अमृतध्वनि छन्द-राम कुमार चन्द्रवंशी
शीर्षक-राखव सुम्मत बाँध
कपट छोड़ के तुम सदा,राखव सुम्मत बाँध।
बनही जम्मो काम हर,चलव जोड़ के खाँध।
चलव जोड़ के,खाँध जगत मा,प्रेम बढ़ावौ।
जस तुम पाहू,नाँव कमाहू,जग ल सिखावौ।
एक बनव जी,नेक करव जी,मया जोड़ के।
देश बचावौ, धरम निभावौ,कपट छोड़ के।।
राखव सुम्मत बाँध के,जस डोंगा पतवार।
सुम्मत आघू हारथे,नदिया के जलधार।।
नदिया के जल,धार हारथे,सन्तन कहिथे।
सुनता मा बल,मुश्किल के हल,हरदम रहिथे।
सुख नित मिलथे,हिरदे खिलथे,त्यागव बिम्मत।
घर हर बनथे,देश सँवरथे,राखव सुम्मत।।
छन्दकार-राम कुमार चन्द्रवंशी
ग्राम+पोष्ट-बेलरगोंदी
जिला-राजनांदगाँव
छत्तीसगढ़
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Sunday, August 30, 2020
अमृतध्वनि छन्द-राम कुमार चन्द्रवंशी
Saturday, August 29, 2020
अमृतध्वनि छंद - विरेन्द्र कुमार साहू
अमृतध्वनि छंद - विरेन्द्र कुमार साहू
नाँगर बइला जोर के, चलव नँगरिहा खेत।
आगे दिन बरसात के, थोरिक करलव चेत।
थोरिक करलव, चेत लगाके, खेती-बारी।
येहर हावय, हमर राज के, असल चिन्हारी।
बिन मिहनत के, मिलय नहीं कुछु, पेरव जाँगर।
करव किसानी, अपन बुती मा, फाँदव नाँगर।१।
खोय सुतइया खास ला, होवय दुच्छा हाथ।
पाये दुख संताप ला , अपन घरतिया साथ।
अपन घरतिया ,साथ नि समझे, जिम्मेदारी।
जन-जन के मुँह, अइसन मनखे, खाथे गारी।
गोठ ल सिरतों, लिखे हवय गा, रीत बनइया।
जम्मों सुख ला, पाय जगइया, खोय सुतइया।२।
होगे हावय मुँदरहा, जागव सँगी मितान।
बेर उवत ले अब नहीं, सोवव चादर तान।
सोवव चादर, तान नहीं अब, घर सम्भालव।
मिहनत करके, बड़े बने के ,सपना पालव।
मनखे बर तो, आलस सबले, बड़का रोगे।
छोड़ नदानी, उठ जा अब तो, बिहना होगे।३।
छंदकार -विरेन्द्र कुमार साहू, ग्राम - बोड़राबाँधा (पाण्डुका) जि.- गरियाबंद(छत्तीसगढ़)
छप्पय - - छंद*-शशि साहू
*छप्पय - - छंद*-शशि साहू
1/पानी बिन जग सून, पियासे धरती दानी।
नदिया हर दुबराय,कुआँ के अउँटय पानी।।
मचही हाहाकार,अइसने दिन जब आही।
होही झगरा वार,कोन ला कोन बचाही।।
भर दव धरती पेड़ ले,पर्यावरण बचाय बर।
उदिम करव मिलके सबो,पानी ला बरसाय बर ।।
2/छेल्ला किंजरे गाय,मिले नइ दाना पानी।
चारा कोन खवाय,मिलाके कुटकी सानी।।
बाँचे रोटी भात,फेकथें झिल्ली भर के।
खा के मरथे गाय, पेट मा झिल्ली धरके।।
सबले विनती मयँ करवँ,बंद करव उपयोग ला।
बड़का खतरा ये हरे,लाने कतका रोग ला।।
3/झिल्ली मा हे बैन,तभो बेचय व्यापारी।
माटी होय खराब,साग नइ होवय बारी।।
येला कभू जलाव,धुआँ हर जहर उछरथे।
जले कभू नइ फेर, हवा ला दूषित करथे ।
झिल्ली तो हे काम के,फेर करे नुकसान ला।
बउरव झिल्ली झन कभू,लेवय जीव परान ला।
श्रीमती शशि साहू
बाल्कोनगर - कोरबा
Monday, August 24, 2020
छप्पय छंद- विजेन्द्र वर्मा
छप्पय छंद- विजेन्द्र वर्मा
जंगल
स्वार्थी होत समाज,कटत हे अब तो जंगल।
आरी चलथे घेंच,उहाँ कइसे हो मंगल।
लगे हवय सब लोग,मिटाएँ बर जी हस्ती।
अभी समे हे शेष,बचालव अपने बस्ती।
जंगल झाड़ी चीख के,अबड़ मचावय शोर जी।
अब तो झन काटव तुमन,देखव भविष्य ओर जी।
परदेश
जावव झन परदेश,बना लव अब परिपाटी।
इहे कमावँव खाव,खनव गा खंती माटी।
पखरा ला अब फोड़,करम ला इहेच जोड़व।
मिलके राहव आज,मया कोती मुँह मोड़व।
अइसन करलव काम तुम,जग मा बगरै नाँव जी।
जिनगी ला सिरजाय बर,गाँव बनय गा छाँव जी।
मितान
माटी मोर मितान,पीर जी सब के सहिथे।
सहिके घाम पियास,खुदे जी लाँघन रहिथे।
लाथे नवा बिहान,अन्न जग बर उपजाथे।
ए भुइँया के देव,सबो के कष्ट मिटाथे।
भेदभाव जानय नहीं,जन जन बर वो एक हे।
कतका करँव बखान जी,हमरो संगी नेक हे।
खेती बारी
खेती बारी देख,खुशी के मारे झूमय।
हरियर हरियर खेत,देख माटी ला चूमय।
पानी पसिया पेज,खेत मा धर के जावय।
करके अब तो चेत,काम बूता सरकावय।
आगे हवै अषाढ़ जी,सब झन बोथे धान गा।
जागिस सबके भाग अब,करथे काम किसान गा।
घुरुवा
घुरुवा मा ही डार,गाय गरवा के गोबर।
एखर खातू पाल,खेत बर अमृत बरोबर।
घुरुवा ला झन पाट,खाद गुणकारी बनथे।
