅय छाय हस ।
अमर हवे जी नाम हा , सबके माटी पाय हस ।।

सुरता बादर छाय  ,आॅख ले आॅसू बरसे।
माटी छवि ला तोर ,देखलॅव मन हा तरसे ।।
माटी के तॅय गीत , लिखे गंगा अस पावन।
झलके सहज सुभाव ,रूप लागय मनभावन।।
छंद विधा के रूप मा , रचना रचे सजोर जी।
माटी बन ''माटी" मिले , सुंदर काया तोर जी ।।

मनभावन मुस्कान , तोर माटी मन भावय।
मीठा बोले बोल , मया के भाव जगावय।।
सुन्ना गलियन खोर,तोर बिन रोवय भारी।
सुरता करथे तोर ,सबो संगी सॅगवारी।।
तोर कलम के धार मा ,जिनगी के सब सार हे ।
माटी कहे निमार के , माटी के संसार हे ।।

               साधक कक्षा 10
  परमानंद बृजलाल दावना
                 भैंसबोड़ 
            6260473556
💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

*माटी जीवन परिचय*


*माटी* ओम प्रकाश कहावय, धरती माँ के पूत सुजान।

गाँव बोरसी पावन धरती, महकाइस जे स्वर्ग समान।।


जन्मभूमि मा बचपन बीतिस, मानय माटी ला वो शान।

धूर्रा माटी खेल कूद के, कदम बढ़ाइस सीना तान।।


करिस पढ़ाई ध्यान लगा के, रहिस छात्र सुग्घर हुसियार।

दिल जीतिस हे गुरुजी मन के, पाइस सब के प्यार दुलार।।


कक्षा पंचम पहुँचत-पहुँचत, होगे साहित्य ले अनुराग।

गीत कहानी रचे लगिस अउ, पढ़ै लिखै दिन रतिहा जाग।।


रइपुर मा इस्नातक होइस, लेख प्रकाशित होवैं साथ।

लइका मन ला शिक्षा देवँय, नित सहयोग बढ़ावँय हाथ।।


करिस बिहाव सजाइस सपना, बाढ़त गिस हें तब परिवार ।

नोनी बाबू जनम लीन हें, पाइस सुंदर खुशी अपार।।


शासकीय तब मिलिस नौकरी, गुरुजी बनिस पढ़ाइन पाठ।

पंडरिया मा रहे लगिन हें, सब के सुग्घर राहय ठाठ।।


पुस्तक 'पुरखा के इज्जत' अउ, 'माटी काया''तीज तिहार'।

खूब मिलिस सम्मान छपे मा, साहित्य जगत दिहिन बड़ प्यार।।


दो हजार सत्रह मा पाइस, अरुण निगम गुरुवर के हाथ।

छंद लेखनी शुरू करिन हे, अपन निभाइस पूरा साथ।।


साहित्य लेखन साथ करा के, बाँटिस वो बेटी ला ज्ञान।

बेटी ला सज्ञान बनाइस, रिहिस दिलावत वो सम्मान।।


छंद पचासों ज्ञानी बन के, दिहिस अचानक दुनिया छोड़।

कंचन काया माटी होगे, चल दिन जग ले नाता तोड़।।


सुन्ना हे संसार पिता बिन, सुरता मा हे मया दुलार।

हर सपना ला पूरा करहूँ, मैं 'माटी' के बेटी सार।।


सुरता मा हस सदा समाये, नइ भूलन हम घर परिवार। 

मैं बिरवा अँव तोर लगाये, रचथौं पापा छंद हजार।। 


प्रिया देवांगन *प्रियू*

राजिम

छत्तीसगढ़

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

*सुरता : स्व.महेंद्र देवांगन"माटी"*


"माटी" के महिमा का गावँव,

                    रहिन नेक इंसान जी।

ये दुनिया मा आ के भइया,

              छोड़ चलिन पहिचान जी।।


गाँव बोरसी जनम धरिन जी,

                        देवांगन परिवार मा।

दाई - ददा   दुलरवा  बेटा,

                   नाम करिन संसार मा।।

सुग्घर महेंद्र लइका निकलिस,

                        होनहार संतान जी।

ये दुनिया मा आ के भइया,............


राजिम शहर रायपुर शिक्षा,

                    पंडरिया मा काम जी।

बेटा -बेटी शुभम -प्रिया अउ,  

                      पत्नी मंजू नाम जी।।   

"पुरखा के इज्जत" रच डारिन,

                     नेक रहिन इंसान जी।

ये दुनिया मा आ के भइया,.............


"माटी के काया" रचना अउ,

                    तीज तिहारी गोठ जी।

गीत - कहानी   छत्तीसगढ़ी,

                   हिंदी ओखर पोठ जी।।

छंद ज्ञान भरपूर रहिस फिर,

               नइ चिटको अभिमान जी।

ये दुनिया मा आ के भइया,............


छंदकार:-

बोधन राम निषादराज"विनायक"

सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)

💐💐💐💐💐💐💐💐

सुरता माटी जी

गद्य-पद्य सिरजाइस सुग्घर, कलमकार गुन्निक भारी।

माटी मा 'माटी जी' मिलगें, छोंड़ जगत मा चिनहारी।।


मानवता के रहिस पुजारी, बड़ निर्मल हिरदेवाला।

मातु शारदे बर वो माली, गूँथै शब्द-सुमन माला।

जेकर मन के गोदी नव रस,खेलैं देके किलकारी।

माटी मा 'माटी जी' मिलगें, छोंड़ जगत मा चिनहारी।।


अत्याचारी के विरोध मा, वो जमके कलम चलावै।

बन जुबान मरहा-खुरहा के,भुइँया के गीत सुनावै।

तीज-तिहार अउ परंपरा के, महिमा बरनै सँगवारी।

माटी मा 'माटी जी' मिलगें, छोंड़ जगत मा चिनहारी।।


'छंद के छ परिवार' डहर ले, श्रद्धांजलि अर्पित हावै।

'माटी जी' के दिव्यात्मा हा, परमानंद सदा पावै।

हरि किरपा के होवय बरसा, परिजन बर हो दुखहारी। 

माटी मा 'माटी जी' मिलगें, छोंड़ जगत मा चिनहारी।।


श्रद्धावनत

🙏

चोवा राम वर्मा 'बादल'

हथबंद, छत्तीसगढ़

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐



भगवान गणेश जी को समर्पित छंद बद्ध रचनाये

 भगवान गणेश जी को समर्पित छंद बद्ध रचनाये

 *गनेश बंदना*


आव बिराजौ मोर घर, गणनायक गणराज।
घेरी भेरी तोर ले, बिनती हावै आज।।

दौड़त आजा मोर घर, मुसवा म हो सवार।
तोरे स्वागत बर खड़े, हवै मोर परिवार।।
फूल पान तोला चढ़ै, लंबोदर महराज।
घेरी भेरी ------

बिफत परे सब पूजथे, विघन हरैया जान।
हाथ जोर बिनती करौं, हे गनेश भगवान।।
आके सब बिगड़ी बना, पूरन कर दौ काज।।
घेरी भेरी -----

अप्पड़ अगियानी निचट, सुमरत हन बस नाँव।
तोर भरोसा हे लगे, बीच सभा में दाँव।।
हे गणपति महराज जी, राखव आ के लाज।
घेरी भेरी------

पोखन लाल जायसवाल

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐


: सरसी छंद गीत - आशा आजाद

सत पथ के मँय रद्दा रेगौ,बोलव मँय शुभ बोल।
गनपति आन विराजव मन मा,भाव भरौ अनमोल।।

दीन दुखी के सेवा करके,जनहित करदव काज।
धरम करम ले पुण्य कमाके,सत के दव आगाज।
झूठ लबारी गोठ त्याग के,करौ गोठ मँय तोल,
गनपति आन विराजव मन मा,भाव भरौ अनमोल।

चुप्पी मुख ले त्यागौ मँय हा,अनाचार जब होय,
नारी के सम्मान करौ मँय,नारी अब झन रोय,
भाखा अइसन सुघ्घर बोलव,सुन मन जाए डोल,
गनपति आन विराजव मन मा,भाव भरौ अनमोल।

तुच्छ एक मँय कवि हौ देवा,भाव धरौ मँय नेक,
वर्तमान मा घटत हवे जे,काव्य गढ़ौ मँय एक,
मानव हिरदे प्रेम भाव अउ,मानवता दव घोल,
गणपति आन विराजौं मन मा,भाव भरौ अनमोल।

छंदकार - आशा आजाद
पता - मानिकपुर कोरबा


💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

 चौपई छंद(जयकारी छंद) - *जय गणेश*

जय गणेश गिरिजा के लाल । मुकुट बिराजे सुग्घर भाल ।।
शिव शंकर के बेटा आय । ऋद्धि सिद्धि के मन ला भाय।।

आवौ करलौ पूजा पाठ । देखौ कइसे एखर ठाठ ।।
मुसुवा मा बइठे भगवान । मनचाहा देथे बरदान।।