हरियर खेती खार,पेड़ पउधा हा तनथे।
बारी मा घुरुवा बना,कचरा गोबर डार जी।
एखर खातू ले बने,होही फसल अपार जी।
गोबर
गोबर ला झन फेक,तुमन घुरुवा मा डालव।
समझव मत बेकार,खेत मा येला पालव।
जानव गोबर खाद,हवय कतका गुणकारी।
एखर सब उपयोग,करव जी बहुते भारी।
गोबर गरुवा गाय के,कतको आथे काम जी।
खेती बारी के फसल,देथे बढ़िया दाम जी।
विजेन्द्र वर्मा
नगरगाँव(धरसीवाँ)
Sunday, August 23, 2020
छप्पय छंद-श्री सुखदेव सिंह'अहिलेश्वर'
छप्पय छंद-श्री सुखदेव सिंह'अहिलेश्वर'
प्रणम्य गुरुवर
अरुण निगम हे नाँव, मोर प्रणम्य गुरुवर के।
नस नस मा साहित्य, मिले पुरखा ले घर के।
पेंड़ बरोबर भाव, कृपाफल सब ला मिलथे।
पाथें जे सानिध्य, उँखर जिनगी मन खिलथे।
छत्तीसगढ़ी छंद बर, बनगे बरगद कस तना।
गुरु के कृपा प्रसाद ले, होत छंद के साधना।
जल संरक्षण
बोरिंग हो गय बन्द, बूँद भर जल नइ आवय।
अब मनखे नलकूप, खना के प्यास बुतावय।
चार पाँच सौ फीट, धड़ाधड़ पम्प उतरगे।
संकट हर दू चार कदम दुरिहागे टरगे।
जल संरक्षण के पवित, कारज कोन सिधोय जी।
हिजगा-पारी देख के, कलम धरे कवि रोय जी।
ममता
माँ के मया दुलार, खाद माटी अउ पानी।
असतित पावय जीव, फरै फूलै जिनगानी।
ठुमुक उचावय पाँव, धरे अँगरी माई के।
बचपन फोरे कण्ठ, पाय ममता दाई के।
मातु असीस प्रभाव हे, बैतरणी के पार जी।
महतारी ममता बिना, सुन्ना जग संसार जी।
झन जा दाई
घाम छाँव बरसात, अभी मै जाने नइ हँव।
जिनगानी के रंग, कतिक पहिचाने नइ हँव।
अतका जल्दी हाँथ, छोड़ के झन जा दाई।
घर बन जिनगी मोर, मात जाही करलाई।
कहि देबे भगवान ला, तोर बने पहिचान हे।
नइ आवँव बैकुंठ मँय, पूत अभी नादान हे।
नव पीढ़ी के हाथ मा
मोला नइ तो भाय,काखरो गोठ उखेनी।
जेखर कारण देश राज मा झगरा ठेनी।
बुता काम ला छोड़,भटकथे माथा जाँगर।
शहर सनकथे रोज, गॉंव मा होथे पाँघर।
घर परिवार समाज ला, रद्दा नेक दिखाव जी।
नव पीढ़ी के हाथ मा, संविधान पकड़ाव जी।
लोक बड़ाई
परम्परा के नाँव, मार डारिस अनदेखी।
खेत खार ला बेंच, बघारय मनखे सेखी।
छट्ठी शादी ब्याह, तेरही खात खवाई।
बड़ खर्चीला आज, चलागन लोक बड़ाई।
लोक लाज के नाँव मा, खरचा लाख हजार जी।
पाँव निकलगे आज कल, चद्दर के ओ पार जी।
योग
दुरिहा रहिथे रोग, योग के संग जिये मा।
संझा बिहना रोज, स्वच्छ पुरवई पिये मा।
घंटा आधा एक, योग बर समय निकालन।
सेहत के हर बात, अपन आदत मा ढालन।
स्वास्थ लाभ ला पाय बर, अपनावन जी योग ला।
कर के प्राणायाम नित, दुरिहा राखन रोग ला।
धौंरी धौंरी बरी अदौरी
नोनी छत मा आज, बिराजे हे खटिया मा।
पीठी उरिद पिसान, धरे गंजी मलिया मा।
नान्हे नान्हे खोंट, बनावय बरी अदौरी।
माढ़य ओरी ओर, दिखत हे धौंरी धौंरी।
नोनी बड़ हुँशियार हे, लक्ष्मी के अँवतार जी।
आड़े अँतरे खाय बर, बरी करय तइयार जी।
रचना-सुखदेव सिंह'अहिलेश्वर'
गोरखपुर कबीरधाम छत्तीसगढ़
Saturday, August 22, 2020
छंद के 'छ' परिवार के मयारुक भाई महेंद्र कुमार 'माटी' जी ल काव्यांजलि
सूर्यकान्त गुप्ता 'कांत'
सिंधिया नगर दुर्ग(छ.ग.)
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: *महेंद्र देवांगन "माटी" भइया जी मन ला सादर काव्यांजलि समर्पित (रोला छंद)*
मन हर हवयँ उदास , कहँव का येखर पीरा ।
संगी हमर मितान , रहिस माटी जी हीरा ।।
सब के मनला भाय , हँसी के संग ठिठोली ।
सुरता आथे आज , सबो ओ गुरतुर बोली ।।
सुन्ना पड़गे देख , आज हमरो घर अँगना ।
माटी भइया छोड़ , हमर सब गीसे बँधना ।।
सब ला मया दुलार , सबो दिन देइन भारी ।
बोलिन सुग्घर बोल , कभू नइ जाने चारी ।।
करत रहिन हे भेट , बोल के सुग्घर बानी ।
सरल सहज स्वभाव , रहिस उनकर जिनगानी ।।
सब सो रखय मिलाप , लोग सब उनला जाने ।
लिखत रहिन हे पोठ , कलम ला उनकर माने ।।
माटी जिंकर नाँव , अमर जी जग मा हावय ।
महतारी के लाल , सबो ला सुग्घर भावय ।।
नमन करत हन आज , सबो हम गुनला गाके ।
माटी भइया तोर , चरण मा माथ नवाके ।।
मयारू मोहन कुमार निषाद
गाँव - लमती , भाटापारा ,
जिला - बलौदाबाजार (छ.ग.)
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छंद- माटी
माटी कस हे तन इही, माटी कस हे प्रान।
मिल जाना माटी हवे, छोड़व गरब गुमान।।
छोड़व गरब गुमान, चार दिन के जिनगानी।
जब तक तन मा सांस, निभा लौ मीत मितानी।।
गजानन्द चल साथ, बाँध लिन प्रेम मुहाटी।
माटी हवय महान, मोल समझौ जी माटी।।
इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"
बिलासपुर ( छत्तीसगढ़ )
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ज्ञानू कवि: माटी जी ला काव्यजंलि
धन दौलत परिवार सगा ला, छोड़ एक दिन जाना।
कंचन काया माटी होही, काबर जी इतराना।।
बड़े बड़े ये महल अटारी, छूट एक दिन जाना।
हवस भूल मा काबर हरदम, छोड़ अपन मनमाना।।
संग रहव सब मिलजुल संगी, रिश्ता नता निभाना।
ये दुनियाँ ला जानौ संगी, दू दिन अपन ठिकाना।।
गुरतुर बोली बोल मया के, हिरदै अपन बसाना।
बैर कपट ला समझौ दुश्मन, गीत मया के गाना।।
मुट्ठी बाँधे आय जगत में, हाथ पसारे जाना।
सुग्घर मनखे तन ला पाके, जिनगी सफल बनाना।।
दया मया अउ करम धरम हा, सबले बड़े खजाना।
सत्य प्रेम के पाठ पढ़व अउ, सब ला हवय पढ़ाना।।
ज्ञानु
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आदरणीय माटी गुरु जी ला काव्यजंली
जइसन करबो अपन करम ला, उही भाग मा पाबो जी।
माटी काया माटी माया, माटी मा मिल जाबो जी।।
माटी के हे धन अउ दौलत, छूट इहें सब जाही जी।
रही संग मा करम कमाई, बनके दिही गवाही जी।।
काम तोर नइ आवय कोन्हो, रीबि रीबि जे जोरे तै।
जाबे खाली हाथ जान ले, करनी जग मा छोरे तै।।
जिनगी कागज स्याही सुग्घर, रॅंग भर हमी सजाबो जी।
माटी काया माटी माया, माटी मा मिल जाबो जी।।
जइसन करबो अपन करम ला, उही भाग मा पाबो जी......
मनोज कुमार वर्मा
कक्षा 11
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हमर छंद परिवार के माटी भैया ला काव्यांजलि
छंद छ के परिवार,रोत हे माटी भैया।
सुग्घर सिरजन भाव,छंद के सुघर रचैया।
घेरी बेरी रोय,याद सब करथे तोला।
चल दे बिना बताय,मिटागे अब तो चोला।।
घरवाली हा रोय,कहय माटी तँय आजा।
जोहत रद्दा तोर,खोलहूँ मँय दरवाजा।
चीख चीख के रोय,मांग के सेंदुर नइ हे।
मातम घर मा छाय,अबड़ माते करलइ हे।।
बेटी कलपत आज,रोत हे बाबू कहिके।
कइसे राखय धीर,आय सुरता रहि रहिके।
बेटी कोन बलाय,कोन शिक्षा ला देही।
होय अकेला आज,कोन आरो ला लेही।।
दाई कहिथे रोज,काल मोला ले जाते।
तोला लिहिस बुलाय,कास मँय हा मर जाते।
सुन्ना परगे कोख,कहव अब बेटा काला।
सुरता अब्बड़ आय,नही उतरय ग निवाला।
आशा आजाद
कोरबा छत्तीसगढ़
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विषय: माटी जी के सुरता(छप्पय छंद)
माटी के ओ लाल ,आज ले माटी होगे।
विधि के अजब विधान , ओढ़ के माटी सो गे ।।
बसे हृदय मा मोर , समाये सुरता माटी।
रचना देहस छोड़ ,सबो बर तॅयहा खाटी।।
भइगे सुरता बाॅचगे , आॅखी मा तॅय छाय हस ।
अमर हवे जी नाम हा , सबके माटी पाय हस ।।
सुरता बादर छाय ,आॅख ले आॅसू बरसे।
माटी छवि ला तोर ,देखलॅव मन हा तरसे ।।
माटी के तॅय गीत , लिखे गंगा अस पावन।
झलके सहज सुभाव ,रूप लागय मनभावन।।
छंद विधा के रूप मा , रचना रचे सजोर जी।
माटी बन ''माटी" मिले , सुंदर काया तोर जी ।।
मनभावन मुस्कान , तोर माटी मन भावय।
मीठा बोले बोल , मया के भाव जगावय।।
सुन्ना गलियन खोर,तोर बिन रोवय भारी।
सुरता करथे तोर ,सबो संगी सॅगवारी।।
तोर कलम के धार मा ,जिनगी के सब सार हे ।
माटी कहे निमार के , माटी के संसार हे ।।
साधक कक्षा 10
परमानंद बृजलाल दावना
भैंसबोड़
6260473556
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*माटी जीवन परिचय*
*माटी* ओम प्रकाश कहावय, धरती माँ के पूत सुजान।
गाँव बोरसी पावन धरती, महकाइस जे स्वर्ग समान।।
जन्मभूमि मा बचपन बीतिस, मानय माटी ला वो शान।
धूर्रा माटी खेल कूद के, कदम बढ़ाइस सीना तान।।
करिस पढ़ाई ध्यान लगा के, रहिस छात्र सुग्घर हुसियार।
दिल जीतिस हे गुरुजी मन के, पाइस सब के प्यार दुलार।।
कक्षा पंचम पहुँचत-पहुँचत, होगे साहित्य ले अनुराग।
गीत कहानी रचे लगिस अउ, पढ़ै लिखै दिन रतिहा जाग।।
रइपुर मा इस्नातक होइस, लेख प्रकाशित होवैं साथ।