जबर पेट हे हाथी जान । कतका मैंहा करँव बखान ।।
गणनायक हे सुख ला देत । बिपदा ला छिन मा हर लेत ।।

बुद्धि देत हे माँगव आज । सफल होय जी जम्मों काज ।।
सेवा करके मेवा पाव । चल भइया सब गुन ला गाव ।।

ग्यारा दिन अउ ग्यारा रात । करलौ भगती बनही बात ।।
धीरज मा मिलथे जी खीर । झन हो जाहू आज अधीर ।।

देवो मा तँय बड़का देव । मोरो बिनती ला सुन लेव।
पाँव परत हँव तोरे आज । दे आशीष तहीं महराज ।।


छंद साधक - सत्र - 5
बोधन राम निषादराज"विनायक"
सहसपुर लोहारा, जिला-कबीरधाम
(छत्तीसगढ़)


💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐


: मनहरण घनाक्षरी:- गुमान प्रसाद साहू


।।गौरी के लाल।।
आके तोरे द्वार देवा,चरण के करै सेवा,भगत अरज करै,हाथ ला पसार के।
पहिली तोला मनावै,भोग मोदक लगावै,कर दे तै आस पूरा,कहत पुकार के।
बिपत के तै हरैया, तँही मंगल करैया,दुख दर्द दूर करौ,भव ले उबार के।
तँही एकदन्त धारी,मुसवा तोरे सवारी,पार लगा दे नइया,फँसे मँझधार के।।

सुन्दरी सवैया:-।।मंगलकारी गणेश।।
सब ले पहिली सुमरै गणनायक देेव समेत सबो नर नारी।
बिन तोर न काम बने जग के कहिथें तँय हावस मंगलकारी।
बिगड़ी ल बना दुख दूर करे सगरो जग के तँय पालनहारी।
शिवशंकर हावय तोर ददा जग के जननी गिरजा महतारी।।

छन्दकार- गुमान प्रसाद साहू ,ग्राम-समोदा(महानदी)
जिला-रायपुर ,छत्तीसगढ़ 
छन्द साधक "छन्द के छ" कक्षा-6

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐


सरसी छंद - राजेश कुमार निषाद
    ।।गौरी पुत्र गणेश।।

करबो पूजा हम सब तोरे, गौरी पुत्र गणेश।
अरजी हमरों सुनलव प्रभु जी,काटहु मन के क्लेश।।
एकदन्त के तैंहर धारी,सुनलव गा गणराज।
रिद्धि सिद्धि के हव तुम दाता,  करहू पूरन काज।।

मुसवा के तैं करे सवारी,लडुवन लागय भोग।
जेन शरण मा तोरे आवय,हरथव ओकर रोग।।

सबले पहिली होथे पूजा,जग मा देवा तोर।
 जोत ज्ञान के तहीं जला के, करथस जगत अँजोर।।

महादेव अउ पार्वती के,हावस नटखट लाल।
बड़े बड़े तैं लीला करके,करथस अबड़ कमाल।।

तीन लोक मा होथे प्रभु जी,तोरे जय जयकार।
हे गणपति तैं हे गणराजा,विपदा हरव हमार।।

रचनाकार :- राजेश कुमार निषाद ग्राम चपरीद पोस्ट समोदा रायपुर छत्तीसगढ़
छंद साधक - कक्षा-4

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

 चोवा राम वर्मा बादल: *गनपति गनराज*
*(कुणडलिया)*
---------------------------
*हे गनपति गनराज जी,बिनती हे कर जोर।*
*अँगना हमर बिराज लव,पइयाँ लागवँ तोर।*
*पइयाँ लागवँ तोर,अबड़ जोहत हवँ रस्ता*।
*आके नाथ उबार, मोर हालत हे खस्ता।*
*मँहगाई के मार,बाढ़ कर देहे दुरगति।*
*कोरोना के टाँग,टोर दव झटकुन गनपति।*


*बड़का बड़का कान हे,बड़का हाबय पेट।*
*बाधा ला देथच पटक,लम्बा सोंड़ गुमेट।*
*लम्बा सोंड़ गुमेट,दु:ख ला दूर भगादे।*
*शिव गौरी के लाल, भक्त ला पार लगादे।*
*दुनिया के जंजाल, हवय माया के खड़का।*
*लाज रखौ गनराज, देव मा हाबव बड़का।*

*मंगल साजे आरती,लाड़ू भोग लगाय।*
*माथ नवा के पाँव मा, श्रद्धा फूल चढ़ाय।*
 *श्रद्धा फूल चढ़ाय ,तोर जस ला मैं गाववँ।*
 *विघ्नेश्वर गनराज, सबो सुख किरपा पाववँ।*
 *वक्रतुंड महकाय, कभू झन होवय अनभल।*
 *रिद्धि सिद्धि के संग, विराजव उच्छल मंगल।*

चोवा राम वर्मा 'बादल'
(छंद साधक)
हथबंद, छत्तीसगढ़

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐


 दिलीप वर्मा 

 मत्तगयन्द सवैया 
हे गणराज सुनो बिनती मझधार फँसे हँव पार करो जी। 
तोर बिना अब जीवन के रसता न दिखे उपचार करो जी। 
मानत हौं दुख मा सुमिरौं सुख मोर हरे मत रार करो जी। 
जीवन नाव हिलोरत हे अब थाम बने उपकार करो जी।  

मदिरा सवैया
आवत हौ सुनथौं धरती तुम मूषक वाहन मा चढ़ के। 
जोहत हे रसता सब तो घर तोर इहाँ बढ़िया गढ़ के। 
हे गणराज दवा धर लानव काम करौ अपने बढ़ के। 
देख बिमार हवे सब भक्त बने करदौ कुछ तो पढ़ के।

रचनाकार- दिलीप कुमार वर्मा 
बलौदाबाजार छत्तीसगढ़

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

छन्न पकैया छंद - श्लेष चन्द्राकर
विषय - श्री गणेश

छन्न पकैया छन्न पकैया, रिद्धि-सिद्धि के स्वामी।
गोठ हमर मन के जानत बस, तँय हच अंतर्यामी।।

छन्न पकैया छन्न पकैया, आके दर्शन देवव।
श्री गणेश जी मनखे मन के, दुख पीरा हर लेवव।।

छन्न पकैया छन्न पकैया, दीन दुखी ला तारव।
सहि के मुसकुल जीयत हावयँ, हालत उखँर सुधारव।।

छन्न पकैया छन्न पकैया, अपन गोठ मा अड़थें।
हे लम्बोदर भुँइया मा सब, मनखे मन हा लड़थें।।

छन्न पकैया छन्न पकैया, लोगन ला समझावव।
गणपति देवा भटके मन ला, रद्दा बने दिखावव।।

छन्न पकैया छन्न पकैया, जलवा अपन दिखावव।
आतंकी मन इतरावत अब्बड़, आके मजा चखावव।।

छन्न पकैया छन्न पकैया, बाढ़त हे कोरोना।
ये बिख ले हे जग के स्वामी, रिता करव हर कोना।।

छन्न पकैया छन्न पकैया, गौरी पूत गणेशा।
हाथ जोड़ के बिनती हे ये, दे बे साथ हमेशा।।

छंदकार - श्लेष चन्द्राकर
पता - खैरा बाड़ा, गुड़रु पारा, महासमुंद (छत्तीसगढ़)
छंद साधक - कक्षा- 9
💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

गणपति देवा-आल्हा छंद गीत(खैरझिटिया)

मुस्कावत हे गौरी नंदन, मुचुर मुचुर मुसवा के संग।
गली गली घर खोर मा बइठे, घोरत हे भक्ति के रंग।

तोरन ताव तने सब तीरन, चारो कोती होवय शोर।
हूम धूप के धुवाँ उड़ावय, बगरै चारो खूँट अँजोर।
लइका लोग सियान सबे के, मन मा छाये हवै उमंग।
मुस्कावत हे गौरी नंदन, मुचुर मुचुर मुसवा के संग।।

संझा बिहना होय आरती, लगे खीर अउ लड्डू भोग।
कृपा करे जब गणपति देवा, भागे जर डर विपदा रोग।
चार हाथ मा शोभा पाये, बड़े पेट मुख हाथी अंग।
मुस्कावत हे गौरी नंदन, मुचुर मुचुर मुसवा के संग।।

होवै जग मा पहली पूजा, सबले बड़े कहावै देव।
ज्ञान बुद्धि बल धन के दाता, सिरजावै जिनगी के नेव।
भगतन मन ला पार लगावै, होय अधर्मी असुरन तंग।
मुस्कावत हे गौरी नंदन, मुचुर मुचुर मुसवा के संग।।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐


Saturday, August 15, 2020

छन्द के छ परिवार के प्रस्तुति-स्वतंत्रता दिवस विशेषांक


 

छन्द के छ परिवार के प्रस्तुति-स्वतंत्रता दिवस विशेषांक

 छंदकार--चोवा राम वर्मा 'बादल'

1 *भारत माता*
(चौपाई छंद)

जय जय हो जय भारत माता । जय किसान जय भाग्य विधाता।।
 धजा तिरंगा के जय जय हो। नजर परे बैरी मा भय हो।।

 जय शहीद बलिदानी मन के। हिंद निवासी जम्मों झन के।।
 अजर अमर हे भारत माता। तहीं हमर अच भाग्य विधाता।।

 शांति दूत जग जाहिर गाँधी। जे सुराज के लाइस आँधी।।
 बाल पाल अउ लाल जवाहर। लौह पुरुष सब हवयँ उजागर ।।

जय सुभाष जे फौज बनाइच। आजादी के अलख जगाइच।।
 भगत सिंग बिस्मिल गुरु अफजल। गोरा मन के टोरिन नसबल।।

 ऊँचा माथ चंद्रशेखर के। गौरव गाथा हे घर घर के।।
 रानी लक्ष्मी झाँसी वाली। दुर्गावती लड़िस जस काली ।।

 कतको झन हावयँ बलिदानी। जिंकर कोनो नइये सानी।। 
महराणा वो चेतक वाला। जेन अपन नइ छोड़िच भाला ।।

 वीर शिवाजी सुरता आथे। रोम-रोम पुलकित हो जाथे।।
 देवभूमि माँ हे कल्यानी। पबरित गंगा जमुना पानी ।।

सेवा मा सब हावय अरपन। 'बादल' के  ए तन मन अउ धन।।  
 रहिबे छाहित भारत माता ।सरग सहीं सब सुख के दाता ।।

2  तिरंगा के जय बोल
          (सार छंद)

आजादी के हमर परब मा, आँच कभू झन आवय।
 नीलगगन मा फहर तिरंगा, लहर लहर लहरावय।।

 दुनिया भर में चमचम चमकय, देश हमर ध्रुव तारा।
 दसो दिशा मा गूंँजत राहय,  पावन जय के नारा ।।

शेखर बिस्मिल बोस बहादुर, जेकर परम पुजारी ।
 जे झंडा ला प्राण समझथन, भारत के नर नारी।।

 थाम तिरंगा लड़ गोरा ले, दे हाबयँ कुरबानी ।
 जेला देख शत्रु डर्राके, रण मा माँगैं पानी।।

 बापू अउ सरदार नेहरू ,गुन गाइन सँगवारी।
 गावत राहय महिमा जेकर, कविवर अटल बिहारी।।

 देव हिमालय मूँड़ उठाके, जेकर महिमा गाथे।
उही धजा के बंदन करके, 'बादल' माथ नवाथे।।

चोवाराम वर्मा"बादल"
हथबन्द
💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

1, एक दिन के देश भक्ति (सरसी छन्द)-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

देशभक्ति चौदह के जागे, सोलह के छँट जाय।
पंद्रह तारिक के दिन बस सब, जय भारत चिल्लाय।

आय अगस्त महीना मा जब, आजादी के बेर।
देश भक्ति के गीत बजे बड़, गाँव शहर सब मेर।
लइका संग सियान मगन हे, झंडा हाथ उठाय।
पंद्रह तारिक के दिन बस सब, जय भारत चिल्लाय।

रँगे बसंती रंग म कोनो, कोनो हरा सफेद।
गावै हाथ तिरंगा थामे, भुला एक दिन भेद।
तीन रंग मा सजे तिरंगा, लहर लहर लहराय।
पंद्रह तारिक के दिन बस सब, जय भारत चिल्लाय।

ये दिन आये सबझन मनला, बलिदानी मन याद।
गूँजय नाम नेहरू गाँधी, भगत सुभाष अजाद।
देशभक्ति के भाव सबे दिन, अन्तस् रहे समाय।
पंद्रह तारिक के दिन बस सब, जय भारत चिल्लाय।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को, कोरबा(छग)
#######################

2, अपन देस(शक्ति छंद)

पुजारी  बनौं मैं अपन देस के।
अहं जात भाँखा सबे लेस के।
करौं बंदना नित करौं आरती।
बसे मोर मन मा सदा भारती।

पसर मा धरे फूल अउ हार मा।
दरस बर खड़े मैं हवौं द्वार मा।
बँधाये  मया मीत डोरी  रहे।
सबो खूँट बगरे अँजोरी रहे।

बसे बस मया हा जिया भीतरी।
रहौं  तेल  बनके  दिया भीतरी।
इहाँ हे सबे झन अलग भेस के।
तभो  हे  घरो घर बिना बेंस के।
------------------------------------|

चुनर ला करौं रंग धानी सहीं।
सजाके बनावौं ग रानी सहीं।
किसानी करौं अउ सियानी करौं।
अपन  देस  ला  मैं गियानी करौं।

वतन बर मरौं अउ वतन ला गढ़ौ।
करत  मात  सेवा  सदा  मैं  बढ़ौ।
फिकर नइ करौं अपन क्लेस के।
वतन बर बनौं घोड़वा रेस के---।
-------------------------------------।

जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)
--------------------------------------
######################

3, कइसे जीत होही(सार छंद)

हमर देश मा भरे पड़े हे,कतको पाकिस्तानी।
जे मन चाहै ये माटी हा,होवै चानी चानी----।

देश प्रेम चिटको नइ जानै,करै बैर गद्दारी।
भाई चारा दया मया ला,काटै धरके आरी।
झगरा झंझट मार काट के,खोजै रोज बहाना।
महतारी  ले  मया करै नइ,देवै रहि रहि ताना।
पहिली ये मन ला समझावव,लात हाथ के बानी।
हमर देश मा भरे पड़े हे,कतको पाकिस्तानी--।

राजनीति  के  खेल निराला,खेलै  जइसे  पासा।
अपन सुवारथ बर बन नेता,काटै कतको आसा।
मातृभूमि के मोल न जानै,मानै सब कुछ गद्दी।
मनखे  मनके मन मा बोथै,जात पात के लद्दी।
फौज  फटाका  धरै फालतू,करै मौज मनमानी।
हमर देश मा भरे पड़े हे,कतको पाकिस्तानी--।

तमगा  ताकत  तोप  देख  के,काँपै  बैरी  डर मा।
फेर बढ़े हे भाव उँखर बड़,देख विभीषण घर मा।
घर मा  ये  मन  जात  पात  के,रोज मतावै गैरी।
ताकत हावय हाल देख के,चील असन अउ बैरी।
हाथ  मिलाके  बैरी  मन ले,बारे  घर  बन छानी।
हमर देश मा भरे पड़े हे,कतको पाकिस्तानी----।

खावय ये माटी के उपजे,गावय गुण परदेशी।
कटघेरा मा डार वतन ला,खुदे लड़त हे पेशी।
अँचरा फाड़य महतारी के,खंजर गोभय छाती।
मारय काटय घर वाले ला,पर ला भेजय पाती।
पलय बढ़य झन ये माटी मा,अइसन दुश्मन जानी।
हमर देश मा भरे पड़े हे,कतको पाकिस्तानी-----।

घर के बइला नाश करत हे, हरहा होके खेती।
हारे हन इतिहास झाँक लौ,इँखरे मन के सेती।
अपन देश के भेद खोल के,ताकत करथे आधा।
जीत भला  तब कइसे होही,घर के मनखे बाधा।
पहिली पहटावय ये मन ला,माँग सके झन पानी।
हमर देश मा भरे पड़े हे,कतको पाकिस्तानी----।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा) छग
##################

4, बलिदानी (सार छंद)

कहाँ चिता के आग बुझा हे,हवै कहाँ आजादी।
भुलागेन बलिदानी मन ला,बनके अवसरवादी।

बैरी अँचरा खींचत हावै,सिसकै भारत माता।
देश  धरम  बर  मया उरकगे,ठट्ठा होगे नाता।
महतारी के आन बान बर,कोन ह झेले गोली।
कोन  लगाये  माथ  मातु के,बंदन चंदन रोली।
छाती कोन ठठाके ठाढ़े,काँपे देख फसादी----।
भुलागेन बलिदानी मन ला,बनके अवसरवादी।

अपन  देश मा भारत माता,होगे हवै अकेल्ला।
हे मतंग मनखे स्वारथ मा,घूमत हावय छेल्ला।
मुड़ी हिमालय के नवगेहे,सागर हा मइलागे।
हवा  बिदेसी महुरा घोरे, दया मया अइलागे।
देश प्रेम ले दुरिहावत हे,भारत के आबादी----।
भुलागेन बलिदानी मन ला,बनके अवसरवादी।

सोन चिरइयाँ अउ बेंड़ी मा,जकड़त जावत हावै।
अपने  मन  सब  बैरी  होगे,कोन  भला  छोड़ावै।
हाँस हाँस के करत हवै सब,ये भुँइया के चारी।
देख  हाल  बलिदानी  मनके,बरसे  नैना धारी।
पर के बुध मा काम करे के,होगे हें सब आदी--।
भुलागेन  बलिदानी मन ला,बनके अवसरवादी।