लइका मन ला शिक्षा देवँय, नित सहयोग बढ़ावँय हाथ।।
करिस बिहाव सजाइस सपना, बाढ़त गिस हें तब परिवार ।
नोनी बाबू जनम लीन हें, पाइस सुंदर खुशी अपार।।
शासकीय तब मिलिस नौकरी, गुरुजी बनिस पढ़ाइन पाठ।
पंडरिया मा रहे लगिन हें, सब के सुग्घर राहय ठाठ।।
पुस्तक 'पुरखा के इज्जत' अउ, 'माटी काया''तीज तिहार'।
खूब मिलिस सम्मान छपे मा, साहित्य जगत दिहिन बड़ प्यार।।
दो हजार सत्रह मा पाइस, अरुण निगम गुरुवर के हाथ।
छंद लेखनी शुरू करिन हे, अपन निभाइस पूरा साथ।।
साहित्य लेखन साथ करा के, बाँटिस वो बेटी ला ज्ञान।
बेटी ला सज्ञान बनाइस, रिहिस दिलावत वो सम्मान।।
छंद पचासों ज्ञानी बन के, दिहिस अचानक दुनिया छोड़।
कंचन काया माटी होगे, चल दिन जग ले नाता तोड़।।
सुन्ना हे संसार पिता बिन, सुरता मा हे मया दुलार।
हर सपना ला पूरा करहूँ, मैं 'माटी' के बेटी सार।।
सुरता मा हस सदा समाये, नइ भूलन हम घर परिवार।
मैं बिरवा अँव तोर लगाये, रचथौं पापा छंद हजार।।
प्रिया देवांगन *प्रियू*
राजिम
छत्तीसगढ़
💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐
*सुरता : स्व.महेंद्र देवांगन"माटी"*
"माटी" के महिमा का गावँव,
रहिन नेक इंसान जी।
ये दुनिया मा आ के भइया,
छोड़ चलिन पहिचान जी।।
गाँव बोरसी जनम धरिन जी,
देवांगन परिवार मा।
दाई - ददा दुलरवा बेटा,
नाम करिन संसार मा।।
सुग्घर महेंद्र लइका निकलिस,
होनहार संतान जी।
ये दुनिया मा आ के भइया,............
राजिम शहर रायपुर शिक्षा,
पंडरिया मा काम जी।
बेटा -बेटी शुभम -प्रिया अउ,
पत्नी मंजू नाम जी।।
"पुरखा के इज्जत" रच डारिन,
नेक रहिन इंसान जी।
ये दुनिया मा आ के भइया,.............
"माटी के काया" रचना अउ,
तीज तिहारी गोठ जी।
गीत - कहानी छत्तीसगढ़ी,
हिंदी ओखर पोठ जी।।
छंद ज्ञान भरपूर रहिस फिर,
नइ चिटको अभिमान जी।
ये दुनिया मा आ के भइया,............
छंदकार:-
बोधन राम निषादराज"विनायक"
सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)
💐💐💐💐💐💐💐💐
सुरता माटी जी
गद्य-पद्य सिरजाइस सुग्घर, कलमकार गुन्निक भारी।
माटी मा 'माटी जी' मिलगें, छोंड़ जगत मा चिनहारी।।
मानवता के रहिस पुजारी, बड़ निर्मल हिरदेवाला।
मातु शारदे बर वो माली, गूँथै शब्द-सुमन माला।
जेकर मन के गोदी नव रस,खेलैं देके किलकारी।
माटी मा 'माटी जी' मिलगें, छोंड़ जगत मा चिनहारी।।
अत्याचारी के विरोध मा, वो जमके कलम चलावै।
बन जुबान मरहा-खुरहा के,भुइँया के गीत सुनावै।
तीज-तिहार अउ परंपरा के, महिमा बरनै सँगवारी।
माटी मा 'माटी जी' मिलगें, छोंड़ जगत मा चिनहारी।।
'छंद के छ परिवार' डहर ले, श्रद्धांजलि अर्पित हावै।
'माटी जी' के दिव्यात्मा हा, परमानंद सदा पावै।
हरि किरपा के होवय बरसा, परिजन बर हो दुखहारी।
माटी मा 'माटी जी' मिलगें, छोंड़ जगत मा चिनहारी।।
श्रद्धावनत
🙏
चोवा राम वर्मा 'बादल'
हथबंद, छत्तीसगढ़
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भगवान गणेश जी को समर्पित छंद बद्ध रचनाये
*गनेश बंदना*
आव बिराजौ मोर घर, गणनायक गणराज।
घेरी भेरी तोर ले, बिनती हावै आज।।
दौड़त आजा मोर घर, मुसवा म हो सवार।
तोरे स्वागत बर खड़े, हवै मोर परिवार।।
फूल पान तोला चढ़ै, लंबोदर महराज।
घेरी भेरी ------
बिफत परे सब पूजथे, विघन हरैया जान।
हाथ जोर बिनती करौं, हे गनेश भगवान।।
आके सब बिगड़ी बना, पूरन कर दौ काज।।
घेरी भेरी -----
अप्पड़ अगियानी निचट, सुमरत हन बस नाँव।
तोर भरोसा हे लगे, बीच सभा में दाँव।।
हे गणपति महराज जी, राखव आ के लाज।
घेरी भेरी------
पोखन लाल जायसवाल
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: सरसी छंद गीत - आशा आजाद
सत पथ के मँय रद्दा रेगौ,बोलव मँय शुभ बोल।
गनपति आन विराजव मन मा,भाव भरौ अनमोल।।
दीन दुखी के सेवा करके,जनहित करदव काज।
धरम करम ले पुण्य कमाके,सत के दव आगाज।
झूठ लबारी गोठ त्याग के,करौ गोठ मँय तोल,
गनपति आन विराजव मन मा,भाव भरौ अनमोल।
चुप्पी मुख ले त्यागौ मँय हा,अनाचार जब होय,
नारी के सम्मान करौ मँय,नारी अब झन रोय,
भाखा अइसन सुघ्घर बोलव,सुन मन जाए डोल,
गनपति आन विराजव मन मा,भाव भरौ अनमोल।
तुच्छ एक मँय कवि हौ देवा,भाव धरौ मँय नेक,