बार बार बम बारुद बरसे,दहले दाई कोरा।
लड़त  भिड़त हे भाई भाई,बैरी डारे डोरा।
डाह  द्वेष  के  आगी  भभके ,माते  मारा   मारी।
अपन पूत ला घलो बरज नइ,पावत हे महतारी।
बाहिर बाबू भाई रोवै,घर मा दाई दादी--------।
भुलागेन बलिदानी मन ला,बनके अवसरवादी।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)
####$###############

5, हमर तिरंगा(दोहा गीत)

लहर लहर लहरात हे,हमर तिरंगा आज।
इही हमर बर जान ए,इही  हमर ए लाज।
हाँसत  हे  मुस्कात  हे,जंगल  झाड़ी देख।
नँदिया झरना गात हे,बदलत हावय लेख।
जब्बर  छाती  तान  के, हवे  वीर  तैनात।
सुबे  कहाँ  संसो  हवे, नइहे  संसो   रात।
महतारी के लाल सब,मगन करे मिल काज।
इही--------------------------------- लाज।

उत्तर  दक्षिण देख ले,पूरब पश्चिम झाँक।
भारत भुँइया ए हरे,कम झन तैंहर आँक।
गावय गाथा ला पवन,सूरज सँग मा चाँद।
उगे सुमत  के  हे फसल,नइहे बइरी काँद।
का का मैं बतियाँव गा, गजब भरे हे राज।
लहर------------------------------लाज।

तीन रंग के हे ध्वजा, हरा गाजरी स्वेत।
जय हो भारत भारती,नाम सबो हे लेत।
कोटि कोटि परनाम हे,सरग बरोबर देस।
रहिथे सब मनखे इँहा, भेदभाव ला लेस।
जनम  धरे  हौं मैं इहाँ,हावय मोला नाज।
लहर-----------------------------लाज।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

दोहा छंद - रामकली कारे

धरे तिरंगा हाथ मा, फहराबो आगास।
चारों कोती गुॅज उठय, छाये हे उल्लास।।

आजादी ला पाय बर, दिहिंन वीर बलिदान।
सीना तान खड़े रहिन, भारत के सन्तान।।

भारत भुइॅया ला करिन, जय जय जय जोहार।
आजाद भगत के लहू, दुश्मन दय ललकार।।

आवव मिलके सब करिन, जन गण मन के गान।
ऊॅचा भारत भाल हो, बाढ़य रोजे मान।।

हरियर सादा केसरी, झंडा हे पहिचान।
सुख शान्ति अउ शक्ति के, करवाथे गा भान।।

खड़े सजग सैनिक हमर, आगी के अंगार। 
देवय यज्ञ आहूति मा, आवय दुश्मन पार।।

लगा प्राण बाजी हमर, रक्षा करबो आज।
मातृ भूमि ले बड़ मया, अउ करथन गा नाज।।

छंद साधक - रामकली कारे 
बालको नगर कोरबा छत्तीसगढ़
💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

दोहा चौपाई छंद-द्वारिका प्रसाद लहरे

भाई-चारा एकता,भारत के पहिचान।
मिलके रहिथन संग मा,कोनों नोहन आन।।

भारत भुँइयाँ के गुन गावौं,
होत बिहनिया माथ नवावौं।
ये माटी मा जनम बितावौं,
सात जनम बर येला पावौं।।

तीन रंग के धजा तिरंगा,
देखत मा मन होवय चंगा।
हमर एकता भाई-चारा,
रहिथन मिलके झारा-झारा।।

ऊँचा भारत देश के,राहय जग मा भाल।
सबो बढ़ाबो मान ला,हम भारत के लाल।।

सरग बरोबर भारत भुँइयाँ,
झरना सागर लागय पँइयाँ।
तरिया नदिया पाँव पखारे,
खड़े हिमालय बाँह पसारे।।

अब्बड़ सोहे हवय पहाड़ी,
हरियर-हरियय जंगल झाड़ी।
फूल बाग के पहिरे साँटी,
खेत-खार के महके माटी।।

पावन भारत देश के,कतका करँव बखान।
सरग बरोबर लागथे,सुख के इहाँ खदान।।

जगत गुरू भारत कहिलावै,
सोन चिरइयाँ जग दुलरावै।
अजर-अमर भारत के गाथा।
जुग-जुग टेंकय जग हा माथा।।

आनी-बानी गहना गोंटी,
भरे धान के सुघ्घर ओंटी।
जीव-जगत ला पार लगावै,
भारत भुँइयाँ सब ला भावै।।

वंदन भारत देश ला,जग मा हवय महान।
नमन् हवय सब वीर ला,जे होगें बलिदान।।

छंदकार
द्वारिका प्रसाद लहरे
बायपास रोड़ कवर्धा 
छत्तीसगढ़
💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

: सार छन्द- गुमान प्रसाद साहू 
।।परब आजादी।।

आये हावय परब अजादी, जुरमिल सबो मनावव।
जय बोलव भारत माता के, राष्ट्र गान ला गावव।
बड़ मुश्किल मा मिले हवै जी, सब ला ये आजादी।
अउ होवन झन देहू संगी, अइसन जी बरबादी।
हरय तिरंगा शान देश के, लहर लहर लहरावव।
आये हावय परब अजादी, जुरमिल सबो मनावव।।
मनखे मनखे एके हावय, भेद कभू झन जानौ।
जात पात के पाटव डबरा, धरम देश ला मानौ।
भेद मिटालव ऊँच नीच के, सुमता डोर बँधावव।
आये हावय परब अजादी, जुरमिल सबो मनावव।।

रचना- गुमान प्रसाद साहू, ग्राम समोदा(महानदी)
जिला -रायपुर, छत्तीसगढ़।                    
 छन्द साधक - कक्षा "6"
💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐


शंकर छंद :- जय बोलव भारत माता के

जय बोलव  भारत माता के,  आय सबके शान।
मौका  हे  करजा  छूटे  के,  लगा  देवव  जान।।
बैरी  ऊपर  टूट  परव  जी, तुमन  बनके  काल।
सोचव झन आगू का होही, आज ठोंकव ताल।।

कूटी-कूटी दुश्मन ला  करके, भेज ओकर देस।
भूला जाही खुसरे  बर जी, वो  बदल के भेस।।
कसम हवय  दाई के तोला,चुका करजा आज।
तोर  रहत  ले झन  बगरै  जी, इहाँ  गुंडाराज।।

जाति धरम मा बाँट-बाँट के, टोरय  हमर देस।
वो मनखे ला गोली मारव, मिट जाही कलेस।।
मार भगावव  तुमन  सबो ला, जेन देवय संग।
तब मिटही  दुनिया ले  भाई, आतंक  के रंग।।

जगदीश "हीरा" साहू
कड़ार (भाटापारा)
💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

 कुण्डलिया -अजय अमृतांशु

आजादी के रंग मा,रंगे हवय परिवेश।
रंग बसंती छाय हे,झूमत हावय देश।।
झूमत हावय देश,भगतसिंह सुरता आथे।
खुदीराम के त्याग, जोश मन मा भर जाथे।।
सुन गाँधी के बात, देश मा छागे खादी।
कतको दिन बलिदान, पाय बर ये आजादी।।

अजय अमृतांशु
भाटापारा (छत्तीसगढ़)
💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

: कुंडलिया - कन्हैया साहू 'अमित'

धजा तिरंगा देश के, फहर-फहर फहराय।
तीन रंग के शान ले, बैरी घलो डराय।
बैरी घलो डराय, रहय कतको अभिमानी।
देबो अपन परान, निछावर हमर जवानी।
गुनव अमित के गोठ, कभू  झन आय अड़ंगा।
जनगण मन रखवार, अमर हो धजा तिरंगा।


छतरंगा संस्कृति इहाँ, आनी-बानी भेस।
अनेकता मा एकता, हावय भारत देस।
हावय भारत देश, मिलय दाई कस ममता।
अलग धरम अउ जात, तभो ले दिखथे सुमता।
कहय अमित हा आज, सुमत मा रहिथें चंगा।
सुग्घर तीज तिहार, इहाँ संस्कृति छतरंगा।


धजा तिरंगा देख के, बैरी हा थर्राय।
संग हवा के ऊँच मा, लहर-लहर लहराय।
लहर-लहर लहराय, गजब झंडा हा फर-फर।
काँपय कपसै ठाढ, देख के बैरी थर-थर।
कहय अमित हा आज, इहाँ रक्छक बजरंगा।
अड़बड़ फभित अगास, हमर हे धजा तिरंगा।


बनँव पतंगा देश बर, अपने प्रान गवाँव।
धरँव जनम जे बेर मैं, भारत भुँइयाँ पाँव।
भारत भुँइयाँ पाँव, देश के बनँव पुजारी।
नाँव-गाँव सम्मान, इँहे ले हे चिन्हारी।
सिधवा झन तैं जान, बैर मा हरँव भुजंगा।
कहय अमित सिरतोन, देश बर बनँव पतंगा।


भुँइयाँ भारत हा हवय, सिरतों सरग समान।
सुमता के उगथे सुरुज, होथे नवा बिहान। 
होथे नवा बिहान, फुलय सब भाखा बोली।
किसिम किसिम के जात, दिखँय जी एक्के टोली।
गुनव अमित के गोठ, कहाँ अइसन जुड़ छँइयाँ।
सबले सुग्घर देश, सरग कस भारत भुँइयाँ।

कन्हैया साहू 'अमित'
भाटापारा छत्तीसगढ़
💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

*दोहा छंद - अमित टंडन अनभिज्ञ*
  
करव सुरक्षा देश के, स्वारथ छोड़व आज। 
कायरता के भेष मा, झन करहू जी काज॥ 

मिलके करलव काम जी, तभे कमाहू नाम। 
होही तब गुनगान हा, बढ़ही जी सम्मान॥ 

कर दव न्यौछावर सबों, तन मन धन अभिमान। 
भारत माता कहत हे, आगू बढ़व जवान॥ 

करव नाश दुख क्लेश के, मारग सुघर बनाव। 
गर्व करय जी देश हा, अइसन नाम कमाव। 

पावन भारत भूमि के, अड़बड़ हावय मान। 
झन समझव बेकार जी, जग मा हवै महान॥ 

भारत के सेना खड़े, सरहद मा दिन रात। 
मुँह तोड़ दय जवाब जी, दुश्मन खावय मात॥ 

-अमित टंडन अनभिज्ञ 
बरबसपुर, कवर्धा छ्त्तीसगढ़ 
 छंद साधक सत्र - 10
💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

अमर अटल बनहूँ फौजी (हेम के कुकुम्भ छंद)


कहिथे नोनी सुन दाई ला, अमर अटल बनहूँ फौजी।
अपन देश के रक्षा खातिर, करहूँ मँय हर मन मौजी।।

मोरो रग रग मा भारत हे, बनहूँ मँय हर मर्दानी।
सब दुश्मन ले लोहा लेहूँ, बन मँय झाँसी के रानी।।

जय भारत जय भाग्य विधाता, रोजे मँय गावँव गाथा।
हे भारत भुइँया महतारी, अपन लगालँव तोला माथा।।

बइरी मन के काल बनव मँय, घुसे नहीं सीमा द्वारी।
खड़े तान के सीना रइहूँ, सौ सौ झन बर मँय भारी।।

काली दुर्गा रणचंडी बन, बइरी ला मार भगाहूँ।
भारत के वीर तिरंगा ला, सदा सदा मँय लहराहूँ।।

अटल खड़े रइहूँ पहाड़ जस, अपन देश के मँय सीमा।
देख देख बइरी मन भागय, ताकत रखहूँ जस भीमा।।

दुश्मन कतको मार भगाहूँ, रहूँ एकदम मँय चंगा।
मर जाहूँ ता पहिरा देबे, मोला तँय कफन तिरंगा।।

जय भारत जय भारतीय के, बोले दुनिया जयकारा।
अपन वीर बलिदानी मन के, गूँजय सबो डहर नारा।।

-हेमलाल साहू
छंद साधक सत्र-01
ग्राम गिधवा, जिला बेमेतरा(छ. ग.)
💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐
सुखी सवैया - नीलम जायसवाल

जय हिन्द बलावत आज सबे, निज देश ध्वजा फहरावत हावय।
मन मा भगती अउ प्रेम भरे, मिल राष्ट्रिय गान ल गावत हावय।
जय भारत माँ-जय हिंद कहें, कहि के सब हाथ उठावत हावय।
लइका मन आज परेड करै, सँग रेंगते मा बड़ भावत हावय।।

जब लाल किला म ध्वजा लहरे, त स्वतन्त्र इही दिन सुघ्घर आवय।
सब लोग बने सज के निकलै, तब संस्कृति के खुशबू महकावय।
दुनिया पँहुचे पहुना बन के, अउ भारत के मुखिया गुण गावय।
दिखलावय ताकत ला उनला, सज के सब सैन्य कमाल दिखावय।।

नीलम जायसवाल
छंद साधिका सत्र-०५
भिलाई, दुर्ग, छत्तीसगढ़।
💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

*कज्जल छंद*----*आशा देशमुख* 

स्वतंत्रता के परब मनाँय।
सब जगह झंडा फहराँय।
जन मन गण के गीत गाँय।
सब भाईचारा निभाँय।

अब्बड़ दिखत हवय उजास।
हावय ये जी परब खास।
निशदिन करय देश विकास।
फइले बगिया के सुवास।

हवय तिरंगा हमर मान।
येखर खातिर देत प्रान।
हवय हिमालय हमर शान।
रक्षक हवँय वीर जवान।

मिलके रहिबो हमन संग।
जीतबो सबो हमन जंग।
दुनिया होवत रहय दंग।
हमर निराला हवय ढंग।

आशा देशमुख
एनटीपीसी जमनीपाली कोरबा
💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐
: छन्न पकैया छंद - विरेन्द्र कुमार साहू

छन्न पकैया छन्न पकैया, सुमत भाव मन मोहय।
आजादी के कोनों मतलब, देश तोड़ना नोहय।।

छन्न पकैया छन्न पकैया, रहय एकता हम मा।
नइ मरही तब लोकतंत्र हा, बाहुबली के बम मा।।

छन्न पकैया छन्न पकैया, देश सबो ले ऊपर।
लड़बो भिड़बो एखर खातिर, एखर माटी चूपर।।

छन्न पकैया छन्न पकैया, देश-धरम बर मरबो।
देशभक्त बनके भुँइया के, माथा ऊँचा करबो।।

छंद-साधक - विरेन्द्र कुमार साहू, ग्राम - बोड़राबाँधा (पाण्डुका) जि. - गरियाबंद(छ.ग.)
💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐
वाम सवैया - बोधन राम निषादराज

मनावव सुग्घर ये जनतंत्र ल आवव संग धजा लहरावौ।
शहीद हवै कतको मनखे मन ओखर याद म दीप जलावौ।।
सुराज मिले गजबे दिन मा अब आवव आज खुशी ल मनावौ।
चलौ सब गा मिल के अब भारत वंदन सुग्घर गीत ल गावौ।।

छंदकार - बोधन राम निषादराज
सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

आल्हा छंद- इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

धन्य धन्य हे भारत माता, धन्य धन्य वो वीर महान ।
जान गवाँ के मान बढ़ाथे, जा सीमा मा सीना तान ।।

तपत रेत अउ गरमी जाड़ा, देवय पहरा बारो मास ।
सुख निंदिया हमला घर देवय, खुद जीयय बन जिंदा लाश।।

छोड़ खुशी घर के तन नारी, जा थामे सीमा बंदूक ।
देख कभू चूके झन भाई, साध निशाना तोर अचूक ।।

वीर भगत सिँह फाँसी चढ़गे, हँसते हँसते गुरु सुखदेव ।
झुका सकिन दुश्मन बैरी का, हिला सकिन का भारत नेँव ।।

ताल ठोक के लिंन आजादी, भगिस फिरंगी पागी छोर ।
तोड़ गुलामी के बेड़ी ला, लाइन भारत सुख के भोर ।।

नमन नमन हे वीर सपूतों, आवव मिलके फूल चढ़ाव।
बनके सच्चा लाल देश के, भारत माँ के लाज बचाव।।

छंदकार- इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"
बिलासपुर ( छत्तीसगढ़ )
💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐
: लावणी छंद 

हमर तिरंगा फहरत राहय,गाना सुग्घर हम गाबो।
 जय हो भारत माता कहिके,झंडा ला चल फहराबो।

कोनो बैरी देश म मोरो,आँखी ला झन गड़ियावय।
आके हमरो सरहद में अब,कोनों झन पाँव बढ़ावय।


जब जब आथें मुँह के खाथें,रोवत हपटत ओ जाथें।
मोर देश के वीर सिपाही, लोहा के चना ला चबाथें।।

अभी चेत जा दुश्मन तँयहा,येती बर झन तँय आबे।
बैंसठ वाला दिन नोहे अब,लहुट नहीं तँय  जा पाबे।।

कतका तपबे चीनी पाकी, लबरा चपटा तँय हा रे।
गद्दारी रग रग मा हाबे, वोकर फल तँय अब पा रे।

हिन्दी चीनी भाई भाई ,कहिके चोरी तँय आये।
बिसवा बलदा चालिसो के,मरना ला तँहू बलाये।।

आगे अब राफेल  तोर बर,अब भूँज  घला देखाबो।
अभी मान जा जान बचाले,अब तोला मजा  चखाबो।।

केवरा यदु "मीरा "
राजिम
💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

 कुकुभ छंद - आशा आजाद

शहीद मन के कुर्बानी

देश प्रेम हा लहूँ लहूँ मा,दिहिन देश बर कुरबानी।
हिंदुस्तान के आजादी मा,याद रही सब बलिदानी।।

मंगल पांडे खूब लड़िस जी,सच्चा ओ क्रांतीकारी।
स्वतंत्रता संग्रामी बनके,होगे दुश्मन बर भारी।।