वर्तमान मा घटत हवे जे,काव्य गढ़ौ मँय एक,
मानव हिरदे प्रेम भाव अउ,मानवता दव घोल,
गणपति आन विराजौं मन मा,भाव भरौ अनमोल।
छंदकार - आशा आजाद
पता - मानिकपुर कोरबा
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चौपई छंद(जयकारी छंद) - *जय गणेश*
जय गणेश गिरिजा के लाल । मुकुट बिराजे सुग्घर भाल ।।
शिव शंकर के बेटा आय । ऋद्धि सिद्धि के मन ला भाय।।
आवौ करलौ पूजा पाठ । देखौ कइसे एखर ठाठ ।।
मुसुवा मा बइठे भगवान । मनचाहा देथे बरदान।।
जबर पेट हे हाथी जान । कतका मैंहा करँव बखान ।।
गणनायक हे सुख ला देत । बिपदा ला छिन मा हर लेत ।।
बुद्धि देत हे माँगव आज । सफल होय जी जम्मों काज ।।
सेवा करके मेवा पाव । चल भइया सब गुन ला गाव ।।
ग्यारा दिन अउ ग्यारा रात । करलौ भगती बनही बात ।।
धीरज मा मिलथे जी खीर । झन हो जाहू आज अधीर ।।
देवो मा तँय बड़का देव । मोरो बिनती ला सुन लेव।
पाँव परत हँव तोरे आज । दे आशीष तहीं महराज ।।
छंद साधक - सत्र - 5
बोधन राम निषादराज"विनायक"
सहसपुर लोहारा, जिला-कबीरधाम
(छत्तीसगढ़)
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: मनहरण घनाक्षरी:- गुमान प्रसाद साहू
।।गौरी के लाल।।
आके तोरे द्वार देवा,चरण के करै सेवा,भगत अरज करै,हाथ ला पसार के।
पहिली तोला मनावै,भोग मोदक लगावै,कर दे तै आस पूरा,कहत पुकार के।
बिपत के तै हरैया, तँही मंगल करैया,दुख दर्द दूर करौ,भव ले उबार के।
तँही एकदन्त धारी,मुसवा तोरे सवारी,पार लगा दे नइया,फँसे मँझधार के।।
सुन्दरी सवैया:-।।मंगलकारी गणेश।।
सब ले पहिली सुमरै गणनायक देेव समेत सबो नर नारी।
बिन तोर न काम बने जग के कहिथें तँय हावस मंगलकारी।
बिगड़ी ल बना दुख दूर करे सगरो जग के तँय पालनहारी।
शिवशंकर हावय तोर ददा जग के जननी गिरजा महतारी।।
छन्दकार- गुमान प्रसाद साहू ,ग्राम-समोदा(महानदी)
जिला-रायपुर ,छत्तीसगढ़
छन्द साधक "छन्द के छ" कक्षा-6
💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐
सरसी छंद - राजेश कुमार निषाद
।।गौरी पुत्र गणेश।।
करबो पूजा हम सब तोरे, गौरी पुत्र गणेश।
अरजी हमरों सुनलव प्रभु जी,काटहु मन के क्लेश।।
एकदन्त के तैंहर धारी,सुनलव गा गणराज।
रिद्धि सिद्धि के हव तुम दाता, करहू पूरन काज।।
मुसवा के तैं करे सवारी,लडुवन लागय भोग।
जेन शरण मा तोरे आवय,हरथव ओकर रोग।।
सबले पहिली होथे पूजा,जग मा देवा तोर।
जोत ज्ञान के तहीं जला के, करथस जगत अँजोर।।
महादेव अउ पार्वती के,हावस नटखट लाल।
बड़े बड़े तैं लीला करके,करथस अबड़ कमाल।।
तीन लोक मा होथे प्रभु जी,तोरे जय जयकार।
हे गणपति तैं हे गणराजा,विपदा हरव हमार।।
रचनाकार :- राजेश कुमार निषाद ग्राम चपरीद पोस्ट समोदा रायपुर छत्तीसगढ़
छंद साधक - कक्षा-4
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चोवा राम वर्मा बादल: *गनपति गनराज*
*(कुणडलिया)*
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*हे गनपति गनराज जी,बिनती हे कर जोर।*
*अँगना हमर बिराज लव,पइयाँ लागवँ तोर।*
*पइयाँ लागवँ तोर,अबड़ जोहत हवँ रस्ता*।
*आके नाथ उबार, मोर हालत हे खस्ता।*
*मँहगाई के मार,बाढ़ कर देहे दुरगति।*
*कोरोना के टाँग,टोर दव झटकुन गनपति।*
*बड़का बड़का कान हे,बड़का हाबय पेट।*
*बाधा ला देथच पटक,लम्बा सोंड़ गुमेट।*
*लम्बा सोंड़ गुमेट,दु:ख ला दूर भगादे।*
*शिव गौरी के लाल, भक्त ला पार लगादे।*
*दुनिया के जंजाल, हवय माया के खड़का।*
*लाज रखौ गनराज, देव मा हाबव बड़का।*
*मंगल साजे आरती,लाड़ू भोग लगाय।*
*माथ नवा के पाँव मा, श्रद्धा फूल चढ़ाय।*
*श्रद्धा फूल चढ़ाय ,तोर जस ला मैं गाववँ।*
*विघ्नेश्वर गनराज, सबो सुख किरपा पाववँ।*
*वक्रतुंड महकाय, कभू झन होवय अनभल।*
*रिद्धि सिद्धि के संग, विराजव उच्छल मंगल।*
चोवा राम वर्मा 'बादल'
(छंद साधक)
हथबंद, छत्तीसगढ़
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दिलीप वर्मा
मत्तगयन्द सवैया
हे गणराज सुनो बिनती मझधार फँसे हँव पार करो जी।
तोर बिना अब जीवन के रसता न दिखे उपचार करो जी।
मानत हौं दुख मा सुमिरौं सुख मोर हरे मत रार करो जी।
जीवन नाव हिलोरत हे अब थाम बने उपकार करो जी।
मदिरा सवैया
आवत हौ सुनथौं धरती तुम मूषक वाहन मा चढ़ के।
जोहत हे रसता सब तो घर तोर इहाँ बढ़िया गढ़ के।
हे गणराज दवा धर लानव काम करौ अपने बढ़ के।
देख बिमार हवे सब भक्त बने करदौ कुछ तो पढ़ के।
रचनाकार- दिलीप कुमार वर्मा
बलौदाबाजार छत्तीसगढ़
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छन्न पकैया छंद - श्लेष चन्द्राकर
विषय - श्री गणेश
छन्न पकैया छन्न पकैया, रिद्धि-सिद्धि के स्वामी।
गोठ हमर मन के जानत बस, तँय हच अंतर्यामी।।
छन्न पकैया छन्न पकैया, आके दर्शन देवव।
श्री गणेश जी मनखे मन के, दुख पीरा हर लेवव।।
छन्न पकैया छन्न पकैया, दीन दुखी ला तारव।
सहि के मुसकुल जीयत हावयँ, हालत उखँर सुधारव।।
छन्न पकैया छन्न पकैया, अपन गोठ मा अड़थें।
हे लम्बोदर भुँइया मा सब, मनखे मन हा लड़थें।।
छन्न पकैया छन्न पकैया, लोगन ला समझावव।
गणपति देवा भटके मन ला, रद्दा बने दिखावव।।
छन्न पकैया छन्न पकैया, जलवा अपन दिखावव।
आतंकी मन इतरावत अब्बड़, आके मजा चखावव।।
छन्न पकैया छन्न पकैया, बाढ़त हे कोरोना।
ये बिख ले हे जग के स्वामी, रिता करव हर कोना।।
छन्न पकैया छन्न पकैया, गौरी पूत गणेशा।
हाथ जोड़ के बिनती हे ये, दे बे साथ हमेशा।।
छंदकार - श्लेष चन्द्राकर
पता - खैरा बाड़ा, गुड़रु पारा, महासमुंद (छत्तीसगढ़)
छंद साधक - कक्षा- 9
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गणपति देवा-आल्हा छंद गीत(खैरझिटिया)
मुस्कावत हे गौरी नंदन, मुचुर मुचुर मुसवा के संग।
गली गली घर खोर मा बइठे, घोरत हे भक्ति के रंग।
तोरन ताव तने सब तीरन, चारो कोती होवय शोर।
हूम धूप के धुवाँ उड़ावय, बगरै चारो खूँट अँजोर।
लइका लोग सियान सबे के, मन मा छाये हवै उमंग।
मुस्कावत हे गौरी नंदन, मुचुर मुचुर मुसवा के संग।।
संझा बिहना होय आरती, लगे खीर अउ लड्डू भोग।
कृपा करे जब गणपति देवा, भागे जर डर विपदा रोग।
चार हाथ मा शोभा पाये, बड़े पेट मुख हाथी अंग।
मुस्कावत हे गौरी नंदन, मुचुर मुचुर मुसवा के संग।।
होवै जग मा पहली पूजा, सबले बड़े कहावै देव।
ज्ञान बुद्धि बल धन के दाता, सिरजावै जिनगी के नेव।
भगतन मन ला पार लगावै, होय अधर्मी असुरन तंग।
मुस्कावत हे गौरी नंदन, मुचुर मुचुर मुसवा के संग।।
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को,कोरबा(छग)
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Saturday, August 15, 2020
छन्द के छ परिवार के प्रस्तुति-स्वतंत्रता दिवस विशेषांक
Thursday, August 13, 2020
छप्पय छंद- मोहन लाल वर्मा
छप्पय छंद- मोहन लाल वर्मा
(1) आगे हे नवरात
आगे हे नवरात, बरत हे दियना बाती ।
जगमग-जगमग जोत, करय उजियारी राती ।
माता के दरबार, भगत मन आथें जाथें।
करके पूजा-पाठ, शक्ति ला माथ नवाथें ।।
माता के नवरूप के, करलव दर्शन आज गा।
श्रद्धा ले सब पूज लव, बनही बिगड़े काज गा।।
(2) पानी के मोल
सुक्खा परगे फेर, देख तो तरिया-नदिया ।
कइसन हाहाकार, मचे हे सारी दुनिया ।
बिन पानी संसार, फेर गा चलही कइसे ।
तड़पत रइहीं जीव, सबो गा मछरी जइसे ।।
होही पानी के बिना, सुन्ना ये संसार गा।
जानव एकर मोल ला, पानी जग आधार गा।।
(3) जाड़
कापत हावय जीव, जाड़ मा अबड़े भइया ।
सर- सर-सर- सर रोज, चलत हे जुड़ पुरवइया ।
कतको स्वेटर-शाॅल, ओढ़ना कमती लागय ।
कहिथे मोहन लाल, जाड़ हा कब गा भागय ।।
कोन बुताही जाड़ ला, जुड़हा होगे घाम जी ।
शीतलहर के मार मा , काँपय हाड़ा चाम जी ।।
छंदकार - मोहन लाल वर्मा
पता- ग्राम-अल्दा, तिल्दा, रायपुर
(छत्तीसगढ़)
Wednesday, August 12, 2020
गुरू बालकदास जयंती विशेष छन्द बद्ध रचनाये
गुरू बालकदास जयंती विशेष छन्द बद्ध रचनाये
डी पी लहरे: रोला छंद
गुरू बालकदास जयंती
सदगुरु बालकदास,जयंती आज मनाबो।
रहिस प्रतापी वीर,जगत ला बात बताबो।
सत के करय प्रचार,अमर राजा बलिदानी
संपत्ति अधिकार,दिलाइस हवय निशानी।।(१)
गुरू बजाइस सोझ,फिरंगी मन के बाजा।
कहिथे तभे समाज,गुरू बलिदानी राजा।।
जानैं लोक समाज,गुरू के पावन गाथा।
गुरू चरन मा आज,नवाँलन सबझन माथा।।(२)
राजा बालकदास,सबो जन के सुध लेवय।
करै सदा सत न्याय,सजा दोषी ला देवय।
औराबाँधा धाम,गुरू के अमर कहानी।
गुरू शहादत ग्राम,मुलमुला बने निशानी।।(३)