बिस्मिल के साहस ला जानौ,भारत मा लहूँ गिराये हे।
तीस साल के उमर रहिस तब ,मरके फरज निभाये हे।।

खुदीराम के साहस बढ़के,जोश अबड़ राखै भारी।
सरकारी दफ्दर मा करदिस,बम के ओ गोला बारी।।

वीर भगत सुखदेव शूर अउ,राजगुरू हे संग्रामी।
अशफाई उल्लाह खान ला,कहिथे सच्चा सेनानी।।

वीर चन्द्रशेखर के साहस,कांड करिस ओ काकोरी।
घायल हो गिस लड़ते लड़ते,छुटिस सांस के तब डोरी।।

कहय लाजपत जेला सबझन,सच्चा ओ क्रांतिकारी।
नाव उधम सिंह साहस रखके,खूब करिस जी बम बारी।।

छंदकार - आशा आजाद
पता -
💐💐💐💐💐💐💐💐💐
 कुकुभ छंद - राजेश कुमार निषाद

तीन रंग के धजा तिरंगा

चलव चलव सब दीदी भइया, आजादी परब मनाबो।
तीन रंग के धजा तिरंगा,मिलके हम सब फहराबो।।

       जन गण मन अधिनायक जय हे, राष्ट्र गान सब झन गाबो।                  जनम धरे हन ये भुइयाँ मा, हमर भाग मा इतराबो।                     
              गली गली मा घुमबो संगी,सबो लगावत जयकारा।
धरे हाथ मा धजा तिरंगा,हावै जे सबला प्यारा।।                               
         करबो सुरता भगत राजगुरु,तिलक असन बलिदानी के।                            दुर्गा लक्ष्मी बाई जइसे,स्वतंत्रता सेनानी के।।       
                                                           
सदा तिरंगा ला लहराबो,नीला नीला बादल मा।।
आँच कभू नइ आवन देवन,भारत माँ के आँचल मा।

रचनाकार :- राजेश कुमार निषाद ग्राम चपरीद रायपुर छहत्तीसगढ़
💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

स्वतंत्रता दिवस-रोला छंद
------------------------------------
कतको घर जैदाद, देश के नाम लुटाए। 
कतको बीर शहीद, देश बर जान गँवाए। ।
झन ककरो बलिदान, त्याग ला कभू  भुलावन। 
उँकरे रद्दा रेंग, देश के मान बढ़ावन। ।

आजादी के जोत, जलय भारत मा सरलग। 
देशप्रेम के भाव,रहय हर दिल मा जगमग। ।
आजादी के जंग, कथा ला झन बिसरावन। 
भारत माँ के मान ,रखे बर किरिया खावन। ।

दीपक निषाद-बनसाँकरा( सिमगा)
💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

 कुकुभ छंद- विजेन्द्र वर्मा

भारत माँ के सेवा बर जी, न्यौछावर हे जिनगानी।
साँस साँस मा आस जगाथे,मोर देश के बलिदानी।।

ठोंक अपन छाती ला संगी,बइरी उप्पर चढ़ जाथे।
थर थर काँपे बइरी मन हा,अइसन तो रार मचाथे।।

देश धरम बर मरथे मिटथे,गढ़थे जी अमर कहानी।
सींच लहू ले ये भुइँया ला,देथे अपने कुर्बानी।।

छाती मा जी गोली खाके,बइरी ला गिन गिन मारे।
रहय खून मा लथपथ वोहा,कभू नहीं हिम्मत हारे।।

कफन शीश मा बाँध निकलथे,चौड़ा करके जी सीना।
दहक जथे वो ज्वाला बनके,नइ देखय मरना जीना।।

विजेन्द्र वर्मा
नगरगाँव (धरसीवाँ)
💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐
अश्वनी कोसरे : *छन्न पकैया छन्न पकेैया* 

1.
छन्न पकैया छन्न पकेैया, आजादी परब मनाबो|
जुरमिल के हँसी खुशी ले, ऊँचा झंडा फहराबो||

2.
छन्न पकैया छन्न पकेैया, आजादी के दिन आगे|
भारत माँ के कोना कोना, जन गन हर गूँजन लागे||

3.
छन्न पकैया छन्न पकेैया, गीत खुशी के गाबो|
भारत माँ के यश के खातिर, हम जयकारा बोलाबो||

4.
छन्न पकैया छन्न पकेैया, मन नाचन झूमन लागे|
गाँव गली अउ शहर नगर मा, देख तिरंंगा लहरागे||

5.
छन्न पकैया छन्न पकेैया, भाई चारा बगराबो|
मास्क बाँधे मूँह नाक मा, इसकुल अँगना जुरियाबो||

6. 
छन्न पकैया छन्न पकैया, कोरोना नइ घबराबो|
सामाजिक दूरी मा रहि के, सेनेटाइजर लगाबो||

छंदकार- अश्वनी कोसरे
सत्र- 09
कवर्धा कबीरधाम
💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐
 **भारत के सेना**
  ( त्रिभंगी छन्द)

सेना के साहस, हे बघवा कस,बैरी मन बर, काल हरे।
सीमा ला राखत, छिन-छिन जागत, भारत माँ के, लाल हरे।
आँखी देखाही, वो पछताही,जउन   इँकर सँग, होड़ करे।
बादर कस गरजत,बड़ ललकारत, 
हर दुश्मन के, तोड़ हरे।

हे भारतमाता, भाग्य विधाता, सैनिक मन हा, शान हरे।
हो बरसा जाड़ा, काँपत हाड़ा, जनगणमन के, गान करे।
भारत के सेना, हमरे डेना, रक्षा बर दीवार हरे।
छेड़य जब बैरी, मातय गैरी, उनकर बड़ संहार करे।

ये भारत भुइँया, धरती मइया, सैनिक मन बर, धाम हरे।
जुग-जुग ले अम्मर, सेवा इनकर, परहित बर जो, काम करे।
धर दीया- बंदन, कर अभिनंदन, मूड़ नवा के, मान करौ।
हो घोर घनेरा, अड़चन बेरा, जिनगी अपने, दान करौ।

साधक-कमलेश वर्मा
भिम्भौरी, बेमेतरा

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

 ज्ञानू कवि: कुकुभ छंद

जब जब आय परब आजादी, सुरता आथे बलिदानी।
येला पाये खातिर संगी, होंगे कतको कुर्बानी।।

हमर देश के  शान तिरंगा, लहर लहर ये लहराये।
भेदभाव ला छोड़ छाड़ के, हँसी खुसी सब फहराये।।

केसरिया सादा अउ हरियर, तीन रंग झंडा प्यारा।
सदा उड़य नित ये अगास मा, दुनियाँ ले सुग्घर न्यारा।।

ऊँच नीच अउ जाँत पाँत के, पाँटन हम सब मिल खाई।
एक संग सब मिलजुल रहिबो, छोड़न हम अपन ढिठाई।।

छोड़ लोभ लालच स्वारथ ला, सुग्घर अब रोज कमाबो।
प्रान देश हित बर अरपन कर, भुइयाँ के लाज बचाबो।।

छंदकार- ज्ञानुदास मानिकपुरी
ग्राम-चंदेनी(कवर्धा)
छत्तीसगढ़

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐
: छन्न पकैया छंद - श्लेष चन्द्राकर
शीर्षक- भारत माता

छन्न पकैया छन्न पकैया, जय हो भारत माता।
माँ अउ लइका के जइसे हे, तोर हमर ओ नाता।।

छन्न पकैया छन्न पकैया, तोला रोज सुमरथँन।
पालत पोसत ते हच सब ला, तोरे पूजा करथँन।।

छन्न पकैया छन्न पकैया, तोर आन बर अड़बो।
आँच चिटिक नइ आवन देवन, बैरी मन ले लड़बो।।

छन्न पकैया छन्न पकैया, सुग्घर बूता करबो।
दुख चिटको नइ देवन माता, तोर पीर सब हरबो।।

छंदकार - श्लेष चन्द्राकर
पता - खैरा बाड़ा, गुड़रु पारा, महासमुंद (छत्तीसगढ़)

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

 त्रिभंगी छन्द-हिन्द वीरा(नेमेन्द्र)

भारत के जच्चा, बेटा सच्चा, सीमा तीर हुँकार भरे।
काँपय बैरी मन,सुनके गरजन, वीर जोर जय, गान करे।।
मानय लोहा जन ,चीन पाक मन,छल बल कर बड़, वार करे।
दे उत्तर लड़के, भारत अड़के, सब बैरी के, प्राण हरे।।

बड़ के छल बल कर, लालच मा मर, चीन पीठ ले, आन लड़े।
चीनी भागव रे, सब जागव रे, हिन्द आज तइयार खड़े।।
मरना हे तोला, धर ले झोला, मैं बघवा ललकार करों।
अब के नइ छोंड़व, गला मरोड़व, चीर तोर तन, चार करों।।