छंदकार
द्वारिका प्रसाद लहरे
कवर्धा छत्तीसगढ़
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आल्हा छंद- इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"
सतनामी कुल जनम धरे हँव-
सतनामी कुल जनम धरे हँव, सतनामी मँय नाम कहाँव ।
अंश हरँव बलिदानी गुरु के, रखँव कभू नइ पाछू पाँव ।।
चरण पखारँव राजा गुरु के, सतनामी के मान बढ़ाय ।
सोये नींद जगाये खातिर, गाँव गाँव रावटी लगाय ।।
संग रहय सरहा जोधाई, भारी योद्धा इमन कहाय ।।
हाथ जोर इँहला बंदन हे, चरणों देवँव माथ नवाय ।।
लगे रावटी औराबांधा, जिहाँ गये गुरु बालकदास ।
ताँकत राहय दुश्मन बैरी, फेंके राहय धोखा फाँस ।।
टूट पड़े तब दुश्मन बैरी, हाथ लिये नंगी तलवार ।
मारो मारो काहन लागे, जिहाँ लगे गुरु के दरबार ।।
पीठ जोर के लड़े लड़ाई, सुकला लोटा थामे हाथ ।
साँस रहत सरहा जोधाई, आगू पाछू राहय साथ ।।
करम फूटगे सतनामी के, बालक गुरु के गिरगे लाश ।
श्राप दिये तब गुरु बालक जी, तुँहर वंश के होही नाश ।।
साँस हवय साँसा मा जब तक, महिमा गुरु मँय तोरे गांव ।
कलम बँधावय सुमता मोरे, मिलत रहय किरपा के छाँव ।।
✍🏻 इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"
बिलासपुर ( छत्तीसगढ़ )
ममतामयी माँ मिनीमाता जी ल काव्यांजलि
ममतामयी मिनीमाता जी ल काव्यांजलि
लावणी छंद-सुखदेव सिंह'अहिलेश्वर'
श्रद्धा के सुरता माँ मिनी माता
भारत माँ के हीरा बेटी,ममतामयी मिनी माता।
तॅंय माँ हम संतान तोर ओ,बनगे हे पावन नाता।
सुरता हे उन्नीस् सौ तेरा, मार्च माह तारिक तेरा।
देवमती दाई के कुँख मा,जन्म भइस रतिहा बेरा।
खुशी बगरगे चारो-कोती,सुख आइस हे दुख जाके।
ददा संत बड़ नाचन लागिस,बेटी ला कोरा पाके।
सुख अँजोर धर आइस बेरा,कटगे अँधियारी राता।
तॅंय माँ हम संतान तोर ओ,बनगे हे पावन नाता।
छट्ठी नामकरण आयोजन,बनिन गाँव भर के साक्षी।
मछरी सही आँख हे कहिके,नाँव धराइन मीनाक्षी।
गुरु गोसाई अगम दास जी,गये रहिन आसाम धरा।
शादी के प्रस्ताव रखिन हे,उही समय परिवार करा।
अगम दास गुरु के पत्नी बन,मिलहिस नाँव मिनी माता।
तॅंय माँ हम संतान तोर ओ,बनगे हे पावन नाता।
सन उन्नीस् सौ इंक्यावन मा,अगम लोक गय अगम गुरू।
खुद के दुख ला बिसर करे माँ,जन सेवा के काम शुरू।
बने प्रथम महिला सांसद तैं,सारंगढ़ छत्तीसगढ़ ले।
तोर एक ठन रहै निवेदन,जिनगी बर कुछ तो पढ़ ले।
पढ़े लिखे ला काम दिलावस,सरकारी खुलवा खाता।
तॅंय माँ हम संतान तोर ओ,बनगे हे पावन नाता।
जन्म भूमि आसाम रहिस हे,कर्म भूमि छत्तीसगढ़ ओ।
शोषित ला अधिकार दिलावस,शासन ले माँ लड़ लड़ ओ।
अस्पृश्यता दहेज निवारण,दुनो विधेयक पेश करे।
समरसता के धरके आगी,भेद भाव ला लेस डरे।
सूत्रधार बाँगो बाँधा के,करुणामयी मिनी माता।
तॅंय माँ हम संतान तोर ओ,बनगे हे पावन नाता।
सन उन्नीस् सौ बछर बहत्तर,महिना तिथि अगस्त ग्यारा।
वायु यान के दुर्घटना ले,सन्नाटा पसरे झारा।
एक सत्य हे काल जगत मा,कहिथें सब ज्ञानी ध्यानी।
समय रहत कर ले सत कारज,के दिन के ये जिनगानी।
अंतस बर श्रद्धा के सुरता,छोड़ चले तैं गुरु माता।
तॅंय माँ हम संतान तोर ओ,बनगे हे पावन नाता।
रचनाकार-सुखदेव सिंह अहिलेश्वर
गोरखपुर,कबीरधाम छत्तीसगढ़
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डी पी लहरे: सार छंद गीत म श्रद्धांजली
ममता करुणा के तँय मूरत,मोर मिनी माता ओ।
अघुवा बनके जोरे राहस,जन-जन ले नाता ओ।।
सतनामी के शान तहीं हस,सबके के राज दुलारी।
सुमता समता लाके तँय हा,टारे जग अँधियारी।।
दुखिया मन के दु:ख हरइया,सुख के तँय दाता ओ।
ममता करुणा के तँय मूरत,मोर मिनी माता ओ।।(१)
नारी मन के मान बढ़ाये,पहली संसद बनके।
सत्य राह मा निसदिन तँय हा,चले रहे ओ तनके।।
दीन हीन सब मनखे मनके,तँय भाग बिधाता ओ।
ममता करुणा के तँय मूरत,मोर मिनी माता ओ।।(२)
तोर सहीं महिमा वाले अब,नइ हें कोनो दूजा।
जब तक चाँद सुरुज हा रइही,जुग-जुग होही पूजा।।
भाई-चारा अमर एकता,सब मा उद्गाता ओ।।
ममता करुणा के तँय मूरत,मोर मिनी माता ओ।।(३)
छंदकार
द्वारिका प्रसाद लहरे
कवर्धा छत्तीसगढ़
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रामकली कारे