दुश्मन बर गरजे, सेना बरजे, बन पहरी यम, राज खड़े।
बरसा अउ जाड़ा, काँपे हाड़ा, जोश भरे मन, ठाड़ अड़े।।  
ललकारे भारी, आँखी कारी, नश मा लावा, लाल बहे।
जय हिंद भरे मन, अर्पण कर तन, सीना गोली, रोज सहे।।

छंदकार-नेमेन्द्र कुमार गजेन्द्र
हल्दी-गुंडरदेही,जिला-बालोद
💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐
 महेंद्र बघेल: हमर अजादी (सरसी छंद)

पाय हवन जी हमन अजादी, धरके झंडा एक।
हाल चाल ला का कहि सकथन, काकर नीयत नेक।

नैतिकता हा रोज खिरावत, लेवत उप्पर साॅंस।
स्वार्थ लोभ के खातिर भरगे, सदाचार मा भाॅंस।

बहू बहन बेटी महतारी, सोंचत हावॅंय आज।
कते रूप मा हवय दरिंदा,कइसे बचही लाज।

पहिली राजा राज करय अउ, जनता रहय गुलाम।
दाऊ लाला राज करत अब, बदले हे बस नाम।

लोकतंत्र ला खोजत खोजत, बितिस तिहत्तर साल।
भाषण सुनके थपटी पीटत, होइस बारा हाल।

जात धरम मंदिर मस्जिद मा, हपटत हावय देश।
सादा कुरथा पहिर मदारी, फूॅंकत मंतर क्लेश।

दाग लगे खाखी करिया ला, आस दॅंदर के रोय।
कोन करे अब उज्जर इनला, साबुन धीरज खोय।

देश कंगला करे फरेबी,जोर मोटरा बाॅंध।
भागत हें परदेश कलेचुप, चढ़त पॅंदोली खाॅंध।

कतना आगू बढ़े हवव जी, अंतस मा तॅंय सोच।
थोरिक किस्मत हा बदलिस ते,अभी घलव हे लोच।

बड़ मुश्किल मा मिलिस अजादी, राखव येकर मान।
इही तिरंगा गीत गान हर,हम सबके पहिचान।

महेंद्र कुमार बघेल डोंगरगांव
💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐
 कज्जल छंद- मोहन लाल वर्मा 

हमर देश के गा जवान ।
रतिहा होवय या बिहान ।
राख हथेरी मा परान ।
चलथें सीना अपन तान ।।

मानँय नइ वो कभू हार ।
रहिथें रण बर गा तियार ।
भागँय नइ हथियार डार ।
आगू बढ़के करँय वार ।।

सुरता पुरखा के लमाय ।
माथ तिलक माटी लगाय ।
कफन तिरंगा बड़ सुहाय ।
मान देश के गा बढ़ाय ।।

छंदकार- मोहन लाल वर्मा 
पता- ग्राम-अल्दा, तिल्दा, 
रायपुर (छत्तीसगढ़)
💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

Thursday, August 13, 2020

छप्पय छंद- मोहन लाल वर्मा

 छप्पय छंद- मोहन लाल वर्मा 

      (1) आगे हे नवरात 
आगे हे नवरात, बरत हे दियना बाती ।
जगमग-जगमग जोत, करय उजियारी राती ।
माता के दरबार, भगत मन आथें जाथें।
करके पूजा-पाठ, शक्ति ला माथ नवाथें ।।
माता के नवरूप के, करलव दर्शन आज गा।
श्रद्धा ले सब पूज लव, बनही बिगड़े काज गा।।

     (2) पानी के मोल
सुक्खा परगे फेर, देख तो तरिया-नदिया ।
कइसन हाहाकार, मचे हे सारी दुनिया ।
बिन पानी संसार, फेर गा चलही कइसे ।
तड़पत रइहीं जीव,  सबो गा मछरी जइसे ।।
होही पानी के बिना, सुन्ना ये संसार गा।
जानव एकर मोल ला, पानी जग आधार गा।।

    (3) जाड़ 
कापत हावय जीव, जाड़ मा अबड़े भइया ।
सर- सर-सर- सर रोज, चलत हे जुड़ पुरवइया ।
कतको स्वेटर-शाॅल, ओढ़ना कमती लागय ।
कहिथे मोहन लाल, जाड़ हा कब गा भागय ।।
कोन बुताही जाड़ ला, जुड़हा होगे  घाम जी ।
शीतलहर के मार मा , काँपय हाड़ा चाम जी ।।

छंदकार - मोहन लाल वर्मा 
पता- ग्राम-अल्दा, तिल्दा, रायपुर 
(छत्तीसगढ़)

Wednesday, August 12, 2020

गुरू बालकदास जयंती विशेष छन्द बद्ध रचनाये

  

गुरू बालकदास जयंती विशेष छन्द बद्ध रचनाये

डी पी लहरे: रोला छंद 
गुरू बालकदास जयंती

सदगुरु बालकदास,जयंती आज मनाबो।
रहिस प्रतापी वीर,जगत ला बात बताबो।
सत के करय प्रचार,अमर राजा बलिदानी
संपत्ति अधिकार,दिलाइस हवय निशानी।।(१)

गुरू बजाइस सोझ,फिरंगी मन के बाजा।
कहिथे तभे समाज,गुरू बलिदानी राजा।।
जानैं लोक समाज,गुरू के पावन गाथा।
गुरू चरन मा आज,नवाँलन सबझन माथा।।(२)

राजा बालकदास,सबो जन के सुध लेवय।
करै सदा सत न्याय,सजा दोषी ला देवय।
औराबाँधा धाम,गुरू के अमर कहानी।
गुरू शहादत ग्राम,मुलमुला बने निशानी।।(३)

छंदकार
द्वारिका प्रसाद लहरे
कवर्धा छत्तीसगढ़

💐💐💐💐💐💐💐💐💐
 आल्हा छंद- इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"
सतनामी कुल जनम धरे हँव-

सतनामी कुल जनम धरे हँव, सतनामी मँय नाम कहाँव ।
अंश हरँव बलिदानी गुरु के, रखँव कभू नइ पाछू पाँव ।।

चरण पखारँव राजा गुरु के, सतनामी के मान बढ़ाय ।
सोये नींद जगाये खातिर, गाँव गाँव रावटी लगाय ।।

संग रहय सरहा जोधाई, भारी योद्धा इमन कहाय ।।
हाथ जोर इँहला बंदन हे, चरणों देवँव माथ नवाय ।।

लगे रावटी औराबांधा, जिहाँ गये गुरु बालकदास ।
ताँकत राहय दुश्मन बैरी, फेंके राहय धोखा फाँस ।।

टूट पड़े तब दुश्मन बैरी, हाथ लिये नंगी तलवार ।
मारो मारो काहन लागे, जिहाँ लगे गुरु के दरबार ।।

पीठ जोर के लड़े लड़ाई, सुकला लोटा थामे हाथ ।
साँस रहत सरहा जोधाई, आगू पाछू राहय साथ ।।

करम फूटगे सतनामी के, बालक गुरु के गिरगे लाश ।
श्राप दिये तब गुरु बालक जी, तुँहर वंश के होही नाश ।।

साँस हवय साँसा मा जब तक, महिमा गुरु मँय तोरे गांव ।
कलम बँधावय सुमता मोरे, मिलत रहय किरपा के छाँव ।।

✍🏻 इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"
          बिलासपुर ( छत्तीसगढ़ )

ममतामयी माँ मिनीमाता जी ल काव्यांजलि

ममतामयी मिनीमाता जी ल काव्यांजलि


लावणी छंद-सुखदेव सिंह'अहिलेश्वर'

       श्रद्धा के सुरता माँ मिनी माता

भारत माँ के हीरा बेटी,ममतामयी मिनी माता।

तॅंय माँ हम संतान तोर ओ,बनगे हे पावन नाता।

सुरता हे उन्नीस् सौ तेरा, मार्च माह तारिक तेरा।

देवमती दाई के कुँख मा,जन्म भइस रतिहा बेरा।

खुशी बगरगे चारो-कोती,सुख आइस हे दुख जाके।

ददा संत बड़ नाचन लागिस,बेटी ला कोरा पाके।

सुख अँजोर धर आइस बेरा,कटगे अँधियारी राता।

तॅंय माँ हम संतान तोर ओ,बनगे हे पावन नाता।

छट्ठी नामकरण आयोजन,बनिन गाँव भर के साक्षी।

मछरी सही आँख हे कहिके,नाँव धराइन मीनाक्षी।

गुरु गोसाई अगम दास जी,गये रहिन आसाम धरा।

शादी के प्रस्ताव रखिन हे,उही समय परिवार करा।

अगम दास गुरु के पत्नी बन,मिलहिस नाँव मिनी माता।

तॅंय माँ हम संतान तोर ओ,बनगे हे पावन नाता।

सन उन्नीस् सौ इंक्यावन मा,अगम लोक गय अगम गुरू।

खुद के दुख ला बिसर करे माँ,जन सेवा के काम शुरू।

बने प्रथम महिला सांसद तैं,सारंगढ़ छत्तीसगढ़ ले।

तोर एक ठन रहै निवेदन,जिनगी बर कुछ तो पढ़ ले।

पढ़े लिखे ला काम दिलावस,सरकारी खुलवा खाता।

तॅंय माँ हम संतान तोर ओ,बनगे हे पावन नाता।

जन्म भूमि आसाम रहिस हे,कर्म भूमि छत्तीसगढ़ ओ।

शोषित ला अधिकार दिलावस,शासन ले माँ लड़ लड़ ओ।

अस्पृश्यता दहेज निवारण,दुनो विधेयक पेश करे।

समरसता के धरके आगी,भेद भाव ला लेस डरे।

सूत्रधार बाँगो बाँधा के,करुणामयी मिनी माता।

तॅंय माँ हम संतान तोर ओ,बनगे हे पावन नाता।

सन उन्नीस् सौ बछर बहत्तर,महिना तिथि अगस्त ग्यारा।

वायु यान के दुर्घटना ले,सन्नाटा पसरे झारा।

एक सत्य हे काल जगत मा,कहिथें सब ज्ञानी ध्यानी।

समय रहत कर ले सत कारज,के दिन के ये जिनगानी।

अंतस बर श्रद्धा के सुरता,छोड़ चले तैं गुरु माता।

तॅंय माँ हम संतान तोर ओ,बनगे हे पावन नाता।

रचनाकार-सुखदेव सिंह अहिलेश्वर

गोरखपुर,कबीरधाम छत्तीसगढ़

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐


  डी पी लहरे: सार छंद गीत म श्रद्धांजली

ममता करुणा के तँय मूरत,मोर मिनी माता ओ।
अघुवा बनके जोरे राहस,जन-जन ले नाता ओ।।

सतनामी के शान तहीं हस,सबके के राज दुलारी।
सुमता समता लाके तँय हा,टारे जग अँधियारी।।
दुखिया मन के दु:ख हरइया,सुख के तँय दाता ओ।
ममता करुणा के तँय मूरत,मोर मिनी माता ओ।।(१)

नारी मन के मान बढ़ाये,पहली संसद बनके।
सत्य राह मा निसदिन तँय हा,चले रहे ओ तनके।।
दीन हीन सब मनखे मनके,तँय भाग बिधाता ओ।
ममता करुणा के तँय मूरत,मोर मिनी माता ओ।।(२)

तोर सहीं महिमा वाले अब,नइ हें कोनो दूजा।
जब तक चाँद सुरुज हा रइही,जुग-जुग होही पूजा।।
भाई-चारा अमर एकता,सब मा उद्गाता ओ।।
ममता करुणा के तँय मूरत,मोर मिनी माता ओ।।(३)

छंदकार
द्वारिका प्रसाद लहरे
कवर्धा छत्तीसगढ़

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐


रामकली कारे
कुकुभ छंद (ममतामयी मिनी माता)

दया भरे हिरदय ओ तोरे,  ममतामयी मिनी माता।
शान बढ़ाये नारी के तॅय, महतारी भाग बिधाता।।

छत्तीसगढ़ म सब मनखे बर, पहिली साॅसद बन आये।
मानव ले मानव ला जोड़े, माॅग योजना सिरजाये।।

साकार करे बाॅगो हसदो, बाॅध नहर ला धर लाने। 
बेटी बनके फर्ज निभाये, सुख समृद्धि ल भर माने।।

विपदा जब जब आये माता, आस धराये दुखहारी।।
जन जन बर तॅय काम करे ओ, देश राज बर सुखकारी।।

मोर मिनी माॅ राजदुलारी, सत सत नमन हवय बलिदानी।
पुष्प करत हव अर्पण तोला, शक्ति स्वरूपा स्वाभिमानी।।


छंद साधक - रामकली कारे
बालको नगर कोरबा छत्तीसगढ़

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐
लावणी छंद- इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

जगत जननी ममतामयी मिनीमाता-

अट्ठारह सौ छियानबे के, बात बतावत हँव तोला।
पड़े रहय जब अकाल भारी, बेच डरिन सब घर कोला।।

तीन बछर के अकाल बैरी, कमर सबो के टोर डरे।
दाना दाना बर सब तरसे, लोगन भूखन प्यास मरे।।

पंडरिया के गाँव सगोना, मालगुजार बुधारी जी।
खाय कमाये निकल पड़े तब, संग पत्नि बुधियारी जी।।

चाउँरमति अउ पारबती, देवमती तीनों बेटी।
छोट छोट लइका ला राखे, मुड़ी उठाये दुख पेटी।।

चले कमाये असम राज मा, सब्बो बैठ रेलगाड़ी।
बीच सफर मा दू बेटी के, देख जुड़ागे तन नाड़ी।।

भूख प्यास मा दू बेटी ला, परगे जिनगी ले खोना।
दिल मा पथरा बाँध रखे जी, कोंन सुनय ममता रोना।।

मातु पिता के गोद बचिस तब, देवमती बेटी इक झन।
कोंख येखरे जनम धरिस हे, मीनाक्षी अनमोल रतन।।

आगे चलके जेन कहाइस, ममता मयी मिनी माता।
दीन दुखी के बनिस मसीहा, छतीसगढ़ से रख नाता।।

सन उन्निस सौ तेरह के अउ, तेरह तारीख पहाती।
लेइस जनम मिनी माता जी, दहन होलिका के राती।।

असम राज के नवागांव मा, जनम धरे माटी पावन।
धन्य बुधारीदास पिता हो, माता बुधयारिन दामन।।

दग दग काया कंचन जइसे, चमके माँ सूरत भोली।
जग उद्धार करे बर आये, ममता भरके माँ ओली।।

जन्म ग्राम सलना ला छोड़े, जमुनामुख मा आ बसगे।
पाय प्राथमिक तक शिक्षा माँ, देश प्रेम तन मन रसगे।।

सतनामी समाज छत्तीसगढ़, अगमदास गुरु गोसाई।
रामत सामत करत पहुँचगे, असम राज के परछाई।।

निसंतान गुरु जी हा राहय, चिंता उत्तराधिकारी।
ब्याह करे बर मीनाक्षी से, बात करिस पिता बुधारी।।

कहे बुधारीदास संत जी, अहो भाग गुरु  हमरे हे।
बनहि बहू गुरु कुल मीनाक्षी, ओखर किस्मत सँवरे हे।।

दू तारीख जुलाई महिना,सन उन्निस सौ तीस रहे।
धूमधाम से शादी होगे, जन जन जय जयकार कहे।।

राजनीति मा अगुवा गुरु जी, काम करे जन प्रिय भावन।
लोकसभा मा सांसद बनगे, सन उन्निस सौ जी बावन।।

अगम दास सतलोकी होगे, तरस गये माँ सुख अंगद।
सन तिरुपन के उपचुनाव मा, बनिस मिनीमाता सांसद।।

मध्यप्रदेश अविभाजित के, सांसद पहिली महिला ये।
ज्ञानवान माँ प्रखर प्रवक्ता, विचार जेखर गहिला ये।।

तीन बार माँ लगातार जी, करिस सुशोभित खुद आसन।
बाँध रखे राहय मुट्ठी मा, सबो प्रशासन अउ शासन।।

सन उन्निस सौ इक्यासी मा, हसदो बाँध बनाये बर।
माँ प्रस्ताव रखिस संसद मा, भूख अकाल मिटाये बर।।

संसद ले मंजूरी ला के, बनगे माँ भाग्य विधाता।
नामकरण ला मिलके राखिन, बांगो बाँध मिनीमाता।।

माँगिस कानून एक अइसे, सत्रह अप्रैल तिरुपन के।
अश्पृश्यता करे निवारण, दुःख हरे माँ जन जन के।।

आठ मई उन्निस सौ पचपन, करिस राष्ट्रपति मंजूरी।
एक जून सन पचपन मा जी, सपना होइस माँ पूरी।।

बड़े बड़े नेता मन से तो, माँ के राहय पहिचानी।
रहिस इंदिरा खास करीबी, राखे खुदे स्वाभिमानी।।

श्रमिक हित मा कदम बढ़ाइस, देख इँखर जी करलाई।
छत्तीसगढ़ मजदूर संघ के, गठन करिस  तब भेलाई।।

कांड करिस गुरुवाइन डबरी, बन सवर्ण मन उन्मादी।
ला कटघरा खड़ा कर दिस माँ, तब सुनौ इंदिरा गाँधी।।

जिनगी ला अर्पण कर दिस माँ, जन जग दीन भलाई मा।
सत उपदेश धरे अँचरा गुरु, घासीदास दुहाई मा।।

काल बरोबर बनके आइस, ग्यारह अगस्त बहत्तर जी।
छोड़ सबो ला माता चल दिस, रोये धरती अम्बर जी।।

लौट चले आजा ओ माता, जन जन आज पुकारत हे।
गजानंद बन दुखिया बेटा, श्रद्धा सुमन चढ़ावत हे।।

छंदकार- इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"
 बिलासपुर ( छत्तीसगढ़ )