कुकुभ छंद (ममतामयी मिनी माता)
दया भरे हिरदय ओ तोरे, ममतामयी मिनी माता।
शान बढ़ाये नारी के तॅय, महतारी भाग बिधाता।।
छत्तीसगढ़ म सब मनखे बर, पहिली साॅसद बन आये।
मानव ले मानव ला जोड़े, माॅग योजना सिरजाये।।
साकार करे बाॅगो हसदो, बाॅध नहर ला धर लाने।
बेटी बनके फर्ज निभाये, सुख समृद्धि ल भर माने।।
विपदा जब जब आये माता, आस धराये दुखहारी।।
जन जन बर तॅय काम करे ओ, देश राज बर सुखकारी।।
मोर मिनी माॅ राजदुलारी, सत सत नमन हवय बलिदानी।
पुष्प करत हव अर्पण तोला, शक्ति स्वरूपा स्वाभिमानी।।
छंद साधक - रामकली कारे
बालको नगर कोरबा छत्तीसगढ़
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लावणी छंद- इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"
जगत जननी ममतामयी मिनीमाता-
अट्ठारह सौ छियानबे के, बात बतावत हँव तोला।
पड़े रहय जब अकाल भारी, बेच डरिन सब घर कोला।।
तीन बछर के अकाल बैरी, कमर सबो के टोर डरे।
दाना दाना बर सब तरसे, लोगन भूखन प्यास मरे।।
पंडरिया के गाँव सगोना, मालगुजार बुधारी जी।
खाय कमाये निकल पड़े तब, संग पत्नि बुधियारी जी।।
चाउँरमति अउ पारबती, देवमती तीनों बेटी।
छोट छोट लइका ला राखे, मुड़ी उठाये दुख पेटी।।
चले कमाये असम राज मा, सब्बो बैठ रेलगाड़ी।
बीच सफर मा दू बेटी के, देख जुड़ागे तन नाड़ी।।
भूख प्यास मा दू बेटी ला, परगे जिनगी ले खोना।
दिल मा पथरा बाँध रखे जी, कोंन सुनय ममता रोना।।
मातु पिता के गोद बचिस तब, देवमती बेटी इक झन।
कोंख येखरे जनम धरिस हे, मीनाक्षी अनमोल रतन।।
आगे चलके जेन कहाइस, ममता मयी मिनी माता।
दीन दुखी के बनिस मसीहा, छतीसगढ़ से रख नाता।।
सन उन्निस सौ तेरह के अउ, तेरह तारीख पहाती।
लेइस जनम मिनी माता जी, दहन होलिका के राती।।
असम राज के नवागांव मा, जनम धरे माटी पावन।
धन्य बुधारीदास पिता हो, माता बुधयारिन दामन।।
दग दग काया कंचन जइसे, चमके माँ सूरत भोली।
जग उद्धार करे बर आये, ममता भरके माँ ओली।।
जन्म ग्राम सलना ला छोड़े, जमुनामुख मा आ बसगे।
पाय प्राथमिक तक शिक्षा माँ, देश प्रेम तन मन रसगे।।
सतनामी समाज छत्तीसगढ़, अगमदास गुरु गोसाई।
रामत सामत करत पहुँचगे, असम राज के परछाई।।
निसंतान गुरु जी हा राहय, चिंता उत्तराधिकारी।
ब्याह करे बर मीनाक्षी से, बात करिस पिता बुधारी।।
कहे बुधारीदास संत जी, अहो भाग गुरु हमरे हे।
बनहि बहू गुरु कुल मीनाक्षी, ओखर किस्मत सँवरे हे।।
दू तारीख जुलाई महिना,सन उन्निस सौ तीस रहे।
धूमधाम से शादी होगे, जन जन जय जयकार कहे।।
राजनीति मा अगुवा गुरु जी, काम करे जन प्रिय भावन।
लोकसभा मा सांसद बनगे, सन उन्निस सौ जी बावन।।
अगम दास सतलोकी होगे, तरस गये माँ सुख अंगद।
सन तिरुपन के उपचुनाव मा, बनिस मिनीमाता सांसद।।
मध्यप्रदेश अविभाजित के, सांसद पहिली महिला ये।
ज्ञानवान माँ प्रखर प्रवक्ता, विचार जेखर गहिला ये।।
तीन बार माँ लगातार जी, करिस सुशोभित खुद आसन।
बाँध रखे राहय मुट्ठी मा, सबो प्रशासन अउ शासन।।
सन उन्निस सौ इक्यासी मा, हसदो बाँध बनाये बर।
माँ प्रस्ताव रखिस संसद मा, भूख अकाल मिटाये बर।।
संसद ले मंजूरी ला के, बनगे माँ भाग्य विधाता।
नामकरण ला मिलके राखिन, बांगो बाँध मिनीमाता।।
माँगिस कानून एक अइसे, सत्रह अप्रैल तिरुपन के।
अश्पृश्यता करे निवारण, दुःख हरे माँ जन जन के।।
आठ मई उन्निस सौ पचपन, करिस राष्ट्रपति मंजूरी।
एक जून सन पचपन मा जी, सपना होइस माँ पूरी।।
बड़े बड़े नेता मन से तो, माँ के राहय पहिचानी।
रहिस इंदिरा खास करीबी, राखे खुदे स्वाभिमानी।।
श्रमिक हित मा कदम बढ़ाइस, देख इँखर जी करलाई।
छत्तीसगढ़ मजदूर संघ के, गठन करिस तब भेलाई।।
कांड करिस गुरुवाइन डबरी, बन सवर्ण मन उन्मादी।
ला कटघरा खड़ा कर दिस माँ, तब सुनौ इंदिरा गाँधी।।
जिनगी ला अर्पण कर दिस माँ, जन जग दीन भलाई मा।
सत उपदेश धरे अँचरा गुरु, घासीदास दुहाई मा।।
काल बरोबर बनके आइस, ग्यारह अगस्त बहत्तर जी।
छोड़ सबो ला माता चल दिस, रोये धरती अम्बर जी।।
लौट चले आजा ओ माता, जन जन आज पुकारत हे।
गजानंद बन दुखिया बेटा, श्रद्धा सुमन चढ़ावत हे।।
छंदकार- इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"
बिलासपुर ( छत्तीसगढ़ )